जब से इस बेकार से शहर में आकर बस जाने टाईप की मजबूरी हो गई तभी से सारे त्यौहारों के मायने ही बदल गए हैं ,न मुई ये होली रंगीन लगती है न ही दिवाली की चमक बरकरार है । कहने को तो सब कुछ हो ही रहा होगा मगर हम का करें कि ई ससुर दिल जो बिहारी रह गया है ।ऊपरसेतोदिल्लीकाजितनाटीमटामहैऊसबफ़ौलोकिए ..आउरतोआउर ..जौनकसरउसररहगयाथा ...ऊसबपूराहोगयाजबससुरालजलंधरहोगया।लोनअबबिहारीपंजाबीकंबीनेशनकाडेडलीकौंबोपैक .......सबत्यौहारएकदमसेडबलियागयाजैसेहमकोश्रीमतीजीभीडबलमिलीथीअपनासे। खैर ई फ़ेस्टिव पुराण तो बाद में डिस्कस करेंगे कभी आज तो होलियास्टक टाईप का कुछ लिखने का मूड है ।
ओह का बखत ता यार ! ऊ टाईम जिसको सब कुछ नोस्टेलियाना कहते हैं...कभी कभी तो करता है कि बस बहुत हुआ ....भगवानकोभीकहतेहैंकिबसजी ..अबहमकोतोयहींपरपौजकरके ..बैकवर्डमोडमेंलगादियाजाए ...हमारामनअबफ़ौरवर्डजानेकोनहींमानताहै।पतानहींकिइसबीमारीकोकहतेकाहैं ..मगरलक्षणकुछइसतरहकेहैंकिहमेशामनकेकोनेसेएकहीआवाज़आतीहै ...किओईसेतोआलइसवैल ...लेकिनजोटाईमबीतगया ..वोइजनौटओनलीवैलबल्किबहुतेमानेमेंवाजभेरीभेरी .बेटर " औरचाहेआजडिशटीवीफ़िशटीवीसेएकहजारएकचैनलकामज़ाअनुपमहो ..मगरउससमयके .......... रुकावटकेलिएखेदकाक्रेजकोटक्करथोडीदेसकताहै।ओह .........ईबिहारीसबएतनासेंटीकाहेरह्ताहैपतानहीं ...छोडिए।
तो हम बता रहे थे कि दिल्ली में जब हम लोग बैचलर थे ...ओह ...मैं जानता हूं कि सभी कईयों ने दिल पर हाथ रख लिया होगा ...कि हाय हम भी कभी बैचलर थे ....और अभी के सभी बैचलर सोच रहे होंगे ..कि अबे तो क्या कुछ सालों बाद ..सभी यही कहते हैं....तोजबहमकुंवारेथेजोकसमसेहोलीदिवालीकेमजेतोतभीलेलिएथे ...यारयहीतोएकवोटाईमहोताहैजबआपकोगुलालकीलालीऔरफ़ुलझडियोंकीचमकठीकठीकदिखाईदेतीहै। ओह फ़िर उन दिनों ..छोडिये ...तो बस इस बार सोचा कि यार बहुत हो गया कम से कम फ़्लैशबैक में जा न सके तो क्या हुआ ..उन दिनों को एक बार रिमिक्स करके देखा तो जा ही सकता है । बस फ़िर क्या थी हमने फ़ौरन से पेशतर . मित्र लपटन जी को पेजर पर संदेश छोड दिया ..फ़ौरन पहुंचिए ...अबकि जोश जरा ज्यादा है ,. फ़िर से होलियाने का ईरादा है ।उन्होंनेभीजबसेसुनाहैकिअबअदालतभीउनबातोंकेतैयारहै ..कभीकिसीदोस्तकोकिसीभीबातकेलिएमनानहींकरते ..क्यापताउनकीतरहकिसीऔरदोस्तकोभीअदालतकाफ़ैसलासुहायाहो :)
लपटन जी सुनिए समय कम है और अबके फ़िर से पुराने दिनों की याद में जाने का फ़ैसला ले ही लिया है ...यदि फ़ैसले के अनुसार उसे पूरा न भी कर पाए तो कौन से मीडिया रिपोर्ट कर देगी कि जनता भी अपने सरकार की तरह हो गई है । आज तो हो ही जाए पक्का टाईप का कुछ फ़ाईनल सा । सुनिए पहले हम लोग होलिका दहन से शुरूआत करते हैं । लपटन जी अब तक आधे जोश में आ ही चुके थे इस बात को सुन के तो फ़ौरन से भी बडी सी फ़ुर्ती से खडे होकर बोले , बहुत बढिया झाजी ..आजतोमनखुशहोगया ..आपहमेशाअईसनअईसनआईडियालातेहैंबसहमाराभीमनआगलगानेकाहोजाताहै , मनकरताहैकिबसअब .......फ़ूंकहीडालोगेक्या ......।आयं ..यहांभीहमनेसोचायारसबजगहयेतोब्लोग्गिंगमेंभी ...रामरामराम ...हमनेमाथाझटकाऔरहोलीपरकंस्ट्रेटकरनेलगे।सुनिएलपटनबाबूसबसेपहलेतोसबकी /..लक्कड, खिडकीदरवाज़े , खटियावैगेरह ..मांगलीआओफ़टाफ़टसे ..हमतबतकअपनेबजकेबोर्डसूचनाटांगतेहैं।
