शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

तो आ ही गयी, लो पसीना कमीसन की रिपोर्ट , ७२ घंटों का जिक्र हुआ

आखिरकार चुनाव से पहले एक और कमीसन की रिपोर्ट भी आ ही गयी, आप सोच रहे होंगे कमाल है यार, अभी अभी तो पे कमीशन की रिपोर्ट आयी थी, अभी तो लोग उसी की कैलकुलेशन में लगे हुए थे, कोई अपने नए पे को लेकर खुश हो रहा था तो कोई अपने बकाया का हिसाब किताब करने में लगा था, फ़िर सरकार को अचानक क्या सूझी कि , एक और नयी रिपोर्ट आ गयी। लेकिन हुजूर ये कोई मामूली रिपोर्ट नहीं थी सो सरकार चाह कर भी इसे नहीं रोक सकती थी।
दरअसल ये रिपोर्ट लो पसीना कमीसन की थी। क्या कह रहे हो महाराज आप इस कमीशन को भी नहीं जानते, क्या टी वी नहीं देखते। अच्छा अच्छा टी वी तो देखते हैं मगर उन पर आ रहे विज्ञापन को नहीं देखते हैं। मगर ये कैसे सम्भव है। आज कल तो टी वी की जो कार्यप्रणाली और उद्देश्य है उसमें तो कोई भी कुछ भी बिना विज्ञापन देखे कुछ नहीं देख सकता और आप कुछ देखना चाहे या न देखना चाहें मगर विज्ञापन तो देखने ही पड़ेंगे, चाहे डिश टी वी लगवाओ या फिश टी वी या कोई मगरमच्छ टी वी। इसका कोई फर्क नहीं पड़ता है। खैर मैं तो बात कर रहा था लो पसीना कमीशन की। ये कमीशन घर घर जाकर ये चैक करता है कि किसी भी गृहणी को कपड़े धोते समय पसीना तो नहीं आता है , और यदि कोई अबला पसीने में तर पायी जाती थी तो उसकी पति को ये कमीशन वाले तितर बितर कर देते हैं।
यहाँ मुझ कुछ बातों पर आश्चर्य है, इन कमीशन वालों ने कभी मेरे यहाँ तो छापा नहीं मारा । यदि मारा होता तो पता चलता कि किसे पसीना आता है। अजी मुझे तो यकीन है कि चाहे कपड़े धोते वक्त न सही मगर बर्तन धोते समय तो थोडा बहुत जो पसीना आता है मुझे ही आता है । और खाना बनते वक्त की क्या कहें। फ़िर दूसरी बात ये कि आजकल तो सारे कपड़े ये वाशिंग मशीन ही धोती हैं, उन कमबख्तों को क्या खून पसीना आयेगा। इससे भी अहम् बात तो ये कि आज कल कौन सी महिला अपने कपड़े छोड़ कर दोसरों के कपड़े धोती है.इसीलिए कई महिलाओं ने तो कमीशन पर ही ये आरोप लगा दिया कि जब आजकल महिलाएं इतने कम कपड़े पहन रही हैं जो पसीने में ही धुल सकते हैं तो फ़िर उनकी छवि क्यों खराब की जा रही है।

मगर इन सारे वाद विवादों के बीच कमीशन की रिपोर्ट आ ही गयी। जिसमें कहा गया है कि किसी भी गलती को सिर्फ़ बहत्तर घंटे तक बर्दाश्त किया जायेगा। दरअसल उसके पीछे भी एक दमदार तर्क ये था कि इस नए युग में सबसे ज्यादा महत्व बहत्तर घंटों का ही है, क्यों ये तो मुझे भी नहीं पता , लिकिन टी वी पर भी यही दिखाते हैं वो भी चौबीस घंटों में बहत्तर सौ बार। कल तो कुछ बच्चों ने भी अपने शिक्षक से सवाल कर दिया कि सर क्या परिक्षा में भी की गयी कोई गलती अगले बहत्तर घंटों में ठीक की जा सकती है , बेचारे टीचर महोदय मेरी तरह ही उनकी भी समझ में ये बहत्तर घंटे के नए समीकरण पल्ले नहीं पडी. अब देखना ये है कि इस कमीशन की रिपोर्ट से विश्व जगत में के कुछ बदल जाता है।

आपको भी किसी नयी रिपोर्ट के बारे में पता चले तो बताइयेगा जरूर

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

ऑस्कर पुरुस्कारों का सबसे ज्यादा दुःख खटमलों को हुआ (व्यंग्य)

मुझे पहले ही पता था कि इस बार ऑस्कर में कुछ न कुछ तो इस पिक्चर के हत्थे लगने वाला है ही, अमा अंग्रेजों ने अपने यहाँ की ऐसी ऐसी चीजें देखी और दिखाई, वो कमाल की कलात्मकता से ,( देखिये कलात्मकता की बात तो करनी ही पड़ेगी, वरना दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में रहने वाले किसने स्लम नहीं देखा होगा, डॉग नहीं देखा होगा, और रही बात मिलीयेन्यर की तो के बी सी की कृपा से वो भी देख लिए, ) कि कमबख्त कैमरे के कमाल ने पूरे होल्लीवुड को हिला कर रख दिया। जहाँ तक हम भारतीयों की बात है तो क्या करें जी हम तो तेरे सीधे सादे लोग हमें इतनी बड़ी बड़ी बातें समझ नहीं आती। मैं तो शुरू से ही पूछ रहा हूँ, की , ये तो बताओ की पुरूस्कार किसे दे रहे हो, झुग्गी को ,कुत्ते को ,या करोड़पति को । लेकिन कौन सोच रहा है हमारे जैसों की सोच के बारे में, लाख गलियाँ देते फिरें अंग्रेजों को मगर उनको जो लगा उन्होंने किया, हम नाचें या रोयें, उन्होंने कौन सा आकर देखना है।

