पिछली पोस्ट के समय मन की स्थिति कैसी थी , शायद बताने की जरूरत नहीं है, इसलिए तब जो भी पहली बात मन में आई वो जस की तस सामने रख दी । बिना किसी बात की परवाह किए । पिछली पोस्ट में आई प्रवीण शाह जी की टिप्पणी ,"
ब्लॉगिंग एक ऐसा माध्यम है जिसमें हर वो बात देर-सबेर लिखी जायेगी... जो आदमी के दिमाग में चलती है...यही ब्लॉगिंग की ताकत भी है... इन सब बातो से इतना परेशान या ऑफेंडेड होने की आवश्यकता नहीं... आभिजात्य सौन्दर्यबोध रखने वालों के लिये तो नहीं ही है ब्लॉगिंग "
ने मुझे बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया , और मैं बार बार यही सोच रहा था कि , आखिर क्यों , ये अपेक्षा क्यों । क्या इसलिए कि मैं खुद हिंदी ब्लोग्गिंग से जुडा हुआ हूं । क्या इसलिए कि जब मैं दूसरे लोगों को सीना फ़ुला कर ये कहता हूं कि हां मैं भी ब्लोग्गिंग करता हूं हिंदी में तो उस वक्त मुझे ये अपेक्षा रहती है कि सामने वाला कहेगा वाह । और जब पाता हूं यहां की स्थिति तो खुद ही अपने मुंह से निकलता है आह ।
अपनी खुद की टिप्पणी में मैंने लिखा ,"कल मन विक्षुब्ध था और उत्तेजित भी , इसलिए जो दिल ने सोचा कहा वो जस का तस आपके सामने रख दिया , और उस पर आपने जो सोचा जाना वो मेरे साथ और पूरी ब्लोगजगत के साथ बांटा । अक्सर बिना मोडरेशन वाले मेरे जैसे ब्लोग्स उन ब्लोग्गर्स के लिए अखाडे की तरह बन जाते हैं , और वो खुल कर अपने जौहर दिखाते हैं , खैर ये तो .....और यही तो ब्लोग्गिंग है । संकंलकों का अपनी नीति है अपना फ़ैसला है , मेरे मन में जो था वो मैंने कह दिया , और भविष्य में भी ऐसा नहीं करूंगा इस बात की कोई गारंटी भी खुद को नहीं दे सकता हूं । बस इतना चाहता था और आगे भी चाहता रहूंगा कि , सिर्फ़ चंद लोग मिलकर पूरे ब्लोग जगत का माहौल बिगाड सकने की क्षमता रखते हैं तो ऐसे में किंकर्तव्यविमूढ होकर चुप बैठे रहना ऐसे लगता है जैसे अचानक फ़ालिज़ का दौरा पडने पर तन मन सब शिथिल हो गया हो हो । आज इससे ज्यादा कुछ कहने का मन नहीं है"
अब सवाल ये कुरेद रहा था मन को कि प्रवीण जी की बात तो सही है सौ आने खरी भी , आखिर ब्लोग्गर तो मैं तब भी था न जब टिप्पणी तो टिप्पणी पोस्ट भी रोमन में ही लिख डाली थी , शुरुआत की पोस्टें गवाह हैं । उसे आज कोई पढ ले तो यही कहेगा , लो ये हैं हिंदी के ब्लोग्गर । और आज भी जब कोई कहता है कि हिंदी ब्लोग्गिंग में जाने कितना कचरा भरा पडा हुआ है , तो क्या जाने उसका आशय , पोस्टों से होता है , उसका आशय बेतरतीब ढंग से एक ही ब्लोग में कविता, कहानी, कार्टून, समीक्षा , सब कुछ परोसे जाने को लेकर होता है , या शायद उस सबसे बढकर कभी धर्मवादियों के लगातार चल रही रेस को लेकर तो कभी बात बेबात दो नियमित लेखकों के बीच होने वाले वैचारिक मतभेद से शुरू होकर मनभेद और कभी कभी अपमानजनक स्थिति तक पहुंचने वाले हालातों को लेकर होता है ।ये सच है कि इन सबके बावजूद भी अब भी जब कोई हिंदी ब्लोग्गिंग को अपने निशाने पर रखता है तो मुझे कष्ट होता है , शायद नहीं होना चाहिए , मगर होता है , और ये सच है । और ये कष्ट तब और बढ जाता है या कहूं कि क्रोध में बदल जाता है , जब कोई बाहर का ये सारी बातें करता है ।
