गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

भैया नहीं तो दूजा कौन ( सावधान इस पोस्ट का भैयादूज से कोई सम्बन्ध नहीं है )

भैया नहीं तो दूजा कौन :- आज निश्चय ही मनसे वालों के लिए गर्व का दिन रहा होगा, भाई एक एक कर वे भैया लोगों से निपटे, या कहूँ की निपटाते जा रहे हैं, पहले धनतेरस को एक को गिराया, फ़िर दिवाली की रात भी एक भैया को पर जम कर लात घूंसों के पटाखे बजाये , फ़िर अभी भैया दूज, उसके बाद छठ ,अभी तो न जाने कितने मौके और मिलने वाले हैं,मनसे तो सबकुछ मन और तन से करने के लिए, पता नहीं अभी तक भैया दूज का कोई सदुपयोग किया की नहीं उन्होंने। देर सवेर पता चल ही जायेगे, खैर।

जब बात किसी क्षेत्र विशेष की होता है तो बाआहार वालों पर जो आरोप लगता है या की पुरजोर तरीके से लगाया जाता है तो वो ये होता है की उनकी वजह से ही स्थानीय लोगों का हक़ मरता है, बिल्कुल एक दृष्टिकोण से देखें तो ये सही भी लगता है, मगर इस सन्दर्भ में मेरे सिर्फ़ दो तर्क हैं, क्या जो व्यवहार आज गरीब मजदूरों, क्षात्रों, के साथ खुलमखुल्ला किया जा रहा ही वो मनसे हो या उससे भी बिगड़ी हुई कोई संस्था, किस समर्थ व्यक्ति के साथ कर सकती है, केंद्रीय मंतीमंडल में बहुत से भैया जी लोग मंत्री हैं, अजी उन्हें भी कुछ गालियाँ, थप्पड़, का आशीर्वाद दीजिये न, आपके जितने भी सरकारी कारायालय हैं, वहां भी आपको थोक के भाव आपके भइया मिल जायेंगे, जरा उनके साथ भी ये हिम्मत दिखाइये न, ।
दूसरी बात कौन सा हक़ मर रहा है, रिक्शा चल्नाने का, सब्जी बेज्चने का, पान सुपाड़ी के खोखे लगाने का, मजदूरी करने का, क्या वे तमाम लोग जो अपने अधिकार और रोजगार के मरने की बात कर रहे हैं बता सकते हैं की कितने लोग ये ऊपर गिनाये गए प्रतिष्ठित काम और इन जैसे ही काम करने को तैयार हैं, मरे जा रहे हैं, और भैया लोगों की वजह से बेचारों को वो काम करने का मौका नहीं मिल रहा है, सोचने वाली बात है...
तो सवाल वही की भैया नहीं तो दूजा कौन ?

हड़ताल अच्छी भी हो सकती है :- मैंने जब से होश सम्भाला है , मेरी बदकिस्मती की जब भी किसी हड़ताल के बारे में पढा, सूना, देखा, भुगता , अनुभव बुरा ही रहा, कुल मिला कर जहाँ में एक ही बात आ गयी की , आम आदमी का नुक्सान। बिजली, पाने, वेतन। आरक्षण, नौकरी, पेंसन, पता नहीं किस किस बात के लिए हड़ताल, और बंद होते रहते हैं, और जाहिर सी बात है की हमें खूब परेशान भी करते हैं। लेकिन मुझे हाल ही में एक ऐसी हड़ताल के बारे में पता चल की मन खुश हो गया, हडताल और हड़तालियों के बारे में जान कर।

पिछले दिनों राजधानी दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में हड़ताल हुई, और पुरजोर हुई, मांग थी की वहां की सी टी स्कैन मशीन जो कई महीनों या शायद सालों से ख़राब थी को बदला जाए और नया लाया जाए, मगर हैरत की बात ये थी की इसके लिए हड़ताल पर जाने वाले वहां के रेजिडेंट डॉक्टर ही थे, जिन्होंने थक हार ख़ुद ही हड़ताल पर जाने का फैसला किए, परिणाम सकारात्मक निकला और त्वरित भी।

पुलिस , सिर्फ़ पुलिस होती है :- यूँ तो पुलिस से सम्बंधित बहुत सी बातें , रोज ही पढने , सुनने और देखने को मिल जाती हैं, कुछ तो प्रत्यक्ष भी , इसमें से अधिकांशतः कैसी होती हैं बताने की जरूरत नहीं हैं शायद। मगर जब भी मैं कुछ आगे सोचता हूँ, एक बात मेरे दिमाग में घूमती हैं , की पुलिस आपको वैसी ही मिलती है जैसे आप ख़ुद हैं, जैसा ये समाज है ,क्योंकि पुलिस भी उसी समाज में से आती है। पिछले दिनों दिल्ली पुलिस में भारती परिक्षा देने आए लगभग पचास हजार नव युवकों ने सरे आम दिन दहाड़े सड़कों पर भय और उदंडता का जो नंगा नाच किया उनसे तो साबित कर दिया की यदि इन्हइन में से हमारे रक्षक आयेंगे तो फ़िर तो भगवान् ही मालिक, दूसरे घटना मुंबई पुलिस की है ही, जिसने राज साहब के सआठ और बेचारे राज, रोहित राज के साथ क्या किया राज की बात है................

चलिए आज इतना ही, फ़िर मिलते हैं.............

मंजर , यही हर बार रहता है .

माहौल कुछ ऐसा है,
या कि, अपनी,
आदत बन गयी है ये,
अब तो,
हर घड़ी,
इक नए दाह्से का,
इन्तजार रहता है,
हकीकत है ये,
कि बेदिली की इंतहा,
देखते हैं, पहला,
दूसरा पहले से,
तैयार रहता है,

घटना- दुर्घटना ,
हादसे-धमाके,
प्रतिरोध-गतिरोध,
बिलखते लोग,
चीखता मीडिया,
बेबस सरकार,
आंखों में मंजर यही,
हर बार रहता है........

हाँ, शायद आज यही हमारी हकीकत बन चुकी है , कि एक के बाद एक नयी नयी घटनाएं, सामने आती जाती हैं, पिछली हम भूलते जाते हैं, और अगले का इंतज़ार करते हैं, यदि दूसरों पर बीती तो ख़बर, अपने पर बीती तो दर्द....

मंजर , यही हर बार रहता है .

माहौल कुछ ऐसा है,
या कि, अपनी,
आदत बन गयी है ये,
अब तो,
हर घड़ी,
इक नए दाह्से का,
इन्तजार रहता है,
हकीकत है ये,
कि बेदिली की इंतहा,
देखते हैं, पहला,
दूसरा पहले से,
तैयार रहता है,

घटना- दुर्घटना ,
हादसे-धमाके,
प्रतिरोध-गतिरोध,
बिलखते लोग,
चीखता मीडिया,
बेबस सरकार,
आंखों में मंजर यही,
हर बार रहता है........

हाँ, शायद आज यही हमारी हकीकत बन चुकी है , कि एक के बाद एक नयी नयी घटनाएं, सामने आती जाती हैं, पिछली हम भूलते जाते हैं, और अगले का इंतज़ार करते हैं, यदि दूसरों पर बीती तो ख़बर, अपने पर बीती तो दर्द....

बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

सावधान, विरोध प्रदर्शन वाले जलाने के लिए चंद्र यान को ढूंढ रहे हैं.

ये हमरे लोकतत्र की मजबूती का सबसे बड़ा प्रमाण है कि, हम किसी की भी कैसी भी चिंगारी को अपने फेफडों से फूंक फूंक कर एक बड़ी आग पैदा कर लेते हैं, और फ़िर उस मशाल को थाम कर जो भी सामने पड़ता है उसको स्वाहा कर देते हैं। और यकीन मानिए उनका ये आग लगाने का तरीका तो उन आदिमानवों के दो पत्थर से रगर कर आग जलने के तरीके से भी ज्यादा सफल और चमत्कारी सिद्ध हुआ है । सो जैसा कि पुरी तरह से अपेक्षित था कि राज ( नाम तो सुना होगा ), के राज पर जब भी जरा सी उंगली उठी अजी उंगली की कौन कहे, सिर्फ़ नजर भी उठी तो फ़िर तो बड़े अस्वमेध यज्ञ में पूरे देश की सम्पत्ती , रेल, बस, गाडियां, सरकारी ओफ्फिस सब कुछ बिना भेदभाव के जलाए जायेंगे। कोई राज के विरूद्ध सुपर फास्ट को आग लगा रहा है तो कोई राज के समर्थन में राजधानी और शताब्दी को , मगर खुसी इस बात की है कि जला दोनों ही ट्रेन को ही रहे हैं, क्यों, पता नहीं वैसे मुझे लगता है कि उन्हें लग रहा होगा कि लालू जी ने इतने अरब ख़राब का फायदा करवाया है तो फ़िर दस बारह ट्रेन जलाने से क्या नुक्सान हो जायेगा।,

मगर अब स्थिति सचमुच चिंताजनक होती जा रही है, ख़बर के अनुसार ( प्लीज, ये सूत्र के बारे में न पूछा करें, खासकर जब ख़बर एक्सक्लूसिव हो तो ), दोनों पक्षों के लोग अब चंद्र यान को ढूंढ रहे हैं ताकि उसे जला कर इस विरोध प्रदर्शन में थोड़ी और गंभीरता लाई जाए। वैसे इसके पीछे भी कारण है, दरअसल किसी ने दबे मुंह से बात फैला दी कि जब चंद्र यान जा ही रहा है और उसके लौटने की कोई ख़ास गारंटी नहीं है तो क्यों न ठाकरे , आजी वही राज फाश वाले , को भी उसमें बैठा कर ऊपर भेज दिया जाए, नीचे की सारी समस्या ही ख़त्म हो। दूसरी अफवाह ये है कि सभी बिहारी, मुझे सहित, ने मांग कर दी है कि जब दिल्ली, मुंबई, आसाम, सभी जगह हमारी वजह से ही मुश्किलें पैदा हो रही हैं तो फ़िर हमें , हम सबको चाँद पर भेज दो । मैंने तो सलाह दी थी कि यार ये जलने और जलाने का शुभ कार्यक्रम थोड़े दिनों के लिए टाल दिया जाए , तब तक उन बेचारों को उसमें बैठा कर घर पहुंचा दिया जाए जो बेचारे ट्रेन के जलने और उसके कैंसिल होने के कारण घर नहीं जा पा रहे हैं।

फिलहाल तो स्थिति गंभीर ही बनी हुई है , यदि चंद्र यान को छुपाने के लिए आप के पास कोई जगह हो तो बताएं ?

