बुधवार, 30 सितंबर 2009

एक ऐसी चिट्ठी भी कभी लिखो न यार...



जब से इस नेट से नाता जुडा तब से तो जैसे लिखना बंद ही सा हो गया है...अजी मेरा मतलब हाथों से कागज़ों पर उकेरना सब कुछ...पहले कुछ शब्द से लिख कर थोडा खाका सा खींच देना...फ़िर उन्हें दोबारा सिलसिलेवार समेट कर सहेज़ कर अंतिम रूप देकर मसौदा तैयार करना...छोडिये जी सब पुरानी बातें हो गयी हैं.....अब तो दिमाग में कुछ आया नहीं कि उंगलियां भागने लगती हैं...खटाखट की आवाज के साथ सब कुछ आपके सामने होता है...मगर न जाने क्यूं और कैसे ...किन अनजानी भावनाओं के बीच मैं पिछले दिनों ...दोबारा से न जाने कितने समय बाद चिट्ठी लिखने बैठ गया...शायद इसलिये भी कि ..ये बहुत दिनों से टला आ रहा था ...तो देखिये आप खुद ही मैंने किसको क्या लिखा...................

सेवा में,

माननीय हेड मास्टर साहब,
प्राथमिक विद्यालय,
ग्राम......
पोस्ट.......
जिला..........


आदरणीय मा साहब...

सादर चरण स्पर्श ।अपने पिछले प्रवास में मैनें ग्राम विद्यालय की जो स्थिति देखी ,....मुझे खुशी है कि ...शायद अपने जीवन में ये पहली बार था कि.....मुझे सुखद अनुभव हुआ.....भवन का जीर्णोधार हो रहा था.....विद्यार्थियों की संख्या भी बढ रही थी.....और सबसे अच्छी बात जो लगी ....वो ये कि...अध्यापकों की जो कमी महसूस हो रही थी....उसे आपने अपने किसी निजि अनुदान से ...कुछ नवयुवकों को पढाने का जिम्मा देकर पूरा करने का जो प्रयास किया...वो तो अपने आप में अनुकरणीय है।

मैंने अपना पूरा बचपन और उससे आगे की शिक्षा ....अपने इस गांव से बाहर ही की....मगर जो समय मैंने गांव में बिताया.....और जो हालत इस विद्यालय और शिक्षा की देखी उसने मेरा मन दुखी कर दिया था....मगर ये सकारात्मक परिवर्तन तो दिल को छू गया। आपसे मैं पिछली बार मिल नहीं पाया था। माता जी के असमय देहावसान ने किसी अन्य बात की तरफ़ ध्यान ही नहीं जाने दिया ।अब कुछ समय बाद ही पुन: गांव आने का समय हो रहा है तो सोचा कि इस बार पहले ही मन की बात आपको बता कर रखूं। कि मैं नहीं जानता कि अब जबकि ये तय सा हो गया है कि ....अब शायद ही गांव में बसना रहना हो पाये.....तो मैं आपसे एक वादा करना चाहता हूं....कि इस वर्ष से ही ....अपने इस विद्यालय के दो बच्चों को ......एक बालक और् एक बालिका ...प्रति वर्ष एक एक हज़ार की नकद धनराशि...प्रोत्साहन स्वरूप दूंगा। आगे यदि इश्वर ने चाहा तो ...यथाशक्ति इस राशि को बढाता रहूंगा।

आपसे मेरा आग्रह ये है कि....मेरे आने तक इस योजना को मूर्त रूप देने के लिये सभी नियम-कायदे, समिति, और अन्य औपचारिकताओं पर विद्यालय समिति और आप अध्यापक गणों से सलाह मशविरा करके रखें । शेष मिलने पर।यदि तुरंत में कोई जिज्ञासा या शंका हो तो अवश्य संपर्क करें।
आपका अपना...

अजय कुमार झा...

पत्र को पोस्ट करने के बाद मन में एक सुकून सा है.....और खुशी भी......

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

ब्लोगवाणी के बिना एक दिन.....


अब से कुछ समय पहले एक बार एसा हुआ कि ...केबल टीवी वालों की हडताल हुई......उस समय ये डिश टीवी...फ़िश टीवी नहीं आया था.....और बदकिस्मती से हमें ये ब्लोग्गिंगा भी पता नहीं था...शायद उस वक्त ये गर्भ में ही थी...खैर तो मैं कह रहा थी कि केबल वालों की हडताल पूरे तीन दिन तक चली....और मत पूछिये कि कैसे कटे गम में ...वो दिन वो रात दोस्तों....टीवी था मौन, करनी पडती थी बीवी से ही बात दोस्तों.....बस किसी तरह रो धो के कट ही गये....

मगर हमें क्या पता था कि इतिहास खुद को ही दोहराता है.....हालांकि महफ़ूज़ भाई ने अभी कुछ दिन पहले ही इतिहास का एक पूरा पाठ पढाया था.....और वो रात तो कयामत की रात थी...जैसे अचानक ही ज्वालामुखी फ़टा और सब कुछ लावा की तरह बह गया....और बह गये उसमें हम सब ब्लोग्गर्स भी....मन में बस यही चल रहा थी.....

लो कर दिया इक धोबी ने फ़िर अपना संधान,
किसी को मिला वनवास ,अयोध्या हो गयी सुनसान.....

बस जी फ़िर तो अगले दिन का क्या कहें...हमारा हाल भी अन्य सभी ...ब्लोग्गर्स की तरह ही था...हम दूसरों से पूछ रहे थे और दूसरे हमसे....थोडी और खुजली बढी तो ....ये भी पूछा पाछी होने लगी...रूठे रूठे पिया ...माने कि नहीं...मानेंगे कि नहीं...सब तरफ़ घोडे दौडाये गये.....यार और भी हैं क्या ..जहां बलोग्स दर्शन हो सके....अपने अब बचे इकलौते पूत ..चिट्ठाजगत के अलावा .....
थे जो हाय मेरे दो अनमोल रतन.....
दोनों पाऊं फ़िर, कौन करूं ऐसा जतन

बर्दाश्त नहीं हुआ तो एक पोस्ट लिख मारी ..भटकते हुए ..जो भी जहां जहां मिले उनके बार में भी सोचा सबको बताते चलें....मगर कह दिया कि ...भाई ये माशूकायें हैं....इनसे अपनी धर्मपत्नी वाली निष्ठा की उम्मीद तो कतई न रखना ..सो भाई लोगों ..... नैन मट्टक्के के लिये ....चाहो तो लगे रहो.......हमें पता था..कि इन सबसे कुछ होने वाला नहीं है....अगला प्रयास ये रहा कि ..सोचा मीडिया मित्रों से कहा जाये ...यार हमारा संधि प्रस्ताव ले कर तुम ही कान्हा बन के चले जाओ..शायद हस्तिनापुर बच जाये..इसी बहाने तुम्हारे नाम इस युग का एक पुण्य तो हो ही जायेगा.....मगर वे सब के सब रावण फ़ूंकने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे थे

हम भी अपने रावण.....मतलब हमारे यहां जिसे फ़ूंका जाना था उसे लिये हुए पहुंच गये....जितना रावण मुतमईन था उससे कम हम भी नहीं लग रहे थे......अबे क्या हुआ...रावण का साईज़ छोटा लगा क्या....नहीं नहीं...रावण का साईज़ तो राम जी (भाजपा वाले) और रहीम जी (अपने हाथ छाप वाले ) की दया से दिनोंदिन खूब बढ रहा है........तो फ़िर क्या रावण के जलने से खुश नहीं हो...कोई उधारी ली थी क्या रावण ने ...जो यूं थोबडा लटकाये खडे हो......अब उन्हें कौन समझाता ....कि किस तीर का असर कहां हुआ है......श्रीमती जी
ने आखिरकार भांप ही लिया.....क्या हुआ ब्लोग्गिंग में कुछ हुआ है क्या....तुम्हारी रोनी सूरत देख कर तो यही लगता है....खैर किसी तरह हमें..दुलारते-पुचकारते हुए ...रावण को समझाया गया कि ..भाई मियां...इस बार तो यूंही जल मरो.....इनको कोई होश नहीं है.....