लपटन जी से तो जईसी उम्मीद थी ओईसने रिपोर्ट ले कर आए और कहे कि ..झा जी ई दियासलाई हमको दीजीए और ई लक्कड वाला काम तो आपे करिए .....तब तक हमें बज पर वकील साहब श्री दिनेश राय द्विवेदी जी ने बता दिया था कि ..ई सब तो मांगे से नहीं मिलेगा ऊ तो आपको चोरी ही करना पडेगा जब तक चोरी का पूरा ब्लूप्रिंट तैयार होता ..तबतकलपटनजीदूसरीमनहूसखबरभीदेचुकेथे ..झाजीअबसबजगहपरएलुमुनियमकाखिडकीदरवाजाहै ..लक्कडकहींनहींहै ..।हमलोगअगलासलाहओकीलसाहबकाहीपरअमलकरनेकासोचनेलगेकिकुर्सीदराज ,मेजसबउठालियाजाए।मगरजल्दीहीपताचलाकि ..इससेअच्छातोएलुमुनियमकेखिडकीदरवाजापरहोलिकाकोजलादियाजाए।आखिरएतनापोल्युशनमेंहोलिकाएतनारेसिस्टेबलहोहीगईहोगीकिअबएलुमिनियमपरबैठकेजलजाएंगी।
खैर ..मगर जब इतने समय बाद फ़्लैशबैक को रीमिक्स कर रहे हैं ऊ भी एकदम से सुलो मोशन में तो ई सब कामर्शियल ब्रेक तो आना ही था , लपटन जी ने अगली खबर सुनाई ....झाजी तैयारी से क्या होगा ...मुईं होलिका तो निकल भागी है ...जाते जाते बोल गई कि कह देना झाजी से .....ईहरसाल ..तुमलोगहमेंऔररावणजीकोफ़ूंकदेतेहो ...जबकिअसलीलोगबचजातेहैंपूरेसालकीहोलीदिवालीखराबकरनेकेलिए।लोयेअबएकऔरमुसीबत ..पतालगायातोपताचलाकि ..होलिकाकोकिसीबढियासीनिर्मात्रीनेअपनेधारावाहिकनेऔफ़रदीहैकिबढियासारोलदेगी।वहांपहुंचेतोहोलिकाफ़ौरनमानगई ...कारणपतालगाकि ..यहांतोसारेरोलहीहोलिका , औरशूर्पनखाकेरोलजैसेथे।सोकहनेलगीचलो ....वैसेभीदियासलाईलेकरघूमनेवालेलोग ..बिनाआगलगाएकबमानतेहैं ।
अब अगली व्यवस्था भांग और मालपुए की करनी थी ।ओह वही नोस्टेलियाना हमारा ...गांव होता तो ...एक तरफ़ रंग की बाल्टी ...और दूसरी तरफ़ ठंडाई की बाल्टी ....जिसमें से चाहो और जहां से चाहो भर लो .....और जिस पर चाहे उडेल दो । सुबह सुबह से ही पहले बडकन लोग , और बिनाकिसीमहिलासशक्तिकरणकेआंदोलनकेसभीभौजाई , दादी , मातासबकोओहीठंडाईमेंसेबराबरकाहकमिलताथा , औरसबसेअंतमेंहमबचवालोगभी ...बसउसकेबादतो ...धूममचेधूम ....भोरदुपहरिया , दुपहरियासांझहो।लपटन जी भी अपना आईडिया दे बैठे ..बोले यार सोशल संदेश दिया जाए क्या ....सूखी होली हो जाए । हम भडक गए ..चुप रहिए लपटन जी एकदम चुप ....ई पानी बचाओ ,,वाला सोशल ,मैसेज जो आप ई मोटर गाडी वाला सब को देंगे न तो ठीक रहेगा ..जो अपने नहाने से लेकर कार की गंदगी तक को साफ़ करने के लिए जाने कितना पानी खराब करते हैं । ई सूखी होली का होती है लपटन जी , ई तो तय ही समझिए , अब बस भांग और मालपुआ पर सारा ध्यान दिया जाए ।
