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शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

लगभग ५० पोस्ट, ५०० टिप्न्नियाँ, १५०० ब्लोग्स दर्शन, .महीने भर की ब्लॉग ड्यूटी



जब इस ब्लॉग्गिंग में घुसे ..तभी से न जाने कितने अरमान पैदा हो गए ..अरे नहीं नहीं जी...वो साहित्यकार कहलाने वाले नहीं...वो तो बड़े स्वाईन फ्लू टाईप के अरमान होते हैं...मेरे तो जो भी थे ...सब एक ब्लॉगर की आत्मा से जुड़े हुए....यार अब भगवान् के लिए ये मत कहना कि ..हिंदी ब्लॉगर की आत्मा भी नहीं होती...क्यूंकि मैं जब भी हिंदी ब्लॉग्गिंग और हिंदी ब्लोग्गेर्स की बात करता हूँ ...कोई न कोई ठुड्डे मार के कहता है ..अबे हिंदी ब्लॉग्गिंग में ये तो नहीं होता ...और जब हिंदी में नकद का ही कोई जुगाड़ तुम सबसे नहीं होता ...तो आत्मा कहाँ से आ गयी.....मेरे मतलब पूछने पर कहते हैं ...आत्मा ..परमात्मा का ही एक तत्त्व है..और परमात्मा ..नकद नारायाण के बिना कहाँ हैं..सो हे भक्त ..फालतू की बहस छोडो और आगे बढो ...तो मैं कह रहा था कि...जितने अरमान ब्लॉगर वाले थे वो सब जाग गए...ऐसे जागे कि कमबख्त खुजली की तरह बढ़ते ही गए ....

कभी पोस्टों की संख्या बढाने का ...तो कभी ..टीपते जाने का....कभी पसंद सूची में ...चमगादड़ की तरह ..हमेशा ही उल्टे लटके रहने का.....कभी अपने उड़नतश्तरी जी की तरह ....सारी पहेलियाँ .....सरे इनाम शिनाम ...एक झटका में जीत जाने का...और क्या क्या बताएं कैसे कैसे अरमान जागे ...कुछ तो पूरे हुए भी ..कुछ पूरे हो जायेंगे ..इसका भी पूरा विश्वास है...बिलकुल वैसे ही विश्वास ...जैसे कि प्रधानमंत्री मंमोहम सिंह पर है ....कि एक दिन वे पकिस्तान से आर पार की लड़ाई जरूर ही करेंगे ...नए ब्लोग्गेर्स को हमने भी खूब उत्साहित किया...खूब टीपा...मगर हाय रे लानत है ...किसी ने भी दोषी नहीं ठराया....देखा कुछ लोग ..दे धनाधन ..सिर्फ विवादों को पैदा कर रहे हैं ..या फिर उन्हें हवा दे रहे ...हमने भी अपना एक अरमान पूरा किया ..और अपनी राय ..बिलकुल उसी तरह दे डाली ..जैसे सलमान ने अपनी राय (ऐश्वर्या ) अभिषेक को दी थी...और किस्मत देखिये...हमारी टिप्पणी तो मुआ लाल कपडा बन गयी...सांड की तरह सब हमारे ही पीछे पड़ गए...

घर का भी मत पूछिए....लैपटॉप लेने के बाद ..बिटिया भी शिकायत करने लगी ..पापा ये आप मेरी जगह इसे गोद में लिए क्यूँ बैठे रहते हो...इसलिए न कि ये आपकी गोद में शुशू नहीं करता ...मैं क्या कहता ...पत्नी पूछ रही थी कि क्या हुआ जी...इत्ता सारा समय लगे रहते हो इस चपटे डिब्बे के साथ ..फिर भी बूथा लटका ही रहता है..के मन नहीं भरता ....मैंने ठंडी सांस भर के कहा .मुझे लगता है ..मैं अभी अपना पूरा .....ब्लॉग्गिंग को नहीं दे पा रहा हूँ.....पत्नी जी घूर कर कहती हैं....वो जो सलमा थी न ..वही साथ वाली गली की ...उसने चार शादियाँ की कुल ग्यारह बच्चे हैं उसके ..अभी परसों मिली थी तो वो भी कह रही थी...क्या बताऊँ बहन सच्चा प्यार नहीं मिला जीवन में......हाय हाय....तो क्या मैं भी सलमा हो गया ..

सोचा ...सोच कर देखूं कि आखिर ..क्या कर रहा हूँ ब्लॉग्गिंग में ....हिसाब लगाया गया...सरकारी कर्मचारी हूँ न सो हर बात का हिसाब महीने के हिसाब से लगाने की आदत सी हो गयी है ...कैलकुलेशन किया तो ये परिणाम निकला

कुल पोस्टें लिख पाता हूँ : लगभग पचास

कुल पोस्टें पढ़ पाता हूँ : लगभग पंद्रह सौ

कुल टिप्न्नियाँ करता हूँ : लगभग छ सौ ,,या नहीं तो पांच सौ से ऊपर ,(पंद्रह बीस प्रतिदिन भी करूँ तो )

ब्लॉग्गिंग में टाईम देता हूँ : खाने, पीने, सोने , पढने , के बाद जो भी बचता है इसे ही देता हूँ,

ब्लॉग्गिंग से आय होती है : अच्छा हुए कि दस लाख से नीचे वालों के लिए सरकार ने टैक्स दस प्रतिशत कर दिया वरना ब्लॉग्गिंग से कमाया सारा पैसा टैक्स में निकल जाता......अजी लानत है....ब्लॉग्गिंग से पैसा ...कैसी बातें करते हो....वैसे ऐसा है नहीं...बस ये है कि ...हमें अभी आता नहीं कमाना ....

