शनिवार, 31 दिसंबर 2011

हिंदी अंतर्जाल पर चार वर्ष पूरे ..ब्लॉगियाते , फ़ेसबुकियाते और ट्विट्टराते अनुभव






मुलाकातों का सिलसिला चल निकला



फ़िर तो यादें ही यादें


इस बीच हिंदी अंतर्जाल पर कब चार साल का सफ़र पूरा हो गया इसका अहसास ही नहीं हुआ । यूं तो ये सफ़र इतना बडा लंबा और विस्तृत नहीं है कि इसके लिए अभी कुछ लिखा कहा जाए ,किंतु पिछले चार सालों में अंतर्जाल पर बीते बिताए लम्हों को , उसके बहाने बने नए पुराने रिश्तों को , दिनचर्या में आए बदलाव को , और शायद सोच में आए परिवर्तन को थोडी देर ठहर कर टटोलने का मन हो तो फ़िर इससे बेहतर मौका और क्या हो सकता था भला । वर्ष २०११ अपने अंतिम पडाव पर है , बेशक दिन रात में कोई बडा फ़र्क न आता हो , या शायद ठंड के तेवर में भी रत्ती भर का फ़र्क पडता हो इससे ,किंतु ये तो होता ही है कि वर्ष की आखिरी संख्या बदल जाती है ।
और ढेर सारी सुनहरी यादें

शुरूआत में हिंदी अंतर्जाल से परिचय सिर्फ़ ब्लॉगर तक ही हुआ था वो भी एक खूबसूरत संयोग से । शायद सितम्बर अक्तूबर महीने की बात है जब कादम्बिनी ने अपने एक अंक को ब्लॉग और ब्लॉगर्स पर आधारित करके आठ पेज के एक लबें आलेख के साथ साथ बहुत कुछ बताया समझाया था ब्लॉग के बारे में । उस अंक और अपने एक सहकर्मी जो उस समय कंप्यूटर में और अब भी मुझसे दक्ष थे , उनकी मदद से ब्लॉग भी बन गया और ब्लॉगिंग भी शुरू हुई । हम दोनों के लिए ही ये एक नया अनुभव था । हालांकि उस वक्त हिंदी अंतर्जाल से सायबर कैफ़े में बैठ कर सिर्फ़ एक डेढ घंटे की नियमित जानपहचान से ज्यादा तक बात नहीं पहुंची थी । अंतर्जाल पर बिताए उन एक घंटों के दौरान ध्यान सिर्फ़ ब्लॉग लिखने और पढने तक ही सीमित रहता था । हमारे लिए एक इस नए फ़लक पर विचरने के अलावा हिंदी अंतर्जाल से जुडने का एक दिलचस्प कारण ये भी रहा कि जब भी सहकर्मियों और उस समय के मीडिया मित्रों को जैसे ही किसी ब्लॉग का पता थमाया ,पृष्ठ खुलने पर हिंदी में सामग्री को देख कर उनके हर्षमिश्रित चेहरे को देखने का मचा ही और होता था , और यकीन मानिए कि ऐसा अब भी कई बार हो जाता है ।कल्पना करिए कि उन्हें जब ब्लॉगवाणी ,चिट्ठाजगत ,हिंदी ब्लॉग्स , नारद , सारथि , रफ़्तार जैसे एग्रीगेटर्स की झलक दिखाई जाती तो क्या होता होगा ।
विमर्श ,बहस , बैठक


