गुरुवार, 9 अक्टूबर 2008

बेचारे रावण को भी डेंगू हो गया.

हर साल की तरह इस बार भी रामलीला की समाप्ति पर हम सब कलाकार और कालोनी के सभी मेम्बरान लोग इकठ्ठा हो कर ये विचार विमर्श करने लगे की कल रावण दहन को कैसे सफल किया जाए। यूँ तो रावण दहन को सफल या असफल करने का कोई औचित्य मेरी समझ में नहीं आता क्योंकि जब से मैं पैदा हुआ हूँ छब्बीस जनवरी की परेड और रावन दहन हमेशा एक जैसी ही लगती है और भरपूर सफल रहती है। रामलीला में अपने महत्त्वपूर्ण रोल को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद ( यहाँ मैं आपको बताता चलूँ की राम लीला से मेरे प्रेम बहुत पुराना है और मेरे विश्व स्तरीय अभिनय की बुनियाद यही है , और अब तो भविष्य भी यही है, जब में रोल पाने पहुंचा तो उन्होंने मुझे शूर्पनखा का रोल ऑफर किया , कहा की यूँ भी आप मोहल्ले की नाक कई बार कटवा चुके हो तो शूर्पनखा के लिए बिल्कुल नाचुरल रहोगे, मैंने कहा मेरी राजकुमारों वाली पर्सनालिटी है, तो उन्होंने कहा की ठीक है तो फ़िर शत्रुघ्न बन जाओ , पूरे रामलीला में एक भी डियलोग रटने की जरूरत नहीं रहेगी। मैंने कहा की लानत है यार, इसमें क्या टैलेंट निकल कर बहार दिखेगा, चलो राम जी की सेना का कोई वीर सेनापति बना देना। तो फईनाली उन्होंने मुझे जटायु का रोल दे दिया क्योंकि उसके कोस्तुम को पहन बांकी सबको खुजली हो जाती थे ) , मैं भी कहाँ आप लोगों को अपनी कहानी सुनाने लगा, मीटिंग की तैयारी में लग गया गया।

हम लोगों ने बातचीत शुरू ही की थी की अचानक देखा तो एक बड़ा सा रावण का पुतला, अपने साथ मेघनाद और कुम्भकर्ण को लिए हुए चला आ रहा है । हम हैरान थे , वह ये क्या टेक्नोलोजी है भाई , अब रावण ख़ुद ही चल चल कर जलने के लिए पहुँच जायेंगे। परन्तु मेरी खुशी थोड़ी देर ही रही। रावण ने पास पहुँचते ही कहना शुरू किया, वो भी मरियल सी आवाज में, " देखिये आप लोग ज्यादा हैरान परेशान न हों , मैं तो सिर्फ़ ये बताने के लिए आज रात को ही आ गया हूँ की कल मैं जलने के लिए नहीं आ पाउँगा, क्योंकि पिछले बीस दिनों से पार्क में पड़ा था और मच्छरों के काटने के कारण मुझे डेंगू मलेरिया बुखार हो गया है, इस बार रावण दहन को आप लोग अगले साल तक के लिए एक्सटेंड कर दो। वैसे जब मैं मीटिंग में पहुँच ही गया हूँ तो और भी कुछ बातें हैं जो मैं कहना चाहता हूँ। ये आप लोग इतने सालों से मेरे पिछवाडे और मेरी बगलों में पठाखे घुसेड घुसेड के मुझे क्यों तपा तपा कर फूंक डालते हो। भाई मारना ही है तोऔर भी कई सारे तरीके हैं, पता है इस तरह मेरे मुंह , पेट और पता नहीं कहाँ कहाँ आग लगाने और लगातार लगाते रहने के कारण मुझे गैस की प्रॉब्लम हो गए है। एक और बात यार तुम लोग अपने फैसन वैसन में तो खूब बदलाव ला रहे हो, जितने भी टी वी चैनल पर रामायाण धारावाहिक आ रहे हैं सब में तुम लोगों ने सुग्रीव , जामवंत और जटायु तक को ग्लेमर में ढाल दिया एक मेरा ही गेट अप, बरसों से वैसा ही चला आ रहा है। इस पार आप लोग कुछ गौर फ़रमाएँ। और हाँ कभी कभी एक्सक्लूसिव प्रयोग के तौर पर कोई जिंदा रावण जलाओ, अब तो इसके लिए आपको म्हणत करने की भी जरूरत नहीं है, कई तो इसी मीटिंग में बैठे हैं। यदि आप लोगों ने इन बातों को सीरियसली नहीं लिया तो याद रखना की हम सब भी आन्दोलन कर सकते हैं।

रावण की धमकी से डर कर हम सब चुप चाप घर आ गए, अब सोच रहे हैं की रावण दहन को स्किप करके सीधा राम की अयोध्या वापसी पर पहुँच जाएँ।

आप सबको दशेहरा की बधाई...

3 टिप्‍पणियां:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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