गुरुवार, 31 जुलाई 2008

मन किया तो लिख डाला, मन करे तो पढ़ लेना

कई अलग अलग कारणों से पिछले कुछ दिनों से अपना ये पसंदीदा काम नहीं कर पाया था, और पिछले ही कुछ दिनों में कई सारी घटनाएं-दुर्घटनाएं एक साथ घटती चली गयी। जिन्हें जब मैंने बैठ कर एक साथ सोचा तो ये सारी बातें निकल कर सामने आयी :-

एक करोड़ का बैग :- संसद में अभी अभी हमारे माननीय सांसदों द्वारा एक करोड़ की नोटों की गद्दियाँ उछालने को बिल्कुल ग़लत दृष्टिकोण से देखा और दिखाया गया।

समाज और समाज सेवक के बीच पूर्ण पारदर्शिता का ये प्रत्यक्ष प्रमाण था।
इसी घटना से एक आम आदमी को पता चला की यदि सौ सौ की गद्दियों का एक करोड़ हो तो कुल वज़न उन्नीस किलो होता है, वरना एक आम आदमी तो गुल्लक में जमा सिक्कों के वज़न से ही ख़ुद को कृतार्थ कर लेता है।
इसी गटना से पहली बार आम लोगों को किसी भी संसद सत्र में, सस्पेंस, थ्रिल और कोमेडी का पूरा मज़ा मिला, वरना तो ये सत्र वैगेरा बिल्कुल बोरिंग ही होते थे।
घटना ने दिखा दिया , की दुनिया वालों, यदि तुम समझ रहे हो की इस देश में सिर्फ़ गरीबी, भुखमरी , अशिख्सा है, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, लोग कुपोषण और बीमारी से मर रहे हैं, तो आँखें पसार कर देख लो हमारे सेवक जन करोड़ों के गड्डी बना कर खुलेआम कैच कैच खेल रहे हैं।

बंगलुरु और गुजरात में बम विस्फोट :-

सब कुछ एक तय शुदा कार्यक्रम है भाई।
आतंकियों का काम, पहले जगह तलाशो, जहाँ खूब भीडभाड हो , भारत में ये कौन मुश्किल काम है, फ़िर मजे से बम लगाओ और फोड़ दो।
पुलिस का काम, फ़टाफ़ट जांच शुरू, ई मेल , फी मेल पकड़े, संदिग्धों की धड पकड़ की, और अपनी पीठ थोक ली।
सरकार और हमारे मंत्रियों का काम, पहुंचे , बम विस्फोट की निंदा की, मुआवजे की घोषणा की, और चलते बने।
आम आदमी का काम, बम फटा, मरे, घायल हुए तो टी वी अखबार में फोटो छपी, मंत्रियों ने सांत्वना दी, मुवाजे का लोलीपोप दिखाया, और फ़िर सब , सब कुछ भूल कर बैठ गए,
किसी अगले बम विस्फोट की प्रतीक्षा में..............................

सीना फुलाए जाओ, सर झुकाए आओ।

ये लीजिये, अभी हमारा ५७ सदस्यों वाला दल ओलम्पिक में भाग लेने निकला ही था की उनकी सफलता-विफलता की चिंता होने लगी। पदकों का हिसाब किताब चल रहा है, और हमारे मंत्री अधिकारी अपने विचार और बयान दे रहे हैं। भविष्य में ओलम्पिक का कितना सोना चांदी भारत में चमकेगा ये तो पता नहीं मगर फिलहाल के स्थिति में एक आम भारतीय समझ नहीं पा रहा है की हँसे या रोये। कोई नसीहत दे रहा है की किसी चमत्कार या पदक की कोई उम्मीद नहीं लगाना भैया, कोई कह रहा है की चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए कम से कम आठ पदक तो अपने हैं ही। सवा अरब की जनसंख्या में सिर्फ़ पचास पचपन खिलाड़ी , जीते तो आठ, नहीं तो हमेशा की तरह सीना फुलाए जाओ, सर झुकाए आओ की नीती सफल रहेगी। तो फ़िर यार, सिर्फ़ छप्पन लोग क्यों छप्पन हज़ार या छप्पन लाख क्यों नहीं, कम से कम ओलम्पिक के दौरान ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी भारतीय ही दिखाई देंगे।

