उस दिन,
नन्ही सी,
उस तितली से,
गुफ्तगू करने लगा।
मुझसे बतियाते देख,
उसका सखा,
वो फूल,
कुछ डरने लगा॥
मैं पूछ बैठा.....
क्यों आजकल,
तुम कहीं,
दिखते नहीं,
मिलते नहीं,
क्या करें,
तुम्हारे शहर में,
फूल अब,
खिलते नहीं॥
जो बच्चे,
कभी,
खेला-कूदा,
करते थे,
संग हमारे,
अपने घरों में,
बंद,
बैठे हैं,
वे बेचारे।
तुम्हारी इस,
तेज़,तंग,
दुनिया में,
किसे हमारी,
दरकार है,
तुम्ही बताओ,
आज कौन है ऐसा,
जिसे , मिट्टी,
पानी , पेड़ ,पत्थर,
से प्यार है॥
और में तितली के प्रश्नों में उलझ कर रह गया.
बहुत सुन्दर और कलयुग में नयी दृष्टि रखने वाली कविता है, कलयुग का सामान्य नहीं शाब्दिक अर्थ लें, कल यानी मशीन और युग का अर्थ समय है...
जवाब देंहटाएंवैसे अब तितलियों की उतनी प्रजातियाँ नहीं देखने को मिलती, जितनी मैंने बचपन में देखीं।
हम्म!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
achha hai , aapko bhee titliyon kee yaad to aayee.
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