ओह कहते हैं न कि कुछ भी सोचा हुआ नहीं होता है तब तो बिल्कुल भी नहीं जब आप चाहें कि वैसा ही हो , अब देखिए न सोचा था फ़गुनाहट में कुछ ऐसी धूम मचाएंगे कि ब्लोगजगत में इंद्रधनुषी छटा बिखर जाएगी , जिनको वो भी न नज़र आई उन्हें भांग का लोटा गटका देंगे ..बांकी सब आपे आप हो जाएगा ...। मगर क्या खाक हो जाएगा .....अजी हमें शांति रास आए तब न ...हमें तो मुद्दे चाहिएं....मुद्दे भी ऐसे जिन्हें घसीट के हम पोस्टिया सकें , गरिया सकें , जुतिया सकें । बेशक लहज़ा और शैली कोई भी हो ...इस पर जोर कैसा और जोर हो भी क्यों आखिर ब्लोग्गिंग है ही इस चिडिया का नाम .....अभी पिछली पोस्ट में ही तो पूछा था कि ...भाई लोगों ...ये जो हम कर रहे हैं यदि ये ब्लोग्गिंग नहीं है तो फ़िर यार ब्लोग्गिंग है क्या ....अब नया ही एंगल पता चल रहा है । हर बात में कोई उलटा एंगल देखो ...बात बेबात आपत्ति दर्ज़ करो ...कभी विरोध में तो कभी समर्थन में पोस्ट लिखो ...क्या चकाचक ब्लोग्गिंग होती है ...होती क्या ...हो ही रही है । पिछले दिनों से कुछ शानदार शब्द और जुमले ..ब्लोग्गिंग में अपनी टीआरपी न सिर्फ़ बनाए हुए हैं बल्कि बराबर बढाए जा रहे हैं । अब अपने अजित वडनेरकर भाई तो जब लिखेंगे तब लिखेंगे इन शब्दों पर शोध करके ...हमने सोचा कि शोध करके न सही ....क्रोध करके तो इन पर लिख ही सकते हैं । और फ़िर कल से जम के फ़गुनियाएंगे ....।
ब्लोग्गिंग में यूं तो कहने को ढाई साल से जुते पडे हैं ...मगर कमबख्त ये गुटबाजी का इक्वेशन आज तक पल्ले नहीं पडा । वैसे भी इन इक्वेशन्स के मामले में हम बचपन से ही बहुत हुसियार रहे हैं ....जानते हैं कि कुछ पल्ले नहीं पडने वाला सो कोशिशियाते ही नहीं है ..काहे लें ऐसी टेंशन ?????जिसका ससुर कौनो आऊटपुट और इनपुट ही न हो । अब सुनते हैं कि कमाल की गुटबाजी है इस ब्लोग्गिंग में ....गजब के गुट हैं ...इतनी गुटगुट्टमगुट्ट तो ..गुटनिरपेक्ष देशों में भी नहीं देखी जाती । फ़िर शोध करके देखा .....नहीं नहीं क्रोध करके देखा तो कमाल के गुट मिले ....अरे हां मिल गए जी बिल्कुल ...क्या आपको विश्वास नहीं होता ।
आईये मैं दिखाता हूं ...
पहला गुट ..ऐसे कबूतरों का है जो बस प्रेम की भाषा जानते हैं , सबको गले लगाने को , सबको प्रोत्साहन देने को तैयार रहता है , मुएं नए ब्लोग्गर हों , पुराने ब्लोग्गर हों , कविता लिखने वाले हों , गीत लिखने वाले हों , गंभीर लिखने वाले हों , ये सभी की पोस्ट पढेंगे और टीपेंगे भी ....गजब का कमाल गुट है ये ...और इस गुट में जाने कौन कौन है शामिल । हम खुद भी ........