इश्मीत का जाना:-

यार, कौन कहता है कि, भगवान् से अन्याय नहीं होता , एक उदाहरण तो सामने है ही।
कोई अपनी मेहनत और किस्मत से सिर्फ़ इतनी सी उम्र में इतनी ऊचाईयों तक पहुंचा और फ़िर अचानक ही मौत की गहराई में चला गया।
मेरे तरह बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्होंने इश्मीत सिंग को सिर्फ़ टी वी में ही देखा होगा, और शायद मेरी तरह ही कभी वोट भी नहीं किया हो, मगर दुःख , बेहद दुःख तो उसे भी मेरी तरह ही हुआ होगा।
एक नहीं भूल सकने वाली कहानी, एक फ़साना, इश्मीत का जाना, अफ़सोस , अफ़सोस, अफ़सोस।

आज इतना ही..........

मन किया तो लिख डाला, मन करे तो पढ़ लेना

कई अलग अलग कारणों से पिछले कुछ दिनों से अपना ये पसंदीदा काम नहीं कर पाया था, और पिछले ही कुछ दिनों में कई सारी घटनाएं-दुर्घटनाएं एक साथ घटती चली गयी। जिन्हें जब मैंने बैठ कर एक साथ सोचा तो ये सारी बातें निकल कर सामने आयी :-

एक करोड़ का बैग :- संसद में अभी अभी हमारे माननीय सांसदों द्वारा एक करोड़ की नोटों की गद्दियाँ उछालने को बिल्कुल ग़लत दृष्टिकोण से देखा और दिखाया गया।

समाज और समाज सेवक के बीच पूर्ण पारदर्शिता का ये प्रत्यक्ष प्रमाण था।
इसी घटना से एक आम आदमी को पता चला की यदि सौ सौ की गद्दियों का एक करोड़ हो तो कुल वज़न उन्नीस किलो होता है, वरना एक आम आदमी तो गुल्लक में जमा सिक्कों के वज़न से ही ख़ुद को कृतार्थ कर लेता है।
इसी गटना से पहली बार आम लोगों को किसी भी संसद सत्र में, सस्पेंस, थ्रिल और कोमेडी का पूरा मज़ा मिला, वरना तो ये सत्र वैगेरा बिल्कुल बोरिंग ही होते थे।
घटना ने दिखा दिया , की दुनिया वालों, यदि तुम समझ रहे हो की इस देश में सिर्फ़ गरीबी, भुखमरी , अशिख्सा है, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, लोग कुपोषण और बीमारी से मर रहे हैं, तो आँखें पसार कर देख लो हमारे सेवक जन करोड़ों के गड्डी बना कर खुलेआम कैच कैच खेल रहे हैं।

बंगलुरु और गुजरात में बम विस्फोट :-

सब कुछ एक तय शुदा कार्यक्रम है भाई।
आतंकियों का काम, पहले जगह तलाशो, जहाँ खूब भीडभाड हो , भारत में ये कौन मुश्किल काम है, फ़िर मजे से बम लगाओ और फोड़ दो।
पुलिस का काम, फ़टाफ़ट जांच शुरू, ई मेल , फी मेल पकड़े, संदिग्धों की धड पकड़ की, और अपनी पीठ थोक ली।
सरकार और हमारे मंत्रियों का काम, पहुंचे , बम विस्फोट की निंदा की, मुआवजे की घोषणा की, और चलते बने।
आम आदमी का काम, बम फटा, मरे, घायल हुए तो टी वी अखबार में फोटो छपी, मंत्रियों ने सांत्वना दी, मुवाजे का लोलीपोप दिखाया, और फ़िर सब , सब कुछ भूल कर बैठ गए,
किसी अगले बम विस्फोट की प्रतीक्षा में..............................