लेकिन आज तो इस पूरे घटनाक्रम में एक और नया मोड़ आ गया। मुझे विश्वस्त सूत्रों से पहले ही ये तो पता चल गया था की झुग्गी के कुत्तों में इस बात को लेकर गहरा रोष है की पूरे पिक्चर की टायटल उनके नाम पर थी और इसीलिए चमकी भी, मगर पुरे पिक्चर में उनके बारे में कहीं कुछ नहीं था। मगर आज सुबह सुबह ही पता चला की उनका गुस्सा तो कुछ भी नहीं , असली नाराजगी तो खटमलों को हैकारण पूछने पर बताया की, आप बताओ, सब जय हो जय हो कर रहे हैं, जबकि असलीयत तो यही है की हमारा गाना उनसे ज्यादा फैमस हुआ है, वही " खटिये पर मैं पडी थी, रिंग रिंग रिंगा, रिंग रिंग रिंगा वाला, जिसमें साफ़ तौर पर हमारी पूरी बिरादरी यानि पूरे खटमल परिवार पर तरह तरह के आरोप लग्याये गए हैं,चलिए ये भी हम सह गएमगर ये तो सरासर नाइंसाफी है, कहीं किसी ने भी हमारे नाम का जिक्र तक नहीं कियाहम ही हैं जो स्लम में फर्क करते हैं ही करोडपती में और तो और कुत्तों में भी हम पिस्सू बनके पूरे भाव से उनकी सेवा करते हैंमीडिया ने भी गुलजार साहब और भाई सुखविंदर की अनुपस्थिति की कोई कोई कहानी तो बता ही दी, एक हम ही छूट गएमैं तो आपसे ये सब इसलिए कह रहा हूँ
कहीं ऐसा न हो की आप ब्लॉगर लोग भी हमें भूल जाओ, क्योंकि मुझे पता है की आप लोग भी ऑस्कर ऑस्कर ही कर रहे होगे आज॥

अरे नहीं नहीं पिस्सू भाई, मेरा मतलब रिंगा रिंगा खटमल जी , फ़िर आप क्यों दिल पर लेते हो फ़िल्म टाईटैनिक में जहाज बनने वालों को किसने पूछा था, बांकी सबको तो पुरूस्कार मिल ही गया था न.

रविवार, 22 फ़रवरी 2009

गुलाबी (हाय ! मैं नाम क्यों लूँ ) बनाम धारीदार नाडे वाला कच्छा

मित्र सन्डे सिंग सुबह सुबह ही आ धमके, " क्यों झाजी, आजकल तो आपकी ब्लॉग्गिंग में कमल की परिचर्चा चल रही है, कोई शोध कर रहा है तो कोई थीसिस लिख रहा है। पब कल्चर का विरोध करके कल्चर को बचने वाले कल्चरल लोगों को बदले में ऐसा हर्बल ट्रीटमैंट , (अरे वही रिटर्न गिफ्ट मैं गुलाबी ................) मिलेगा, इसका तो किसी को अंदाजा भी नहीं होगा। और आपका ब्लॉगजगत तोमुआं फैशन टी वी बनता जा रहा है। बलात्कार, गाली गलौज की ख़बरों की चहल पहल से पहले ही कई फ्लेवर आपके ब्लॉगजगत में थे, और अब इस नए टॉपिक ने तो फैशन , रोमांस, प्रेम (जिसे कुछ लोगों ने अब प्रेम चोपडा साबित कर दिया है ), आदि कई तरह का पंचरंगी स्वाद ला दिया है।

अच्छा कमाल है, ये तो निहायत ही अनैतिक, अशूभ्नीय, अमर्यादित, अव्यवहारिक, अनर्गल, अधार्मिक और अनर्थ टाईप बात हुई जी। बताइये भाल हम तो यदि पिंक पैंथर की बात भी करते हैं तो मारे शर्म के गुलाबी लाल हो जाते हैं और यहं बाकायदा अभियान चलाया गया। मेरे ख्याल से इस पूरे प्रकरण और युगांतकारी घटना में हमारे धारीदार नादे वाले इज्जत बचाऊ यन्त्र की सर्वथा उपेक्षा की गयी है। यार हमें तो इस अभियान में अल्पसंख्यक टाईप का बन दिया गया ।

वैसे मुझ से पूछें तो मैं तो दोनों को ही बकवास मानता हूँ। अमा, पब में बैठकर या तब में बैठ कर दारु पीकर तल्ली होने की संख्या कम या ज्यादा होने से कौन सी ग्लोबल वार्मिंग पर कोई फर्क पड़ जाएगा, और उसके बदले ये बेलो दी बेल्ट टाईप विध्वंसकारी अभियान। यार इस आईडीए का तो पेटेंट करवाओ। अरे हाँ, कमाल है की अभी तक किसी भी परफैक्शनिस्ट और क्रियेटिव डाईरेक्टर ने इस पर पिक्चर बने की घोषणा नहीं की है। यदि बंटी है तो ऑस्कर पक्का है। हमारे इस सारांश हीन, सार्थक, शोधपत्र को सुन सन्डे सिंग हमें अकेला छोड़ सटक लिए.

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

पहले मन्दिर वाले राम, फ़िर सेना वाले राम, और अब सुख राम, लगता है राम राज्य आ गया है.