अब एक और गुट है , किसी का भी नाम ले के पोस्ट लिख मारी , किसी की पोस्ट का लिंक उठाया और दे दनादन निकाल ली भडास , धडाधड ...इस गुट को कोई मतलब नहीं है कि ब्लोग्गिंग कहां जा रही है ,,, क्यों जा रही है , इस गुट के लोग हमेशा ही हर पोस्ट को , और तो और उसमें आई टिप्पणियों को , ब्लोगगर्स आपस में भिडते हैं तो भी इन्हें दुर्भावना नज़र आती है ..ब्लोग्गर्स मिलते हैं आपसे में तब तो कयामत हो आती है देखिए न ..आप खुद ही ये कमाल के भाव निकल कर आए हैं ,ऐसे उदगार व्यक्त करने वाले भी हैं यहां , अभी अभी मिली सूचना के अनुसार बिना लाग लपेट जो कहा जाए वही सच हैंनामक सुंदर ब्लोग (http://mypoeticresponse.blogspot.com) में ये कहा गया है कि
,,
"" क्या किसी के घर मे कोई काम नहीं हैं की हर दो दिन तीन दिन बाद एक मीट की खबर आ रही हैं दिल्ली से । इस महगाई के ज़माने मे घर खर्च कैसे चलता हैं या सब के पास सरकारी नौकरी हैं । भगवान जाने इतनी सोशल नेटवर्किंग से क्या मिल जाने वाला हैं ??? ""
तो अब इन्हें कैसे समझाएं कि चाहे जमाना महंगाई का हो या सस्ताई का घर में यदि प्यार हो तो चल ही जाता है .....मगर घर होना चाहिए ..जिस घर समझा जाए ...खैर उनसे भी कोई गिला नहीं है ...सुना है कि शिशुपाल के सौ गुनाह तक कृष्ण रुके थे ...???
गुट तो और भी हैं कई , सिर्फ़ अपनी पोस्ट कर लिख कर निकल जाने वाले, पढ के चुपचाप निकल जाने वाले ,दूसरों को तो जम कर कोसने वाले मगर खुद पर पडने पर बिलबिलाने वाले , दूसरों की मौज लेने वाले मगर जब दूसरे लें तो जूता उठा कर तैयार रहने वाले ....
हमारे जैसे चिट्ठाचर्चा करने वाले फ़ालतू के गुटबाज लोग , और उन्हें समय समय पर ये बताने वाले गुटबाज कि आप चर्चाकार तो बस अपने गुट की ही चर्चा करते हो...
देखिए जी सूची बहुत लंबी है और विषय अभी दो बचे हैं , और सबसे बडी बात है कि इसके बाद इस विषय पर कुछ लिखने का मन नहीं है ..कम से कम होली तक तो नहीं ही ...सो आगे चलते हैं
अब बात करते हैं संगठन की .....तो बिल्कुल ठीक कहा है सबने ...अजी हम कोई गधे थोडी हैं जो समूह बनाने या संगठन बनाने की जरूरत है ...कहते हैं न कि शेर अकेला ही चलता है ...और इसमें क्या शक है कि ब्लोगजगत में हम सब शेर हैं ...जो सवाशेर बनने के लिए ही मरे मारे जा रहे हैं ...और ज़ाहिर है कि जब हम मिज़ाज़ से ही शेर हैं तो उसके लिए तो हमें ब्लोगजगत को भी जंगल बनाना ही पडेगा न । और फ़िर उस जंगल में ..अपनी अपनी मांद में बैठ के हम सब गुर्राएंगे ...लो कल्लो बात ..तो मांद से बाहर कैसे ....आखिर सभी शेर हैं न ...मिलते ही गधे न बन जाएंगे । चलिए अब इस बात को जरा दूसरे तेवर में कहूं । पिछली दोनों बार जब जब ब्लोग बैठक की बात हुई तो दोनों ही बार मैं तय कर चुका था कि जो करना है मुझ अकेले ने ही करना है , जो भी करूंगा जैसे करूंगा वो मैं खुद करूंगा । कारण बहुत से थे इसके ...