सोमवार, 20 अक्टूबर 2008

ब्लॉग्गिंग के कुछ आजमाए नुस्खे

कुछ भी लिखने से पहले इतना बता दूँ की ये जो कुछ भी मैं आपको बताने जा रहा हूँ इसलिए नहीं की मैं ब्लॉगजगत का कोई पहुंचा हुआ पंडित हूँ न ही ये की इन नुस्खों के परिणाम का कोई प्रमाण है मेरे पास। बस यूँ समझिये की पिछले एक साल के अनुभवों पर जो सीखा समझा है उसे बांटने की कोशिश कर रहा हूँ। देखें की आपको कितना सही ग़लत लगता है।

शीर्षक :- मेरे ख्याल से किस भी विधा और विषय में लेखन के लिए आवश्यक होता है एक बढिया शीर्षक। आप किस भी पोस्ट को सबसे पहले क्या देखते हैं, चिट्ठे का नाम, चिट्ठाकार का नाम , विषय, शायद नहीं। आप पहले उसका शीर्षक पढ़ते हैं , फ़िर उसीके अनुसार अपने स्वाद के हिसाब से पूरी पोस्ट का मजा लेते हैं। इसलिए कविता, ग़ज़ल, फोटो, कहानी, लेख, संस्मरण,कुछ भी लिखें तो अच्छी तरह सोच विचार के लिखें। यहाँ एक दिलचस्प बात बताता चलूँ। अभी कुछ दिन पहले ही एक ब्लॉगर भाई ने शीर्षक दिया, बकवास है इसे तो बिल्कुल न पढ़ें, यदि अमरीका, इंग्लैंड होता तो शिश्तार्चार्वश कोई नहीं पढता , मगर हम तो हैं ही उल्टे लोग, सो नतीजा ये निकला की सबने खूब पढ़ा, और यकीनन वो जो भी था, बकवास तो कतई नहीं था । मैं ये नहीं कह रहा की उल्टे पुलट शीर्षक लिख कर ही आप अपनी तरफ़ सबका ध्यान आकर्षित करें। मगर कोशिश ये जरूर होनी चाहिए की शीर्षक रोचक हो और प्रस्तुत सामग्री से सीधा सम्बंधित हो। और हाँ ये भी की शीर्षक बहुत ज्यादा लंबा न हो तो ही अच्छा।

लेखन शैली :- कहते हैं की हर इंसान का कुछ भी कहने , लिखने का अंदाजे बयां अपना अलग ही होता है और बिल्कुल जुदा भी, वो कितनी भी कोशिश करे कहीं न कहीं वो अपने रवानगी में उस अंदाज में पहुँच ही जाता है। और सच पूछें तो तो ये होना भी चाहिए। अब देखिये न अशोक जी की चकल्लस में, अलोक जी के पुराण में और अपने उड़नतस्तरी जी की चुटकियों में हास्य व्यंग्य होता है मगर ये उनकी शैली ही है जो उनकी पहचान बन गयी है और हमारे मुंह का स्वाद भी। हालाँकि ऐसा स्वाभाविक रूप से ही होता है, मगर कुछ लोग बिल्कुल ऐसा लिखते हैं जैसे बेमन से लिख रहे हों या फ़िर ऐसा की की कहीं से बिल्कुल नकल मार कर टीप दिया हमारे झेलने के लिए , जानते हैं इसका नतीजा क्या होता है, बिल्कुल तत्वहीन और नीरस लगता है वो सब कुछ। नहीं जरूरी तो बिल्कुल भी नहीं है की आप भी दूसरों की देखा देखी कुछ नया और बदला हुआ करने की चाहत में अपने स्तर और शैली के साथ कोई नया प्रयोग या खिलवाड़ करें।