हम भी रावण की तरह जले फ़ुंके ....घर आकर बिना कुछ लिखे पढे ...चादर तान कर सो गये.......हमें फ़िर से क्या पता था ......कि रात की सुबह होती है....

और सुबह हुई....अचानक फ़ोन की घंटी बजी ....भैया कोप भवन से बाहर निकल आओ....ब्लोगवाणी वापस आ गयी ......और इसके बाद भी बेचैनी कुछ कम नहीं हुई.......अजी नहीं सुनिये तो.....औफ़िस निकलना था...सोच रहे थे....यार दोस्त वापस आया है ......चैन से गले भी नहीं लगा सके....बैरन नौकरिया........

हम गाते रहे दिन भर...

तो राम ने वापस कर दी अयोध्या, खत्म हुआ बनवास,
प्रेम बडा और नफ़रत छोटी, फ़िर से हुआ विश्वास......

सोमवार, 28 सितंबर 2009

ब्लोगवाणी हादसा : कुछ सवाल, कुछ सबक , कुछ विकल्प

अपने वादे के मुताबिक कल चिट्ठों की शतकीय चर्चा में मशगूल था कि अचानक ही ब्लोगवाणी के पन्ने पर लिखा हुआ आता है.....अब विदाई का समय आ गया ....मैं भी दूसरों की तरह चौंक गया....ये कैसा हादसा.....इस घटना को दुर्घटना मान कर ही हादसा कह रहा हूं...क्यों कि हादसा वही होता है जब कोई अपना अज़ीस ....अप्रत्याशित रूप से असमय ही बीच में छोड कर चला जाता है....हाथ अपने आप ...उस समय साथ उपलब्ध सभी मित्रों, ब्लोग्गर साथियों को सूचना पहुंचाने के लिये चल पडते हैं...इसी बीच कुछ मित्रों के फ़ोन भी आने शुरू हो जाते हैं....जाहिर है ...सब कुछ वैसा ही चल रहा है जैसा ...किसी दुर्घटना के बाद होता है....
इस झटके से थोडा उबरते हुए ..पूरी सूचना पढता हूं......हुंम्म्म्म्म.......तो आखिरकार ये हो ही गया........क्या कहा ....आखिरकार....यानि...कि ये सब हो सकता था....जी बिल्कुल...आशंका तो थी.....किस या किन किन वजहों से....छोडिये जी....जो जानते हैं...वे ये सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं......तो क्या इस पोस्ट का कोई हाथ नहीं....बिल्कुल क्यूं नहीं......फ़र्ज़ किया जाये कि ...कोई व्यक्ति शिशुपाल की तरह ...वार पर वार किये जा रहा है...या कि बहुत सारे लोग एक ही जगह पर निशाना लगाये जा रहे हों....और जिस पर निशाना लगाया जा रहा है ..उसने तय कर लिया है कि अब बस.....यदि सौवीं बार भी उस पर ही निशाना साधा गया तो .....तो सौंवी बार भी उसी पर साध दिया गया.....वो भी खुले आम.....बिल्कुल ठीक उसी तरह जैसे किसी को चौराहे पर ...और जब कि चौराहा भी उसी के मोहल्ले का हो....लाकर बिना कपडों के खडा कर दिया जाये.....और फ़िर इसके बाद जो भी हुआ ...वो सब स्वाभाविक था....और कल से लेकर अब तक जब धीरे धीरे कई बातें सामने आ रही हैं तो लग रहा है कि ....ये अति सर्वत्र वर्जयेत,......की अति जिसने ब्लोगवाणी टीम को आखिरकार इस कदम को उठाने के लिये मजबूर कर दिया......मगर ..ब्लोगवाणी के इस कदम ने अपने पीछे कई सवाल छोड दिये....

१. क्या ये कुछ लोगों को पहले से पता था कि कि ऐसा हो सकता था...क्योंकि इशारा कुछ वैसा ही किया जा रहा है..और जिस प्रकरण का जिक्र किया जा रहा है ..उसे बीते अभी ज्यादा दिन भी नहीं हुए हैं.....

२. क्या वो पोस्ट ही वो आखिरी विकल्प या रास्ता था ...जो इन खामियों (तथाकथित ) को सामने लाने के लिये करना पडा....क्या इस बात की शिकायत ...सीधे ब्लोगवाणी के मेल पते पर नहीं की जा सकती थी...

३. क्या इन सवालों से , आशंकाओं से ब्लोगवाणी तक पहुंचने वाले आम ब्लोग्गर/ पाठक को कोई सरोकार था...

४. क्या ब्लोगवाणी को बंद करने से पहले हम जैसे हज़ारों आम ब्लोग्गर्स की भावना/हमारे मत / हमारे विचार/हमारी सहमति-असहमति ...की कोई जरूरत नहीं थी......

५. क्या इससे बेहतर ये नहीं होता कि ...ब्लोगवाणी के उस विवादास्पद ....पसंद पैटर्न को ही हटा दिया जाता....

इसी तरह के बहुत सारे प्रश्न हैं...जो मेरे जैसे हर ब्लोग्गर के मन में उठ रहे हैं......


अब बात करते हैं...कि इससे सबक क्या मिला.........

कहते हैं कि यदि किसी घटना-दुर्घटना से आपने कोई सबक नहीं लिया तो ...फ़िर आगे भविष्य ...राम ही जाने.......

जैसा कि मैं बहुत पहले से ही कहता आ रहा हूं....कि आज हिंदी ब्लोगजगत में ....ब्लोग्स की संख्या बहुत तेज़ी से बढती जा रही है तो ......आज नहीं तो कल ....और इस घटना के बाद तो ये निहायत ही जरूरी हो जाता है ....कि ज्यादा से ज्यादा ऐग्रीगेटर्स का विकल्प ...सबके लिये सामने आये...ताकि इन और इन जैसे किसी दूसरे हालात की वजह से यदि कोई ऐग्रीगेटर ..थोडे दिनों के लिये विराम ले ..या रुक जाये तो...पाठकों के सामने ऐसी अपंगता वाली स्थिति न रहे......

अभी जो स्थिति है...उसमें सिर्फ़ एक चिट्ठाजगत ही बच गया है......तो हे महान लोगों...यदि खुदा न खास्ता आप में से किसी को इससे भी कोई शिकायत है .....तो आप उसे यूं सरे आम सामने न रखें....कोई दूसरा रास्ता ..जो विद्वानजन आपको बता देंगे .....उसे ही अपनायें...वर्ना अभी तो हिंदी ब्लोगजगत की शैशव काल में ही मौत सी हो रही है..इसके बाद तो भ्रूण हत्या वाली स्थिति हो जायेगी....

