शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

मेरी ब्लॉग्गिंग, मेरी श्रीमती जी ...और मेरे पाबला जी...


कुछ दिनों के अन्तराल के बाद ....एक पोस्ट...वो ही इस शीर्षक से ..कमाल है..आप सोच रहे होंगे...ये क्या चल रहा है भाई...कहाँ हमारी ब्लॉग्गिंग..कहाँ श्रीमती जी ..और इन सबके बीच पाबला जी ...यार कोई तालमेल नजर ही नहीं आ रहा ..सुनिए पूरी बात ..फिर बताइयेगा की ..कहाँ ताल है कहाँ मेल ....?

ये तो आपको बताया ही था की ..लगातार डेढ़ सालों तक कैफे के भरोसे ब्लॉग्गिंग करने के बाद ...जब रहा नहीं गया ..तो आखिरकार घर पर ही लैपटॉप खरीदने का पूरा प्रोग्राम बन गया...अभी कुछ माह पहले ही..बड़े मनोयोग से खरीद भी लिया गया.....आप माने या न माने हमें तो ये उपलब्धि ..बिलकुल वैसी ही लगी ..जैसे ...टाटा जी को अपनी नैनो देखने की बाद लगी होगी...खैर....उस पर से सोने पे सुहागा ये की ..उन दिनों लम्बी छुट्टियों का दौर चल रहा था...इसके बाद ग्रीष्मकालीन अवकाश ...बस समझिये ..अंधे के हाथ बटेर ..अजी हाथ क्या ..पैर, सर ..और पता नहीं कहाँ कहाँ..बटेर..वो भी मंदी के इस दौर में....

अजी दिन क्या रात ...हमने कंप्यूटर पर ऐसी हरी बत्ती जलाई....की समजिये ..ट्रैफिक बिलकुल फ्री ही कर दिया..जब देखो हरी बत्ती aun ....मगर हमें क्या पता था की ये ट्रैफिक रूल्स का जबर्दस्त उल्लंघन है ....अरे भाई घर के ट्रैफिक रूल्स का....बस ..पहले छोटे मोटे चालान हुए...यानि नोक झोंक ...और फिर वाद विवाद..हमने सोचा ये तो हर ब्लॉगर के घर में हो रहा है...और फिर कल को यही बलिदान तो हिंदी ब्लॉग्गिंग के संघर्ष का सुनहरा अध्याय कहलायेगा..सो शहीदों की तरह ...सब कुछ झेलते चलते जा रहे थे.......मगर कब तक जी आखिर कब तक....एक दिन ..हमने भी ...सरफरोशी की ..तमन्ना वाले अंदाज में ..बंद कर दिया ..सब कुछ...अंतिम फैसला...लो जी अब नहीं ...नहीं करेंगे ब्लॉग्गिंग...अरे ब्लॉग्गिंग क्या ..इस कंप्यूटर को भी हाथ नहीं लगायेंगे ...आननं फानन में सभी मित्रों को सन्देश भेज दिया गया ...जाओ जी ..अब तुम्हारे हवाले ये ..ब्लॉग्गिंग साथियों....सन्देश मोबाईल पर टाईप करके सबको भेज दिया गया ....और इस चक्कर में उनके पास भी चला गया जो हमें तो जानते थे..हमारे नंबर को भी पहचानते थे ..मगर ये ब्लॉग्गिंग क्या बाला है..उन्हें क्या पता.....बेचारे घबरा गए.....
फटाफट ..संवाद हुआ....बेटा ..ये कौन सी चीज थी ..तुमने कब पकडी थी..और कब छोड़ दी..क्यूँ छोड़ दी..कोई नौकरी थी..अरे तो काहे छोड़ दी बबुआ...का पैसे कम मिल रहे थे...अब उन्हें क्या बताते...