कहाँ तो लोग चिंतित थे और इस समय को कोस रहे थे की देखो तो कैसा घोर कलयुग आ गया है। और इस अनैतिक युग में कितना अनर्थ और पाप हो रहा है चारों तरफ़। सब बकवास है, मैं तो पिछले कुछ समय से सिर्फ़ राम नाम ही सुन रहा हूँ। अजी मन्दिर, कीर्तन, भजन में नहीं तो न सही मगर यहाँ वहां , यत्र तत्र सब जगह तो बस राम ही राम है।

अब पिछले साल ही सेतु बनने तोड़ने को लेकर राम नम का राष्ट्रीय जप चल रहा था, क्या भूल गए, अजी राम सेतु के मुद्दे पर सरकार और विपक्ष ने कितनी मेहनत से एक दूसरे को घसीटा लपेटा था, और दोनों ने मिल कर पूरे देश को चूसा था.अभी ये बात थमी भी नहीं थी और लो जी चुनाव आते ही मन्दिर वाले राम (हालाँकि अभी तःक उनके पास मन्दिर नहीं है और भक्तों की टोली इस चक्कर में कई बार सरकार चला चुकी है )की जे जे कार होने लगी। सबको बताया समझाया जा रहा है की ये मन्दिर ही देश का पहला और आखिरी वो जरूरी मुद्दा है जिस पर पूरे देश का भविष्य निर्भर करता है ।

इसके बाद नंबर आया हमारे सेना वाले राम का। सच कहें तो हमें तो पता ही नहीं था की राम जी के भक्तों की दिलचस्पी पब में भी सकती है (हम तो यही समझ रहे थहे की उनकी दिलचस्पी सब में है पब में नहीं )और वे नारी मर्यादा की रक्षा हेतु इतना वीर कार्य भी कर सकते हैं। वैसे मेरा तो यही मानना था की चाहे साईंस कितनी भी तरक्की कर ले, मगर यकीन्नन अभी तक राम जी को वैलैंताईं दे के बारे में कुछ भी नहीं मालूम होगा। तो क्या हुआ, भक्तों को तो मालूम था सो उन्होंने पूरी तत्परता से महिला समाज की रक्षा की । इसके बाद चूँकि अब उनका समय भी ख़त्म हो चुका था इसलिए हमें तो पूरा यकीन था की अब सब फ़िर से नास्तिक हो जायेंगे, लेकिन वाह रे हम।

देखिय एक और राम आज हमारे सामने हैं, अजी अपने सुख राम। वही महाज समाज सेवी जो बरसों पहले करोड़ों रुपैये के नोटों से भरी थैली के अटैची के साथ धर लिए गए थे। मगर उन्होंने तो कहा भी था की उन्हें नहीं मालूम की वो रुपैये किसके थे और कहाँ से आए, और इसके बाद मैंने भी कहा था की ये मेरे हैं, मुझे दे दो, फ़िर चाहे सजा भी दे देना। न उनकी बात किसी ने सुनी न मेरी, खैर। हालाँकि मुझे ताजुब है की उन्होंने इतना लंबा हाथ मारा फ़िर भी आज हमारे यहाँ कमाल की संचार क्रान्ती आ गयी। वैसे मुझे तो लगता है की इनके पूर्वजों को पहले ही पता चल गया था की ये बहुत सुख पाने वाले राम होंगे सो इनका नाम सुख राम रख दिया, मगर मुझे लगता है की अब इन्हें सुख को हटा कर कुछ और लगा लेना ही चाहिए।

चलिए खुशे इस बात की है की राम के देश में लोग राम नम नहीं भूल रहे हैं , फ़िर चाहे सबका राम नाम सत्य ही क्यों न हो रहा हो। मगर आप माने या न माने (वैसे भी आप मेरी मानते कहाँ हैं, जब भी कोई गंभीर बात कहता हूँ आप उसे व्यंग्य ही समझते हैं) मुझे तो पूरा यकीन है की इस कलयुग का अंत हो रहा है और राम राज्य आ रहा है , वो भी इतने सारे रामों वाला.

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

आईये हम सब मिलकर लोकतंत्र को भाड़ में झोंक दें

हालांकि ये अब कोई नयी नयी बात नहीं रह गयी है, इसलिए बेशक इसे समाचारपत्रों में पहले पन्ने पर जगह मिले मगर यकीनन पढने देखने में किसी की कोई दिलचस्पी नहीं रहती है। और फ़िर हो भी क्यों, ये तो अब एक परम्परा सी बन गयी है, आख़िर मजबूत लोकतंत्र की यही तो पहचान है की अरबों लोगों के प्रतिनिधि, खुल्लमखुल्ला, लोगों के विश्वास , लोगों के पैसे का मजाक बना रहे हैं। कल एक बार फ़िर संसद सत्र में वही सब कुछ दोहराया गया जो अब तो एक कार्यप्रानाली ही बन गयी है , और इस बात तो अध्यक्ष ने कुपित हो कर सबको श्राप देने वाले लहजे में खूब कोस भी दिया। मगर मुझे पूरा यकीन है की उन पर ऐसे किसी भी श्राप का असर बिल्कुल भी नहीं होने वाला है।

हो सकता है की सब मेरे नजरिये से सहमत न हों, तो कुछ भी आगे कहने से पहले सिर्फ़ कुछ बातों को जान लेते हैं ।:-

हमारे इन जनप्रतिनिधियों को हमारी समाज सेवा के बदले में जो थोड़ा बहुत मिलता है वो ये है,

मासिक वेतन १६,००० रुपैये
मासिक निर्वाचन भत्ता २०.००० रुपैये
मासिक कार्यालय खर्च २०.०० रूपी
दैनिक भत्ता (संसद सत्र के दौरान) .०० रुपैये
मुफ्त प्रथम श्रेणी सी श्रेणी वार्षिक रेल पास
सहयोगी के लिए भी
दिल्ली में मुफ्त आवास
,००० लीटर मुफ्त पानी (कमाल है की फ़िर भी जनता का इतना खून पी जाते हैं )
वर्ष में ५० हजार यूनिट मुफ्त बिजली
सोफा कवर ,परदे सिलवाने का खर्चा
,०० रुपैये तक का फर्निचर मुफ्त
(दैनिक भास्कर से saabhaar )
लिस्ट लम्बी है पूरी पढूंगा तो सत्र बुलाना पडेगा .