लगे हाथ एक सलाह उनके लिये भी जो बंधु सिर्फ़ दूसरों की लेखनी और विषयों को निशाना बना कर लिख रहे हैं....मित्र यदि लिखने को कुछ न रहे...या कोई विषय न सूझ रहा हो...तब भी ..यानि बिल्कुल अंतिम विकल्प के रूप में भी वैसी पोस्टें लिखने से बेहतर होगा कि आप दूसरों को पढने और टीपने में समय दें....अन्यथा यदि एग्रीगेटर्स बंद हो सकते हैं तो ब्लोग..........?

अब बात कुछ विकल्प की...इसमें की दो राय नहीं कि ब्लोगवाणी का न तो कोई विकल्प था और न ही मुझे आगे दिखता है ....मगर फ़िर भी ...आप अपने मन को संतोष पहुंचाने के लिये ....चिट्ठाजगत के अलावा यदि यहां वहां झांकना चाहें तो इन जगहों भटक सकते हैं.....ठीक उसी तरह जैसे लैला की तलाश में मजनूं भटका करता था......





मगर ये आपकी प्यास में चंद बूंदों से ज्यादा कुछ भी साबित नहीं होंगे......उम्मीद है कि ब्लोगवाणी जल्दी ही हमारे बीच लौट कर ..हमारी प्यास बुझायेगा....आज दशहरे कि दिन और क्या मांगूं ...हे राम हमारी अयोध्या हमें तू वापस करे दे.......

बुधवार, 23 सितंबर 2009

रामलीला के वो रोल... जो मेरे सिवा और कोई नहीं कर पाया

हालांकि अब रामलीला में वो बात कहां.....जो हमारे जमाने में हुआ करती थी...अजी पूरे साल..बस त्योहारों पर ही नज़र हुआ करती थी....होली, दिवाली, दुर्गा पूजा, दशहरा....और पूरे साल उसकी तैयारी भी...क्या दिन थे वे भी..और खास कर दुर्गा पूजा के वो दस दिन...जब घूम घूम कर पूजा , पंडाल, उनकी सजावट ...देखने में पगलाये रहते थे...यदि किसी में अपनी भागीदारी भी करनी हो तो समझिये कि बस....इत्ती घनघोर तैयारी चलती थी...कि उन दिनो में भी हमारी गंभीरता को देखते हुए...हमसे जबरिया अपना होमवर्क करने को कोइ कह नहीं पाता था....फ़िर उसके बाद राम लीला से हमारा मोह....वो तो सारा मामला खराब कर दिया...रामानंद सागर जी..जिन्होंने ऐसी कालजयी रामायण दिखा दी पब्लिक को ..कि रामलीला की तो सारी लीला ही खत्म सी हो गयी...वैसे दिल्ली में अभी भी रामलीला तो मनाई ही जाती है....जिनमें नेताओं के स्वागत और कुछ अन्य इसी तरह के मनोरंजक कार्याक्रमों के साथ साथ बीच बीच में ऐड की तरह आप रामलीला भी देख सकते हैं.....खैर छोडिये....आज तो बस आप ये जानिये कि रामलीला के वे किरदार .....जो हम निभा गये और जिस तरह से निभा गये...अजी कोइ माई का लाल आज तक उसे वैसा नहीं निभा पाया...अब तक तो नहीं ही....क्या कहा आप नहीं मानते.....हिंदी ब्लोग्गर हैं न..ऐसे थोडी मानेंगे...तो लिजीये जबरिया पढिये.....


जब हम सबसे पहली बार राम लीला में अपना रोल पाने पहुंचे तो ...मन ही मन ये तय कर लिया था कि....राम से कम किसी रोल पर तो कोई कंप्रोमाईज़ नहीं करेंगे....एक यही तो वो रल है ...जिसके बहाने हम ..पूरे दस दिन अपने ..होमवर्क से दूर रह सकते थे...दूसरे किसी रोल में ये सेफ़्टी गारंटी नहीं थी.......सो सीधा ही दावा ठोंक दिया.....वैसे भी उन दिनो वैसे ही ठोंका जाता था....तब कौन सा ऐस ऐम ऐस की टेंशन थी....कि हफ़्ते भर इंतज़ार के बाद पता चलता....यही कि हमें भी हमारे दावे के अनुरूप उन्होंने ठोंका...नहीं ..बाहर फ़ेंका.....कारण भी एक दम वाजिब था ......जवाब मिला.....राम का रोल....झपटू चाचा का बेटा....लुटकुनमा करेगा...क्योंकि ..रामलीला में सबके कपडे सिलाने के अलावा......राम लीला के दौरान सबको चाय और समोसे की स्पोंसरशिप भी उसकी तरफ़ से ही थी......हमने भी मन मार के हां में हां मिला दी.....और इस तरह से ही अपने योगदान के हिसाब से सबको रोल मिल गये......हाय रे कैटल क्लास....बताईये जो बात थरूर को अभी पता चली है...हमें तो तभी जता दिया था सबने......मगर ये क्या बात हुई जी...हमारा तो व्यक्तित्व ही राजकुमारों सा है...सो न करना मंजूर है...मगर राजकुमार तो बनेंगे ही.....चलो ठीक है....राम, लक्षमण, और भरत की तो बुकिंग हो चुकी है...बस एक शत्रुघ्न का रोल रह गया है.....आप कर लो...बहुत ही सेफ़ रोल है......हमने भी झट से हामी भर दी.....हमारे डायलोग भी तो बताओ.....और ये भी कि हमारे अपोजिट कौन है..मतलब..नायिका.....अरे कहा न सेफ़ रोल है...शत्रुघ्न ने कब डायलोग बोल दिया जो तुम बोलोगे....और अपोजिट..तुम्हारे हमेशा ही..भरत रहेंगे.....बताओ यार क्या रोल मिला .....मगर राजकुमार तो बन ही गये....और यकीन मानिये....शत्रुघ्न वाला वो रोल आज तक कोई वैसा नहीं कर पाया..


अगली बार तय कर लिया था कि ...इस बार तो कैटल क्लास की हालत...तो फ़ैटल क्लास टाईप हो गयी है.....और फ़िर राजकुमारों वाला दमदार रोल तो कर के देख ही लिया था....कलाकार आदमी कब एक तरह की भूमिका चाहता है.....उसे तो वैरायटी चाहिये....सो हमें भी चाहिये थी....हमने फ़ट से अपनी ये इच्छा ...डायरेक्टर लुट्कुन जी को भी बताई...(.जी सच सुना आपने....इस बार लुट्कुन जी ने समोसे के साथ साथ...रामलीला के बाद पूरी नाटक मंडली को ...सनीमा दिखाने का वादा भी कर लिया था...सो इस टैलेंट से वे फ़टाक से डायरेक्टर बन गये....मुझे तो यकीन है कि यदि वे बौलीवुड में भी अपने इसी टैलेंट का उपयोग करते..तो आज मधुर भंडारकर तो तगडा कमपटीशन मिलता....)..उन्होंने..हमें चारों तरफ़ से जांचा परखा....और कहा...चलो ..फ़ैसला हो गया....या जटायु का रोल कर लो.....या जामवंत का......और ये दोनों रोल के मिलने का एक महान कारण भी हमें बताया गया.....देखो इन दोनों रोल के कौस्ट्यूम काफ़ी अलग हैं......कोई भी पहन रहा है तो उसे खुजली हो रही है....तुम्हारा क्या है...तुम्हें तो वैसे भी खुजली रहती ही है....तो आखिरकार ये तय हो गया कि ..दोनों ही रोल हमने ही करने हैं.....और क्या खूब किया जी....कोई भी आज तक नहीं कर पाया.....
इसके बाद तो हमने तय कर लिया कि जाओ जी हमें तो अपने पुरुष पात्रों ने कोई बहुत बडा ब्रेक नहीं दिलाया सो अबके तो चाहे जो हो जाये......हम कोई ऐतिहासिक..महिला किरदार ही करेंगे...और देखिये.....हमने इतिहास रच दिया....लुटकुनमा जी ने कहा...देखो भैया...तुम अभीये जो एक बार नाक कटा लोगे न.....तो फ़िर जिंदगी भर इसका टेंशन नहीं रहेगा.....और धीरे धीरे तो आपको इसकी आदत ही पड जायेगी....और आगे जाकर आप खूब नाक कटाओगे...चाहे रामलीला करोगे ......या ब्लोग्गिंग....जहां भी नाक घुसेडोगे...कौनो न कौनो...फ़ट से आपकी नाक काट लेगा...कमाल का यादगार रोल रहा ये भी......


