रविवार, 12 अक्टूबर 2008

क्या ब्लॉगजगत के लिए भी कोई आचार संहिता बननी चाहिए ?

इस ब्लॉगजगत पर लिखते पढ़ते अब लगभग एक साल हो गया है, और खुशी की बात ये है की सिर्फ़ पिछले एक साल में ही संख्या के हिसाब से तो ये तीन गुना अधिक हो गया है। और चर्चा के हिसाब से उससे भी कहीं आगे । किसी भी परिवार, संस्था, समाज के आचारण के अनुरूप अब जबकि यहाँ भी हम बहुत से अलग , काबिलियत, दिमाग, और मिजाज़ वाले लोग एक साथ आ गए हैं तो जाहिर तौर पर वो सारी अच्छी बुरी बातें भी इसके साथ जुड़ और घट रही हैं। जिस प्रकार से पिछले कुछ दिनों में ब्लॉगजगत में लिखने को लेकर बहुत सारे विषयों , और मुद्दों पर चर्चा हो रही है, मुझे लगता है की देर सवेर कहीं यहाँ भी अपने मीडिया, विशेषकर एलोक्त्र्निक मीडिया, की तरह का भटकाव ना आ जाए।

ब्लॉगजगत में किसी भी मुद्दे पर अलग अलग विचारों का आना, उनके तर्क वितर्क से आगे बढ़ कर एक दूसरे की टांग खिंचाई करने के बाद स्थिति तो गाली गलौज तक पहुँची, न सिर्फ़ पहुँची, बल्कि कुछ दिनों तक तो किसी किसी सामूहिक ब्लॉग पर सिर्फ़ यही होता रहा, इसका परिणाम ये हुआ की उन दिनों पूरा ब्लॉगजगत इस से प्रव्हावित हुआ। शुक्र है की वो समाप्त हो गया। आजकल कुछ बातें जो उठ कर सामने आ रही हैं, वे हैं की क्या एक ही पोस्ट को कई अलग अलग सामूहिक ब्लोगों पर प्रकाशित करना ठीक परम्परा है, और उसका उद्देश्य क्या है, दूसरी ये की क्या एक ही व्यक्ति द्वारा बहुत सारे ब्लॉग लिखना ठीक बात है, इनसे अलग ये भी की कई लोग सिर्फ़ दूसरों की रचनाएँ लिख रहे हैं उनके लिए क्या। मेरे ख्याल से तो ये जितनी भी बातें या मुद्दे उठ रहे हैं, इन सबमें निश्चित ही ब्लॉगर का कहीं भी ये उद्देश्य नहीं रहता है की उसके ऐसा करेने से किसी कोई कोई नुक्सान पहुँच सकता है, या की वो सिर्फ़ अपनी बात ही कहना और सुनना चाहता है।
किसी भी पोस्ट का एक से अधिक बार, अलग अलग ब्लोगों और सामोहिक ब्लोग्स पर आना बहुत बुरी बात नहीं कही जा सकती। ये ठीक उस तरह है जैसे की एक लेखक का आलेख या कोई भी रचना , एक ही दिन अलग अलग समाचार पत्रों में छपती है। एक व्यक्ति द्वारा सिर्फ़ एक ब्लॉग पर लिखने की पाबंदी लगाना तो निश्चय ही ज्यादती हो जायेगी। उदाहरण देकर समझाता हूँ, यदि कोई सिर्फ़ एक ही विधा में लिखता है तो उसके लिए तो एक ही ब्लॉग पर लिखने से काम चल जायेगा, किंतु कोई यदि अलग अलग विषयों , अलग अलग विधाओं में लिखना चाहता है और लिख सकता है , साथ ही चाहता है की उसे सब अलग अलग ही पढ़ें तो उसके लिए तो ये करना जरूरी भी है और औचित्यपूर्ण भी। रही बात दूसरों की रचा लिखने छपने की तो यदि उद्देश्य ये है की उन फलाना जी की लेखनी का परिचय पूरे ब्लॉग समाज से कराया जाए तो निश्चित रूप से ये उचित है, मगर किसी भी परिस्थिति में शेर्य , यानि उनका नाम जरूर उल्लिखित किया जाना चाहिए।