ब्लॉग का स्वरुप/ साज सज्जा :- इसका सीधा सा मतलब है ,की जो आँखों को सुंदर लगता है, वो मन को भी भाता है । यानि जो ब्लॉगर अपने ब्लॉग को सजाना संवारना जानते हैं , उन्हें निश्चित रूप से ये कोशिश करनी चाहिए की चाहे थोड़ी मेहनत ज्यादा करनी पड़े , मगर ये जरूरी है, यहाँ दो बातें और कहना चाहता हूँ। एक तो ये की जो भी महानुभाव या गुरूजी लोग ये कला जानते हैं वे हम जैसे लोगों को भी सिखाएं, और जो मेरी तरह अनाडी हैं वे एक काम तो कर ही सकते हैं की कम से कम तम्प्लेट अच्छा सा चुनें, कई लोगों तो ऐसा तम्प्लेट चुन रखा है की ब्लॉग खुलते ही सिर्फ़ धुंधला और काला दिखता है.और हाँ यदि आसान हो और मन करे तो थोड़ा बहुत परिवर्तन भी करते रहे, अजी अपनी नयी नयी फोटो ही लगा दें, अचा लगेगा ये बदलाव आपको भी।

पोस्ट करने का समय :- जानते हैं, ये ब्लॉग्गिंग का सबसे महत्वपूर्ण नुस्खा है। मैं सोच रहा था की इस पोस्ट को यहं भारत में रहते हुए में किसी रविवार की सुबह पोस्ट करूंगा। सीधा सा कारण है, मेरे अनुभव के हिसाब से ये सबसे उपयुक्त दिन और समय है किसी पोस्ट के लिए , खासकर यदि आप हिन्दी में ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं तो। दरअसल होता ये है की , सुबह या दिन के प्रारम्भिक समय में जब बी एपी कुछ पोस्ट करेंगे तो तो ज्यादा समय तक लोगों पाठकों की नज़र में रहेगा, क्योंकि अग्ग्रीगातोर्स, या संकलकों की एक सीमितता है पोस्ट्स को दिखने की और स्वाभाविक रूप से जितना ज्यादा समय तक पोस्ट दिखती रहेगी उतने ज्यादा लोगों के पढने की सम्भावना बनी रहती है, वैसे तो जब आपको पढने वाले नियमित पाठक मिल जायेंगे तो ये सब बात मायने नहीं रखती हैं, किंतु नए ब्लोग्गेर्स को चाहिए की वे निश्चित रूप से दिन के या सुबह अपनी पोस्ट को प्रकाशित करें।

चलिए फिलहाल इतना ही आगे की बातें भविष्य में, यदि कुछ कहना , बताना चाहे तो स्वागत है .

13 टिप्‍पणियां:

  1. what is अग्ग्रीगातोर्स

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  2. ramesh jee aggregators yani ve chittha sankalak jo aaoko chitthe ko ek jagar kheench kar laate hain, jaise, chitthajagat, blogvani, narad, aksharvani, hindi blogs adi.

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  3. जानकारी के लिए आभार

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  4. आपसे सहमत हूं। यह शीर्षक ही है, जो इस आपाधापी में आप को रोक कर पढ़ने को प्रेरित करता है।

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  5. अरे वाह.. ये तो मेरा ही शीर्षक था "बकवास है इसे तो बिल्कुल न पढ़ें" आप इसका लिंक भी दे देते तो कुछ पाठक आपके यहां से भी पहूंच जाते.. :)
    Just Kidding.. :)

    वैसे नये चिट्ठाकारों के लिये आपका यह लेख बहुत बढिया है..

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  6. अजय भाई

    आपकी सजगता और लोगों को सलाह देकर आगे लाने का कार्य साधुवादी है. मेरी बधाई.

    शैली की मौलिकता का बहुत अहम स्थान है, यह आपने बिल्कुल ए क्लास की सलाह दी.

    अगर अन्यथा न लें तो आपकी सलाह में एक हल्का सा फेर बदल करुँ (अनुभव के आधार पर :))

    सुबह सुबह ५ से ७ बजे के बीच पोस्ट करने का सबसे अच्छा समय है किन्तु शनिवार/रविवार को छोड़ कर. ५०% से ज्यादा लोग सोमवार से शुक्रवार दिनभर से लेकर रात तक अलग अलग समय सक्रिय रहते हैं. कुछ शायद कनेक्शन और कम्प्यूटर के आभाव में सिर्फ दफ्तर से भी देखते हों, मगर यही मेरा अनुभव है.

