सोमवार, 4 जनवरी 2010
ग्राम प्रवास में मिली दो युवतियां और अगले ब्लोगर बैठक की सूचना (ग्राम प्रवास -अंतिम )
ग्राम प्रवास के पूरी रपट के आखिरी और इस भाग में यदि इस दौरान मिली दो नवयुवतियों , जिन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया , का जिक्र नहीं करूं तो ये ये यात्रा रपट अधूरी नहीं तो कम से कम इसका मह्त्व कम जरूर होजाएगा । बिहार जैसे सामाजिक, मानसिक और आर्थिक रूप से पिछडे राज्य में अभी भी आप बालिकाओं कीशिक्षा, उनके प्रति समाज का नजरिया, आदि जैसे विषयों पर बहुत कुछ परिवर्तन की उम्मीद नहीं रख सकते ।और मुझे भी नहीं थी , हालांकि उडते उडते खबरें मिल रही थी कि पूरे देश की तरह बालिकाएं हमारे यहां भी शिक्षाके प्रति ज्यादा गंभीर होती जा रही हैं ।
दिल्ली से मधुबनी जाने के लिए जब रेल में बैठा तो बिल्कुल सामने की बर्थ पर एक छरहरी सी युवती बैठी दिखी ।आखों पर चशमा लगाए एक अंग्रेजी उपन्यास हाथों में थामे, साथ में रखा हुई बिसलेरी की बोतल और नीचे रखे हुएदो एयर बैग अपने में व्यस्त । और दूसरे यात्रियों में शुरूआती नोकझोंक शुरू हो चुकी थी ( यहां एक दिलचस्प बातबताता चलूं, अक्सर अपने यहां की रेलों में बैठते ही चारों तरह सीटों के लिए आपाधापी , और नोक झोंक एकस्वाभाविक सी बात देखता आया हूं ........वो भी आरक्षित सीटों के लिए है न रोचक , बहुत से कारण हैं इसके भी ) ।और उसी के बीच कब एक बहस की शुरूआत हुई पता ही नहीं चला । कुल चार लोग थे हम , एक सर्वोच्च न्यायालयमें प्रैक्टिस करते अधिवक्ता , एक किसी प्राईवेट संस्थान में कार्यरत कर्मचारी ,एक मैं और एक वो युवती , नामपूजा मिश्रा , नोएडा के ऐमिटि कौलेज औफ़ इंजिनियरिंग में दूसरे वर्ष में पढती एक लडकी , जो अकेले ही दिल्ली सेमधुबनी अपने घर जा रही थी । पहले तो इसी जानकारी ने मुझे चौंका दिया । वाह आज जब कोई खुद अपनेपरिवार को दिल्ली से बिहार जाने की यात्रा को किसी बडे साहस से कम नहीं मानता , उस स्थिति में वो लडकीअकेले ही ये सफ़र तय कर रही थी तो चौंक उठना स्वाभाविक था । मगर जिस तरह से उसने पूरे सफ़र में न सिर्फ़हमारी बहुत सारी बहस में हिस्सा लिया बल्कि एक भारतीय युवती के रूप में, बिहार की एक युवती के रूप में औरन जाने किन किन रूपों में अपनी बात रखी वो न सिर्फ़ प्रभावित करने वाली थी बल्कि हम सभी लोगों कोगौरवान्वित करने वाली थी । जाते जाते उसने बताया कि वो भी ब्लोग्गिंग करती है मगर शायद अंग्रेजी में औरमुझ से ये वादा लियी कि अगले ब्लोग्गर बैठक में उसे एक पाठिका के रूप में जरूर आमंत्रित किया जाएगा । मैंनेभी हामी भर दी ।
गांव में निट्ठल्ले बैठे हुए बात ही बात में चाची जी ने जिक्र किया कि बौव्वा , एक लडकी है मैं चाहती हूं कि उससे आप जरूर मिलें , क्योंकि उसे आपकी सहायता और मार्गनिर्देशन की जरूरत है। मैंने और कुछ जानने की जिज्ञासा की तो उन्होंने कहा कि सारी बातें आपको उससे मिल के ही पता चलेंगी । नाम बताया अर्चना झा । गांव में ही दूसरे टोले की रहने वाली । उसीके साथ पढने वाले के बच्चे से पूछा तो उसने बताया कि वो शायद अभी अपनी परीक्षा देने सायकल से लगभग चौदह किलोमीटर दूर मधुबनी गई है । अब दूसरी बार चौंकने की बारी थी मेरी, और मैं समझ चुका था कि ये लडकी आम लडकियों से अलग है जरूर । शाम को उससे मिलने उसके घर पहुंचा । मां के साथ खडी अर्चना ने मेरे चरण स्पर्श करके प्रणाम किया और बिना कुछ कहे समझ गई , आप अजय भईया हैं न । मैंने कहा हां । इसके बाद जो उसने बताया उसे सुन के मुझे बेहद अफ़सोस हुआ और गुस्सा भी आया कि काश ये लडकी उस समय में सामने आई होती जब हम इसी जज्बे से काम कर रहे थे गांव में या फ़िर कि काश अभी हम गांव में ही रह रहे होते ।