इन सबके बावजूद कुछ बातें तो जरूर हैं जिन पर देर सवेर कुछ न कुछ काम तो ब्लॉगजगत के खैर मख्दम करने वालों को सोचना ही पडेगा। जैसे की कुछ लोग अपने आपको परदे के पीची रख कर कुछ भी लिखे और कहे जा रहे हैं, विशेष कर किसी की पोस्ट को पढ़ कर उस पर प्रतिक्रया देने के मामले में तो ये नाकाब पोश कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं, और जाहिर सी बात है की प्रतिक्रया भी अपने चरित्र की अनुरूप ही। जैसे की एक अनाम महाशय हैं, हाल ही में उन्होनें मेरी एक पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी की , आप बकवास बहुत अछा करते हैं, मगर अपने दिमाग का इलाज़ करायें । यूँ तो इनकी टिप्पणी से पहली बार मेरा वास्ता नहीं पडा है , और फ़िर इन्होनें तो शायद किसी को भी नहीं बक्शा आदरणीय घुघूती जी लिए लिखा की आप तो बस हिनहिनाने के लिए ब्लॉग जगत पर आयी हैं। मुझे नहीं लगता की छुप कर आप किसी की आलोचना या विरोध कर रहे हैं तो वो सही है।

हालांकि ब्लॉगजगत एक खुला आसमान है , मगर लगता है की कभी न कभी इस आमान पर काले बादल छाने की नौबत आने लगती है इसलिए उससे बचने के लिए भी तैयार रहना पडेगा.

11 टिप्‍पणियां:

  1. इसका कुछ भी नहीं किया जा सकता है और ये ब्लाग सब के लिए हैं तो कोई भी लिख और कह सकता है। चाहे वो किसी भी फील्ड से जुड़ा क्यों ना हो। दूसरी बात बेनामी टिप्पणी का सिर्फ ये हो सकता है कि बेनामी कमेंट बंद कर दें और शायद आपने देखा होगा कि बहुतों ने ये इलाज कर लिया है।

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  2. कौन बनाएगा यह आचार संहिता? कौन पालन करेगा इस का? ऐसी आचार संहिता अक्सर बनती हैं और दराजों में रख कर लोग भूल जाते हैं. व्यक्ति ख़ुद ही अपने आचार-विचार का निर्माता होता होता है. सब को अपनी लक्ष्मण रेखा ख़ुद ही खींचनी है.

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  3. सीधी-सी बात है कि जब तक व्यक्ति अपने निजी आचरण में उत्त नहीं है तब तक किसी दे,समाज,या वर्ग थवा संगठन का भला नहीं हो सकता। आत्मानुशासन व संस्कारों की पृष्भूमि ही दशा व दिशा के नियामक होते हैं, अन्यथा आचार संहिता तोड़ने वालों के लिए कुछ भी असम्भव नही जब तक वे स्वयम् न चाहें।

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  4. बहुत बढिया पोस्ट लिखी है ।अचार सहीता की जगह स्व विवेक से बचाव के उपाय ढूंढना व सही दिशा अपना ही सही रास्ता है।पाबंदी लगाना नामुम्किन है।

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  5. aap sabkaa bahut bahut dhanyvaad. sahee keh rahe hain aap sab waise bhee mujhe to yahee lagtaa hai ki ham jo bhee likhte hain padhte hain wo sab apne charitra aur anubhav ke anuroop hee hotaa hai.

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  6. कोई अपनी पोस्ट में गालियां बक रहा है तो कोई प्रतिक्रिया देने में। कौन बनाएगा यह आचार संहिता? कौन पालन करेगा इस का? कभी-कभी तो लगता है कि यही करना था तो ब्लाग पर क्यों....

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  7. ब्लॉग बंधनहीन ही ठीक है। कुछ बार हम एक ब्लॉग पर जाते हैं, उसे परखते हैं, यदि हमें पसंद आता है तो बार बार वहाँ जाते हैं। लोगों को अपने लेखन के अनुसार पाठक मिल जाते हैं। रही बात अनाम रहने की तो वह स्वतन्त्रता भी ठीक है। यदि हमें कुछ टिप्पणियाँ आपत्तिजनक लगती है तो हम उन्हें हटा सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं यह निर्धारित करता है कि क्या आपत्तिजनक है। मुझे हिनहिनाना आपत्तिजनक नहीं लगा,किसी अन्य को लग सकता था।
    घुघूती बासूती

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  8. आचार संहिता वहां जरूरी हो जाती है जहाँ प्रबुद्ध ,विवेकशील लोगों की कमी होती है -क्योंकि अच्छी समझ वालों के लिए तो एक अघोषित आचार संहिता रहती ही है .मगर क्या ब्लॉग की प्रकृति और प्रवृत्ति किसी आचार संहिता की मांग करती है ? शायद नहीं ,मगर जिस तरह यह माध्यम दिन ब दिन गंभीर अभिव्यक्ति का बायस बन रहा है अचार संहिता तो बननी ही है देर सबेर ! टिप्पणी पर तो ऐच्छिक अंकुश आज भी हैं !

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  9. aap sabkaa bahut bahut dhanyavaad.bahut see bhrantiyan aur sandeh door kar diye aapne. dhanyavaad.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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