और जाहिर है कि आप सब जानते हैं कि वो कौन से अपेक्षित कारण होंगे । पहले भी कह चुका हूं कि ये सिर्फ़ और मेरे मन की बात थी और जैसा मैंने चाहा वो किया , और जानते हैं कि ऐसा क्यों किया क्योंकि मैं किसी भी शर्त पर किसी को भी ये कहने का मौका नहीं देना चाहता था कि फ़लाना ने ऐसा या वैसा किस अधिकार से और क्यों किया ? किस मकसद से किया ?? क्यों भाई क्यों ...मैं अपना फ़ोन नं किसी की टिप्पणी में छोडता हूं इसलिए कि शायद यहां पोस्ट लिखने और टीपने की तथाकथित आभासी दुनिया से इतर उसके लिए वास्तव में कोई मदद कर सकूं ..तो उस फ़ोन नं का उपयोग कोई मुझे बरगलाने में तो कोई धमकाने में उपयोग करता है तो मैं उससे अपने तरीके निपटने में सक्षम हूं । मुझे इस बात के लिए किसी को सफ़ाई देने की कोई जरूरत नहीं है कि मेरा घरखर्च कैसे चलता है और उन पैसों को मैं आखिर किस कारण से मीट में लगा देता हूं ...क्यों जी आप कोई ठेकेदार हैं क्या मेरे घर परिवार के ...मेरी मर्ज़ी है मैं अपने घर पर रोज़ एक ब्लोग्गर मीट रख दूं ...?????और मैंने कब कहा कि मेरे द्वारा बुलाए गए किसी बैठक का कोई एजेंडा था ...जरूरी तो नहीं कि हर बार कोई न कोई एजेंडा झंडा हो ही । क्या यही बडी बात नहीं कि दोनों ही बार सबने आपस में मिल कर एक दूसरे से प्यार बांटा । आज जो लोग इन संगठनों के बनने पर प्रश्नचिन्ह खडा कर रहे हैं ..वे पहले इस ब्लोगजगत के लिए दिया गया अपना समय , अपना योगदान , का आकलन करें फ़िर किसी की नीयत पर उंगली उठाएं ।
मैं यहां पहले कुछ बातें बता दूं ..कि ब्लोग्गर्स को एकजुट करने के लिए ये कोई ऐसा प्रयास नहीं था जो कि पहली बार करने की कोशिश की गई थी । अभी भी ब्लोगजगत में लखनऊ ब्लोग्गर्स एसोसिएशन, साईंस ब्लोग्गर्स एसोसिएशन ..और जाने ऐसे ही कितने साझा मंच बने हुए हैं । हां अब आप सोच रहे हैं न ..तो फ़िर ये अभी से कैसे और क्यों मान लिया गया कि उस संगठन की बात शुरू करने वालों की मंशा किसी तरह की मठाधीशी करना था ...या फ़िर शायद किसी को ये डर लग गया था कि इस संगठन से रातोंरात करोडों रुपए इकट्ठा हो जाएंगे जिनका दुरूपयोग शायद ऐसी ही गुटबाज़ी वाली ब्लोग्गर्स मीट के लिए किया जा सकता है । हां भाई ...आखिर ब्लोग्गर्स बेवकूफ़ हैं न जो कि एक कहेगा कि पैसे दो सभी आंख मूंद कर दे देंगे । इसलिए बिल्कुल ठीक शंका जताई गई । ..अच्छा ये नहीं सोचा गया था तो फ़िर ये संगठन आखिर ऐसा क्या कर लेता जी जो आज के लगभग पच्चीस हज़ार हिंदी ब्लोग्गर्स प्रभावित हो जाते ????कैसी आशंका और किस पर ????? और किन्होंने की ...कितने ब्लोग पढते हैं आप ...कितने पर टिप्पणियां करते हैं जी ....कितने ब्लोग्गर्स के सुख दुख में शामिल होते हैं ...ओह माफ़ी माफ़ी ...भई ये तो आभासी दुनिया है न ..यहां पर तो सिर्फ़ लिख कर ..जी हां लिख कर ..और बस लिख कर इतिश्री करके ही अपनी चिंता , अपना क्रोध , अपनी समस्या, सब कुछ को रखना चाहिए ।
