शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

मैं ........एक चिट्ठाचर्चाकार के रूप में ! (झा जी अब नहीं कहिन )




कल अपनी दो लाईनों की पटरियां बिछाने के थोडी देर बाद ही कल्पतरू वाले विवेक भाई की पोस्ट आई , जिसमेंउन्होंने चिट्ठाचर्चाकारों द्वारा अपनी पोस्ट का जिक्र किए जाने पर अफ़सोस जताया था , और अपना दुख जतायाथा हालांकि मैं अकेला ही एक ऐसा ब्लोग्गर नहीं हूं जो दिन भर ब्लोगजगत में आई पोस्टों की चर्चा करता हूं , बल्कि सच कहूं तो जैसा कि मैंने कहा भी थी कि एक अर्थ में तो मैं चिट्ठाचर्चाकार हूं ही नहीं , बस अपनी दो पंक्तियोंजिन्हें कोई तुकबंदी कहता है , कोई दो लाईना , और मैं खुद ब्लोग पटरियां ) में उस पोस्ट का ट्रेलर दिखाते हुएउन्हें पूरी पिक्चर देखने के लिए प्रोत्साहित या कहूं कि उकसाने की (यदि किसी के उकसावे पर मैं कोई पोस्ट पढनेजाऊं तो मुझे उस उकसाने वाले पर गुस्सा नहीं आएगा , ऐसा मुझे लगता है ) कोशिश करता हूं और ये तो नहींजानता कि मैं कितना सफ़ल या असफ़ल होता हूं जितना समय इस विश्लेषण में लगाऊंगा ,उतने में तो जानेकितना पढ लिख जाऊंगा , और यही बेहतर भी लगता है मुझे मगर कल शाम की पोस्टों और उन पर आईप्रतिक्रियाओं ने मुझे ये सोचने पर मजबूर तो जरूर किया कि मैं खुद को एक चर्चाकार के रूप में अपना सब कुछआपके सामने रख सकूं

मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि जब ब्लोग्गिंग शुरू की थी तो ,चिट्ठाचर्चा नाम या उसके स्वभाव से परिचित भीनहीं था ।मगर ब्लोग्गिंग में नियमित होते ही इसका अंदाज और महत्व , सबसे बढ कर इसकी रोचकता और लोकप्रियता ने मुझे काफ़ी प्रभावित किया अब ये स्वाभाविक भी था , जब हम अपनी पोस्ट पर आई टिप्पणियोंको पढ के इतने खुश होते हैं , तो फ़िर जब अपनी पोस्ट की ही चर्चा हो तो कैसे नहीं खुशी मिलेगी और समय था कि चिट्ठाचर्चा ब्लोग में अपने ब्लोग की चर्चा होना बहुत ही प्रसन्नता का बायस होता था , और मैं भी इसकाअपवाद नहीं था चिट्ठाचर्चा के दूसरे स्तंभ ,अपने महेन्द्र मिश्रा भाई से परिचय हुआ , और सच कहूं तो तभी मुझे लगा कि कुछ नया और रोचक किया जा सकता है चर्चा के बहाने चिट्ठाचर्चा शुरू करने के पीछे तब एक और बडाकारण जो था वो था , ब्लोग पाठको को चर्चा का एक और विकल्प उपलब्ध कराना मगर मेरी मुश्किल ये थी किमैं तकनीकी रूप से इतना ही काबिल था कि मुझे लिंक तक लगाना नहीं आता था , सो सबसे पहले ब्लोग साथियोंसे मदद मांगी सभी ने सलाह के साथ साथ ,अविनाश वाचस्पति भाई ने फ़ोनिया के बिल्कुल लाईव क्रिकेटस्टाईल में मुझे लिंक बनाना सिखाया और फ़िर सिर्फ़ कुछ मिनटों में पहली चिट्ठी चर्चा दो लाईना तैयार हो गई

