बुधवार, 31 मार्च 2010

ब्लोग्गिंग हो न हो मगर शायद ब्लोग्गर्स के फ़ेमस होने का समय आ रहा है

बस एक बार ये हुआ तो हो गए फ़ेमस

कल कार्यालय में एक मित्र जो एसीपी हैं अचानक आ पहुंचे । बातचीत के दौरान मुझे पता चला कि आजकल उनकी पोस्टिंग सायबर सेल में हो गई है । जब बात आगे बढी तो बताने  लगे कि चूंकि भारत में अभी सायबर कानून की शुरूआत है इसलिए सभी को प्रशिक्षण दिया जा रहा है । मुझे याद आया कि कुछ समय पहले ऐसा ही एक प्रशिक्षण कार्यक्रम सभी न्यायाधीशों के लिए भी आयोजित किया गया था । वे कहने लगे कि अब भारत में सायबर अपराध बहुत तेजी से बढ रहे हैं । सबसे अधिक है नकली प्रोफ़ाईल्स बना के कभी मेल कभी लौटरी , कभी किसी और तरीके से आर्थिक अपराध के लिए इनका प्रयोग और इसके बाद जानबूझ कर किसी को बदनाम करने के लिए कर रहे हैं ।

अभी पुलिस के सायबर विंग को जो आम शिकायतें मिली हैं वे इन्हीं दो अपराधों से संबंधित हैं । और चूंकि भारत में अभी सायबर कानूनों पर काम चल रहा है और अभी उनसे जुडे अपराधों की फ़ेहरिस्त भी उतनी लंबी नहीं हुई है इसलिए अभी बहुत मारामारी नहीं है । मुझसे जब उन्होंने पूछा कि और आपका लेखन कार्य कैसा चल रहा है । मैंने बताया कि आज कल ब्लोग्गिंग चल रही है ...चल रही है ..ऐसा मैंने उन्हें कहा , अब चल रही है या रुकी हुई ये ब्लोग्गर बाबा ही जानें । फ़िर अचानक जाने क्या सोच कर मैं उनसे पूछ बैठा कि एक बात बताईये कि यदि कोई अंतरजाल पर किसी दुभावना से , चाहे धर्म के नाम पर , राजनीति के नाम पर , या फ़िर अश्लीलता का आवरण ओढे कुछ गंदगी फ़ैला रहा है तो उसके लिए कुछ किया जा सकता है क्या । वे मुस्कुरा उठे और फ़िर गंभीर होकर बताया कि बिल्कुल हो सकता है , बस लिखित शिकायत करने वाला कोई सामने आना चाहिए । शिकायतकर्ता यदि सामने आ जाए तो फ़िर आगे की कार्यवाही करना हमारा काम है , इसके आगे जो कानून करेगा , वो आप खुद जानते हैं । क्यों कोई खास बात ..उन्होंने पूछा ॥

        मैंने कहा , " नहीं यार , पिछले कुछ समय से देख रहा हूं कि हिंदी ब्लोग्गिंग न सही कुछ ब्लोग्गर्स फ़ेमस होने को उतावले है , अब बताओ भला इससे बेहतर तरीका और कौन सा हो सकता है फ़ेमस होने का ....अगला ब्लोग्गिंग के कारण जेल जाने वाला शायद पहला हिंदी ब्लोग्गर होगा । जाते जाते उन्होंने मेरी उस शंका का भी निवारण भी कर दिया कि यदि कोई ढका छुपा ये सब करता है तो ...........कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं जी ....और उन हाथों को भी कंप्यूटर चलाना आता है जी । देखिए कब तक होता है कोई ब्लोग्गर फ़ेमस ?????????????

मंगलवार, 30 मार्च 2010

लिव इन रिलेशनशिप :एक अलग दृष्टिकोण (भाग दो )



इस मुद्दे पर बहुत सी बातें मैं अपनी पिछली पोस्ट में रख चुका हूं , मगर चूंकि इस विषय का दायरा इतना वृहत है कि शायद अभी इस पर और भी बहुत कुछ कहने लायक बच गया है । ये मत व्यक्त किया जा रहा है लिव इन रिलेशनशिप विवाह के विकल्प के रूप में या शायद कि विवाह जैसी संस्था को पूरी तरह से औचित्यहीन करने के रूप में अपनाया जा रहा है । जबकि प्रायोगिक रूप से ये बिल्कुल भी सही नज़रिया नहीं है । लिव इन रिलेशनशिप जिन भी देशों और समाज में प्रचलित है वहां भी ये एक खास समय तक ही उस उन्मुक्तवादी नज़रिये को मानता है । उस विशेष समय के बीतने के बाद या तो उस संबंध की परिणति विवाह के रूप में हो जाती है नहीं तो संबंध विच्छेद के रूप में । मगर सबसे ज्यादा गौरतलब बात ये है कि दोनों ही स्थितियों में कानूनी अधिकारिता , किसी विवाद , किसी निराकरण के लिए जिन उपायों और उपबंधों का सहारा लिया जाता है वो सब विवाह या उस जैसी ही किसी संस्था के लिए तय किए गए नियमों कानूनों के अनुरूप ही किया जाता है । उदाहरण के लिए यदि कुछ समय तक एक साथ रहने के बाद किसी युवती को लगता है कि उसे जानबूझ कर छला गया है कि या कि उसके साथ युगल दंपत्ति की तरह रहने वाले युवक ने किसी भी कारण से उसे छोडने का मन बनाया है तो वो उसे बहुत आराम से यौन अत्याचार के लिए बने किसी भी कानून के सहारे कटघरे में खडा कर सकती है । अब यदि विवाह में इस स्थिति की कल्पना भी की जाए , अव्वल तो ये संभव नहीं है किंतु आज के समय को देखते हुए कुछ भी अकल्पनीय नहीं है, और फ़िर भी यदि ऐसा कोई मामला बनता है तो नि:संदेह उसमें भी विवाह विच्छेद तो हो ही जाएगा , अलबत्ता शायद दैहिक शोषण का मामला न बन पाए । सवाल सिर्फ़ सहमति और असहमति का है ।

           एक और महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया है कि यदि ऐसे रिश्तों की व्यापकता बढेगी और उससे जो भी बच्चे होंगे यदि उनकी जिम्मेदारी शासन या सरकार उठाले तो बच्चों से संबंधित या उन्हें आधार बना कर जिस भी तरह का शोषण नारी समाज का किया जा रहा है वो शायद रुक जाए । हालांकि ऊपरी तौर पर ये कहने सुनने में अच्छा लग तो रहा है किंतु भारतीय शासन व्यवस्था और सरकार की कार्यशैली को जानने वाले भलीभांति जानते हैं कि ऐसे बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उठाने में सरकार कितनी संजीदगी दिखाएगी । फ़िर इससे अलग एक संकट उभर के आएगा ऐसे रिश्तों से उत्पन्न संतानों की पहचान का संकट । यहां ये बताना ठीक होगा कि बेशक आज के आधुनिक युग में डीएनए जांच जैसी सुविधाओं के कारण कोई कठिन काम नहीं होगा  ये जानना कि संतान के असली माता पिता कौन हैं , मगर ध्यान रहे कि ये देश कोई बहुत छोटी या मध्यम जनसंख्या वाला देश नहीं है । अभी ही अपराधियों और अपराध के निर्धारण के लिए स्थापित विशिष्ट संस्थाएं डीएनए टेस्टिंग में महीनों का समय ले लेती हैं । तो आखिर वो कितना आसान काम होगा इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है ।

  ये बात स्पष्ट की जा चुकी है कि अदालत का फ़ैसला सिर्फ़ और सिर्फ़ भारतीय कानून और विशेषकर इस कृत्य का अपराध की श्रेणी में आने या न आने को लेकर आया है (हालांकि अभी न्यायालय का अंतिम फ़ैसला नहीं आया है)। न्यायपालिका को इस प्रवृत्ति और ,समाज द्वारा उसे अपनाए जाने या ठुकराए जाने , और इससे समाज पर पडने वाले किसी भी सकारात्मक /नकारात्मक परिणामों व प्रभावों से कोई सरोकार नहीं है । सबसे आश्चर्यजनक बात तो ये है कि इस भविष्य में आने वाले फ़ैसले के प्रति उनकी प्रतिक्रिया जानना सबसे ज्यादा उचित होगा जिन्होंने इसे अपनाया हुआ है । उनके अच्छे बुरे अनुभव ही इस बात का निर्धारण करेंगे कि लिव इन रिलेशनशिप , जिसे लेकर इतने उहापोह की स्थिति बनी हुई है , आखिर उसका भविष्य क्या होने वाला है भारतीय समाज में । मगर अफ़सोस कि अब तक उनकी अपेक्षित सक्रियता और प्रतिक्रिया कहीं देखने पढने को नहीं मिल रही है । खैर देर सवेर ये सामने आएगी ही ।

             एक बात और वो ये कि जो लोग इसे नारी मुक्ति से जोड कर देख रहे हैं , वे सिर्फ़ इसका एक पक्ष ही देख और दिखा रहे हैं । बेशक ये बात ठीक है कि ,कोई भी युवती विवाह के बाद  पारिवारिक स्थितियों और परिवेश में जाने के बाद बहुत सी चाही अनचाही जिम्मेदारियों और शायद मुश्किलों से भी खुद को रूबरू होता पाती है । ये सब उस संस्था को नकारने से परे किए जा सकेंगे । लेकिन क्या यही एक मात्र शर्त होगी महिला मुक्ति की । क्या महिलाएं इस सामाजिक रिश्ते से खुद को अलग करने के बावजूद , लिव इन रिलेशनशिप से उपजे किसी भी रिश्ते से खुद को अलग रख पाएगी । और सबसे बडी बात कि भारत अभी पश्चिमी समाज की तरह इतना परिपक्व नहीं हुआ है ,इसलिए ये भी देखने वाली बात होगी कि क्या भारतीय युवतियां भी एक के बाद एक बहुत से लिव इन रिलेशनशिप रखना चाहेंगी ? और फ़िर उन्मुक्तता का वही स्तर पाना चाहेंगी जो पश्चिमी समाज में उन्हें मिला हुआ है ।

      एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू को भी अभी तक नज़रअंदाज़ किया जा रहा है । कोई भी ऐसी परंपरा , कोई भी ऐसा प्रचलन यदि सिर्फ़ समाज के किसी एक छोटे से समूह तक सिमित रह जाता है तो उस स्थिति में उनकी आने वाली नस्लों के लिए जो कि जरूरी नहीं कि लिव इन रिलेशनशिप को ही या कि शादी को ही मानें । उस स्थिति में उन्हें बांकी समाज से किस तरह की दिक्कतों और विरोधों का सामना करना पडेगा अभी वो भी देखने वाली बात होगी । अभी तो ये बहस  बुद्धिजीवी गलियारों से बाहर निकल कर आम जनों के बीच नहीं पहुंचा है जब पहुंचेगा तभी पता चलेगा कि वो दुनिया कौन सी है जो इन रिश्तों के आधार पर बनाई जाने वाली है । इस मुद्दे पर आने वाली खबरों, बहसों, विवादों और विश्लेषणों पर नज़र रखना दिलचस्प होगा ॥

रविवार, 28 मार्च 2010

लिव इन रिलेशनशिप : फ़ैसले पर एक दृष्टिकोण



यूं तो अभी इस मुद्दे पर लंबित मुकदमें में न्यायालय का अंतिम फ़ैसला नहीं आया है , और जाने किन किन आधारों पर मीडिया में इस मुद्दे को लेकर तमाम तरह की खबरें , रिपोर्टिंग और सर्वेक्षण तक दिखाए समझाए जा रहे हैं । इस फ़ैसले को लेकर बहस, और फ़ैसले के बाद की स्थितियों , बदलने वाली तमाम सामाजिक अवधारणाओं  पर रायशुमारी , विश्लेषण आदि भी खूब किए जा रहे हैं । समाचार से लेकर अंतर्जाल तक पर इसी मुद्दे पर खूब लिखा और पढा जा रहा है । आज इसी मुद्दे पर एक आम आदमी की तरह सोच कर एक दृष्टिकोण रखा जाए ।

   अभी अदालत का फ़ैसला नहीं आया है इसलिए ये कहना कि उस फ़ैसले में वास्तव में न्यायालय ने कहा क्या है ये कहना जल्दबाजी होगी मगर फ़िर भी कुछ बातें तो स्पष्ट हो ही जाती हैं । न्यायालय का मत है कि (जैसा कि समाचार में बताया जा रहा है ) कि दो वयस्क पुरूष महिला बिना विवाह के भी एक साथ एक युगल दंपत्ति की तरह रहते हैं , उनका आपसी शारीरिक, मानसिक रिश्ता एक पति पत्नी की तरह का होता है तो वो भारतीय कानून के लिहाज़ से अपराध नहीं माना जाएगा । अब ये देखते हैं कि इसकी पृष्ठभूमि क्या थी । दरअसल इससे पहले भी जब समलैंगिकता पर भी न्यायालय का निर्णय आया था उसका भी अर्थ और अनर्थ सबने अपने अपने हिसाब से लगाया था । जबकि वास्तव में इसके पीछे बात कुछ और ही थी । पिछले कुछ वर्षों में महानगरीय समाज में , बहुत सी नई प्रवृत्तियां और बहुत से नए चलन , जैसे समलैंगिकता, ये लिव इन रिलेशनशिप , किराए की कोख आदि तेजी से बढीं और आत्मसात की जाने लगीं । यदि ये गरीब तबके , मजदूरों के समाज में होता तो भी शायद उतना बवेला न मचता..मगर जो समाज इस आयातित संस्कारों को अपना रहा था ( हालांकि बहुत से समाजशास्त्री इस बात को मानते हैं कि इन सबका अस्तित्व भारतीय इतिहास में भी मिलता है ) वो तथाकथित रूप से आधुनिक समाज का एलीट क्लास था । मौजूदा कानूनों के तहत जब पुलिस प्रशासन ने इन्हें परेशान करना शुरू किया और उनका साथ दिया शिवसेना और उन जैसी बहुत सी संस्थाओं ने जिन्होंने भारतीय संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदारों का चोला पहना हुआ था , उन्होंने भी इस समाज के लिए मुश्किलें खडी करनी शुरू की तो थकहार कर सरंक्षण के लिए कानून का दरवाज़ा खटखटाया गया ।

   इसके बाद अदालत ने बहुत सारी दलीलों और तर्कों , समाज में आ रहे बदलावों और सबसे बढकर भारतीय दंड संहिता को व्याख्यायित करते हुए अपने फ़ैसले सुनाए । अदालत के फ़ैसले के अनुसार , यदि दो वयस्क युगल किसी भी सामाजिक रिश्ते, वैवाहिक संस्कार और ऐसे ही किसी परिचर्या के बगैर भी आपस में एक दंपत्ति की तरह रहते हैं तो उसे गैरकानूनी नहीं माना जाएगा । मगर अदालत ने कहीं भी ये नहीं माना है कि सदियों से चली आ रही विवाह संस्था का कोई मायने नहीं है । अदालत ने ये भी कहीं नहीं कहा कि लिव इन रिलेशनशिप विवाक का कोई विकल्प है , ये भी नहीं कहा गया कि इस लिव इन रिलेशनशिप को एक परंपरा के रूप में अपनाने से महिलाओं की स्थिति में कोई बडा भारी परिवर्तन आ जाएगा । यहां एक और बात का जिक्र समीचीन होगा । इसी मुद्दे पर एक प्रश्न ये उछाला गया कि यदि ऐसा ही है तो फ़िर इसे किस तरह से वेश्यावृत्ति से अलग रूप में देखा जा सकेगा । बहुत ही सरल सी बात है , अदालत का मंतव्य सिर्फ़ ये है कि दो युगल ..दंपत्ति की तरह रह रहे हों ..न कि दो युगलों ने किसी भी कारण से आपसे में संबंध स्थापित किया या कि जबरन करवाया गया तो वो लिव इन रिलेशनशिप कहलाएगा । किसी विवाद की स्थिति में  इसे अदालत में कैसे साबित किया जा सकेगा ..ये कोई भी कानूनविद बडी आसानी से समझ सकता है ।

          अदालत के फ़ैसले के इतर इन नई सामाजिक प्रवृत्तियों से भविष्य में भारतीय समाज में होने वाले संभावित परिवर्तनों पर भी एक बहस शुरू हो चुकी है , मगर इन बहसों को इतनी व्यापकता देने वाले बहुत सी बातों को नज़र अंदाज़ कर रहे हैं । पहली बात ये सभी प्रवृत्तियां जिन देशों से जिस समाज से आयातित होकर पहुंच रही हैं क्या उन देशों में ये शतप्रतिशत सफ़ल साबित हो रही हैं ,क्या वहां विवाह जैसी संस्थाओं को दरकिनार किया जा रहा है । सुना तो ये है कि वे भी अब थकहार क्या या शायद एड्स जैसी बीमारियों के डर से ही सही पुन: भारती जैसे देशों के संस्कारों को अपनाने का मन बना रहे हैं । यदि वर्तमान भारतीय समाज की बात की जाए तो ये जो भी नई परिकल्पना अपनाई जा रही है .. वो अब भी महानगरीय समाज के सिर्फ़ एक खास और बहुत ही छोटा वर्ग है । और भारतीय समाज के विभिन्न सामाजिक आर्थिक और मानसिक स्तरों को देखते हुए लगता नहीं है कि इसे इतनी जल्दी सार्वभौमिक मान्यता मिल जाएगी । इसलिए इन बहसों के ये निहितार्थ निकालना कि सदियों या कहूं कि युगों से चली आ रही विवाह जैसी संस्था के अस्तित्व का कोई विकल्प मिल गया है ..बिल्कुल बेमानी है । मैं मानता हूं कि पलायनवाद ने ग्राम्य समाज जो भारतीय परंपराओं का सच्चा वाहक था , को भी लीलने का काम किया है । मगर देखा ये गया है कि शहरों में आ बसे लोग भी कहां अपनी परंपराओं को छोड पाते हैं । एक और ध्यान देने योग्य बात ये है कि मनुष्य स्वभाव से ही सामाजिक प्राणी रहा है और चाहे अनचाहे उसका एक समान बन ही जाता है ..रिश्ते कैसे भी हों अस्थाई या स्थाई . विवाह या लिव इन रिलेशनशिप .यदि उनमें रिश्ते की कोई भी बंदिश हुई तो सब कुछ वहीं आकर रुक जाएगा । यहां उन हिप्पी समाज का ज़िक्र करना ठीक होगा जो समूह में सिर्फ़ एक आनंद और नशे के प्रवाह में ही जीवन बिताते हैं । वैवाहिक संस्थाओं के औचित्य पर बहस करने वाले चंद बुद्धिजीवी कहलाने वाले लोग शायद ये भूल जाते हैं कि सवा अरब की जनसंख्या वाले इस देश में यदि कोई बहस सडक पर उतर जाए तो ही उसकी सही दिशा और दशा का पता चलता है ..फ़िर ये थोडा सा विमर्श कितना प्रभावित कर पाएगा समाज को ये तो देखने वाली बात होगी । बहस लंबी चलेगी इसलिए फ़िलहाल इतना ही शेष अगले भाग में ...............

