रविवार, 31 मई 2009

इन्हें ब्लॉगर कहते हैं....






कुछ लोग,
कलम उठाते हैं,
कुछ बताने को,
कुछ सुनाने को,
कुछ दिखाने को,

एक छोटी सी जगह,
जिसका विस्तार,
अनंत है, चुनकर,
सब कुछ,
उडेल देते हैं,

अपने शब्द,
अपनी सोच,
अपनी थकान,
और मुस्कान,
आशा-निराशा,
वाडे-सपने,
अपनी यादें,
अपना आज और ,
आने वाला कल भी,

ये लोग ,
जो लेखक हैं,
छात्र हैं, व्यापारी भी,
कई नौकर हैं,
सरकारी भी ,
कुछ तो ,
अखबार के हैं,
और भी जाने,
किस संसार के हैं,

ये लिखते हैं,
फिर पढ़ते हैं,
पढ़े हुए पर,
फिल लिखते हैं,
और कभी कभी,
करते हैं इसकी,
चर्चा भी,
सुना है कि ,
मिलते भी हैं, अब,
संगोष्ठी के बहाने,

कोई कहता है,
इन्हें निठल्ला,
कोई, कोम्पुटर का,
दुमछल्ला,
कोई देखता है,
इनमें पत्रकारिता का,
समानांतर नजरिया,
कोई मानता है, इन्हें,
एक्सक्लूसिव खबरिया,
कुछ मानते हैं, इन्हें ,
नेट पर बैठे दफ्फर ,

वैसे अक्सर इन्हें,
कहा जाता है ब्लॉगर........

शनिवार, 30 मई 2009

ब्लॉग्गिंग में ये कौन करेगा....?

अक्सर जब मैं नए ब्लोग्स पर कोई टिप्प्न्नी करता हूँ तो मेरे मेल पर धन्यवाद के साथ साथ कई प्रश्न होते हैं जिनमें से एक अहम् प्रश्न होता है कि आपको कैसे पता चला मेरे ब्लॉग का और ये भी अन्य ब्लॉग को कैसे पढ़ा और देखा जा सकता है. ये कोई अचंभित करने वाली बात भी नहीं है. दरअसल ब्लॉग्गिंग करना तो कई लोगों को कई माध्यमों से पता चल जाता है मगर उनकी जानकारी सिर्फ यही तक सिमित रह जाती है. इसके आगे उन्हें कुछ भी नहीं पता ये तक नहीं कि चिट्ठाजगत और ब्लोग्वानी जैसी कोई साईट हैं जहां उनके और अन्य लोगों के ब्लॉग पढ़े और पढ़वाए जाते हैं. तो फिर इसका हल क्या है..........

जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि उन सभी सेवाओं को, जो हिंदी में ब्लॉग्गिंग की सुविधा प्रदान करते हैं , कुछ बातें स्वचालित रूप से टिप्प्न्नी के रूप में उनकी पोस्ट में पन्हुचानी चाहिए . पहली उनको प्रोत्साहित करने के लिए कुछ पंक्तियाँ फिर उन अग्ग्रीगेतार्स का नाम और पता जहां उनकी अपनी पोस्ट और औरों की पोस्ट देखी जा सकती है. इसके बाद उन साईट्स का पता जो ब्लॉग्गिंग की तकनीकी जानकारी देते हैं...जैसे हिंदी ब्लॉग टिप्स, कंट्रोल पैनेल आदि....

मेरे कहने का मतलब है कि जैसे किसी अनाडी को खेल शुरू करने से पहले खेल के सभी नियम और कानून बताये समझाए जाते हैं ठीक वैसे ही नए ब्लोग्गेर्स की मुश्किलों के कम करने की जिम्मेदारी इन अग्ग्रेगेतोर्स को ही उठानी चाहिए .

मैंने जो भी कुछ सुझाव दिए हैं वो मेरे चाँद दिनों की ब्लॉग्गिंग के अनुभव पर आधारित हैं इसलिए यदि आपको इससे इतर कुछ कहना है तो जरूर कहें.......

