हर पल,
इक नया ,
वक़्त ,
तलाशता हूँ मैं॥
जो मुझ संग,
हँसे रोये,
वो बुत,
तराश्ता हूँ मैं॥
मेरी फितरत ,
ही ऐसी है कि,
रोज़ नए दर्द,
संभालता हूँ मैं॥
परवरिश हुई है,
कुछ इस तरह से कि,
कभी जख्म मुझे, कभी,
जख्मों को पालता हूँ मैं॥
सुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,
एक गम आता है, तो,
जब भी देती है, ख़ुशी दस्तक,
आगे को टालता हूँ मैं॥
वो कहते हैं कि,
धधकती हैं मेरी आखें,
क्या करूं कि सीने में,
इक आग उबालता हूँ मैं॥
क्या करूं , ऐसा ही हूँ मैं....
शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
रोज़ नए दर्द, संभालता हूँ मैं
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वाह,आज तो कविता का मूड बन आया अजय भाई ।
जवाब देंहटाएंझा जी, आप जैसे भी हैं, अच्छे हैं।
ये बात दावे से कहता सकता हूँ मैं।
दर्द ही दर्द
जवाब देंहटाएंहर पल,
जवाब देंहटाएंइक नया ,
वक़्त ,
तलाशता हूँ मैं॥
जो मुझ संग,
हँसे रोये,
वो बुत,
तराश्ता हूँ मैं॥
मेरी फितरत ,
ही ऐसी है कि,
रोज़ नए दर्द,
संभालता हूँ मैं॥
Ek tarashi huee rachana!
एक अदम्य जिजीविषा का भाव कविता में इस भाव की अभिव्यक्ति हुई है।
जवाब देंहटाएंसुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,
जवाब देंहटाएंएक गम आता है, तो,
जब भी देती है, ख़ुशी दस्तक,
आगे को टालता हूँ मैं॥
जीवन एक चक्र है बिल्कुल सही बात कही आपने हमें अपनी खुशियों में इस कदर नही मशगूल हो जाना चाहिए की आने वाली किसी अनहोनी का समाना न कर पाएँ....सुंदर भाव...धन्यवाद अजय भैया ..
अरे भाई लगता है की मुझसे भी आप कविता करवा के ही छोड़ेंगे ...सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,
जवाब देंहटाएंएक गम आता है, तो,
जब भी देती है, ख़ुशी दस्तक,
आगे को टालता हूँ मैं॥
वाह वाह बहुत सुंदर लेकिन दर्द भरी रचना.
धन्यवाद
बहुत गहरे...शानदार!
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भाव लिये है ये रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,
जवाब देंहटाएंएक गम आता है, तो,
जब भी देती है, ख़ुशी दस्तक,
आगे को टालता हूँ मैं॥
वो कहते हैं कि,
धधकती हैं मेरी आखें,
क्या करूं कि सीने में,
इक आग उबालता हूँ मैं॥
वाह, क्या कहूँ ? बहुत ख़ूबसूरत !!
आग उबालने का बिम्ब अद्भुत है
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