अब चलते चलते कुछ बात करते हैं घेटो की, मैं इत्ता बडा विद्वान तो कभी नहीं रहा सो जब समझाया गया और जैसा समझाया गया ..तब जाकर अपनी अल्पबुद्धि में ये बात आई कि घेटो का मतलब ..जी हां मतलब नहीं ....ये समझा कि ...ये अलग थलग होने की प्रक्रिया जैसा कुछ है । आयं ये तो यार बिल्कुल ही बात पल्ले नहीं पडी ....जिस शख्स की तरफ़ ईशारा किया जा रहा था अलग बस्ती ..बसाने का ..शायद कोई डोमेन शोमेन लेने के लिए जिम्मेदार ठहरा कर ...वो अलग बस्ती बसा रहा है अलगाव लाने का प्रयास हो रहा है । कमाल है एक ब्लोग्गर जो सभी की जन्मदिन , वैवाहिक वर्षगांठ , और ऐसे ही अवसरों को न सिर्फ़ सहेज़ता है बल्कि उन्हें बधाई देने का मौका देता और दिलवाता है , वही ब्लोग्गर किसी भी पहचान बिना पहचान वाले ब्लोग्गर को न सिर्फ़ ये बताता है कि उसकी फ़लानी पोस्ट में ये तकनीकी समस्या आ रही है ..बल्कि रात दिन की परवाह किए बगैर उसे दुरूस्त करता है , एक ब्लोग्गर जो सभी ब्लोग्गर्स की देश भर के समाचार पत्रों में छपी हुई पोस्टों को सजा कर सहेजता और प्रस्तुत करता है ...वो ......क्या कह रह थे ....आप घेटो ....कर रहा है ......अजी मेरी मानिए इसे घेटो नहीं ......इसे तो फ़ेंटो कहते हैं । अरे बचा है ब्लोग्गिंग का कोई रंग जिसे ये ब्लोग्गर न फ़ेंट रहा हो हिंदी ब्लोगजगत में ....। ओह शायद इसके लिए जरूर उन्हें भारत सरकार पैसे दे रही होगी न ....या शायद किसी ब्लोग्गर संगठन ने तगडी पेंशन तय कर रखी होगी ।
देखिए जी अब होली का समय नज़दीक है ..मैं नहीं चाहता कि इस पोस्ट का रंग ही इतना पक्का चढ जाए कि आगे के फ़गुनिया रंग फ़ीके लगें आपको ..तो यकीनन आप समझेंगे बात को । और हां संगठन, और गुट तो बिना कहे सुने भी बने हुए हैं जी .......बस तय तो आपको करना है कि आपको पसंद क्या है ,.,,,,हम तो ऐसे कबूतर हैं जो हर गुट में गुटरगूं ....कर जाते हैं ....। प्रेम की भाषा से ...समझिए न उसको ..चाहे गपशप करें ...कुछ भी कभी भी कहें ...........
हम तो ऐसे कबूतर हैं...जो प्रेम की ही भाषा समझते हैं.... जो हमसे उलझते हैं...तो भैया लात भी खाते हैं....
जवाब देंहटाएंजय लात...जय लाठी.... जय बल्लम...
जवाब देंहटाएंऔर हां संगठन, और गुट तो बिना कहे सुने भी बने हुए हैं जी .......बस तय तो आपको करना है कि आपको पसंद क्या है
जवाब देंहटाएंये संगठन नही अघोषित सिंडिकेट हैं जो सिर्फ़ घेटो के स्वार्थ के लिए ही एक दु्सरे की पीठ खुजा रहे हैं और यह समझ नही आ रहा है कि 36गढ के नाम पर ही इतना बवाल क्यों?
संगठन तैयार हो ब्लाग जगत के कल्याण के लिए हम आपके साथ हैं तन-मन-और धन से।
हैप्पी ब्लागिंग
संगठन तैयार हो ब्लाग जगत के कल्याण के लिए हम आपके साथ हैं तन-मन-और धन से।
जवाब देंहटाएंहैप्पी ब्लागिंग
कबूतर की लात ...
