शनिवार, 25 सितंबर 2010

साल की इकलौती पोस्ट जो श्रीमती जी पढती हैं ...मिसेज झा ....हैप्पी जन्मदिन टू यू ..




पिछले साल ..अपनी धर्मपत्नी का जन्मदिन भूल जाना ..वो भी अगले दिन बारह बजे तक ..जैसा अपराध हो जाने के बाद इस बार तो मैं साल के शुरू से ही तैयार था कि ..अबकि तो चाहे ....जनवरी के बाद डायरेक्ट २६ सितंबर भी आ जाए तो भी मैं अपनी भागदौड में कोई कमी नहीं रखूंगा .....सारी कसर पूरी कर ही दूंगा । फ़िर इससे अलग ..एक खास बात ये कि ...घर में मेरी पोस्ट की इकलौती पाठक ...या कहूं कि ..सिर्फ़ एक ही पोस्ट की पाठक के लिए ..मुझे कुछ खास करना ही था ....भई आखिर ..पूरे साल ब्लॉगिंग करनी है कि नहीं ..जैसे ही ताना मिलेगा ..फ़टाक से ये पोस्ट सामने धर दूंगा कि ...देखो जी ..ऐसा नायाब तोहफ़ा और कोई दे सकता है क्या ??? बस झगडा खतम ..और ब्लॉगिंग फ़िर शुरू ...अरे नहीं नहीं यार ..ऐसी बात नहीं है ..।


आज यानि २६ सितंबर को ...श्रीमती झा जी का जन्मदिन आ पहुंचा है ...तो कुछ भी आगे लिखने से पहले कह दूं कि ...मिसेज झा ..वैरी हैप्पी जन्मदिन टू यू.....। आज सिर्फ़ उनकी बात ....तो कहां से शुरू करूं ..। जब ऑफ़िस में पहली मुलाकात हुई थी ..मुझे तो मुझे ..शायद आसपास के हमारे किसी भी सहकर्मी को दूर दूर तक ये अंदाज़ा भी नहीं था कि ....ये भविष्य का ..बिहारी-पंजाबी ...कंबीनेशन वाला डेडली कौंबो पैक बन जाएगा ....मगर होना था तो हो गया ...। हालांकि ..अंक पंडितों ने बताया कि ..ओह आठ और नौ ..न जी न ..खूब भारत पाकिस्तान ...होगा ..हमने कहा ...छोडो यार ..हम दोनों का ही मैथ ..कमजोर है । इसलिए खूब पटरी जमेगी ..और देखिए क्या जम रही है ।

कुछ खास बातें ये कि , साफ़गोई इतनी कि , कई बार , बल्कि बहुत बार , उन्हें तो उन्हें , मुझे खुद भारी पड जाती है ...,.मगर कह दिया न ..तो कह दिया बस । जिसे अपना मान लिया वो खुदा ......बांकी पूरी दुनिया रहे जुदा तो जुदा ......अब और क्या कहूं सिवा इसके ....

( श्रीमती जी को गिफ़्ट देते हुए हम ...... )


आज क्या दूं तोहफ़ा तुम्हें ,
सिवाय ये कहने के , कि ,
साथ पाओगी मुझे अपने ,
जीवन के हर धूप छांव में ,
बरसात में भीगते हुए भी ........

साथ पाओगी मुझे तुम ,
चलते रुकते हुए उन कच्ची
पगडंडियों और पक्की सडकों पर भी ,
और मिलेंगे मेरे कंधे तुम्हें ,
थक कर सुस्ताते के लिए भी .....

साथ पाओगी मुझे अपने उन ,
तमाम क्षणों पलों में , जब ,
समय लिख रहा होगा , इतिहास ,
साथ साथ चलने वाले दो हमराहों का ,
साथ पाओगी अपने वक्त बिताते भी .......