ब्लॉग्गिंग में ये कौन करेगा....?
--
ajay kumar jha
9871205767

शुक्रवार, 29 मई 2009

गली से गुजरते हो, रोज़

गली से गुजरते हो,
रोज़,
घर कभी, क्यूँ...
आते नहीं......

और ,
जब भी , लेते हो ,
वादा ,हमसे ,आने का,
कभी, अपना , पता ,
बताते नहीं...

ये जो , आँखों का,
सुरुर है.....
साकी का ,
कुसूर है,
प्याले कभी ,
बहकाते नहीं....

वो, कत्ल करके,
हमसे ,करते हैं ,
शिकायत , हम ,
जख्म , क्यूँ उनके,
सहलाते नहीं.....

काश कि,
मैं भी , बन पाता,
पाषाण ,बुत सामान,
तो हादसे , मुझे भी,
तड़पाते नहीं......

क्यूँ ,उम्मीद
लगाते हो उनसे ,
अधिकार पाने की,
जो कभी, हक़ ,
तुम्हारा दिलाते नहीं......

मंगलवार, 26 मई 2009

सितारों से मुलाकात

उस दिन मित्र लपटन जी नयी नयी खुली जूतों की दूकान देखने का मन हो गया. दरअसल माजरा ये था कि जबसे हमें लपटन जी ने बताया था कि उन्होंने जूते के बढ़ते उपयोग के मद्देनजर एक नयी दूकान खोली है जिसमें विशुद्ध हाईजेनिक और हर्बल जूते बिकेंगे, हमारा मन भी उद्वेलित हो गया..... अरे नहीं नहीं आप लोग कतई ये न समझें कि हमें भी कोई राजनितिक शिकार करना है .... अजी सारे पी ऍम जो वेटिंग थे , सब या तो खटिया पकड़ कर लेटिंग हो गए और कई बेचारे तो ऍम पी ही नहीं बन पाए सो उलट कर ऍम पी कैसे बनते वहाँ तो फिरवही नारा गूँज रहा था.......सिंग इस किंग .....देस इस इंडिया ...एंड सोनिया इस मदर इंडिया..... खैर इससे हमें क्या लेना देना ... मैं भी कौन सी बात ले कर बैठ गया .

रस्ते में जाते समय देखा तो एक जगह काफी भीड़ लगी थी, मैंने सोचा यार चुनाव तो ख़त् हो गए. और अब हारने जीतने की समीक्षा भी सब जगह हो chuki है बस अपने ब्लॉगजगत में अभी भी हो रही है, फिर ये भीड़ कैसे ...घुस कर देखा तो कई लोग एक जोड़े को घेरे खड़े थे मैंने पूछा कि भाई आखिर बात क्या है. इन्हें क्यूँ gher कर खड़े हो....

इससे पहले कि लोग कुछ कहते , वे खुद ही चीखते हुए bole , क्या बकते हो , हमें नहीं पहचाना , हम हैं इंडियन आदियल नंबर ......., और मैं हूँ संगीत के पता नहीं कौन से विश्व युद्ध की विजेता , लोग हमारा औटोग्राफ ले रहे हैं भी लेना है तो लाइन से aao..

हमने सोचा कि यार , चलो इतने बड़े सितारों से मुलाकात हो रही है लग जाते हैं लाइन में..बीच बीच में बतियाते भी रहे...

आप लोगों को पहचान नहीं paaye, माफ़ kijiyegaa... दरअसल उस प्रतियोगिता के बाद हर साल, क्या कहें जी हर महीने , और अब तो हर हफ्ते वैसी ही नयी नयी प्रतियोगिता आयोजित हो रही है न ...इसलिए पहचानने में भूल हो गयी फिर आप लोग बाद में कहीं नजर भी तो नहीं आये..

वे तपाक से bole,... क्या बात करते हो....मैं तो हाल ही में एक सीरियल में कामेडियन बना था और ये जिन गायिका को देख रहे हो इन्होने भी एक भूत वाले रोमांचक सीरियल में एक चुडैल के भूमिका की थी ....

मगर आप लोगों ने तो gaane की प्रतोयोगिता जीती थी ......

