मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008

नंगपने के लिए कितने बेताब हैं सब

यदि आज से सिर्फ़ एक दशक पहले ही किसी को ये कहा जाता की एक दिन ऐसा भी आयेगा, जब यहाँ भारतीय समाज में भी समलैंगिकता के अधिकारों के लिए, लीव इन रिलेशनशिप के लिए कानून की , नहीं उसे वैधानिक रूप देने के के लिए पुरजोर आवाज़ उठेगी तो शायद किसी को जल्दी से विश्वास नहीं होता। मगर ये हमारी तरक्की का ही कमल है की अब ये सब सोचने समझने के लिए हमें विकसित सभ्यता और समाज का मोहताज़ नहीं होना पडेगा। सब कुछ यहीं चल रहा है, सूना है की जल्दी ही पत्नी की अदला बदली , और पता नहीं क्या क्या भी देखने सुनने को मिल सकता है। हम किसी से कम हैं क्या।

समलैंगिकता और लिव इन रिलेशनशिप जैसे मुद्दों पर बेशक बहुत सी बातें होती हैं। तर्क और वितर्क हमेशा की तरह दोनों ही तरफ़ से दिए जाते हैं। मुझे ये नहीं पता की इन मांगों या अधिकारों का परिणाम क्या होने वाला है। मगर कुछ चीज़ें जो एक आम आदमी, खासकर जब वो भारत का हो, ये भारत वाली बात मैं सिर्फ़ इसलिए कह रहा हूँ की इस तरह की कोई भी बात, कोई भी परिवर्तन, कोई भी क़ानून बनाने और बदलने वाले ये हमेशा ही भूल जाते हैं की ये भारत है, और ये तो मैं कटाई नहीं मानूंगा की यहं भी सब कुछ वैसा ही बदल चुका है जैसा पश्चिमी देशों में, क्या मुंबई, दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई, बंगलौर ही मात्र भारत है, नहीं न असली देश तो वो है जो अब भी बाढ़ में बह जाता है, भिख्मारी में मर जाता है, ठण्ड हो या गरमी , दोनों ही उसके दुश्मन हैं, क्या उस देश के लोगों का मानसिक स्तर सचमुच उस जगह पर पहुँच गया है जहाँ पर उसे समलैंगिकता एक प्राकृतिक व्यवहार है, या की लिव इन कोई अनोखा काम नहीं है समझाया जा सकता है। प्रश्न ये किया जाता है की उनकी बात कौन कर रहा है तो फ़िर जरूरत क्या है इसे वैधानिक रूप देने की।
मुझे याद है की कुछ समय पहले एक मांग उठे थी की सभी यौन कर्मियों को रजिस्टर्ड कर देना चाहिए इससे उनको एक पहचान मिल जायेगी और शायद उनका शोषण कम हो सकेगा, मगर इसकी कौन गारंटी देता की इस का ग़लत फायदा उत कर जबरन मासूमों को इस दलदल में नहीं धकेला जायेगा। वैसे यहाँ पर इस तरह की मांग पर कोई अस्चर्या नहीं होना चाहिए क्योंकि आंकडे बताते हैं की यहाँ मेट्रो में एक महीने में उतने तलाक हो रहे हैं जितनी शादियाँ भी नहीं देखने को मिलती।
इससे अलग एक मोटी बात ये की कोई भी नियम या परिवर्तन सिर्फ़ दूसरों पर किया देखा जाए तो यकीनन सबको मज़ा आता है पर यदि आज भी कोई किसी से कहे की उसकी बहन या बेटी लिव इन अपनाने जा रही है तो शायद ये उतना आसान नहीं होगा जितना की बताया दिखाया जा रहा है। राखी सावंत अक्सर ये बात कहती है की उनके पिटा जो मुंबई पुलिस में एक अधिकारी हैं ,ने उन्हें छोड़ दिया, तो वो पिता क्या करे ये गला फाड़ फाड़ कर कहे की देखो जी ये नंग धड़ंग , घूमती फ़िर रही है ये मेरी ही सुपुत्री है।

मैं पहले भी कह चुका हूँ की या तो नंगपने के लिए बिल्कुल ही तैयार हो जाइए , या अब भी संभल जाइए, अन्यथा ये अधपकी खिचडी जहर बन जाने वाली है सबके लिए.

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही कहा है आपने.शत प्रतिशत सहमत हूँ.पश्चिम में जहाँ इस तरह के खुलेपन/नंगेपन को वैधानिक मान्यताएं मिली हुई हैं वहां इन सब ने लोगों की व्यक्तिगत जीवन को कितना खोखला और रसहीन बना दिया है की वे भागकर भारतीय संस्कृति के तरफ़ ही उन्मुख हैं ,यह बात लोग नही देख पा रहे.
    आपने बहुत अच्छी बात कही है,हमें इसका पुरजोर विरोध करना ही चाहिए.

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  2. बहुत सही कहा है आपने.शत प्रतिशत सहमत हूँ.पश्चिम में जहाँ इस तरह के खुलेपन/नंगेपन को वैधानिक मान्यताएं मिली हुई हैं वहां इन सब ने लोगों की व्यक्तिगत जीवन को कितना खोखला और रसहीन बना दिया है की वे भागकर भारतीय संस्कृति के तरफ़ ही उन्मुख हैं ,यह बात लोग नही देख पा रहे.
    आपने बहुत अच्छी बात कही है,हमें इसका पुरजोर विरोध करना ही चाहिए.

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  3. kisi bhi kanun mae koi bhi badlav tabhie laaya jata haen jab wo kanun vartmaan samay ki maang kae hissab sae obselete ho gayaa hota haen .
    aap kewal aur kewal apmaa sochtey haen laekin sarkaar larger scale par ho rahee anaetiktaa ko deakh rahee haen

    jab aap kisi kae saath saaririk sambandh banaa saktey haen bina shaadi pati aur patni kyon nahin kehlaa saktey

    kyaa saat phare laene sae hii pati aur patni ban jaatey haen
    nahin shaadi mae daehik sambandho kaa bahut mehtav haen aur aap kewal ek sae hii daehik sambandh rakhey is liyae yae kanun banayaa gayaa

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  4. We the Indians are most sexually depressed community on the face of this planet due to so called religious teaching from many centuries, though we have all in our text and practiced it in the past very gloriously. Those were the days when we were marching toward a natural growth of civilization. this process was obstructed and vested interest did not allow for any natural growth. What we see in west in pure natural and we lambast them in the name of our so-called Sanskriti.India is changing because of the change of mode of productions. We have to witness full fladged indsutrial development and soon we will close all our outdated practices in our life. Those, who are not comfortable with it,must find some place to preserve themself. its natural course of development. Change must be accepted and it will not take anybody's permission, including Mr. Jha

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  5. aap sabke mat aur vichaar ke liye dhanyavaad. haan magar main nari ke vichar jaan kar thoda hairaan hua, bhai aise kaanoono mein yadi ek pratishat nuksaan hai to kiskaa hai , mere khayaal se sirf mahila kaa, aur ho saktaa hai ki ye sirf mera nazariyaa ho magar main bata doon ki main usee adaalat mein kaam kartaa hoon jahan in kaanoono kee vyaakhyaa kee jaatee hai. rahee baat hamaaree shikhsaa aur sankaaron kee to mujhe nahin lagtaa ki usmein kahin koi galtee huee hai aur main chaungaa ki meri santaan bhee wahee sanskaar paaye.

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  6. इंसान और इंसान में विषमता तो मिट नहीं पाई, इंसान और जानवर में विषमता मिटती नजर आ रही है. वधाई हो प्रगतिशील इंसान को.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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