तभी तो कहता हूँ ....सच्चा .......प्यार न मिला...

शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

मेरी ब्लॉग्गिंग, मेरी श्रीमती जी ...और मेरे पाबला जी...


कुछ दिनों के अन्तराल के बाद ....एक पोस्ट...वो ही इस शीर्षक से ..कमाल है..आप सोच रहे होंगे...ये क्या चल रहा है भाई...कहाँ हमारी ब्लॉग्गिंग..कहाँ श्रीमती जी ..और इन सबके बीच पाबला जी ...यार कोई तालमेल नजर ही नहीं आ रहा ..सुनिए पूरी बात ..फिर बताइयेगा की ..कहाँ ताल है कहाँ मेल ....?

ये तो आपको बताया ही था की ..लगातार डेढ़ सालों तक कैफे के भरोसे ब्लॉग्गिंग करने के बाद ...जब रहा नहीं गया ..तो आखिरकार घर पर ही लैपटॉप खरीदने का पूरा प्रोग्राम बन गया...अभी कुछ माह पहले ही..बड़े मनोयोग से खरीद भी लिया गया.....आप माने या न माने हमें तो ये उपलब्धि ..बिलकुल वैसी ही लगी ..जैसे ...टाटा जी को अपनी नैनो देखने की बाद लगी होगी...खैर....उस पर से सोने पे सुहागा ये की ..उन दिनों लम्बी छुट्टियों का दौर चल रहा था...इसके बाद ग्रीष्मकालीन अवकाश ...बस समझिये ..अंधे के हाथ बटेर ..अजी हाथ क्या ..पैर, सर ..और पता नहीं कहाँ कहाँ..बटेर..वो भी मंदी के इस दौर में....

अजी दिन क्या रात ...हमने कंप्यूटर पर ऐसी हरी बत्ती जलाई....की समजिये ..ट्रैफिक बिलकुल फ्री ही कर दिया..जब देखो हरी बत्ती aun ....मगर हमें क्या पता था की ये ट्रैफिक रूल्स का जबर्दस्त उल्लंघन है ....अरे भाई घर के ट्रैफिक रूल्स का....बस ..पहले छोटे मोटे चालान हुए...यानि नोक झोंक ...और फिर वाद विवाद..हमने सोचा ये तो हर ब्लॉगर के घर में हो रहा है...और फिर कल को यही बलिदान तो हिंदी ब्लॉग्गिंग के संघर्ष का सुनहरा अध्याय कहलायेगा..सो शहीदों की तरह ...सब कुछ झेलते चलते जा रहे थे.......मगर कब तक जी आखिर कब तक....एक दिन ..हमने भी ...सरफरोशी की ..तमन्ना वाले अंदाज में ..बंद कर दिया ..सब कुछ...अंतिम फैसला...लो जी अब नहीं ...नहीं करेंगे ब्लॉग्गिंग...अरे ब्लॉग्गिंग क्या ..इस कंप्यूटर को भी हाथ नहीं लगायेंगे ...आननं फानन में सभी मित्रों को सन्देश भेज दिया गया ...जाओ जी ..अब तुम्हारे हवाले ये ..ब्लॉग्गिंग साथियों....सन्देश मोबाईल पर टाईप करके सबको भेज दिया गया ....और इस चक्कर में उनके पास भी चला गया जो हमें तो जानते थे..हमारे नंबर को भी पहचानते थे ..मगर ये ब्लॉग्गिंग क्या बाला है..उन्हें क्या पता.....बेचारे घबरा गए.....
फटाफट ..संवाद हुआ....बेटा ..ये कौन सी चीज थी ..तुमने कब पकडी थी..और कब छोड़ दी..क्यूँ छोड़ दी..कोई नौकरी थी..अरे तो काहे छोड़ दी बबुआ...का पैसे कम मिल रहे थे...अब उन्हें क्या बताते...

बस ..यही सन्देश ..पहुंचा पाबला जी के पास...जो पिछले दिनों मेरे इतने कराब हो चुके हैं..की कब सखा होते हैं..कब मार्गदर्शक ..और कब अभिभावक ..मैं खुद ही नहीं जानता..मगर ये है की ..मेरे सभी ..तकनीकी ..ब्लॉग्गिंग से जुडी समस्याओं का हल उनके पास मुझे मिल ही जाता है..उन्होंने संक्षेप में पूछा..और अनुभव के आधार पर ही बिना कुछ कहे सब कुछ समझ गए ...हम भी उन्हें बता कर ...मौन धारण करके बैठ गए...हमारे विरोध का ये अंदाज जरा जुदा है....कोई हल्ला गुल्ला ..कोई हंगामा ..नहीं..चुप रह कर जो विरोध होता है...उसकी मारक क्षमता कितनी होती है....इसका अंदाजा मुझे पहले से ही था....मगर सच पूछिए तो ...अन्दर ही अन्दर तो ऐसा लग रहा था ...जैसे किसी अज्ञातवास में जीवन बीत रहा है..मगर हमने भी व्रत जारी रखा...अब घबराने की बारी श्रीमती जी की थी....उन्हें समझ आ गया था की ..सूर्यग्रहण का कोई असर हुआ या नहीं ये तो पता नहीं ..मगर उनके चाँद (अजी हम ) को ग्रहण टाईप का लग सा गया है....

उन्होंने ..न जाने कैसे पाबला जी को फोन किया ..और चूँकि श्रीमती जी भी पंजाबी भाषी हैं...बस पाबला जी ने बड़े भाई की तरह पता नहीं उन्हें कौन सी घुट्टी पिलाई...की डांट मिली ..या पता नहीं ..बस हमें आजीवन ब्लॉग्गिंग का परमिट मिल गया ......साथ ही ...ये वादा भी ..की अब इस ब्लॉगर पर अधिक बंधिश नहीं ;लगाई जायेगी ..

सो हे ...सखाओं..इस अभय वरदान के साथ ..ब्लॉगजगत में दोबारा वापसी हो रही है.....
चलते चलते एक बात और...यदि सब ठीक ठाक योजना अनुसार रहा तो जल्दी ही आपको ..झा जी कहिन...पर एक नए अंदाज में नियमित रूप से चिट्ठाचर्चा पढने को मिलेगी....

बुधवार, 15 जुलाई 2009

जब भी हम पगलायेंगे, इक पोस्ट लिख कर जायेंगे...

जब मैं कैफे में बैठ कर सिर्फ एक घंटे में ब्लॉग्गिंग किया करता था तो स्वाभाविक रूप से उतनी गहराई से ब्लॉग्गिंग का उतार चाढावों को भांप नहीं पाता था.बस सिमित समय में एक सिमित सी दुनिया बनी हुई थी, लिख दिए, अगले दिन tippnniyaan देखी , टीपने वालों के प्रति उत्सुकता हुई तो उनके ब्लॉग पर पहुंचे और पढ़ कर टीप दिया....बस हो गयी ब्लॉग्गिंग.

अभी ज्यादा समय नहीं बीता है कम्प्यूटर लिए..मगर निस्संदेह उतना तो मैं समझ ही चुका हूँ की यहाँ सब कुछ वैसा नहीं चल रहा है जैसा की हिंदी ब्लॉग्गिंग के बारे में पढ़ा और सुना था....नहीं मैं नकारात्मक रूप से नहीं सोच और कह रहा हूँ. बल्कि ये तो एक सुखद तथ्य है की जब ब्लॉग्गिंग शुरू की थी तब से अब तक इसके आकार और स्वरुप में बहुत बड़ा अंतर आ गया है.....यदि किसी चीज़ में अंतर नहीं आया है तो वो है....ब्लॉग्गिंग में नियमित रूप से चलने वाले विवाद....मैंने इन दिनों में जो अनुभव किया है और उससे जो भी निष्कर्ष निकाले हैं ..उसे आपके सामने रख रहा हूँ....नहीं नहीं कोई मकसद नहीं है मेरा ..बस उसे बांटने भर की कोशिश है .

ब्लॉगजगत में कुछ ब्लोग्गेर्स (महिला/पुरुष ) जानबूझकर अपनी पोस्टों में ....विवादित मुद्दों को .....या कहूँ की अनावश्यक रूप से किसी भी मुद्दे को विवादित करके लिखते हैं ...भाषा और शैली ...किसी ख़ास मकसद से उकसाने वाली होती है ....सबसे दुःख की बात ये है की ऐसी पोस्टें बहस के लिए नहीं.....बल्कि बत्कुततौअल्ल के लिए ही लिखी जाती हैं.....और यही कारण होता है की ज्वलंत विषयों पर...अक्सर ये लेखक/लेखिकाएं या तो कुछ लिखते नहीं,,या फिर ..ये लिख कर काम ख़त्म कर लेते हैं की...फलाना जगह, फलाना समाचारपत्र में ऐसा, वैसा छ्पा है....

इनकी ऐसी कमाल की पोस्टों में हमारे जैसे घुसेडू टाईप के घसीटू ब्लॉगर घुस जाते हैं...आव देखते हैं न ताव...बघार देते हैं अपना भाव...अजी तिप्प्न्नियों के रूप में ....और कई बार तो किसी की पोस्ट पर आयी किसी टिप्प्न्नी जो किसी ऊपर वर्णित लेखक के भाई/बहन .,,या फिर स्वयं लेखक ने ही लिख मारी होती है ...उसे अपने दिल पर लगा कर दे दाना दान टीप डालते हैं......इससे भी मन न भरा ..तो लिख डाली एक पोस्ट....बस ये विवाद जो शुरू होता है ...तो जंगल की आग की तरह फैलता चला जाता है......एक बार बहुत पहले सुना था की कई बार नकारात्मक स्थितियां ...बहुत सी अच्छी बातों को जन्म देती हैं...मुझे भी इन विवादों में ऐसी अच्छी बातों की प्रतीक्षा रहती थी....मगर लानत भेजिए जी.....यहाँ तो दो मिनट में बात इतनी भयानाक टाईप हो जाती है.....खुल्लम खुल्ला गाली गलौज.........और पता नहीं क्या क्या. ऐसा बहुत ही कम होता है ..या फिर की शायद मैंने देखा है की ...इन विवादों का कोई सार्थक अंत हुआ हो.......दुसरे की क्या कहूँ ,मैं खुद भुक्तभोगी हूँ........अभी पिछले दिनों ही भुगत चुका हूँ...खूब प्यार से......अच्छी अच्छी तिप्प्न्नियों से अपनी बात रखी.......न हुआ तो फिर जूता भीगा.......टाईप की रिक्वेस्ट भी कर ली.....थोड़े दिनों तक लगा ....चलो कुछ तो असर हुआ ही है न...तो कोई बात नहीं इतना विवाद ही सही....हो सकता है अब सब ठीक ही चले....मगर ये क्या.....वे लोग फिर से वही सब करने लगे...अब जलाओ अपना खून...उसमें स्याही डुबो डुबो कर.