गूगल , वर्डप्रेस ,या किसी भी अन्य प्लेटफ़ार्म ने अब तक , हिंदी अंतर्जाल पर लिखने पढने वाले ब्लॉगर्स के लिए कहीं से भी धेले भर आर्थिक लाभ नहीं देने के बावजूद हिंदी ब्लॉग्स की संख्या बढती रही ।और तो और कई जुझारू साथियों ने अपने अपने समाचार पोर्टल और सामूहिक ब्लॉग्स की ऐसी धूम मचाई कि कहीं इसे न्यू मीडिया का नाम दिया जाने लगा तो कहीं भविष्य का साहित्य संसार ।  इसके साथ ही बढती रही हिंदी अंतर्जाल द्वारा उत्पन्न की जा रही चुनौती । मीडिया , साहित्य और सरकार तथा प्रशासन तक के लिए ये उनकी आंख की किरकिरी बन कर उभर आया । सबसे कमाल की बात ये रही कि , तुम मुझे चाहो या मुझसे नफ़रत करो ,मगर मुझे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते जैसे आज हिंदी अंतर्जाल को दरकिनार करना बहुत कठिन हो गया है ।
कभी तिलयार

हिंदी अंतर्जाल के प्रारंभिक दो वर्ष अनियमितता और बेतरतीबी से ही बीते , और इसके कारण भी कई थे । घर पर कंप्यूटर आने के बाद हमारे जैसे लिखन पठन के व्यसनी के लिए इससे बेहतर साथी और कौन हो सकता था । और फ़िर ऐसा भी नहीं था कि यहां सबकुछ आभासी ही है ,बल्कि कभी कभी तो यहां उससे ज्यादा देखने और महसूसने को मिला जो वास्तविक जीवन में शायद उतना तल्ख नहीं रहा है अब तक । मसलन ,कुछ दिनों तक एग्रीगेटर्स और उस समय के दो बेहतरीन संकलकों पर लगातार बमबारी , सक्रियता क्रम और पसंद नापसंद वाले बटन को लेकर , एक से एक , जी बिल्कुल एक से बढकर एक तहलकी (यूं तो ये तहलका का वर्जन है लेकिन जिसका अर्थ तल से हलकी ) रिपोर्टें आईं । पोस्टों में ही संकलंकों का नाम लेकर उन्हीं की छाती पर रोज़ क्विंटल क्विंटल भारी चार्ज़शीट लादी गई ।

अब इसका और इसके साथ ही अन्य बहुत सी कारगुजारियां का  कुल परिणाम ये रहा कि एक एक करके दोनों ही संकलक , ब्लॉगरों को गड्डम गड्ड छोड के चलते बने । हालांकि , चूंकि दोनों अभी मौजूद हैं तकनीक की भाषा में कहें तो सर्वर पर हैं तो कभी न कभी यदि वे वापसी करें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए । लेकिन इसका परिणाम ये हुआ कि हिंदी ब्लॉग के पाठकों ने फ़िर पढने के लिए अपने अपने विकल्प तलाशे । इस प्रयास में कई बेहतरीन संकलक ,जैसे हमारीवाणी , इंडली , ब्लॉगप्रहरी , ब्लॉगमंडली ,बलॉगगर्व , के अलावा दर्ज़नों फ़ीड क्ल्सटर प्लेटफ़ार्म , तथा बहुत सारे ब्लॉगस्पॉट संकलक ब्लॉग्स पाठकों के सामने निकल कर आए ।

कभी सांपला

बहुत सारी उथल पुथल , सम्मान , आरोप , बैठकों , के बीच पिछले कुछ महीनों में ये बदलाव दोस्तों ने महसूस किया कि , हिंदी ब्लॉगिंग के प्रति रुझान कम हुआ है ,पोस्टों पर पाठकों की संख्या और टिप्पणियों की संख्या में भी बहुत कमी आ गई है । इसके लिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स का बढता प्रभाव भी एक कारण माना गया । लेकिन इससे अलग एक बहुत बडा कारण खुद गूगल की सेवाओं , विशेषकर जीमेल और ब्लॉगर में बहुत सारी गडबडियों का होते रहना भी जरूर रहा । आज भी हिंदी ब्लॉगिंग को लेकर गूगल और वर्डप्रेस जैसी सेवा प्रदाता कोई भी कंपनी के पास कुछ भी आम या खास नहीं है । यहां तक कि ये गारंटी भी नहीं कि कल को आपका जीमेल खाता या ब्लॉगर खाता ही नदारद मिले । शायद इसलिए मुझ सहित बहुत सारे मित्र , इस ठिकाने को पुख्ता करने के लिए अपने पक्के ठिकानों की ओर बढ चले ।
नए ठिकाने का थंबनेल