फ़िर हम और लपटन जी अपने खास सूत्र सब भिडा के किसी तरह बाबू मोशाय को मनाए किदेखिएबाबूमोशायआपईबारपानबीडीसिगरेटकादामबढाए ..हमकोकौनोटेंशननहींहै ..होभीकईसेहमकोकौनसाउडनतशतरीजीकीतरहविल्सकार्डलिखनाआताहैफ़गुआनजदीकहैतोआपभांगकारेटपरकोईध्यानमतदीजीएगा।देखिए इस खबर को हालांकि किसी ने भी कवर नहीं किया मगर सच यही है कि हमारे जैसे एक ब्लोग्गर और उनके मित्र के खास सिफ़ारिश के कारण ही भांग इस बार के बजट में भी सस्ता ही रहा ।हमने सोच कि जब दादा ,मान गए तो लगे हाथ मालपुए के लिए चीनी की बात भी करते ही चलें । दादा बोले भागो ...अबे हम सारे फ़ायदे क्या हम दादा और ,.,ममता दीदी से ही लोगे । चलो निकलो यहां से ....हैप्पी होली ।
हम और लपटन जी घर पहुंच चुके हैं और खूब होलिया भी रहे हैं । बाबूजीकेलिएहमनेवोसबकरनेकीसोचरखीथीजोमांउनकेलिएकरतीथीऔरकोशिशभीकरतेहैं .....सबतैयारहुआ ..औरबाबूजीखाभीरहेहैं , हमेंपताहैकिअभीमांकोऊपरगएज्यादावक्तनहींहुआहैतोजरूरबाबूजीकोबेटेकेहाथकामालपुआखातेदेख ..संतोषहोरहाहोगा .....बाबूजीसेपूछातोकहतेहैं ..बढियाबनलअईछबऊआ ( बढियाबनाहैंबेटे ) ....मगरमैंनेजबखायातोबसयहीलगा ....मांतेरेहाथकास्वादकहांसेलाऊं ?????देखिए भांग खा के अब इससे ज्यादा लिखेंगे तो आप कहेंगे कि आप सेंटी के बाद अब मेंटल हो रहे हैं । जाईयेप्यारबांटिए .....जितनाबांटिएगान ......घूमघामकरदुगुनेचौगुने ,नौगुने ,,,,जानेकैगुनेहोकरआपकेपासवापसआतेरहेंगे ...औरआपउन्हेंबांटतेरहना।
ओह कहते हैं न कि कुछ भी सोचा हुआ नहीं होता है तब तो बिल्कुल भी नहीं जब आप चाहें कि वैसा ही हो , अब देखिए न सोचा था फ़गुनाहट में कुछ ऐसी धूम मचाएंगे कि ब्लोगजगत में इंद्रधनुषी छटा बिखर जाएगी , जिनको वो भी न नज़र आई उन्हें भांग का लोटा गटका देंगे ..बांकी सब आपे आप हो जाएगा ...। मगर क्या खाक हो जाएगा .....अजी हमें शांति रास आए तब न ...हमें तो मुद्दे चाहिएं....मुद्दे भी ऐसे जिन्हें घसीट के हम पोस्टिया सकें , गरिया सकें , जुतिया सकें । बेशक लहज़ा और शैली कोई भी हो ...इस पर जोर कैसा और जोर हो भी क्यों आखिर ब्लोग्गिंग है ही इस चिडिया का नाम .....अभी पिछली पोस्ट में ही तो पूछा था कि ...भाई लोगों ...ये जो हम कर रहे हैं यदि ये ब्लोग्गिंग नहीं है तो फ़िर यार ब्लोग्गिंग है क्या ....अब नया ही एंगल पता चल रहा है । हर बात में कोई उलटा एंगल देखो ...बात बेबात आपत्ति दर्ज़ करो ...कभी विरोध में तो कभी समर्थन में पोस्ट लिखो ...क्या चकाचक ब्लोग्गिंग होती है ...होती क्या ...हो ही रही है । पिछले दिनों से कुछ शानदार शब्द और जुमले ..ब्लोग्गिंग में अपनी टीआरपी न सिर्फ़ बनाए हुए हैं बल्कि बराबर बढाए जा रहे हैं । अब अपने अजित वडनेरकर भाई तो जब लिखेंगे तब लिखेंगे इन शब्दों पर शोध करके ...हमने सोचा कि शोध करके न सही ....क्रोध करके तो इन पर लिख ही सकते हैं । और फ़िर कल से जम के फ़गुनियाएंगे ....।