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2008

मनसे यानि, मनोरोगियों की नक्सलवादी सेना

इन दिनों आ सी एल की ख़बरों की जितनी ही दुर्दशा हो रही है उतनी ही ज्यादा चर्चा अपने मनसे की हो रहे है और फ़िर हो भी क्यों न जितनी तेज़ गति से वे रोज कोई न कोई रोमांचक मैच खेल रहे हैं तो जाहिर है की उनकी ही चर्चा ज्यादा होनी चाहिए। हाल ही में इस खाकसार को उनका सामना करने का मौका मिला, (यहाँ ये स्पष्ट कर दूँ की ये साक्छात्कार उनके कारागार प्रवास से पहले का है, इसलिए शक न करें )

सर, आपकी ये जो मनसे नामक टीम है, इस पर कई गंभीर आरोप लग रहे हैं, पहला तो यही है कि, आप मनसे नहीं हैं आप लोग असल में तनसे हैं, मतलब आप लोग सारे काम तनसे, विशेष कर हाथ और लात से ही ज्यादा करते हैं, और मन की कौन कहे जो बोले बैगैर भी काम चल सकता है आप उसमें भी अपनी जुबान का काम लेते हैं तो कैसे हुए आप मनसे,
उन्होंने घूर कर देखा , और इशारा किया कि आगे बढो।
साडी कहा जा रहा है कि आपकी सेना का पूरा नाम तो मनोरोगियों की नक्सलवादी सेना होना चाहिए, काम तो आपके उनके जैसे ही हैं, और फ़िर कहे का पुनर्निर्माण, क्या निर्माण ऐसे होता है ।
बिल्कुल, आपने इतिहास नहीं पढा , किसी भी निर्माण से पहले उसका विध्वंस होना जरूरी होता है । देखो दिल्ली सात बार बसने से पहले उतनी ही बार उजड़ी भी थी न , अबकी बार मैंने घूर कर देखा, नहीं शर्मा कर।

सर सुना है आप हमेशा ही धमकी देते रहते हैं कभी किसी को कभी किसी को, असर वासर तो होता नहीं है कुछ।
क्या कहा असर नहीं होता , किसने कहा आपसे , अजी हमने रातों रात मुंबई के सारे पोस्टर्स, दुकानों के नाम, होटलों के नाम सब कुछ मराठी में करवा दिया,और बोल्लीवुद के कौन कहे, अपने सरकार देखी थी, उसके बाद जो रामू ने सरकार राज बनायी थी, वो किसके लिए थी, और किसे खुश करने के लिए थे, आप सरकार में राज के बाद भी नहीं समझे ।

सर हाल में बिहार , यु पी , से बेचारे गरीब छात्र यहाँ परिक्षा देने आए थे, उनके साथ भी आप लोगों ने मारपीट की, कई तो उनमें से ऐसे थे जो मराठी जानते भी थे, फ़िर भी.....

क्या मराठी जानते थे, सब झूठ, जब सर पे डंडा पडा सारा झूठ निकल गया, वे चीख तो हिन्दी में रहे थे ।

सर , भविष्य के लिए आपकी और क्या क्रांतिकारी योजनायें हैं ?

पहले तो में सरकार से मांग करने जा रहा हूँ कि जब सबके लिए इस पे कमीसन में बात हुई, सेना के लिए तो अलग से हुई तो हमारी सेना के लिए कुछ क्यों नहीं सोचा गया, जल्दी ही राष्ट्र्यव्यपी, नहीं महाराष्ट्रव्यापी आन्दोलन होगा। हम फैसला लेने जा रहे हैं कि जितने भी बड़े बड़े कलाकार हैं सबको अपना सरनेम महाराष्ट्रियन ही लगाना होगा, जैसे, शाहरुख पाटिल, आमिर राणे, अमिताभ गायकवाड, सलमान पवार, कैटरीना मातोंडकर अदि , और भी कई योजनायें हैं, आप देखते रहे।
मगर सर सुना है कि आप दोनों परिवारों के बीच कुछ अनबन चल रहे है, जैसे उन्होंने कहा कि सब कुछ उनके
पिता महाराज का है .
अजी छोडो छोडो मजाक है क्या, उनके कहने से क्या होता है, उनका तो तभी पता चल गया था , वैसे तो कहते थे कि मैं ये हूँ वो हूँ और , जब माईकल जैकसन आया तो कहने लगे कि , मुझे फक्र है कि माईकल जैकसन जैसे कलाकार ने मेरा टॉयलेट उप्यूग किया, बताइए तो ये कोई बात हुई।
अच्छा आप अब जाईये मुझे मनसे के बारे में पूरे मन से सोचना है।
मैं भी मन ही मन सोचते चला गया.

मनसे यानि, मनोरोगियों की नक्सलवादी सेना

इन दिनों आ सी एल की ख़बरों की जितनी ही दुर्दशा हो रही है उतनी ही ज्यादा चर्चा अपने मनसे की हो रहे है और फ़िर हो भी क्यों न जितनी तेज़ गति से वे रोज कोई न कोई रोमांचक मैच खेल रहे हैं तो जाहिर है की उनकी ही चर्चा ज्यादा होनी चाहिए। हाल ही में इस खाकसार को उनका सामना करने का मौका मिला, (यहाँ ये स्पष्ट कर दूँ की ये साक्छात्कार उनके कारागार प्रवास से पहले का है, इसलिए शक न करें )

सर, आपकी ये जो मनसे नामक टीम है, इस पर कई गंभीर आरोप लग रहे हैं, पहला तो यही है कि, आप मनसे नहीं हैं आप लोग असल में तनसे हैं, मतलब आप लोग सारे काम तनसे, विशेष कर हाथ और लात से ही ज्यादा करते हैं, और मन की कौन कहे जो बोले बैगैर भी काम चल सकता है आप उसमें भी अपनी जुबान का काम लेते हैं तो कैसे हुए आप मनसे,
उन्होंने घूर कर देखा , और इशारा किया कि आगे बढो।
साडी कहा जा रहा है कि आपकी सेना का पूरा नाम तो मनोरोगियों की नक्सलवादी सेना होना चाहिए, काम तो आपके उनके जैसे ही हैं, और फ़िर कहे का पुनर्निर्माण, क्या निर्माण ऐसे होता है ।
बिल्कुल, आपने इतिहास नहीं पढा , किसी भी निर्माण से पहले उसका विध्वंस होना जरूरी होता है । देखो दिल्ली सात बार बसने से पहले उतनी ही बार उजड़ी भी थी न , अबकी बार मैंने घूर कर देखा, नहीं शर्मा कर।

सर सुना है आप हमेशा ही धमकी देते रहते हैं कभी किसी को कभी किसी को, असर वासर तो होता नहीं है कुछ।
क्या कहा असर नहीं होता , किसने कहा आपसे , अजी हमने रातों रात मुंबई के सारे पोस्टर्स, दुकानों के नाम, होटलों के नाम सब कुछ मराठी में करवा दिया,और बोल्लीवुद के कौन कहे, अपने सरकार देखी थी, उसके बाद जो रामू ने सरकार राज बनायी थी, वो किसके लिए थी, और किसे खुश करने के लिए थे, आप सरकार में राज के बाद भी नहीं समझे ।

सर हाल में बिहार , यु पी , से बेचारे गरीब छात्र यहाँ परिक्षा देने आए थे, उनके साथ भी आप लोगों ने मारपीट की, कई तो उनमें से ऐसे थे जो मराठी जानते भी थे, फ़िर भी.....

क्या मराठी जानते थे, सब झूठ, जब सर पे डंडा पडा सारा झूठ निकल गया, वे चीख तो हिन्दी में रहे थे ।

सर , भविष्य के लिए आपकी और क्या क्रांतिकारी योजनायें हैं ?

