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मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

ये उन दिनों की बात थी





#येउनदिनोंकीबातथी 

​वो वर्ष शायद 96 -97 के आसपास का रहा होगा।  मुझे ये तो याद नहीं कि अपनी किस प्रतियोगी परीक्षा को देने के दौरान मैं कोलकाता अपने चचेरे भैया चुन्नू भईया के यहां पर ठहरा हुआ था।  उन दिनों जैसा कि अक्सर सफर में ​आते जाते रुकते चलते हो जाया करता था हम टूथ ब्रश ,शेविंग किट आदि भूल जाया करते थे और फिर हर नई जगह पर पहुँच कर उन्हें खरीद कर फिर वहीं भूल कर आगे निकल जाते थे।  

अब तो लगातार सफर करने के अनुभव ने जाने क्या क्या सिखा समझा दिया तो सफर के सामना में टॉर्च ,रस्सी ,दवाई के साथ साथ सब कुछ वाईन्ड अप करने के बाद सामानों को क्रॉस चैक करने की आदत बाय डिफ़ॉल्ट सी हो गयी है। 

तो उन दिनों कोलकता में परीक्षा देने के बाद कोलकाता से मेरी वापसी हो गयी। थोड़े दिनों बाद भाभी का फोन आया तो उन्होंने इस बीच वहां घटा बड़ा ही मजेदार वाकया सुनाया। हुआ ये की चुन्नू भईया के बड़े साले साहब किशुन जी भी उन्हीं दिनों किसी काम से कोलकाता गए हुए थे। उन्होंने एक दिन अचानक जल्दबाजी में या बिना देखे हुए भूलवश जब ब्रश करके बाहर निकले तो हमारे भाभी यानी अपनी बहन श्री से कहा ये भोला अपना जो टूथपेस्ट भूल गया था उसमे झाग तो बहुत बढ़िया आता है मगर स्वाद एकदम बकवास है इसका। भाभी ने जोरदार ठहाका लगा कर उन्हें कहा कि अपने ध्यान से नहीं देखा वो शेविंग पेस्ट था टूथ पेस्ट नहीं।  जब वो ये बात मुझे फोन पर बता रहीं थीं तो मैं ये दृश्य कल्पना करके ही पेट पकड़ कर हँसते हँसते लोट पोट हो गया था। 

ऐसे ही एक बार ,नौकरी लगने के कुछ दिनों बाद मेरा गाँव जाना हुआ ,वो शायद काली पूजा का समय था और गाँव में बहुत सारे मेहमान रिश्तेदार आदि भी हमेशा की तरह आए हुए थे।  मैं स्नान के लिए लिरिल साबुन का प्रयोग किया करता था जिसकी नीम्बू युक्त मादक गंध बहुत समय तक न सिर्फ देह को बल्कि चापाकल के आसपास के स्थान को भी गमकाए रखती थी।  मेरे एक काकाजी अक्सर नहाने के बाद पूछते थे भोला ये तेरा साबुन बहुत खुशबू मारता है। मैं मुस्कुरा कर रह जाता था। 


  एक दिन मेरे स्नान करने के तुरंत बाद वे स्नान करने उसी चापाकल पर आए।  थोड़ी देर बाद स्नान करके मुझे साबुन दानी पकड़ाते हुए कहा कि भोला आज तेरे साबुन से मैं भी नया लिया। खुशबू  तो अलग थी मगर झाग से पूरा बदन भर गया। स्नान का तो आनंद आ गया। 

अब हैरान होने की बारी मेरी थी क्यूंकि मुझे याद था कि स्नान वाला साबुन तो मैं अपने तौलिये और लोटे के साथ ही उठा लाया था अपने कमरे में। मैंने साबुन दानी खोल कर देखी। उसमें उन दिनों नया नया चला वो खुशबू और झाग से कपड़ों को भर देने वाला एरियल या रिन जैसा कोई नीला साबुन था।  अब मैं समझ गया था कि उसमें से झाग और खुशबू इतनी भरपूर क्यों आई।  मगर मैंने काका जी की चेहरे की ख़ुशी और मासूमियत के कारण बिना उन्हें कुछ कहे बस मुस्कुरा कर रह गया।  