ब्लोग्गिंग में यूं तो कहने को ढाई साल से जुते पडे हैं ...मगर कमबख्त ये गुटबाजी का इक्वेशन आज तक पल्ले नहीं पडा । वैसे भी इन इक्वेशन्स के मामले में हम बचपन से ही बहुत हुसियार रहे हैं ....जानते हैं कि कुछ पल्ले नहीं पडने वाला सो कोशिशियाते ही नहीं है ..काहे लें ऐसी टेंशन ?????जिसका ससुर कौनो आऊटपुट और इनपुट ही न हो । अब सुनते हैं कि कमाल की गुटबाजी है इस ब्लोग्गिंग में ....गजब के गुट हैं ...इतनी गुटगुट्टमगुट्ट तो ..गुटनिरपेक्ष देशों में भी नहीं देखी जाती । फ़िर शोध करके देखा .....नहीं नहीं क्रोध करके देखा तो कमाल के गुट मिले ....अरे हां मिल गए जी बिल्कुल ...क्या आपको विश्वास नहीं होता । आईये मैं दिखाता हूं ...
पहला गुट ..ऐसे कबूतरों का है जो बस प्रेम की भाषा जानते हैं , सबको गले लगाने को , सबको प्रोत्साहन देने को तैयार रहता है , मुएं नए ब्लोग्गर हों , पुराने ब्लोग्गर हों , कविता लिखने वाले हों , गीत लिखने वाले हों , गंभीर लिखने वाले हों , ये सभी की पोस्ट पढेंगे और टीपेंगे भी ....गजब का कमाल गुट है ये ...और इस गुट में जाने कौन कौन है शामिल । हम खुद भी ........
अब एक और गुट है , किसी का भी नाम ले के पोस्ट लिख मारी , किसी की पोस्ट का लिंक उठाया और दे दनादन निकाल ली भडास , धडाधड ...इस गुट को कोई मतलब नहीं है कि ब्लोग्गिंग कहां जा रही है ,,, क्यों जा रही है , इस गुट के लोग हमेशा ही हर पोस्ट को , और तो और उसमें आई टिप्पणियों को , ब्लोगगर्स आपस में भिडते हैं तो भी इन्हें दुर्भावना नज़र आती है ..ब्लोग्गर्स मिलते हैं आपसे में तब तो कयामत हो आती है देखिए न ..आप खुद ही ये कमाल के भाव निकल कर आए हैं ,ऐसे उदगार व्यक्त करने वाले भी हैं यहां , अभीअभीमिलीसूचनाकेअनुसारबिनालागलपेटजोकहाजाएवहीसचहैंनामकसुंदरब्लोग (http://mypoeticresponse.blogspot.com) मेंयेकहागयाहैकि ,,
"" क्या किसी के घर मे कोई काम नहीं हैं की हर दो दिन तीन दिन बाद एक मीट की खबर आ रही हैं दिल्ली से । इस महगाई के ज़माने मे घर खर्च कैसे चलता हैं या सब के पास सरकारी नौकरी हैं । भगवान जाने इतनी सोशल नेटवर्किंग से क्या मिल जाने वाला हैं ??? ""
तो अब इन्हें कैसे समझाएं कि चाहे जमाना महंगाई का हो या सस्ताई का घर में यदि प्यार हो तो चल ही जाता है .....मगर घर होना चाहिए ..जिस घर समझा जाए ...खैर उनसे भी कोई गिला नहीं है ...सुना है कि शिशुपाल के सौ गुनाह तक कृष्ण रुके थे ...???
गुट तो और भी हैं कई , सिर्फ़ अपनी पोस्ट कर लिख कर निकल जाने वाले, पढ के चुपचाप निकल जाने वाले ,दूसरों को तो जम कर कोसने वाले मगर खुद पर पडने पर बिलबिलाने वाले , दूसरों की मौज लेने वाले मगर जब दूसरे लें तो जूता उठा कर तैयार रहने वाले ....
