जाने क्यूँ,
आज,
हरेक शख्श,
हर एक बात पर,
खफा खफा सा है ??
जाने क्यूँ,
काफिले का,
हर राहगीर,
और महफ़िल,
सजाने वाला भी,
जुदा जुदा सा है॥
अब तो ,
कुछ भी,
नया नहीं लगता,
हर दर्द, हर चोट,
हरेक हादसा,
मुझको, लगता ,
सुना सुना सा है॥
पहली किरण की,
थपकी से,
जिस कली ने,
बाहें है फैलाई,
सुबह सुबह ही,
वो फूल भी लगता,
थका थका सा है॥
तारीखें तो ,
बदल रही हैं,
मगर ,
जाने क्यूँ,
कब से ,
ये वक़्त,
रुका रुका सा है।
bahut khub kaha,aaj har insaan khud ke liye hi sochta hai.
जवाब देंहटाएंhttp://mehhekk.wordpress.com/
mehek
mehek jee,
जवाब देंहटाएंprotsahan ke liye shukriya.