    उदाहरण के लिए अगर आपके पास ११ लोग आते हैं-या ११ कमेंट आते हैं तो उसमें से सुबह ६ बजे से शाम ५ बजे के बीच ५ और ५ से रात ९ बजे के बीच २ और उसके बाद रात में ३ और फिर कभी भी १ का अनुपात आता है. ऐसा मेरा अब तक अनुभव है.

    आशा है आप मेरी बात को एक मित्रवत सलाह ही लेंगे. आपकी बात काटने की तनिक भी मंशा न थी.

    बहुत शुभकामनाऐं. ऐसे ही जारी रहें.

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  7. अजय जी लेख और लेख मे दी गई सलाह दोनों ही बहुत अच्छी है न केवल नए ब्लॉगर के लिए बल्कि पुराने ब्लॉगर के लिए भी । :)

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  8. aap sabkaa bahut bahut dhanyavaad.pd jee , meri yahee to museebat hai ki main link waigerh jaisee takneekee baatein nahin jaantaa. udantashtaree jee, mahaaraaj aap to blogging ke encyclopedia hain isliye jaahir see baat hai ki aapkaa anubhav mere liye to akaatya hai, bilkul durust farmaayaa aapne sir jee bachchon kaa dhyaan yun hee rakhte rahein.mamata jee bahut dino baad aap aayee achha laga.

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  9. blogging par mere irshdaat padhna chahenge ?...aapki baate to technical hai, maine kuchh mazahiya andaaz mein kahi hai..

    बलागियात-3
    चलते-फिरते ब्लॉग बनते है,
    गिरते-पड़ते ब्लॉग बनते है,
    कुछ कहो तो ब्लॉग बनते है,
    चुप रहो तो ब्लॉग बनते है।

    बन सके तो ब्लॉग लिख डालो,
    सारा अच्छा ख़राब लिख डालो,
    अपने मन की किताब लिख डालो,
    ख़ुद ही अपना हिसाब लिख डालो।

    तुम जो चूके तो कोई लिख देगा,'
    लेने वाला' तो तुम को क्या देगा,
    जो छुपानी है बात कह देगा,
    जग हसाई की बात कह देगा।

    लिख नही सकते कोई बात नही,
    अब दवात-ओ-कलम की बात गई,
    दब के अक्षर उभरते है अबतो,
    है ज़माना नया है बात नई
    पढ़ना अक्षर भी हमको न आवत,
    कोनू स्चूल को भी न जावत,
    छोड़ दो अब मजाक ओ भय्या,
    हमसे अच्छा ब्लॉग का पावत?
    -मंसूर अली हाश्मी
    Posted by Mansoor Ali at 7:08 AM

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  10. aur bhi hai....

    ब्लागियात -१
    आत्म-मंथन टाइटल में मैंने ब्लॉग को हलके-फुल्के परिभाषित किया था. थोड़ा विचार किया तो कई पहलू सामने आए. क्यों न हम इस विचार-धारा को ब्लागियात कह कर पुकारे ? यह भी एक द्रष्टिकोण बन चुका है अपनी बात ' जस की तस्' कह देने का. एक नयी शब्दावली भी जन्म ले रही है, blogism की ...ब्लागियात की!ब्लॉग में प्रयुक्त अक्षर 'बी', 'ल' और 'ग' से छेड़-छाड़ की है....जस का तस् लिखे देता हू ,एडिट बाद में करता रहूँगा :-
    बे-लाग हो ब्लॉग तो लोगों को लगेगा,
    उतरेगा यूं गले की निगलते ही बनेगा,
    बातें गुलाब की हो या गल-बहियों की रातें,
    ग़ालिब भी हमें एक ब्लॉगर ही लगेगा।

    क हाँ-कहाँ पे छुपा है ब्लॉग धूँदेंगे,
    जहाँ-जहाँ भी छपा है ब्लॉग धूँदेंगे,
    महक की सिम्त बढेंगे गुलाब धूँदेंगे,
    छुपे हुए कई रुस्तम जनाब धूँदेंगे !