मैं कभी कभी दुविधा में पड जाता हूं ब्लोग्गिंग के स्वरूप को लेकर । ये जो भी होता दिखता है , मतभेद , मनभेद , एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड ( फ़िर चाहे वो शब्दों की कलाकारी के सहारे हो या सीधे सीधे अपमानित करने के अंदाज़ में ), बेनामी बनकर /रहकर मन की भडास निकालने की बढती प्रवृत्ति आदि तमाम तरह की बातें तो लगता है कि चाहे कितनी भी रफ़ू की जाए मगर ब्लोग्गिंग का ये कच्चा रूप ही सबसे शुद्ध रूप है blogging is pure ,only when it is raw , हम इसे किसी भी तरह से सजाते संवारते हैं , सुधारते हैं तो उसमें ब्लोग्गिंग का जो मौलिक चरित्र है उसमें कमी लाने की कोशिश की तरह होता है । हिंदी ब्लोग्गिंग में ये और भी ज्यादा हो पाता है क्योंकि जाने अनजाने सब एक दूसरे को पाठक के तौर पर लेखक के तौर पर जानने के अलावा भी जानने समझने लगते हैं ।सामुदायिक ब्लोग्स में सहयोग देने वाले ब्लोग्गर्स किस तरह कितने दिनों तक अपरिचित बने रह सकते हैं ये देखना दिलचस्प होता है ।
दूसरी तरफ़ जब पाता हूं कि हिंदी ब्लोग्गर्स एक दूसरे का सुख दुख बांट रहे हैं , बिना ये जाने कि वो किस शहर , किस कस्बे , किस धर्म , किस जाति का है । एक दूसरे की मुश्किलों में साथ आ जाते हैं , बेशक बहुत बार आभासी और बहुत बार वास्तविक भी , मौके बेमौके आपस में मिल बैठते हैं कभी मीट के बहाने ,तो कभी बैठक के बहाने , एक दूसरे को जानते हैं समझते हैं । एक दूसरे के मान अपमान को अपना समझते हैं , तो क्या इससे ब्लोग्गिंग का चरित्र बदल जाता है । क्या इससे गुट बन रहे हैं , या बन जाते हैं , क्या मैं भी उन गुटों का हिस्सा बन जाता हूं , अगर हां तो मुझे क्यों नहीं दिखता उस गुट का कोई भी । क्या इससे सचमुच ही कोई फ़र्क पड रहा है ब्लोग्स को पढने में , उन्हें समझने में , उन पर खुल कर टिप्पणी करने में ?? बहुत से प्रश्न उमड घुमड रहे हैं मन में , अगले कुछ समय तक उनके उत्तर तलाशूंगा ।और हां ये सच है कि हिंदी ब्लोग्गिंग पर लिखना मुझे पसंद है फ़िर चाहे इसके लिए मेरे ब्लोग को हिंदी ब्लोग्गिंग के नाम पर हमेशा रोने धोने वाले ब्लोग की श्रेणी में ही क्यों न रखा जाए ।
सोमवार, 26 अप्रैल 2010
ब्लोग्गिंग के स्वरूप को लेकर मेरी दुविधा
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जो किसी का बुरा नहीं चाहता उसे सब कुछ मिल जाता है ।
जवाब देंहटाएंhar bhasha apni bhaasha hai, har baat apni baat hai aur har samay apna samay hai bhaaiji !
जवाब देंहटाएंbhaashaa - lipi aur vidhaa bahut chhoti saamagri hain aur sneh, karuna aur maanviy samvedna ki duniya bahut badi hai
likhne ka man ho, aur devnaagri ko dhoondhna pade, itni der me toh roman me likh kar post bhi kar sakte hain
hum man se hindi banen, tab baat hai .............bhaasha hindi bol lene ya likh bhar dene se koi hindi nahin ho jaata
sadbhavnaaon sahit,
-albela khatri
ब्लागिंग मनुष्य के परे की कोई चीज नहीं नहीं है -यहाँ वह सब है जो मौजूदा समाज में है -गुटबाजी ,बेहयाई ,दुरभिसंधियाँ ,धर्म के झगडे ,बलि के बकरे ,उल्लू सीधे करने वाले लोग ,अपनी बुद्धि और औकात की फ़िक्र न कर दूसरों पर तरस करने वाले लोग ,यहाँ तक की हार्ड कोर क्रिमिनल तक -यहाँ शास्त्र और शास्त्र दोनों की जरूरत है -
जवाब देंहटाएंबहुत से लोग दूसरों को उकसा कर लड़ाईयां करवा रहे हैं ताकि उनकी गद्दी डिवायिद एंड रूल से बरक़रार रहे ...कुछ परदे के पीछे ही बने रहते है ....
