गुरुवार, 5 जून 2008

स्वीटी, तुम कहाँ हो ?

साल शायद १९८३ या १९८४ , जगह पूना , उस वक्त मेरी उम्र कितनी थी ये तो पता नहीं, मगर इतना बहुत अच्छी तरह याद है की मैं पूना के सेन्ट्रल स्कूल में सातवीं क्लास में पढता था। हमारा स्कूल घर से बहुत दूर था और फौजी बस हमें अपने घरों से लेकर रोज स्कूल लेकर जाती थी। मुझे ये भी याद नहीं की किस दिन अचानक मेरी नजर उस मासूम और बहार प्यारी लडकी स्वीटी, नहीं उसका असली नाम जागृति था , पर पडी। क्योंकि उन दिनों वैसा माहौल नहीं बना था ,कि जैसे अब बच्चे बहुत कुछ समय से पहले ही समझने लगे है और कई तो करने भी लगे हैं, शायद इसलिए भी मैंने उसे कभी देखा नहीं था और यदि देखा भी था तो पता नहीं। बस इतना और बता दूँ कि उस वक्त , यदि मुझे याद है तो ये स्वीटी जी कक्षा चार या पाँच में थी।

मेरा एक करीबी मित्र जो उसे शायद पहले से जानता था , उसने मेरी जान पहचान , स्वीटी से करवाई थी। इनता तो आप अंदाजा लगा ही चुके होंगे कि कुछ भी ऐसा नहीं था कि जिसे मैं कोई नाम दे सकूं मगर कुछ बातें जो अब तक मैं नहीं भूला हूँ वो ये थी। मैं हमेशा लड़ झगड़ के उसके लिए अपने साथ वाली सीट जरूर रख लेता था। उसका हूम्वार्क जरूर चेक कर लेता था और कभी नहीं किया होता था तो उसे बस में ही पूरा भी कर दिया करता था , फ़िर ये चाहे अलग बात है कि मेरा ख़ुद का होमवर्क अक्सर नहीं होने के कारण मेरी खूब मिजाजपुर्सी होती थी। मुझे ये भी याद हैं कि एक दिन रास्ते में बस के पीछे पीछे भागते हुए मेरा तिफ्फिन गिर गया , और न जाने उसे किसने बता दिया, उस दिन वो चुपचाप अपना तिफ्फिन मेरे बसते में डाल गयी थी।
मुझे ये भी याद है कि उस साल जब होली में मैंने उसकी छोटे छोटे गोरे गालों पर रंग लगा दिया था पहले वो कितना घबरा गयी थी फ़िर उसके बाद बच्चों की किलकारी मारते हुए मेरे साथ खूब होली खेली थी।

पिताजी फौज में थे , हमें पता भी नहीं चला कि किस दिन अचानक उसके पिताजी और हमारे बाबूजी का एक साथ ही तबादला हो गया। मुझे अब तक उसके चेहरे पर दर्द की , वो रोने सूरत की छाप , याद है , अब जबकि मेरे ख़ुद का बच्चा उतना बड़ा हो गया है जितना कि मैं ख़ुद था तो भी स्वीटी मैं तुम्हें नहीं भूला हूँ। काश कि कभी तुम मुझे दोबारा मिलती..........

3 टिप्‍पणियां:

  1. अजय जी, आपने इस पोस्ट को लिखकर न जाने कितने लोगों को (जो इस पोस्ट को पढेंगे) एक nostalia में धकेल दिया है. लगभग हर बचपन (खासकर हमारी - आपकी पीढ़ी का) इस तरह की यादों से लबरेज है (मैं भी सेन्ट्रल स्कूल का ही प्रोडक्ट हूँ). वे सभी अक्सर दिल ही दिल में इसी तरह किसी स्वीटी को पुकारते रहते हैं.

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  2. भूलना चाहोगे तो भी नहीं भूल पाओगे. लेकिन अगर पत्नी ने पढ़ ली यह पोस्ट, तो कुछ याद भी नहीं रख पाओगे.

    आपका माहोल क्या है पता नहीं मगर अपने साथ क्या होता अगर ऐसे लिख देता और पत्नी पढ़ लेती तो...उस आभार पर कह रहा हूँ. :)

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  3. ajee shubh shubh bloiye udantashtaree jee , yahee to ganeemat hai ki ve kuchh nahin padhtee unke serialon mein kabhee main dakhal nahin detaa aur mere chitthon mein ve, aap kyon mujhe daraane mein lage hain. main bhee aap par jaasoos chhod doongaa.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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