हिंदी ब्लॉगिंग से जुडे दोस्तों की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है ,नाम लूंगा तो मुझे यकीन है कि चाहे लाख कोशिश कर लूं ,किसी न किसी का नाम तो छोड बैठूंगा ही । फ़िर इस ब्लॉगजगत से लेकर , फ़ेसबुक , ट्विटटर और अन्य तमाम मंचों पर इतना स्नेह व मान मिला , अच्छे बुरे वक्त में , जो साथ और अपनापन मिला , और अब भी मिल रहा है ,उसे सिर्फ़ महसूसा जा सकता है ,लिखा नहीं ।ये एक कमाल का संयोग रहा कि , अपने लगभग दो दर्ज़न ब्लॉग्स में से चार ब्लॉग्स पर साथी अनुसरकों की शतकीय संख्या को पाना , लगभग एक हज़ार पोस्टों , और इतनी ही तस्वीरों की यादों समेत ,मेरी मौजूदगी को बेपनाह स्नेह मिलता रहा ।



ये जरूर है कि आने वाले समय में हिंदी ब्लॉगिंग एक मंच के रूप में , एक माध्यम और एक विधा के रूप में ,एक तकनीक के रूप में , एक वर्ग के रूप में , एक विचारधारा के रूप में स्थापित हो इसी दिशा में , मैं अंतर्जाल की अपनी इस यात्रा को आगे बढाऊंगा । बेशक इस साल बहुत सी कडवी यादों और घटनाओं में से एक , गुरूवर और मित्र स्व. डॉ. अमर कुमार  तथा फ़िर हिमांशु भाई का अचानक चले जाना रहा और कहीं न कहीं ये जता बता गया कि , जब तक साथ है , अभिव्यक्त करो ...करते रहो , करते रहो । मंच चुनो ,माध्यम चुनो , तरीका और शैली भी जो पसंद हो चुनो लेकिन इंसान हो तो इंसान की भावनाओं को अभिव्यक्त करो , क्योंकि ये समाज के अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है । और कमाल देखिए कि हम खुद भी इस बीच बहुत बदलते रहे ,













इस उम्मीद के साथ कि आने वाले दिन , हमारी आपकी सोच के साथ ही बदलेंगे और ठीक वैसे बदलेंगे जैसा कि हमने आपने चाहा है , मैं इस सफ़र के अगले पडाव की ओर बढता हूं ,मुझे यकीन है कि हमेशा की तरह आप मेरे साथ हैं , आप सबको शुभकामनाएं .......साथ , स्नेह , विश्वास , बनाए रखिएगा ।

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

सांपला ......एक मुलाकात , हरियाणा के गांव की ,अंतर्जाल के बाशिंदों से







पिछले दिनों व्यस्तता के बीच ये भी ख्याल नहीं रहा कि नेट कनेक्शन भी जाने कबके अनशन पर जा चुके हैं , वर्ष २०११ के जाते जाते बहुत कुछ घट घटा रहा था कुछ हमारे बेहद पास भी । बहरहाल हमारे लिए तो कुछ ऐसा सा फ़ील हो रहा था मानो रोजिन्ना कोई खबर इंतज़ार में बैठी हो जैसे , फ़िर सोच रहे थे कि कह रहा है भाई लोग कि वर्ष २०१२ से ज्यादा का लाईफ़ टाईम वैलेडिटी का उम्मीद मत करिए । लेकिन एतना भेरी इंपोर्टेंट समय में भी हमारा ब्लॉगियाना तो दूर फ़ेसिबुकियाना भी दूभर हो गया था । जर्मनी से राज भाटिया जी के दिल्ली आगमन की सूचना और पिछले बरस की तिलियार झील परिसर ब्लॉग बैठकी की याद से अंदाज़ा लग गया था कि फ़िर इस बार ये हम ब्लॉग मित्रों के आमने सामने और कुछ पल साथ साथ बिताने का बहाना बनेगा ।