अच्छे नए प्रतिभा शाली लोगों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है-उखमजियों, पाजियों और लड़ाई करने वालों का बहिष्कार जारी रहना चहिये -
आप इतना उद्विग्न क्यों दिखते हैं ? उम्र कम है ,जीवन के रास रंग की और मुडिये!
अरविन्द मिश्र जी की टिपण्णी में दम है अजय , सिर्फ आखिरी लाइन पर ध्यान नहीं देना ...खिचाई करना उनकी आदत है आशीर्वाद समझ कर ग्रहण करियेगा ! बहुत अच्छा लेख है !
जवाब देंहटाएं.......बहुत से प्रश्न उमड घुमड रहे हैं मन में , अगले कुछ समय तक उनके उत्तर तलाशूंगा.........
जवाब देंहटाएंAfter getting the answers, kindly let us know ...
हा हा हा सतीश जी , और अरविंद जी , इसी दुविधा को दूर करने के लिए तो पोस्ट लिखी है , सर मैं आज तो उद्विग्न नहीं हूं उस दिन शायद जरूर था , शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंअजय जी जिन्दगी एक जंग है उसे जंग समझ कर जीने से शांति मिलती है / सत्यमेव जयते के लिए काम करते रहिये ,एक न एक दिन मंजर बदलेगा / चोर उच्चके नगर भिखारी होंगे / आम जनता और इमानदार सत्ता के प्रभारी होंगे और आप जैसे ब्लोगर इसके उतराधिकारी होंगे / प्रयास करते रहिये और उस दिन का इंतजार कीजिये / कभी जरूरत हो तो हमें याद कीजिये /
जवाब देंहटाएंदिव्या जी ,
जवाब देंहटाएंआपसे मुझे यही उम्मीद थी कि आप जरूर सौ सुनार के ऊपर एक लुहार की ठोकेंगी ....चलिए ऐसा ही सही मिलते हैं बाद में
हिंदी ब्लोग्गर्स एक दूसरे का सुख दुख बांट रहे हैं , बिना ये जाने कि वो किस शहर , किस कस्बे , किस धर्म , किस जाति का है ।
जवाब देंहटाएंझा जी! बस यही बात है जो ब्लागिंग में रहने को मजबुर करती है। सब युं ही चलता रहेगा।
आखिर कुछ तो है ही ब्लॉगिंग में, वर्ना हम सब यहाँ क्यों होते? जब यहाँ आ गए हैं तो भाग कर नहीं जाएँगे।
जवाब देंहटाएंवस्तुत: ब्लागिंग समाज का दर्पण है. इसका चरित्र भी हमारे समाज की ही तरह है. कभी क्षोभ तो कभी आत्मीय सम्बन्धों पूर्णतया आत्मसात कर लेने की तमन्ना. दुर्भावनाएँ भी और आत्मीयता इतनी कि ---.
जवाब देंहटाएंस्वरूप का परिमार्जन तो सम्भव है पर पूर्णतया बदल सकने के लिये तो समाज को ही बदलना होगा.
नकारात्मक है तो सकारात्मक सोच की भी तो कमी नहीं है.
Mai in sab halaton se vabasta nahi hun..haan,ek samay tha jab, blogging ke karan mujhe behad takleef uthani padi thi....aaj uski or jeevan shikshaki nazarse dekhti hun..mere jaise ate jate rahenge,blogging jari rahegi..(maine comment bhi roman me diya hai..!)