पहले तो में सरकार से मांग करने जा रहा हूँ कि जब सबके लिए इस पे कमीसन में बात हुई, सेना के लिए तो अलग से हुई तो हमारी सेना के लिए कुछ क्यों नहीं सोचा गया, जल्दी ही राष्ट्र्यव्यपी, नहीं महाराष्ट्रव्यापी आन्दोलन होगा। हम फैसला लेने जा रहे हैं कि जितने भी बड़े बड़े कलाकार हैं सबको अपना सरनेम महाराष्ट्रियन ही लगाना होगा, जैसे, शाहरुख पाटिल, आमिर राणे, अमिताभ गायकवाड, सलमान पवार, कैटरीना मातोंडकर अदि , और भी कई योजनायें हैं, आप देखते रहे।
मगर सर सुना है कि आप दोनों परिवारों के बीच कुछ अनबन चल रहे है, जैसे उन्होंने कहा कि सब कुछ उनके
पिता महाराज का है .
अजी छोडो छोडो मजाक है क्या, उनके कहने से क्या होता है, उनका तो तभी पता चल गया था , वैसे तो कहते थे कि मैं ये हूँ वो हूँ और , जब माईकल जैकसन आया तो कहने लगे कि , मुझे फक्र है कि माईकल जैकसन जैसे कलाकार ने मेरा टॉयलेट उप्यूग किया, बताइए तो ये कोई बात हुई।
अच्छा आप अब जाईये मुझे मनसे के बारे में पूरे मन से सोचना है।
मैं भी मन ही मन सोचते चला गया.

ब्लॉग्गिंग के कुछ आजमाए नुस्खे - भाग दो

मैंने to सोचा था की , अपनी एक ही पोस्ट में आप सबको ब्लॉग्गिंग के बारे में जो भी बातें जानी समझी हैं बता दूंगा, मगर फ़िर लगा की ये थोडा लंबा हो जायेगा और शायद बोरिंग भी सो दो भागों में बाँट दिया, लीजिये कल से आगे

लेखन का विषय :- वैसे तो यहाँ पर सभी ने अपने अपने पसंद और महारत के हिसाब से अपनी लेखनी का विषय चुना हुआ है और कईयों ने तो अपने चिट्ठों को नाम भी उसी के अनुरूप दिया हुआ है। ये ठीक भी है, चिट्ठे के नाम से ही पता चल जाता है की अमुक विषय पर आधारित ही होगा। मगर चूँकि अभी हिन्दी ब्लोग्जगर संख्या के हिसाब से इतना ज्यादा बड़ा नहीं है इसलिए स्वाभाविक रूप से किसी न किसी ट्रेंड में ढल कर उसी के अनुसार ही चलता चला जाता है। सबसे प्रचलित प्रवृत्ति होती है किसी भी सामयिक विषय पर लिखना, सबसे अच्छी बात ये है की देखने में ये आया है की किसी भी ज्वलंत विषय पर ब्लॉग्गिंग में सामयिक लेखन , जो कि अक्सर बहस में बदल जाता है वो मडिया में उससे सम्बंधित किसी भी तर्क वितर्क से ज्यादा निष्पक्ष और ज्यादा स्तरहीन होता है और ऐसा शायद इसलिए होता है क्योंकि ब्लॉगजगत में विचारों की स्वतन्त्रता है । मेरे ख्याल से किसी भी नए ब्लॉगर के लिए ये एक आसान विकल्प होता है कि उस सामयिक विषय पर चल रही बहस का हिस्सा बन जाए, अपने विचार और तर्क रखे। इनसे अलग जो लोग विशिष्ट विषयों, संगीत, क़ानून, स्वास्थय , आदि पर लिख रहे हैं उनका तो कहना ही क्या, मैं तो लवली जी के सापों वाले ब्लॉग को देख कर हैरान रह गया, ये तो बिल्कुल पश्चिमी देशों की खोजी जानकारी वाले चैनेल जैसी थी।

तिप्प्न्नियाँ : - ये तो एक ऐसा विषय है कि जिस पर न जाने कितने ब्लॉगर कितनी ही बार क्या क्या कह और लिख चुके हैं, ख़ुद में भी कई बार काफी कुछ लिख चुका हूँ। पिछले दिनों भी शास्त्री जी से किसी ने तिप्प्न्नियों को लेकर ही कुछ सवाल किए थे जिसका उत्तर उन्होंने बड़े ही वैज्ञानिक और तार्किक रूप से दिया था। दरअसल हर ब्लॉगर चाहता है कि जब वो कुछ लिखे तो सब उसे पढ़ें और बताएं कि कैसा लगा, खासकर नया नया कोई यहाँ आया तो तरसता रहता है तिप्प्न्नियों के लिए, मैंने पहले भी सुझाव दिया था कि कुछ लोगों कि ऐसी टीम बनाए जाए जो कि नए ब्लोग्गेर्स को न सिर्फ़ प्रोत्साहित करने के लिए टिप्पणियाँ करें बल्कि उनका मार्ग दर्शन भी करें, वैसे ये व्यवस्था यदि संकलकों की तरफ़ से हो पाती तो क्या बात थी। यहाँ यदि उड़नतश्तरी जी, महेंद्र भाई, पी दी जी, ममता जी, शास्त्री जी, अलोक भाई आदि की चर्चा न करूँ तो ग़लत होगा , सच तो ये है कि ब्लॉगजगत के नए ब्लॉगर और पुराने भी इनकी तिप्प्न्नियों के बगैर तो अधूरे हैं। एक बात तिप्प्न्नियों के बारे में हमेशा उठती है कि क्या ये ठीक है कि हम किसी को टिप्प्न्नी करें तो बदले में वो टिप्प्न्नी करे, बल्कि जिसे जो अच्छा लगा वो ख़ुद ही टिप्प्न्नी करे, मेरे ख्याल से तो ये एक परिवार है , जहाँ सब कुछ परस्पर ही होता है । ये ठीक है कि जब आप उस स्थान पर पहुँच जायेंगे जब लोग आपकी लेखनी का इंतज़ार करेंगे तो शायद आप कभी कभी टिप्प्न्नी न भी करें तो चलेगा, मगर महाराज कसम खा लेना कि टिप्प्न्नी नहीं ही करनी है तो फ़िर तो ये शायद ग़लत हा। एक बात और कई लोगों कि या बहुतों कि ये आदत होती है कि टिप्प्न्नी पढ़ कर उसके बाद कोई प्रतिक्रया नहीं देते, ऐसा ना करें। हो सकता कि कोई दोबारा जाकर अपनी बात पर आपकी बात पढ़ना चाहता हो। और हाँ अनाम जी की टिप्प्न्नी का कभी बुरा न माने वे तो बेचारे शायद मनसे ( अजी वही मुंबई वाली ) के सदस्य लगते हैं।

पसंद सूची :- अपने ब्लॉग पर अपने पसंद के ब्लोग्गेर्स की उनके चिट्ठे की सूची जरूर बनाएं , जरूरी नहीं कि ये संख्या में कितनी हो या कि एक बार बना दी तो बना दी, उसे अपनी पसंद के हिसाब से बदल सकते हैं। मेरे कहने का मतलब ये है कि ये एक नेट वर्क की तरह का काम करता है, हो सकता है कि किसी को आपका ब्लॉग भी पसंद आ जाए और वो उसे अपनी पसंद सूची में दाल दे ।

विभिन्न विषयों में लेखन :- ये हिन्दी ब्लॉग जगत के लिए अच्छी बात है कि इसमें न सिर्फ़ हिन्दी में बल्कि लोग अपनी मातरि भाषा में भी लिख रहे हैं, विशेह्स्कर भोजपुरी और मैथिलि के तो कई सारे चिट्ठे लिखे जा रहे हैं, मगर न जाने क्यों उनमें भी आपस में कोई संपर्क नहीं है, या शायद किसी वजह से रखना नहीं चाहते, यदि ऐसा है तो ग़लत है, मैं पहले भी कह रहा हूँ कि दायारा बनाने से आपका और इस ब्लॉगजगत का दोनों का ही फायदा है, और हाँ एक चिटठा कम से कम हिन्दी में जरूर ही बन्याएं, आख़िर जिस लिपि और भाषा का प्रयोग आप कर रहे हैं उसके प्रति आपका भी तो कुछ फ़र्ज़ बँटा है ।

सामूहिक ब्लॉग का न्योता झट से स्वीकार करें : - वैसे तो ये कम ही होता है, कम से कम मुझे तो आज तक किसी ने ये मौका नहीं दिया, लेकिन यदि आपको कोई देता है तो जरूर स्वीकार करें, यकीन मानिए इससे आपका मंच और मजबूत होगा।

तो फ़िर अभी के लिए इतना ही, आशा है कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे .

सोमवार, 20 अक्तूबर 2008

ब्लॉग्गिंग के कुछ आजमाए नुस्खे

कुछ भी लिखने से पहले इतना बता दूँ की ये जो कुछ भी मैं आपको बताने जा रहा हूँ इसलिए नहीं की मैं ब्लॉगजगत का कोई पहुंचा हुआ पंडित हूँ न ही ये की इन नुस्खों के परिणाम का कोई प्रमाण है मेरे पास। बस यूँ समझिये की पिछले एक साल के अनुभवों पर जो सीखा समझा है उसे बांटने की कोशिश कर रहा हूँ। देखें की आपको कितना सही ग़लत लगता है।