उसने बताया कि पिछले दो साल वो हमारे गांव के प्राथमिक विद्यालय में , न जाने किस भावना के वशीभूत होकर बच्चों को पढाने का काम शुरू कर दिया । घर में उसके चार भाईयों के बाहर कमाने धमाने के कारण उसे पैसों की कोई दिक्कत नहीं थी । इसलिए वो बिना की लालच या किसी बात की परवाह किए वहां पढाने लगी । और पूरे दो साल तक बहुत सारी दिक्कतों के बावजूद वो पढाती रही । दिक्कतें ये कि उसे गांव के ही कुछ लडके आते जाते फ़ब्तियां कसने लगे । और गांव की परंपरा को भलीभांति ढोती संभ्रात महिलाएं न सिर्फ़ उसको बल्कि उसकी माता जी को भी ताना मारने लगी । हालांकि ऐसा नहीं है कि ग्रामीण इलाके में शिक्षिकाएं नहीं हैं , मगर चूंकि उसने समाज से अलग एक नई योजना और विचार पर काम करना शुरू किया था वो भी बिना किसी स्वार्थ । जब किसी भी तरह से दाल नहीं गली तो आखिरकार समाज ने ऐतिहासिक फ़ैसला लिया और मा साब को ही ये अधिकार दे दिया कि वो इस लडकी को विद्यालय से बाहर कर दें । मा साब भी मजबूर क्या करते । अर्चना ने पढाना छोड दिया । मैं सुन कर दुख और उत्तेजना से भर गया । मन किया सबको घर से खींच खींच कर पीटूं । मैंने उसे बहुत ही अलग अलग तरीके से इस बात के लिए राजी करना चाहा कि वो दोबारा से विद्यालय जाना शुरू करे मगर वो नहीं मानी । फ़िर मैंने उसे दूसरी बात कही मैंने उसे इस बात के लिए राजी किया कि वो अपने घर पर ही जिसे मन चाहे पढाए सिखाए, किताबों कापियों का सारा खर्च मैं वहन करूंगा । इतना ही नहीं मैंने अपनी उस योजना के लिए ( जिसमें मैंने फ़ैसला लिया था कि विद्यालय के एक बालक और बालिका को प्रति वर्ष एक हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जानी थी ) उन बच्चों को चुनने का अधिकार भी अर्चना को ही दे दिया । और इसके साथ ही उससे वादा लिया कि इन सबके साथ साथ वो अपने भविष्य के लिए भी कुछ सोचेगी करेगी , कैसे वो मैं बताऊंगा । जब मैं उससे मिल के लौटने लगा तो जाते जाते उसकी माता जी ने फ़ुसफ़ुसा के मुझ से कहा बेटा अगले साल इसका विवाह करना है , कोई उपयुक्त वर मिले तो बताना । और मैं सोच रहा था कि इतने बरसों के बाद तो एक अर्चना मिली थी .......जाने अगली अर्चना मिलने में और कितना समय लगे । अभी दो दिन पहले उसने बताया कि उसने वादानुसार काम शुरू कर दिया है ॥
तो ये दोनों थी वो लडकियां जिन्होंने मुझे बहुत ही प्रभावित किया । अब चूंकि यात्रा की रपट तो आपको पढवा हे चुका हूं तो जो वादा मैंने आपसे जाते समय किया था वो भी पूरा करने का समय आ गया है । जी हां , अगली ब्लोग बैठकी का आयोजन बहुत जल्दी ही होने जा रहा है । हालांकि अभी कुछ ठीक ठीक तय नहीं हो पाया है सिवाय इसके कि राज भाटिया जी के दिल्ली प्रवास को यादगार बनाने के लिए और इसी बहाने हमें आपस में एक दूसरे के साथ बतियाने का जो मौका मिला है उसका भरपूर फ़ायदा उठाया जाएगा । तो अभी फ़िलहाल तो ये एक तारीख तो आप नोट कर ही लीजिए , दिन रविवार , ७ फ़रवरी २०१० , ....समय और स्थान भी जल्द ही तय होते ही आप तक पहुंच जाएगा ॥ उम्मीद है कि नए साल की ये एक शुरूआत बहुत ही खूबसूरत होगी ..............तो आप सब तैयार हैं न ....इस ब्लोग बैठक के लिए .........अजी नहीं नहीं इस बार भी नो एजेंडा नो झंडा .........बस प्यार बांटना है अपना फ़ंडा ॥
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अनुकरणीय ..काश आप जैसे और लोग भी हों ......यह समाज जन्नत बन जाय !