तो देख लिया आपने कितना कम मिलता है बेचारों को , तो ऐसे में भी यदि वे चुपचाप पूरी निष्ठा और म्हणत से लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं, तो फ़िर उनपर सवाल उठाना तो नाइंसाफी है।

कमाल है , जहाँ पर संजय दत्त, राजू श्रीवास्तव, धर्मेन्द्र, गोविंदा, हेमामालिनी, जयाप्रदा, जयाबच्चन , अजहरुद्दीन, चेतन शर्मा, और पता नहीं कौन कौन से वरिष्ट और अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं वहां पर भी हम लोग ये सपना देख रहे हैं की काश की यहाँ भी कोई ओबामा जैसा राष्ट्रपति हो पाटा।

मेरे विचार से तो अब समय आ गया है की हमें इस लोकतंत्र को भाड़ में झोंक देना चाहिए, या फ़िर अपने महँ प्रतिनिधियों को तालिबान के हवाले कर दें।

बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

हिलता-डुलता चौथा खम्भा

कल की सबसे बड़ी ख़बर यही थी की शाहरुख़ खान का ऑपरेशन सफल रहा। कमाल है, सवा अरब की जनसंख्या वाले देश की सबसे बड़ी ख़बर यही थी। यकीनन शाहरुक आज उस मुकाम पर हैं जहाँ की उनसे जुडी हर ख़बर एक ख़बर ही है, पर क्या यही इकलौती ख़बर है। ऐसा भी नहीं है की मीडिया ने ये कारनामा पहली बार किया है। सच तो ये है की आज एलोक्त्रिनिक मीडिया का स्वरुप और कार्यशैली ही कुछ ऐसी बन चुकी है की एक आम आदमी भी सोचने पर मजबूर है की इन चैनल वालों के पास समाचार के आलावा सब कुछ है।

अभी कुछ समय पूर्व बीबी सी हिन्दी सेवा द्वारा कराये गए एक सर्वेक्षण में ६७ प्रतिशत लोगों ने माना की भारतीय मीडिया दिशाहें है। विवादित और सनसनी पैदा करने वाली ख़बरों के पीछे भाग रहा है। कई लोगों का विचार तो ये था की बहुत से मामलों में तो मीडिया स्वयं ही ख़बरों को विवादित और उत्तेजना से भर कर पेश करता है, जो एक हद तक सच भी लगता है। अफ़सोस की आज समाज के हरेक वर्ग और पेशे में व्याप्त हो रही कुरीतियों से मीडिया भी ख़ुद को बचा नहीं पाया है।

भारतीय एलेक्रोनिक मीडिया का सबसे बड़ा दोष है समाचारों की संवेदनशीलता और परिणाम को ना भांपते हुए, महज आगे रहे की होड़ में शामिल रहना। हलाँकि विश्लेषक बताते हैं की इसका कारण ये है की सभी समाचार चैनलों को चौबीस घंटे समाचार प्रसारित करने होते है। उस समय तो सब ठीक रहता है जब वास्तव में कुछ घटित होता है। स्थिति तब ख़राब हो जाती है जब सचमुच कुछ ऐसा न हो रहा हो जो आम लोगों से जुदा और समाचार बनने लायक हो। ऐसे में जबरन ख़बर बनने और समाचारों को जमन देने के लिए मीडिया जो कुछ भी करता है वह अक्सर नैतिकता को परे रख कर किया जता है।

आज समाचार चैनलों के सम्पादक और थिंक टैंक इतने अक्रियाशील हो गए हैं की विषयों के चयन से लेकर समाचार सम्पादन तथा कार्यक्रमों के निर्माण तक में मौलिकता तो दूर सिर्फ़ नक़ल और एक ही शैली पर चलते जाने का प्रचलन सा बन गया है। हद तो ये है की अपराध आधारित कार्यक्रमों को बनाने परोसने में विभिन्न समाचार चैनलों ने सारी मर्यादाओं को तोड़ दिया है। समाचार चैनलों में व्याप्त बेतरतीबी का एक मुख्या कारण है व्यावसायिक दबाव। यानि हमेशा मुनाफे का कारोबार करने वाली ख़बरों की तलाश। टी आर पी की लम्बी उछल देने के लिए घटनाओं की प्रतीख्सा करते समाचार चैनल । एक सर्वेक्षण के मुताबिक नियमित दर्शकों में से लगभग ४२ प्रतिशत लोग अपराध समाचारों और ऐसी ही ख़बरों को देखना पसंद करते हैं,

मगर अब समय आ गया है की मीडिया को अपने चौथे स्तम्भ वाली भूमिका को निभाना चाहिए.

