बुधवार, 6 फ़रवरी 2008

पापिन ( एक लघु कथा )

राज प्रताप आज फिर पी कर आया था। पिछले कई दिनों से , जब से सुषमा , उसकी पत्नी , उसे छोड़ कर अपने भाई के यहाँ रहने चली गयी थी , तभी से वह रोज़ देर रात को खूब पीकर लुढ़कते , गिरते पड़ते घर पहुंचता था।


दरवाज़े पर जोर की धडाम की आवाज़ सुनाई देते ही कमली समझ गयी थी कि आज फिर बाबूजी पीकर आये हैं। कमली तो उसी दिन काम छोड़ कर चली गयी होती जिस दिन बीबीजी घर छोड़ कर चली गयी थी। उसे बीबीजी ने ही काम पर रखा था। मगर उसके लिए मुश्किल ये हो रही थी कि जाते समय उससे बीबीजी मिल नहीं पायी थी। और बिना बताये काम छोड़ कर जाने को उसका मन नहीं मान रहा था।

" क्या बात है इतनी देर लगती है तुझे दरवाजा खोलने में , तुम सारी औरतें एक जैसी ही होती हो । " घर में घुसते ही राज भड़क कर बोला। आज कमली को बाबूजी के तेवर कुछ ठीक नहीं लग रहे थे। उसने डरते डरते खा " बाबूजी कहे अपना जीबन खराब करत हो जाये के बीबीजी के मन लयो और घर लाये आओ।

" अबे चुप, तू मुझे समझा रही है जाती है तो जाने दे , मुझे और भी मिल जायेंगी। और क्यों तू क्या खराब है "
कहते कहते राज ने कमली का हाथ पकड़ लिया।

नहीं नहीं बाबूजी ई का करत हो, हमका छोड़ दो , कहे अपना इमान खराब करत हो , हमका जाये दो " कमली गिदगिदाने लगी। मगर राज के सिर पर तो शराब का भूत सवार था, " अरे जा जा मुझे क्या तेरे बारे मैं मालोम नहीं है , क्यों घबराती है मैं तुझे मालामाल कर दूंगा ॥

कमली अपने आपको छुडाने का भरसक प्रयास कर रही थी। मगर जब उससे bardaasht नहीं हुआ तो वह जोर से चीख पडी। " हमका छोड़ दो बाबू हमका अपना आदमी से ऊ गंदा वाला बीमारी हुई गयी है। हमसे दूर हुए जाओ।"


तभी जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आये और कमली दौड़ कर दरवाजा खोले गयी। सामने बीबीजी खडी थी। उसकी जान में जान आयी।

राज के सर से सारा नशा उतर गया था। वो जोर से चीख कर बोला " अच्छा हुआ सुषमा तुम अ गयी इसे अभी बाहर निकालो ये गंदी औरत है इसे एड्स है , तुम्हारी गैर्हाज्री में ये मुझे बर्बाद करने पर तुली हुई थी। इस पापिन को बाहर निकालो ॥

मगर वो पापं बिना कुछ बोले घर से बाहर निकल गयी। हमेशा हमेशा के लिए..

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