जवाब देंहटाएंलो कल्लो बात
कबूतर तो संदेश का
प्रेम का प्रतीक है
उसकी लात
इतनी करामात न करें
महफूज भाई
।
हम एक 37गढ़ बनाने का प्रयास कर रहे हैं 36गढ़ के साथ मिलकर एक दिल्लीगढ़। बाकी भी चाहें तो मिल सकते हैं। मुंबई वाले एक गढ़ ने, कोलकाता वाले गढ़ ने भी इच्छा जाहिर कर दी है तो हुए 39 गढ़। अब गढ़ ही रहे हैं तो बाकी भी बतला दें। तभी तो ऐसी गड़गड़ाहट होगी जो प्रेम की बारिश करेगी। सबके मन को बदलकर प्रेममय कर देगी। ब्लॉगिंग सार्थक तभी होगी जब आभासी से निकलकर सुख दुख में मिलने जुटने का वायस बनेगी पर इसे वायरस बनाने का प्रयास मत कीजिएगा। मन मिलायें और होली पर ऐसे मिलें कि आगे से किसी की कुचालें न चलें। मंसूबे हमें बांटने के जो लाएं वे भी आकर हमसे गले मिलें और परिवर्तित होकर बढ़ते चलें।
अजय भाई...लगता है कि आज आपके सब्र का बाँध टूट गया...खूब जली-कटी सुनाई आपने...और सच में सुनानी भी चाहिए थी...
जवाब देंहटाएंजो आपस में मिलना चाहते हैं उन्हें कोई रोक सकता है मिलने से?
जवाब देंहटाएंबिलकुल नहीं... गलत समय पर एक सही चिंतन ।
जवाब देंहटाएंआखिर अजय भईया आपने जड़ ही दिया , होली के पहले ये दिवाली जैसा धमाका बढ़िया रहा ।
जवाब देंहटाएंकुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम हैं कहना..बाकी लाइन जोड़ लीजिए भाई साहब हम तो आप सब के प्रेम के कायल है.....प्रणाम ..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुनिहऽ हो झा जी,
लँका में सोना.. हमरे भतार का क्या ?
नाभि में बसी जान.. उनकी पँडिताई का क्या ?
अजय भाई, जो हमेशा लडाई की बात करे, दुसरो की टांग खींचते रहे हो , वो आप की बात कहा समझ सकते है, ठीक है हम सफ़ेद कबूतर है जो प्यार ओर शांति की ही बात करते है, लेकिन आज यह कबुतर भी समय आने पर आंखे बन्द नही करते, बल्कि चोंच मार मार कर गंजा भी कर देते है, आप के गुस्से से सहमत है, ओर जायज भी है, आप बनाये संगठन हम आप के संग है.... मारिये गोली इन सब को जो सिर्फ़ नफ़रत ही जानते है, प्यर इन सब के नसीब मै नही, ओर अब होली की तेयार कर ले
जवाब देंहटाएंहैप्पी संगठन
वाकई में गलत समय पर सही चिंतन !
जवाब देंहटाएंयह समय है कबूतर की लात का, अविनाश जी को सही आविष्कार के लिए बधाई, कबूतर की एक लात ! ! अविनाश वाचस्पति ने अपने घर पर भी एक सम्मलेन किया था और कई कलाकारों को नहीं बुलाया , इनकी भी खैर नहीं !
खिर अजय भईया आपने जड़ ही दिया , होली के पहले ये दिवाली जैसा धमाका बढ़िया रहा ।
जवाब देंहटाएंजोर का धक्का धीरे से
जवाब देंहटाएं''भीड़ में एकला चलो !!''
जवाब देंहटाएंइसलिए ही हम मिथिलेश भाई गुपचुप दिल्ली से निकल लिए हम आप की दरियादिली से आतंकित थे .....
जवाब देंहटाएंबात निकली है तो दूर तलक जायेगी..