जवाब देंहटाएंहम सब जहाज के पंछी हैं अजय जी
जवाब देंहटाएंजब कोई कहता है कि हिंदी ब्लोग्गिंग में जाने कितना कचरा भरा पडा हुआ है तो उसे बंदर और अदरक का संबंध बताईए
बाकी सब तो मनीषियों ने कह ही दिया है
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जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग में एक पूरा समाज है .. हर तरह के लोगों का होना स्वाभाविक है .. विचारों में विभिन्नता तो होनी ही है .. लोग अपनी अपनी रूचि के विषयों को स्वयमेय चुन लेते हैं .. हिंदी ब्लॉगिंग में कुछ विरोधियों के बने होने के बावजूद मेरा अनुभव तो अच्छा है !!
जवाब देंहटाएं"है बात कुछ कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
जवाब देंहटाएंसदियों रहा है दुश्मन आहेलेजहाँ हमारा !!"
अजय भाई, यह सब तो चलता रहेगा आप बस लगे रहो ! बाकी मैं बहुत नया हूँ यहाँ........ क्या कहू ?
पता नहीं..मुझे नहीं लगता इतना परेशान होने की जरूरत है...अपने मन की पोस्ट लिखिए , सृजनात्मक लेखन कीजिये. इन झगड़ों में पड़ने की जरूरत ही क्या है. जहाँ कोई बात बुरी लगे विरोध कीजिये और फिर अपने काम में लग जाइए. मुझे लगता है जिन लोगों के पास कुछ लिखने को नहीं होता,और येन केन प्रकारेण lime light में रहना चाहते हैं, वे ही विवादास्पद पोस्ट लिखते हैं, गुटबाजी करते हैं,एक दूसरे को भड़काते हैं.( अब ये लोग कौन हैं..ये मुझे नहीं पता...पर आपने जिक्र किया है और परेशान हैं...तो उनका अस्तित्व तो होगा ही )
जवाब देंहटाएंअजय भाई, यह भी देख लेना :- http://hindiblogjagat.blogspot.com/2010/04/blog-post_26.html
जवाब देंहटाएंआपको ही लिखा गया है !
कोई पुराना दोस्त है क्या ?
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शिवम भाई अभी देखा मैंने जब आपने बताया , दुश्मन तो नहीं ही है जो भी है और पुराना भी है ही । वर्ना नाचीज़ को कोई नया मित्र इतनी तवज्जो क्यों देगा कि पूरी पोस्ट ही नाम लेकर लिखनी पड जाए । आखिर ब्लोगस्पौट को ऐग्रीगेटर बनाने और बनाए रखने की भी कोई मजबूरी होगी तो चलायमान करने के लिए तो करना ही पडता होगा न । वहां अपनी बात कह आया हूं ।
जवाब देंहटाएंअजय जी
जवाब देंहटाएंकमेन्ट तो मै कुछ और ही करने जा रहा था मगर अब आपसे एक बात पूछनी है
आप जानते है कि बेनामी या ओपन आई डी भी कई विवादों को जन्म देती है
फिर भी आपके ब्लॉग पर ओपन आई डी खुली हुई है
ऐसा क्यों और आप इस विषय में क्या सोचते हैं
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबस अजय भाई, हम तो इसमें ही खुश है कि आपका नाम हो रहा है !!
जवाब देंहटाएंबताये एक पूरी की पूरी पोस्ट आपके ही नाम पर ! क्या कहने आप के !
बहुत सार्थक पोस्ट लिखी आपने. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
वीनस जी ,
जवाब देंहटाएंठीक से देखिए , आपसे किसने कह दिया कि बेनामी आईडी का औप्शन खुला हुआ है , और कौन सी बेनामी टिप्पणी दिख रही है आपको ये भी बताईये । यदि आपका आश्य उन लोगों से है जो नकली प्रोफ़ाईलधारी हैं तो उनके लिए क्या किया जा सकता है बताएं ।
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जवाब देंहटाएं.
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आदरणीय अजय कुमार झा जी,
ब्लॉगिंग के स्वरूप को लेकर यह दुविधा कुछ न कुछ हद तक हम सभी को है... भिन्न विचारों के प्रति सहिष्णुता धारण करने पर ही यह दुविधा हटेगी... मैं अक्सर अपने दोस्तों से कहता हूँ कि दुनिया को अपने तरीके से चलाने का इरादा छोड़ दो... क्योंकि दुनिया का हर आदमी दुनिया को अपने ही तरीके से चलाना चाहता है... और हरेक का अपना ही नजरिया भी है... इसी लिये इतनी रोचक-उबाऊ, खूबसूरत-बदसूरत, न्यायपूर्ण-अन्यायपूर्ण, वीभत्स-सुन्दर, विद्रूप भरी-तार्किक, ईशप्रेमी-द्रोही और भी न जाने क्या क्या लगती है यह हम सभी को... यही है हमारी दुनिया, ऐसी ही रहेगी, हम से ही बनती है...