इस बीच अंतर सोहिल की आती पोस्टों और राज भाई के ब्लॉग एग्रीगेटर पर भी इसकी सूचना आ रही थी , स्थान का नाम पता चल चुका था ..सांपला , दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा में स्थित और अपने अंतर सोहिल जी का ग्राम । वहां पहुंचने पर पता चला कि सांपला सांस्कृतिक मंच द्वारा पिछले वर्ष से वर्षांत समारोह के रूप में काव्य सम्मेलन का आयोजन किया जाना शुरू हुआ था और ये दूसरा वर्ष था ।




दिन में सभी ब्लॉगर मित्रों के मिल बैठ बतियाने की योजना ने इसे और भी यादगार बना दिया । इस सिलसिले में मेरे पडोसी ब्लॉगर भाई शाहनवाज़ सिद्दकी जी से मेरी बातचीत हो रही थी और वहां चलने न चलने को लेकर आखिर तक असमंजस की स्थिति बनी हुई थी । बहरहाल चौबीस दिसंबर की सुबह आठ बजे ये तय हुआ कि सांपला पहुंचा जा सकता है । शाहनवाज़ भाई , राजीव तनेजा जी और खुशदीप सहगल जी , संवाद तीनों के बीच चल रहा था और सांपला पहुंचने की योजना भी । खैर शाहनवाज़ भाई और मैंने तय किया कि हम शास्त्री पार्क मेट्रो से आगे का सफ़र तय करेंगे , बस या रेल से ये राजीव भाई से पूछ कर तय किया जाएगा । राजीव भाई से बात हुई तो आदेश हुआ कि नांगलोई रेलवे स्टेशन ,मेट्रो स्टेशन पर उतरें वे वहीं प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

मेट्रो में सफ़र करने वालों में नियमित न सही लेकिन कह सकते हैं कि बहुत बार तो किया ही है । शाहनवाज़ भाई और मैं , बातों में मशगूल थे और ज़ेहन में स्टेशन था नांगलोई मेट्रो स्टेशन , लेकिन मेट्रो रूट मानचित्र पर देखा तो पाया कि वो उस रूट पर नहीं है । ओह ! यानि पहली गडबड , अब तो वापस बस अड्डे वाले मेट्रो स्टेशन पर जाना होगा ,लेकिन नहीं , सीट पर बैठे कुछ युवा जो हमारी बातों से स्थिति समझ चुके थे उन्होंने बताया कि नहीं , इसके लिए मेट्रो इंदरलोक मेट्रो स्टेशन से बदलनी होगी , उफ़्फ़ बाल बाल बचे । उतरे और रूट बदला , हमारा गंतव्य नांगलोई मेट्रो स्टेशन , वहां भी चक्कर पे चक्कर एक नांगलोई मेट्रो स्टेशन और दूसरा नांगलोई रेलवे स्टेशन मेट्रो स्टेशन (एक बात और ये हुई कि हमने टिकट पीरागढी स्टेशन तक का लिया था और अब हम उतरने वाले थे उससे तीन स्टेशन आगे तो राजीव भाई द्वारा पता चला कि उतरने पर बांकी का किराया वहां चुकाया जा सकता है , चुकाने का तरीका भी बडा दिलचस्प किस्सा है फ़िर कभी ) , आगे का हाल ये था कि राजीव भाई ने कहा ..खंबा नंबर ४२० पर मिलिए । उफ़्फ़ यानि घनघोर इतिहास रचने की फ़ुल कुल तैयारी थी ।

खैर वहां ब्लॉगर मंडली को देखते ही एक एग्रीगेटर के फ़्रेश पेज खोलने का मज़ा मिल गया । वहां से काफ़िला दो वाहनों में सांपला की तरफ़ बढ निकला । राजीव तनेजा जी  पायलट की सीट संभाल चुके थे और हम उनके मोबाईल में पेसल वाला दिशा पता सूचक आन कर दिए थे , अब सारा टेंसन या तो ऊ सूचक यंत्र को था या राजीव भाई को हम मस्त उसको पकड के बैठे रहे । बीच बीच में फ़ोन ऑफ़ फ़्रैंड लाईफ़ लाईन का यूज करते हुए गंतव्य स्थल पर पहुंच गए । मौसम खुशगवार , चटक खिली हुई धूप । धर्मशाला के विशाल अहाते में गोलाकार बैठे सांपला के युवा और कुछ हमारे अंतर्जालीय साथी ।




बडा सकून सा महसूस रहे थे कि तभी आसपास मौजूद सुरक्षा दस्ते का आभास हुआ । पता चला कि ब्लॉगर मिलन का पूरा क्षेत्र इन विशेष वानर कमांडो की गहन सुरक्षा दायरे में है ।







सांपला पहुंची पहली खेप

पहली खेप,दूसरी खेप की खोज खबर लेते हुए



स्वागत को लपके अंतर सोहिल



धर्मशाला का मुख्य द्वार



लो जी दूसरी टोली भी आ पहुंची , श्रीमती राज भाटिया , अंजू चौधरी , संजू तनेजा जी , वंदना गुप्ता और राजीव तनेजा जी , जाकिट वाले महफ़ूज़ अली

हाय मैं ,महफ़ूज़ अली ..बोईंग सात सौ सात से उतर के हाथ डोलाते हुए

वंदना जी कार से बाहर ,महफ़ूज़ भाई पोज़ मारते हुए और शाहनवाज़ भाई कार के अंदर झांकते हुए

बस पोज़ बदल गया है





देखिए कैसे गोलमगोल हुए खडे हैं सब ,मुकेश सिन्हा ,केवल राम जी , संजय भास्कर , वंदना गुप्ता , अंजू चौधरी , संजू तनेजा और महफ़ूज़ अली

कैप्शन जोड़ें






श्रीमती राकेश , सर्जना शर्मा ,केवल राम जी , श्री एवं श्रीमती राज़ भाटिया ,पीछे संजय भास्कर , वंदना गुप्ता जी एवं संजू तनेजा जी

ब्लॉगर बैठक की सुरक्षा के लिए शार्प शूटर की भी व्यवस्था थी 

चाय पकौडे चालू आहे

वही वही चालू आहे


 सभी आपस में घुल मिल रहे थे ,लेकिन ये मिठास और मीठी हो रही थी जब ग्राम परिवेश में पहुंचे हम सब अंतरसोहिल के स्नेह से डूबे मीठे गन्ने चूसने में मग्न हो गए । आगे का किस्सा कुछ यूं रहा


कुछ धूम गर्म थी , कुछ ईख नर्म थी ,
थोडी सी तकल्लुफ़ , थोडी मीठी शर्म थी



मगर , चाय पकौडों की गर्मी और गन्नों के मीठे रस के दौर के बीच , बांकी साथियों के इंतज़ार का पल कैसे बीत गया पता ही नहीं चला , । घडी दोपहर के दो बजा रही थी । हम अहाते में पडते धूप को सेंकने के लिए गोले को सरकाते जा रहे थे । दरवाज़े पर फ़िर हलचल हुई । लंबे चौडे पद्म सिंह के साथ ममता की प्रतिमूर्ति इंदु पुरी , हम सबकी इंदु मां , मानो भावनाओं का ऐसा सैलाब उठा लाईं थी कि सब कुछ बहता चला गया उन आंसूओं के साथ , सम्मान के साथ सब अंदर हॉल की तरफ़  बढ चले । योगेंद्र मौदगिल , अलबेला खत्री जी भी हमारे बीच पहुंच चुके थे । इस बीच अंतर सोहिल समय को बीतता देख आग्रह कर चुके थे कि औपचारिक अनौपचारिक मुलाकात सिलसिले को प्रारंभ किया जाए या नहीं तो पहले भोजन किया जाए । किंतु तय हुआ कि पहले परिचय और बातचीत का दौर चले । अंतर सोहिल ने जिम्मा हमें थमाया और हमने पूरी बहादुरी से पहला नंबर पदम भाई को थमाया । इसके बाद ब्लॉगर नाम , ब्लॉग नाम , अपना परिचय और अनुभव की बातें चल निकलीं । हमारे बीच सांपला सांस्कृतिक मंच से जुडे सांपला के नवयुवक , विद्वान लोग भी सम्मिलित हो चुके थे । परिचय दौर हमेशा ही दिलचस्प रहता है और सांपला के एक दिलचस्प डॉ साहब , भाई अलबेला खत्री और योगेंद्र मौदगिल जी की उपस्थिति ने और प्रभावी बना दिया ।




अब तो अगले पूरे बरस बस मीठी मीठी कविताएं चलेंगी

छील दना दन ,चूस दना दन


अलबेला खत्री जी ,वंदना गुप्ता ,पदम सिंह अंजू चौधरी , अंतर सोहिल ,महफ़ूज़ अली ,खुशदीप सहगल जी ,कनिष्क कश्यप जी ,मुकेश सिन्हा ,केवल राम और संजय भास्कर



खुशदीप सहगल , राजीव तनेजा , शाहनवाज़ और संजय अनेजा जी उर्फ़ मो सम कौन

हरदीप , मुकेश सिन्हा जी , संदीप पवार उर्फ़ जाट देवता और राकेश जी एवं श्रीमती राकेश जी


बातचीत तो चल रही है


पदम भाई राज भाई के गले लगते हुए और इंदु पुरी के स्नेह बंधन में संजू तनेजा

इंदु मां , तुस्सी ग्रेट हो





खुशदीप सहगल जी ने अपने अनुभव बांटते हुए बताया कि किस तरफ़ वे राकेश जी और सर्जना जी को ब्लगिंग में खींच लाए और आज दोनों अपना एक अहम मुकाम बना चुके हैं । योगेंद्र मौदगिल जी ने अंतर्जाल और ब्लगिंग  को अभिव्यक्ति का एक नया फ़लक की संज्ञा देते हुए इसके बढते महत्व को बताया । हास्य कवि अलबेला खत्री जी ने एक के बाद एक कई सारे ब्लॉग बनाते जाने का दिलचस्प किस्सा बयां किया । शाहनवाज़ भाई ने तकनीकी बातों पर और अपनी  भविष्य की योजनाओं का खुलासा किया । बातों बातों में टिप्प्णियों की घटती संख्या और नियमित पाठकों की सक्रियता में कमी, इसमें फ़ेसबुक और प्लस जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स की भूमिका आदि पर भी विमर्श चलता रहा । वंदना गुप्ता , इंदु पुरी और अंजू चौधरी ने ब्लॉगिंग के प्रति अपना असीम स्नेह प्रकट करते हुए इसे अपने बेहद निकट बताया । 
मैंने अपने विचार रखते हुए , ये कहा कि , मौजूदा समय संवाद का समय है । आज सूचना का इधर से उधर होना और इतनी तीव्र गति से होना बहुत बडी उपलब्धि है । विश्व समाज को किस तरह से एक आत्मदाह की मोबाइल क्लिपिंग ने परिवर्तन और जनांदोलन के जन्म का इतना मजबूत कारण दे दिया कि अब स्थिति भारत में भी ऐसी पहुंच चुकी है कि सरकार और प्रशासन अपनी भावाव्यक्ति जाहिर करने वालों पर नज़र रखने की फ़िराक में है । मैंने कहा कि आज , हम अंतर्जाल के मित्र इस ब्लॉगर बैठक के बहाने दिल्ली के समीप बसे इस कस्बे से न सिर्फ़ खुद मुलाकात करके जा रहे हैं बल्कि अब जब हम अपनी बातों में , अपनी यादों में सांपला की चर्चा करेंगे तो सांपला के लिए भी ये खुशी की बात होगी और भविष्य के लिए सहेजी जाने वाली अनमोल धरोहर साबित होंगी । मैंने वहां ब्लॉगर बनने की इच्छा दिखाने जताने वाले बहुत से नवयुवक साथियों को स्पष्ट किया कि कोई जरूरी नहीं कि आप ब्लॉगर बनना चाहते हैं तो आपको लिखना पढना जरूरी है । मोबाईल का उपयोग करिए ,मोबाइल से तस्वीरें खींच कर उन्हें दुनिया तक पहुंचाइए , कोई समस्या , कोई उपलब्धि या कोई भी विशेष साधारण , कुछ भी कल्पनीय अकल्पनीय , जो भी जैसे भी चाहें , लेकिन खुद को अभिव्यक्त करिए । वहां मौजूद सांपला के युवा साथियों ने जिस गर्मजोशी और स्नेह से हमारा स्वागत किया वो नि:संदेह दिल को छू गया । वर्षांत पर काव्य सम्मेलन के आयोजन की स्थापित हो रही परंपरा से भी वे खासे उत्साहित और आनंदित दिख रहे थे ।