जवाब देंहटाएंझाजी,आपने गुटबाजी के लिए हमलोगों की उस दिन की तस्वीर को सिम्बॉलिक तस्वीर का इस्तेमाल किया। हमने तो कभी इस नीयत से खिंचवायी भी नहीं थी। अगर किसी को ऐसा लगता है तो प्लीज फोटोशॉप से मेरी फोटो एडिट कर दें।
जवाब देंहटाएंमहाराज,हम तो आपके प्रेम में पड़कर चले गए थे वहां। दूसरा कि इसके पहले बोलकर भी नहीं जा पाए थे तो ग्लानि हुई थी कि आपने हमें फोन किया और इंतजार किया। अब आज खुलकर बतावें,हमें इस ब्लॉगर मीट से कोई खास लेना-देना नहीं था। हम तो बस आपसे और खुशदीपजी से मिलने के लोभ में चले गए। हमें पता होता कि बाद में इस मुस्कराती तस्वीर का ऐसा हश्र होगा तो दोनों से पान दूकान पर ही बोल-बतियाकर निकल लेते। अब आगे से भावुक होकर लोगों से मिलने से बचेंगे भाई। गुटबाजी की जरुरत उन्हें होती है जिनके साथ आइडेंटी क्राइसिस है। मुझे कोई गर्व नहीं है कि हमें बहुत लोग जानते हैं लेकिन इतनी समझ जरुर है कि जो थोड़े लोग भी जानते हैं वो मेरे अपने नाम और काम से।
आपसे व्यक्तिगत किस्म का लगाव भारी पड़ गया लगता है हमें।.
"बात करते हैं घेटो की, मैं इत्ता बडा विद्वान तो कभी नहीं रहा सो जब समझाया गया और जैसा समझाया गया ..तब जाकर अपनी अल्पबुद्धि में ये बात आई कि घेटो का मतलब .."
जवाब देंहटाएंअजय जी, चलिये कम से कम आप को घेटो का मतलब समझ में तो आ गया। यहाँ तो अभी तक हमारी नींद और चैन हराम है इस शब्द का मतलब जानने के लिये।
क्या मित्रों को आपस में मिलने के लिए किसी की इज़ाज़त लेने की ज़रुरत है ?
जवाब देंहटाएंअभी तो होली मनाओ, फिर मिलते हैं , जल्दी ही।
@ प्रिय विनीत भाई ,
जवाब देंहटाएंसबसे पहली की बात ये कि जैसा कि मैं उस दिल्ली ब्लोग बैठक से पहले भी कहता रहा था कि ..ये सिर्फ़ राज भाटिया जी से मुलाकात का एक बहाना भर है और कुछ नहीं , न हो तो पिछली पोस्टें पढ लें । रही बात आपकी फ़ोटो ..फ़ोटोशौप से हटाने की , तो इतना तो मुझे आता नहीं है ..आता भी तो किस किस फ़ोटो से आपको हटाता , और हां एक बात स्पष्ट कर दूं कि ये फ़ोटो न तो संगठन के संदर्भ में लगाई गई थी , न ही गुटबाजी और न ही घेटो ....हां चूंकि दिल्ली ब्लोग बैठक का जिक्र हुआ था ..वो भी मेरे घर के खर्चे पर उंगली उठाते हुए ..बस इसलिए वो फ़ोटो लगा दी , आपने उस दिन पहुंच कर हमारा साथ दिया आभारी हूं । मगर उस दिन पहुंच कर व्यक्तिगत किस्म के लगाव के कारण .....आपके समय और छवि का जो नुकसान हो गया .......विशेषकर मुझ से स्नेह दिखाने का ....उसके लिए जरूर माफ़ी चाहूंगा .. हां रही बात आईडेन्टिटि की तो यकीनन ..मुझे लगता है कि यहां पर ब्लोग्गिंग करने वाले हर ब्लोग्गर की आईडेनटिटि ..सिर्फ़ ब्लोग्गर की तो नहीं ही है ..अपनी बात रखने के लिए आपका आभार
अजय कुमार झा
अजय भैया होली आ गई है,बस प्यार बांटते चलो।फ़िर गुटबाज़ी और संगठन का मतलब मैं समझा ही नहीं?मज़दूरों तक़ मे मतभेद होते हैं और इंटुक-एटक,सीटू-टीटू अलाना-फ़लाना,जंगल मे जानवर तक़ अलग-अलग झुण्ड मे रहते हैं तो यंहा भी अगर कुछ लोगों को मिलकर रहना है या संगठन बना कर रहना है तो पता नही आपत्ती किस बात की है?जिसे जो पसंद आये वो उसके साथ हो ले।भई हम छ्तीसगढिये ब्लागर तो मिले थे सिर्फ़ प्यार के लिये और मिलने-मिलाने का ये सिलसिला बंद होने वाला भी नही है।