बस ..यही सन्देश ..पहुंचा पाबला जी के पास...जो पिछले दिनों मेरे इतने कराब हो चुके हैं..की कब सखा होते हैं..कब मार्गदर्शक ..और कब अभिभावक ..मैं खुद ही नहीं जानता..मगर ये है की ..मेरे सभी ..तकनीकी ..ब्लॉग्गिंग से जुडी समस्याओं का हल उनके पास मुझे मिल ही जाता है..उन्होंने संक्षेप में पूछा..और अनुभव के आधार पर ही बिना कुछ कहे सब कुछ समझ गए ...हम भी उन्हें बता कर ...मौन धारण करके बैठ गए...हमारे विरोध का ये अंदाज जरा जुदा है....कोई हल्ला गुल्ला ..कोई हंगामा ..नहीं..चुप रह कर जो विरोध होता है...उसकी मारक क्षमता कितनी होती है....इसका अंदाजा मुझे पहले से ही था....मगर सच पूछिए तो ...अन्दर ही अन्दर तो ऐसा लग रहा था ...जैसे किसी अज्ञातवास में जीवन बीत रहा है..मगर हमने भी व्रत जारी रखा...अब घबराने की बारी श्रीमती जी की थी....उन्हें समझ आ गया था की ..सूर्यग्रहण का कोई असर हुआ या नहीं ये तो पता नहीं ..मगर उनके चाँद (अजी हम ) को ग्रहण टाईप का लग सा गया है....

उन्होंने ..न जाने कैसे पाबला जी को फोन किया ..और चूँकि श्रीमती जी भी पंजाबी भाषी हैं...बस पाबला जी ने बड़े भाई की तरह पता नहीं उन्हें कौन सी घुट्टी पिलाई...की डांट मिली ..या पता नहीं ..बस हमें आजीवन ब्लॉग्गिंग का परमिट मिल गया ......साथ ही ...ये वादा भी ..की अब इस ब्लॉगर पर अधिक बंधिश नहीं ;लगाई जायेगी ..

सो हे ...सखाओं..इस अभय वरदान के साथ ..ब्लॉगजगत में दोबारा वापसी हो रही है.....
चलते चलते एक बात और...यदि सब ठीक ठाक योजना अनुसार रहा तो जल्दी ही आपको ..झा जी कहिन...पर एक नए अंदाज में नियमित रूप से चिट्ठाचर्चा पढने को मिलेगी....

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

एक सच ने ....ब्लोग्गर का सामना किया...



सब तरफ सच का शोर सुनाई दे रहा था.....यूँ लग रहा था जैसे ..सच बोलने वालों की तलाश इंटरपोल की पुलिस कर रही है....चारों तरफ सच की जय जयकार हो रही थी.....इत्ते में हमारे एक सनकी ब्लॉगर ...अरे वही अपने चिट्ठासिंग जी ..की मुलाक़ात ..डायरेक्ट ..बिलकुल आमने-सामने ...सच से हो गयी ..आगे क्या हुआ आप खुद ही देखिये..


क्यूँ बे सच ...बड़े नाम शाम हो गए तेरे तो आजकल ....सुना है खुले आम लोगों को उकसा उकसा कर बेटा ....सारी गंदी शंदी बातें कर के ..उन्हें उल्लू बना रहे हो ...और कहते हो की ...खूब सारे पैसे मिलेंगे .....और ..उस चक्कर में पता नहीं क्या क्या पूछते हो ...बन्दा शुरू शुरू में ...हिम्मत कर जाता है..थोडा माल पत्तर ..कमाने के चक्कर में आगे बढ़ जाता है ..बस उसके बाद ...तुम भी चालु....ये अमरीकन सुरक्षा अधिकारियों की तरह...लगते हो बन्दे की कपडे छीलने ...

सच जी चुपचाप सुन रहे थे.....अब बर्दाश्त से बाहर था....उबल पड़े....अरे जा जा....तुम ब्लोग्गरों को कोई बात हजम भी होती है...इत्ते सारे नए नए कार्यक्रम ...आते हैं...आ रहे हैं...इत्ते बढ़िया बढिया ..फैलसे ..जैसे लिव इन रिलेशनशिप ...फिर समलैंगिकता ...तुम सब के सब लगते हो डंडा भांजने ....तुम्हें तो कुछ भी नहीं पचता...बाद हज्मों ... .तुम छोटी आँत वाले ....हिंदी ब्लोग्गेर्स ....देखो इंगरेजी वाले ..क्या क्या लिखते,पढ़ते ,देखते ...और हजम कर जाते हैं..डकार तक नहीं लेते ..अबे तुम्हें सच भी हजम नहीं हो रहा ..और क्या चाहिए ...तुम लोगों को झूठ की इतनी आदत पड़ चुकी है की ..सच तो तुम बिना पैसे के बोल ही नहीं सकते ...तभी हरे हरे नोट दिखाए जा रहे हैं ...ताकि तुम्हारी आत्मा पर पड़ चुकी परत हट सके ....