अबे तो इसका क्या मतलब जब अभिनेता नेता बन सकते हैं.....हीरो gaayak बन सकते हैं...और सब कुछ पब्लिक झेल रही है तो हम से ये क्यूँ पूछ रहे हो भाई .....

लेकिन सर आप लोग तो बड़े सुपर star bane थे न फिर इतना छोटा काम .......

कौन सा छोटा ,,मियां , कहाँ हो......तुम्हें पता भी है ....बोलीवुड का सबसे बड़ा बादशाह , सबसे छोटा ऐसी बेच रहा है........

मैंने भी जल्दी से औटोग्राफ ले कर लपटन जी की दूकान की तरफ rukh किया ....

दुकान की बातें .....कल karenge........



रविवार, 10 मई 2009

माँ तेरे जाने के बाद...........



माँ तेरे जाने के बाद......
ही जान पाया कि ,
जो आँगन ,गाता था ,
हुलस कर झूमती थी,

खिड़कियाँ और दरवाजे,
आज वे बेजान हैं ,
और मौन भी,
तेरी तस्वीर की तरह,


माँ तू कैसे,
जान जाती थी ,बिना कहे ,
बाबूजी जी की सारी जरूरतें,


kऐसे मिटा देती थी,
तुम मिनटों में ,हमारे मतभेद,
देखो न,
छोटा फ़िर रूठ गया,


माँ तू कैसे,
निभा लेती थी,सारी दुनियादारी,
मैं तो निभा नहीं पाया,
आज तक परोसदारी भी॥

अपनी संतानें हैं मेरी,
पर कैसे तू,
मुझे एहसास कराती थी,
मेरे लड़कपन का....

माँ अब जबकि ,
तू नहीं है,तो,
मैं बाबूजी को ,
दो बार चरण स्पर्श करता हूँ,
आख़िर तू उनकी अर्धांगिनी थी






बुधवार, 6 मई 2009

फ्रेंच, जर्मन, जापानी ,सीखनी है तो भिखारी बनिए न......कोर्स चालु है.....






ना जाने कितने दिनों से ये हसरत थी की , मैं अपने देश की भाषाओं का ज्ञान तो रखता ही हूँ मगर कितना अच्छा हो यदि इसके साथ ही कुछ अन्य विदेशी भाषाओं का ज्ञान भी हो जाए. और मेरा क्या ये तो कईयों का सपना होता है, हालांकि रेडियो प्रसारणों से सुन कर कई बार सीखने की कोशिश भी की मगर जल्दी ही पता चल गया की ये हम जैसे भुसकोल विद्यार्थियों के लिए नहीं है, कोचिंग संस्थानों में जाकर पता किया तो हिसाब लगा कर देखा की इतने में तो घर का एक साल का राशन ही आ जाएगा.

मगर आखिरकार कहते हैं न जहाँ चाह वहाँ राह निकल ही आती है, सरकार से तो मुझे कभी उम्मीद भी नहीं थी इसलिए ऐसी अपेक्षा रखना ही बेकार था, लेकिन पक्की ख़बर मिली है की राष्ट्रीय भिखारी प्रएवेत कंपनी लिमिटेड ने एक नयी सेवा शुरू की है, वो है विदेशी भाषाओं के ज्ञान हेतु कोचिंग संस्थान से शिक्षा.

दरअसल पूरी कहानी ये है की, आगामी राष्ट्रमंडल खेलों , जो की इस बार राजधानी दिल्ली में ही होने जा रहे हैं, उसके लिए सभी भिखारियों को एक ख़ास क्रैश कोर्स करवाया जा रहा है, ताकि वे खिलाड़ियों और उनके साथ आए ,मेहमानों से उनकी भाषा में ही पूरे आदर और प्रेम से भीख मांग सकें….. वाह इसे ही कहते हैं ...व्हाट एन आइडीया सर जी ......... . आख़िर क्यूँ न हो .....इतनी मंदी के दौर में भी ........जी हाँ ये बिकुल सच है .........इस राष्ट्रीय भिक्षा कंपनी का कुल तर्नोवर लगभग छ सौ करोड़ का है......, अब पता चला की इसके लिए उन्हें कितनी नयी नयी योजनायें बनानी पड़ती हैं. आजकल इस स्पेशल कोर्स के लिए बाकायदा उन्हें शाम को थोड़ी देर का भीख ब्रेक मिलता है और उनके लिए एक कैब आती है जो उन्हें इन प्रशिक्षण केन्द्रों तक ले जाती है.....आगे की योजनायें तो और भी कमला हैं.... सूना है की जिसका परफोर्मेंस इसमें अच्छा रहेगा उन्हें बाहर विदेशों में भी भेजा जाएगा....... हाय रे हमारी किस्मत अपनी मुई नौकरी में तो आज तक नेपाल और बंगलादेश भी ना जा सके....

जब इसमें दाखिले के लिए गए तो उन्होंने कहा की देखिये वैसे तो इसमें ये सब जुगाद्बाजी नहीं चलती मगर चूँकि आप शक्ल सी... अक्ल से....हैसीयत से.....और कुल मिला सभी ऐन्गेल से भिखारी ही लगते हैं इसलिए आप भी सीख सकते हैं......लेकिन पता चला की उन्हें सिर्फ़ इतना सिखाया जा रहा है......हम गरीब हैं.....सरकार भी हमारी कोई मदद नहीं करती.....इश्वर से दुआ करेंगे की आप यहाँ हमारे देश के खिलाड़ियों को भी हरा कर खूब नाम कमायें...... फ़िर मैंने सोचा ....लो आज ये बात तो देश का हरेक आम आदमी कह और सोच रहा है......

इस पैकेज के साथ ही ऑफर मिली की आपको भिक्षा कंपनी सस्ती दरों पर ऋण भी उपलब्ध करायेगी और रीतायार्मेंट के बाद आपको आपकी शक्ल के हिसाब से प्लेसमेंट भी दिया जाएगा....

कमला है इतना अनोखा पॅकेज तो कोई भी नहीं देता......जाते जाते उन्होंने कहा की हमें इस देश की सरकार और खिलाड़ी मत समझना हम स्पेशलाइज्द तैयारी करते हैं.......
तो आइये सीखें हम भी कुछ नयी भाषाएँ.....हाय तब मैं कुछ पोस्ट जापानी... कुछ फ्रेंच में ....कुछ जर्मनी में......ओह ओह

रविवार, 3 मई 2009

नहीं भूलता वो थप्पड़




इस बार परिक्षा के लिए प्रवेश पत्र काफी पहले ही मिल चुका था और इसलिए मैंने सोचा की आरक्षण करवा ही लूँ, सर्दियों के मौसम के कारण ट्रेन में ज्यादा भीड़ भाद होने की गुंजाइश भी कम थे, किंतु पता नहीं क्यूँ इस बार मैं साधारण डिब्बे में जाना नहीं चाहता था।