तो ..आज के दिन ..मैं ...आयुष और अदिति ...और ये पूरी कायनात कह रही है ...मिसेज झा ..हैप्पी जन्मदिन टू यू ......


गुरुवार, 23 सितंबर 2010

ब्लॉगिंग में तीन साल पूरे........अब करूंगा " ब्लॉग बवाल "शुरू .........अजय कुमार झा



ब्लॉगिंग जब शुरू की थी .....तो वो एक खूबसूरत इत्तेफ़ाक था .....उसके बाद ये एक शौक बनता गया .....और कब धीरे धीरे ये एक आदत में तब्दील हो गया ....ये पता ही नहीं चला ...। जो सफ़र कभी एक ब्लॉग से शुरू हुआ था ...वो आज कुल उन्नीस ब्लॉग पर पहुंच गया है ..। हालांकि मुझे इस बात के कई बार ..मित्रों की नसीहत मिल चुकी है कि ब्लॉग एक ही होना चाहिए ....मगर करूं क्या ..जब इस खोपडे में चौबीसों घंटे इतनी खुराफ़ात होती रहती हैं कि ...यदि सिर्फ़ एक ब्लॉग रखूं तो ...चौबीस घंटे मुझे खुद अपनी ही पोस्टें दिखाई देती रहेंगी । तो मैं बता रहा था कि ...चलते चलते आज ....उस पडाव पर भी पहुंच गए कि ...राह के पत्थर पर लिखा मिला है कि ...आपके तीन साल पूरे हुए ...अब आगे बढें ।

इस बीच ........ब्लॉगिंग में नियमित हुआ तब से ..ब्लॉगिंग का असली स्वाद मिला । और यकीन मानिए ..मुझे तो इसमें हर फ़्लेवर का मजा मिल चुका है .........। बोरे बोरे भर के मीठा ....कनस्तर भर भर के खट्टा ...और कट्टा भर भर के ...नमकीन भी ..कई बार कसैला भी ......मगर कहते हैं न कि ....कभी कभी ....नीम और करेला का कसैलापन भी चखना चाहिए ताकि ...स्वास्थय का संतुलन बना रहे । और ईश्वर की कृपा से अब तक ये संतुलन बना ही हुआ है...आगे उसी प्रभु की कृपा । इस सफ़र में आप सब साथियों का भरपूर साथ और स्नेह मिला ....और अब भी मिल रहा है । कारवां बढते बढते कब इतना बडा हो गया ..इसका तो सिर्फ़ समय ही गवाह है । जहां तक ब्लॉगिंग में सक्रियता की बात है , तो बेशक इस ब्लॉगिंग ने मेरे बहुत से नियमित आदतों पर फ़र्क डाला , कई आदतों को बदल भी डाला ..और कई नई आदतें डल गई ....मगर इसके बावजूद ..ब्लॉगिंग को मैंने उस कडी के रूप में अपना लिया ...जिसने मुझे इन सबसे कहीं न कहीं जोडने में सहायती ही की ।

इस बीच मुझ से जुडे आंकडे जब मैंने खुद टटोले तो वो भी कुछ कमाल ही निकले ...अब तक कुल एक हजार तीन सौ से अधिक पोस्टें ..वो भी सिर्फ़ अपने ब्लॉग्स पर ..दिखा रहा है । मगर सब जानते हैं कि ..मुझे पोस्ट लिखने से ..कम से कम दोगुना आनंद ..तो जरूर ही टिप्पणियां लिखने में आता है । इन सबने कुल मिला कर ऐसा जाल बिछा दिया कि आज जब मैं गूगल सर्च पर खुद से जुडे परिणाम देखता हूं तो .......अजय कुमार झा के रूप में ...४,४९,००० और ५४,६०० परिणाम दिखाता है ..जबकि जागरण जंक्श्न आदि बहुत से मंचों पर मैं अजय कुमार झा १९७३ की आईडी से लिखता पढता हूं । इसका मतलब ये हुआ कि .....अपने नाम के साथ लगभग पांच लाख परिणाम देखता हूं ..तो लगता है कि ..इस अंतरजाल ने मेरे द्वारा बिताए गए ..एक एक मिनट का सबूत सहेज़ ..कर रख छोडा है ।

ब्लॉगिंग को हमेशा ही मैंने कुछ अलग रूप में देखा है ...सिर्फ़ टाईम पास मेरे लिए वो कभी भी न था और न ही रहेगा । अनेक प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रयास मैं पहले भी करता रहा हूं और अभी भी बहुत से प्रयास चल रहे हैं । इन्हीं प्रयासों के तहत आज मुझे आप सबको ये सूचित करते हुए बहुत खुशी हो रही है कि , यदि सब कुछ तय कार्यक्रम और योजनानुरूप हुआ तो बहुत जल्दी ही " ब्लॉग बवाल " नाम की एक पत्रिक , ये पाक्षिक होगी , मासिक होगी या साप्ताहिक मैं नहीं जानता अभी , मगर वो आप सबके सामने होगी .जिसका कवरपेज , से लेकर एक एक पेज , फ़ोटो, और सामग्री तक सिर्फ़ और सिर्फ़ हिंदी ब्लॉग पोस्टों पर आधारित होगा । जहां तक इनके मानदेय की बात है तो ..पहले ही लेखक से उसकी अनुमति ली जाएगी ..और चाहे नाममात्र के लिए ही सही मगर उन्हें पारिश्रमिक भी दिया जाएगा । शुरूआत में , सभी ब्लॉगर्स मित्रों को अलग अलग शहर में उसकी मुफ़्त पचास पचास प्रतियां भिजवाने की योजना है, जो वे अपने यहां मुफ़्त बंटवा सकें .... ताकि उसे लोकप्रिय बनाया जा सके ..। ये योजना अभी भविष्य के गर्भ में है ...मगर जल्दी ही आपके और इस दुनिया के नाम से "ब्लॉग बवाल "जरूर आएगा ।

साथियों का एक बार पुन: धन्यवाद । और इस अनोखी आभासी दुनिया में मुझे वास्तविकता की कहीं कोई कमी कभी भी नहीं दिखी । सब कुछ तो है यहां ..हम , हमारे अपने , पराए , दोस्त , अजनबी, ...और सारी भावनाएं भी ..प्रेम , स्नेह , आशीष, क्रोध , नारजगी ,अपनापन , गुस्सा, हंसी मजाक , हमारे उत्सव , हमारा मातम , हमारी प्रसिद्धि , हमारी बदनामी भी ,..सब कुछ तो है यहां ..क्या नहीं है ..तो फ़िर ये जो भी दुनिया .....आभासी या वास्तविक ..ये दुनिया मेरी है ...हां मेरी है ..और मुझे बहुत पसंद है ॥

जमीदारी ढाबा .....शाने पंजाब .....जालंधर की बारिश....माता अन्न्पूर्णा का मंदिर ....अड्डा होशियारपुर की रसमलाई ....एक सफ़र ऐसा भी


उस दिन जब इस पोस्ट को प्रकाशित किया तब कुछ तकनीकी गडबडियों के कारण सब दुरूस्त नहीं हो पाया इसलिए , इस कडी में ..पंजाब के सफ़र की अगली और आखिरी कडी पढिए