अब चिट्ठासिंग की बारी थी गरम होने के.....भड़क गए ...अबे ओये ..कौन सी दुनिया में है भाई...सच के नाम पर आजकल जो भी चल रहा है न ....उसे कुछ नहीं मिलता...भुक्खड़ ,,फटेहाल ...एकदम दीन हीन टाईप की शक्ल वाला जो मिल जाए समझ लेना ....पट्ठा सच का सामना कर रहा है..इसीलिये किसी चीज की कामना नहीं कर सकता....अबे मुझे पता है तेरे चक्कर में एक राजा ..यार की नाम सी ओद्दा ...गिरीश चंदर....नहीं नहीं सतीश चंदर....ओ नहीं यार हरीश चंदर ...भी तेरे चक्कर में लुट पिट गया था ,......फिर हम तो पैदाईशी भिखारी टाईप स्टेटस वाले हैं....अबे हमें क्या मतलब तुमसे भई ..हमारे सच का कए मोल है बे.......और ये जो कार्यक्रम तुम सच के नाम पर चला रहे हो ...उसमें हमेशा एक प्रश्न ..शारीरिक सम्बन्ध को लेकर जरूर घुसेड देते हो ....इसका क्या मतलब...

अरे कोई सच ...सैक्स के बिना ...सच होता है क्या आजे के जमाने में.......सच ने सफाई दी.....अरे छोडो तुम्हारे बस का नहीं हैं न ..इसलिए बौखला रहे हो...क्यूँ नहीं बैठ जाते उस सीट पर ...बेटा पता चल जाएगा कितना दम है.....?

चिट्ठासिंग अब तमतमा चुके थे .....अच्छा ..इतना ही भरोसा है अपने पर ...एक काम करो,,,,,,,....किसी गरीब किसान को.......किसी मजदूर को.....किसी गाँव से आये भोले इंसान को बिठाओ..तुम अपनी गरम-ठंडी ..कुर्सी -पलंग ..पर तुम्हारे सारे सच का पर्दा फाड़ न दे तो कहना.....उससे पूछना चाहे जितना मर्जी...वो बताएगा तुम्हें ...उसके सम्बन्ध किस किस से रहे हैं....भूख से...गरीबी से..बीमारी से...बेरोजगारी से.....

अरे सुनो सुनो........सच मियां ..कहाँ भागे जा रहे हो ......सच भागा जा रहा था...चिट्ठासिंग उसके पीछे पीछे ....जैसे ही पकड़ में आता है ..बताते हैं क्या हुआ....

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

बस थोड़े से (सिर्फ साठ-सत्तर करोड़ ) लोगों को समझाना है, फिर हम अमरीका हो जायेंगे.




आज से कुछ वर्षों पहले जब ये दावा किया जा रहा थे की हम विश्व के सबसे शक्तिशाली और प्रभावी देशों में से एक होंगे तो मुझे कतई, ये विश्वास नहीं था. होता भी कैसे हम कर क्या रहे थे ख़ास, .....कुछ अलग.., जो ऐसा हो पाता ..अजी चांद पर पहुँच कर उछलने-कूदने से क्या हो जाता है...और हमारे कवि-साहित्यकार तो न जाने कब के वहां पहुंचे हुए हैं.. हाँ जब अमरीका और ब्रिटेन की तरह हमारे ऊपर भी आतंकियों ने हमले करने शुरू किये....हमें लगा अब तो पक्का हम भी बड़े हो गए हैं...मगर हाय री किस्मत....अमरीका ने फटाक से अपने ऊपर टेढी निगाह करने वाले देशों पर ऐसी बमबारी की ..बस मटियामेट कर दिया..और हम हम पता नहीं कितने हजार बार ..लड़ रहे हैं आर-पार की लड़ाई...अजी लड़ाई तो छोडिये..जो पकडा भी जाता है..उसे पूरी मेहमाननवाजी का लुत्फ़ पहुंचाया जा रहा है...तो फिर नहीं हो पाए अमरीका जैसे.