मुझे तो लगता है की यदि आप अपनी रचनात्मकता को सचमुच ही बचाए रखना चाहते हैं, तो बजाय इसके की उसे इन विवादों में खर्च करने के ...अच्छी अच्छी बातें लिखने के, दूसरों की पोस्टें पढने के लिए, उनपर उत्साहवर्द्धक तिप्प्न्नियाँ करने के लिए व्यव्य की जाएँ....तो आपके मन को भी सुकून मिलेगा....हालांकि इससे भी उन पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला .....आप गांधी जी बनें या सुभाष , चंद्रशेखर वाला रास्ता पकडें.......अंग्रेजों के दुश्मन तो हैं ही..............तो फिर अपने लिए सही रास्ते का चुनाव करके आगे बढें....

मेरा एक दोस्त ब्लॉग्गिंग के लिए अक्सर कुछ पंक्तियाँ गुनगुनाता है

जब भी हम पगलायेंगे,
इक पोस्ट लिख कर जायेंगे,
जितना तुम तिलमिलाओगे ,
हम उतना लिखते जायेंगे,
फालतू में जो उकसाया तो,
आईना तुम्हें दिखाएँगे,
यूँ ही ना माने तो,
तुम्हें इक अलग राह दिखाएँगे,
जिस दिन मत्था घूम गया,
सीधे घर तुम्हारे आयेंगे,
या तुम कर देना इलाज हमारा,
या हम तुम्हारा कर आयेंगे,
जिस दिन सटका दिमाग हमारा,
तुम्हें दुनिया के सामने ले आयेंगे....
न तुम्हारी ढपली का राग सुनेंगे,
बोल्ड
न अपना ढोल बजायेंगे,
हम भी छोड़ देंगे ब्लॉग्गिंग,
तुमसे भी छुडायेंगे ,
जब भी पगलायेंगे,
इक पोस्ट लिख कर जायेंगे .


रविवार, 12 जुलाई 2009

मुई इस निगोड़ी ब्लॉग्गिंग से , हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ ?








मुई इस निगोड़े ब्लॉग्गिंग से,
हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ,
बिन इसके इक दिन अब तो,
जीना भी दुश्वार हुआ...

रिश्ते नाते हुए बेमानी,
दोस्त भी कतराते हैं,
बीवी बच्चे भी कोसें,जाओ तुम्हारा
ब्लॉग्गिंग ही परिवार हुआ...

अब लगे है नौकरी भी भारी,
क्या हुआ जो है सरकारी,
नौकरी क्यूँ बना कैरियर अपना,
हाय क्यूँ नहीं व्यापार हुआ....

लिखना छूटा-पढ़ना छूटा (किताबों का ),
हर कोई रहता, रूठा रूठा ,
जब से घुसे हैं ब्लॉग्गिंग में,
तगडा बंटाधार हुआ......

भाड़ में गयी दुनिया सारी ,
और दुनिया के लिए हम भाड़ में,
जब से पहुंचे इस दुनिया में,
कंप्यटर ही संसार हुआ...

बेलन चले , और बर्तन भी,
कभी मिले तीखे ताने,
क्या क्या बतलायें आपको,
इस ब्लॉगर के साथ क्या क्या अत्याचार हुआ....


अजी इतने तक तो बात ये रुकती,
हम सह जाते चुप रह जाते,
मगर अपनी मम्मी के साथ , हमसे लड़ने को,
बेटा भी तैयार हुआ.....

चार अक्षर क्या लिख पाए,
सबको अभी कहाँ टिपियाये,
इतना जुल्मो सितम हुआ,,,
हाय बेगाना घर-बार हुआ..


पिछले दिनों की जो कसर थी सारी,
निकालने की थी आज तैयारी,
इन ससुरे, ससुरालियों ने ,
हाय ये सन्डे भी बेकार किया......


मुई इस निगोड़ी ब्लॉग्गिंग से,
हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ ?

मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

आप हिन्दी में ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं तो ख़ास हैं, और इस खासियत को समझें

जी हाँ, मैं पूरे संजीदगी से ये बात कह रहा हूँ। आप शायद ये कहेंगे की ये क्या बात हुई भला और ये बात अभी यहाँ क्यों कह रहा हूँ। कारण तो है , वाजिब या गैरवाजिब ये तो नहीं जानता। दरअसल जितना थोडा सा अनुभव रहा है मेरा, उसमें मैंने यही अनुभव किया है की सब कुछ ठीक चलते रहने के बावजूद हिन्दी ब्लॉगजगत में अक्सर कुछ लोगों द्वारा चाहे अनचाहे किसी अनावश्यक मुद्दे पर एक बहस शुरू करने की परम्परा सी बंटी जा रही है। हलाँकि ऐसा हर बार नहीं होता और ऐसा भी जरूरी नहीं है की जो मुद्दा मुझे गैरजरूरी लग रहा है हो सकता है दूसरों की नजर में वो बेहद महत्वपूर्ण हो। मगर मेरा इशारा यहाँ इस बात की और है , की कभी एक दूसरे को नीचा, ओछा दिखने की होड़ में तो कभी किसी टिप्प्न्नी को लेकर, कभी किसी के विषय को लेकर कोई बात उछलती है या कहूँ की उछाली जाती है बस फ़िर तो जैसे सब के सब पड़ जाते हैं उसके पीछे , शोध , प्रतिशोध, चर्चा, बहस सबकुछ चलने लगता है और दुखद बात ये की इसमें ख़ुद को पड़ने से हम भी ख़ुद को नहीं बच्चा पाते, और फ़िर ये भी की क्या कभी किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाते है ?