मुझे गुमान नहीं था कि अलग शैली और अंदाज के कारण या एक और विकल्प होने के कारण आप सबको ये पसंदआई बस जब आप सबको पसंद आई तो फ़िर मैं तो वैसे भी रवानी में था ही तो बस चल पडी रेल कुछ ही दिनोंकी नियमित/अनियमित चर्चा के बाद चिट्ठाचर्चा से जुडने का आदेश हुआ ।मगर मैंने हमेशा बंधनमुक्त रहने औरकोई भी जिम्मेदारी से बचने के प्रयास में सप्रेम और सादरपूर्वक इंकार किया इसके बाद समय असमय चर्चा चलती रही, हालांकि बीच बीच में मुझे ये प्रतिक्रिया भी मिली कि ,ये कोई अच्छी बात नहीं है और इससे बेहतर हैकि मैं कोई और रचनात्मक लेखन करूं अब मैं समझ नहीं पाया कि भले इन दो पंक्तियों को लिखने में शायद कोईरचनात्मकता होती हो मगर ये मेरे लिए बहुत ही आसान और स्वाभविक सा हो गया था जैसे कोई नहाते नहातेगुनगुनाता है मगर जब ऐसा एक से ज्यादा बार हुआ तो मैंने इसे रोकने की इच्छा जताई मगर सबके प्यार नेमुझे अपने निर्णय को बदलने पर विवश कर दिया

आज देखता हूं तो मुझे बहुत ही खुशी होती है कि जिस विकल्प की बात मैं कर रहा था , तो उसकी भरमार ही भरमार है आज चर्चा की कोई कमी नहीं है और ही चर्चाकारों की , मंच भी माशाअल्लाह बढते ही जा रहे हैं ,औरजैसा कि मैं शुरू से कहता जा रहा हूं कि यदि हमारा ब्लोग परिवार बडा हो रहा है तो ये जरूरी है कि ये विस्तार हरजगह और हर पहलू पर हो फ़िर चाहे चो चर्चा हो या संकलक और ये बहुत ही अच्छी बात है कि इस दिशा में कामहो रहा है और प्रतिफ़ल भी रहा है एक चिट्ठाचर्चाकार के रूप में मैं अपनी बात रख चुका हूं कई बार इससेपहले भी जब एकल्व्य जी ने ऐसा ही एक प्रश्न पक्षपात को मुद्दा बना कर कही थी और अब विवेक भाई ने भी कमोबेश अप्रत्यक्ष रूप से यही कहा है

तो अब जबकि कुछ समय तो हो ही गया है इन पटरियों पर गाडी दौडाते हुए ,और जब मुझे महेन्द्र भाई नेसमयचक्र पर चर्चा करने का आमंत्रण भेजा था तो यही सोच कर स्वीकार किया कि यहां पर इसी बहाने कुछ अलग प्रयोग कर सकूंगा
मगर फ़िलहाल की स्थितियों में अब लगता है , और मन कह रहा है मैं अपनी चर्चा को स्थाईविराम दूं इसलिए झा जी कहिन पर अब आपको हम जबरिया दो लाईनों पर नहीं दौडाएंगे जी और हां भगवानके लिए अब ये मत कहियेगा कि ,उसे जारी रखिए , बस इतना ही समझिए कि ब्लोग पोस्टों की चर्चा करने वालाभी तो आपके हमारे बीच का ही कोई ब्लोग्गर साथी है भाई , फ़िर उसकी निष्ठा, और उसकी नीयत पर शक क्यों।अरे भई हमारे पास भी और गम हैं चर्चाने के सिवा आप लोगों ने अब तक जितना प्रेम हमारी दो लाईना को दियावो अनमोल है हमारे लिए मेरी शुभकामना है अन्य सभी चिट्ठाचर्चाकारों और भविष्य में आने वाले सभी चर्चाकारों के लिए भी

सबसे बडी बात , चिट्ठाचर्चा में अपने ब्लोग का नाम आना, या उसकी चर्चा होना ,मुझे खुद कभी भी पोस्ट के बहुत नायाब, बेहतरीन , उम्दा या इन सबके उलट कभी भी नहीं लगा ।और हां पढता तो मैं रहूंगा ही चर्चा भी करूं तो क्या , और लिखते तो सब रहेंगे ही, चर्चा भी हुई तो क्या

34 टिप्‍पणियां:

  1. ऐ लो ठीकरा हमारे सिर फ़ोड़ दिया।

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  2. हा हा विवेक लगता तो ऐसा ही है लेकिन ऐसा होगा नही. अजय भाई ने जिक्र आपका भी किया है लेकिन ये बस सयोग रहा होगा. अजय जी को शुभकामना जो भी लिखे ऐसे ही दिल से लिखते रहे.

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  3. अरे अजय भाई

    हम आ गये हैं जुलुस निकालने

    अजय भाई आप चर्चा करो हम आपके साथ हैं

    जिंदाबाद जिंदाबाद, झाजी कहिन जिंदाबाद

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  4. भाई साहब आप दिल से खूब लिखे और हम दिल से पढ़ें ...भाई रोचकता तो है आपके लेखन में इसीलिए आग्रह करता हूँ ..... वैसे चर्चा का चिट्ठाचर्चा का दूसरे स्तंभ कह मझे शर्मिंदा न करें .... पटरियो पर खूब आपकी रचना दौड़े यही दिल से शुभकामना अभिव्यक्त कर सकता हूँ ....