हमारे जैसे चिट्ठाचर्चा करने वाले फ़ालतू के गुटबाज लोग , और उन्हें समय समय पर ये बताने वाले गुटबाज कि आप चर्चाकार तो बस अपने गुट की ही चर्चा करते हो...
देखिए जी सूची बहुत लंबी है और विषय अभी दो बचे हैं , और सबसे बडी बात है कि इसके बाद इस विषय पर कुछ लिखने का मन नहीं है ..कम से कम होली तक तो नहीं ही ...सो आगे चलते हैं
अब बात करते हैं संगठन की .....तो बिल्कुल ठीक कहा है सबने ...अजी हम कोई गधे थोडी हैं जो समूह बनाने या संगठन बनाने की जरूरत है ...कहते हैं न कि शेर अकेला ही चलता है ...और इसमें क्या शक है कि ब्लोगजगत में हम सब शेर हैं ...जो सवाशेर बनने के लिए ही मरे मारे जा रहे हैं ...और ज़ाहिर है कि जब हम मिज़ाज़ से ही शेर हैं तो उसके लिए तो हमें ब्लोगजगत को भी जंगल बनाना ही पडेगा न । और फ़िर उस जंगल में ..अपनी अपनी मांद में बैठ के हम सब गुर्राएंगे ...लो कल्लो बात ..तो मांद से बाहर कैसे ....आखिर सभी शेर हैं न ...मिलते ही गधे न बन जाएंगे । चलिए अब इस बात को जरा दूसरे तेवर में कहूं । पिछली दोनों बार जब जब ब्लोग बैठक की बात हुई तो दोनों ही बार मैं तय कर चुका था कि जो करना है मुझ अकेले ने ही करना है , जो भी करूंगा जैसे करूंगा वो मैं खुद करूंगा । कारण बहुत से थे इसके ...और जाहिर है कि आप सब जानते हैं कि वो कौन से अपेक्षित कारण होंगे । पहले भी कह चुका हूं कि ये सिर्फ़ और मेरे मन की बात थी और जैसा मैंने चाहा वो किया , और जानते हैं कि ऐसा क्यों किया क्योंकि मैं किसी भी शर्त पर किसी को भी ये कहने का मौका नहीं देना चाहता था कि फ़लाना ने ऐसा या वैसा किस अधिकार से और क्यों किया ? किस मकसद से किया ?? क्यों भाई क्यों ...मैं अपना फ़ोन नं किसी की टिप्पणी में छोडता हूं इसलिए कि शायद यहां पोस्ट लिखने और टीपने की तथाकथित आभासी दुनिया से इतर उसके लिए वास्तव में कोई मदद कर सकूं ..तो उस फ़ोन नं का उपयोग कोई मुझे बरगलाने में तो कोई धमकाने में उपयोग करता है तो मैं उससे अपने तरीके निपटने में सक्षम हूं । मुझे इस बात के लिए किसी को सफ़ाई देने की कोई जरूरत नहीं है कि मेरा घरखर्च कैसे चलता है और उन पैसों को मैं आखिर किस कारण से मीट में लगा देता हूं ...क्यों जी आप कोई ठेकेदार हैं क्या मेरे घर परिवार के ...मेरी मर्ज़ी है मैं अपने घर पर रोज़ एक ब्लोग्गर मीट रख दूं ...?????और मैंने कब कहा कि मेरे द्वारा बुलाए गए किसी बैठक का कोई एजेंडा था ...जरूरी तो नहीं कि हर बार कोई न कोई एजेंडा झंडा हो ही । क्या यही बडी बात नहीं कि दोनों ही बार सबने आपस में मिल कर एक दूसरे से प्यार बांटा । आज जो लोग इन संगठनों के बनने पर प्रश्नचिन्ह खडा कर रहे हैं ..वे पहले इस ब्लोगजगत के लिए दिया गया अपना समय , अपना योगदान , का आकलन करें फ़िर किसी की नीयत पर उंगली उठाएं ।