कोई नही तो संजीत,ललित,पाब्ला जी,अय्यर,अवधिया जी,राजकुमार(दोनो ग्वालानी और सोनी)शरद कोकास,शंकर चंद्राकर,अजय सक्सेना और तमाम वे भाई लोग भी जिनका नाम यंहा नही लिख पा रहा हूं आये दिन मिलते हैं,फ़ोन पर बतियाते रहते हैं,एक दूसरे से सुख-दुःख बांटते रहते है।अब इसे कोई गुटबाज़ी समझे या संगठन हम तो इसे ब्लागरों का परिवार मानते हैं बाकी जिसे जो समझना है समझे,उस पर हम तो क्या यूएनओ भी रोक नही लगा सकता।
जवाब देंहटाएंकुछ बात तो है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
झा साहब इतना भड़के हैं तो जरूर कोई अन्दर की बात होगी…। जाने भी दीजिये झा साहब… होली है…
जवाब देंहटाएंWHEN YOU COPY AND PASTE SOMETHING FROM SOMEONE ELSES BLOG WITHOUT GIVING A REFRENCE OR BACK LINK ITS COPY RIGHT VOILATION . AND YOU HAVE DONE IT
जवाब देंहटाएं@ RACHNA
जवाब देंहटाएंपर आपकी जानकारी के लिए विनम्र निवेदन है कि यह फोटो अपने ब्लॉग से ही ली गई है और अपनी वस्तु को खुद ही प्रयोग करने से कौन से कॉपीराइट कानून का उल्लंघन होता है, जानने की विनम्र उत्कंठा रहेगी।
@ अविनाश वाचस्पति जी...
जवाब देंहटाएंसही सवाल किया और जवाब दिया आपने...Leader always leads... n u r the leader of ours...
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www.lekhnee.blogspot.com
सच हमेशा कड़वा होता है।
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ।।
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कुछ खाने-खिलाने की भी तो बात हो जाए।
किसे मिला है 'संवाद' समूह का 'हास्य-व्यंग्य सम्मान?
ओह तो ये आपका ब्लोग था , मुझे तो ये उदगार अपने मेल बक्से में मिले थे ...और अब आपने उसमें कौपीराईट उल्लंघन वाला नोटिस भी चस्पा दिया है ..अच्छी बात है ..मगर आप शायद ये भूल रही हैं कि उक्त वाक्य कह के आपने जिस ओर ईशारा किया है ..वो भी किसी हद तक मानहानि के दायरे में आ जाता है ..और क्या आप सचमुच चाहती हैं कि मैं सबको बताऊं कि वहां क्या क्या लिखा जा रहा है ..और किनके बारे में लिखा जा रहा है ...और आपकी जर्रानवाज़ी का शुक्रिया जो आपने बता दिया कि..देखिए हमने पूरा श्रेय दे दिया है ...आगे भी देते रहेंगे ..बस होली तक प्रतीक्षा करिए ...हैप्पी होली जी
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
लो जी दे दिया पूरा क्रेडिट ..अब तो ठीक है न कौपीराईट और ..बुकलेफ़्ट सब दुरूस्त कर दिया गया है ....अब मैं अगली पोस्ट सिर्फ़ लिंक लगा के ही दूंगा ..अखिर लंका दहन के लिए तो ये करना ही पडेगा न ....हैप्पी होली जी हैप्पी होली ..
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
इसमें कोई दो मत नहीं की जब भी संगठन की बात होगी लोग..उसके विघठन के बारे में ही सोचेंगे...लेकिन बिना संगठन के ये चलेगा भी नहीं...सब अपनी डफली अपना राग बजाते रहेंगे...अनुशासन के लिए ये करना ही पड़ेगा...ये अलग बात है की हर संगठन की तरह उसमें राजनीति, घुसपैठी आएगी ही,,, तो बात इसकी करें ना की इन समयाओं का सामना कैसे किया जाएगा...लेकिन ये कहना की संगठन बने ही नहीं ...बचकाना ही है....मतलब की डूबने के डर से पानी में ही ना उतरें...