जवाब देंहटाएंनो एजेंडा नो झंडा .........बस प्यार बांटना है अपना फ़ंडा ॥
जवाब देंहटाएंअजय जी की इस सूक्ति को ब्लॉगिंग का आदर्श वाक्य बना लिया जाये, मैं संस्तुति करता हूं और इसी राह पर चल रहा हूं। वैसे शायद हम लोग इससे पहले भी मिलें क्योंकि 11 जनवरी को कविता वाचक्नवी जी का दिल्ली में आगमन हो रहा है और हमारा मन तो अभी से प्रसन्न हो रहा है कि कविता जी से मुलाकात और हम जो कविता लिखते हैं उसमें और इनमें कितना सामंजस्य होगा।
और ब्लॉग बैठकी क्यों बैठक क्यों नहीं
जवाब देंहटाएंसिर्फ संवाद कायम करें
विवाद नहीं
संवाद की जरूरत है ब्लॉगिंग को
विवाद की नहीं।
जी अविनाश भाई आपकी सारी बातें सर माथे पर तभी तो मैंने कहा है कि कम से कम एक तारीख तो फ़िलहाल नोट कर ही ली जाए ...इसके अलावा दूसरी तो कभी भी , जब भी आप कहें तय कर लेंगे और हमने कौन सा टरेन पकडनी है , जल्द ही इससे पहले वाले की घोषणा कर देंगे , और बैठक हो या बैठकी , अपन तो तैयार हैं ही
जवाब देंहटाएंगांव की यात्रा समाप्त... अब शहर की यात्रा शुरू... ब्लाग लेखन, ब्लागर मीट यही कुछ चलता रहेगा और हां दोहाकार चर्चा भी:)
जवाब देंहटाएंअजय जी, बहुत सुंदर लगी आप की आज की पोस्ट, ओर आप का अर्चणा बिटिया से मिलना ओर उस के ख्याल, अगर सभी लोग आप ओर अर्चणा की तरह सोचे तो बिहार क्या पुरा भारत ही बदल जाये.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
अविनाश जी की बात से सहमत हूँ। अभी हिन्दी ब्लागीरी को संवाद की जरूत है।
जवाब देंहटाएंदोनों लड़कियों का उल्लेख कर आप ने बहुत अच्छा किया। आजकल लड़कियाँ लड़कों से मुकाबला ही नहीं कर रही हैं अपितु उन से आगे जा रही हैं।
प्रसाद जी कभी कभी पोस्ट के विषय में भी कुछ लिख दिया करें तो बच्चे का मार्गदर्शन हो जाएगा , अब क्या करें ब्लोग्गिंग में , प्रधान मंत्री बनना, या यमुना साफ़ करना, या कोपेनहेगन समझौता कर लेना, या कोई क्रिकेट मैच करवाने की फ़ैसिलिटी अभी शुरू नहीं हुई है , जैसे ही होगी , ये सब छोड के उन पर ध्यान दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह.. एक पूजा तो दूसरी अर्चना.. :D
जवाब देंहटाएंचलिये मजाक छोड़ कर कुछ बताते हैं.. मेरी बहन, जो कि मेरी सबसे अच्छी मित्र भी है(स्नेहा) वो तो ना जाने कब से दिल्ली-पटना और जयपुर-पटना अकेले ही एक किये चल रही है.. हां जब भी वो यात्रा करती है तो उसके बाद मुझसे डांट जरूर खाती है कि तुम रास्ते में बस अपने काम से काम रखो और अनजान लोगों से ज्यादा बात मत करो.. :)
वाकई प्रभावित करने लायक बालिकायें...होती है ऐसी मुलाकाते भी...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा...आगे ब्लॉग बैठकी के आयोजन के खबर का इन्तजार.
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
एक प्रेरक, प्रभावशाली आलेख।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक प्रसंग.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आज छोटी छोटी जगहों से निकलकर लड़कियाँ महानगरों में अपनी जगह बना रही हैं इसमें बिहार किसी से पीछे नहीं है बल्कि आगे ही है. जैसाकि आपने लिखा रूढ़िवादिता ही रोक लगाती है इनके विकास में .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंअजय जी ! आपकी उन २ युवतियों ने तो हमें भी प्रभावित कर लिया ..और आपकी ब्लॉग मीटिंग का फंदा भी जबरदस्त है वाकई होना सिर्फ यही चाहिए ...न विवाद न झंडा बस प्यार बाँटने का फंडा.
जवाब देंहटाएंआज की युवा पीढ़ी तो बदल रही है। बस कुछ रूढ़िवादी लोग इस बदलाव से डर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा बिहार की तरक्की के बारे में जानकार।
ब्लोगर बैठक के लिए शुभकामनायें।
अच्छी पहल है जी। उन दोनो लड़कियों को शाबासी देकर आपने भला काम किया। खुशहाल बालिका भविष्य देश का। ब्लॉगर मिलन भी बहुत अच्छा है। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआपके इस फंडे का झंडा सदा ऊंचा ही रहे |
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