रविवार, 29 जून 2008

हर बार इक नयी तस्वीर

मैं सोचता हूँ,
जब,
ये कैमरा,
वही रहता है,
तो फ़िर कैसे,
हर बार,
इक नया रंग,
नया रूप ,
और ,
नया नाम लिए,
तुम्हारी,
इक नयी,
तस्वीर निकलती है॥

औरत, कौन हो तुम , मैं सचमुच नहीं जान पाया....

मेरा अगला पन्ना : ब्लॉगजगत में महिलाओं की धाक ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेज़ान कैमरे से
    क्या उम्मीद करते हो मेरे दोस्त
    जब सारे ज़हान के आदमी
    खेत रहे
    इस सतत् परिवर्तनशील
    उष्मा को
    पकड़ने की कोशिश में

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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