मुझे पता है यहाँ पर जो लोग इस दृष्टिकोण से देखते हैं की यदि ब्लॉग्गिंग में यही सब देखना और सोचना है तो फ़िर ब्लॉग्गिंग क्यों और भी तो माध्यम हैं न। मैं उन सब लोगों को बता दूँ और अच्छी तरह बता दूँ की आप सब जितने भी लोग हिन्दी और देवनागिरी लिपि का प्रयोग कर के लिख रहे हैं वे बहुत ख़ास हैं विशिष्ट हैं, सिर्फ़ इतने से ही जानिए न की करोड़ों हिन्दी भाषियों में से आप चंद उन लोगों में से हैं जो हिन्दी में लिख पा रहे हैं, और हाँ गए वो दिन जब आप अपने लिए लिखते थे। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ आज कम से कम हरेक हिन्दी का अखबार हमारी लेखनी को पढ़ रहा है, उस पर नजर रखे हुए है, उसे छाप भी रहा है और हमारे आपके विचार समाचार पत्रों के माध्यमों से न जाने कितने लोगों तक पहुँच रहा है।

तो आपको और हमें ही ये सोचना है की हम अपनी लेखनी और शब्दों को इस बात के लिए जाया करें की
गाली का मनोविज्ञान कहाँ से शुरू होकर कहाँ तक पहुंचा या कुछ सार्थक सोचे और लिखें .............
यदि कुछ ज्यादा कह गया तो परिवार का सदस्य समझ कर क्षमा करें.

आप हिन्दी में ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं तो ख़ास हैं, और इस खासियत को समझें

जी हाँ, मैं पूरे संजीदगी से ये बात कह रहा हूँ। आप शायद ये कहेंगे की ये क्या बात हुई भला और ये बात अभी यहाँ क्यों कह रहा हूँ। कारण तो है , वाजिब या गैरवाजिब ये तो नहीं जानता। दरअसल जितना थोडा सा अनुभव रहा है मेरा, उसमें मैंने यही अनुभव किया है की सब कुछ ठीक चलते रहने के बावजूद हिन्दी ब्लॉगजगत में अक्सर कुछ लोगों द्वारा चाहे अनचाहे किसी अनावश्यक मुद्दे पर एक बहस शुरू करने की परम्परा सी बंटी जा रही है। हलाँकि ऐसा हर बार नहीं होता और ऐसा भी जरूरी नहीं है की जो मुद्दा मुझे गैरजरूरी लग रहा है हो सकता है दूसरों की नजर में वो बेहद महत्वपूर्ण हो। मगर मेरा इशारा यहाँ इस बात की और है , की कभी एक दूसरे को नीचा, ओछा दिखने की होड़ में तो कभी किसी टिप्प्न्नी को लेकर, कभी किसी के विषय को लेकर कोई बात उछलती है या कहूँ की उछाली जाती है बस फ़िर तो जैसे सब के सब पड़ जाते हैं उसके पीछे , शोध , प्रतिशोध, चर्चा, बहस सबकुछ चलने लगता है और दुखद बात ये की इसमें ख़ुद को पड़ने से हम भी ख़ुद को नहीं बच्चा पाते, और फ़िर ये भी की क्या कभी किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाते है ?

मुझे पता है यहाँ पर जो लोग इस दृष्टिकोण से देखते हैं की यदि ब्लॉग्गिंग में यही सब देखना और सोचना है तो फ़िर ब्लॉग्गिंग क्यों और भी तो माध्यम हैं न। मैं उन सब लोगों को बता दूँ और अच्छी तरह बता दूँ की आप सब जितने भी लोग हिन्दी और देवनागिरी लिपि का प्रयोग कर के लिख रहे हैं वे बहुत ख़ास हैं विशिष्ट हैं, सिर्फ़ इतने से ही जानिए न की करोड़ों हिन्दी भाषियों में से आप चंद उन लोगों में से हैं जो हिन्दी में लिख पा रहे हैं, और हाँ गए वो दिन जब आप अपने लिए लिखते थे। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ आज कम से कम हरेक हिन्दी का अखबार हमारी लेखनी को पढ़ रहा है, उस पर नजर रखे हुए है, उसे छाप भी रहा है और हमारे आपके विचार समाचार पत्रों के माध्यमों से न जाने कितने लोगों तक पहुँच रहा है।

तो आपको और हमें ही ये सोचना है की हम अपनी लेखनी और शब्दों को इस बात के लिए जाया करें की
गाली का मनोविज्ञान कहाँ से शुरू होकर कहाँ तक पहुंचा या कुछ सार्थक सोचे और लिखें .............
यदि कुछ ज्यादा कह गया तो परिवार का सदस्य समझ कर क्षमा करें.

शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

ब्लॉग्गिंग पर मारा आलेख २९ समाचार पत्रों में छपा



जैसा की बहुत पहले ही सोचा था कि जब ब्लॉग्गिंग हो ही रही है तो , इसके बारे में अन्यत्र भी चर्चा होनी चाहिए, खासकर उन माध्यमों में तो जरूर ही जहाँ मैं सक्रिय हूँ, पहले रेडियो, फ़िर प्रिंट में भी सोचा था, आखिरकार ब्लॉग्गिंग के विषय में पहला आलेख फीचर के माध्यम से अब तक २९ समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में छपा। सबसे अच्छी बात ये रही कि ये आलेख, हैदराबाद, श्रीगंगानगर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार आदि कई राज्यों में छपा। मेरी कोशिश तो यही रही कि सब कुछ लिख सकूँ , पर जाहिर है कि एक ही पोस्ट में ऐसा सम्भव नहीं था, इसलिए फैसला किया है कि ,जल्द ही एक नियमित स्तम्भ , "ब्लॉग बातें " विभ्हिन्न समाचार पत्रों में दिखाई देगा, योजना को मूर्त रूप देने में लगा हूँ, आप लोगों का साथ रहा तो जल्दी ही और भी कुछ सामने आयेगा.

ब्लॉग्गिंग पर मारा आलेख २९ समाचार पत्रों में छपा



जैसा की बहुत पहले ही सोचा था कि जब ब्लॉग्गिंग हो ही रही है तो , इसके बारे में अन्यत्र भी चर्चा होनी चाहिए, खासकर उन माध्यमों में तो जरूर ही जहाँ मैं सक्रिय हूँ, पहले रेडियो, फ़िर प्रिंट में भी सोचा था, आखिरकार ब्लॉग्गिंग के विषय में पहला आलेख फीचर के माध्यम से अब तक २९ समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में छपा। सबसे अच्छी बात ये रही कि ये आलेख, हैदराबाद, श्रीगंगानगर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार आदि कई राज्यों में छपा। मेरी कोशिश तो यही रही कि सब कुछ लिख सकूँ , पर जाहिर है कि एक ही पोस्ट में ऐसा सम्भव नहीं था, इसलिए फैसला किया है कि ,जल्द ही एक नियमित स्तम्भ , "ब्लॉग बातें " विभ्हिन्न समाचार पत्रों में दिखाई देगा, योजना को मूर्त रूप देने में लगा हूँ, आप लोगों का साथ रहा तो जल्दी ही और भी कुछ सामने आयेगा.

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2008

ब्लॉग्गिंग के कुछ आजमाए नुस्खे - भाग दो

मैंने to सोचा था की , अपनी एक ही पोस्ट में आप सबको ब्लॉग्गिंग के बारे में जो भी बातें जानी समझी हैं बता दूंगा, मगर फ़िर लगा की ये थोडा लंबा हो जायेगा और शायद बोरिंग भी सो दो भागों में बाँट दिया, लीजिये कल से आगे

लेखन का विषय :- वैसे तो यहाँ पर सभी ने अपने अपने पसंद और महारत के हिसाब से अपनी लेखनी का विषय चुना हुआ है और कईयों ने तो अपने चिट्ठों को नाम भी उसी के अनुरूप दिया हुआ है। ये ठीक भी है, चिट्ठे के नाम से ही पता चल जाता है की अमुक विषय पर आधारित ही होगा। मगर चूँकि अभी हिन्दी ब्लोग्जगर संख्या के हिसाब से इतना ज्यादा बड़ा नहीं है इसलिए स्वाभाविक रूप से किसी न किसी ट्रेंड में ढल कर उसी के अनुसार ही चलता चला जाता है। सबसे प्रचलित प्रवृत्ति होती है किसी भी सामयिक विषय पर लिखना, सबसे अच्छी बात ये है की देखने में ये आया है की किसी भी ज्वलंत विषय पर ब्लॉग्गिंग में सामयिक लेखन , जो कि अक्सर बहस में बदल जाता है वो मडिया में उससे सम्बंधित किसी भी तर्क वितर्क से ज्यादा निष्पक्ष और ज्यादा स्तरहीन होता है और ऐसा शायद इसलिए होता है क्योंकि ब्लॉगजगत में विचारों की स्वतन्त्रता है । मेरे ख्याल से किसी भी नए ब्लॉगर के लिए ये एक आसान विकल्प होता है कि उस सामयिक विषय पर चल रही बहस का हिस्सा बन जाए, अपने विचार और तर्क रखे। इनसे अलग जो लोग विशिष्ट विषयों, संगीत, क़ानून, स्वास्थय , आदि पर लिख रहे हैं उनका तो कहना ही क्या, मैं तो लवली जी के सापों वाले ब्लॉग को देख कर हैरान रह गया, ये तो बिल्कुल पश्चिमी देशों की खोजी जानकारी वाले चैनेल जैसी थी।