अपनी आदत के मुताबिक ट्रेन के लिए समय से काफी पहले ही पहुँच गया । उन दिनों ये एक तय कार्यक्रम सा बन गया था, परिक्षापत्रोंr का आना और हमारा दो जोड़ी कपड़े , थोड़े से पैसे , और कुछ प्रतियोगी पत्रिकाएँ और ज्यादातर साधारण डिब्बों में यात्रा , ढेर सारे दोस्तों की मंडली के साथ मैं निकल पड़ता था, मगर चूँकि इस बार मेरा आरक्षण था सो दोस्तों का साथ तो छूट ही गया था। ट्रेन आयी तो अनुमान के मुताबिक ज्यादा भीड़ नहीं थे, मेरे कूपे में मेरे अलावा एक अन्य व्यक्ति की सीट थे। मैंने एक उक्ती सी निगाह उस पर तो , स्वाभाविक रूप से साथ ले जा रहा पत्रिका को थोडा उलटने लगा मगर अब ये सर्द रात की। वजह से हुआ या किसी और कारण से ये तो नहीं पता मगर, जली ही मुझे नींद के झोंके ने आ to swaabhaavik roop se saath le jaa raha patrikaa ko thodaa ulatne laga, magar ab ye sard raat kee wajah se hua ya kisi aur kaaran se ye to nahin pata magar jaldee hee mujhe neend ke jhonke ne aa घेरा। एक थपकी आयी ही थी की अचानक एक खटका सा हुआ, कूपा खुला और अप्रत्याशित रूप से एक युवती कूपे के अन्दर आयी...
देखिये मुझे आगे दो तीन स्टेशन के बाद उतरना है, क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ। इससे पहले की मैं कुछ कहता , साथ की सीट पर बैठे व्यक्ति ने कहा , जी जरूर आप बैठ जाएँ।
न जाने मुझे कुछ ठीक नहीं लगा, मगर मेरे लिए तो दोनों ही अनजान थे सो मैं चुप ही रहा।
झोंके के बीच ही कब आँख लग गयी मुझे पता ही नहीं चला।
थोड़ी देर बाद अचानक आँख खुली तो देखा की लडकी जोर जोर से चिल्ला रही है और मदद मांग रही , मैं बिल्कुल हडबडा गया , इससे पहले की कुछ समझता बाहर से बहुत से लोग आ पहुंचे। उस युवती ने रोते हुए कहा की उस साथ बैठे व्यक्ति ने उसके साथ ग़लत करने की कोशिश की है। मैं तो पहले से ही शशंकित था इस डर से कहीं बाहर से आए लोग कहीं मुझे भी उस व्यक्यती के साथ न समझ लें , मैं ख़ुद ही चीख पड़ा.....
मुझे तो पहले ही शक था, ये आदमी ठीक नहीं है, पकड़ के पीतो इसे, कोई पुलिस को बुलाओ, सब मेरे साथ हाँ में हाँ मिलाने लगे, और इससे पहले हम उठ कर उस तक पहुँचते, वो व्यक्ति बोल पड़ा , देखिये आप मेरी बात सुनिए, दरअसल ये जो बोल रही हैं वो झूठ है.....मैं तो , दरअसल मेरा तो ....
मगर वो और कुछ कहता इससे पहले मैं और एक और व्यक्ति उस पर पिल पड़े , मैंने खींच कर उसको एक थप्पड़ जड़ दिया। दूसरे व्यक्ति ने उसका गिरेबान पाकर कर जोर से ढका दे दिया, उसके नीचे गिरते ही उसका कम्बल गिर गया।
उसके दोनों बाजुओं की जगह सिर्फ़ स्वेटर की दो झूलती बाहों ने जैसे मुझे पर वज्र पात कर दिया ......उसकी दोनों बाजुएँ कटी हुई थी.....
सब अचानक ही सन्न हो गए, और मेरी तो टांगें ही काँपने लगी...
अरे चलो चलो ये लडकी सच में झूठ ही बोल रही है , ये कहते हुए सब के सब बाहर की तरफ़ चल दिए और इसी अफरा तफरी में वो लडकी भी कूपे से निकल गयी॥
देखिये दरअसल मैं ये कह रहा था की ये सब इस त५रैन में अक्सर होता है और ये लडकी और इसका गैंग इस तरह से लूट पात करते हैं....
मेरा हाथ अचानक ही अपनी जेब पर गया और दूसरा झटका लगा, मेरा पर्स मेरे जेब में नहीं था...
क्या हुआ कुछ गायब हुआ क्या...
हाँ मेरा पर्स, मैंने बड़ी मुश्किल से अटकते हुए कहा, मैं उससे आँखें नहीं मिला पा रहा था ....आप मुझे माफ़ कर दें ....
कोई बात नहीं , ....इसके बाद पूरे सफर में उसने न सिर्फ़ मुझ से बहुत सी बातें की बल्कि उसने मुझे आगे के लिए पैसे देने की पेशकश भी की .....
वो थोड़ी देर बाद ही वो थप्पड़ भूल चुका था, मगर मैं उस थप्पड़ की गूँज अभी भी अपने कानों में सुनता हूँ..........

शुक्रवार, 1 मई 2009

मन जूता जूता हो गया ........


