शनिवार, 31 मई 2014

राजनीति में कोई दुश्मन नहीं होता




नरेंद्र मोदी ने चुनाव के बाद दिए गए अपने धन्यवाद  भाषण के दौरान ये कहा कि "राज़नीति में कोई दुश्मन नहीं होता" और इस बात को बहुत जल्दी ही वैश्विक फ़लक पे साबित भी कर दिया जब किसी की सोच और कल्पना से कोसों दूर वाले कदम , पडोसी और शाश्चत प्रतिद्वंदी देश पाकिस्तान के प्रमुख नवाज़ शरीफ़ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित कर के उठा लिया । पूरे विश्व में चर्चा और बहस का विषय बन गया ये निमंत्रण आग्रह इसलिए भी ज्यादा चौंकाने वाला रहा क्योंकि भारतीय जनता पार्टी अपने मिज़ाज़तन , दृढ राष्ट्रवादी सोच के कारण पाकिस्तान को पहले से खरी खरी सुनाती रही है ।

नरेंद्र मोदी ने अपनी राजनीति की शुरूआत उस तबके और उस स्थान से शुरू की थी जहां से शीर्ष पर पहुंचने का सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही रास्ता था , कठोर परिश्रम , दृढ निश्चय , निडर स्वभाव , बेबाक वाणी , नियोजित दूर दृष्टि , और स्पष्ट महत्वाकांक्षा, और इन सब पर चलते हुए आज वो जिस पद तक जा पहुंचे , वो भी भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में , न सिर्फ़ पहुंचे बल्कि तीस वर्षों बाद प्रचंड बहुमत से पहुंचे जो पिछली खिचडी सरकारों की कमज़ोर स्थिति, और फ़ैसलों तक पहुंचने से पहले की खींचतान को देखते हुए भारतीय लोकतंत्र का सबसे सुखद और सशक्त कदम साबित हुआ ।


नरेंद्र मोदी ने वर्तमान राज़नीति में प्रचलित हर मिथक को तोडा , ये उनका आत्मविश्वास ही था कि उन्होंने परिस्थितियों को अपने मनोनुकूल बनाया और खुद आगे बढकर ये कहा कि हां मुझे दो जिम्मेदारी मैं करके दिखाऊंगा ।इतना ही नहीं , न सिर्फ़ खुद को जिम्मेदारी दिए जाने का आह्वान किया बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान अपनी सर्वस्व उर्ज़ा से लोगों के बीच पहुंचकर उनसे अपील की कि , कोई गठबंधन हठबंधन का अवसर पैदा किए बिने जनता पूरे बहुमत के साथ उन पर विश्वास करे । इस बीच परिस्थितियां बदल रही थी , देश के केंद्र में सिविल सोसायटी के कुछ सदस्यों ने परिवर्तन लाने का दावा करते हुए लोगों के सामने न सिर्फ़ एक अन्य राजनैतिक विकल्प पेश किया बल्कि उसका प्रवाह इतना तीव्र रहा कि , जब अन्य समकालीन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी अपनी धमक सुना रही थी उसमें भी उसे दिल्ली में ताज़पोशी से रुक जाना पडा । किंतु इन सबके बावजूद लोकसभा के चुनाव में जनमत बिल्कुल एक पक्षीय हो चुका था और जनता अपना फ़ैसला लगभग सुना ही चुकी थी , चुनाव परिणामों ने औपचारिक रूप से इस पर मुहर लगा दी । 

अंतत: चुनाव के नतीज़े आए और वो हुआ जो तीस सालों से नहीं हो पाया था , भारतीय जनता पार्टी को न सिर्फ़ बहुमत मिला बल्कि ये बहुमत इतना प्रचंड था कि सत्तारूढ दल के नब्बे प्रतिशत मंत्री ही चुनाव हार गए और स्थिति ऐसी हो गई कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को लोकसभा में विपक्ष की हैसियत हासिल करने के भी लाले पड गए । जैसा कि अपने उदयकाल से ही और एक क्षेत्रीय क्षत्रप होते हुए भी केंद्रीय फ़लक पर अपनी मौजूदगी दर्शाने में जैसी कूटनीति नरेंद्र मोदी ने अपनाई उससे ही भान हो चला था कि भविष्य में भारत की राजनीति करवट तो निश्चय भी बदलने वाली है । 



अभी उतना समय नहीं हुआ है कि नवनियुक्त सरकार के फ़ैसलों और कामों का विश्लेषण या आलोचना की जाए किंतु इतना अवश्य है कि बहुत कम समय में हुए इन कार्यों ने सरकार की मंशा और नीयत निश्चित रूप से स्पष्ट कर दी है जो ये है कि बस अब बहुत हुआ , अब राज़नीति और प्रशासन दोनों ही नए आत्मविश्वास से भारत के दिन बहुराने में लगे हैं , इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि बेशक रातों रात कोई कायाकल्प न भी हो तो भी पिछले एक दशक से जैसी सुनियोजित अदूरदर्शिता केंद्रीय नेतृत्व सरका दिखा रही थी , कम से कम उस पर तो एक स्थाई विराम लग ही गया 

चलते चलते संक्षेप में सरकार के  कुछ कार्यों /फ़ैसलों पर एक नज़र डाली जा सकती है ..........



१.हिंदी भाषा की उपयोगिता में वृद्धि
२.मंत्रीमंडल का संकुचित आकार
३.सरकार द्वारा लिए जा रहे त्वरित फ़ैसले
४.एशियाई देशों के साथ सहभागिता/सामंजस्य की शुरूआत
५.प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्रियों की क्रियाशीलता
६.सरकार की नीयत और नीति में दिखती स्पष्टता
७.समय सीमा का निर्धारण और उसे पूरा करने की प्रतिबद्धता

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