सीना फुलाए जाओ, सर झुकाए आओ।

ये लीजिये, अभी हमारा ५७ सदस्यों वाला दल ओलम्पिक में भाग लेने निकला ही था की उनकी सफलता-विफलता की चिंता होने लगी। पदकों का हिसाब किताब चल रहा है, और हमारे मंत्री अधिकारी अपने विचार और बयान दे रहे हैं। भविष्य में ओलम्पिक का कितना सोना चांदी भारत में चमकेगा ये तो पता नहीं मगर फिलहाल के स्थिति में एक आम भारतीय समझ नहीं पा रहा है की हँसे या रोये। कोई नसीहत दे रहा है की किसी चमत्कार या पदक की कोई उम्मीद नहीं लगाना भैया, कोई कह रहा है की चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए कम से कम आठ पदक तो अपने हैं ही। सवा अरब की जनसंख्या में सिर्फ़ पचास पचपन खिलाड़ी , जीते तो आठ, नहीं तो हमेशा की तरह सीना फुलाए जाओ, सर झुकाए आओ की नीती सफल रहेगी। तो फ़िर यार, सिर्फ़ छप्पन लोग क्यों छप्पन हज़ार या छप्पन लाख क्यों नहीं, कम से कम ओलम्पिक के दौरान ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी भारतीय ही दिखाई देंगे।

इश्मीत का जाना:-

यार, कौन कहता है कि, भगवान् से अन्याय नहीं होता , एक उदाहरण तो सामने है ही।
कोई अपनी मेहनत और किस्मत से सिर्फ़ इतनी सी उम्र में इतनी ऊचाईयों तक पहुंचा और फ़िर अचानक ही मौत की गहराई में चला गया।
मेरे तरह बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्होंने इश्मीत सिंग को सिर्फ़ टी वी में ही देखा होगा, और शायद मेरी तरह ही कभी वोट भी नहीं किया हो, मगर दुःख , बेहद दुःख तो उसे भी मेरी तरह ही हुआ होगा।
एक नहीं भूल सकने वाली कहानी, एक फ़साना, इश्मीत का जाना, अफ़सोस , अफ़सोस, अफ़सोस।

आज इतना ही..........

शनिवार, 12 जुलाई 2008

ब्लॉगजगत में महिलाओं की धाक


पिछले दिनों जब मैंने अपने एक पोस्ट में महिलाओं पर कुछ पंक्तियाँ लिखी थी तो जैसा मैंने सोचा था बहुत सी प्रतिक्रियां आयी थी और कई तो ऐसी थे की जिनको पढने के बाद मुझे लगा की यार ये सब तो मुझे औरतों का दुश्मन समझने लगे हैं। हालाँकि ऐसा नहीं है की उस बात को ठीक करने के लिए या किसी तरह की कोई सफाई देने के लिए मैं ये पोस्ट लिख रहा हूँ परन्तु इतना जरूर है की मैं चाहता था की बिल्कुल आराम से किसी दिन फुर्सत में ये पोस्ट लिखूंगा, क्योंकि यदि किसी का जिक्र छूट गया या कोई बात दिमाग में आने से रह गयी तो फ़िर बाद में अफ़सोस होगा , मगर पता नहीं किस भावना के वशीभूत होकर मैं ये लिखने बैठ गया हूँ।

ब्लॉगजगत पर जितने समय से मैं हूँ उसमें मैंने महसूस किया है की यहाँ महिलाओं के लेखन की , उनके ब्लोग्स की और शायद इससे बनी उनकी शक्शियत की एक अलग ही बात है , एक अलग ही प्रभाव है, जो किसी भी क्षेत्र से ज्यादा है, नहीं ऐसा नहीं है की ये एक अकेला ऐसा क्षेत्र है, या की मैं पुरुषों के लेखन या इस ब्लॉगजगत में प्रभाव और सक्रियता से कोई तुलना कर रहा हूँ । बस इतना समझ लीजिये की यहाँ महिलाओं को जबरदस्त स्थान और महत्त्व मिला हुआ है।

यदि मैं एक एक का नाम लिखवाऊं तो शायद अपनी आदत के अनुरूप किसी न किसी का नाम जरूर भोल जाउंगा फ़िर भी कोशिश करता हूँ , क्योंकि उनकी नाम की चर्चा के बगैर , ये चर्चा अधूरी सी हो जायेगी। उन नामो में , घुघूती बासूती, नीलिमा, प्रत्यक्षा, मीनाक्षी, रंजना, अनुराधा, लवली, स्वाति, सुजाता, पारुल, दीप्ति, रश्मि सुराना ,शानू, मुस्कान, महक, बेजी ,ममता ,और भी बहुत सी महिला ब्लोग्गेर्स जिन्हें में पढता या नहीं भी पढ़ पाता हूँ।