मंदी का दौर शुरू हुआ ...घोषणा /भविष्यवाणी. ..आशंका/अंदेशा ...सब कुछ जाहिर किया गया की भैया बड़े बड़े देशों की लुटिया डूब नहीं भी पायी तो कम से कम छेद तो उसमें हो ही गया है ...अमरीका अपने सबसे बड़े बैंकों को उधारी दे रहा है ..और पता नहीं क्या क्या...हमने कहा ..चलो यहाँ वैसे ही एक पाँव का दाल का भाव ..मैक्डोनल के बर्गर से ज्यादा है ...तो इसका असर तो यहाँ भी जबर्दस्त पडेगा...अजी क्या ख़ाक पडेगा..सारी हवाई जहाजों ने इसी बहाने अपने स्टाफ का वेतन काटा,,किसी ने अन्दर बाहर करने का नाटक किया.....बैंकों पर तो इसका रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा....पूछा तो कहने लगे..जी देखिये मंदी का दौर तो है ही....मगर लोन देने के लिए हमारे पास बहुत पैसे हैं..फिर आप लोग जायेंगे भी कहाँ...आज आदालतों में पच्चास प्रतिशत से अधिक मुकदमें ..हमारे इन चैकों के लेन-देन के ही तो हैं......बताओ यार क्या ट्रेजडी है

मगर कब तक जी कब तक ..आखिरकार कब तक..कहते हैं न की इरादे बुलंद हों ..तो अमरीका कौन दूर है जी...जैसे ही पिछले दिनों पहले लिव इन रीलेसहनशिप को ....और अब आखिर कार समलैंगिकता को हमारे यहाँ भरपूर समर्थन मिला ...जिस तरह से ये दोनों मुद्दे सामने आये...(लग रहा था की आज देश का सबसे अहम् , सबसे बड़ा, सबसे मुख्य, सबसे जरूरी..और सबसे....अरे छोडिये..बस समझ जाइए )..उसने आखिरकार साबित कर ही दिया की हम भी अमरीका हो गए ...

जैसे ही इसका फैसला हुए ..अपने यहाँ से एक फोन अमरीका गया " अरे सर....मुबारक हो पिछली बार भारत आने पर जो दिक्कत आपको हुई थी न ...अब नहीं होगी....अब आपके स्वाद के हिसाब से हम आपकी सेवा करेंगे ..अरे नहीं नहीं सर अब कोई डर नहीं है ..अरे सर क्या करें हमें भी तो आपकी तरह शक्तिशाली देश बनना है न.....हाँ सर ..अभी तो नयी नयी बात है न ..बस थोड़े से ....मेरा मतलब सिर्फ साठ सत्तर करोड़ लोगों को समझाना है...अरे सर वे लोग कौन सा किसी गिनती में आते हैं..हाँ हाँ सर ठीक समझे ..वे तो सिर्फ वोट देने के लिए ही काम में आतें हैं...अरे सर उन्हें क्या पता ..इन एडवांस बातों के बारे में ....नहीं नहीं सर .जो बचे हुए लोग हैं शहर के वे तो हमारे साठ हैं ही..अरे सर आखिर इससे कितनी प्रोब्लेम्स भी तो सौल्व होने वाली है आखिरकार ...नहीं सर हमने उन्हें कहा है की इससे बलात्कार जैसे अपराधों..घर के क्लेश आदि जैसे मामलों में भी कमी आयेगी...और फिर कौन सा उन्हें ये बताया है की ..इससे देर सवेर ऐड्स जैसी बीमारी वैगेरह हो सकती है...सर एडवांस होने के लिए इत्ता तो झेलना ही पडेगा ही......नहीं सर थोडा बहुत विरोध तो यहाँ सभी चीजों का होता है ...मगर सर अपना मीडिया..अपनी सरकार ..सोसायटी ....सब एडवांस होने के लिए मरे जा रहे हैं ....
बस सर कुछ ही समय की बात है हमारे यहाँ भी आपके देश की तरह ...स्कूल जाने वाली बच्चियां ..थोक के भाव गर्भपात करा रही होंगी....चारों तरफ खुला खुला माहौल होगा........अरे सर मैंने कहा न सिर्फ थोड़े ............से लोगों को समझाना-मनाना है ...फिर हम अमरीका हो जायेंगे...

