हर पल,
इक नया ,
वक़्त ,
तलाशता हूँ मैं॥
जो मुझ संग,
हँसे रोये,
वो बुत,
तराश्ता हूँ मैं॥
मेरी फितरत ,
ही ऐसी है कि,
रोज़ नए दर्द,
संभालता हूँ मैं॥
परवरिश हुई है,
कुछ इस तरह से कि,
कभी जख्म मुझे, कभी,
जख्मों को पालता हूँ मैं॥
सुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,
एक गम आता है, तो,
जब भी देती है, ख़ुशी दस्तक,
आगे को टालता हूँ मैं॥
वो कहते हैं कि,
धधकती हैं मेरी आखें,
क्या करूं कि सीने में,
इक आग उबालता हूँ मैं॥
क्या करूं , ऐसा ही हूँ मैं....
jo mujh sang hase roye wo buth tarashta hun bahut sundar.
जवाब देंहटाएंmehek jee,
जवाब देंहटाएंbahut bahut shukriya, sach kahun to apki tippniyon se to mera blog bhee mehek uttha hai. dhanyavaad.