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

जो नहीं बिके , उन्हें खरीदा जाए

जो नहीं बिके , उन्हें खरीदा जाए :-

मेरे मित्र जो आई पी एल , की नीलामी पर पहले से ही बुरी निगाह डाले थे, जबकि मैं जानता था कि , क्रिकेट के देश में बचे कुछ ही दुश्मनों में से वे भी एक थे, जब पूरा दिन बैठ कर नीलामी की खबरें देखते रहे तो मेरे से नहीं रहा गया।

क्या हुआ , महाराज, आज ये क्रिकेट प्रेम कैसा, कहीं ऐसा तो नहीं कोई और ही चक्कर है, या कहीं आप ये तो नहीं समझ रहे कि इस आई पी एल की नीलामी में किसी पार्टी का टिकट भी नीलाम हो रहा है और आप जाहिर है इन उसे अगले चुनाव के लिए आजमाना चाह रहे हों। अच्छा अच्छा, ये सब कहीं हीरोइन लोगन को देखने के लिए तो नहीं था , आख़िर माजरा क्या था यार ?
अरे नहीं यार , कोई ख़ास नहीं, दरअसल मैं उन खिलाड़ियों के बारे में सोच रहा था जो बिके नहीं, मतलब किसी ने भी उन्हें नहीं खरीदा, सोच रहा हूँ कि क्यों न मैं ही उन में से कुछ को खरीद लूँ ?
मेरे अचंभित भाव वाले चेहरे को देख कर वे भी बौखला कर बोले,

क्यों यार , तुम ऐसे क्यों देख रहे हो, भाई जब मैं चालीस रुपैये, किलो टमाटर और प्याज खरीद सकता हूँ, पच्चीस रुपैये किलो चीनी खरीद सकता हूँ, जब हर महीने मैं अपने फोन में नयी नयी रिंग टोन भरवा सकता हूँ, इमरान हाशमी, सिकंदर खेर, हर्मन बवेजा की पिक्चरों की टिकट खरीद सकता हूँ और डूबने के बावजूद शेयर खरीद सकता हूँ तो फ़िर यार इन्हें क्यों नहीं खरीद सकता। हाँ हाँ, अब तुम ये पूछोगे कि मैं खरीदना क्यों चाहता हूँ। यार सच बताऊँ तो अभी तो मैंने भी नहीं सोचा है, मगर जब खरीद लूंगा तो करवा लूंगा कुछ भी। कभी मेरे बच्चों के साथ वीडीयो गेम खेल लेंगे, जिन्हें मैं बिल्कुल नहीं खेल पाता, कभी सब्जी भाजी ला दिया करेंगे, कभी मेरे साथ ताश वैगेरह खेल लिया करेंगे।
मगर ऐसा वे क्यों करेंगे भला,

अरे सब करेंगे, तुमने नहीं देखा पिछली बार तो जिंटा ने कुछ खिलाड़ियों को आधी रात को होटल से भगा दिया था, फ़िर मैं तो उनपर २० २० जीतने का कोई दबाव भी नहीं डालूँगा, और यार जब उन्हें किसी ने खरीदा ही नहीं तो फ़िर इससे अच्छा ऑफर उन्हें कहाँ मिलेगा ?

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

क्या अन्य ब्लॉग बंद कर दूँ ?

आज हिन्दी ब्लॉग टिप्स की मदद से मैंने अपने दो ब्लोगों को एक करने की कोशिश की । दरअसल मैं एक साथ बहुत से ब्लोगों में नहीं लिख पा रहा था, फ़िर लगा की शायद इससे मैं अपनी बात जयादा अच्छी तरह से कह पाउँगा। मगर अब जबकि मैंने रद्दी की टोकरी को कुछ भी कभी भी में मिला दिया है तो उसमें पोस्ट की कवितायें दो दो बार दिख रही हैं, मगर उससे अधिक मैं अब ये नहीं समझ पा रहा हूँ की क्या अब एक ब्लॉग को हटा दूँ या रहने दूँ,

मैं तो बिल्कुल कन्फुज हूँ , आप लोग ही बताएं क्या करूँ ?

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

बग,ब्लॉग,, बिलियेनेयर

मित्र जब भी मुझे चिंताग्रस्त देखते तो पता नहीं किस भावना से वशीभूत होकर , पता नहीं उन्हें कौन सा कीडा काट लेता है की, जरूर मुझसे मेरी चिंता का कारण पूछने लगते ,और इसका परिणाम ये होता की अक्सर उस चिंता से कई बार कई तरह के फ़साने और अफ़साने निकल जाते थे।

क्या हुआ, झा जी, किस चिंता में पड़े हुए हो आप। क्या ये सोच रहे हो की भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा, यदि ऐसा कुछ सोच रहे हो तो छोड़ दो, अजी ये लोकतंत्र हैं, और फ़िर जबसे हरदन हल्ली देवे गुदा प्रधानमंत्री बने तभी से सबने प्रधानमंत्री के नाम का अंदाजा लगाना छोड़ diya ,और यार आप तो ऐसे सोच रहे हो जैसे आपके फैसले पर ही देश की अगली तकदीर निर्भर है।
मेरी तरफ़ से प्रतिक्रया नहीं देख कर वे फ़िर बोले, क्या बात है यार, अमा तुम्हारे सोचने से तो दुनिया के आर्थिक संकट पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ने वाला, और तुम तो बस ये सोच कर खुश होते रहा करो की चुनाव और सरकार बनने तक पैट्रोल गैस, सब सस्ते मिलेंगे।