(मेरा इरादा किसी का दिल दुखाने का नहीं है न ही किसी देश का, उसकी सभ्यता ,संस्कृति का, अपमान करना है....और भाषा की तल्खी कभी कभी विषय के अनुरूप अपने आप उभर कर सामने आ जाती है ....यदि कुछ गलत लगा हो तो क्षमा करें..)

बुधवार, 15 जुलाई 2009

जब भी हम पगलायेंगे, इक पोस्ट लिख कर जायेंगे...

जब मैं कैफे में बैठ कर सिर्फ एक घंटे में ब्लॉग्गिंग किया करता था तो स्वाभाविक रूप से उतनी गहराई से ब्लॉग्गिंग का उतार चाढावों को भांप नहीं पाता था.बस सिमित समय में एक सिमित सी दुनिया बनी हुई थी, लिख दिए, अगले दिन tippnniyaan देखी , टीपने वालों के प्रति उत्सुकता हुई तो उनके ब्लॉग पर पहुंचे और पढ़ कर टीप दिया....बस हो गयी ब्लॉग्गिंग.

अभी ज्यादा समय नहीं बीता है कम्प्यूटर लिए..मगर निस्संदेह उतना तो मैं समझ ही चुका हूँ की यहाँ सब कुछ वैसा नहीं चल रहा है जैसा की हिंदी ब्लॉग्गिंग के बारे में पढ़ा और सुना था....नहीं मैं नकारात्मक रूप से नहीं सोच और कह रहा हूँ. बल्कि ये तो एक सुखद तथ्य है की जब ब्लॉग्गिंग शुरू की थी तब से अब तक इसके आकार और स्वरुप में बहुत बड़ा अंतर आ गया है.....यदि किसी चीज़ में अंतर नहीं आया है तो वो है....ब्लॉग्गिंग में नियमित रूप से चलने वाले विवाद....मैंने इन दिनों में जो अनुभव किया है और उससे जो भी निष्कर्ष निकाले हैं ..उसे आपके सामने रख रहा हूँ....नहीं नहीं कोई मकसद नहीं है मेरा ..बस उसे बांटने भर की कोशिश है .

ब्लॉगजगत में कुछ ब्लोग्गेर्स (महिला/पुरुष ) जानबूझकर अपनी पोस्टों में ....विवादित मुद्दों को .....या कहूँ की अनावश्यक रूप से किसी भी मुद्दे को विवादित करके लिखते हैं ...भाषा और शैली ...किसी ख़ास मकसद से उकसाने वाली होती है ....सबसे दुःख की बात ये है की ऐसी पोस्टें बहस के लिए नहीं.....बल्कि बत्कुततौअल्ल के लिए ही लिखी जाती हैं.....और यही कारण होता है की ज्वलंत विषयों पर...अक्सर ये लेखक/लेखिकाएं या तो कुछ लिखते नहीं,,या फिर ..ये लिख कर काम ख़त्म कर लेते हैं की...फलाना जगह, फलाना समाचारपत्र में ऐसा, वैसा छ्पा है....