गुरुवार, 25 मार्च 2010

ब्लोग्गर्स ने घोषित की अपनी वसीयत (भाग एक )


हम तो चुपचाप सभी ब्लोग्गर्स का एक ठो सीज़नल वसीयत तैयार कर रहे थे ऊ भी एक दम फ़्री में , मगर सब ठो पोल भाई महेन्द्र मिश्रा जी हमारा बज स्टेटस देख के खोल दिए , लेकिन हम भी ढीठ हैं जब बना दिए तो बिना पोस्टियाए थोडी छोडेंगे ।आज अचानक ही ख्याल आया कि कुछ समय पहले ही ब्लोग्गर्स ने अपनी अपनी वसीयत हमसे लिखवाई थी उसके आपके सामने सार्वजनिक किया जाए । और इस वसीयत में कोई फ़ेरबदल की गुंजाईश नहीं है वैसे तो मगर उनके आग्रह पर इसमें ऐडिशनल क्लौजेज जोडे जा सकते हैं । फ़िलहाल तो आप मूल वसीयत पर गौर फ़रमाईये ।

श्री समील लाल जी उर्फ़ उडनतशतरी जी ..और असली मतलब कि एलियन जी :- देखिए जी हम चाहते हैं कि ...सिगरेट के पाकिट पर लिखा सारा साहित्य ..माने विल्स कार्ड तो हम सब ठो एक एक करके आप सबको पढवा दिए हैं ...मगर अभी बीडी के पैकेट और खैनी की पाउच पर लिखा हुआ ..एक दम अनकट और अनछुआ वाला बचा हुआ है ..हमारी वसीयत के तौर पर । उसे धीरे धीरे प्रकाशित किया जाए । हमारी टिप्पणियों के लिए ..एक अलग से ऐग्रीगेटर बनाया जाए ...जो वैसे भी देर सवेर बनने ही वाला है ..। हमने जिज्ञासावश पूछा ...."मगर उडन जी आपकी पोस्टों का क्या ? " अरे यार झाजी , आप भी न कमाल करते हो ..वो तो पहले ही कुल 650 पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हो चुकी हैं ।

खुशदीप सहगल जी ...मक्खन और मक्खानी विद देयर ओनली एंड लोनली सन ..गुल्ली गुमनाम ..देशनामा के असली वारिस होंगे । इन्हें हिंदी की ट्रेनिंग ..पाबला जी से दिलवाई जाए ..कम से कम इतनी तो जरूर ही कि ..टिप्पणियों में सारे हिंदी गाने ..विद भांगडा वर्जन ..डाल सकें । डिरामा  कंपनी को आगे जाकर और सभी डिरामेबाजों से कोलैबोरेट करवा कर इसे इंटरनेशनल स्टेटस पर पहुंचाया जाए । ब्लोग्गर्स को मोबाईल पर आने वाले सभी मैसेज मक्खन और गुल्ली को फ़ौर्वर्ड करने होंगे ताकि उन्हें देशनामा फ़ैक्ट्री में रिफ़ाईन्ड करके ..एक हर्बल पोस्ट बनाई जा सके । फ़िलहाल इतना है बाकी के क्लौज बाद में जोडे जाएंगे ।


श्री बी एस पाबला जी :- अभी बने हुए ..सारे कमाल के अनूठे और एकदम अलग टाईप के आइडियाज़ के साथ बने हुए ब्लोग ...के अलावा ..आने वाले समय में ऐसे नायाब आईडियाज वाले सभी ब्लोगस सिर्फ़ पाबला जी एंड कंपंनी( हें हें हें ई कंपनी में हम भी शेयर होल्डर हैं न )  द्वारा ही हाईपोथिकेटेड हों । और हां टीम व्यूअर का पैकेज हर जगह अवेलेबल होना चाहिए ।ताकि  कोई भी समस्या हो ..पाबला जी हैं न ...अरे हां अब तो कोई भी पंगा हो तो भी पाबला जी हैं न ...अरे छोडिए यार ...अब तो हाईट है कि ..कोई पंगा न हो ...पाबला जी हैं न । तो आने वाले समय में ब्लोग और ब्लोगगर्स पर बनाई जाने वाली documentary, serials, films, आदि के सभी प्रसारण एंड कलेक्शन अधिकार ..पाबला जी को दिए जा रहे हैं ।

श्री ललित शर्मा जी :- देखिए जी पहली बात तो ये कि ...भविष्य में यदि ललित जी कहीं बिजी पांडे(अरे बिजी पांडे माने ....बिजी यार ) हुए तो .....उनकी तमाम चर्चा और टिप्पणियां ,....उनकी मूंछें ही कर लिया करेंगी । लो कल्लो बात इतने समय में जब उन्होंने इत्ते सार मित्रों और भाईयों को चर्चा का गुरू मंतर सिखा के टरेनिंग पूरी कर दी तो खुद की मूंछों को सिखाने में भला कित्ती देर लगेगी । हां सुना है कि ..बंदूक शंदूक से भी कुछ करवाया जाएगा ....बाप रे ..सच में का ...हे राम ...बेनमिया सब के लिए ही खास औफ़र होगा जरूर ।

ताऊ जी :- ब्लोगजगत में आने वाल समय में जित्ते भी रिएल्टी शोज़ , अंताक्षरी प्रतियोगिता , पहेली प्रतियोगिता , कव्वाली , भजन, आरती, रिमिक्स, रैम , रमपमपम पम .....सब कुछो ..उनका रामप्यारे, हीरामन, ऊ शैतान बिल्लनियां रामप्यारी, और इन तरह के जितनी भी प्राणी ब्लोग्गर हैं वही आयोजित किया करेंगे । ये घामड आदमियों को इसकी कतई भी इजाजत न दी जाए कि इनके ऐनिमल राईटस का उल्लंघन करें । यदि करना है तो पहले ..इनके जैसे गधा , तोता, बिल्ली...आदि की श्रेणी में शामिल होना मंगता है जी । ताऊ जी ने कहा है कि उनके लट्ठ को महफ़ूज़ मियां के लट्ठ के साथ जोड के तेल पिलाया जाए ,,,जो समय आ रहा है उसमें बेनामियों के लिए आभासी शाबासी से आगे निकल कर उनकी डायरेक्ट सेवा का अवसर आ सकता है ।

अदा जी :- ..हां नहीं तो ....का कौपीराईट तो पहिले ही हमरे नाम हो चुका है , खुशदीप जी के साथ डिरामा कंपनी भी धकाधक दौड रहा है ...ब्लोग दीदी भी बनिए गए हैं ..ओह तो अब बचा का जी ...। मयंकवा का ड्रिराईंग का एक ठो अलगे ब्लोग खोला जाए ...काहे से कि उ बचवा का टेलेंट का बहुते फ़ैदा उठा रही हैं अदा जी । संतोष जी का गाना सब ठो ..गिरीश भाई के पोडकास्टवा सब पर ही सुनाया जाएगा ...। अदा जी का गाना सब  को अलग से ब्लोगवाणी चिट्ठाजगत पर चलाया जाएगा एक दम ढिंचक ढिंचक ...॥

अजय कुमार झा :- ईनका का कहा जाए ...कुल पच्चीस ठो तो ब्लोग है ..जाने कहां कहां फ़िरते रहते हैं ..दिन रात दिमाग में प्रेत की तरह ब्लोग , ब्लोग्गर बैठक, चर्चा , टिप्पणियां , और ब्लोग्गिंग पर पोस्ट ठेलते रहना ..कुल मिला के..एकदम सनक से गए हैं पहले ही तो .....अब बचा का है इनका वसीयत करने को ..बस इनको इतना फ़ैसिलिटी मिल जाए कि ब्लोग्गर बाबा बस डेढ दुई सौ और ब्लोग बनाने का सुविधा दे दें । दस बीस ठो एक्स्ट्रा हाथ आंख दे दें , नहीं तो कम से कम एक ठो एलियन ही दें दें ..ताकि कहीं भी प्रकट होकर कहीं भी टीप सकें । हर महीना एक ठो ब्लोगर मीट हो जाए ..बेशक ..वैज मीट हो ..बिना मीट मसाले वाली ...मगर हो तो सही ...आखिर उसकी रपट पे भी तो फ़िर पोस्ट ठेलाई हो सकती है ।

श्री अविनाश वाचस्पति जी :- इनका डायरी जिसमें तमाम ब्लोग्गर्स , साहित्यकार, पोस्टकार, और जितने भी तरह के कार हैं उनका नंबर है...उसे एमटीएनएल को दे दिया जाए ताकि उसका एक ठो अलग से बेलो पेजेस ( जैसे होता है है न येलो पेजेस वैसे ब्लोगगर्स के लिए बेलो पेजेस ) बन सके । इसके अलावा एयरटेल , ब्राडबैंड, और जितने भी बैंड बाजा हैं उसके इनका डायरेक्ट कनेक्शन को भी सार्वजनिक किया जाए । भाई साहब हमेशा ही एवलेबल रहें ..एक ठो चिप लगा दिया जाए ..ताकि पता चलता रहे कि ..ब्लोगजगत का नेटवर्क टावर ..अभी फ़िलहाल कहां पर है ।

श्री राजीव तनेजा जी :- वैसे तो इनका पोस्ट की लंबाई को देखते हुए इनपर जल्दी ही ब्लोग्गर बाबा बैन शैन लगा ही देंगे ...काहे से कि .कुल एक महीना के बराबर का पोस्ट एके में ठेल देते हैं महाराज ..सुने हैं कि कई लोग तो बाहर घूमने फ़िरने जाने से पहले इनका पोस्ट का प्रिंट आउट लेके रख लेते हैं साथ में ,,,,होनोलुलू से वापस लौटने के बाद .....सीधा उनको चैट पर बताते हैं बस राजीव भाई ..अगली ट्रिप तक पोस्ट खत्म होते ही टीपता हूं । इनका वसीयत में ई जिक्र है कि संजू भौजी के हाथ पात में एक भी पोस्ट नहीं पडने पाए ..वर्ना ..किलोमीटर की पोस्ट कब मीटर और फ़िर मिलीमीटर में सिमट जाएगी पता भी नहीं चलेगा ..कि कौन कौन ..चारित्रिक पोस्ट टाईप का व्यंग्य ठेलते रहे हैं, पिछले दिनों ॥

 

रश्मि रविजा जी :- इनका वसीयत में खाली एके ठो क्लौज है मेनली तो .....शची इज स्टिल वेटिंग ....एंड वेटिंग constantly ....अरे सच्ची मुच्ची यार । हालांकि रश्मि जी से बार बार ये पूछा भी गया है कि ..जब इतना वेटिंग है ..तो how much she weight ?  मुदा वसीयते यही है न ..कि वेटिंग......... एंड वेटिंग ...एंड वेटिंग ...एंड वेटिंग औन .....। तुम ई पूछने वाले होते हो कौन ? ..वैसे भी जब शची को कौनो पिराबलेम नहीं है ..वेट करने में ..न ही रश्मि जी को है उसको ..इत्ता ढेर सारा वेट करवाने में तो ..फ़िर काहे की मगजमारी जी ?????

अरे रे रे बस करिए जी ...का आज ही सबका पढ डालेंगे का ?? अरे अभी तो शुरू हुआ है जी ..दस्तावेज का बखान अभी चालू रहेगा जी

गुरुवार, 18 मार्च 2010

कुछ ब्लोग्गर्स और ब्लोगस को आपस में बतियाते देखा गया




कल इस ब्लोगजगत में प्रेत की तरह विचरते हुए (जी हां अब तो ये हाल हो गया है कि ब्लोग्गिंग के आसपास न भी हों तो आत्मा ..प्रेतात्मा बनके यहीं मंडराती रहती हैं ) और ऐसे में ही घूमते घूमते बहुत से ब्लोग्गर्स मित्रों को देखा कि वे अपने ही ब्लोग से बतिया रहे थे ...बातचीत दिलचस्प थी सो सोचा कि आपको भी बताता चलूं ।

पहला दृश्य :- और भई कैसे हो ...अब तो बुढा से गए हो ....यार उम्र से न सही पोस्ट के हिसाब से तो इत्ते बरस के हो ही गए हो , और फ़िर हमने बार बार एलान किया कि मियां जी की उम्र इत्ती हो गई है पोस्ट के हिसाब से ....और बेटा जिन सबने बधाई दी है वे सब गवाह हैं इसके ...बेटा और अब तो इतना दमादम हम पोस्ट पटक रहे हैं कि बहुत जल्दी ही बुजुर्गी पेंशन मिलने लगेगी ...और तुम लाठी टेक के कहते फ़िरना हजारी ब्लोग आ गये हैं सावधान ।

दूसरा दृश्य :- ब्लोग ही ब्लोग्गर को धमका रहा था ....क्यों बे काहे को बना दिया हमको ...फ़्री फ़ंड का जगह मिला तो ले के डाल दिया एक प्लौट ...अबे जब लिखना विखना था नहीं तो काहे एक ठो जगह घेर के रख दिए हो ..और उहां लोग ई सोच सोच के फ़ूले जा रहे हैं ...कि देखो हिंदी ब्लोग्गिंग में ब्लोग्स की संख्या फ़लाना हो ढिमकाना हो गई ....एक तुम हो ...महीनों तक यहां झांकने नहीं आते ....कभी एक आध बार कुछ टपाक से लिख मारा ...तो फ़िर टीपोगे तो क्या खाक ..और तुम्हारी इसी आदत के कारण ...कम्बखत हमारा पूरा कैरियर ही चौपट हुआ जा रहा है । अबे कुछ देखो ..कुछ सीखो ...देखो भाई लोग कित्ता सीरियसली लिए हुए हैं ऐसे ...। और हो भी क्यों न एक जमाना हुआ करता था जब लोग बाग मुर्गे लडाते थे ..अब हमारी बदौलत ...यहां इश्वर तक को आपस में लडा लडा कर थका दे रहे हैं । अबे बिना दाम के इत्ता इत्ता काम हो रहा है यहां एक तुम हो जाने कैसे ब्लोग्गर हो यार ???

तीसरा दृश्य :- यार अब तुम मुझसे क्यों नाराज़ होते हो ...कित्ता तो लिखता हूं ..दिन रात भी नहीं देखता ...जब देखो लिख मारता हूं ....फ़िर भी कहीं तुम्हारी चर्चा वर्चा नहीं होती ...अब करूं क्या तुम्ही बताओ । न अपनी रेपुटेशन बन रही है न तुम्हारी ....अबे इत्ता भी क्या भडकना यार ..तुझे ये किसने कह दिया कि चर्चा में पोस्ट घुसने से रेपुटेशन बन जाती है ..अब ज्यादा मुंह न खुलवा मेरा ...सबको पता है कि चर्चा की खुद की .......छोड यार ये अपन इस बात पर क्यों लडें ...आ एक बढिया सी पोस्ट लिखता हूं ...अबकी तो चर्चा में तेरा आना पक्का है ॥

चौथा दृश्य :- हें हें हें ....क्या सोच रहे हो प्यारे ...यही न कि आज भी सारे समाचार पत्रों में तुम ही तुम हो ...बेटा ये सबके बस की बात नहीं है ..रोज रोज अखबार में छपना ....आखिर इत्ते सारे ब्लोग्स के बीच तू भी कुछ है बेटा ....लो अब इसमें क्या मुंह बनाना ...कि तुम्हें यहां ब्लोग जगत में कोई पढता नहीं टीपता नहीं ....टौप लिस्ट , हौट लिस्ट ..में भी नहीं होते ...अबे मगर छपास में तो एक क्लास है यार.......... जो सबमें नहीं है यहां ..है भी तो वो दिखता कहां है ..और जो दिखता है वो छ्पता है ...ओह आओ जल्दी से एक लिख मारूं ..कल भी तो छपना है ।

पांचवां दृश्य :- उफ़्फ़ हे भगवान ..अमां तुमने समझ क्या रखा है मुझे ...मैं कोई गुल्लक हूं ..कि जब जी में आता है पचास पैसे, एक रुपए दो रुपए पांच के सिक्के से साथ नोट मरोड के घुसेड देते हो । अबे कविता , कहानी , व्यंग्य , लेख , आलेख , तुक्का तिकडम , लस्टम पस्टम ,ढिशुम पटक , सब कुछ एक एक करके भी बिना कुछ भी तय किए हुए ..बिना कोई पैमाना बनाए ...सब कुछ मेरे अंदर घुसेडे चले जा रहे हो । अबे तुम्हारे अंदर इत्ता लिखने का कीडा है तो क्यों नहीं मेरे कुछ और भी भाई बंधु तैयार कर लेते बे । जानते हो तब मेरा क्या हाल होता है जब कोई कविता पढने आता है और उसे तुम्हारे लेख पढने पडते हैं ..पता नहीं क्या क्या बोल जाता है ....मैं उस झटके से उबर भी नहीं पाता कि ..अगले दिन कोई लेख प्रेमी ...आता है कविता देख कर फ़िर वही ....ओह मैं और कुछ नहीं कह सकता ..


छ्ठा दृश्य :- ओ भाई बस ..बस ..बस ...माफ़ करो यार ..तुम्हें देख तो ऐसा लग रहा जैसे किसी झुग्गी वाले को इंडिया गेट वाला गो मैदान मिल गया है कि भैय्या डाल लो अपनी झुग्गी जहां भी मन करे और जित्ती भी मन करे उत्ती । एक तो तुम्हारी खोपडी का ही नहीं पता चलता ...सोते जागते और उसके बीच के समय में भी जाने क्या क्या सोचते रहते हो ...कुछ नया सूझता नहीं कि बस हो गया एक नया ब्लोग तैयार ...अबे तुम्हारा तो जो हाल है न देखना एक दिन ...वो मल्टीप्लेक्स का बडा पर्दा लगवाना पडेगा ..तुम्हें अपना डैशबोर्ड देखने के लिए । अब कोई डैड एंड है कि नहीं कि तुम्हारे ब्लोग्स का ..एक दर्जन ...दो दर्जन ..अब तो भाई ..उसे भी टापने वाले हो ॥जिस दिन हम सारे मिल कर पिल पडे न उस दिन झेलना बेटा ।


सावधान ब्लोग रिपोर्टर घूम रहा है ..अभी तो बहुते बातचीत रिकार्ड करनी है जी ...देखिए आगे का का होता है ..यदि आप भी कौनो टाईप से फ़ुसफ़ुसा रहे हैं तो ..ध्यान रहे कल को ये बातचीत ..रिपोर्टर सुन सकता है .......

मंगलवार, 16 मार्च 2010

ब्लोग्गिंग से जुडी ट्यूशन क्लास ....पीरियड टू है जी



पिछली पोस्ट को हमने जाने कौन से मूड में लिख दिया था , सोचा तो ये था कि नए मित्र ब्लोग्गर्स को ऐसी जानकारियों की समय समय पर उपलब्ध करानी चाहिए ...मगर आप सबने उसे झाजी की ब्लोग क्लास ही बना दिया ....तो फ़ुल टाईम स्कूल चलाने के लिए तो न हमको परमीशन मिलेगा और फ़िर हम तो मास्साब नहीं न बन सकते हैं ..तो सोचे कि काहे नहीं आप लोग को टयुशनिया क्लास में ही लपेटा जाए । चलिए छोडिए पिछली पोस्ट में कही गई बातों से अब आगे बढते हैं ।

पोस्टिंग का समय :- जी हां , पिछले ढाई वर्षों के अनुभव के दौरान जो एक बात मैंने अनुभव की वो थी कि किसी भी पोस्ट को प्रकाशन करने का समय भी इस बात को तय कर देता है कि आपकी पोस्ट पाठकों के हत्थे चढ रही है या नहीं । जैसा कि पहले भी कह चुका हूं कि ये सब महज एक आकलन है और परिणामों से इस अनुभव का कोई प्रत्यक्ष /अप्रत्यक्ष संबंध निश्चित रूप से हो इसका कोई प्रमाण नहीं है । मेरे विचार से पोस्ट को प्रकाशित करने का उपयुक्त समय सुबह छ: बजे से सुबह दस बजे तक ...और फ़िर शाम पांच बजे से लेकर रात के ग्यारह बजे तक ...मेरा अनुभव कहता है कि यही हो समय है जब पाठकों का ट्रैफ़िक ब्लोग्स पर सबसे ज्यादा रहता है । हालांकि इसे सभी अपने अपने हिसाब से आकलन करके देख और तय कर सकते हैं ....और हम जैसे धरतीपकडों के लिए तो रात दिन एक बराबर ...। यहां एक दिलचस्प बात बताता चलूं ..मुझ से एक बार पूछा गया कि ... ब्लोग पोस्ट को समाचार पत्रों में प्रकाशित होने की संभावना के आधार पर पोस्ट को प्रकाशित करने का उपयुक्त समय कौन सा हो सकता है ..फ़िर मुझे विस्तार से बताना पडा कि समाचार पत्रों के हिसाब से अलग अलग ...खैर छोडिए इस पर बात फ़िर कभी ।

टिप्पणी :- इस एक मुद्दे पर जाने कितनी ही बार कहा गया है ..यदि ये कहा जाए कि कम से कम सभी ने एक बार और मुझ जैसे ने तो जाने कितनी ही बार इस पर बहुत कुछ कहा है तो कुछ गलत नहीं होगा । टिप्पणी को लेकर मत/विमत, विचार , बहस , सबकुछ उतनी ही बार हो चुका है या होता ही रहता है जितनी बार ब्लोग्गिंग को लेकर । मगर आज इस बिंदु पर कुछ अलग चंद बातें । पहली ये कि जब भी मैं नए ब्लोग्गर मित्रों का ब्लोग खोल कर पढता हूं तो देखता हूं कि बहुत से मित्रों की पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं है .हालांकि इस बात की जरूरत हमेशा ही हम सबने बहुत बार जताई है कि नए ब्लोग्गर्स को प्रोत्साहित करना जरूरी है और इसके लिए उन्हें प्रतिक्रिया दी जानी चाहिए . मगर मुझे फ़िर भी लगता है कि कम से कम पहली पोस्ट के  लिए संकंलकों को ऐसी कोई स्वचालित व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वे कम से कम हतोत्साहित तो न हों । देखें ऐसा कब तक हो पाता है ? दूसरी अहम बात ये कि टिप्पणी करने का एक अप्रत्यक्ष लाभ ये होता है कि आपका नाम  सर्च इंजनों के दायरे में बढ जाता है । जी हां , इसलिए टिप्पणी करना अपने लिए भी फ़ायदेमंद साबित होता है ।

नियमितता
:- ये एक कटु सत्य है कि हिंदी ब्लोग्गिंग से अभी किसी की रोजी रोटी नहीं चल रही है , इसलिए ऐसा कतई जरूरी नहीं है कि ब्लोग्गिंग के लिए बिल्कुल समर्पित हो जाया जाए । मगर ये भी कहने की बात है ...दिल्ली के लड्डू हैं जी जो खाए वो भी .....जो न खाए वो भी .....। और ऐसा ही है भी , ....न हो तो टराई करके देख लिया जाए ...this is one way traffic .....सनम ..आना तो आसान है छोड के जाना बडा मुश्किल है । मगर मैं इससे अलग ये कह रहा हूं.., जिन्हें ब्लोग्गिंग में आए कुछ समय बीत चुका है ..जो स्थापित ब्लोग्गर की श्रेणी में आ गए हैं, जिन्हें नियमित /अनियमित ब्लोग्गर/ पाठक के रूप में सब जान रहे हैं ..उनके लिए तो न भी मगर उनके लिए जो अभी ब्लोग्गिंग में नए नए आए हैं ये निहायत ही जरूरी हो जाता है कि यदि ....वे शाहरूख खान नहीं हैं ...या कि अमर सिंह जी भी नहीं है तो फ़िर अपने को उतने समय तक सक्रिय और नियमित तो जरूर रखें जब तक कि पूरे ब्लोगजगत का उनसे परिचय न हो जाए ।


चलिए आज के लिए इतना ही ....

शनिवार, 13 मार्च 2010

ब्लोग्गिंग के लिए कही चंद पुरानी बातों को फ़िर दुहराया जाए ......




यूं तो इनमें से कोई भी बात ऐसी नहीं है जिसे पहले नहीं कहा गया हो और सभी ने कभी न कभी इसे अपने अपने अंदाज़ में कहा भी है मगर जाने क्यों जब देखता हूं कि इस ब्लोग शहर में हर रोज़ कई घरौंदे बस रहे हैं नए नए , नए नए कस्बे , नए नए मुहल्ले बस रहे हैं तो फ़िर उन बातों को कहने का मन करता है बांटने का मन करता है । मुझे ये तो नहीं पता कि इससे कुछ लाभ हानि है या नहीं मगर इतना तो है ही कि नए आए मित्रों के लिए इसमें से बहुत कुछ काम का निकल आए । ब्लोग्गिंग की कोई पाठशाला कोई कार्यशाला आयोजित होती तो हम भी समय समय पर रिफ़्रेशर कोर्स कर लेते ...चलिए भाई तब तक तो इस कुंजी से ही काम चलाईये ।

शीर्षक :- किसी भी पोस्ट को लिखे पढे जाने की एक बडी वजह होती है उसका शीर्षक । इसमें कोई शक नहीं कि पोस्टों को पढे जाने पसंद किए जाने की एकमात्र शर्त ये तो नहीं है , मगर ये कम से कम उस तरह से तो है ही जैसे कि कोई आप लाईब्रेरी में से चुनते समय आप किसी किताब का नाम , फ़िर शायद  उसके लेखक का नाम , कभी कभी उस पुस्तक की साज सज्जा भी आकर्षित करती है । ठीक उसी तरह से कहना ये है कि यदि आप चाहते हैं कि पाठक पोस्ट तक पहुंचें तो सबसे पहले आपको ये जानना होगा कि उस लेख का शीर्षक कैसा हो कि पाठक उस एक बार देखने का लोभ संवरण न कर पाए , मगर यहां मैं उन तमाम मित्रों से ये आग्रह जरूर करता चलूं कि इसका मतलब ये कदापि नहीं हो जाता कि शीर्षक में जानबूझ कर कोई उकसाऊ शब्द , किसी का नाम (खासकर नकारात्मक संदर्भों में ) , आदि डाले ..हालांकि ये बात भी असर तो उतना ही डालेगी मगर आगे आप खुद ही जानते हैं कि क्या होगा । मुझे ये तो नहीं पता कि ये आईडिया मूल रूप से किसका था ..(पोस्ट के आगे नाम अपना लिखने का )...मगर आपको लगता है कि लोग आपके नाम को देखकर भी आपकी पोस्ट को पढने आएंगे तो फ़िर ये प्रयोग भी कर के देखें । मैं अपनी बात करूं तो कई बार मैंने पोस्टों को छापना सिर्फ़ इस कारण से टाल दिया है कि उनके लिए मुझे कोई उपयुक्त शीर्षक नहीं मिला उस समय । आगे का काम आपकी लेखनी का विषय ,उसकी शैली , और पाठकों को उससे मिलने वाला  अपेक्षित ...ही तय कर देता है ।

ब्लोग :- जी हां एक ब्लोग्गर के लिए सबसे पहले तो यही जरूरी है कि वो अपने ब्लोग के बारे में सोचे । हालांकि मुझे लगता है कि मैं इस विषय पर लिखने वाला सही व्यक्ति नहीं हूं ..कारण सिर्फ़ इतना है कि ब्लोग के विषय में कोई तकनीकी मित्र लिखें ( लिख ही रहे हैं ) तो ज्यादा अच्छा होगा । मगर कुछ मोटी मोटी बातें जो अपने पल्ले पडती हैं उन्हें आपके सामने रखता चलूं । अपने ब्लोग को सजाना संवारना और उन्हें उन तमाम सुविधाओं से लैस करना भी बहुत जरूरी है । सुविधाओं से लैस करने का मतलब है कि पाठकों को फ़ीड , मेल आदि की सुविधा उपलब्ध कराने आदि ।किसी किसी ब्लोग की पृष्ठभूमि ऐसी होती है जो कि पाठकों को पोस्ट पढने में दिक्कत पैदा करती है । कई ब्लोग्स पर जाने अनजाने कुछ ऐसे विजेट लग जाते हैं जो पाठकों के लिए खासी मुश्किलें खडी करते हैं । और भी इसी तरह की बहुत सी छोटी छोटी बातें होती हैं जिनपर ध्यान देकर काम करने की जरूरत होती है । एक बात और . ऐसा नहीं है कि आप अपना अपने पाठकों का , स्वाद बदलने के लिए अपने ब्लोग का थोबडा बदल नहीं सकते ...बल्कि बदलना ही चाहिए ....एक बदलाव के लिए ही सही .....जैसे कि आज हमने ब्लोग्गर की नई सुविधा का लाभ उठाते हुए सभी की थोडी सी डेंटिंग पेंटिंग कर डाली । ब्लोग को बहुत तरह के विजेट लगाने के फ़ायदे नुकसान पर सभी तकनीकी ब्लोग्गर्स से आग्रह करूंगा कि वे समय समय पर मार्गदर्शन करते रहें ।

लिखें या न लिखें मगर पढें जरूर :- जी हां अब ब्लोग्गिंग का सबसे महत्वपूर्ण सूत्र बता दूं जिसकी आज शायद सबसे ज्यादा जरूरत भी है इस ब्लोगजगत को हरेक नए पुराने ब्लोग्गर को भी । आप जितना समय लिखने में दे रहे हैं उससे ज्यादा तो निश्चित रूप से पढने पर दीजीए ...टिप्पणी पर अभी कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि कुंजी का सारा पाठ आज ही पढ लीजीएगा तो फ़िर आप लोग कल से ही क्लास में ऐबसेंटी मार दीजीएगा । और हां जैसा कि पहले भी कहता रहा हूं कि पोस्टों को पढने के लिए यूं तो ब्लोगवाणी और चिट्ठाजगत से बेहतर और कोई विकल्प नहीं है मगर ऐसा भी नहीं है कि इसके परे कुछ भी नहीं है । वो कौन कौन से मंच और संकलक हैं जहां आप घूम फ़िर सकते हैं टहल सकते हैं और चाहे तो दौड लगा सकते हैं , उनके लिए कल की पोस्ट देखिएगा । साथ ही संकलकों आदि का जानकारी भी देने की कोशिश करूंगा और ब्लोग्गिंग से जुडी और भी बहुत सी बातें ।

चलते चलते एक और बात बताते चलें ...बहुत जल्द ही आपको झा जी कहिन पर ...""हमरे बलम ब्लोग्गर "" ब्लोग्गर्स से एक परिचय ...के नाम से एक कमाल श्रंखला पढने  को मिलेगी ...उम्मीद है मजा आएगा आपको ..मुझे तो आएगा ही ॥

गुरुवार, 11 मार्च 2010

बधाई दीजीए ....ये इस ब्लोग की पांच सौंवी पोस्ट है ....मगर वाह नहीं कहिएगा

ये इस ब्लोग की पांच सौवीं पोस्ट है , या शायद उससे एक ज्यादा ...है न बधाई देने की बात ....मगर नहीं वाह मत कहिएगा ......आज मन वाह नहीं आह कहने को कर रहा है .............आह ....!!!!!!!!!!!







मैं भीष्म नहीं ,
मैं अजर नहीं ,
मारो , मर जाऊंगा ,
मैं कभी भी अमर नहीं ॥

मैं खडा देखता हूं ,समय को ,
और समय देखता है मुझको ,
तुम चलाओ जब तक शैय्या बने ,
खत्म न हो जाए "शर" कहीं ?


टूटा तोडा गया कई बार,
हर बात तुम्हीं ने जोडा भी ,
बस डर इस बात का रहता है , इस टूट- अटूट में ,
कभी मैं भी न जाऊं ,बिखर कहीं .........

बुधवार, 10 मार्च 2010

तो फ़िर हो जाने दो ब्लोग्गिंग को उन्मुक्त और निरंकुश ...




पिछ्ले कुछ दिनों बहुत से मुद्दों और तथाकथित विमर्शों पर जिस तरह की खींचतान , परोक्ष प्रत्यक्ष आरोप प्रत्यारोप , आक्रोश, खिन्नता , और भी जितने विशेषण होते होंगे सभी एक साथ देखने पढने को मिले । और जैसा कि अपेक्षित ही था कि एक बार फ़िर से धुरियां बनी या शायद टूटीं भी , सब कुछ देख और पढ रहा था ऐसे ही जैसे कि मेरे अन्य साथी बंधु भी पढ रहे हैं । मुझे नहीं पता कि तटस्थ रहने वालों का अपराध कहां लिखा जाता है ..लिखा जाता भी है या नहीं , और आखिर लिखता कौन है । फ़िर सबसे बडा प्रश्न ये था कि रास्ते में चलते हुए यदि किसी जगह पर आकर दो रास्ते मिलते हैं और कहीं न कहीं मन इस बात की गवाही दे कि किंचित ही दोनों रास्ते ऐसे हैं जिनपर चल कर ..या कि उन पर आगे चलने वालों के पीछे चलकर भी कुछ हासिल होने वाला तो कतई नहीं है ..तो ऐसे में एक मुसाफ़िर क्या करे ...क्या फ़िर भी चलना जरूरी है , क्या फ़िर भी उन्हीं दोनों रास्तों पर चलना जरूरी है ...या रुक जाना ठीक होगा ....या वापस लौट जाया जाए । दोनों ही रास्तों का तर्क है कि ....दोनों ही रास्ते जरूरी हैं और बिल्कुल सही भी । मगर मुसाफ़िर यदि दोनों ही रास्ते पर न जाना चाहे तो ........? कमोबेश मुझे अपनी स्थिति कुछ कुछ उसी मुसाफ़िर जैसी ही लगी ....एक बार को मन किया कि दोनों ही रास्तों पर चल कर देखा जाए ..दोनों को कहा जाए कि चलो चलते हैं उसी मोड पर जहां से ये रास्ते अलग होने शुरू हुए ...फ़िर लगा कि क्यों भाई किसके लिए ...और किन्हें कहा जाए ।

बहुत पहले से ये बात समझता आ रहा था कि जिस तरह का माहौल बनता जा रहा है ...ये नहीं कहूंगा कि बनाया जा रहा है क्योंकि जो भी बन या बनाया जा रहा है वो सिर्फ़ ब्लोग्गर्स की भागीदारी या शायद उदासीनता के कारण ही है ..उसमें अब बहुत जरूरी हो गया है कि ब्लोग्गिंग को उन्मुक्त किया जाए ...सारे रिश्ते नाते ..जो जाने बने कि नहीं बने ...उन्हें ब्लोग्गर डाट काम से बाहर छोड कर ..और्कुट या फ़ेसबुक पर ही निपटाया जाए ......अब थोडा अजनबी बना जाए ..थोडा निर्दयी हुआ जाए ...थोडा निरंकुश हुआ जाए । इसे कोई भडास निकलना माने तो मानता रहे ...कोई दिमाग का सटकना माने तो मानता रहे ...और कोई अब कुछ भी मानता रहे ....। अब तो ब्लोग्गिंग को ब्लोग्गिंग ही मानने समझने और ब्लोग्गिंग ही करने का समय आ गया है ....जिन्हें लगता है कि भाई भतीजावाद चल रहा है ..शायद मुंह देख बडाई ...और थोबडा देख तुडाई चल रही है ...उनके लिए यही उपयुक्त समय है ...तो मित्रों शुरू हो जाओ ..खुले सांड की तरह .विचरो इस आभासी जगत में ....इतने तो अजनबी बन ही जाओ कि कल को अफ़सोस न रहे कि कभी किसी से कोई रिश्ता बनाया था ..किसी को शाबासी दी थी ...या इतने कि किसी को खूब जी भर के कोसा था गालियां दी थीं ....और ऐसे में इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है कि खुल्लम खुल्ला कोई भी किसी पर भर भर के गालियां निकाल सकता है ...प्यार, स्नेह, आशीष , शाबासी नहीं ...सुना है कि इससे रिश्ते कायम हो जाया करते हैं जो आगे जाकर ब्लोग्गिंग में बहुत बाधा पहुंचाते हैं ।

यहां ये स्पष्ट कर दूं कि किसी विशेष से मेरी कोई अदावत नहीं है न ही अब तक किसी से ऐसी गलबहियाई हुई है कि आंखे मूंद कर नाचता फ़िरूं उसके सुर ताल पर । ये भी है कि ब्लोग्गिंग का मैं अकेला ही कोई चौकीदार भी नहीं हूं कि जब मन आए जो आए कहता फ़िरूं ....मगर अब तो सचमुच ही लगता है कि कुछ बंदिशों को कुछ लिहाजों को और कुछ बने नहीं बने रिश्तों की परिधि से बाहर आ जाया जाए और मुंह को भाड की तरक खुला रखा जाए ...जहां जो मन किया बक दिए ....आखिर ब्लोग्गिंग है जी ..। और आने वाले समय में शायद हरेक ब्लोग्गर यही कुछ करने वाला है ...हो भी क्यों न ....यहां सब ब्लोग्गिंग ही तो करने आए हैं ...मन क्षुब्ध है इसलिए आज मैं भी जाने क्या क्या बक गया हूं .....॥

रविवार, 7 मार्च 2010

ब्लॉग दुर्बुद्धि जमात का कूड़ा-कचरा है...




जी हां ये उदगार होली से ठीक पहले नई दुनिया दिल्ली के संपादक श्री आलोक मेहता जी ने अपने एक आलेख में लिखे थे । हालांकि इसे उन्होंने बुरा न मानो होली है के बुलेट प्रूफ़ आवरण ओढा कर लिखा था । और बेशक किसी को लगा हो न हो मगर मुझे यदि बुरा न कहूं तो अच्छा भी कतई नहीं लगा । इसलिए अपने इस आलेख पर मैंने अपनी बात कह दी थी । मगर फ़िर इधर देखा तो पाया कि कुछ मित्रों ने उस आलेख पर अपने विचार दिए । कईयों ने इसे मात्र व्यंग्य मानना उचित समझा तो कईयों ने परोक्ष प्रत्यक्ष रूप से कहा कि हिंदी ब्लोगजगत की वाकई ऐसी ही स्थिति है जैसा कि श्री आलोक मेहता जी ने अपने आलेख में फ़रमाया था , यानि कि वे सच ही कह रहे थे । पोस्टों को पढने के दौरान एक ब्लोग्गर ने टिप्पणी में शायद मेर उस पहले लिखे गए आलेख का ईशारा करते हुए आरोप लगाया कि कुछ लोग यहां आलोक मेहता के आलेख का विरोध करते हैं और फ़िर वही लोग कुछ समय बाद अपने आलेख छपने की बात या अपने किसी ब्लोग पोस्ट के छपने की बात कहते हैं । जब ये सब पढा देखा तो लगा कि शायद अभी और लिखना चाहिए इस पर । मुझे आलोक जी का ये व्यंग्य कम से कम स्वस्थ व्यंग्य की श्रेणी का तो कतई नहीं लिखा । इसकी दो वजह हैं मेरे पास । पहली ये कि यदि वे सचमुच ही ब्लोग्गिंग पर लिखना चाहते थे तो यही व्यंग्य वो अपने ब्लोग पर भी लिख सकते थे मगर बाद में तो पता चला कि इस आलेख के बाद उनकी ब्लोग पोस्ट भी गायब हो चुकी थीं । खैर , दूसरी वजह ये कि क्या ऐसा ही व्यंग्य वे अपने कार्यक्षेत्र के लिए भी लिखने की हिम्मत कर सकते हैं । ओह ! नहीं , मगर शायद उनकी नज़र में तो ये सारी खासियतें सिर्फ़ हिंदी ब्लोग्गिंग में ही हैं । मुझे नहीं पता कि जिन मित्रों ने इसे सही ठहराया वे इस निम्न बातों पर अपनी कैसी राय रखते हैं ..मगर जो मैं सोचता हूं ..वो तो बताता ही चलूं ।

ब्लॉग दुर्बुद्धि जमात का कूड़ा-कचरा है...

दुर्बुद्धि जमात ...आलोक जी , आप जिस जमात की बात कर रहे हैं , मुझे ठीक ठीक नहीं पता कि कोई गुंडा, मवाली, मजनू, सडकछाप , उठाईगीरा ,अपराधी भी ब्लोग्गिंग कर रहा है कि नहीं मगर अब तक मैंने , समाज का कोई ऐसा वर्ग , कोई ऐसा क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसके प्रतिनिधि आज ब्लोग्गिंग न कर रहे हों , और हां हिंदी में भी । अरे आगे तो सुनिए ..ये जो आपकी जमात है ...पत्रकारों वाली , हमारे बहुत से ब्लोग्गर मित्र आपही की जमात से हैं श्रीमान ...हां मगर शायद .....छोडिए .....आपके कारण अन्य मित्र पत्रकार ब्लोग्गरों को क्यों कटघरे में खडा करूं ?

हरेक ने ब्लॉग की अपनी दुकान खोल रखी है...

आलोक जी दुकान तो आप लोगों ने भी खोल रखी है , और अपने अपने हिसाब से उसमें माल भी बेच रहे हैं । जैसे हिंदुस्तान ..कांग्रेस का माल बेच रहा है ..तो दैनिक जागरण ..बीजेपी का ..राष्ट्रीय सहारा समाजवादी पार्टी का ..इसी तरह आप सबके प्रोपराईटर्स तो अलग अलग हैं और आप तो सेल्स मैन हैं जी । ब्लोग की दुकान कम से कम किसी के लिए आयोजित प्रायोजित / नफ़े नुकसान जैसी अखबारी नीतियों से तो ऊपर हैं ही ॥
ब्लॉग में कोई कितनी ही भद्दी-गंदी बकवास-सी गालियां उलच दे, कोई सरकार, कोई मालिक, कोई पुलिस या सेनातक कुछ नहीं बिगाड़ सकती...

आलोक जी आपसे किसने कह दिया ऐसा ...आप भी शायद मुगालते में हैं , और यहां तो मैं कई बार ये बता चुका हूं आपको भी बताता चलूं कि अभी बहुत समय नहीं बीता है जब मात्र एक टिप्पणी को अपने यहां पर लगे रहने देने के कारण एक ब्लोग्गर को सर्वोच्च न्यायाल से भी राहत नहीं मिली । और हां आप देकर देखि न किसी को गाली ..सरकार म सेना ,पुलिस तो दूर .....ब्लोग्गर ही ....????

ब्लॉग पर लिखने वाला नाली साफ करने वाली स्टाइल में बदबूदार सामग्री दुनिया-जहां में फैला दे, कोई बाल बांकानहीं कर सकता...

मुझे ये तो नहीं पता ...कसम से आपने अपने उस ब्लोग पर ..किस स्टाइल में ...कितना सुंगधित या बदबूदार ....क्या क्या फ़ैलाया ....मगर हिंदी ब्लोग्गिंग में तो अभी चाहे ...खींचतान की पराकाष्ठा पहुंच चुकी हो, चाहे वैचारिक मतभेद व्यक्तिगत आक्षेप तक पहुंच चुका हो , कुंठा हो , पूर्वाग्रह हो , और भी मानवीय दुर्गुण भी हों ., मगर आपके टेस्ट वाली सामग्री नहीं पहुंची है ।

ब्लॉग प्रभुओं का एक शब्द, अमेरिकी, चीनी राष्ट्रपति या ब्रिटिश प्रधानमंत्री तक, नहीं कटवा सकता है...खासकरहिंदी ब्लॉग पर उनका बस ही नहीं चल सकता...

कटवा तो आपसे भी कोई कुछ नहीं सकता आलोक जी , क्योंकि आखिर उसके लिए इन महान लोगों को हमारा ब्लोग और ऐसे ही आपकी नई दुनिया पढना भी तो जरूरी है । हमारा तो फ़िर भी अमेरिकी, चीनी या ब्रिटिश प्रधानमंत्री न सही वहां के लोग तो पढते ही हैं । मगर नई दुनिया का क्या कहूं ..दिल्ली में हूं सो जानता हूं कि , दैनिक जागरण , नवभारत टाईम्स, हिंदुस्तान, अमर उजाला के बाद भी कोई किसी अखबार की मांग करता है तो वो राष्ट्रीय सहारा , पंजाब केसरी या और कोई होता है , सब पुरानी दुनिया में ही खुश हैं ....हां हमारे जैसे ..कुछ सनकी पाठक जो आज भी आठ दस अखबार चाट जाते हैं वे जरूर झांकते हैं आपकी नई दुनिया में .....

ऋषि-मुनियों की परंपरा में हिंदी के ब्लॉग बाबाओं को मुदित, क्रोधित, आनंदित होने का अधिकार सुरक्षित...

अधिकारों का क्या कहें वो भी बाबाओं के । मगर फ़िर भी लगता है कि और देखा भी है कि यहां हमारे ब्लोग बाबा , कुछ हल्के फ़ुल्के हास्य , हंसी मजाक , कुछ खुशी ही बांटते हैं । आपकी बाहरी दुनिया के बाबाओं के चमत्कार तो आजकल आपका समाचार पत्रों के पेज भर रहे हैं , अपने कारनामों से ,....अब ये भी बताना पडेगा कि कौन से कारनामों से

वे कुपित होकर ब्लॉग में बड़े से बड़ा शाप दे सकते हैं...
महाभारत के चरित्रों की तरह कोई भी झूठ फैला सकते हैं...
इसके लिए तो पहले आपको साबित करना पडेगा कि महाभारत ही झूठा था , उसके चरित्र भी काल्पनिक थे , और उनका काम सिर्फ़ झूठ फ़ैलाना ही था ....मगर क्या करूं दिल्ली से बाहर निकलते ही एक शहर पडता है ....जिसका नाम है कुरूक्षेत्र .....महाभारत के लिए कहा जाता है कि वह कुरुक्षेत्र में ही हुआ था ....अब क्या करूंगा ज्यादा प्रमाण जुटा के ।आप भी निकलिए न कभी दिल्ली से बाहर ....और हां महाभारत ही क्यों आप भारत को ही झूठ साबित कर डालिए न .....

अपना ब्लॉग बना भद्दी गाली का जवाब भद्दी गाली से दे सकते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि उसे कोई पढ़े…
ब्लॉग की बकवास का जवाब बकवास से क्यों नहीं दे सकते हैं?

हां सो तो है जी बिल्कुल , मगर आलोक जी अब इसका क्या किया जाए कि इतने बडे बडे संपादक भी जब अपनी बकवास ब्लोग जगत पर अपना ब्लोग रहते हुए अपने अखबारों में कर जाते हैं , तो उनका जवाब देने के लिए अब ब्लोग्गर अखबार कहां से निकाले और निकाल कर उस पर आपही को जवाब क्यों देता फ़िरे ..इसलिए यहीं पर हाजिर हैं ,,,,,ठीक है न

आकाश लोक के रास्ते आ रहे ब्लॉग पढ़कर अपनी आंखें खराब क्यों करते हैं
इस लेख में बताया गया है कि
इनके स्तर का आनंद लीजिए, जानिए-पहचानिए और फिर भूल जाइए
संभव है, यहां उनकी सामग्री छपने के बाद वे अपने ब्लॉग से यह सामग्री गायब ही कर दें

लो कल्लो बात ये क्या खुद ही लिखा और फ़टाक से खुद ही इंप्लीमेंटेशन भी कर डाला , कमाल है प्रभु । चलिए अब ज्यादा क्या कहें जो बात कहनी थी वो कह दी ।मैं नहीं जानता कि इस बात से कितने लोग इत्तेफ़ाक रखते होंगे और कितने लोग मेरे जैसा ही सोचते होंगे या ऐसा ही अनुभव किया होगा , बस इसलिए लिख दिया है ...बांकी तो ब्लोग्गर्स खुद तय कर देंगे । हां चलते चलते एक बात और मैंने कहीं भी प्रिंट मीडिया उससे जुडे पत्रकारों , विभिन्न समाचार पत्रों द्वारा ब्लोग पोस्ट्स को पढने छापने का विरोध नहीं किया है ..मैं खुद आज भी जाने कितने आलेख लिख और छप रहा हूं । हां , मगर उस मानसिकता का कि हिंदी ब्लोगजगत कूडा कचरा है , उस मानसिकता का ,,,चाहे वो नई दुनिया के संपादक हों या , कोई बलोग्गर खुद हों , उसका विरोध किया है और करता रहूंगा ।


शुक्रवार, 5 मार्च 2010

चलिए महिला दिवस मनाने की तैयारी करें .......कहीं देर हो गई तो ?....




अब तो जिस तरह से इन दिवसों पर उन संबंधित मुद्दों को मनाने /दिखाने और जताने की जितनी मजबूरी है उतनी ही मजबूरी साल भर उन मुद्दों को भुलाए रहने की रहती है । अब जबकि महिला दिवस आ ही गया है और उस दिन यानि आठ मार्च को सभी इस मुद्दे पर गंभीर /अगंभीर आलेख लिख कर महिला दिवस मनाएंगे तो मैंने सोचा कि आज ही कुछ लिख डालूं ताकि फ़िर उस दिन तसल्ली से बैठ कर सबकी पोस्टें पढ के महिला दिवस मना सकूं । मुझे पता है कि तैयारियां तो अभी से ही या शायद कुछ पहले से ही शुरू हो चुकी होगी । विद्यालयों में यदि परीक्षा की आपाधापी के बीच समय मिला तो बच्चियों से भाषण भूषण की तैयारी करवाई जा रही होगी । बडे छोटे , सरकारी , गैर सरकारी , स्वंय सेवी आदि तमाम तरह के संस्थान उस दिन के लिए किसी न किसी आयोजन की तैयारी कर रहे होंगे । सर्वेक्षण वाली संस्थाएं महिलाओं की पिछडी स्थिति , उन पर होने वाले अत्याचार , और इस जैसे ही कृत्यों के जुटाए आंकडों को फ़ाईनल टच दे रहे होंगे । और सरकार के लिए तो सुना है कि अबकि मैडम जी ..की अगुवाई में ..महिला आरक्षण बिल ...वाले खेल का फ़ाईनल मैच खेलने वाली हैं ...और अबके तो पप्पू पास होकर ही रहेगा .....॥

मगर जाने क्यों मेरे मन में ये सवाल उठ रहा था कि क्या इससे आरूषि के हत्यारों का पता चल जाएगा , उस घटिया पुलिस अधिकारी राठौड को फ़ांसी पर चढाया जा सकेगा , अच्छा चलिए ये न सही ..मेरे ख्याल से तो उस दिन शायद ..ये तो हो ही जाएगा कि किरन बेदी जैसी पुलिस अधिकारी से किए गए बर्ताव और अन्याय के कारण अब शर्मसार होकर सरकार उनसे माफ़ी मांगेगी और उन्हें फ़िर से वही खुर्राट पद दे देगी । ओह लगता है ये भी थोडा मुश्किल लग रहा है ..फ़िर कम से कम ये तो हो ही सकता है ..देखिए इसमें आप ना नुकुर नहीं करिएगा ...सुना है सभी धारावाहिकों में उस दिन से एक नई परंपरा शुरू होगी कि अब किसी भी धारावाहिक में महिला किरदारों को सिर्फ़ और सिर्फ़ नकारात्मक चरित्र के रूप में दिखाने के अलावा और भी कई पक्षों को दिखाया जाएगा । क्या सोच रहे हैं आप कि ये सबसे मुश्किल काम है । ओहो ...अच्छा चलिए फ़िर इतनी अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि उस दिन हमारे डाक्टर लोग कसम खा लेंगे कि अब उस दिन के बाद से कोई भ्रूण हत्या नहीं होगी देश में । ओह आप लोग तो इसमें भी मुंह बिचका रहे हैं । चलिए फ़िर शायद ऐसा हो कि ............अमां क्या खाक ऐसा हो ऐसा हो .....कुछ नहीं होगा ..मुझे पता है कि कुछ नहीं होगा .....ये दिवस हम सभी जोर से ...और जोर से ..आगे जाकर तो जोर शोर से मनाएंगे । मगर आरुषि की आत्मा वहीं अटकी होगी , राठौड भी किसी कोर्ट से जमानत ले रहा होगा , किरन बेदी किसी और राह से अपने ज़ज़्बे को जिंदा रखे हुए होंगी , .महिला आरक्षण बिल में और भी कई नए प्रावधान जोड कर उसे पेश करने की तैयारी की जा रही होगी ..और फ़िर से एक बार से सब मिलकर ..महिला दिवस मनाने की तैयारी कर रहे होंगे ...............

ओह मैं भी निकलता हूं ....अभी तक समाचार पत्रों के लिए महिला दिवस पर कोई आलेख नहीं लिखा है ...जल्दी करूं । आप भी अपनी तैयारी करिए .........हैप्पी महिला दिवस .....दिवस का तो पता नहीं ..महिला के हैप्पी होने का इंतजार रहेगा ..........

मंगलवार, 2 मार्च 2010

अमां आलोक मेहता जी ...बाशिंदे नई दुनिया के ...मगर सोच वही दकियानूसी . यार इत्ता अपने ब्लोग पर लिखा होता तो ..........




हाल ही में होली में रंग गुलाल की गोली बम बारूद सभी बरसाने में लगे हुए थे । ऐसा लग रहा था कि जैसे हर किसीको ..हर किसी को बधाई देनी है ..सभी दे भी रहे थे ..मुझे तो लग रहा था कि पोस्टें हुलस हुलस के एक दूसरे से गलेमिल रही हैं और कह रही हैं ....अजी हमें पता है ..तुम्हें पता है ..माना कि सभी ब्लोग्गर्स को पता है ..कि ये आभासीदुनिया है ....मगर होली को थोडी पता है ...ये सब तो बस होलियाते जाओ ...। मगर अचानक ही उस दिन
यहां पर पढने को मिला कि नई दुनिया के संपादक श्रीआलोकमेहता जी हिंदी ब्लोग्गिंग को लेकर अपने उद्गगार व्यक्त किएहैं हालांकि इसमें उन्होंने वो कला भी दिखाई कि होली के बहाने कई अपने मन की बात को कह जाते हैं और साथसाथ कह देते हैं कि बुरा न मानो होली है । जैसे कि आप किसी को भर भर के गलियाईये और साथ साथ में ये कहतेजाईये कि बुरा न मानो होली है ...तो चाहे अगली होली से पहले ..हो सके तो दिवाली तक आपको ही फ़ूंक डालने कामन बना चुका हो मगर ..बुरा तो नहीं मानेगा । सो हम कैसे मानते ..बावजूद इसके कि उन्होंने ये सुंदर विचार रखेहिंदी ब्लोग्गिंग के बारे में ...साभार पाबला जी की इस पोस्ट से

ब्लॉग दुर्बुद्धि जमात का कूड़ा-कचरा है...
हरेक ने ब्लॉग की अपनी दुकान खोल रखी है...
ब्लॉग में कोई कितनी ही भद्दी-गंदी बकवास-सी गालियां उलच दे, कोई सरकार, कोई मालिक, कोई पुलिस या सेनातक कुछ नहीं बिगाड़ सकती...
ब्लॉग पर लिखने वाला नाली साफ करने वाली स्टाइल में बदबूदार सामग्री दुनिया-जहां में फैला दे, कोई बाल बांकानहीं कर सकता...
ब्लॉग प्रभुओं का एक शब्द, अमेरिकी, चीनी राष्ट्रपति या ब्रिटिश प्रधानमंत्री तक, नहीं कटवा सकता है...खासकरहिंदी ब्लॉग पर उनका बस ही नहीं चल सकता...
ऋषि-मुनियों की परंपरा में हिंदी के ब्लॉग बाबाओं को मुदित, क्रोधित, आनंदित होने का अधिकार सुरक्षित...
वे कुपित होकर ब्लॉग में बड़े से बड़ा शाप दे सकते हैं...
महाभारत के चरित्रों की तरह कोई भी झूठ फैला सकते हैं...
अपना ब्लॉग बना भद्दी गाली का जवाब भद्दी गाली से दे सकते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि उसे कोई पढ़े…
ब्लॉग की बकवास का जवाब बकवास से क्यों नहीं दे सकते हैं?
आकाश लोक के रास्ते आ रहे ब्लॉग पढ़कर अपनी आंखें खराब क्यों करते हैं

इस लेख में बताया गया है कि
इनके स्तर का आनंद लीजिए, जानिए-पहचानिए और फिर भूल जाइए
संभव है, यहां उनकी सामग्री छपने के बाद वे अपने ब्लॉग से यह सामग्री गायब ही कर दें

बताईये भला आप में से कितने ब्लोग्गर्स हैं जिन्हें ये दिव्य ज्ञान हुआ है अब तक हिंदी ब्लोग्गिंग के बारे में औरदेखिए हमारी नई दुनिया के इन महान कलम के सिपाही को कि इन्होंने ..इतनी जल्दी ..जल्दी इसलिए कि बाद मेंपता चला कि मेहता जी हिंदी ब्लोग्गिंग में भी अपना आलोक फ़ैला रहे थे ..मगर जैसा कि अक्सर होता है ..हमआप जैसे बेहद तुच्छ ब्लोग्गर्स ..इन जैसे स्टार ब्लोग्गर्स को दाल तो दाल मुर्गी का भाव भी नहीं देते ...दें भी कैसेयदि पहले ही पता हो कि पट्ठा एक दिन ..इसकी खुन्नस अपने अखबार के माध्यम से निकाल लेगा और पूरीदुनिया को बता देगा कि देखो जी हिंदी ब्लोग्गिंग ये है ....और फ़िर सब मानेंगे कैसे नहीं ...अरे हद है यार ...कौन साकोई सर्टिफ़िकेट दिखाना है इसके लिए संपादक महोदय को तभी तो ..जाने कौन दुनिया से दो नाम निकाला औरअपने मन का सब चेप मारा ....करते भी क्या ऐसा मौका भी कौन सा बार बार आता है जिंदगी में ....और साल में भी तो ये कम्बख्त होली एक ही बार आती है ...यदि दो चार बार और आती तो ...फ़िर तो ब्लोग्गिंग के साथ साथ सभीब्लोग्गर्स पर भी हाथ साफ़ कर लेते मजे में ...।

अब उनसे हम वो वाकये कैसे बांटें कि हमने भी जब जिंदगी में कुछ कर गुजरने की सोची थी और पत्रकारिता कीडिग्री लेने के बाद जब चप्पलें चटका रहे थे ( देखिए जी चप्पलें चटकाना उस समय पत्रकारिता का मौलिक संघर्षटाईप का होता था ) तो उसी दौरान हमें एक बडे ही अजीज से वरिष्ठ मित्र का साथ मिला ..उन्होंने कहा झाजी आपलिखते ही हो कभी छपा भी करो न ..हमने कहा कि छपें कैसे अब इस जनम में तो बाबूजी की प्रिंटिंग प्रेस लगने सेरही ..उन्होंने तपाक से .कहा अरे आप हमें दे देना हम कब काम आएंगे । हमने भी ऐसा ही किया ...थोडे से थोडेज्यादा दिनों तक इंतजार किया ..फ़िर मन को मना लिया सोचा ...लगता है कि उन भाई की भी कुछ खास नहीं चलीअपनी तो खैर क्या चलती .....मगर एक दिन अचानक उस छोटे से आलेख को छपा हुआ देखा ..बडा मन प्रसन्नहुआ .....बस प्रसन्नता में थोडी सी कमी इसलिए हुई कि ..भाई साहब ने कुछ ज्यादा चलाते हुए ..उस आलेख कोअपने नाम से छपवा दिया या लिया था ....आखिर इतने बडे बैनर राष्ट्रीय सहारा में हम कैसे छपते ....बाद में सुनाकि बहुत तरक्की की उन्होंने .....उन्हें भी देर सवेर कोई पुरस्कार तो मिल ही जाएगा ..और फ़िर हिंदी ब्लोग्गर्स कोगरियाने के लिए ..कौन सा उनके पुरस्कार पर कोई सेंध लगने वाली है ???

मेरे पल्ले एक बात और नहीं पडी कि .आखिर आलोक जी को हिंदी ब्लोग्गिंग में वो सब नहीं दिखा जो आजकलअमर उजाला , दैनिक जागरण , जनसत्ता , हरिभूमि , और अन्य अखबारों को दिखता है .....दूसरी बात ये लगी कियदि उन्हें हिंदी ब्लोग्गिंग के बारे में इतनी सच्ची सच्ची जानकारी और अनुभव प्राप्त हो गए थे ...हालांकि मुझे अभीभी उस वटवृक्ष की तलाश है ..जिसके नीचे बैठ कर उन्हें इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई ...तो फ़िर पूरे दमखम के साथउन्हें ये बात अपने उस ब्लोग पर कहनी चाहिए थी । अजी कहते क्या खाक ..सुना कि चौबीस घंटे के अंदर हीअपना बोरिया बिस्तर समेट कर निकल लिए भाई नई दुनिया में ।

मानता हूं कि बेशक दिल्ली में दैनिक जागरण , हिंदुस्तान , अमर उजाला , नवभारत टाईम्स के पाठकों के बीचउन्हें हम जैसे कुछ ऐसे पाठक तो मिल ही गए होंगे कि वे बता सकें कि देखो जी नई दुनिया को इत्ते ढेर सारे पाठकतो मिल ही गए हैं कि ......और किसी को न सही हिंदी ब्लोग्गिंग को तो गलिया ही सकते हैं । मगर बेचारे गलियातेगलियाते भी ..यदि ये बताने का कष्ट कर जाते कि आखिर वो कौन सी बात थी जिसने उन्हें होली के दिन ..होलिकादहन पर ज्यादा कंस्ट्रेट करा दिया ।

आज तो बस इतना ही अभी तो कुछ दिनों तक के लिए अच्छा काम मिल गया है ..कल सोचते हैं जरा अपने निरीहकलाकर बेचारे बेसहारा ..........मकबूल फ़िदा हुसैन जी .. ... ..

पिक्चर अभी बांकी है मेरे दोस्त
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