अब मेरे बर्दाश्त से बाहर हो रहा था, नहीं भाई, मैं इन हलके मुद्दों पर अब अपना समय नहीं खर्च करता हूँ। दरअसल बात कुछ और ही है, मैं तुम्हें विस्तार से बताता हूँ। यार, बताओ अब तो सुना है की चाँद और फिजा पार भी एक ;पिक्चर बन दरही है, इससे पहले तो झुग्गी के कुत्तों पर भी एक बड़ी पिक्चर बन गयी है, बताओ यार, हम तो कुत्तों से भी गए गुजरे हो गए, कम्भाक्त कोई हमपे पिक्चर बनाए को राजी ही नहीं है, मैं तो इससे सोच में पडा हूँ।
जबकि तुम नहीं जानते क्या की हमारी हालत तो झुग्गी वालों और कुत्तों से भी बदतर है। हम तो किरायेदार हैं, झुग्गी वाले तो फ़िर भी मालिक हैं। और रही कुत्तों की बात तो तुम्हें क्या बताएं अक्सर अपनी हालत कुत्तों जैसी ही रहती है।
बल्कि मैं तो पहले भी सोच रहा था की राम गोपाल जी अपने शोले के पीटने के बाद जरूर ही हम पर कुछ बनायेंगे, मगर निराश होने के बाद अब तो किसी बोल्लीवुद के डाईरेक्टर से ही मिलने का इरादा है,
पिक्चर का नाम होगा, बग , ब्लॉग, बिलीयेनायर

आएँ , ये कैसी पिक्चर है भाई, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आया।

देखो यार अब मेरा मुंह मत खुलवाओ, स्लम डॉग मिलियेनेयर में ही कौन सा किसके साथ सम्बन्ध है जरा यही बताओ। खैर, सुनो बग यानि, कीडा, वो तो हम हैं ही, कम से कम अपनी पत्नी की नजरों में तो हम किताबी कीडे हैं ही, ब्लॉग भी अपना है ही, अबे इसमें भी शक है क्या, और रही बिलियेनायर की बात तो उससे सीधे सीधे तो हम नहीं जुड़े हैं मगर इसे यूँ समझ लो की जो पैसे हम पागलों की तरह मोबाईल पर और तरह तरह की रिंग टन पर खर्च करते हैं, एस ऍम एस करते हैं आख़िर उन्ही पैसों से तो नोकिया और ऐर्तेल के मालिक अरबपति बन जाते हैं।

तो इन्तजार करो एक न एक दिन बग ब्लॉग बिलियेनेयर को भी ऑस्कर का नामांकन मिल ही जायेगा.

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

देश का सबसे बड़ा टैलेंट शो होने जा रहा है, तैयार हैं न

देश का सबसे बड़ा टैलेंट शो होने जा रहा है, तैयार हैं न :-

मुनादी हो चुकी है। विश्व के बहुत मजबूत कहे , मने जाने वाले लोकतंत्र की पहरेदारी के लिए "इंडीयन लीडर की तलाश " , संख्या पता नहीं कौन सी, नामक टैलेंट हंट शुरू हो चुका है। जनता गली , मोहल्ले, कसबे-कूचे , गाँव शहर हर जगह औदीशन ले रही है। कोई नया चेहरा तलाश रहा है तो कोई पुराने का हे मेकओवर करवा रहा है। पहले से इस क्षेत्र में मौजूद गुरुघंतालों के घरानू से भी प्रतियोगी जो आजमाईश कर रहे हैं। लेकिन कहीं किसी भी कोने से किसी नयी सोच, नए चरित्र या नयी हिम्मत वाले किसी प्रतियोगी मिलने की आशा लगभग न के बराबर है। सबसे अहम् बात , अभी से लेकर चुनाव तक ये सभी कलाकार तरह तरह से वोट अपील करेंगे और फ़िर आम जनता एक ही दिन वोट करेगी । कोई दूसरा राउंड नहीं , कोई वाईल्ड कार्ड एंट्री नहीं । तो तैयार हैं न आप सब, नए टैलेंट सो चाहिए एक अच्छा नेता के लिए।
ध्यान से , यदि चूक गए तो पाँच साल तक हाथ मलेंगे।


मॉडर्न :-

रवि आज सुबह से ही काफी खुश लग रहा था, आख़िर इतने दिनों बाद उसके पुराने मित्र ने उसी घर पर मिलने को बुलाया था, वो भी अपनी आलीशान कोठी में, वरना आजकल कौन सम्बन्ध रखता है गरीबों से। उसने तो पहले ही तय कर लिया था, की चाहे जो भी हो आज वो अमित से अपने पुत्र के नए स्कूल अमें एड्मीसन के बारे में बात जरूर कर लेगा, चाहे उसे कर्ज ही क्यों न लेना पड़े, मगर वो अपने बेटे को कोंवैंत में जरूर पढाएगा,। रवि जानता था की अमित जैसा बड़ा उद्योगपति जब सिफारिश करेगा तो उसके बेटे को दाखिला जरूर मिल जायेगा।


अमित के बंगले पर पहुँचते ही , उसने देखा की अमित उसका लॉन में ही चाय पर इन्तजार कर रहा है। उसने बड़ी गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। फ़िर इधर उधर की बातें होने लगी। तभी अमित का पुत्र किशोर बाहर जाने के लिए वहां से निकला,
अरे किशोर , यहाँ आओ बेटा , देखो रवि अंकल आए हैं, आओ यहाँ आकर इनके पाँव छो कर आशीर्वाद लो।

डैड , क्या आप भी पुरानी दकियानूसी आदतें न ख़ुद छोड़ते हैं और हमें भी ऐसा करने लिए कहते रहते हैं, हम लोग मॉडर्न हैं ये सब ठीक नहीं लगता।

जहाँ अमित के चेहरे पर खीज भरी मुस्कराहट थी , वहीँ रवि के चेहरे पर संतोष , की उसने अब तक अपने बेटे को मॉडर्न स्कूल में पढाने के लिए अमित से बात नहीं की थी.