शीर्षक :- मेरे ख्याल से किस भी विधा और विषय में लेखन के लिए आवश्यक होता है एक बढिया शीर्षक। आप किस भी पोस्ट को सबसे पहले क्या देखते हैं, चिट्ठे का नाम, चिट्ठाकार का नाम , विषय, शायद नहीं। आप पहले उसका शीर्षक पढ़ते हैं , फ़िर उसीके अनुसार अपने स्वाद के हिसाब से पूरी पोस्ट का मजा लेते हैं। इसलिए कविता, ग़ज़ल, फोटो, कहानी, लेख, संस्मरण,कुछ भी लिखें तो अच्छी तरह सोच विचार के लिखें। यहाँ एक दिलचस्प बात बताता चलूँ। अभी कुछ दिन पहले ही एक ब्लॉगर भाई ने शीर्षक दिया, बकवास है इसे तो बिल्कुल न पढ़ें, यदि अमरीका, इंग्लैंड होता तो शिश्तार्चार्वश कोई नहीं पढता , मगर हम तो हैं ही उल्टे लोग, सो नतीजा ये निकला की सबने खूब पढ़ा, और यकीनन वो जो भी था, बकवास तो कतई नहीं था । मैं ये नहीं कह रहा की उल्टे पुलट शीर्षक लिख कर ही आप अपनी तरफ़ सबका ध्यान आकर्षित करें। मगर कोशिश ये जरूर होनी चाहिए की शीर्षक रोचक हो और प्रस्तुत सामग्री से सीधा सम्बंधित हो। और हाँ ये भी की शीर्षक बहुत ज्यादा लंबा न हो तो ही अच्छा।

लेखन शैली :- कहते हैं की हर इंसान का कुछ भी कहने , लिखने का अंदाजे बयां अपना अलग ही होता है और बिल्कुल जुदा भी, वो कितनी भी कोशिश करे कहीं न कहीं वो अपने रवानगी में उस अंदाज में पहुँच ही जाता है। और सच पूछें तो तो ये होना भी चाहिए। अब देखिये न अशोक जी की चकल्लस में, अलोक जी के पुराण में और अपने उड़नतस्तरी जी की चुटकियों में हास्य व्यंग्य होता है मगर ये उनकी शैली ही है जो उनकी पहचान बन गयी है और हमारे मुंह का स्वाद भी। हालाँकि ऐसा स्वाभाविक रूप से ही होता है, मगर कुछ लोग बिल्कुल ऐसा लिखते हैं जैसे बेमन से लिख रहे हों या फ़िर ऐसा की की कहीं से बिल्कुल नकल मार कर टीप दिया हमारे झेलने के लिए , जानते हैं इसका नतीजा क्या होता है, बिल्कुल तत्वहीन और नीरस लगता है वो सब कुछ। नहीं जरूरी तो बिल्कुल भी नहीं है की आप भी दूसरों की देखा देखी कुछ नया और बदला हुआ करने की चाहत में अपने स्तर और शैली के साथ कोई नया प्रयोग या खिलवाड़ करें।

ब्लॉग का स्वरुप/ साज सज्जा :- इसका सीधा सा मतलब है ,की जो आँखों को सुंदर लगता है, वो मन को भी भाता है । यानि जो ब्लॉगर अपने ब्लॉग को सजाना संवारना जानते हैं , उन्हें निश्चित रूप से ये कोशिश करनी चाहिए की चाहे थोड़ी मेहनत ज्यादा करनी पड़े , मगर ये जरूरी है, यहाँ दो बातें और कहना चाहता हूँ। एक तो ये की जो भी महानुभाव या गुरूजी लोग ये कला जानते हैं वे हम जैसे लोगों को भी सिखाएं, और जो मेरी तरह अनाडी हैं वे एक काम तो कर ही सकते हैं की कम से कम तम्प्लेट अच्छा सा चुनें, कई लोगों तो ऐसा तम्प्लेट चुन रखा है की ब्लॉग खुलते ही सिर्फ़ धुंधला और काला दिखता है.और हाँ यदि आसान हो और मन करे तो थोड़ा बहुत परिवर्तन भी करते रहे, अजी अपनी नयी नयी फोटो ही लगा दें, अचा लगेगा ये बदलाव आपको भी।

पोस्ट करने का समय :- जानते हैं, ये ब्लॉग्गिंग का सबसे महत्वपूर्ण नुस्खा है। मैं सोच रहा था की इस पोस्ट को यहं भारत में रहते हुए में किसी रविवार की सुबह पोस्ट करूंगा। सीधा सा कारण है, मेरे अनुभव के हिसाब से ये सबसे उपयुक्त दिन और समय है किसी पोस्ट के लिए , खासकर यदि आप हिन्दी में ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं तो। दरअसल होता ये है की , सुबह या दिन के प्रारम्भिक समय में जब बी एपी कुछ पोस्ट करेंगे तो तो ज्यादा समय तक लोगों पाठकों की नज़र में रहेगा, क्योंकि अग्ग्रीगातोर्स, या संकलकों की एक सीमितता है पोस्ट्स को दिखने की और स्वाभाविक रूप से जितना ज्यादा समय तक पोस्ट दिखती रहेगी उतने ज्यादा लोगों के पढने की सम्भावना बनी रहती है, वैसे तो जब आपको पढने वाले नियमित पाठक मिल जायेंगे तो ये सब बात मायने नहीं रखती हैं, किंतु नए ब्लोग्गेर्स को चाहिए की वे निश्चित रूप से दिन के या सुबह अपनी पोस्ट को प्रकाशित करें।

चलिए फिलहाल इतना ही आगे की बातें भविष्य में, यदि कुछ कहना , बताना चाहे तो स्वागत है .

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

खुशियों की खुरचन ही मिली

कोशिश तो,
हमने भी की,
अपनी झोलियाँ,
भरने की,
किस्मत अपनी,
की हर बार,
खुशियों की,
खुरचन ही मिली।

जब कर लिए,
सारे प्रयास,
और ढूंढ लिए,
कई प्रश्नों के,
उत्तर भी,
हर जवाब से,
इक नयी,
उलझन ही मिली॥

चाहा की तुम्हें,
रुसवा करके,
सिला दूँ, तुम्हें,
तुम्हारी बेवफाई का,
तुम्हें दी ,
हर चोट से,
अपने भीतर इक,
तड़पन सी मिली॥

मैं मानता था,
अपने अन्दर,
तुम्हारे वजूद को,
मगर न जाने क्यों,
हर बार , बहुत,
दूर तुम्हारी,
धड़कन ही मिली...

खुशियों की खुरचन ही मिली

कोशिश तो,
हमने भी की,
अपनी झोलियाँ,
भरने की,
किस्मत अपनी,
की हर बार,
खुशियों की,
खुरचन ही मिली।

जब कर लिए,
सारे प्रयास,
और ढूंढ लिए,
कई प्रश्नों के,
उत्तर भी,
हर जवाब से,
इक नयी,
उलझन ही मिली॥

चाहा की तुम्हें,
रुसवा करके,
सिला दूँ, तुम्हें,
तुम्हारी बेवफाई का,
तुम्हें दी ,
हर चोट से,
अपने भीतर इक,
तड़पन सी मिली॥

मैं मानता था,
अपने अन्दर,
तुम्हारे वजूद को,
मगर न जाने क्यों,
हर बार , बहुत,
दूर तुम्हारी,
धड़कन ही मिली...

क़ानून बना , कुएं में डाल

हाँ , हाँ , मैं जानता हूँ की आप लोगों ने सिर्फ़ ये कहावत सुनी है इन नेकी कर दरिया में डाल, लेकिन महाराज , ये तो बरसों पुरानी बात है, अव्वल तो आज कोई नेकी करता नहीं है, अलबत्ता कुछ रेकी जरूर कर रहे हैं (सुना है किसी किस्म का इलाज होता है ), और यदि किसी ने गलती से नेकी कर भी ली तो बिल्कुल शेयर बाजार के इनवेस्टमेंट की तरह से उसे मान कर उसके बदले कुछ ज्यादा बड़ा पाने की सोचने लगता है, रही बात दरिया की तो अब जो भी नहर, दरिया बचे हैं, सब नाले बने हुए हैं। अरे देखिये फ़िर मुद्दे से भटक गया, मैं कानूनों की बात कर रहा था।

अपने यहाँ जितने सारे क़ानून बने हुए हैं, या की अब भी बनाए जा रहे हैं, उसमें से आधे से ज्यादा तो हमें ही सुधारने के लिए बनाए जाते हैं। ये अलग बात है की जिस तरह से बनाए जाते हैं, जैसे आनान फानन में लागू किए जाते हैं। आइये कुछ को देखते हैं, हाल ही में बना क़ानून सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट नहीं पीने का, पेड़ों पर लाईट की सजावट नहीं करने का, गन्दगी नहीं फैलाने का, रेड लाईट पर तथा कई प्रतिबंधित जगहों पर तेज आवाज में हार्न न बजाने का कानून, और इसके अलावा नाबालिग़ बच्चों द्वारा किसी भी वाहन को नहीं चलाने का, ड्राइविंग करते समय फोन पर बात नहीं करने का क़ानून, aur भी इस जैसे न जाने कितने ही क़ानून बेचारे कागजी क़ानून बन कर रह गए हैं। यहाँ ये भी बताना चलूँ की धुम्रपान विषयक क़ानून जब जापान में लागू हुआ तो पहले ही महीने में धुम्रपान करने वालों में से अस्सी प्रतिशत लोगन को जुरमाना भरना पड़ा। आज वहां पर सभी सार्वजनिक स्थानों पर एक मोबाईल वन घूमती है जिमें बैठ कर लोग धुम्रपान करते हैं। इसी तरह भूटान में धुम्रपान पर प्रतिबन्ध लगाने से दो वर्ष पहले ही सरकार ने इस विषय में काम करना शुरू कर दिया था, शायद आज इसलिए वे पूरी तरह सफल हैं।
सवाल ये है की कब तक सरकार, प[रशाशन, अदालत ये बताती और समझाती रहेंगी की अमुक ढंग से जियो, अमुक ढंग से चलो, गन्दगी, कूदा न फैलाओ, नशा न करो और क्या सचमुच ही सरकार चाहती है की ये सब रुक जाए। सवाल दोनों तरफ़ के लिए है, और जिम्मेदारी भी, तो होता ये है की शायद इसलिए हमेशा ही दोनों एक दूसरे पर दोषारोपण कर के चल देते हैं। देखें ये दौर कब तक चलता है, वैसे नशे का और किसी भी क़ानून को तोड़ने का चलन इन दिनों ज्यादा बढ़ रहा है, आप देखें की आप कौन से फैशन में हैं या की दोनों में हैं।

मैं तो इंतज़ार कर रहा हूँ की किसी दिन क़ानून के ढेर से ये कुँआ तो जरूर भर जायेगा और तब छलक कर कुछ क़ानून जब बाहर आयेंगे, शायद तब इन्हें हम पालन होते हुए भी देख पाएं.

गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

हाथ धुलाई के बाद हाथ जुड़ाई दिवस

हाथ धुलाई दिवस जो हाल ही में मनाया गया , के पीछे सबसे बड़ा कारण , मुझे लगता है करवाचौथ ही होगा , करवाचौथ में हाथों में मेहंदी लगवाने के लिए हाथ बिल्कुल साफ़ होने चाहिए न। पुरुषों को कहा गया की पैसा हाथों की मैल है । इसलिए इस दिवस के बाद और करवाचौथ के बाद आपके हाथों में न तो कोई मैल रहेगी , हो सकता है की हाथ ही न रहे।

खैर इसके बाद अब हाथ जुड़ाई दिवस या कहूँ की हाथ जुड़ाई महोत्सव मनाया जाने वाला है। हमारे आप जैसे दिखने वाले किंतु कुछ विशिस्थ नस्ल के प्राणी, अन्दर के मक्कार पाने को छिपा कर एक मासूमियत और दया का भाव लिए घर घर जाकर ये महोत्सव मानायेंगे। तब तक ये महोत्सव जारी रहेगा जब तक उनके झांसे में आकर आप अपने हाथ न कटवा बैठें। वैसे कभी कभी आपस में ये हाथ तुडाई , पैर तुडाई दिवस भी मना लेते हैं।

सार संग्रह ये की हाथ धुलाई हो या हाथ जुड़ाई , हाथ यानि जगन्नाथ.

दूज , तीज,चौथ, महिलाओं की- पंचमी पुरुषों की.

करवा चौथ का सबसे कड़वा पहलू तब होता है जब घर की सारी अबला सेना दोनों हाथों में मेहंदी लगा कर बैठ जाती हैं और सारे काम हमें सौंप कर अबला बना डालती हैं। क्खैर, ऐसे ही सभी काम काज, निपटा कर जब फुर्सत में बैठे तो महिला मंडली से हमने भी कुछ वाद विवाद करने का मन बना लिया। सो शुरू हो गए, पहले अपनी छुटकी से ही शुरू किया।
एक बात बताओ ये तुम लोगों का मैथ से कौन सा कनेक्शन है, सभी अंकों पर तुमने अपने एक त्यौहार फिक्स कर लिए हैं, और वो भी ऐसे की कमबख्त सब में हमारी ही धुलाई पुताई जो जाती है।
बीच में ही सबका ध्यान अपनी और पाटा देख कर मैंने कहना जारी रखा, देखो भैया दूज, हो तो भैया जी बन कर गए काम से, फ़िर आयी तीज की बारी, इसमें भी श्रृंगार पतार पर जो अतिरिक्त बोझ बजट पर आता है उससे हमारा ही बैंड बजता है, और अब ये करवा चौथ। यार इस चौथ पर आप सबने जो ये मेहंदी और तरह तरह की सजावट, सर पर ये पंडाल वैगेरह लगवाए हैं, जानते हो यदि सिर्फ़ इस बार ही आप सब इस प्रोग्राम को एक्सटैंड कर देते तो आपको पता नहीं ये तो इस बाज़ार पर बिल्कुल रिजर्व बैंक की तरह का उपकार कर देते। और एक अन्तिम बात सभी कुछ आप लोगों के लिए ही है, हमारा क्या, हमारे लिए कुछ भी नहीं।

श्रीमती जी, तपाक से ब्लोई, छुटकी, अपने भैया से कहो निराश होने की क्या बात है, चौथ के बाद पंचमी आती है, और इस लिहाज से नाग पंचमी उन्ही लोगों के लिए है, तभी तो हम सब उस सारे नागों को बिल से निकाल कर दूध पिलाते हैं, और फ़िर साल भर उन नागों को बीन पर नचाते हैं।

मैं चुपचाप उनके लिए चाय बनाने चल दिया, ज्यादा दूध वाली।

हे , इछाधार्नियों आप सबको करवा चौथ पर बहुत बहुत बधाई.

दूज , तीज,चौथ, महिलाओं की- पंचमी पुरुषों की.

करवा चौथ का सबसे कड़वा पहलू तब होता है जब घर की सारी अबला सेना दोनों हाथों में मेहंदी लगा कर बैठ जाती हैं और सारे काम हमें सौंप कर अबला बना डालती हैं। क्खैर, ऐसे ही सभी काम काज, निपटा कर जब फुर्सत में बैठे तो महिला मंडली से हमने भी कुछ वाद विवाद करने का मन बना लिया। सो शुरू हो गए, पहले अपनी छुटकी से ही शुरू किया।
एक बात बताओ ये तुम लोगों का मैथ से कौन सा कनेक्शन है, सभी अंकों पर तुमने अपने एक त्यौहार फिक्स कर लिए हैं, और वो भी ऐसे की कमबख्त सब में हमारी ही धुलाई पुताई जो जाती है।
बीच में ही सबका ध्यान अपनी और पाटा देख कर मैंने कहना जारी रखा, देखो भैया दूज, हो तो भैया जी बन कर गए काम से, फ़िर आयी तीज की बारी, इसमें भी श्रृंगार पतार पर जो अतिरिक्त बोझ बजट पर आता है उससे हमारा ही बैंड बजता है, और अब ये करवा चौथ। यार इस चौथ पर आप सबने जो ये मेहंदी और तरह तरह की सजावट, सर पर ये पंडाल वैगेरह लगवाए हैं, जानते हो यदि सिर्फ़ इस बार ही आप सब इस प्रोग्राम को एक्सटैंड कर देते तो आपको पता नहीं ये तो इस बाज़ार पर बिल्कुल रिजर्व बैंक की तरह का उपकार कर देते। और एक अन्तिम बात सभी कुछ आप लोगों के लिए ही है, हमारा क्या, हमारे लिए कुछ भी नहीं।

श्रीमती जी, तपाक से ब्लोई, छुटकी, अपने भैया से कहो निराश होने की क्या बात है, चौथ के बाद पंचमी आती है, और इस लिहाज से नाग पंचमी उन्ही लोगों के लिए है, तभी तो हम सब उस सारे नागों को बिल से निकाल कर दूध पिलाते हैं, और फ़िर साल भर उन नागों को बीन पर नचाते हैं।

मैं चुपचाप उनके लिए चाय बनाने चल दिया, ज्यादा दूध वाली।

हे , इछाधार्नियों आप सबको करवा चौथ पर बहुत बहुत बधाई.

बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

लिव इन रिलेशनशिप यानि जीवन में जहाजी रिश्ता

अब चूँकि शहर , उसमें भी मेट्रो , वो भी राजधानी आ गए हैं, अजी आ क्या गए हैं, बस आ कर बस गए हैं तो स्वाभाविक रूप से सभी ग्रामीणों , और पुरे ग्राम समाज के प्रति एक चाही और अनचाही जिम्मेदारी आ ही गयी है, वो है शहर में चल रही नयी बातों, कानूनों, फैशन, बदलाव , के बारे में उन्हें जानकारी देना। आप यकीन मानें अपनी अभूतपूर्व बुद्धि के अनुसार हम ऐसा करते भी रहते हैं, ये अलग बात है अक्सर उसका अर्थ का अनर्थ ही हो जाता है। अभी कल ही लपटन चाचा का फोन आ गया, कहने लगे, बताओ , बचवा, का नया चल रहा शहर में , अब तो चुनाव के चर्चा हो रही होगी।
हमने कहा , कहाँ चाचा, अभी चुनाव तो दूर है, वैसे भी अगले पाँच साल तक किसे हम गद्दी सौपेंगे इस बात का फैसला करने में हम लोग पाँच मिनट भी कहाँ लगते हैं। आज कल तो लिव इन रिलेशनशिप की चर्चा हो रही है हर तरफ़।
चाचा डर कर पूछने लगे, का बात कर रहे हो भैया, का ई भी मैड काऊ, चिकन गुनिया तरह का कौनो बीमारी हैं का।

अरे नहीं चाचा, ई वैसे तो बीमारी ही है, मगर ऊ टाईप का नहीं है , जैसा आप सोच रहे हैं। दरअसल इसका सीधा मतलब है जिंदगी में एक जहाजी रिश्ता होना चाहिए।

का मतलब, पूरा बात खुल कर बतलाओ।

देखो , चाचा, आप तो जानत हो की अन्ग्रेज़न को जहाज और उनमें बनाये रिश्ते का कितना चाहत रहता है, ऊ आप टाइटैनिक देखबे किए होंगे, हम ता उस पिक्चर के बाद से कौनो सफर में एक पेंसिल और कागज़ साथ लेकर चलते हैं की ना जाने कब चित्रकारी का मौका मिल जाए। वैसे ही अंग्रेजों ने एक व्यवस्था बनाई है जिसमें चित्रकार और जिसका चित्र बनाना है ऊ जहाज के अलावा भी जगह तलाश कर अपनी कला का प्रदर्शन कर सकता है। और फ़िर हम लोग किसी से पीछी थोड़ी हैं, इसलिए वैसे रिश्ते यहाँ भी बनने और बनने की बातें चल रही हैं।

पर बिटवा, ऊ जहाज ता अंत में डूब गया था न,
अरे चाचा ता ई जहाज कौन सा पार जाने के लिए चढ़ा जाता है, ई जहाज और रिश्ता दोनों ही डूबने के लिए ही तो बनता है।

अच्छा तब तो तुम भी कहे नहीं कोशिश करते हो , नयी चीज है, सीख कर आओ, यहाँ गाँव का कुछ भला हो जायेगा।
अरे नहीं चाचा, जिनका शादी हो चुका है न , मतलब उनके लिए तो पहले ही dead out रिलेशनशिप बन चुका होता है , इसलिए उनके लिए ई जीवन में ऐसे कोई भी जहाजी रिश्ते का कोई काम नहीं है। अब छोडो चाचा, ई सब नया बात है, ज्यादा हमको भी नहीं पता है जैसे ही कुछ पता चलेगा हम आपको बताएँगे।

मेरा अगला पन्ना - क़ानून बना, कुँए में डाल.

