शनिवार, 23 फ़रवरी 2008

हादसा कुछ यूं हुआ ( एक कविता )

सफर दर,
सफर,
रास्ते,
कटते गए॥

छोड़ दी,
जबसे,
शिकायत की आदत,
फासले ,
मिटते गए॥

मैंने तो ,
बस,
संजोई थी,
चाँद यादें,
घड़ी भर को,
बंद की पलकें,
सपने,
सजते गए॥

चला था जब ,
तनहा था,
और कभी,
किसी को,
पुकारा भी नहीं,
पर बन गया,
काफिला जब,
मुझ संग,
सभी अकेले,
जुड़ते गए॥

हादसा कुछ,
यूं हुआ,
हमें, लड़खाते देख,
उन्होंने सम्भाला,
हम होश में आए,
सँभालते गए,
मगर वो,
गिरते गए॥

कुछ लोगों ने,
सबसे कहा,
तुम क्यों साथ-साथ,
रहते हो,
जीते हो, मरते हो,
तुम सब ,
अलग हो,
बस फ़िर,
सब आपस में,
लड़ते गए॥

और वे अब भी लड़ रहे हैं........

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