तिप्प्न्नियाँ : - ये तो एक ऐसा विषय है कि जिस पर न जाने कितने ब्लॉगर कितनी ही बार क्या क्या कह और लिख चुके हैं, ख़ुद में भी कई बार काफी कुछ लिख चुका हूँ। पिछले दिनों भी शास्त्री जी से किसी ने तिप्प्न्नियों को लेकर ही कुछ सवाल किए थे जिसका उत्तर उन्होंने बड़े ही वैज्ञानिक और तार्किक रूप से दिया था। दरअसल हर ब्लॉगर चाहता है कि जब वो कुछ लिखे तो सब उसे पढ़ें और बताएं कि कैसा लगा, खासकर नया नया कोई यहाँ आया तो तरसता रहता है तिप्प्न्नियों के लिए, मैंने पहले भी सुझाव दिया था कि कुछ लोगों कि ऐसी टीम बनाए जाए जो कि नए ब्लोग्गेर्स को न सिर्फ़ प्रोत्साहित करने के लिए टिप्पणियाँ करें बल्कि उनका मार्ग दर्शन भी करें, वैसे ये व्यवस्था यदि संकलकों की तरफ़ से हो पाती तो क्या बात थी। यहाँ यदि उड़नतश्तरी जी, महेंद्र भाई, पी दी जी, ममता जी, शास्त्री जी, अलोक भाई आदि की चर्चा न करूँ तो ग़लत होगा , सच तो ये है कि ब्लॉगजगत के नए ब्लॉगर और पुराने भी इनकी तिप्प्न्नियों के बगैर तो अधूरे हैं। एक बात तिप्प्न्नियों के बारे में हमेशा उठती है कि क्या ये ठीक है कि हम किसी को टिप्प्न्नी करें तो बदले में वो टिप्प्न्नी करे, बल्कि जिसे जो अच्छा लगा वो ख़ुद ही टिप्प्न्नी करे, मेरे ख्याल से तो ये एक परिवार है , जहाँ सब कुछ परस्पर ही होता है । ये ठीक है कि जब आप उस स्थान पर पहुँच जायेंगे जब लोग आपकी लेखनी का इंतज़ार करेंगे तो शायद आप कभी कभी टिप्प्न्नी न भी करें तो चलेगा, मगर महाराज कसम खा लेना कि टिप्प्न्नी नहीं ही करनी है तो फ़िर तो ये शायद ग़लत हा। एक बात और कई लोगों कि या बहुतों कि ये आदत होती है कि टिप्प्न्नी पढ़ कर उसके बाद कोई प्रतिक्रया नहीं देते, ऐसा ना करें। हो सकता कि कोई दोबारा जाकर अपनी बात पर आपकी बात पढ़ना चाहता हो। और हाँ अनाम जी की टिप्प्न्नी का कभी बुरा न माने वे तो बेचारे शायद मनसे ( अजी वही मुंबई वाली ) के सदस्य लगते हैं।

पसंद सूची :- अपने ब्लॉग पर अपने पसंद के ब्लोग्गेर्स की उनके चिट्ठे की सूची जरूर बनाएं , जरूरी नहीं कि ये संख्या में कितनी हो या कि एक बार बना दी तो बना दी, उसे अपनी पसंद के हिसाब से बदल सकते हैं। मेरे कहने का मतलब ये है कि ये एक नेट वर्क की तरह का काम करता है, हो सकता है कि किसी को आपका ब्लॉग भी पसंद आ जाए और वो उसे अपनी पसंद सूची में दाल दे ।

विभिन्न विषयों में लेखन :- ये हिन्दी ब्लॉग जगत के लिए अच्छी बात है कि इसमें न सिर्फ़ हिन्दी में बल्कि लोग अपनी मातरि भाषा में भी लिख रहे हैं, विशेह्स्कर भोजपुरी और मैथिलि के तो कई सारे चिट्ठे लिखे जा रहे हैं, मगर न जाने क्यों उनमें भी आपस में कोई संपर्क नहीं है, या शायद किसी वजह से रखना नहीं चाहते, यदि ऐसा है तो ग़लत है, मैं पहले भी कह रहा हूँ कि दायारा बनाने से आपका और इस ब्लॉगजगत का दोनों का ही फायदा है, और हाँ एक चिटठा कम से कम हिन्दी में जरूर ही बन्याएं, आख़िर जिस लिपि और भाषा का प्रयोग आप कर रहे हैं उसके प्रति आपका भी तो कुछ फ़र्ज़ बँटा है ।

सामूहिक ब्लॉग का न्योता झट से स्वीकार करें : - वैसे तो ये कम ही होता है, कम से कम मुझे तो आज तक किसी ने ये मौका नहीं दिया, लेकिन यदि आपको कोई देता है तो जरूर स्वीकार करें, यकीन मानिए इससे आपका मंच और मजबूत होगा।

तो फ़िर अभी के लिए इतना ही, आशा है कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे .

सोमवार, 20 अक्टूबर 2008

ब्लॉग्गिंग के कुछ आजमाए नुस्खे

कुछ भी लिखने से पहले इतना बता दूँ की ये जो कुछ भी मैं आपको बताने जा रहा हूँ इसलिए नहीं की मैं ब्लॉगजगत का कोई पहुंचा हुआ पंडित हूँ न ही ये की इन नुस्खों के परिणाम का कोई प्रमाण है मेरे पास। बस यूँ समझिये की पिछले एक साल के अनुभवों पर जो सीखा समझा है उसे बांटने की कोशिश कर रहा हूँ। देखें की आपको कितना सही ग़लत लगता है।