जवाब देंहटाएंहद्द है...संगठन के बिना कभी काम हुआ भी है...क्या...संगठन बहुत जल बनान चाहिए नहीं तो कल सरकार क्या फैसला लेगी...कोई नहीं जानता ...अगर बन जायेगी तो कम से कम अपना एक मंच होगा जिसमें हम अपनी आवाज़ उठा सकेंगे.....वर्ना...कुछ भी हो सकता है ....
इस बात कि तरफ कोई नहीं सोच रहा है....एक संगठन तैयार होना ही चाहिए....बेसह्क वो सहकारिता के तौर पर हो....हमारे अधिकारों और कर्तव्य का खाका भी निर्धारित करना होगा...जिस तरीके से ब्लॉग्गिंग का विकास हो रहा है आह नहीं तो कल कोई ना कोई मालिक बन ही बैठेगा...फिर बजाते रहिएगा ताली आप सब....जो इसके खिलाफ हैं वो सिर्फ़ आज देख रहे हैं...कल का कोई इल्म नहीं है उनको...उनको ये लग रहा है इसमें भी राजनीति आ जायेगी...तो हम बता दें राजनीति तो आएगी ही आएगी आप चाहे कि मत चाहें...वैसे भी अकेला चना कभी भाड़ नहीं फोड़ता..
क्या मुझे ये भी बताना होगा कि इस ब्लोग उपरोक्त ब्लोग को सिर्फ़ सिर्फ़ एक खास वजह के कारण बनाया गया है और उस पर सिर्फ़ दूसरे ब्लोग्गर्स के लिए अपमानजनक लिखा जाता है ...और खुद मुझे और विवेक सिंह को राक्षस तक घोषित किया जा चुका है ????
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
बेचारे कुछ लोग ऐसे हैं जो ना हिंदी लिख पाते हैं ना इन्गलिश लिख पाते है। अब देख लो COPYRIGHT VOILATION ANY CONTENT IF COPIED FROM HERE SHOULD BE USED WITH A BACK LINK TO THIS BLOG OR ELSE WILL BE TREATED AS COPYRIGHT VOILATION लिखने वाले वायोलेशन की स्पेलिंग तक ठीक नहीं लिख पार रहे हैं।तभी तो रोमन मे हिन्दी लिखते हुये बीच बीच मे इन्ग्लिश के शब्द डाल देते है कि कोई गल्ती पकड ना पाये
जवाब देंहटाएंऔर विनीत कुमार तो गंगा मे नहा कर आ गये होंगे अब।शुद्धिकरण पता नहीं कितनी बार करवा चुके होंगे।बचपन की कडवाहट गई नही लगता है।पता नही इनका नाम विनीत किस्सने रखा होगा।मिलने का इतना ही शौक रहता है तो कभी बिना मीट के किसी से मिल कर बतायें।इन्हे तो भीड चाहिये अपना भाषण झाडने के लिये।इन्की आईडेंडिटि ब्लॉग से बाहर कितनी है कोई बता दे
@ Akhil Kumar
जवाब देंहटाएंआपने एक कमेंट में दोहरा वार किया है, दोहरी मानसिकता का विनीत का नकाब उतार दिया है। रचना ने कौन सा अपने से लिखी है स्पेलिंग अंग्रेजी की, कहीं से कॉपी करके अपना बुखार उतार दिया है। जय संगठन, संग गठन की। अब तो ठन रही है, ठनने दो होली पर संगठन बनने दो।
लिखने वाले वायोलेशन की स्पेलिंग तक ठीक नहीं लिख पार रहे हैं।
जवाब देंहटाएंplease tell me the correct spelling and oblige
आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएं@ रचना
जवाब देंहटाएंcorrect spelling is
violation
so funny interaction Nah?
http://www.google.com/search?hl=&q=voilation&sourceid=navclient-ff&rlz=1B3GGGL_enIN313IN314&ie=UTF-8
जवाब देंहटाएं