इनकी ऐसी कमाल की पोस्टों में हमारे जैसे घुसेडू टाईप के घसीटू ब्लॉगर घुस जाते हैं...आव देखते हैं न ताव...बघार देते हैं अपना भाव...अजी तिप्प्न्नियों के रूप में ....और कई बार तो किसी की पोस्ट पर आयी किसी टिप्प्न्नी जो किसी ऊपर वर्णित लेखक के भाई/बहन .,,या फिर स्वयं लेखक ने ही लिख मारी होती है ...उसे अपने दिल पर लगा कर दे दाना दान टीप डालते हैं......इससे भी मन न भरा ..तो लिख डाली एक पोस्ट....बस ये विवाद जो शुरू होता है ...तो जंगल की आग की तरह फैलता चला जाता है......एक बार बहुत पहले सुना था की कई बार नकारात्मक स्थितियां ...बहुत सी अच्छी बातों को जन्म देती हैं...मुझे भी इन विवादों में ऐसी अच्छी बातों की प्रतीक्षा रहती थी....मगर लानत भेजिए जी.....यहाँ तो दो मिनट में बात इतनी भयानाक टाईप हो जाती है.....खुल्लम खुल्ला गाली गलौज.........और पता नहीं क्या क्या. ऐसा बहुत ही कम होता है ..या फिर की शायद मैंने देखा है की ...इन विवादों का कोई सार्थक अंत हुआ हो.......दुसरे की क्या कहूँ ,मैं खुद भुक्तभोगी हूँ........अभी पिछले दिनों ही भुगत चुका हूँ...खूब प्यार से......अच्छी अच्छी तिप्प्न्नियों से अपनी बात रखी.......न हुआ तो फिर जूता भीगा.......टाईप की रिक्वेस्ट भी कर ली.....थोड़े दिनों तक लगा ....चलो कुछ तो असर हुआ ही है न...तो कोई बात नहीं इतना विवाद ही सही....हो सकता है अब सब ठीक ही चले....मगर ये क्या.....वे लोग फिर से वही सब करने लगे...अब जलाओ अपना खून...उसमें स्याही डुबो डुबो कर.

मुझे तो लगता है की यदि आप अपनी रचनात्मकता को सचमुच ही बचाए रखना चाहते हैं, तो बजाय इसके की उसे इन विवादों में खर्च करने के ...अच्छी अच्छी बातें लिखने के, दूसरों की पोस्टें पढने के लिए, उनपर उत्साहवर्द्धक तिप्प्न्नियाँ करने के लिए व्यव्य की जाएँ....तो आपके मन को भी सुकून मिलेगा....हालांकि इससे भी उन पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला .....आप गांधी जी बनें या सुभाष , चंद्रशेखर वाला रास्ता पकडें.......अंग्रेजों के दुश्मन तो हैं ही..............तो फिर अपने लिए सही रास्ते का चुनाव करके आगे बढें....

मेरा एक दोस्त ब्लॉग्गिंग के लिए अक्सर कुछ पंक्तियाँ गुनगुनाता है

जब भी हम पगलायेंगे,
इक पोस्ट लिख कर जायेंगे,
जितना तुम तिलमिलाओगे ,
हम उतना लिखते जायेंगे,
फालतू में जो उकसाया तो,
आईना तुम्हें दिखाएँगे,
यूँ ही ना माने तो,
तुम्हें इक अलग राह दिखाएँगे,
जिस दिन मत्था घूम गया,
सीधे घर तुम्हारे आयेंगे,
या तुम कर देना इलाज हमारा,
या हम तुम्हारा कर आयेंगे,
जिस दिन सटका दिमाग हमारा,
तुम्हें दुनिया के सामने ले आयेंगे....
न तुम्हारी ढपली का राग सुनेंगे,
बोल्ड
न अपना ढोल बजायेंगे,
हम भी छोड़ देंगे ब्लॉग्गिंग,
तुमसे भी छुडायेंगे ,
जब भी पगलायेंगे,
इक पोस्ट लिख कर जायेंगे .


रविवार, 12 जुलाई 2009

मुई इस निगोड़ी ब्लॉग्गिंग से , हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ ?








मुई इस निगोड़े ब्लॉग्गिंग से,
हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ,
बिन इसके इक दिन अब तो,
जीना भी दुश्वार हुआ...

रिश्ते नाते हुए बेमानी,
दोस्त भी कतराते हैं,
बीवी बच्चे भी कोसें,जाओ तुम्हारा
ब्लॉग्गिंग ही परिवार हुआ...

अब लगे है नौकरी भी भारी,
क्या हुआ जो है सरकारी,
नौकरी क्यूँ बना कैरियर अपना,
हाय क्यूँ नहीं व्यापार हुआ....