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  5. चर्चा का चिट्ठाचर्चा का दूसरे स्तंभ कह मझे शर्मिंदा न करें ...

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  6. मै जब खामोश होता हुँ,
    लब पे तेरा नाम होता है।
    खिल्वतों मे गुनगुनाता हुँ,
    वो तेरा ही कलाम होता है।

    अजय भाई आज से हम भी
    इस चर्चा को विराम देते हैं
    खुश रहो ए ब्लाग ए चमन
    सबको यही पैगाम देते हैं

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  7. इतनी छोटी छोटी बातों पर आप नौजवान लोग इतने प्रतिक्रियावादी बनेंगे .. तो मुझे हिम्‍मत कहां से आएगी ??

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  8. बहुत ही अफ़्सोसजनक और दुर्भाग्यपुर्ण. कुछ भी कहना अच्छा नही लग रहा है.

    रामराम.

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  9. मै जब खामोश होता हुँ,
    लब पे तेरा नाम होता है।
    खिल्वतों मे गुनगुनाता हुँ,
    वो तेरा ही कलाम होता है।

    अजय भाई आज से हम भी
    इस चर्चा को विराम देते हैं
    खुश रहो ए ब्लाग ए चमन
    सबको यही पैगाम देते हैं

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  10. बताओ, तो अब उ दू लाईना पढ़ने कहाँ जायेंगे भाई...


    विवेक भाई..आप संघर्ष करो..अजय भाई..जिन्दाबाद!! :)

    अमां आप लिखिये..कहाँ ज्यादा सोच में पड़ गये जी!!

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  11. अरे इ का हुई गवा ...हम तो सोचे थे कि ये प्यारी सी पटरिया हमार घर तक भी आये रेहगी कभई न कभई .इ तो ठीक बात न है भैया ..विवेक जी आप संघर्ष करो हम आप के साथ हैं.

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  12. झा जी,
    आपको हम नहीं रोकेंगे....हालाँकि नुक्सान हुआ है हम सबका....लेकिन चिटठा-चर्चा महा thankless काम लगा है हमको....आप सब को खुश नहीं रख सकते इसमें...इसलिए आपका निर्णय सही है....

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  13. अरे!..इत्ता ज़्यादा काहे को सोचते हैं मित्र?... सभी को कभी भी खुश नहीं किया जा सकता है...
    कभी इसको...तो कभी उसको लोलिपोप चुसाते रहिए...
    अपनी दु लाइना की पटरी पे चिट्ठाचर्चा की रेल दौड़ाते रहिए

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  14. अजय जी,..ये चिट्ठाचर्चा करना काँटों के ताज पहनने जैसा ही है, इसमें कोई शक नहीं...पर जीवट वाले ही ये ताज पहनने की हिम्मत करते हैं...आपने बड़ी शान से पहनी इतने दिन...कोई बात नहीं थोडा ब्रेक ले लीजिये...फिर वक़्त मिले तब करिए.

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  15. ज़रा संगीता पुरी जी के प्रश्न पर गौर कीजिये.

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  16. अरे बाबा हमारा तो आज का टिकट था दो लाईन की पटरी पर दोडने वाली रेल गाडी का अब क्या करे?बेठे है हम पलेट फ़ार्म पर कभी तो आयेगी...

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  17. BHAI AJAY JI THODA TO MAN KO KACHOTTA HAI PAR AAP LAGE RAHIYE
    CHARAMET CHARAMETI..... KO KHYAL ME RAKHTE HUE. MAIDAN SE KYON APAN HATEN. KUCH N KUCHH TO NUKHTA CHEENI NIKALTE RAHTE HAI LOG. KOI FARAQ NAI PENDA JI. DON'T BECOME NERVOUS

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  18. अजय भईया मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है .................