चलिये आप लोग मौज करिये...और अपने बच्चों को खूब रामलीला दिखाईये.....

(नोट:- यार अब इसे पढ कर ये मत कहने लगना कि...हमने इन पात्रों का मजाक उडाया है....फ़लाना ढिमकाना...हमने तो अपनी दास्तान सुनाई है ...आप तो बस मुस्कुरा लो जी.....)ई जो उपरका पैरा ..अंडर लाईन हो गया है....हमको नहीं पता...कैसे हो गया है....हट भी नहीं रहा...झेलिये आज ऐसे ही...

सोमवार, 21 सितंबर 2009

बी एस पाबला जी...माने.....(बलडे स्पेशल ).....


मनाया करते थे औरों की खुशी, अपना ही राज छुपा के रखा,
हमें माल सप्लाई करते थे, अपना माल ही दबा के रखा......

बहुत नाइंसाफ़ी है जी...बताईये तो....ई पाबला जी भी न एक दम ..टैण.....टैणेन ही हैं.....कल ही अचानक बात बात में पता चला कि पाबला जी का आज जन्मदिन है...मैम थोडा हैरान हुआ ...क्या जिन्नों का भी कोइ जन्मदिन होता है( यहां ये बता दूं कि ..जब से मैं पाबला जी को थोडा बहुत जानने लगा ...तो बहुत तो पता नहीं..थोडा सा जानते ही लग गया कि ...एलियन (अजी अपने उडनतशतरी जी ) के बाद ..अब जिन्न भी ब्लोग्गिंग कर रहे हैं....और मुझे मिल भी गये हैं....

दरअसल पाबला जी से मुलाकात ..यानि आभासी मुलाकात कुछ यूं हुई कि उनके ब्लोग ब्लोग ओन प्रिंट मीडिया.....के सिलसिले में मैंने उन्हें टीप कर बताया कि ...कुछ और भी अखबार भी हैं जो हिंदी ब्लोग पोस्ट्स को नियमित -अनियमित रूप से ..अपने समाचार पत्रों मे स्थान दे रहे हैं...उन्होंने फ़ौरन से पेशतर हमें ये जिम्मेदारी सौंप दी...कि बेटा खाली सूचना भर देने से काम नहीं चलेगा...अगर शिगिर्द बनना है तो थोडी और मेहनत करो...और बस शुरू हो गयी उनके साथ हमारी पार्टनरशिप....राम राम कैसी बातें कर रहे हैं हम...अजी चेला गिरी कहिये......पहले तो हमें लगा (क्योंकि हर तकनीकी समस्या के सामने पाबला जी को खडे देखा ....और फ़िर थोडी देर बाद उस समस्या को भागते देखा....इसके बाद उनके कुछ ब्लोग्स जैसे......कल की दुनिया.....इंटरनेट से कमाई.....आदि देखा.....फ़िर एक दिन ...मैंने उन्हें कहा कि सर आज तो यहां दिल्ली में बादल हैं....उधर से आवाज़ आई ...हां..मैं सेटेलाईट के माध्यम से देख रहा हूं......क्या....सेटेलाईट....मुझे ये समझते देर नहीं लगी कि...पाबला जी ने अपने घर को छोटा मोटा नासा बना रखा है...द्विवेदी जी के शब्दों में ....फ़ैक्ट्री लगा रखी है...) कि पाबला जी एक तकनीकी टाईप के ब्लोग्गर हैं....मगर जब इनके ...जिंदगी के मेले.....ब्लोग्गरों का जन्मदिन .....जैसे लगभग डेढ दर्जन ...एक दम अलग और मौलिक...अद्भुत आईडियास वाले ब्लोग्स को देखा तो ....समझ ही नहीं आया कि ....किसमें कहूं कि ज्यादा सिद्धहस्त हैं.......यहां ये बताता चलूं कि अभी तो पाबला जी के हमने सिर्फ़ वो औज़ार...यानि ब्लोग्स ...देखे हैं जो उन्होंने दिखाये हैं......पिक्चर अभी बांकी है मेरे दोस्त.....

अब बात इनके एक और पहलू कि ........मैंने अक्सर देखा है कि जब भी ..ब्लोगजगत में किसी नये पुराने ब्लोग्गर्स को ...किसी भी तरह की कोई परेशानी आती है.....एक आवाज सबसे पहली आती है......मैं हूं न.....बस इसके बाद आपकी समस्या खत्म ....सब पाबला जी संभाल लेंगे.....अब कल ही की बात लिजीये न....मैंने उनसे कहा .....सर ये समझ नहीं आ रहा कि ...इस तरह से करना चाहता हूं ..मगर कर नहीं पा रहा....कोई बात नहीं....उधर से कहा गया....मैं इसे अपने हाथों से ठीक करूंगा....पाबला जी ने कहा.....मैं हैरान और खुश ...दोनों एक साथ हो गया...इसका मतलब पाबला जी ..जल्दी ही दिल्ली आ रहे हैं.....थोडी देर बाद ..फ़िर पाबला जी संपर्क में आये...कहा ..मैं तैयार हूं....अरे इत्ती जलदी...पहुंच गये क्या.....नहीं जी यहीं से बैठे बैठे हो जायेगा....बाप रे मैंने तो सुना था कि ...सिर्फ़ कानून के हाथ लंबे होते हैं....अब पता चला कि पाबला जी के भी होते हैं.......बस जी इसके बाद तो ...पाबला जी के उन लंबे हाथों मे हमारे कंप्यूटर का की बोर्ड....और हम यहां देख रहे थे कि ..जिन्न कैसे काम करते हैं....

ये तो कल ही सोच लिया था कि ...पाबला जी पर एक पोस्ट तो लिखनी ही पडेगी.....और बहुत से लोग लिखेंगे...तो हम क्या कम हैं...सो मौका भी है और दस्तूर भी ...तो हड्बड में जो भी जितना भी बन पडा ..ठेल दे रहे हैं....इसी उम्मीद में कि ....अब तक जितने ब्लोग्गर्स का जन्मदिन मनाया है पाबला जी वाया...सबने हमारे हिस्से का केक ..पाबला जी के यहां सेफ़ली रखवा दिया था....आज वसूल लेंगे ...सूद समेत.........


