अतीत की,
इक झरोखा ,
जबसे,
अपने अन्दर,
खोला है॥
आँगन के,
हर कोने पे,
टंगा हुआ,
बस,
खुशियों का,
झोला है॥
तोतों के,
झुंड मिले,
तितलियों की,
टोली भी,
बरसों बाद ,
सुन पाया,
मैं कोयल की,
बोली भी॥
आम चढा ,
अमरुद चढा ,
नापे कई,
नदी नाले भी,
बन्दर संग ,
मिला मदारी,
मिल गए ,
जादू वाले भी॥
नानी से फ़िर,
सुनी कहानी,
दादी ने ,
लाड दुलार किया,
गली में मिल गयी,
निम्मो रानी,
जिससे मैंने , प्यार,
पहली बार किया॥
बारिश पडी टू,
नाचे छमछम,
हवा चली और,
उडी पतंग,
मिली दिवाली,
फुल्झाध्यिओं सी,
इन्द्रधनुष से,
होली के रंग॥
फ़िर इक,
हल्का सा,
झोंका आया,
खुली आँख और,
कुछ नहीं पाया॥
काश , कभी,
वो छोटी खिड़की,
यूं न बंद होने पाती,
ख़ुद खोलता,
मैं उसको,
रोज ये जवानी,
बचपन से ,
जा कर मिल आती॥
अफ़सोस की ये खिड़की सिर्फ़ तभी खुलती है जब मैं गहरी नींद में होता हूँ.
अरे विन्डोज़ नहीं हैं क्या?....दैट्स द इन थिंग!!
जवाब देंहटाएं:)
गजब खिड़की....वाह...बेहतरीन भाई!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया.....मज़ा आ गया....
जवाब देंहटाएंअपने संग हमें भी बचपन में ले चलने का शुक्रिया .....
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंवाह क्या खूब लिखा है। सच बड़े होने के बाद तो बचपन सपने मे ही आता है।
जवाब देंहटाएंkya baat mere saath aap sab bhee bachpan ko miss karne lage. dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंवाह,बहुत खूब्…सुंदर भाव,
जवाब देंहटाएंअजय जी , बड़ी प्यारी रचना …ऊपर की पंक्ति में यदि …अतीत की, कि जगह अतीत का, कह दें तो पढ़ने मे और भी लय आ जायेगी…… umeed hai अन्यथा nahii.n lege
बचपन व अतीत दोनों ही अच्छे लगते हैं । वैसे बचपन क्या कभी पूरा जा पाता है ?
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता !
घुघूती बासूती
parul jee ,
जवाब देंहटाएंmain asal mein kaa hee likhnaa chah raha tha magar jaldi mein shaayad kee likha gaya. dhanyavaad.
bahut sunder rachna ....
जवाब देंहटाएंbadhai.
बहुत ही बढ़िया लिखा है सर!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंkamaal ki khidki hai...hamne bhi sab jhaank liya. :)
जवाब देंहटाएंअतीत के पृष्ठ पीले नहीं ,सुनहरे होते हैं.साबित कर दिया आपने.बचपन के सारे दृश्य ताजा हो गए.
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