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  19. अब जबकि आपकी दो लाइनों का अपना अलग महत्व एक स्थायित्व पाने को है,
    आप इससे मुकरने पर आमदा हो गये । मेरी समझ में इसे चलते रहना चाहिये ।

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  20. रणछोड़ दास न बनिये रंचो बने रहिए

    कौन है जो आपको धमका रहा है बताइये तो जरा

    जो डर गया वो मर गया

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  21. आपका निर्णय आपका है। वैसे भी कोई बंधुआ मज़दूर तो हैं नहीं आप और न ही नीयत में खोट है आपकी। जिस तरह आपकी चिट्ठा ट्रेन दो पटरियों पर बिना भेदभाव के सरपट भागती है उसे हमने देखा है।

    यदि व्यक्ति संवेदनशील हो तो कुछ बातें दिल पर सीधी लगती हैं। वैसा ही कुछ हुआ है, लगता है। हर कोई चिकना घड़ा तो हो नहीं सकता।

    चार कदम पीछे हटकर ही लम्बी छलांग लगाई जा सकती है, जिसकी तैयारी आप कर ही रहे हैं।

    मेरी शुभकामनाएँ

    ललित शर्मा जी आपके साथ हैं। एक से भले दो :-)

    बी एस पाबला

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  22. अभी न जाओ छोड़ कर,
    के दिल अभी भरा नहीं...

    अजय भाई, एक फिल्म आई थी नाम...संजय दत्त अंडरवर्ल्ड छो़ड़कर जाने की सोच रहे होते हैं...डॉन बना परेश रावल संजय दत्त को बहुमंजिली इमारत से नीचे की सड़क दिखाता है...कहता है...ये गाड़ियां एक तरफ
    ही क्यों जा रही है...कोई उलटी तरफ क्यों नहीं आ रही है...फिर परेश रावल कहता है...ये वनवे ट्रैफिक है...यहां आता तो इंसान अपनी मर्ज़ी से है लेकिन वापस जा नहीं सकता...आपका अंडरवर्ल्ड नहीं ब्लॉगवुड है...और यहां हम सब ब्लॉगर्स की पुकार में इतनी कशिश होगी कि आप की गाड़ी को इन दो लाइनों पर दौड़ते ही रहना होगा...आगे...आगे...बस आगे....

    जय हिंद...

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  23. इतना अधीर होने की क्या जरूरत थी। सुनिए सबकी करिए अपने मन की। ... और हाँ, आपका मन बड़ा सुन्दर है।

    जिसे ब्लॉगरी का कीड़ा एक बार काट चुका है वह इससे बहुत दूर नहीं जा सकता। फ्रिक्वेन्सी घट बढ़ सकती है, बस! हैप्पी ब्लॉगिंग।

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  24. अजय जी इस तरह निराश करके मत जाईये ,
    मुझे आपका इस तरह पटरियों से उतरना
    उतना बुरा नहीं लग रहा जितना कुछ उन लोगों की
    छाती का गर्व से फूलना जो यह कहकर झूम रहे होगें की लो
    एक और टपका ..!

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  25. ये सम्वेदनशीलता है. समझदारी नही. डटे रहिये.

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  26. aapki Qalam ko salaam Ajay bhaia... wapas aa gaya aur aapki copy 'Anubhootiyaan' Delhi me Dr. Manoj Garg ke paas rakh aaya hoon... aap shayad mere phone ke bare me bhool gaye... 09818603508 par sampark kar lijiyega..
    Jai Hind...

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  27. अरविन्द जी, निराश न होईए।

    दो लाईनों पर दौड़ रही यह ट्रेन, सुपर फास्ट बन दूसरे प्लेटफॉर्म पर शिफ़्ट हो रही है। ज़ल्द ही इसका नया टाईम टेबल घोषित होगा। इंतज़ार कीजिए :-)

    बी एस पाबला

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  28. priy mitron .... aap sab se nivedan hai ki ye buddhijeeviyon aur rachnaakaron ka manch hai ...kripaya ise vyaktigat aarop pratyarop se dushit na karen... rahi baat chittha charcha ki, to yadi swasth maansikta se ki gayi charcha upayogi hai parantu jahan gut baazi aur mathadheeshon ka prabhutw hua to ye manch dalaalon ke adde se zyada kuchh nahi rahega
    .. . shesh aap sab khud samajhdaar hai

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  29. AJAY JI HUM NIRAASH HAI MAIGAR AAP SE AASHA BADHI HAI
    AAP APNA NIRNAY BADLE GE
    SAADAR
    PARAVEEN PTHIK
    9971969084

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  30. मन जो कहे वही करे भाई जी.
    और आप जो भी फैसला लेंगे हम उसका स्वागत करेंगे.

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  31. आपके इस आलेख के बारे में
    तो मैं यही लिखूँगा कि
    ब्लागिंग का यही तो मजा है।
    चाहे जब लिखना शुरू कर दो और
    चाहे जब बन्द कर दो।
    परन्तु
    अजय कुमार झा जी
    आपकी याद तो हमारे दिलों में बनी ही रहेगी!

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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