सफ़र मजे में कट रहा था ....साले साहब ने अपने और बच्चों की पसंद के गाने मजे में लगा रखे थे और एसी की ठंडक को चला बंद करके ....उसे अनुकूल किया जा रहा था सोनीपत , पानीपत , कुरुक्षेत्र, खन्ना , सरहिंद आदि सब कुछ सरसराते हुए निकलते चले जा रहे थे ...या ये कहूं कि ये सब तो अपने स्थान पर ही थे ....हम ही सरकते जा रहे थे ....।सरहिंद के पास जाकर सबके पेट के चूहे इतनी जोर से ......आइटम डांस करने लगे कि ....साले साहब और हमने तय किया कि अब जो भी ढाबा मिले ...उसमें पेट पूजा हो ही जाए यहां मैं ये बात बताता चलूं कि इस रास्ते पर सडक मार्ग से जाते हुए मैंने एक बात नोटिस की , वो ये कि , आप चाहे जिस ढाबे पर रुक कर खाना खा लें , खाने का स्वाद आपको अच्छा ही लगेगा ....और फ़िर हमारी किस्मत देखिए ...कि हमें मिला भी तो कौन सा .............जमींदारी ढाबा सरहिंद में राष्ट्रीय राजमार्ग के बाईं तरफ़ ....हमें मिला ये जमींदारी ढाबा ...ठीक दैनिक भास्कर के दफ़्तर के दाईं ओर



वहां आलू के और पनीर के गर्मागर्म पराठों मक्खन के साथ , लस्सी का बडा ग्लास ..और उसके बाद दूध वाली चाय का ऑर्डर दिया गया देखते ही देखते सबने पराठे कैसे उडाए ये पता भी नहीं चला मैं अपनी आदत के अनुरूप अपने मोबाईल को काम पर लगा चुका था ...देखिए ...
(ढाबे में झूले /पालने में बैठे सारी बच्चा पार्टी )

इसके बाद धरती का हरा रंग और भी गहरा होता गया ...मौसम में मादकता को बढाने का काम किया ...धीमी तेज़ गति से होती बारिश ने .... अंबाला , लुधियाना और फ़िर जालंधर ..पहुंचते ज्यादा देर नहीं लगी पहले ट्रिप में हम अपने तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार कुल दो दिन रुके ...और कुछ घूमघाम के अलावा ज्यादा नहीं हुआ हां एक यादगार बात ये रही कि इस दौरान मेरा चेहरा बदल चुका था और फ़िर होशियारपुर में खिंचवाई हुई फ़ोटो आप पहले ही इस पोस्ट पर देख चुके हैं


अगली यात्रा इसके कुछ ही दिनों शायद नौ या दस दिनों बाद ही अचानक ही तब हुई जब पता चला कि श्रीमती जी कि नानी जी का स्वर्गवास हो गया इस बार फ़िर से कमान संभाली साले साहब ने और अगली सीट पर हमेशा की तरह मैं पीछे हमारी श्रीमती जी , हमारी सासू मां, और ससुर जी लगभग दो बजे शुरू हुई ये यात्रा बेहद थका देने वाली रही और रही सही कसर पूरी हो गई जब पहले ससुर जी की और फ़िर आगे जाकर मेरी भी तबियत खराब हुई ये शायद अवसर का भी असर था जो तन मन बोझिल सा महसूस कर रहे थे अगले दिन दाह संस्कार के बाद हमारी त्वरित वापसी हुई साथ ही ये भी तय हो चुका था कि ठीक कुछ दिनों बाद हमें दोबारा उनके श्राद्ध , क्रिया वैगेरह के लिए जाना है इस बार परिवार का पूरा कुनबा और वो भी बाकायदा रेलगाडी द्वारा


सुबह शाने पंजाब से निकलना था सो .एक बार फ़िर से वही सुबह की तैयारी साले साहब और उनके मित्रों को ये जिम्मेदारी दी गई कि वे हमें स्टेशन तक पहुंचा कर आएं ट्रेन में सफ़र के अपने बहुत पुराने अनुभव के कारण , मेरे ससुर जी और सासू मां किसी भी रेल यात्रा की कमान सीधा मेरे हाथों में थमा देतीं मसलन , कहां कैसे कब चलना है , कितना सामान लेना है ., आदि आदि इस बार सफ़र रेल से था , और शायद सुकून भरा भी हालांकि , इस बार एक अलग बात ये थी कि इस बार हमें पूरे रास्ते और फ़िर वहां भी तेज बारिश का सामना करना था मगर जिस एक बात ने मुझे थोडा हैरान किया वो ये कि , अपने नाम के मुताबिक .....शाने पंजाब ..कहीं से भी पंजाब का शान तो नहीं ही दिख रहा था उसमें और तो और लुधियाना जाते जाते तो प्रसाधन का पानी तक खत्म हो चुका था कुल पांच घंटे का रेल का सफ़र , सबके साथ इतना तेज बीता कि बस पता ही नहीं चला