आह वो दिन ,और उन दिनों के वो मासूम किस्से 

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

थोड़ा और जीना है ,मुझे





मैंने अपने निजी जीवन में इतने उतार चढ़ाव देखे हैं जो विरले लोगों की किस्मत में ही होते हैं , बेहद ख़राब से खराब समय और बहुत ही शानदार से भी कहीं अधिक शानदार दिन।  इसलिए मैं दोस्तों से बात करते समय अक्सर एक बात कहता हूँ की मेरी उम्र यदि 47 वर्ष की है तो मेरा अनुभव 94 वर्षों का है।  

इन सबने मुझे एक बात सिखा दी कि ,नकारात्मकता और निराशा से कहीं अच्छा है कि सकारात्मक रहने की भरसक कोशिश की जाए। आखिर हूँ तो इंसान ही और बहुत बार अपने इस प्रयास में थोड़ा सा असफल भी रहता हूँ मगर फिर अगले ही क्षण मेरी ज़िद मेरा जुनून दुबारा मुझे उसी तेवर ,उसी रफ़्तार में लाकर रख देती है और मेरा सफर निर्बाध निरन्तर चल पड़ता है।  यूँ भी ज़िंदगी में मुझे सफर से ज्यादा कुछ भी और पसंद नहीं शायद इसलिए भी उस वक्त मैं हर समय धरती ,ज़मीन ,पेड़ रास्तों के करीब होता हूँ। 

इस देशबन्दी के बहुत से अप्रत्यक्ष प्रभावों में से एक प्रभाव मुझ पर ये पड़ा की दशकों से संवाद और संपर्क से छूटे छोड़े गए मित्रों ,बंधू बांधवों को तलाश तलाश कर उनके संपर्क सूत्र निकाल कर वीडिओ कॉल और फोन वल्ल के माध्यम से उनसे बात की अपना समाचार दिया उनका हाल जाना।  दीदियाँ ,मासियां ,सहेलियाँ भी , मामा ,चाचा ,दोस्त , क्लास मेट ,बैच मेट ,बहुत पुराने साथी ब्लॉगर सबसे रोज़ाना बात करते करते ही घंटो कैसे बीत रहे हैं इसका मुझे अंदाज़ा ही नहीं होता।

बेहद भावुक इंसान हूँ सो आवाज़ में थरथराहट और आँखों से आँसू कब बेसाख्ता निकल जाते हैं मुझे पता ही नहीं चलता और मैं भी उन्हें नहीं रोकता बरसों के बाँध टूट रहे हैं तो उन्हें टूटने देता हूँ।  साथ ही सबसे वादा भी करता जा रहा हूँ कि इन सबसे उबरने के बाद यदि जीवन रहा तो निश्चित रूप से सबसे ,हाँ सभी से मुलाकात करूंगा।  किसी के गले लगना है ,किसी के गोद में सर रख कर खूब रोना है ,किसी के पाँव पर माथा रख कर सुकून महसूस करना है।  मेरे भीतर मौजूद हर रोम छिद्र में से जो स्नेह ,जो मुहब्बत जाने कबसे बँधी हुई है वो सब लुटा देनी है और खुद भी लुट जाना है।  आसपास में रह रहे और बहुत दूर दूर रह रहे सबसे एक बार हुलस कर ,उन्हें भींच कर सराबोर हो जाना है।  उदयपुर ,भिलाई ,पटना ,मधुबनी ,दरभंगा कोलकाता ,जोधपुर ,जयपुर , फरीदाबाद, जनकपुर  ,नोएडा सब जगह उड़ उड़ कर जाना है।  थोड़ा और जीना है  ..........


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