देश का सबसे बड़ा टैलेंट शो होने जा रहा है, तैयार हैं न

देश का सबसे बड़ा टैलेंट शो होने जा रहा है, तैयार हैं न :-

मुनादी हो चुकी है। विश्व के बहुत मजबूत कहे , मने जाने वाले लोकतंत्र की पहरेदारी के लिए "इंडीयन लीडर की तलाश " , संख्या पता नहीं कौन सी, नामक टैलेंट हंट शुरू हो चुका है। जनता गली , मोहल्ले, कसबे-कूचे , गाँव शहर हर जगह औदीशन ले रही है। कोई नया चेहरा तलाश रहा है तो कोई पुराने का हे मेकओवर करवा रहा है। पहले से इस क्षेत्र में मौजूद गुरुघंतालों के घरानू से भी प्रतियोगी जो आजमाईश कर रहे हैं। लेकिन कहीं किसी भी कोने से किसी नयी सोच, नए चरित्र या नयी हिम्मत वाले किसी प्रतियोगी मिलने की आशा लगभग न के बराबर है। सबसे अहम् बात , अभी से लेकर चुनाव तक ये सभी कलाकार तरह तरह से वोट अपील करेंगे और फ़िर आम जनता एक ही दिन वोट करेगी । कोई दूसरा राउंड नहीं , कोई वाईल्ड कार्ड एंट्री नहीं । तो तैयार हैं न आप सब, नए टैलेंट सो चाहिए एक अच्छा नेता के लिए।
ध्यान से , यदि चूक गए तो पाँच साल तक हाथ मलेंगे।


मॉडर्न :-

रवि आज सुबह से ही काफी खुश लग रहा था, आख़िर इतने दिनों बाद उसके पुराने मित्र ने उसी घर पर मिलने को बुलाया था, वो भी अपनी आलीशान कोठी में, वरना आजकल कौन सम्बन्ध रखता है गरीबों से। उसने तो पहले ही तय कर लिया था, की चाहे जो भी हो आज वो अमित से अपने पुत्र के नए स्कूल अमें एड्मीसन के बारे में बात जरूर कर लेगा, चाहे उसे कर्ज ही क्यों न लेना पड़े, मगर वो अपने बेटे को कोंवैंत में जरूर पढाएगा,। रवि जानता था की अमित जैसा बड़ा उद्योगपति जब सिफारिश करेगा तो उसके बेटे को दाखिला जरूर मिल जायेगा।


अमित के बंगले पर पहुँचते ही , उसने देखा की अमित उसका लॉन में ही चाय पर इन्तजार कर रहा है। उसने बड़ी गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। फ़िर इधर उधर की बातें होने लगी। तभी अमित का पुत्र किशोर बाहर जाने के लिए वहां से निकला,
अरे किशोर , यहाँ आओ बेटा , देखो रवि अंकल आए हैं, आओ यहाँ आकर इनके पाँव छो कर आशीर्वाद लो।

डैड , क्या आप भी पुरानी दकियानूसी आदतें न ख़ुद छोड़ते हैं और हमें भी ऐसा करने लिए कहते रहते हैं, हम लोग मॉडर्न हैं ये सब ठीक नहीं लगता।

जहाँ अमित के चेहरे पर खीज भरी मुस्कराहट थी , वहीँ रवि के चेहरे पर संतोष , की उसने अब तक अपने बेटे को मॉडर्न स्कूल में पढाने के लिए अमित से बात नहीं की थी.

अफजल ने लिखी कसाब को चिट्ठी ( पढ़ लीजिये मगर बताइयेगा नहीं ,संवेदनशील है )

अफजल ने लिखी कसाब को चिट्ठी :-
जैसे ही अफजल गुरु (अरे वही गुरुघंटाल , जिसने अपने जिहादियों , मेरा मतलब साथियों के साथ , देश की संसद पर हमला करने जैसा बकवास काम किया था, बकवास इसलिए की एक भी बेकार नेता कम नहीं करे पाये वे हमारे देश से, खैर ) को जेल में पता चला की ताजातरीन मुम्बई हमले में जिंदा पकड़े गए हमलावर कसाब ने पाकिस्तान सरकार को चिट्ठी वैगेरह लिखी है उसने फ़ौरन कसाब को एक दूसरी चिट्ठी लिखी।

मुबारक हो कसाब मियां, भारत पर पदूसी द्वारा हुए सारे आतंकी हमलों में से सबसे बढिया स्कोर तुम लोगों का ही रहा, सोचा तो हमने भी था की कुछ बड़ा करेंगे पर कर नहीं पाए। मगर ये क्या सुन रहा हूँ आपने अपनी हुकूमत को कोई पैगाम वैगेरह भेज कर शायद रहम की अपील की है। क्यों ? किसलिए ? अमा, कसाब मिया तुम यहाँ के बारे में कुछ नहीं जानते । बिल्कुल मत दरो, ठाठ से रहो। समझो सरकार के दामाद बन गए हो। चलो तुमें पूरी बात खोल कर बता ही देता हूँ।
पहले जांच चलेगी, यहाँ की पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की कार्यप्रणाली तुम्हें पता ही है। यहाँ पर एक सी बी आई , नाम की पुलिस है, बेचारे मंत्री जी के कुत्ते की गुमशुदगी से लेकर घपले, घोटाले, मर्डर, तक का सारा काम इसी के जिम्मे दाल दिया जाता है, शायद इसलिए कुछ भी नहीं कर पाती। इसके बाद चलेगा मुकदमा। कसाब भाई तुम्हें एक कमाल की बात बताता हूँ वैसे तोस्द ये देश अमनपसंद है, मगर पता है यहाँ की अदालतों में साधे तीन करोड़ मुकदमें लंबित हैं, साधे तीन करोड़। तो बस उनमें से एक तुमाहारा भी होगा, चलेगा सालों साल। फ़िर होगा फैसला, फ़िर अपील, फ़िर उसका फैसला। मान लिया की सब कुछ होने के बाद तुम्हें फांसी की सजा ही मिलती है , तो भी क्या, अजी यहाँ फांसी लगती किसे है, मुझे ही कौन लटका रहा है।