सबसे पहली बात तो ये की महिला ब्लोग्गेर्स (अधिकाँश महिला ब्लोग्गेर्स ) अपने ब्लॉग को उसी तरह सजाती और सवारती हैं जैसा वे अपने घर को , हमारे जैसे नहीं की बिना मुंह धोये पहुँच गए , जैसा अपना थोबडा वैसा ही ब्लॉग का भी दिखता है, मगर ऐसा नहीं है की इसमें सिर्फ़ महिलाओं को ही महारत हासिल है हमारे भाई लोग भी कमाल की मेहनत कर रहे हैं.मगर इतना तो मैं यकीनी तौर पर कह सकता हूँ की महिलाएं इस काम में ज्यादा ध्यान देती हैं । अब उनके लिखने के विषय पर जाएँ, इसमें कोई शक नहीं की हमारी महिला ब्लोग्गेर्स अपने क्षेत्र
और अपनी विशेषता के अनुरूप पूरी दक्षता और संजीदगी से यहाँ लिख रही हैं। चाहे वो पारुल जी का संगीत ज्ञान हो , या प्रत्यक्षा का साहित्य ज्ञान, चाहे वो बेजी की चिकित्सकीय स्पंदन हो या घुघूती जी का घुमक्कड़ साहित्य, या फ़िर शानू अनुराधा, रंजना की कवितायें हो या मिनाक्षी जी का अलग अलग अंदाज़ या फ़िर स्वाति की विशिस्थ शब्दावली, सब कुछ अपने आप में अनोखा है, और ममता जी के तो पता नहीं कितने टी वी चैनल हैं । हाँ मगर मुझे लगता है की यदि मैं औरतनामा, चोखेरबाली जैसे सामूहिक ब्लोगों की चर्चा नहीं भी करूँ तो भी सभी महिला का एक प्रिया विषय ख़ुद "औरत " ही है, उनका संघर्ष , उन पर होने वाले अत्याचार, उनका शोषण, उनमें आ रहे परिवर्तन, और अपनी आदत के अनुरूप वे पुरुषवादी मानसिकता वाले समाज को जरूर कटघरे में खडा करती है , जो शायद स्वाभाविक भी है। लेकिन कोई महिला ब्लॉगर या जो ब्लॉगर नहीं भी है कभी उन महिलाओं को अपने निशाने पर नहीं लेती जो ख़ुद ही औरतों की सबसे बड़ी दुश्मन बन जाती है।

एक और ख़ास बात लगती है महिलाओं की, वे बेहद भावुक पाठक और उतनी ही तत्पर टिप्प्न्नी करने वाली भी होती हैं, मगर सिर्फ़ उनके लिए जो उन्हें टिप्प्न्नी करते हैं, हा हां हां , मजाक कर रहा था , मगर यदि किसी ने महिलाओं के लिए कोई प्रतिकूल बात कह दी या जिसे हमारे बुजुर्गों ने बड़ी चालाकी से नाम दे दिया है कड़वा सच तो फ़िर तो बच्चू आपकी खैर नहीं , आपको ऐसी ऐसी , और ऐसे ऐसे लोगों से तिप्प्न्नियाँ मिलेंगी की फ़िर कभी आपको ये हसरत नहीं रहेगी की को आपको टिपियाता नहीं है।

चलिए आज इतना ही ज्यादा लिखा तो जरूर कोई न कोई मेरे कान पकड़ लेगा। चलते चलते सिर्फ़ इतना
की जिनका नाम भूलवश मैं यहाँ लेना भूल गया वो मुझे माफ़ कर दें , और अपने बोल्ग्गेर भाइयों से इतना केई बंडू नाराज़ ना होना की जो काम एक महिला को करना चाहिए था वो मैंने क्यों किया , आप लोगों के लिए भी जल्दी ही एक खुशखबरी दूंगा। वैसे अभी तो सिर्फ़ इतना ही की शायद अगली पोस्ट मेरा विभिन्न समाचार पत्रों में छापा हुआ आलेख होगा जो की पूरे ब्लॉगजगत पर लिखा गया है, प्रति आते ही यहाँ स्कैन करके लगाउंगा।