 इसके पश्चात सभी भोजन में , और भोजन के साथ बातों में मशगूल हो गए । सर्दी की दुपहरिया , यी बीती वो बीती । वापसी की तैयारी हो ली । जिन मित्रों को रात के काव्य सम्मेलन के लिए रुकना था उनसे विदा लेकर दिल्ली की सवारियां निकल लीं । वापसी भी बिना गडबड के होती तो क्या होती । वापसी में हुआ ये कि जैसे ही हम मेट्रो पकडने प्लेटफ़ार्म पर पहुंचे फ़ोटोग्राफ़र की आत्मा चित्कार उठी और हम अपने मोबाइल से और शाहनवाज़ भाई बाकायदा कैमरे से लैस , जो तडातड फ़्लैश ,क्लिक क्लिक , तभी सामने से मेट्रो आती दिखी ,कैमरा चालू आहे । रुकते ही चालक कक्ष का दरवाज़ा खुला और शाहनवाज़ भाई को बुलाया गया ,पीछे जो था उसे भी आवाज़ दी गई । हमारी समझ में माज़रा ठीक ठीक तो समझ नहीं आया लेकिन इतना अहसास हो चुका था कि कुछ गडबड है । चालक ने बताया कि आपने मेट्रो रेल की सामने से तस्वीर क्यों खींची , सुरक्षा अधिकारी को बुलाकर हमें नीचे बने अधिकारी के कक्ष की ओर ले जाने को कहा गया । हमने पूरी गुजारिश और क्षमा मांगते हुए बताया कि ऐसा भूलवश हुआ है और कहीं भी फ़ोटोग्राफ़ी प्रतिबंधित है जैसी सूचना नहीं लगे होने के कारण ये हुआ । नीचे सुरक्षा अधिकारी ने बात को समझते हुए हमें भविष्य में ऐसा न करने की सलाह देते हुए जाने दिया ।

वापस लौटते हुए ठंड का प्रकोप बढ चुका था और हम सब इस साल के एक दिन को यादगार दिन , और कभी न भूलने वाली स्मृतियों को सहेज़ चुके थे । उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में इस तरह की मुलाकातें , हिंदी ब्लॉगिंग में सकारात्मक माहौल लेकर आएंगी ।











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