छतरी कथा 🌂🌂🌂☂️☂️☂️
भैया जी उवाच
ओ हैलो
बारिश आ गई है , अपनी अपनी छतरियां निकाल लो
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लेकिन बारिश ही क्यों यहां तो धूप में भी छतरियां निकल जाती हैं
उसी खूबसूरती से जैसे म्यान से तलवार निकलती है ,
लीजिए आप कहेंगे ये क्या बात हुई कहां छतरी कहां तलवार ।
अजी हां फिर आप भी हमारी ही तरह मासूम हैं छतरी ☂️ और उसका पति वो बड़े वाला काला छाता , वही जिसे हमेशा लिए हुए सिर्फ दादाजी को ही दिखाया जाता था , पीछे से छड़ी की तरह गोल और आगे से एकदम नुकीला ,भोंक के मार देने जैसा घनघोर ।
और उसके अंदर होती थी कमानियों की पूरी कसावट बनावट , अक्सर वर्षा ऋतु से पहले बाकायदा याद करके छतरियों की मरम्मत करवाई जाती थी उन दिनों और आज जो जिप ठीक करने वाले घूमते हैं न गलियों में वैसे पहले छाते छतरियों की मरम्मत करने वाले चक्कर लगाया करते थे ।
और हां उस समय ये दिन घंटे वाली बारिश नहीं हुआ करती थी , सावन और भादो की झड़ी लगती थी , कपड़े तक नहीं सूखते थे कई कई दिनों तक ।
शुरू में या पहले हमने वही काले वाले बड़े छाते देखे थे पिताजी ,काका ,मामा सबके हाथ में बच्चों के बस का नहीं होता था उसे बारिश में संभालना ।
धीरे धीरे दुनिया में जैसे जैसे बारिश भी नफासत से आने लगी तब इस बड़े छाते ने घर बसाया और रंग बिरंगी छतरियां भी दुनिया में आईं और आते ही दुनिया में इंद्रधनुष के सारे रंग भर दिए
छाते भी इठला शरमा कर थोड़े हल्के और स्टाइलिश हुए फिर आए नन्हें मुन्नों के लिए उनके मिनी साइज की ख्वाब जैसी छतरियां ।
हमारे घर में इतनी सारी छतरियां हैं कि एक साथ चार पांच मेहमान मित्रों को जरूरत पड़ जाए और देना पड़ जाए तो भी हमारे लिए भी कहीं न कहीं से निकल आएगी
मां और बिटिया ,दोनों को ही छतरियां खूब पसंद हैं , धूप में भी चाहिए और बारिश में भी इसलिए सफर के दौरान भी ये सामान के साथ रहता है । दिल्ली की गर्मी में ये जरूरी भी रहता है ।
छतरियों छातों का उपयोग इंसानों द्वारा कबसे किया जा रहा है ये बात इतनी पुरानी है कि ठीक ठीक कोई साक्ष्य ही नहीं है , और ये दुनिया भर की सभ्यताओं में पत्ते और बांस की पत्तियों के बने छातों से लेकर हीरे जवाहरात जड़े छत्रों तक अलग अलग साज स्वरूप में उपस्थित रहे ।
कहते हैं दुनिया में पहली छतरी मेसोपोटामिया की सभ्यता के दौरान ताड़ के बड़े बड़े पत्तों से वहां की तेज धूप और बारिश के कारण ही बनाए और उपयोग किए गए , कहीं कहीं चीन में छतरियों के प्रथम बार उपयोग करने की बात भी सामने आती हो , जो भी हो ये खोज रोचक तो थी ही
हां इसे बनाने वाले ने इससे पहले कभी कुकुरमुत्ते (छतरी नुमा बनावट वाला जंगली मशरूम ) को देखा था या नहीं मगर इसे देख कर खुश तो जरूर हो गया होगा पक्का
सिनेमा , साहित्य , राजनीति जैसे सभी क्षेत्रों में भी छतरियों और इनसे जुड़ी मान्यताओं , कहानियों , किरदारों की भरमार है जैसे अंब्रेला गर्ल , और जाने क्या क्या
जापान में तो छातों और छतरियों का अपना एक इतिहास और संस्कृति रही है और उनके द्वारा छाते छतरियों का प्रयोग और उसके अनोखे तरीके तो किसी को भी विस्मित कर देते हैं
अपने यहां सूरजकुंड मेले में आकाश में लटकी हुई इन छतरियों के कारण पूरा आसमान ही ऐसा लग रहा था मानो ऊपर उलट पलट होकर कोई बारात चली जा रही हो और सारे बारातियों ने आसमान में पैर करके इधर धरती की तरफ अपनी छतरियां तान दी हैं , आइडिया खूबसूरत लगा ,,पहले भी और बाद में भी कई जगह छतरियों को यूं ही सजे टंगे देखा ,अच्छा लगा
आपका कैसा रिश्ता है अपनी छतरियों के साथ