फिलहाल राम राम
आपका
अजय
9871205767

ब्लॉगजगत में महिलाओं की धाक


पिछले दिनों जब मैंने अपने एक पोस्ट में महिलाओं पर कुछ पंक्तियाँ लिखी थी तो जैसा मैंने सोचा था बहुत सी प्रतिक्रियां आयी थी और कई तो ऐसी थे की जिनको पढने के बाद मुझे लगा की यार ये सब तो मुझे औरतों का दुश्मन समझने लगे हैं। हालाँकि ऐसा नहीं है की उस बात को ठीक करने के लिए या किसी तरह की कोई सफाई देने के लिए मैं ये पोस्ट लिख रहा हूँ परन्तु इतना जरूर है की मैं चाहता था की बिल्कुल आराम से किसी दिन फुर्सत में ये पोस्ट लिखूंगा, क्योंकि यदि किसी का जिक्र छूट गया या कोई बात दिमाग में आने से रह गयी तो फ़िर बाद में अफ़सोस होगा , मगर पता नहीं किस भावना के वशीभूत होकर मैं ये लिखने बैठ गया हूँ।

ब्लॉगजगत पर जितने समय से मैं हूँ उसमें मैंने महसूस किया है की यहाँ महिलाओं के लेखन की , उनके ब्लोग्स की और शायद इससे बनी उनकी शक्शियत की एक अलग ही बात है , एक अलग ही प्रभाव है, जो किसी भी क्षेत्र से ज्यादा है, नहीं ऐसा नहीं है की ये एक अकेला ऐसा क्षेत्र है, या की मैं पुरुषों के लेखन या इस ब्लॉगजगत में प्रभाव और सक्रियता से कोई तुलना कर रहा हूँ । बस इतना समझ लीजिये की यहाँ महिलाओं को जबरदस्त स्थान और महत्त्व मिला हुआ है।

यदि मैं एक एक का नाम लिखवाऊं तो शायद अपनी आदत के अनुरूप किसी न किसी का नाम जरूर भोल जाउंगा फ़िर भी कोशिश करता हूँ , क्योंकि उनकी नाम की चर्चा के बगैर , ये चर्चा अधूरी सी हो जायेगी। उन नामो में , घुघूती बासूती, नीलिमा, प्रत्यक्षा, मीनाक्षी, रंजना, अनुराधा, लवली, स्वाति, सुजाता, पारुल, दीप्ति, रश्मि सुराना ,शानू, मुस्कान, महक, बेजी ,ममता ,और भी बहुत सी महिला ब्लोग्गेर्स जिन्हें में पढता या नहीं भी पढ़ पाता हूँ।

सबसे पहली बात तो ये की महिला ब्लोग्गेर्स (अधिकाँश महिला ब्लोग्गेर्स ) अपने ब्लॉग को उसी तरह सजाती और सवारती हैं जैसा वे अपने घर को , हमारे जैसे नहीं की बिना मुंह धोये पहुँच गए , जैसा अपना थोबडा वैसा ही ब्लॉग का भी दिखता है, मगर ऐसा नहीं है की इसमें सिर्फ़ महिलाओं को ही महारत हासिल है हमारे भाई लोग भी कमाल की मेहनत कर रहे हैं.मगर इतना तो मैं यकीनी तौर पर कह सकता हूँ की महिलाएं इस काम में ज्यादा ध्यान देती हैं । अब उनके लिखने के विषय पर जाएँ, इसमें कोई शक नहीं की हमारी महिला ब्लोग्गेर्स अपने क्षेत्र
और अपनी विशेषता के अनुरूप पूरी दक्षता और संजीदगी से यहाँ लिख रही हैं। चाहे वो पारुल जी का संगीत ज्ञान हो , या प्रत्यक्षा का साहित्य ज्ञान, चाहे वो बेजी की चिकित्सकीय स्पंदन हो या घुघूती जी का घुमक्कड़ साहित्य, या फ़िर शानू अनुराधा, रंजना की कवितायें हो या मिनाक्षी जी का अलग अलग अंदाज़ या फ़िर स्वाति की विशिस्थ शब्दावली, सब कुछ अपने आप में अनोखा है, और ममता जी के तो पता नहीं कितने टी वी चैनल हैं । हाँ मगर मुझे लगता है की यदि मैं औरतनामा, चोखेरबाली जैसे सामूहिक ब्लोगों की चर्चा नहीं भी करूँ तो भी सभी महिला का एक प्रिया विषय ख़ुद "औरत " ही है, उनका संघर्ष , उन पर होने वाले अत्याचार, उनका शोषण, उनमें आ रहे परिवर्तन, और अपनी आदत के अनुरूप वे पुरुषवादी मानसिकता वाले समाज को जरूर कटघरे में खडा करती है , जो शायद स्वाभाविक भी है। लेकिन कोई महिला ब्लॉगर या जो ब्लॉगर नहीं भी है कभी उन महिलाओं को अपने निशाने पर नहीं लेती जो ख़ुद ही औरतों की सबसे बड़ी दुश्मन बन जाती है।