शीर्षक :- मेरे ख्याल से किस भी विधा और विषय में लेखन के लिए आवश्यक होता है एक बढिया शीर्षक। आप किस भी पोस्ट को सबसे पहले क्या देखते हैं, चिट्ठे का नाम, चिट्ठाकार का नाम , विषय, शायद नहीं। आप पहले उसका शीर्षक पढ़ते हैं , फ़िर उसीके अनुसार अपने स्वाद के हिसाब से पूरी पोस्ट का मजा लेते हैं। इसलिए कविता, ग़ज़ल, फोटो, कहानी, लेख, संस्मरण,कुछ भी लिखें तो अच्छी तरह सोच विचार के लिखें। यहाँ एक दिलचस्प बात बताता चलूँ। अभी कुछ दिन पहले ही एक ब्लॉगर भाई ने शीर्षक दिया, बकवास है इसे तो बिल्कुल न पढ़ें, यदि अमरीका, इंग्लैंड होता तो शिश्तार्चार्वश कोई नहीं पढता , मगर हम तो हैं ही उल्टे लोग, सो नतीजा ये निकला की सबने खूब पढ़ा, और यकीनन वो जो भी था, बकवास तो कतई नहीं था । मैं ये नहीं कह रहा की उल्टे पुलट शीर्षक लिख कर ही आप अपनी तरफ़ सबका ध्यान आकर्षित करें। मगर कोशिश ये जरूर होनी चाहिए की शीर्षक रोचक हो और प्रस्तुत सामग्री से सीधा सम्बंधित हो। और हाँ ये भी की शीर्षक बहुत ज्यादा लंबा न हो तो ही अच्छा।

लेखन शैली :- कहते हैं की हर इंसान का कुछ भी कहने , लिखने का अंदाजे बयां अपना अलग ही होता है और बिल्कुल जुदा भी, वो कितनी भी कोशिश करे कहीं न कहीं वो अपने रवानगी में उस अंदाज में पहुँच ही जाता है। और सच पूछें तो तो ये होना भी चाहिए। अब देखिये न अशोक जी की चकल्लस में, अलोक जी के पुराण में और अपने उड़नतस्तरी जी की चुटकियों में हास्य व्यंग्य होता है मगर ये उनकी शैली ही है जो उनकी पहचान बन गयी है और हमारे मुंह का स्वाद भी। हालाँकि ऐसा स्वाभाविक रूप से ही होता है, मगर कुछ लोग बिल्कुल ऐसा लिखते हैं जैसे बेमन से लिख रहे हों या फ़िर ऐसा की की कहीं से बिल्कुल नकल मार कर टीप दिया हमारे झेलने के लिए , जानते हैं इसका नतीजा क्या होता है, बिल्कुल तत्वहीन और नीरस लगता है वो सब कुछ। नहीं जरूरी तो बिल्कुल भी नहीं है की आप भी दूसरों की देखा देखी कुछ नया और बदला हुआ करने की चाहत में अपने स्तर और शैली के साथ कोई नया प्रयोग या खिलवाड़ करें।

ब्लॉग का स्वरुप/ साज सज्जा :- इसका सीधा सा मतलब है ,की जो आँखों को सुंदर लगता है, वो मन को भी भाता है । यानि जो ब्लॉगर अपने ब्लॉग को सजाना संवारना जानते हैं , उन्हें निश्चित रूप से ये कोशिश करनी चाहिए की चाहे थोड़ी मेहनत ज्यादा करनी पड़े , मगर ये जरूरी है, यहाँ दो बातें और कहना चाहता हूँ। एक तो ये की जो भी महानुभाव या गुरूजी लोग ये कला जानते हैं वे हम जैसे लोगों को भी सिखाएं, और जो मेरी तरह अनाडी हैं वे एक काम तो कर ही सकते हैं की कम से कम तम्प्लेट अच्छा सा चुनें, कई लोगों तो ऐसा तम्प्लेट चुन रखा है की ब्लॉग खुलते ही सिर्फ़ धुंधला और काला दिखता है.और हाँ यदि आसान हो और मन करे तो थोड़ा बहुत परिवर्तन भी करते रहे, अजी अपनी नयी नयी फोटो ही लगा दें, अचा लगेगा ये बदलाव आपको भी।

पोस्ट करने का समय :- जानते हैं, ये ब्लॉग्गिंग का सबसे महत्वपूर्ण नुस्खा है। मैं सोच रहा था की इस पोस्ट को यहं भारत में रहते हुए में किसी रविवार की सुबह पोस्ट करूंगा। सीधा सा कारण है, मेरे अनुभव के हिसाब से ये सबसे उपयुक्त दिन और समय है किसी पोस्ट के लिए , खासकर यदि आप हिन्दी में ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं तो। दरअसल होता ये है की , सुबह या दिन के प्रारम्भिक समय में जब बी एपी कुछ पोस्ट करेंगे तो तो ज्यादा समय तक लोगों पाठकों की नज़र में रहेगा, क्योंकि अग्ग्रीगातोर्स, या संकलकों की एक सीमितता है पोस्ट्स को दिखने की और स्वाभाविक रूप से जितना ज्यादा समय तक पोस्ट दिखती रहेगी उतने ज्यादा लोगों के पढने की सम्भावना बनी रहती है, वैसे तो जब आपको पढने वाले नियमित पाठक मिल जायेंगे तो ये सब बात मायने नहीं रखती हैं, किंतु नए ब्लोग्गेर्स को चाहिए की वे निश्चित रूप से दिन के या सुबह अपनी पोस्ट को प्रकाशित करें।

चलिए फिलहाल इतना ही आगे की बातें भविष्य में, यदि कुछ कहना , बताना चाहे तो स्वागत है .
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