    किसी ने धूंद लिया इसको अपने ही दिल में,
    किसी को तिल में मिला है किसी को महफ़िल में,
    किसी ने पहाड़ भी खोदा तो कुछ नही पाया ,
    किसी ने पा लिया बस एक छोटे से बिल में।

    किसी को जड़ में मिला है किसी को हलचल में,
    किसी ने नैन में पाया किसी ने dimple में,
    किसी को जल में मिला है किसी को जंगल में ,
    किसी को युग भी लगा कोई पा गया पल में।
    -मंसूर अली हाश्मी
    Posted by Mansoor Ali at 6:50 AM

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  11. bas.... ek aur....

    pls. matraao ki galti sudhaar kar padhe[blogger par vyang karo to fonts bhi saath nahi dete!]

    बलागियात-4
    *टेक्नीकल ब्लॉग बनते है,
    **मेकेनिकल बनते है,
    #पॉलिटिकल ब्लॉग बनते है,
    ##हिस्टोरिकल ब्लॉग बनते है ।

    *टेक्निक को सरल बनता ब्लॉग,
    **कागजों पर मशीन बनता ब्लॉग,
    #झूट-सच को उलट-पलट करता,
    ## 'इतिको 'हास'[य] में बदलता ब्लॉग।


    सच का पैमाना ले के बैठेंगे,
    झूट को बर्फ ही से तोलेंगे,
    छोड़ कर हम तो north-south को,
    सिर्फ़ अपनी ही पोल [pole] खोलेंगे।

    न्याय का दम तो हम भी भरते है,'
    दाल-रोटी' से प्यार करते है,
    'भडास' हम भी निकाल ही लेंगे,
    इसी पर्यावरण में पलते है।

    कुछ विषय का यहाँ नही तोता ,
    जो लुढ़क जाए बस वही लोटा,
    डर कहाँ अब रहा है 'रद्दी' का,
    सबसे ज़्यादा ही चल रहा खोता ,
    आओ बैठे , ज़रा सा गौर करे,
    पहले हम ख़ुद को ही तो bore करे,
    छाप ही जाएगा नाम चित्र सहित,
    पीछे चिल्लाये कोई शोर करे!
    नर को नारी बनादो चलता है,
    बिल को खाई बनादो चलता है,
    तिल से हम ताड़ तो बताते है,
    राइ से हो पहाड़ चलता है।
    मंसूर अली हाश्मी
    [नोट: "टी" की गलती सुधर करे, फोंट्स से मदद नही मिल पाई थी]
    Posted by Mansoor Ali at 7:40 AM

    जवाब देंहटाएं
  12. mansoor miya,
    sach kahun to main to aapkaa fan ho gaya , mujhe to aapkee tippnni apnee post se bhee behtar lagee, aapki shailee to kamaal kee hai.

    जवाब देंहटाएं
  13. aapki daad ke liye shukriya, blogging par kuchh aur bhi kaha hai,
    pesh hai aapki khidmat mein:-

    "आत्म-मन्थन"

    "उधार का ख़्याल"* है?
    नगद तेरा हिसाब कर्।
    भले हो बात बे-तुकी,
    छपा दे तू ब्लाग पर्।
    समझ न पाए गर कोई,
    सवाल कर,जवाब भर्।
    न तर्क कर वितर्क कर,
    जो लिख दिया किताब कर्।
    न मिल सके क्मेन्टस तो,
    तू खुद से दस्तयाब* कर्।
    तू छप के क्युं छुपा रहे,
    न 'हाशमी' हिजाब* कर्।

    -मन्सूरअली हाशमी

    *1-उधार क ख़्याल =Borrowed thought
    *2-उपलब्ध
    *3-पर्दा
    Posted by Mansoor Ali at 9:38 AM 3 comment

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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