रविवार, 25 दिसंबर 2016

रे लट्ठ गाड़ दूं .....दंगल , दंगल




दंगल - अखाड़े में ,कुश्ती है , और है बेटियाँ ,बेटियों की हिम्मत ,बेटियों की लड़ाई , बेटियों की जीत , बाप की जिद्द ,बाप का संघर्ष ,बाप की जीत भी , देश , समाज , खेल ,खेल की राजनीति ...बस कुछ है इस अखाड़े में ..आमिर खान के साथ जो बात जुडी हुई है और वो यकीनन हठात ही नहीं जुडी है ..,..वो है उनके Mr. Perfectionist का टैग ...इसमें कोइ संदेह नहीं कि जिनकी लड़ाई खुद से होती है और लगातार होती है ..वो फिर लगातार जीतते भी हैं ..आमिर ....जो जीता वही सिकंदर से बहुत पहले ही सिकंदर हो चुके थे ..अब तो वे मस्त कलंदर हैं ..करिश्मा करते हैं जादू बिखरते हैं ...

कुश्ती जैसे देसी खेल में देश का नाम और आन बान बढाने वाले एक बाप को तिरंगे को विश्व पटल पर सबसे ऊँचे लहराते देखने और जन गण मन को स्टेडियम में गूंजते देखने वाले एक शेर बाप की दहाड़ है दंगल | जब बेटियाँ ..मोहल्ले के दो लौंडो को मार के भूत बना देती हैं तब कहीं जाकर चार बेटियों की लाइन में बेटे की चाह में बैठे पहलवान बाप को उसमें ..छोरे बल्कि ..म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के ..दिखती हैं ...उस समय मेरे जैसे हर बाप का कलेजा और चौड़ा हो जाता है ..होना भी चाहिए जब ..बेटियाँ ऐसी हों तो चिंता तो छोरों के बाप को होनी चाहिए ..क्योंकि उलझे तो ..हवा टाईट ..

फिर शुरू होती है एक बाप के विश्ववास , प्रशिक्षण , जिद्द और जुनून के नायकत्व की लड़ाई ....हाँ इस बीच अखाड़े की कुश्ती भी चलती है ....मगर बाप लड़ रहा होता है.. अपने देसी लगन और पैतरों से ..बेटी के भटकाव से उसे वापस खींच लाने के लिए , इस देश की सड़ी गली खेल राजनीति से ...जो आखिर तक उस बाप को ..अपनी वो सीधी कोशिश करने से रोकती है ..जिसके लिए उस बाप का , उसकी बेटी का , उनके जूनून का जन्म हुआ ....खूब सारी कुश्ती के बीच बेहतरीन परिवार , प्यार ,बेशुमार कलाकार .......क्या कहूं ...कुल मिला के .......हारना नहीं है गित्ता...........अभिनय ,गीत , संगीत ,फोटोग्राफी ,संवाद ..सब कुछ करिश्माई है .....सालों में बन पड़ी एक बेहद कमाल की पिक्चर

दंगल दंगल ...दंगल दंगल ...माँ के पेट से मरघट तक है तेरी कहानी
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