मैं यहां पहले कुछ बातें बता दूं ..कि ब्लोग्गर्स को एकजुट करने के लिए ये कोई ऐसा प्रयास नहीं था जो कि पहली बार करने की कोशिश की गई थी । अभी भी ब्लोगजगत में लखनऊ ब्लोग्गर्स एसोसिएशन, साईंस ब्लोग्गर्स एसोसिएशन ..और जाने ऐसे ही कितने साझा मंच बने हुए हैं । हां अब आप सोच रहे हैं न ..तो फ़िर ये अभी से कैसे और क्यों मान लिया गया कि उस संगठन की बात शुरू करने वालों की मंशा किसी तरह की मठाधीशी करना था ...या फ़िर शायद किसी को ये डर लग गया था कि इस संगठन से रातोंरात करोडों रुपए इकट्ठा हो जाएंगे जिनका दुरूपयोग शायद ऐसी ही गुटबाज़ी वाली ब्लोग्गर्स मीट के लिए किया जा सकता है । हां भाई ...आखिर ब्लोग्गर्स बेवकूफ़ हैं न जो कि एक कहेगा कि पैसे दो सभी आंख मूंद कर दे देंगे । इसलिए बिल्कुल ठीक शंका जताई गई । ..अच्छा ये नहीं सोचा गया था तो फ़िर ये संगठन आखिर ऐसा क्या कर लेता जी जो आज के लगभग पच्चीस हज़ार हिंदी ब्लोग्गर्स प्रभावित हो जाते ????कैसी आशंका और किस पर ????? और किन्होंने की ...कितने ब्लोग पढते हैं आप ...कितने पर टिप्पणियां करते हैं जी ....कितने ब्लोग्गर्स के सुख दुख में शामिल होते हैं ...ओह माफ़ी माफ़ी ...भई ये तो आभासी दुनिया है न ..यहां पर तो सिर्फ़ लिख कर ..जी हां लिख कर ..और बस लिख कर इतिश्री करके ही अपनी चिंता , अपना क्रोध , अपनी समस्या, सब कुछ को रखना चाहिए । अब चलते चलते कुछ बात करते हैं घेटो की, मैं इत्ता बडा विद्वान तो कभी नहीं रहा सो जब समझाया गया और जैसा समझाया गया ..तब जाकर अपनी अल्पबुद्धि में ये बात आई कि घेटो का मतलब ..जी हां मतलब नहीं ....ये समझा कि ...ये अलग थलग होने की प्रक्रिया जैसा कुछ है । आयं ये तो यार बिल्कुल ही बात पल्ले नहीं पडी ....जिस शख्स की तरफ़ ईशारा किया जा रहा था अलग बस्ती ..बसाने का ..शायद कोई डोमेन शोमेन लेने के लिए जिम्मेदार ठहरा कर ...वो अलग बस्ती बसा रहा है अलगाव लाने का प्रयास हो रहा है । कमाल है एक ब्लोग्गर जो सभी की जन्मदिन , वैवाहिक वर्षगांठ , और ऐसे ही अवसरों को न सिर्फ़ सहेज़ता है बल्कि उन्हें बधाई देने का मौका देता और दिलवाता है , वही ब्लोग्गर किसी भी पहचान बिना पहचान वाले ब्लोग्गर को न सिर्फ़ ये बताता है कि उसकी फ़लानी पोस्ट में ये तकनीकी समस्या आ रही है ..बल्कि रात दिन की परवाह किए बगैर उसे दुरूस्त करता है , एक ब्लोग्गर जो सभी ब्लोग्गर्स की देश भर के समाचार पत्रों में छपी हुई पोस्टों को सजा कर सहेजता और प्रस्तुत करता है ...वो ......क्या कह रह थे ....आप घेटो ....कर रहा है ......अजी मेरी मानिए इसे घेटो नहीं ......इसे तो फ़ेंटो कहते हैं । अरे बचा है ब्लोग्गिंग का कोई रंग जिसे ये ब्लोग्गर न फ़ेंट रहा हो हिंदी ब्लोगजगत में ....। ओह शायद इसके लिए जरूर उन्हें भारत सरकार पैसे दे रही होगी न ....या शायद किसी ब्लोग्गर संगठन ने तगडी पेंशन तय कर रखी होगी । देखिए जी अब होली का समय नज़दीक है ..मैं नहीं चाहता कि इस पोस्ट का रंग ही इतना पक्का चढ जाए कि आगे के फ़गुनिया रंग फ़ीके लगें आपको ..तो यकीनन आप समझेंगे बात को । और हां संगठन, और गुट तो बिना कहे सुने भी बने हुए हैं जी .......बस तय तो आपको करना है कि आपको पसंद क्या है ,.,,,,हम तो ऐसे कबूतर हैं जो हर गुट में गुटरगूं ....कर जाते हैं ....। प्रेम की भाषा से ...समझिए न उसको ..चाहे गपशप करें ...कुछ भी कभी भी कहें ...........