
मुई इस निगोड़े ब्लॉग्गिंग से,
हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ,
बिन इसके इक दिन अब तो,
जीना भी दुश्वार हुआ...
रिश्ते नाते हुए बेमानी,
दोस्त भी कतराते हैं,
बीवी बच्चे भी कोसें,जाओ तुम्हारा
ब्लॉग्गिंग ही परिवार हुआ...
अब लगे है नौकरी भी भारी,
क्या हुआ जो है सरकारी,
नौकरी क्यूँ बना कैरियर अपना,
हाय क्यूँ नहीं व्यापार हुआ....
लिखना छूटा-पढ़ना छूटा (किताबों का ),
हर कोई रहता, रूठा रूठा ,
जब से घुसे हैं ब्लॉग्गिंग में,
तगडा बंटाधार हुआ......
भाड़ में गयी दुनिया सारी ,
और दुनिया के लिए हम भाड़ में,
जब से पहुंचे इस दुनिया में,
कंप्यटर ही संसार हुआ...
बेलन चले , और बर्तन भी,
कभी मिले तीखे ताने,
क्या क्या बतलायें आपको,
इस ब्लॉगर के साथ क्या क्या अत्याचार हुआ....
अजी इतने तक तो बात ये रुकती,
हम सह जाते चुप रह जाते,
मगर अपनी मम्मी के साथ , हमसे लड़ने को,
बेटा भी तैयार हुआ.....
चार अक्षर क्या लिख पाए,
सबको अभी कहाँ टिपियाये,
इतना जुल्मो सितम हुआ,,,
हाय बेगाना घर-बार हुआ..
पिछले दिनों की जो कसर थी सारी,
निकालने की थी आज तैयारी,
इन ससुरे, ससुरालियों ने ,
हाय ये सन्डे भी बेकार किया......
मुई इस निगोड़ी ब्लॉग्गिंग से,
हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ ?