मंगलवार, 7 जनवरी 2025
ताड़केश्वर धाम - सुकून की छाँव में स्थित एक सिद्धपीठ
मंगलवार, 23 जुलाई 2024
पीली मिटटी और पवन चक्कियों वाला प्रदेश : दिल्ली इंदौर दिल्ली _ सड़क मार्ग यात्रा -भाग दो
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि , हम देर रात दिल्ली से निकल कर शिवा ढाबे पर चाय वाय के लिए रुके थे , अब इसके आगे
चाय पीने के बाद थोड़ा सा तरोताजा होकर हम आगे की और बढ़ चले , बेटे लाल को पीछे आराम से सोने के लिए कह दिया था लेकिन वो भी हमारे साथ ही जगा हुआ था तो फिर गानों का दूसरा दौर चल पड़ा। मैं अक्सर सफर के दौरान आदतन भी कम ही सोता हूँ लेकिन साथ में गाडी चला रहे हमारे सारथि अजय पर वो तड़के भोर वाली तेज़ वाली भयंकर नींद हावी होते देख मैंने अजय से कहा कि अब जहाँ भी सही जगह दिखे गाडी रोक कर पहले इस नींद के झोंके को पूरा किया जाए , समय तकरीबन सुबह पौने चार के आसपास का था।
टोल नाका पार करते ही चाय की छोटी टपरी के पास कार रोक दी गई और अजय और हमारे सुपुत्र दोनों थोड़ी देर में ही नींद की झपकी मारने लगे। मेरी नींद तो यूँ भी गायब ही थी सो मैं कार से उतर कर चाय की टपरी पर बैठ गया , पहले मन हुआ कि चाय के लिए पूछ लूँ लेकिन फिर सुबह चार बजे वो भी एक अकेले के लिए , लेकिन दुविधा उस समय ख़त्म हो गई जब उसने खुद ही पूछा चाय पीयेंगे क्या , मैंने भी हाँ कह दिया।
चाय आराम से पीते हुए देखा तो पौ फटने लगी थी और आसमान का रंग बता रहा था कि यहाँ भोर बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लगाने दिखने वाली है। मैंने चाय पी और एक नज़र गाडी पर डाली देखा तो अजय और आयुष दोनों अभी सो रहे थे , मैं पास ही किसी गाँव की और जाते हुए रास्ते की ओर निकल गया जहां से मैं इस खूबसूरत सुबह को और देर तक निहार सकूं। सुबह होने तक का नज़ारा वाकई अद्भुत था।
जब तक मैं वापस आया अच्छी खासी रौशनी निकल आई थी और अजय भी उठ कर साथ ही बने प्रसाधन में अपने नित्य कर्म से निवृत्त होने चले गए थे , आयुष भी उठ चुका था। अजय के साथ मैंने एक चाय और पी उस टपरी पर और फिर हम आगे चल दिए ग्वालियर की तरफ।
मैंने गौर किया तो पाया कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में बहुत कुछ साम्य सा दिख रहा था , वही पीली पीली उसर धूसर मिटटी और तेज़ धूप वाली गर्मी। मगर मेरा अनुमान बहुत जल्दी ही गलत साबित हुआ जब मैंने देखा कि मध्यप्रदेश के खेतों में शायद ही कोई फसल ऐसी हो सामयिक जो मुझे रास्ते में उगाते लगाते नहीं दिखी। ट्रकों की लम्बी लम्बी कतारें अक्सर हमारे साथ मिल जाती थीं या शायद हम ही उनके काफिले के बीच में आ जाते थे।
सुबह के पौने नौ के करीब हमारी गाडी फिर रुकी एक ढाबे पर जहां हमने नाश्ता करने का मन बनाया था , अजय थोड़ी देर और आराम करना चाहते थे इसलिए हमने उन्हें खाट पर आराम से सोने को कह दिया और हम दोनों पिता पुत्र वहीँ नित्य क्रिया से निवृत्त होकर ,दांत मांजने आदि के बाद नाश्ते का विचार करने लगे। और हमने आलू के पराठे के लिए बोल दिया। सुबह का समय था जब तक आलू उबले और तैयारी हुई अजय भी उठ कर हमारे साथ ही नाश्ते के लिए आ गए। मिर्च काफी तेज़ होने के कारण मेरे से पराठा पूरा नहीं खाया गया और मैंने लस्सी पर ही ज्यादा ध्यान दे दिया।
टंकी फुल्ल करने के बाद हमारा सफर फिर आगे की और बढ़ चला। ,कसबे , गाँव , खेत खलिहानों को पार करते हुए हम पहुंच गए ऐसे क्षेत्र में जहां चारों तरफ बड़ी विशाल पवन चक्कियां लगी हुई थीं और चलते हुए इतनी खूबसूरत लग रही थीं मानों हम किसी दुसरे देश की किसी दूसरी दुनिया में घूम रहे हों। खुले खाली रास्तों के साथ साथ चलते हरे भरे खेत और दूर गोल गोल घूमती पवन चक्कियां , लग रहा था कोई सिनेमा जैसा दृश्य आ गया हो सामने।
दोपहर से आगे वक्त खिसक कर शाम की आगोश में जाने को तैयार था और हम भी धीरे धीरे अपने मंजिल इंदौर शहर के आखरी छोर की ओर पहुँच रहे थे जहां पुत्र को अपनी प्रतियोगिता में शामिल होना था , ...
अभी के लिए इतना ही , अगली पोस्ट में
इंदौर , ओंकारेश्वर , शीतला माता जल प्रपात और महेश्वर के साथ ही बाबा माहाकाल की नगरी उज्जैन भी लिए चलेंगे आपको।
सोमवार, 15 जुलाई 2024
दिल्ली इंदौर दिल्ली -सड़क मार्ग यात्रा -प्रथम भाग
जब ये तय हुआ था कि पुत्र की एक प्रतियोगिता में उसे सहभागिता करने के लिए उसे इंदौर जाना होगा और वहां काम से कम तीन दिन रहना रुकना होगा तभी से ये खूबसूरत संयोग भी बन गया था या कहिये की जबरन बना लिया गया था कि साथ में और कोई जाए न जाए हम तो अपने राजा बेटा को लेकर वो भी बाकायदा कार में बैठा कर ले जाना है और इसके पीछे हमारी इंदौर , उज्जैन , ओम्कारेश्वर , महेश्वर , गुना जैसे सुन्दर शहरों नगरों को देखने घूमने की तमन्ना का जोर जोर से हिलोरें मारना असली कारण था , और बहुत सारी इधर उधर की गुंजाइश संभावनाओं के बाद ये तय हुआ कि बिटिया कर उसकी मम्मी साथ में नहीं जा पाएंगी , नहीं नहीं इसमें खुश होने वाली कौन सी बात जी
इस यात्रा की पूरी योजना के अनुसार हमें सुबह चार से पांच बजे के बीच दिल्ली छोड़ देना था और हम रुकते चलते देर शाम रात तक इंदौर पहुँच कर अगले दिन यानि रविवार को आराम विश्राम के बाद सोमवार से पुत्र अपनी प्रतियोगिता में व्यस्त होने वाले थे और हम और हमारे सारथी साथी हमनाम अजय दोनों अगले तीन दिनों तक आसपास का सब कुछ देख लेने के विचार में थे। अब पहला चक्कर तो ये हुआ कि सुबह पांच तो दूर शाम के पांच बजे भी हम दिल्ली में ही थे और जाने को तैयार बैठे थे , बच्चों की मम्मी की डाँट के साथ ही हम दो टाइम का खाना घर पर ही खा चुके थे और रात्रि भोजन के भी आसार यहीं के थे , कारण कुछ अपरिहार्य थे जो सो दस बजे रात को हम दिल्ली से विदा हुए।
रात को सफर करने से मैं अधिकांशतः बचता हूँ और इसके बहुत से कारण हैं जो गिनाए जा सकते हैं लेकिन ये भी है कि चाहे अनचाहे दर्जनों बार रात और पूरी पूरी रात सफर किया है , तो जब रात का सफर हो तो फिर हाइवे पर जाते ही जो गाना सबसे पसंदीदा होता है वो अक्सर यही होता है , सो गया ये जहां सो गया आसमां , रात के हमसफ़र , ओ रात के मुसाफिर चंदा जरा बता दे , और जाने कितने ही गाने गजलें हमारे साथ हाइवे पर बहती चलती रहती हैं। पहला पड़ाव रहा चाय का ठिकाना शिवा ढाबा , ढाबे पर भीड़ देख कर मैंने बेटे से पूछा ये रात के ही एक बज रहे हैं न। बेटे ने हां में सर हिलाया तो साथी अनुज अजय ने बताया कि यहाँ ये सामान्य बात है
फिर मुझे याद आया कि इस शिवा ढाबे पर हम जनवरी में मथुरा वृन्दावन जाते हुए भी रुके थे और तब भी यही हाल था जबकि उस समय शायद वक्त तड़के सात बजे का था , यहाँ ब्रेड पकौड़े और चाय तो लगभग सभी को लेते और खाते पीते देखा ,हमने पकौड़े के बदले चाय ही डबल कर दी , चाय दिल्ली में नहीं पीते हुए काफी वक्त हो गया था मगर इस बार सोच के ही गया था की इस सफर में चाय का साथ तो जरूर निभाया जाएगा यूँ भी सालों पहले जबलपुर के स्टेशन पर पी गई चाय का स्वाद अब तक जेहन में वैसा ही था और ये साबित भी हो गया जब इस दौरान मैंने इंदौर उज्जैन और तमाम शहरों में छोटे छोटे कप में बहुत ही स्वादिष्ट चाय पी।
चलिए रुकते हैं अभी इस शिवा ढाबे पर ही फिर आगे चलेंगे
अगली पोस्ट में बढ़ेंगे इस सफर में ढाबे से आगे और देखेंगे कि आगे हमें क्या कैसा मिला ??
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024
घुमक्क्ड़ी से नाता जोड़ा क्या
बचपन में सुना हुआ एक गीत ,
धरती मेरी माता पिता आसमान
मुझको तो अपने जैसा लागे सारा जहां ,
देखते हुए एकदम जोर से महसूस हुआ था की सच में ही शायद मैं रास्तों पर चलने और चलते जाने के लिए ही पैदा हुआ हूँ , उम्र के साथ साथ सरिता का पर्यटन विशेषांक और एक और पत्रिका शायद इलस्ट्रेटेड वीकली इनमें सिर्फ और सिर्फ पर्यटन वाले पन्नों को निकाल कर उनमें कभी गुलमर्ग तो कभी मेघालय कभी अमृतसर तो कभी दार्जलिंग , कई कई दिनों तक फोटो निहारने के बाद अगर मौक़ा मिले तो उसे काट कर एक डायरी में रख लेने की आदत को बहुत बाद तक रही।
मंगलवार, 3 जनवरी 2023
उठ मुसाफिर , देख जग सारा
उठ मुसाफिर , देख जग सारा
इन दिनों जब देख रहा हूँ कि दुनिया घूमने और घुमाने की एक गजब की जिजीविषा , एक उत्कट इच्छा , पग पग दुनिया नापने की , देखने की , जंगलों , नदियों पेड़ों को छूने महसूसने की ललक सी उठी हुई है अपने चारों तरफ , हर उम्र , हर क्षेत्र से और पारिवारिक व्यक्ति भी जीवन के सबसे असल यथार्थ को पाने का प्रयास कर रहा है तो लगता है कि चलो देर से ही सही लोग बाग़ इंसान का इस दुनिया में आने का या उसे लाए जाने का उद्देश्य समझ पा रहे हैं।
असल में ईश्वर ने जब अपनी सारी कारीगरी और उसमें भी मास्टरी करते हुए ये धरती रच दी , और इसमें जाने कैसे कैसे करिश्मे भर दिए , ऊँचे पहाड़ , लम्बे रेगिस्तान , गहरे समुन्दर और खूबसूरत नदियाँ जंगल फिर आखिर में इंसान बनाया और कहा जा प्यारे देख जब भगवान् गढ़ते हैं तो कैसे गढ़ते हैं।
घूमना तो यूं भी इंसान की नियति है और इंसान ही क्यों हर चेतन , और जल पवन तक के जीवन में घूमना ही लिखा होता है। इंसान बेचारा मजबूर , रहने को , छिपने को छिपाने , कमाने धमाने , और फिर इसके बाद कुछ समय बचे तो किसी न किसी बहाने से किसी अवसर से घूमने को भी। घूमने के साथ एक और बात जो बहुत जरूरी है वो है इन यादों को संजोते जाना , हमारे बाप दादा इन यात्राओं को रोचक किस्से कहानियों में ज़िंदा रखते थे , हमारा समय याशिका कैमरा और एल्बम बीतते हुए अब तो मोबाइल और वैबकैम के बाद ड्रोन और जाने कैसे कैसे कहर बरपाने वाले हसीन इंतज़ाम किए जा रहे हैं।
पचास साल की उम्र तक पहुंच चुका हूँ , पिताजी फौजी थे उससे पहले किसान सो ये दोनों पैदाइशी गुणों के अलावा रही सही कसर खेलों के प्रति मेरे झुकाव ने पूरी कर दी , ग्राम्य जीवन भरपूर जीये होने के कारण पेड़ पर चढ़ कर नदी में कूद मार तैरते हुए पार करने से लेकर , सायकल से रोज़ तीस किलोमीटर आते जाते हंसी खेल में कालेज की पढ़ाई , के अलावा कुश्ती कबड्डी से लेकर वॉलीबॉल बैडमिंटन और क्रिकेट तक में जबर खिलाड़ी रहे , जबर बोले तो जबर ,पसीना छुड़वाने वाले। कुल मिला कर लब्बो लुआब ये कि , धरती से लेकर पानी तक पर खूब चलाई , दौड़ाई और तैराई के कारण अब बुढ़ैती में भी मन और हाड मांस कतई मानने को तैयार नहीं होते कि हाफ सेंचुरी हो ली , ऊपर से आठ घंटे की दफ्तरी वाली नौकरी।
अब कार्यक्रम कुछ ऐसा बन रहा है कि पुत्तर लाल को घुमक्क्ड़ी की आदत लगाते लगाते ऎसी लगाई है कि अब छोटे झाजी ताबतोड़ नित नए सफर पर चलने को तैयार है। अभी अभी हमारे साथ कूदते फांदते हनुमान बने कटरा से भवन और भैरव बाबा तक उतराई कुल ३२ किलोमीटर की चढ़ाई उतराई ( बिना रुके बैठे पहुँच गए और वापसी में भी चले तो नीचे आकर ही रुके ) 9 घंटे में पूरी करवा दी। जय माता दी। अब इस खूबसूरत से शुरू हुए इस किस्से को जल्दी ही अगले अफ़सानो तक ले जाने के ख़्वाब भी बुने जाने लगे हैं।
अगले कुछ दिनों में राजस्थान , पंजाब और बिहार में मिलेंगे और मिलवाएंगे आपको आपके अपने ही शहरों , गलियों , बाज़ारों को एक घुमक्कड़ की नज़र से। ज़रिया सड़क रेल और हवाई मार्ग तीनों ही रहेगा। फोटो शोटो का शौक है शऊर नहीं सो ऊट पटांग से लेकर बहुत खराब तक फोटो खींचने में पारंगत हैं लेकिन अच्छी भी आ जाती है और इनमे से कुछ हमारी भी होती है।
रविवार, 26 दिसंबर 2021
ग्राम्य प्रकृति की अद्भुत तस्वीरें
भारत की आत्मा गाँव में ही बसती है। आज से दशकों पहले ये बात महात्मा गाँधी ने तब कही थी जब वे अपनी पढ़ाई विदेश में करके भारत के स्वंतत्रता संघर्ष में हिन्दुस्तान के गाँव गाँव विचरे थे। तब ही उन्हें ये एहसास हुआ था कि गाँव ही भारत की असली ताकत हैं , भारत के गाँव बदल गए तो देश बदल जाएगा। मगर अफ़सोस की गाँधी के कांग्रेस और उनके कांग्रेसियों ने पचास सालों से अधिक तक शासन करने के बावजूद भी गाँव की वो सुध नहीं ली जिसकी अपेक्षा कभी खुद गाँधी जी ने की थी।
ये नया भारत है और देखने वाले देख और समझ भी रहे हैं कि -ये देश असल में कभी भी गरीब नहीं था , शास्वत काल से ही पूरी दुनिया के अपनों बेगानों द्वारा लूटे नोचे जाने के बावजूद भी , जब जब किसी योग्य , कर्मठ , निष्ठावान प्रतिबद्ध नेतृत्व सम्भाला है भारत बार बार विश्व गुरु की तरह दुनिया के सामने उठ खड़ा हुआ है। और यही सब एक बार फिर से देखने को मिल रहा है केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा भारत को एक नए भारत , एक नई शक्ति , एक विकास पुँज के रूप में संगठित , सामर्थ्यवान और संवर्धित करने के ध्येय पथ पर काम शुरू हुआ है , एक सुखद परिवर्तन सामने आया है।
एक लम्बे समय के अंतराल के बाद , दीपावली और छठ पर्व पर बिहार के मधुबनी जिले स्थित अपने गाँव जाने का अवसर मिला और खुद पर यकीन नहीं हुआ कि , देश के सीमांत जिले पर स्थित मेरे गाँव में विकास की बयार इतने सुखद बदलाव ला चुकी है। देखिये कुछ चुनिंदा तस्वीरें। ...........
पिताजी द्वारा निर्मित महादेव मंदिर और सूर्योदय |
मंदिर के साथ ही लगा हुआ पारिवारिक तालाब /पोखर |
मंदिर के साथ का बूढ़ा पीपल |
ताल तलैये |
धान की पैदावार से लहलहाते सोने से खेत |
जलकुम्भी |
फूल पत्तों वनस्पति |
महाराजाओं के किले और उनके अवशेष |
गाँव का मेला हाट बाजार |
और ये है गाँव गाँव कस्बे मोहल्ले की सड़कें |
चमचमाती सड़कें |
हर गाँव में आम के दर्जनों बाग़ बगीचे |
खूबसूरत और साफ़ सुथरे रेलवे स्टेशन |
चमचमाता जगमगाता रेलवे स्टेशन |
गाँव के भोज भात की तैयारी |
काली मंदिर |
पेठे /कुम्हर |