शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

घुमक्क्ड़ी से नाता जोड़ा क्या

 







घुमक्कडी से नाता :

बचपन में सुना  हुआ एक गीत ,

धरती मेरी माता पिता आसमान
मुझको तो अपने जैसा लागे सारा जहां ,




 देखते हुए एकदम जोर से महसूस हुआ था की सच में ही शायद मैं रास्तों पर चलने और चलते जाने के लिए ही पैदा हुआ हूँ , उम्र के साथ साथ सरिता का पर्यटन विशेषांक और एक और पत्रिका शायद इलस्ट्रेटेड वीकली इनमें सिर्फ और सिर्फ पर्यटन वाले पन्नों को निकाल कर उनमें कभी गुलमर्ग तो कभी मेघालय कभी अमृतसर तो कभी दार्जलिंग , कई कई दिनों तक फोटो निहारने के बाद अगर मौक़ा मिले तो उसे काट कर एक डायरी में रख लेने की आदत को बहुत बाद तक रही। 

पिता जी थलसेना में थे , तो जन्म स्थान हुआ सैनिक अस्पताल जबलपुर , वैसे पैतृक स्थान है मधुबनी ,बिहार , फिर जहाँ जहाँ फौजी सर की पोस्टिंग वहां वहां बच्चे केंद्रीय विद्यालय में पढ़ते हुए विचरण करते रहे। ढाई तीन साल के बाद ही बोरिया बिस्तर गोल हो जाता था हमारा , बचपन बीता फिरोजपुर , लखनऊ , पूना , पटियाला , दानापुर , और आखिरी पोस्टिंग मुजफ्फरपुर ,   इस घुम्मकड़ वाली नौकरी से माँ और पिताजी को कितनी क्या कठिनाई आती थी ये तो हमें ठीक ठीक नहीं पता लेकिन हर बार दोस्तों को छोड़ कर नए क्लास में जाना और फिर वही सब , बाद में तो हमें भी बाकी के सभी बच्चों की तरह आदत ही हो गई , लेकिन जो बाद सबसे अच्छी थी वो ये कि बचपन भी हमारा देश के हर कोने के शहर और उसके सभ्यता संस्कृति से परिचय होते हुए ही बीता , युवक होने तक मैं अपनी मातृभाषा मैथिली और राजभाषा हिंदी के अलावा पंजाबी , मराठी और भोजपुरी भी काम चलाने लायक बोलने और समझने लगा था।  




इसके बाद अगला दौर मेरे जीवन का घुमक्क्ड़ी वाला रहा , मेरी प्रतियोगिता परीक्षाओं में शामिल होने वाला दौर , ये बहुत लंबा था शायद चार या पांच साल तक और आखरिकार चयन होने तक मैं अपनी परीक्षा देने के क्रम में बहुत  से शहरों में पहुंचा , कई बार मौक़ा मिलने पर घूमा भी देखा भी लेकिन उन दिनों लक्ष्य सेवा संधान का था तो न घुमक्क्ड़ी वाला सुख अनुभव हुआ न ही पर्यटन वाला सौंदर्य 

इसके बाद  तब तक जब तक सेवाकाल में नए रहे और  विभिन्न शिक्षण प्रशिक्षण में व्यस्त रहे तभी बस तभी तक थोड़ा रुके और सके बाद फिर शुरू हो गए ताबड़ तोड़ 

शुरू से गिनूँ तो 

फिरोजपुर , लखनऊ , पूना , मुंबई , पटियाला , दानापुर , मुजफ्फरपुर ,रांची , गया ,  भोपाल , सिल्लीगुड़ी , दार्जलिंग ,आसनसोल , कोलकाता , सिकंदराबाद , हैदराबाद ,बंगलौर  जालधंर , होशियारपुर ,  अमृतसर , चंडीगढ़ , लुधियाना , जम्मू , श्रीनगर , शिमला , मनाली , डलहौजी , खजियार , मणिकरण , कुल्लू , माउंट आबू , नैनीताल , कानाताल , टिहरी , धनोल्टी , बुरांशखण्डा , जयपुर , जोधपुर , उदयपुर , चितौड़गढ़ , राजसमंद , हल्दीघाटी , मथुरा , वृन्दावन , बरसाना , सालासर ,मेंहदिपुर ,  खाटू श्याम जी , वैद्यनाथ धाम , वैष्णो देवी , नैना देवी , बगुलामुखी , कांगड़ा माता , चामुंडा माता , ज्वाला देवी , जनकपुर , काठमांडू अभी तो इतना ही याद आ रहा है 





जितना घूमे हैं या घूम पाए हैं उसका दस गुना और घूमने देखने की इच्छा है और यही ख़्वाब है जिसे पूरा करने के लिए लिए सारे जुगत तलाशे जा रहे हैं , इस टेबल कुर्सी से प्रेम मुहब्बत करके आधी शताब्दी तो बीत गई ज़िन्दगी की अब पचास के बाद का सारा समय मेरा है और मेरा ही हो इसलिए फिलहाल तो सिर्फ और सिर्फ अपना देश देखना है और अभी तो कुछ भी नहीं देखा है असल में घूमना तो अब शुरू करना है ये तो ऊपर की सूची है , इतना घूमना है कि फिर कभी किसी भी सूची में पूरे नाम लिख ही न पाएं 

दक्षिण भारत से लेकर पूर्वोत्तर भारत तक और रेल के सफर से मोटरसाइकिल की पीठ पर बैठ तक कर , जहाँ तक भी जा सके , 

अकेले भी दुकेले भी 
और जो साथ हो कारवां मेले भी , 

कोई दिक्कत नहीं कोई परहेज़ नहीं , घुमक्क्ड़ी के जाबांज किस्से  पढ़ते हुए अक्सर मैं लेखक के साथ उसके बिलकुल करीब चलने लगता हूँ और ये बार बार होता है , 

सफर में पहले किताबें पसंद थीं बहुत पढता भी था अब जबसे नज़र नज़ारों पर रहती है तो बस वहीँ अटक से जाते हैं हम भी और हमारा मोबाइल भी , अब फोटों खींचना भी बहुत अच्छा लगता है इसलिए ये भी इच्छा है कि सीख कर कुछ हुनरमंद बना जाए और देखा दिखाया जाए प्रकृति को भी उसके गजब के रूप में 

आप भी करते हैं क्या घुमक्क्ड़ी , कब कहाँ कैसे शुरू की , कहाँ तक पहुँची , अपना अनुभव भी साझा करें हमसे।  
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