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2008

नंगपने के लिए कितने बेताब हैं सब

यदि आज से सिर्फ़ एक दशक पहले ही किसी को ये कहा जाता की एक दिन ऐसा भी आयेगा, जब यहाँ भारतीय समाज में भी समलैंगिकता के अधिकारों के लिए, लीव इन रिलेशनशिप के लिए कानून की , नहीं उसे वैधानिक रूप देने के के लिए पुरजोर आवाज़ उठेगी तो शायद किसी को जल्दी से विश्वास नहीं होता। मगर ये हमारी तरक्की का ही कमल है की अब ये सब सोचने समझने के लिए हमें विकसित सभ्यता और समाज का मोहताज़ नहीं होना पडेगा। सब कुछ यहीं चल रहा है, सूना है की जल्दी ही पत्नी की अदला बदली , और पता नहीं क्या क्या भी देखने सुनने को मिल सकता है। हम किसी से कम हैं क्या।

समलैंगिकता और लिव इन रिलेशनशिप जैसे मुद्दों पर बेशक बहुत सी बातें होती हैं। तर्क और वितर्क हमेशा की तरह दोनों ही तरफ़ से दिए जाते हैं। मुझे ये नहीं पता की इन मांगों या अधिकारों का परिणाम क्या होने वाला है। मगर कुछ चीज़ें जो एक आम आदमी, खासकर जब वो भारत का हो, ये भारत वाली बात मैं सिर्फ़ इसलिए कह रहा हूँ की इस तरह की कोई भी बात, कोई भी परिवर्तन, कोई भी क़ानून बनाने और बदलने वाले ये हमेशा ही भूल जाते हैं की ये भारत है, और ये तो मैं कटाई नहीं मानूंगा की यहं भी सब कुछ वैसा ही बदल चुका है जैसा पश्चिमी देशों में, क्या मुंबई, दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई, बंगलौर ही मात्र भारत है, नहीं न असली देश तो वो है जो अब भी बाढ़ में बह जाता है, भिख्मारी में मर जाता है, ठण्ड हो या गरमी , दोनों ही उसके दुश्मन हैं, क्या उस देश के लोगों का मानसिक स्तर सचमुच उस जगह पर पहुँच गया है जहाँ पर उसे समलैंगिकता एक प्राकृतिक व्यवहार है, या की लिव इन कोई अनोखा काम नहीं है समझाया जा सकता है। प्रश्न ये किया जाता है की उनकी बात कौन कर रहा है तो फ़िर जरूरत क्या है इसे वैधानिक रूप देने की।
मुझे याद है की कुछ समय पहले एक मांग उठे थी की सभी यौन कर्मियों को रजिस्टर्ड कर देना चाहिए इससे उनको एक पहचान मिल जायेगी और शायद उनका शोषण कम हो सकेगा, मगर इसकी कौन गारंटी देता की इस का ग़लत फायदा उत कर जबरन मासूमों को इस दलदल में नहीं धकेला जायेगा। वैसे यहाँ पर इस तरह की मांग पर कोई अस्चर्या नहीं होना चाहिए क्योंकि आंकडे बताते हैं की यहाँ मेट्रो में एक महीने में उतने तलाक हो रहे हैं जितनी शादियाँ भी नहीं देखने को मिलती।
इससे अलग एक मोटी बात ये की कोई भी नियम या परिवर्तन सिर्फ़ दूसरों पर किया देखा जाए तो यकीनन सबको मज़ा आता है पर यदि आज भी कोई किसी से कहे की उसकी बहन या बेटी लिव इन अपनाने जा रही है तो शायद ये उतना आसान नहीं होगा जितना की बताया दिखाया जा रहा है। राखी सावंत अक्सर ये बात कहती है की उनके पिटा जो मुंबई पुलिस में एक अधिकारी हैं ,ने उन्हें छोड़ दिया, तो वो पिता क्या करे ये गला फाड़ फाड़ कर कहे की देखो जी ये नंग धड़ंग , घूमती फ़िर रही है ये मेरी ही सुपुत्री है।

मैं पहले भी कह चुका हूँ की या तो नंगपने के लिए बिल्कुल ही तैयार हो जाइए , या अब भी संभल जाइए, अन्यथा ये अधपकी खिचडी जहर बन जाने वाली है सबके लिए.

सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

एकता परिषद् हो या एकता कपूर, एक ही बात है

अपनी आदत के अनुरूप , मित्र लादेन पांडे, दूर से ही चिच्याते हुए आए, सुने हैं झा जी , एकता के लिए कोई बैठक हो रही है, आपको ख़बर है की नहीं।
हमने भी अनमने भाव से कह दिया, ठीक ही तो है यार इस एकता कपूर और इसके धारावाहिकों ने पूरा बेडा गर्क कर के रख दिया है, न सर पैर का पता चलता है , न घर द्वार का, ना रिश्ते नातों का कोई मतलब रहता है न ही जीवन मृत्यु का, कमबख्त ने तो महाभारत को भी अपना सीरियल बना कर छोड़ दिया है, अब तो बर्दाश्त के बाहर की बात है, बैठक होनी ही चाहिए।
अरे आप का कहे जा रहे हैं, दरअसल वो बात नहीं है।

मैं थोडा ठिठका, अच्छा , तो फ़िर क्या, एकता कपूर की शादी वादी के लिए कोई बैठक कर रहे हैं, अजी छोडो आप भी किस चिंता में पड़े हो , वो क्या एक शादी करेगी, उसे तो सारे कैरक्टर वाले लोगों से अलग अलग शादी करनी पड़ेगी।

अब लादेन पांडे भड़क गए, का झा जी, हम जा रहे हैं, हम तो ये कहने आए थे कि, देश की गंभीर आंतरिक स्थिति को देखते हुए एकता परिषद् की महत्वपूर्ण बैठक होने जा रही है, आप पता नहीं कौन सा रोना लेकर बैठ गए।

अरे क्यों भड़क रहे हो लादेन भाई , तुम तो यार सचमुच लादेन की तरह बिदक रहे हो , काहे कि महत्वपूर्ण बैठक, कैसी एकता, और कौन सी परिषद्। तुम ही बताओ , इस बैठक में किस बात पर चर्चा नहीं हो रही है जानते हो, आतंकवाद पर। अब बताओ , इस देश में आतंकवाद का मकसद और परिणाम सिर्फ़ इसलिए ही हैं ना कि इस देश की एकता टूटे, वरना क्या आतंकवादियों ने यहाँ से सोने की चिडिया पकड़नी है। ये सब तो एक नाटक चल रहा है, बिल्कुल एकता कपूर के नाटक की तरह। सम्प्रदायवाद, जातिवाद, धर्म परिवर्तन , पता नहीं कौन कौन से एपिसोड ढूंढे और शूट किए जा रहे हैं, असली मुद्दे को छुआ तक नहीं जा रहा।
जिस तरह एकता कपूर के सभी सीरियलों में , परिवार, समाज, रिश्ते ,नाते, नारी, कथा ,कहानी का एक ही हश्र और अर्थ , यानि बिना मतलब और बिना सर पैर का होता है , उसी तरह इस एकता परिषद् में सब कुछ एक ही ढर्रे पर चलता रहता है, जिसका ना कोई प्रभाव है ना ही कोई परिणाम.अब बताओ भैया लादेन पांडे , है न एकता कपूर और एकता परिषद् बिलकुल एक जैसे, बिल्कुल जुड़वा भाई बहन।

लादेन जी मुस्काते हुई अपना पांडे पण दिखाते हुए हमारे गले लग गए.