रास्ते में हमें मिले चिंटू जी दो छोटे छोटे बच्चे .....अपने नन्हें नन्हें तन मन से छोटे छोटे करतब दिखाते उन दोनों बच्चों ने हमारे साथ वाले बच्चों की टीम के साथ जैसे पूरी सांठ गांठ कर ली कभी टोपी के साथ बंधी लंबी चोटी को गोल गोल घुमाते , कभी छोटी छोटे कलाबाजियां करते, हमारी बुलबुल की चहक तो उन्हें देख कर जैसे ....डोल्बी डिजिटल साऊंड में बदल गई थी मैं हैरान था कि , दो छोटे बच्चे बिना किसी के साथ इतनी दूर तक हमारे साथ चले आए उन्हें छोटी से अलग करने में हमें खासी दिक्कत आई क्योंकि बुलबुल अपने उन दोनों छोटे से अजीबो गरीब "भईया "को अपने साथ ही ले चलना चाहती थी ... हम जालंधर पहुंचे तो सीधे उस स्थल पर पहुंचे जहां क्रिया का आयोजन किया गया था

जालंधर के अड्डा होशियारपुर चौक के पास ही स्थित ,.......माता अन्नपूर्णा मंदिर ...आसपास कई मंदिरों से घिरा हुआ ..एक बडे से अहाते में स्थित ....एक दम शांत ..शीतल ..और सुकून भरा मंदिर वहां पहुंच कर ऐसा लगा मानो ....शहर के बीचों बीच कोई शांतिवन या फ़िर कि गुरू रविंद्रनाथ टैगोर का आश्रम निकल आया हो देखिए





इस अन्नपूर्णा मंदिर की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं लगी


एक संत जो यहां रहा करते थे ..एक बार उन्होंने अपने एक साथी से कहा कि वे आने वाले पूर्णिमा को .....आसपास के कुछ ब्राह्मणों को जीमने के लिए न्यौता दे दें .....वो सेवक जाने किस धुन में था कि पूरे जालंधर को न्यौता दे आया वापस कर जब उसने ये बात संत को बताई तो उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं पूर्णिमा के दिन जब सब भोजन करने आए तो संत ने कहा कि देखो मैं माता के पास बैठा हूं ..उनके आंचल के भीतर कोई झांकेगा नहीं , जिस खाद्य पदार्थ की जरूरत हो मांगते जाना ..और उस रात पूरे जालंधर ने जाने कैसे , किस चमत्कार से भोजन किया


शाम को टहलते हुए मैं अड्डा होशियारपुर चौक की तरफ़ बढा तो देखा कि एक मिठाई की दुकान है ..शायद बंगाली स्वीट्स के नाम से ....मगर उस दुकान की रसमलाई ..जिसके लिए दुकानदार ने अलग से लिख कर लगा रखा था ..पहले उसीने मुझे आकर्षित किया और फ़िर जिस तरह से उसने पूरे बडे से टब के बराबर बरतन में भर के रसमलाई रखी हुई थी ...तो उसमें से मैं दो प्लेट कम करने से खुद को नहीं रोक सका


वापसी अगली शाम को थी ...वापसी में श्रीमती जी लग गईं अपनी पत्रिका पठन में बच्चे लग गए अपने खेल में ....और मैं ......






मैं सोच रहा था ....ओह ये यात्रा जाने अब कब तक यादों में बसी रहेगी ..............................




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