अब कुछ दिलचस्प पाबला जी के लिये......

मुझे अभी तक सच में नहीं पता कि पाबला जी के नाम में जो बी एस है...वो बी एस ...आखिर है क्या...सो कुछ अनुमान लगा रहा हूं.....आप भी लगाईये...

बी एस पाबला यानि :-ब्रिलियेंट एंड स्मार्ट....पाबला

बी एस पाबला यानि :-बोल्ड एंड सैक्सी ........पाबला

बी एस पाबला यानि :-बेस्ट सरदार .............पाबला.

बी एस पाबला यानि :-बर्थडे सेलेब्रेशन........पाबला..

बी एस पाबला यानि :- ब्लोग साथी.............पाबला..

बी एस पाबला यानि :-बहुत शर्मीले............पाबला..

बी एस पाबला यानि :-ब्लोग शिरोमणि.....पाबला..

बी एस पाबला यानि :-बहुत सारे.............पाबला...(यहां ये बता दूं कि पाबला जी ...अकेले ही अपने आप में...बहुत सारे हैं...यानि एक बहुत बडी टीम.....)

तो आज उन्हें उनके इस जन्मदिन...जो कि उनका अडतालीसवां जन्मदिन है....पर हमारी तरफ़ से बहुत बहुत मुबारक बाद और शुभ कामना.....वैसे सोच रहा हूं इन पर एक पोस्ट ......फ़ुर्सत में लिख ही डालूं......क्या कहते हैं आप..

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

हाय हम हो न पाये किफ़ायती....

जब से देश में किफ़ायत की हवा चली..तब कहीं जाकर इस मुंए स्वाईन फ़्लू की चर्चा थोडी कम हुई...खैर जब ये हवा चली तो देश के नागरिक होने के नाते मेरा फ़र्ज़ बनता था कि जब स्वाईन फ़्लू से मैं डरने में मैने पूरी सहभागिता निभाई तो फ़िर इस कटौती में क्यों नहीं...सो तय कर लिया कि अब चाहे जो हो हम भी किफ़ायत करेंगे...मगर हम जानते हैं कि ..इन राजनितिक निर्णयों मे हमसे वरिष्ठ मित्र लपटन जी ही हमारी मदद कर सकते हैं...सुना है जसवंत जी की भी उन्हीं ने मदद की थी ...सारा प्लोट ही उन्हीं ने लिखा था....किताब तो बाद में लिखी जसवंत जी ने...खैर..

लपटन भाई...यार अब तो मन नहीं मान रहा ..अब तो जैसे करके भी हमारे किफ़ायत का भी कुछ इंतज़ाम करो...हम भी चाहते हैं कि हमारा भी सहयोग हो ..ताकि देश जो इस मंदी के भारी भरकम दौर को झेल गया है...कल को उसे बचाने मे ..किसी का हाथ होने का नाम आये तो एक नाम इस नाचीज़ का भी तो हो..सोचो कितने फ़क्र की बात है ...अपने हिंदी ब्लोग्गर्स के लिये...

हांय...हमें तो पहले ही पता था कि देर सवेर बेटा तुम पर ये असर होने वाला ही है...अबे तुम ब्लोग्गर्स किसी चलती फ़िरती बात को न पकडो..ऐसा तो हो ही नहीं सकता..और सुना है अब तो बिग बी भी हिंदी में कुछ लिखने वाले हैं...चलो छोडो...बेकार की बात....ये किफ़ायत शिफ़ायत ..तुम लोगों के लिये नहीं है....

क्यों भाई...हम क्या सिर्फ़ ..सूअर फ़्लू के काम के लिये ही हैं...अरे नहीं नहीं यार मैं सीरीयस हूं...मुझे जरा भी बुरा नहीं लगेगा ..अगर कोइ मुझे इकोनोमी क्लास में..जाने को कहेगा......इसी बहाने हवाई जहाज़ में बैठने का मौका तो मिलेगा....

बस मुझे पता था....तुम कैटल क्लास लोगों की सोच यहीं तक सिमित रहती है....अबे ये कटौती या किफ़ायत तो वही कर सकते हैं न जो जहाज़ में उडते हैं...तुम तो बेटा पहले ही कटौती में..मतलब सायकल में सफ़र करने वाले हो...तुम्हारे सायकल के पैडल से मंदी की तेजी और मंदी क्या...

हम निराश हो गये...ऐसी तो आशा ही नहीं थी...यानि इतने काम भी न आ सके देश के...मगर अगले ही पल ठन गया कुछ मन को ..अच्छा लपटन भाई...यार हवाई जहाज़ में न सही..किसी और बात में...मसलन खाने पीने में किफ़ायत कर लें तो कैसा रहेगा...

अच्छा ..खाने पीने में....चलो ठीक है....दाल खाते हो.....यदि हां तो....किफ़ायत के रूप में ....मुर्गा ...और यदि उससे भी ज्यादा करनी हो तो अंडे खाना शुरू कर दो...पीने के नाम पर तुम बस पानी ही पीते हो..सो इसमें क्या कटौती कर सकते हो...खुद ही कर लेना....

मगर लपटन जी .....दाल को तो खाये जमाना हो गया....अब तो बच्चों की प्रोजेक्ट कौपी में भी दाल की जगह..कुछ उसके जैसे दिखने वाले कंकड चिपका देते हैं....बच्चों का क्या है..कल को जब बडे होंगे..तो कौन सा ये दाल उनको देखने खाने को मिलेगी...बांकि की दोनों ...हम पाल पोस तो सकते हैं...बस उससे ज्यादा हमारे बस का नहीं..


हाय यानि कि हम कोइ किफ़ायत नहीं कर पायेंगे इस देश के लिये....धत इतने भी काम न आ सके देश के...

जब से लपटन जी मिल के आये हैं उदास बैठे हैं...इसलिये इत्ती गम्भीर गंभीर बातें लिखनी पडी आज..आपके पास है कोइ आईडिया ..किफ़ायत का तो बताईये न....

रविवार, 13 सितंबर 2009

ब्लोग्गर स्नेह महासम्मेलन.(.रिपोर्ट पढ ली..).अब रपट पढिये...


ब्लोग्गर सम्मेलन की घोषणा जब की गयी थी .....तब कुछ भी तय नहीं था...सिवाय इसके ...कि बस अब बहुत हुआ दूर दूर से निहारना...अब तो यार कहीं मिल बैठो......हाथ से हाथ मिले , और दिल से मिले दिल,....एक बार उन्हें भी सीने से लगा के देखें...जिनसे जाने कब कैसे कितना गहरा रिशता बन गया....मगर स्थान, समय , दिन कुछ भी तय नहीं हो पा रहा था...मित्र ब्लोग्गर्स ....बिल्कुल इसी तरह उतावले थे....जिस तरह ..अपनी पोस्ट लिखने के बाद टिप्प्णी को देखने के लिये रह्ते हैं....