क्या बताएं लपटन जी, भाई आजकल जो कुछ भी चल रहा है, उससे तो मन joota joota ho गया, कसम से ।
लपटन थोड़ा विस्मित चकित थे , कहने लगें भाई मियां ये इस मुहावरे की धुन जानी पहचानी लग रही है मगर बोल कुछ अलग से हैं।
हाँ हाँ, समझ गए आप उस मुहावरे की बात कर रहे हो दिल baag baag हो गया, मगर hujure आला ये तो गए जमाने की बात हो गयी । आजकल तो yahee muhaavraa चल रहा है, मन जूता जूता हो गया। darasal आजकल वही चल रहा है जिसके साथ जूता चल रहा है। asleeyat में तो इस mandee के दौर में जब न baink चल रहे हैं न sheyar maarket ajee amreekee sarkaat tah ठीक से नहीं चल paa रही है, itnee vikat परिस्थितियों में भी kitnee bahaduri ,कितने नए नए अंदाज में सिर्फ़ जूता ही तो चल रहा है.पहले bechaaraa सिर्फ़ पाँव के साथ चल पता था अब तो बिना पाँव के की ही दौड़ रहा है , दौड़ क्या ud रहा है।
लपटन थोड़ा hakbakaaye और dukhee स्वर में बोले , नहीं जी, ये तो कोई ठीक बात नहीं है, ये तो चलता ही जा रहा है।
क्या कह रहे हो , आप कहना क्या चाहते हो । देखो भैया , आपको यदि भार्तीय लोकतंत्र में भी ओबामा जैसा कोई चमत्कार देखना है तो फ़िर कुछ को बुश की तरह जूते भी खिलाना पड़ेगा। और क्या मतलब इसका की कब तक चलेगा । एक बात बताओ, ये इस देश में गरीबी, अशिक्षा , भ्रष्टाचार , कब से बदस्तूर चले जा रहे हैं, तुमने उनके लिए तो कभी नहीं कहा की अब बस अब तो ये आगे नहीं चलना चाहिए, तो फ़िर बेचारे जूते के चलने पर मनाही क्यूँ कहीं इसलिए तो नहीं की वे पाँव के बदले जूते हाथ के साथ चल रहे हैं, अरे ये भी तो सोचिये की इन जूतों के चलने से कितनो का रोजगार चल रहा है भैया,.....
अब लपटन जी थोड़े से नरम पड़ गए, हाँ भाई ये तो ठीक कहा तुमने ये जूतों के चलने से जूतों के कारोबार खूब चल निकले हैं सूना है की जैदी वाले जूते की कंपनी तो रातोंरात चल निकली...
अरे लपटन जी, तुम भी कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हो। अरे में जूतों की दुकानदारी की बात नहीं कर रहा हूँ । तुम्हें
क्या पता भाई इन जूतों की वजह से क्या क्या क्रांति आ गयी है, समाचार चैनलों , राजनीति, इतिहास, वर्तमान, साहित्य, अमा यहाँ तक की हमारे साथ साथ कईयों की ब्लॉग्गिंग भी आजकल इसी जूतम पैजार के कारण चल रहे हैं और आज जो भी सार्थक बहस, एक्सक्लूसिव खबरें, नया साहित्य सृजन, जनांदोलन और जितनी भी सक्रियता है वो सिर्फ़ इस जूते के कारण ही तो है. राज की बात सुनो भार्तीय राज्नितिशाष्ट्र के पाठ्यक्रम के रूप में जूता अध्याय को भी जोड़ा गया है। योजना तो ये भी है की निर्वाचित सदस्यों में जूता योग्यता रखने वाले के लिए ;विशेष व्यवस्था की जायेगी।
लपटन जी, आपको शायद ये नहीं पता की इन जूतों की घटनाओं का आकलन विश्लेषण कितनी गंम्भीरता से राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्टार पर किया जा रहा है । इसके साथ ही जूते से जुड़े कई नए मुहावरों और कथनों की भी खोज की गयी है, "जैसे जूतों के भी दिन फिरते हैं जूते जूते पर लिखा है खाने वाले का नाम ,परिवर्तन चाहिए जूता चलाइये और ये आखिरी वाला मन जूता जूता हो गया।
लपटन जी जूते की दिव्या कथा यूँ हमारे मुख से सुन हमसे लिपट गए....
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