ब्लॉगिंग में भी इसी दुनिया का अक्स देखने को मिलता है...
मैं तो फिर-फिर यही कहूँगा कि:-
Let thousand flowers bloom... Let each and everyone's opinion count and matter... Let us create a virtual platform for sharing of views, experiences & thoughts where everybody feels wanted & everybody is welcomed with an open arms, generous heart & an unbiased mind...
Ameen!
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जवाब देंहटाएं.
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@ आदरणीय संगीता पुरी जी,
अच्छा तो आप यहाँ हैं और आपके ब्लॉग पर मेरी दो टिप्पणियाँ अभी तक माडरेशन का इंतजार कर रही हैं।
"सिर्फ़ चंद लोग मिलकर पूरे ब्लोग जगत का माहौल बिगाड सकने की क्षमता रखते हैं ..."
जवाब देंहटाएंयह उन चंद लोगों के महारत कारण नहीं बल्कि हमारी अपनी कमजोरी के कारण है, हम लोग ही जाने-अनजाने उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बढ़ावा देते हैं।
अजय जी, मैं ब्लागिंग को सीखने का प्लेटफार्म मानती हूँ। समाज को समझने का इससे अच्छा और सस्ता प्लेटफार्म कहीं नहीं मिल सकता। मैं लेखक और वक्ता दोनों ही हूँ तो प्रतिदिन कुछ नवीन सोच से रूबरू होना चाहती हूँ जिससे विश्लेषण करके समाज को लौटा सकूं। इसलिए लेखक को तो उद्विग्न होने का हक ही नहीं है। उसे तो केवल समाज का अध्ययन करना है और वापस समाज को लौटा देना है। जिससे बेहतर समाज बन सके। लेकिन ब्लोगिंग में सभी तो लेखक नहीं है, इसलिए सारी कठिनाइयां आ जाती हैं। लेखक भी हैं तो समाज को देने से अधिक स्वयं को पाने की लालसा से जकड़े हैं। इसलिए शीघ्र प्रसिद्धि मिले यही प्रयास रहता है। इसकारण ऐसा लिखो जिससे हम प्रसिद्ध हो जाए। मेरा तो यही मानना है, इसलिए मैं निरपेक्ष भाव से केवल अध्ययन करती हूँ।
जवाब देंहटाएंhttp://hindiblogjagat.blogspot.com/2010/04/blog-post_26.html
जवाब देंहटाएंझा जी!हम तो इस लिंक पर गए थे
देखा तो पेज ही गायब है।
क्या चमत्कार है भाई।
कहने को तो अभासी दुनिया है, मगर मेरे विचार से किसी की 10-20 पोस्ट पढने के बाद उस ब्लागर के चरित्र और विचारधारा के बारे में हमें मालूम होने लगता है।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
जवाब देंहटाएंजैसा की अजित गुप्ता जी ने कहा,
अजय जी, मैं ब्लागिंग को सीखने का प्लेटफार्म मानती हूँ। समाज को समझने का इससे अच्छा और सस्ता प्लेटफार्म कहीं नहीं मिल सकता।
मैं भी ऐसा ही महसूस करता हूँ.
आपने हाले-दिल कहा अच्छा लगा. अच्छे लोग हमेशा अच्छे लोगों से घिरे रहेंगे. इसको गुटबाजी थोड़े न कहेंगे.
- सुलभ
सबको अपनी बात कहने का अधिकार होना चाहिए। जब तक लोग पोस्ट पर पोस्ट करने की आदत से बाज नहीं आएंगे,प्रतिक्रिया का दौर चलता रहेगा।
जवाब देंहटाएंयह रोना-धोना नहीं है यह बिलकुल सही और जायज चिंतन हि ।
जवाब देंहटाएंझा जी क्षमा करें
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर बेनामी नहीं ओपन आई डी का आप्शन खुला है
और नकली प्रोफाईल धारी के लिए कुछ नहीं किया जा सकता सिवाय माडरेशन के
जो मुझे पसंद नहीं
गलती की तरफ ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद