शुक्रवार, 13 जून 2008

सफ़ेद चेहरे (एक कहानी या शायद हकीकत )

कांति और नुपुर , बिल्कुल उस तरह से थी जैसे कि, दो बहने हों । उनकी ये दोस्ती कितनी पुरानी थी इस बात से ज्यादा ये बात जानने में मज़ा आ सकता है कि उनकी दोस्ती कैसे हुई। दरअसल ये उनके कोल्लेज के दिनों की बात थी, दोनों एक ही बस में चढ़ कर एक ही कोल्लेज और एक ही क्लास में जाती थी, मगर उनमें शायद कभी भी ऐसी दोस्ती न होती यदि , उस दिन वो घटना ना हुई होती। जब वे अपना क्लास ख़त्म करके बस में चढी तो रोज की तरह बस ठसाठस भरी हुई थी। वे दोनों भी बिल्कुल आस पास खादी हो गयी थी। नुपुर जो कि हमेशा से बेहद संकोची और डरने वाली लडकी थी , उसे अचानक लगा कि किसी ने पीछे चिकोटी काटी है, वो हमेशा की तरह कस्मसाई और आगे बढ़ने की सोचने लगी। मगर आगे भी भीड़ थी, तभी अचानक इससे पहले कि वो कुछ और सोच या कर पाती, चटाक की एक तेज़ आवाज़ उसके कानो में गूंजी। उसने मुड़ कर देखा , साथ खड़ी लडकी ने बिल्कुल पास खड़े लड़के के कोल्लर पकड़ कर उसे भला बुरा कह रही थी। इसके बाद का काम भीड़ ने कर दिया, न किसी ने कुछ पूछा और न कहा। नुपुर की कांति से यहीं से दोस्ती की शुरूआत हुई थी। जब उसे कांति से पूछा था कि क्या ये सब करते हुए उसे डर नहीं लगा, उसने बताया था कि वो एक बड़े घर की लडकी है, और उसका माहौल बहुत अलग है जिसमें डर वर की कोई गुंजाईश नहीं है। वो तो कार में अपनी जिद्द की वजह से नहीं आती है। इसके बाद तो दोनों जैसे एक ही घर में पैदा हुई दो बेटियाँ हों।

आज नुपुर बेहद उदास थी, ऐसी ही उदासी उसके चेहरे पर तब भी थी , जब वो नौकरी के लिए भटक रही थी। कांति ने लाख कहा था कि वो अपने पापा के कहने पर उसे किसी अच्छी जगह पर काम दिलवा सकती है, या चाह तो उसे अपने पापा के यहाँ ही कोई अच्छी नौकरी दिलवा सकती है, मगर नुपुर अब भी उन्हें पुराने खालों की लडकी थी इसलिए बड़ी विनम्रता से उसे टाल गयी.मगर फ़िर उसे जब एक जगह रीसेप्स्निष्ट की नौकरी मिल गयी थी तो वो कितना खुश थी, फ़िर एक हफ्ते बाद ही तो उसने बताया था कि सर ने उसे अपना सेक्रतारी बनाने का को कहा है.मगर आज कुछ जरूर गड़बड़ थी। कांति उसका फक्क चेहरा देख कर ही समझ गयी थी। बहुत कुरेदने पर पता चला कि वही पुरानी बात उसके बॉस ने उससे बत्तमीजी करने की कोशिश की थी। बस कांति भड़क गयी, पहले तो उसने नुपुर को ही खूब भला बुरा कहा, फ़िर लाख न न करने के बाद भी उसे इस बात के लिए राजी कर लिया कि कल वो भी नुपुर के साथ जाकर उस बॉस की अक्ल ठिकाने लगा कर आयेगी।

अगले दिन नुपुर ने बहुत कोशिश की , कि उसकी तबियत ख़राब है , वो बात आगे नहीं बढाना चाहती , या वो और कहीं नौकरी कर लेगी। मगर कांति उसे सबक सिखाने पर आमादा थी। सो दोनों चल पड़े। तू, कुछ नहीं कहेगी, चुपचाप खड़े होकर तमाशा देखना, आज मैं उसका कैसा बैंड बजाती हूँ, कांति ने उसे कहा।

गाडी जहाँ रोकने के लिए नुपुर ने कहा, पहले तो कांति थोडा चौंकी, फ़िर कुछ सोच कर चुप हो गयी। इसके बाद दोनों उस बिल्डिंग में दाखिल हुए, अब कांति के चेहरे पर एक अजीब सा खुरदुरा पं आ गया था मगर अन्दर ही अन्दर उसका दिल भी धाड़ धाड़ बज रहा था। नुपुर के साथ साथ वो भी सीधे बिना खात्खाताये बॉस के कमरे में दाखिल हो गए। नुपुर को ना जाने कांति के साथ ने कहाँ से हिम्मत दे दी, ' देख नुपुर याही है वो, उसे सामने खड़े व्यक्ति की तरफ़ इशारा किया।

"पापा , आप ," कांति के मुंह से निकला।

सबके चेहरे सफ़ेद पड़ चुके थे, कारण अलग थे , मगर सफेदी एक जैसी थी......

5 टिप्‍पणियां:

  1. धक रह गये भाई.बहुत बढ़िया लिखा है, बधाई.

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  2. bahut hi aacha likha hai aapne. jari rakhiye.

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  3. aisi sandar abhivyakti ke liye sadhuwad.

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  4. चमत्कृत कर दिया आपकी कहानी ने.
    जिंदगी भी कैसे-कैसे रंग दिखाती है?

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  5. aap sabkaa bahut bahut aabhaar.main likhne kee koshish jaaree rakhungaa.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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