इसी बीच अविनाश भाई....जो जनसंपर्क में किसी भी हिसाब से अपने आप में ....चलते फ़िरते बी ऐस ऐन ऐल हैं.......उन्होंने खबर दी कि ...राजीव रंजन जी ..साहित्य शिल्पी की पहली वर्षगांठ ...का समारोह आयोजित करने जा रहे हैं....क्यों न इसी के साथ ब्लोग्गर्स मित्रों को भी आमंत्रित किया जाये....और कुछ न सही ..कम से कम दो बातें तो हो ही जायेंगी.....एक तो ये कि ..ये पता चल जायेगा...किसने किसने ...अपनी फ़ोटो ...खुद से ज्यादा सुंदर लगा रखी है...कौन अपनी लगी हुई फ़ोटो से ज्यादा स्मार्ट है...और कौन कौन ..हमारी तरह यानि..निगेटिव, फ़ोटो , और असलियत में(इसे थ्री डी इफ़्फ़ेक्ट कहते हैं) ...एक जैसे ही हैं....

जगह तय हुई फ़रीदाबाद......सभी ब्लोग्गर मित्रों को पोस्टों के माध्यम से...मेल से..और जिनके फ़ोन नम्बर उप्लब्ध थे ..उन्हें फ़ोन से भी सूचना दी गयी...अजी सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ...अविनाश भाई ने इसके बाद ...दिल्ली से फ़रीदाबाद तक के निर्धारित स्थान तक सभी ब्लोग्गर्स मित्रों के पहुंचने की व्यवस्था भी करनी शुरू कर दी...अब ये मुझे नहीं पता ....हो सकता है..उन्हें लगा हो ..कि पहुंचने का कह कर सब ठीक समय पर गोली न दे दें....सो सबकी सवारी भी पक्की कर दो...अब इसके आगे कुछ और कहें ....अपनी भी कहते चलें....जैसे ही श्रीमती जी को बताया कि फ़रीदाबाद जाना है...कुछ काम है....शर्त ये रही कि ...ठीक है चलो इसी बहाने ..कुछ रिशतेदारी भी निभा कर आना हो जायेगा...जो कि आप कभी भी नहीं निभाते...सो तय ये हुआ कि ..वहां जाने के लिये जबरिया हमें साले साहब की गाडी में ही जाना होगा.....जो सीधे हमें हमारे साढू के घर पर छोडेंगे...पहले हमें अपनी उपस्थिति वहां दर्ज़ करानी ही होगी फ़िर चाहे जहां जायें....नहीं मानने की कोइ गुंजाईश ही नहीं थी....इत्तला श्री पवन चंदन जी को दी गयी...जिसे उन्होंने फ़ौरन से पेशतर हमारी गोलीबाजी ही समझा....खैर....पूछा गया कि ..कहां..किस कार्यक्रम में जाना है....अरे कुछ नहीं...छोटा मोटा सा महा सम्मेलन है......क्या ....क्या कहा.....छोटा महा सम्मेलन........और थोडी देर का ...मुझे पता है......आप नहीं लौटने वाले कल...जब उनकी फ़ोटुओं...और उनकी पोस्टों के साथ सारा सारा दिन चिपके रहते हो...तो अब तो वे सब के सब सामने होंगे.......शर्त ये कि....चलो देर हो तो .....रुकना वहीं ......मेरी बहन के घर ....


इस सारे वाया- मिडीया को झेलते ..जैसे तैसे ..पहुंच ही गये ...और चुपके से जा के बैठ गये ....अविनाश भाई के पीछे......कारण ....एक तो ये कि बस एक उन्हीं को पहले से पहचानते थे.....दूसरा ये कि ...उन्हीं के आसपास ब्लोग्गर्स के संक्रमण का खतरा था....जिससे ग्रस्त होने हम वहां पहुंचे थे.......जैसा कि तय था....और तैयारी थी....शुरूआत राजीव जी ने अपने साहित्य शिल्पी की पहली वर्षगांठ को समर्पित करते हुए....इसके एक साल के सफ़र ....उप्लब्धियों...आगामी योजनाओं.....के बारे में बडे ही ओज पूर्ण स्वर और शानदार शैली में किया...साथ निभाया......श्री अजय यादव जी ने और अभिषेक सागर जी ने...अपने लैपटौप और स्लाईड शो के सहारे ....तस्वीरें यहां देखें....... इसके बाद शुरू हुआ सिलसिला..कवि सम्मेलन, संगोष्ठी का .....जब कवियों ने समां बांधा.....तो तिलस्म तब टूटा जब ...सबको याद दिलाया गया कि ....आप लोगों के भोजन की भी व्यवस्था है...समय इतनी जल्दी जल्दी बीत रहा था कि ..पहले ही कई कवियों....को कह दिया गया था कि रिसेशन का असर यहां भी शुरू हैं ....सो .....

अरे तो भैया हम ब्लोग्गर्स....अजी जब पोस्ट पढने के बाद बिना टीपे बाहर नहीं निकलते तो ....क्या सम्मेलन को बिना महा बनाये निकल जायें हो ही नहीं सकता...उपाय निकाला फ़िर से अविनश भाई, राजीव रंजन जी , और सुनीता जी ( जिनके सहयोग के कारण ही उनके विद्यालय में ये आयोजन संभव हो सका) ने....भोजन वहीं लगवाया गया.....और पिछली रिपोर्टों में देख रहा हूं कि ...किसी ने ये जिक्र नहीं किया कि ..सबने जम के छोले भटूरे....अचार...और गर्मागरम गुलाब जामुन ...को छक कर उडाया.....और इसी के साथ साथ ...चल रहा था ब्लोग्गर्स के विचारों का आदान प्रदान......







(अविनाश भाई...हमेशा की तरह व्यस्त)










ब्लोग्गर्स की पारी की शुरूआत की ..अविनाश वाचस्पति जी ने.....उन्होंने विस्तार से हिंदी ब्लोग्गिंग पर अपने विचार ...उसका भविष्य......मित्र ब्लोग्गर्स का आभार ...सब कुछ अपने वक्तव्य में कह दिया...


इसके बाद उनके संचालन और निर्देश - आदेश के अनुसार सभी ब्लोग्गर्स अपने अपने विचार रखते रहे.....हम सुनते रहे...


जहां ..गाहे-बेगाहे ...ब्लोग वाले विनीत कुमार ने ....जम कर ब्लोग्गिंग को सिर्फ़ टाईम पास कहने वालों की बखिया उधेड दीं....अपने कलम के तेवरों के अनुरूप उन्होंने बताया कि ..कैसे ब्लोग्गिंग ... मीडीया के अपने अंदर छुपी हुई सच्चाईयों को उसके सामने रख रहा है...यानि उसे आईना दिखा रहा है...और सभी ब्लोग्गर्स से आग्रह किया कि इसे संजीदगी से लें ...और वैसे ही प्रस्तुत करें....

मीडीया मंत्रा वाले पुष्कर जी ने भी अपनी बात ..इससे थोडा सहमत -असहमत होते हुए रखी....

हाल ही में ..ब्लोग्गिंग में आये देशनामा वाले खुशदीप सहगल जी का कहना था...कि आप यदि भाषण में ही अपनी बात रखेंगे...तो संभव है कि लोग आपको पढें न पढें....रोज़ रोज़ न पढें...तो जरूरी ये है कि पहले ये जाना जाये कि लोग किस बात को ..किस अंदाज़ में पढना पसंद करते हैं.....और उसे वैसे ही प्रस्तुत करने की कोशिश की जाये...

हास्य प्रिय मित्र ब्लोग्गर्स ..राजीव तनेजा जी ने..एक दम शर्मीले अंदाज़ में......अपनी एक हास्य रचना से परिचय करवाया...तो शेफ़ाली जी ने ..अपने अरहर नामा.....(अरहर दाल को समर्पित )....रचना पढी...भाई इरशाद अली.तन्हा सागर जी, सुनीता जी....पांडे जी...सुनीता शानू जी....और वरिष्ठ कवि..श्री योगेन्द्र मौदगिल जी , श्री पवन चंदन जी, श्री विकेश जी, ने भी अपनी अपनी रचनाओं का आशीर्वाद दिया.....

समय का पहिया भागता जा रहा था.....मगर मन था कि मान ही नहीं रहा था...सम्मेलन का समापन करते हुए आखिरकार ..पवन जी को कहना ही पडा कि ...जल्द ही ..एक सम्मेलन..दिल्ली में भी होगा...

अब कुछ दिलचस्प बातें जो मेरे साथ हुईं
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शेफ़ाली जी अपनी बहन के साथ आयी थीं.....दोनों की एक सी सूरत.....सो बीच में नमस्कार किया ...जो शेफ़ाली हों ..वे स्वीकार करें..और बहन जी को ...copy to ....कर दिया...

भाई राजीव जी के आने तक मैं....जिनके राजीव तनेजा होने का अनुमान लगाता रहा..वे योगेश समदर्शी निकले....

दैनिक जागरण के जिन मित्र से आग्रह किया कि वे कार्यक्रम को कवर करने के लिये किसी को भेज दें....जो आये वे थे.... श्री अनिल बेताब....खुद ही एक प्रतिष्ठित कवि....सो उन्होने न सिर्फ़ कवर किया बल्कि एक अलग ही समा बांध दिया...

चलते चलते ये बता दूं कि अब तक..हिंदुस्तान....दैनिक जागरण ..द्वारा इसे कवर करने ..और प्रकाशित करने की खबर मिल चुकी है...पेपर कटिंग भी मिल चुकी है...शायद कुछ और भी समाचार पत्रों द्वारा भी इसे खबर बनाया गया है....

तो मिलते हैं......अगले ब्लोग्गर सम्मेलन में....एक बार फ़िर ...

मंगलवार, 8 सितंबर 2009

मिलिये मेरी बुलबुल से....



बहुत पहले से सोच रहा था.....कि आपको अपने परिवार से मिलवाया जाये.....मगर कुछ तो अपना आलस.....और कुछ तस्वीरों की अनुपलब्धता के कारण ऐसा संभव ही नहीं हो पा रहा था....


फ़िर इसके लिये खास तौर पर आधुनिक सुविधा से युक्त मोबाईल फ़ोन खरीदा गया...फ़्लाई...ई १०५...बस इसके बाद इससे तस्वीरों को खींचने का सिलसिला...जब शुरूआत करने का फ़ैसला किया तो ...निर्णय हुआ कि ..हमारे घर के सबसे कमाल के सदस्य से ही शुरूआत की जाये...और निर्विवाद रूप से वो है ..हमारी बिटिया रानी...बुलबुल ...यानि ..अदिति ...

जब हमारे घर में .....पुत्र आयुष के बाद .. दूसरी बार खुशी आने वाली थी......तो जैसा कि महिलाओं में ही अधिक जिज्ञासा रहती है...यही चलता था ....कि अबकी बार गोलू जी (मेरे पुत्र आयुष का घर का नाम ) का भाई आयेगा या बहन .....मगर मुझे अपने घर में ...दीदी के बाद यही ..इच्छा थी कि ...एक छोटी सी ...दीदी का रूप आ जाये...मगर प्रत्यक्षतः मैं आज के माहौल को देख कर ..थोडा सशंकित था...श्रीमती जी से यही बात कही ..तो आप भी सुनिये कि उन्होंने क्या कहा....बेटियां आदमी को इंसान बनाती हैं...और मकान को घर ....

और उनके इसी विशवास ने ...मुझे एक आत्मविशवास से भर दिया...जब हमारी ये बुलबुल जी घर में आयीं...तो बस जैसे सारा घर चहक उठा ...कहते हैं छोटी संतान चंचल होती है...जो कहते हैं बिल्कुल ठीक कहते हैं....अब ये बुलबुल जी हमारे पूरे घर को अपनी किलकारियों से गुंजायमान रखती हैं...जब भी लैपटौप पर काम करने बैठता हूं...बस जी हमारी गोद में इनकी सीट रिज़र्व हो जाती है...और तो और ...ये बुलबुल जी सोती भी हमारे पेट पर ही हैं..सुबह की सैर हो ...या रात की घुमाई...और कोइ जाये न जाये इनका जाना पक्क होता है...तो सोचा कि आपको भी मिलवा ही दूं अपनी इस बुलबुल से ..जो मुझे आदमी से इंसान बनना सिखा रही है...

अगली पोस्टों में हम आपको अपने ..गोलू जी और श्रीमती जी से भी मुलाकात करवायेंगे..फ़िर उनको दिखायेंगे..शायद इसी बहाने हमें भी ...डाक्टर साहब की तरह ज्यादा टाईम सैंक्शन हो जाये...

शनिवार, 5 सितंबर 2009

हम्ररे मा साब...होनोलूलू से आये हैं...



आज शिक्षक दिवस पर....लोग बाग जम के अपने अपने मा साब को गरिया रहे हैं....कुछ उत्साही तो गरियाने से भी आगे जाकर जुतियाने तक को आतुर दिख रहे हैं.....इस एंगल से तो आज तक हमने ....किसी को कोइ दिवस मनाते नहीं देखा...ऐसा लग रहा है..मानो सबको ...बचपन में ......जितना ठोका पीटा गया था....आज सबका बद्ला ले कर ही रहना है...मैं तो सोचा करता था कि ये दिवस वैगेरह शायद...उप्लब्धियों....सफ़लताओं ...आदि को याद करके....सबको प्रोत्साहित करने के होता है..वैसे भी जिनके जन्मदिन को ..शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.....उनके जीवन को देख कर तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है....अब हमें क्या पता था...कि लोग पूरे साल को छोड कर ...आज के दिन को ही...लतियाने...जुतियाने के सुंदर कार्यक्रम के लिये चुन लेंगे.....

हम भी जब .....जवानी के जोश में...कुछ ऐसे ही जज़्बाती हुआ करते थे....तो एक दिन गांव प्रवास में ...ऐसा ही साहसिक कार्यक्रम बना कर गांव के विद्यालय पहुंचे......बहुत शिकायत सुनी थी...इन सब म साहब लोगों की...सब के सब...एक जैसे ...पढाई लिखाई से कोइ मतलब नहीं......आज तो नहीं छोडेंगे.....खरी खरी सुनायेंगे.....और आज ही की तरह कुछ ....समाज सेवी लोग तो बिल्कुल तैयार थे ...कि आज तो हाथ साफ़ कर ही लिया जाये.....(बाद में पता चला कि ...उनमें से कुछ लोगों को ....किन्हीं मा साब ने..स्कूल के एक कमरे की चाभी नहीं दी थी कभी....जब उनको अपनी कोइ शाम...गर्म करनी थी.....)...खैर ...हम पहुंचे ...एक दम तमतमाये हुए....
और किसी ..इंस्पेक्टर की तरह शुरू की जांच....हाजिरी रजिस्टर दिखाईये.....स्कूल का फ़ंड रजिस्टर दिखाईये....
इससे पहले कि कुछ और जांच चलती...वहां के हेड मा साब आ गये.....