रविवार, 12 अक्तूबर 2008

एक पाती , अनाम जी के नाम

हे , परम आदरणीय अनाम जी, आप नारी हैं, नर हैं, या किन्नर हैं, या की कोई अलीयन हैं, मैं नहीं जानता परन्तु जो भी हैं , मेरा यथोचित अभिवादन स्वीकार करें। दरअसल आपकी पहचान को लेकर दुविधा का कारण भी ख़ुद आप हैं। अपनी टिप्प्न्नी के माध्यम से ही आप दिल के करीब आ गए हैं। महिला समाज और सोच पर लिखी एक पोस्ट पर आपने थोक के भाव मीर धज्जियाँ उडाई तो मैं समझा की महिला अधिकारों की शाश्क्त प्रहरी आप अवश्य ही कोई देवी हैं। मगर अगले ही पल मुझे पता लगा की आपने तो वरिस्थ महिला ब्लॉगर घुघूती जी को भी अपने शुभ वचनों के प्रसाद का रसास्वादन कराया है, फ़िर आपने मुझ पर ये आरोप भी जड़ दिया की मेरी पसंदीदा सूची में सिर्फ़ महिला ब्लोग्गेर्स का नाम क्यों, जबकि उनमें कई ब्लॉगर भाई भी मौजूद हैं। तो नर नारी के बाद किन्नर के रूप में आपको परखने की मेरी हिम्मत नहीं हुई।
अब एक अलग बात, हे प्राणी, आपका चेहरा कभी दिखाई नहीं देता। जो नेगटिव नुमा तस्वीर अपने चस्पा कर राखी है उससे आपकी शक्ल का अंदाजा लगायें तो उतनी बुरी नहीं लगती जितनी तल्ख़ आप टिप्प्न्नी करते हैं। मान्यवर, क्यों आप ;इतना तपे हुए, जले फूंके और लुटे हुए हैं। यदि किसी को प्रोत्साहित करने वाली बात गलती से ही सही , आपने कही हो तो बताएं, मैं पहले उनके फ़िर आपके चरणों में लोट जाउंगा।
एक आखिरी आग्रह इसी तरह मेरे चिट्ठे पर आकर मेरी बैंड बजाते रहे। भविष्य में फ़िर कोई नयी पोस्ट लिखने का प्लाट मिले न सही आपसे एक अनाम रिश्ता तो बना रहेगा। और हाँ, मित्रवर, आपके नाम की स्पेलिंग भी बड़ी कठिन है anynomous, इससे आसान और अच्छा रहेगा - ? । अब आप अपने आशीष वचनों से कृतार्थ करें। आप द्वारा घोषित आपका मानसिक रोगी.

एक पाती , अनाम जी के नाम

हे , परम आदरणीय अनाम जी, आप नारी हैं, नर हैं, या किन्नर हैं, या की कोई अलीयन हैं, मैं नहीं जानता परन्तु जो भी हैं , मेरा यथोचित अभिवादन स्वीकार करें। दरअसल आपकी पहचान को लेकर दुविधा का कारण भी ख़ुद आप हैं। अपनी टिप्प्न्नी के माध्यम से ही आप दिल के करीब आ गए हैं। महिला समाज और सोच पर लिखी एक पोस्ट पर आपने थोक के भाव मीर धज्जियाँ उडाई तो मैं समझा की महिला अधिकारों की शाश्क्त प्रहरी आप अवश्य ही कोई देवी हैं। मगर अगले ही पल मुझे पता लगा की आपने तो वरिस्थ महिला ब्लॉगर घुघूती जी को भी अपने शुभ वचनों के प्रसाद का रसास्वादन कराया है, फ़िर आपने मुझ पर ये आरोप भी जड़ दिया की मेरी पसंदीदा सूची में सिर्फ़ महिला ब्लोग्गेर्स का नाम क्यों, जबकि उनमें कई ब्लॉगर भाई भी मौजूद हैं। तो नर नारी के बाद किन्नर के रूप में आपको परखने की मेरी हिम्मत नहीं हुई।
अब एक अलग बात, हे प्राणी, आपका चेहरा कभी दिखाई नहीं देता। जो नेगटिव नुमा तस्वीर अपने चस्पा कर राखी है उससे आपकी शक्ल का अंदाजा लगायें तो उतनी बुरी नहीं लगती जितनी तल्ख़ आप टिप्प्न्नी करते हैं। मान्यवर, क्यों आप ;इतना तपे हुए, जले फूंके और लुटे हुए हैं। यदि किसी को प्रोत्साहित करने वाली बात गलती से ही सही , आपने कही हो तो बताएं, मैं पहले उनके फ़िर आपके चरणों में लोट जाउंगा।
एक आखिरी आग्रह इसी तरह मेरे चिट्ठे पर आकर मेरी बैंड बजाते रहे। भविष्य में फ़िर कोई नयी पोस्ट लिखने का प्लाट मिले न सही आपसे एक अनाम रिश्ता तो बना रहेगा। और हाँ, मित्रवर, आपके नाम की स्पेलिंग भी बड़ी कठिन है anynomous, इससे आसान और अच्छा रहेगा - ? । अब आप अपने आशीष वचनों से कृतार्थ करें। आप द्वारा घोषित आपका मानसिक रोगी.

क्या ब्लॉगजगत के लिए भी कोई आचार संहिता बननी चाहिए ?

इस ब्लॉगजगत पर लिखते पढ़ते अब लगभग एक साल हो गया है, और खुशी की बात ये है की सिर्फ़ पिछले एक साल में ही संख्या के हिसाब से तो ये तीन गुना अधिक हो गया है। और चर्चा के हिसाब से उससे भी कहीं आगे । किसी भी परिवार, संस्था, समाज के आचारण के अनुरूप अब जबकि यहाँ भी हम बहुत से अलग , काबिलियत, दिमाग, और मिजाज़ वाले लोग एक साथ आ गए हैं तो जाहिर तौर पर वो सारी अच्छी बुरी बातें भी इसके साथ जुड़ और घट रही हैं। जिस प्रकार से पिछले कुछ दिनों में ब्लॉगजगत में लिखने को लेकर बहुत सारे विषयों , और मुद्दों पर चर्चा हो रही है, मुझे लगता है की देर सवेर कहीं यहाँ भी अपने मीडिया, विशेषकर एलोक्त्र्निक मीडिया, की तरह का भटकाव ना आ जाए।

ब्लॉगजगत में किसी भी मुद्दे पर अलग अलग विचारों का आना, उनके तर्क वितर्क से आगे बढ़ कर एक दूसरे की टांग खिंचाई करने के बाद स्थिति तो गाली गलौज तक पहुँची, न सिर्फ़ पहुँची, बल्कि कुछ दिनों तक तो किसी किसी सामूहिक ब्लॉग पर सिर्फ़ यही होता रहा, इसका परिणाम ये हुआ की उन दिनों पूरा ब्लॉगजगत इस से प्रव्हावित हुआ। शुक्र है की वो समाप्त हो गया। आजकल कुछ बातें जो उठ कर सामने आ रही हैं, वे हैं की क्या एक ही पोस्ट को कई अलग अलग सामूहिक ब्लोगों पर प्रकाशित करना ठीक परम्परा है, और उसका उद्देश्य क्या है, दूसरी ये की क्या एक ही व्यक्ति द्वारा बहुत सारे ब्लॉग लिखना ठीक बात है, इनसे अलग ये भी की कई लोग सिर्फ़ दूसरों की रचनाएँ लिख रहे हैं उनके लिए क्या। मेरे ख्याल से तो ये जितनी भी बातें या मुद्दे उठ रहे हैं, इन सबमें निश्चित ही ब्लॉगर का कहीं भी ये उद्देश्य नहीं रहता है की उसके ऐसा करेने से किसी कोई कोई नुक्सान पहुँच सकता है, या की वो सिर्फ़ अपनी बात ही कहना और सुनना चाहता है।
किसी भी पोस्ट का एक से अधिक बार, अलग अलग ब्लोगों और सामोहिक ब्लोग्स पर आना बहुत बुरी बात नहीं कही जा सकती। ये ठीक उस तरह है जैसे की एक लेखक का आलेख या कोई भी रचना , एक ही दिन अलग अलग समाचार पत्रों में छपती है। एक व्यक्ति द्वारा सिर्फ़ एक ब्लॉग पर लिखने की पाबंदी लगाना तो निश्चय ही ज्यादती हो जायेगी। उदाहरण देकर समझाता हूँ, यदि कोई सिर्फ़ एक ही विधा में लिखता है तो उसके लिए तो एक ही ब्लॉग पर लिखने से काम चल जायेगा, किंतु कोई यदि अलग अलग विषयों , अलग अलग विधाओं में लिखना चाहता है और लिख सकता है , साथ ही चाहता है की उसे सब अलग अलग ही पढ़ें तो उसके लिए तो ये करना जरूरी भी है और औचित्यपूर्ण भी। रही बात दूसरों की रचा लिखने छपने की तो यदि उद्देश्य ये है की उन फलाना जी की लेखनी का परिचय पूरे ब्लॉग समाज से कराया जाए तो निश्चित रूप से ये उचित है, मगर किसी भी परिस्थिति में शेर्य , यानि उनका नाम जरूर उल्लिखित किया जाना चाहिए।

इन सबके बावजूद कुछ बातें तो जरूर हैं जिन पर देर सवेर कुछ न कुछ काम तो ब्लॉगजगत के खैर मख्दम करने वालों को सोचना ही पडेगा। जैसे की कुछ लोग अपने आपको परदे के पीची रख कर कुछ भी लिखे और कहे जा रहे हैं, विशेष कर किसी की पोस्ट को पढ़ कर उस पर प्रतिक्रया देने के मामले में तो ये नाकाब पोश कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं, और जाहिर सी बात है की प्रतिक्रया भी अपने चरित्र की अनुरूप ही। जैसे की एक अनाम महाशय हैं, हाल ही में उन्होनें मेरी एक पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी की , आप बकवास बहुत अछा करते हैं, मगर अपने दिमाग का इलाज़ करायें । यूँ तो इनकी टिप्पणी से पहली बार मेरा वास्ता नहीं पडा है , और फ़िर इन्होनें तो शायद किसी को भी नहीं बक्शा आदरणीय घुघूती जी लिए लिखा की आप तो बस हिनहिनाने के लिए ब्लॉग जगत पर आयी हैं। मुझे नहीं लगता की छुप कर आप किसी की आलोचना या विरोध कर रहे हैं तो वो सही है।

हालांकि ब्लॉगजगत एक खुला आसमान है , मगर लगता है की कभी न कभी इस आमान पर काले बादल छाने की नौबत आने लगती है इसलिए उससे बचने के लिए भी तैयार रहना पडेगा.

शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

मुंबई तेरे बाप की, और खंडाला तेरी माँ का

मुंबई तेरे बाप की और खंडाला तेरी माँ का :-
उस दिन जब उद्धव ठाकरे , अजी अपने बाबा साहब के चश्मों चिराग ने जयघोष किए की मुंबई उनके बाप की है, उच्च तरंगों से युक्त मेरे मष्तिष्क ने फ़ौरन कई सारे निष्कर्ष निकाले। पहला ये कि, यदि मुंबई उनके बाप की है तो निश्चित तौर पर खंडाला उनकी माँ का ही होगा। मैंने फ़ौरन लप्तु चचा को फोन कर कहा कि चाचा झुग्गी में जो आलीशान प्लाट आप लिए हैं ऊ का पक्का रजिस्ट्री बाबा साहब से ही कराईयेगा। फ़िर पराबैंगनी किरणों से युक्त दूरदृष्टि ने और भी कई बातें भांप ली। इस हिसाब से तो बिहार लालू जी का, गुजरात मोदी भैया का, बंगाल चटर्जी -बनर्जी का, तमिलनाडु अपनी ललिता पवार, अजी जय ललिता जी का , उत्तम प्रदेश बहन जी का, और बांकी सब प्रदेश भी नेता लोगों या उनके बाप का है। भैया जिनका या जिनके भी बाप का ई दिल्ली हो जल्दी से जल्दी घोषणा करें हमको भी तो एगो घर खरीदना है यहाँ पर तो उसके लिए तो मालिक से ही न बात करनी पड़ेगी।
ठीक है, हो सकता है ई बात ठीक हो मुदा सबको एक बात बताना ठीक रहेगा कि पूरा हिंदुस्तान हम लोगों का- यानि एक आम भारतीय जी - है, हमारे बाप का है , हमारा है। और पता नहीं क्यों मन कहता है कि पूरे हिन्दुस्तान का बाप किसी भी लोकल बाप से बड़ा ही होगा, समझ गए न बाबा साहेब और बेटा साहेब।

मालामाल ,फिर भी बेहाल :-
इन दिनों हमारे दफ्तर में कुछ अजीब आलम है। दरअसल जब तक पे कमीसन नहीं आया था, सब कर्मचारी पे पे पिपिया रहे थे, मगर अब जब उसके लागू होने की बारी आयी है तो स्थिति और भी कमाल हो गयी है। अब जबकि सबकी बाकया राशि का बिल बनाया जा रहा है तो दफ्तर की तरफ़ से सबसे दो स्कीमों में से एक चुनने को कहा गया है , जिसके अनुसार बकाया राशि का बिल बनाया जायेगा। इसमें से एक ही स्कीम कर्मचारियों को ज्यादा फायदा पहुंचाने वाली है, मगर सबसे दिलचस्प बात ये है कि किसी को भी नहीं पता कि उसे किस स्कीम को अपनाने से ज्यादा फायदा होगा। नतीजा ऐसा कि पूरी भागमभाग मची है। दिमाग में पठाखे फ़ुट रहे हैं, बेचारे सब के सब मालामाल होने वाले हैं फ़िर भी बेहाल हैं। आज के नवभारत टाईम्स , दिल्ली संस्करण में तो पूरी कहानी ही छपी है । देखें क्या होता है.....

सपनो को फ्रिज में रख छोड़ा है

मैंने सपने देखना,
नहीं छोडा है,
न ही,
उन्हें पूरा करने की,
जद्दोजहद।
मगर फिलहाल,
जो हाल,
और हालात हैं,
उन सपनो को ।
फोंइल पेपर में,
लपेट कर,
फ्रिज में रख छोडा है,
मौसम जब बदलेगा,
और पिघलेगी बर्फ,
सपने फ़िर बाहर आयेंगे,
बिल्कुल ताजे और रंगीन.

सपनो को फ्रिज में रख छोड़ा है

मैंने सपने देखना,
नहीं छोडा है,
न ही,
उन्हें पूरा करने की,
जद्दोजहद।
मगर फिलहाल,
जो हाल,
और हालात हैं,
उन सपनो को ।
फोंइल पेपर में,
लपेट कर,
फ्रिज में रख छोडा है,
मौसम जब बदलेगा,
और पिघलेगी बर्फ,
सपने फ़िर बाहर आयेंगे,
बिल्कुल ताजे और रंगीन.

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

बेचारे रावण को भी डेंगू हो गया.

हर साल की तरह इस बार भी रामलीला की समाप्ति पर हम सब कलाकार और कालोनी के सभी मेम्बरान लोग इकठ्ठा हो कर ये विचार विमर्श करने लगे की कल रावण दहन को कैसे सफल किया जाए। यूँ तो रावण दहन को सफल या असफल करने का कोई औचित्य मेरी समझ में नहीं आता क्योंकि जब से मैं पैदा हुआ हूँ छब्बीस जनवरी की परेड और रावन दहन हमेशा एक जैसी ही लगती है और भरपूर सफल रहती है। रामलीला में अपने महत्त्वपूर्ण रोल को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद ( यहाँ मैं आपको बताता चलूँ की राम लीला से मेरे प्रेम बहुत पुराना है और मेरे विश्व स्तरीय अभिनय की बुनियाद यही है , और अब तो भविष्य भी यही है, जब में रोल पाने पहुंचा तो उन्होंने मुझे शूर्पनखा का रोल ऑफर किया , कहा की यूँ भी आप मोहल्ले की नाक कई बार कटवा चुके हो तो शूर्पनखा के लिए बिल्कुल नाचुरल रहोगे, मैंने कहा मेरी राजकुमारों वाली पर्सनालिटी है, तो उन्होंने कहा की ठीक है तो फ़िर शत्रुघ्न बन जाओ , पूरे रामलीला में एक भी डियलोग रटने की जरूरत नहीं रहेगी। मैंने कहा की लानत है यार, इसमें क्या टैलेंट निकल कर बहार दिखेगा, चलो राम जी की सेना का कोई वीर सेनापति बना देना। तो फईनाली उन्होंने मुझे जटायु का रोल दे दिया क्योंकि उसके कोस्तुम को पहन बांकी सबको खुजली हो जाती थे ) , मैं भी कहाँ आप लोगों को अपनी कहानी सुनाने लगा, मीटिंग की तैयारी में लग गया गया।

हम लोगों ने बातचीत शुरू ही की थी की अचानक देखा तो एक बड़ा सा रावण का पुतला, अपने साथ मेघनाद और कुम्भकर्ण को लिए हुए चला आ रहा है । हम हैरान थे , वह ये क्या टेक्नोलोजी है भाई , अब रावण ख़ुद ही चल चल कर जलने के लिए पहुँच जायेंगे। परन्तु मेरी खुशी थोड़ी देर ही रही। रावण ने पास पहुँचते ही कहना शुरू किया, वो भी मरियल सी आवाज में, " देखिये आप लोग ज्यादा हैरान परेशान न हों , मैं तो सिर्फ़ ये बताने के लिए आज रात को ही आ गया हूँ की कल मैं जलने के लिए नहीं आ पाउँगा, क्योंकि पिछले बीस दिनों से पार्क में पड़ा था और मच्छरों के काटने के कारण मुझे डेंगू मलेरिया बुखार हो गया है, इस बार रावण दहन को आप लोग अगले साल तक के लिए एक्सटेंड कर दो। वैसे जब मैं मीटिंग में पहुँच ही गया हूँ तो और भी कुछ बातें हैं जो मैं कहना चाहता हूँ। ये आप लोग इतने सालों से मेरे पिछवाडे और मेरी बगलों में पठाखे घुसेड घुसेड के मुझे क्यों तपा तपा कर फूंक डालते हो। भाई मारना ही है तोऔर भी कई सारे तरीके हैं, पता है इस तरह मेरे मुंह , पेट और पता नहीं कहाँ कहाँ आग लगाने और लगातार लगाते रहने के कारण मुझे गैस की प्रॉब्लम हो गए है। एक और बात यार तुम लोग अपने फैसन वैसन में तो खूब बदलाव ला रहे हो, जितने भी टी वी चैनल पर रामायाण धारावाहिक आ रहे हैं सब में तुम लोगों ने सुग्रीव , जामवंत और जटायु तक को ग्लेमर में ढाल दिया एक मेरा ही गेट अप, बरसों से वैसा ही चला आ रहा है। इस पार आप लोग कुछ गौर फ़रमाएँ। और हाँ कभी कभी एक्सक्लूसिव प्रयोग के तौर पर कोई जिंदा रावण जलाओ, अब तो इसके लिए आपको म्हणत करने की भी जरूरत नहीं है, कई तो इसी मीटिंग में बैठे हैं। यदि आप लोगों ने इन बातों को सीरियसली नहीं लिया तो याद रखना की हम सब भी आन्दोलन कर सकते हैं।

रावण की धमकी से डर कर हम सब चुप चाप घर आ गए, अब सोच रहे हैं की रावण दहन को स्किप करके सीधा राम की अयोध्या वापसी पर पहुँच जाएँ।

आप सबको दशेहरा की बधाई...
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