एक और ख़ास बात लगती है महिलाओं की, वे बेहद भावुक पाठक और उतनी ही तत्पर टिप्प्न्नी करने वाली भी होती हैं, मगर सिर्फ़ उनके लिए जो उन्हें टिप्प्न्नी करते हैं, हा हां हां , मजाक कर रहा था , मगर यदि किसी ने महिलाओं के लिए कोई प्रतिकूल बात कह दी या जिसे हमारे बुजुर्गों ने बड़ी चालाकी से नाम दे दिया है कड़वा सच तो फ़िर तो बच्चू आपकी खैर नहीं , आपको ऐसी ऐसी , और ऐसे ऐसे लोगों से तिप्प्न्नियाँ मिलेंगी की फ़िर कभी आपको ये हसरत नहीं रहेगी की को आपको टिपियाता नहीं है।

चलिए आज इतना ही ज्यादा लिखा तो जरूर कोई न कोई मेरे कान पकड़ लेगा। चलते चलते सिर्फ़ इतना
की जिनका नाम भूलवश मैं यहाँ लेना भूल गया वो मुझे माफ़ कर दें , और अपने बोल्ग्गेर भाइयों से इतना केई बंडू नाराज़ ना होना की जो काम एक महिला को करना चाहिए था वो मैंने क्यों किया , आप लोगों के लिए भी जल्दी ही एक खुशखबरी दूंगा। वैसे अभी तो सिर्फ़ इतना ही की शायद अगली पोस्ट मेरा विभिन्न समाचार पत्रों में छापा हुआ आलेख होगा जो की पूरे ब्लॉगजगत पर लिखा गया है, प्रति आते ही यहाँ स्कैन करके लगाउंगा।

फिलहाल राम राम
आपका
अजय
9871205767

मंगलवार, 8 जुलाई 2008

भाई अब तो हम लोग रोज छप रहे हैं, अरे यहाँ नहीं समाचारपत्रों में...

ये तो मुझे पहले ही पता था कि, देर सवेर हमारी , हमारी यानि हम ब्लागरों की चर्चा बहुत जगह होने वाली है, और खूब जोरदार होने वाली है। मैंने अपनी कई पिछली पोस्टों में इस बात की चर्चा भी की थी कि कैसे इन दिनों बहुत से रेडियो प्रसारणों में हिन्दी ब्लॉगजगत और ब्लॉग्गिंग की चर्चा हो रही है। इसके अलावा बहुत से समाचार पत्रों में भी कभी गाहे बगाहे तो कभी नियमित रूप से, कभी कोई पत्रकार कोई स्तंभकार तो कभी कोई अपना ब्लॉगर बंधू ही लिख और छप रहा है। अब नाम कहाँ कहाँ गिनवाऊं, जनसत्ता में अपने अविनाश भाई , तो दैनिक भास्कर में भी एक स्तम्भ छापता है, नवभारत में भी रोज कोई न कोई ख़बर रहती ही है, इसके अलावा राजधानी से निकलने वाले अधिकांस दैनिकों में आजकल ब्लॉग्गिंग की खूब चर्चा हो रही है, वो भी हिन्दी छिट्ठाकारी की ।

इसी क्रम में इन सबसे आगे बढ़ते हुए दैनिक अमर उजाला में (दिल्ली संस्करण में) तो रोज ही , ब्लॉग कोना के नाम से सम्पादकीय पृष्ठ पर एक स्तम्भ शुरू कर दिया गया है, इसमें रोज दो चिट्ठकारों के चिट्ठे से लिए गए दो लेख छपे रहते हैं। अब तक रवीश कुमार, दिनेश राइ, पारुल, और न जाने कितनो के चिट्ठे अंश पढ़ चुका हूँ। मजा आ रहा है, और सोचता हूँ कि इसी तरह किसी न किसी दिन सबका नंबर आयेगा, और दूसरी बात ये कि सबको हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रति एक जिज्ञासा भी होगी।

तो ब्लॉगर मित्रों खूब लिखो और खूब छपो, हम हर जगह पढेंगे आप सबको.
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