अरे बौवा...कब आये गांव...हम तो खुद आपसे मिलन चाह रहे थे....देखिये न...सरकार हम लोगों के साथ क्या क्या कर रही है...पिछले आठ महीने से वेतन नहीं मिला है....और अब ये देखिये चिट्ठी आई है कि ...जिन्हें जरूरत है....वे ब्लौक में आकर गेंहू ले सकते हैं...वेतन समझ कर ..बाद में उसमें एड्जस्ट कर लिया जायेगा....हम चुप ...

मगर जो दूसरे लोग गये थे...वे चुप रहने वाले थोडी थे.....मा साब ...ये वेतन का रोना छोडिये....आप लोगों ने स्कूल को एक दम भथ्थम कर के रख दिया है.....कोइ पढाई लिखाई नहीं हो रही है..बच्चा सब बिगडता जा रहा है...आप लोगों पर कोइ असर ही नहीं हो रहा है..पता नहीं कहां कहां से भर्ती हो कर आ गये हैं...

हां हां ...बेटा हम लोग तो ....होनोलूलू से आये हैं सीधा.....इसलिये ऐसे हैं.....इस गांव....इस समाज ....इस देश ...के हैं ही नहीं....सो हमें क्या पता....आप बताओ....यहां कैसे क्या होता है....

मगर इससे ज्यादा कुछ कान सुन नहीं पा रहे थे....हम सब निकल गये वहां से....


घर आकर सोचा....यार ये हेड मा साब ने ऐसा क्यों कहा....फ़िर बात धीरे धीरे समझ में आने लगी....ये गणित वाले, ये भूगोल वाले, ये हिंदी के...सब के सब तो हमारे या आसपास के गांव के ही तो हैं...जो जो गुणी जन हमारे साथ गये थे.....वहां..अपने मनोरथ..पूरे करने..उन सबका कोइ न कोइ ...शिक्षक था ही......

कमाल है यार....यदि ये अपने समाज से ही हैं ....तो फ़िर कैसी शिकायत....हमारे बीच के ही तो हैं....यदि ये होनोलूलू से हैं ....तो भी काहे की शिकायत....बेचारों को क्या पता..अपने यहां की महान सभ्यता और समाज का ....

तब से मैं आज के दिन....अपने उन शिक्षकों को याद करके उनका शुक्रिया अदा करता हूं...जिनके कारण आज मैं कुछ भी अच्छा ...बन पाया..

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

हम सेंटी हैं कि मेंटल .....चलिये आप ही बताइये..























बहुत दिनों बाद जैसे ही मित्र चिट्ठा सिंग....(ओहो..फ़िर गड्बड हो गयी...अच्छा चिट्ठा झा...चिट्ठा मिसर..या चिट्ठा शुकल कह लिजीये.....अरे क्यों नहीं कहेंगे...नहीं तो फ़िर अपने विवेक बाबू...को लगेगा कि जरूर हमने उनका ही सिंग तोड के ..चिट्ठा बाबू के चिपका दिया है....) तो मैं कह रहा था...कि जैसे ही वे मिले...कहने लगे...और झाजी...सुने हैं..बडे हौवा हौवा के पोस्ट ठेल रहे हैं..ऐसा लग रहा है जैसे आपको ही सबसे जादे भकभका के लगा है...और भी लोग हैं..कोइ इत्ता नहीं भडकता...आप तो बस घुस जाते हैं...एक दम ताऊ वाला लट्ठ ले के..उ के घर के भीतर तक...ई कोनो बात हुआ.....अरे ऊ जो सोच रहे हैं..जो लिख रहे हैं..ऊ उनका अपना निजि .(.निजि समझते हैं न....अरे निजि माने कि जो बात खुल्लम खुल्ला बताने के लिये आपको कौनो चैनल वाला पैसा दे ....तो समझिये वही निजि है...बांकी सब तो खाम्खा का बिजी है...)...मामला है....तो आपको काहे एतना मिर्चाई लग जाता है...का पूरा ब्लोग जगत का ठिकेदार बन गये हैं का....हमको तो लगता है ...आप एकदम से ...मेंटल हैं....
हम बौखला कर चौंकने वाला एक्स्प्रेशन देते...इससे पहले ही बोल पडे.....मेरा मतलब ....खाली मेंटल नहीं.....सेंटीमेंटल.....ओह...अब आपको कैसे समझाये.....अच्छा चलिये आपसे कुछ प्रश्न करते हैं...आप जवाब देते जाइये.....बकिया अपने आप पता चल जायेगा..कि आप हैं का ..सेंटी...कि मेंटल.....हम कहे कि ठीक है...अभी हमने कौन सा ताऊ को ....इंटरव्यू के लिये टाईम दिया हुआ है...तब तक यदि चिट्ठा सिंग कुछ ले रहे हैं .....तो हर्ज़ ही क्या है....शुरू हो जाईये.....

अच्छा बताइये कि क्या अब आपको दुनिया में सबसे प्यारा अपना लैपटौप लगता है....अपनी नौकरी और अपनी छोकरी से (छोकरी माने पत्नी )...से भी...

हां....कम से कम इन दोनों से ज्यादा तो जरूर करता हूं.....क्योंकि दोनों ही दुश्मन समझते हैं..मेरे बेचारे इस चपटे दोस्त को.......

आप सेंटी हैं.......


क्या आपको महसूस होता है....जैसे ब्लोग जगत में..कुछ दिन आप अनियमित होते हैं..तो लोग आपको मिस करने लगते हैं....


हां...हां.....कई लोग तो कहते भी हैं....क्या बात है भई...आजकल तो तुम भी पढने नहीं आते....अमा ब्लोग जगत के इतने काम तो आ ही सकते हो...यदि कुछ ढंग का लिखते नहीं तो ...टीपने के काम ही आ जाया करो....

अच्छा इसके बाद भी लगता है कि वे मिस करते हैं......मेंटल हो...


क्या ऐसा होता है...किसी ब्लोग पर को पढा...और बिना टीपे यदि किसी कारण से निकलना पडा तो मन उचाट सा हो जाता है.....


हां हां....होता है...कई बार होता है......सेंटी हुआ न..मैंने हुलस कर पूछा...हां...


अच्छा ...कभी ऐसा होता है..कि किसी पोस्ट में घुसे टीपने...टीप आये...फ़िर दोबारा जाकर देखा..कि कौन क्या क्या टीप रहा है....फ़िर किसी की टिप्प्णी को इस तरह से लिया ...जैसे....महाभारत सीरियल में......भीष्म कहते थे....आक्रमण......और सारे तीर कमान.....ले कर तैयार......


कभी ...हमेशा ऐसा ही होता है......और क्या बताऊं...होता ही रहता है....होता ही जाता है.......इसके साथ ही ..पता नहीं क्या क्या और भी होता है.....


बस बस....समझ गया.......ये सब मेंटल की निशानी है......


मेरा लटका बूथा देख कर ...चिट्ठा दिलासे देने वाले अंदाज़ में बोले.....अरे काहे उदास होते हो भैया....मेंटल लोग भी बहुत काम आते हैं ..कभी कभी....वैसे ..प्रशनों का एक राउंड और भी पूछा जायेगा...


चलिये ...तब तक हम भी और मित्रों से सलाह करते हैं.......कि हम सेंटी हैं कि मेंटल.....
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