बीच बीच में मानवाधिकार वाले इंसानियत की दुहाई देकर तुम्हारे लिए न्याय मांगेंगे या फ़िर हो सकता है की अपने जिहादी भाई कोई प्लेन ट्रेन हाईजैक करके हमें छुद्वान लें । तो इसलिए मेरी सलाह मानो और टेंशन छोडू कर मजे लो। हप्पी वलैन्ताईन दे कसाब मिया इन एडवांस .

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

चाँद को ढूँढने के लिए नासा ने मदद की पेशकश की थी ;

आज सोचा की आप लोगों को कुछ ख़बर पढ़वाई जाए, भाई आप लोग वैसे तो पढ़ते ही होंगे मगर इस ब्लॉगर का एंगल नहीं लगाते होंगे , तो लीजिये न हम कब काम आयेंगे।

सेना सतर्क हुई, वैलेन्ताईन डे जो आ रहा है

जी हाँ एक बार फ़िर हमारे सक्रिय और साहसी सेना के लिए चुनौती का मौका आ गया है, सबको स्पष्ट कह दिया गया है की इस बार भी हमारे देश की संस्कृति और उसके मान सम्मान पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए, और सब के सब जी जान लड़ा कर उसे बचा कर दिखाएँगे। लीजिये आप भी नहीं समझे अजी आज कल कुछ ही सेनायें तो सक्रिय हैं, शिव सेना, राम सेना, बजरंग सेना, अरे नहीं दल। और हर बार की तरह इस बार भी वे लोग पूरे दम ख़म के साथ देश की परम्परा को बचाए रखेंगे, उन्हें किसी तरह का प्रेम प्यार नहीं करने देंगे और शान्ति का जवाब हिंसा से दिया जायेगा । हालाँकि सुना है की इस बार वैलेन्ताईन मनाने वालों की सुरक्षा के लिए भी किसी दल ने हुंकार भरी है, मगर हमारे सेनानी किसी से डरते वरते थोड़ी हैं। तो आईये, आप और हम अपनी सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए प्रार्थना करें।

चाँद को ढूँढने के लिए नासा ने मदद की पेशकश की थी ;-
कल जैसे ही घर पर पहुंचा तो मित्र /पड़ोसी चिल्ला कर कहने लगे , भाई झाजी बड़ा गजब हो गया चाँद नहीं मिल रहा है। अमा क्या कहते हो, चाँद और सूरज भी कोई गायब होने की चीज़ है, मन की कोई विग लगा कर अपनी गंजी चाँद को छुपा भी सकता है मगर देर सवेर चाँद तो निकल कर बाहर आ ही जाता है। झा जी, यार कभी तो सीरीयस हुआ करो, मैं तो फिजा के चाँद की बात कर रहा हूँ। अबे चंदा चाहे फिजा का हो, वादियों का हो, या घाटी का हो, कैसे गम हो सकता है भला, क्या दिन में ही चढ़ा ली है। अरे नहीं नहीं, मैं तो .............

छोडो , छोडो, चाँद की चिंता, अब तो चाँद के गम शम होने की बात ही बेमानी है , अभी हाल ही में तो अपना चंद्रयान चाँद के पास पहुँच गया था, तो फ़िर ऐसा कैसे हो सकता है, चाँद उसकी नजर से नहीं छुप सकता, यदि थोड़ी देर के लिए इधर उधर हुआ भी है तो नासा की मदद से हमारा चंद्रयान उसे ढूंढ ही निकालेगा,
पड़ोसी हमेशा की तरह मुझे खूब कोसते हुए घर में घुस गए.और में आसमान की और ताकता रहा फ़िर याद आया की अभी तो दिन है, चाँद रात को ही तो फिजा में चमकता है सो चमक ही जायेगा, किसी न किसी रात।

ऑस्कर नामांकन से झुग्गी के कुत्तों में खुशी की लहर :-
सुना है की ऑस्कर में अपने नाम की पिक्चर के नामांकन की ख़बर सुन कर झुग्गी की तमाम कुत्तों में खुशी की लहर दौड़ गयी है, वे इसे सरकार की तरफ़ से कोई चुनावी तोहफा मान रहे हैं। उन्होंने हॉलीवुड और बौलीवुड को भी धन्यवाद कहा है की मेनका जी के इतने विरोध के बावजूद कोई तो है जिसने कुत्तों को लेकर इतनी हिम्मत दिखाई है। हालाँकि नेताओं का मानना है की उन्हें जरा भी भनक नहीं लगनी चाहिए की इस पिक्चर से दूर दूर तक उनका कोई लेना देना नहीं हैं, अन्यथा वोट मांगने जाते हुए सबसे ज्यादा ख़तरा इन कुत्तों से ही उन्हें होने वाला है.
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