लिखना छूटा-पढ़ना छूटा (किताबों का ),
हर कोई रहता, रूठा रूठा ,
जब से घुसे हैं ब्लॉग्गिंग में,
तगडा बंटाधार हुआ......

भाड़ में गयी दुनिया सारी ,
और दुनिया के लिए हम भाड़ में,
जब से पहुंचे इस दुनिया में,
कंप्यटर ही संसार हुआ...

बेलन चले , और बर्तन भी,
कभी मिले तीखे ताने,
क्या क्या बतलायें आपको,
इस ब्लॉगर के साथ क्या क्या अत्याचार हुआ....


अजी इतने तक तो बात ये रुकती,
हम सह जाते चुप रह जाते,
मगर अपनी मम्मी के साथ , हमसे लड़ने को,
बेटा भी तैयार हुआ.....

चार अक्षर क्या लिख पाए,
सबको अभी कहाँ टिपियाये,
इतना जुल्मो सितम हुआ,,,
हाय बेगाना घर-बार हुआ..


पिछले दिनों की जो कसर थी सारी,
निकालने की थी आज तैयारी,
इन ससुरे, ससुरालियों ने ,
हाय ये सन्डे भी बेकार किया......


मुई इस निगोड़ी ब्लॉग्गिंग से,
हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ ?

गुरुवार, 2 जुलाई 2009



















आज का दिन भारत के सामाजिक..राजनितिक..विधिक..नैतिक..शारीरिक..भौतिक..दैहिक...प्रजातांत्रिक...व्यवहारिक...ऐतिहासिक ...इतिहास में (वाह क्या बात निकली है ,ऐतिहासिक..इतिहास )....यदि सबसे बड़ा ..नहीं तो ....अरे मगर सबसे बड़ा क्यूँ नहीं ..सबसे बड़ा ही है..ये दिन...आज न्यायपालिका ने भी सवा अरब की जनसंख्या वाली आबादी को कह दिया है की आप जो उस टाईप की आजादी मांग रहे थे..वो तो अब बिलकुल प्राकृतिक है..अरे प्राकृतिक क्या उससे भी ज्यादा....हाजेनिक और हर्बल है .....बल्कि अब तक सभी रिश्तों में सबसे पवित्र ...सभी तरह के मोह ...पाप...लोभ..काम ..से...मुक्त.....दो एक ही नस्ल के ...एक ही बनावट के...दो निश्छल प्राणियों के बीच ..बना रिश्ता है..तो भला हम क्यूँ नहीं मानेंगे..


और फिर हमें इस उपलब्धि पर भी तो गौर करना चाहिए की ..इस ऐतिहासिल निर्णय से हम अमरीका..जैसे बीस विकसित देशों की श्रेणी में आ गए हैं...अमा गरीबी अशिक्षा..बेरोजगारी ..में न सही ..इसमें तो कह ही सकते हैं की हम में और अमरीका में कोई फर्क नहीं है......तो आज जब पूरी दुनिया सो रही है तो आइये इस दुनिया को बता दें कि..आज फिर एक बार देश ने आजादी पा ली है...हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इस महान कदम से हम जनसंख्या वृद्धि ...बलात्कार..सास बहु के झगडे..दहेज़ ह्त्या...आदि न जाने कैसे कैसे..और किस किस चीजों से मुक्ति पा लेंगे...और साहित्य में लैला- शीरी..मजनू फरहाद टाईप के प्रेम कहानियों के ग्रन्थ रचे जायेंगे.....उफ़ सोच के ही मन रोमांचित हुआ जाता है..

इसीलिए ये निर्णय किया गया है ..अरे मुझे बताया है कई ..जोडों ने भई...कि आज इस ऐतिहासिक दिन को राष्ट्रीय गे डे .....के रूप में मना कर ..उनको डेडीकेट किया जाएगा ..जो बेचारे अब तक तीन सौ सतहत्तर की मार झेल रहे थे ...उनके इस महान संघर्ष को भी युगों युगों युगों युगों तक याद किया जाएगा...

और इसका राष्ट्रीय गीत होगा...गे..गे..गे..गे........गे रे सायबा..... प्यार में सौदा नहीं......
बस ध्यान ये रहे कि , नर + नर हो, कोई मादा नहीं....

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