बुधवार, 29 जनवरी 2014

"असहयोग द्वारा समर्थन" देने का गजब फ़ार्मूला





दिल्ली में रहते हुए अब ये सोचता हूं कि आखिर वो क्या वजह है कि "खबरों के संसार" के अधिकांश "देश" दिल्ली के गलियारों जैसे लगने लगते हैं ।और फ़िर इन दिनों तो यहां झाडू फ़िराई का कार्य प्रगति पर है । पॉलिटिकल स्ट्रैटजीज़ राजनीतिक मान्यताएं बगावत पर उतारू हैं , कहीं न कहीं लोग बाग खुद ही अब अपनी पूछों में आग लगाने को आतुर हो उठे हैं , उकताहट तो यकीनन ही हो गई है इस व्यवस्था से ।

दिलचस्प बात ये है कि आगामी लोकसभा चुनावों की अहमियत के दबाव के चलते कुल मिला कर कोई चीख चीख कर कुछ न कुछ कहना चाह रहा है । झुंझलाहट इतनी तीव्र है कि मुकाबले में दंगों के दर्द को उतारा जा रहा है जाने दीजीए साहेब वक्त से जुदा खुद अपनी नस्ल द्वारा सुनाई जाने वाली सबसे भयानक और पाश्विक सज़ा है जिस पर बीती हो वही जानता है ।

सबसे जुदा बात ये है कि इस शहर की राजनीतिक आबो हवा क्या बदली है मानिए जैसे सियासी ज़लज़ला सा चल रहा है देश में । जिस दिन से नई सोच नए विकल्प ने राजनीति में दखल दिया जाने कितने ही चक्रव्यूह लगातार रचे जा रहे हैं । हर कोई अपने मोर्चे खोल के बैठा है  ।

वे बडे पुख्ताई तरीके से बताते हैं कि कुछ नहीं जी सब हमारा चांस ससपिशियस करने केल इए मिल कर किया जा रहा है अगले दूसरे ही पल नई कैग जांच बिठा देने की घोषणा कर डालते हैं , फ़ंडा सिर्फ़ एक है "जो भी अपनी कमाई से ज्यादा की औकात में दिखे मिले , उसकी जांच तो बनती ही है बॉस। और बात इनती ज्यादा तीखी है कि पुलिस, प्रशासन , आयोग तक इन्हें बगावती अराजक आरोपी और दोषी साबित किए दे रहे हैं ,सभी ने जैसे "असहयोग द्वारा समर्थन" देने का गजब फ़ार्मूला ईज़ाद किया है ।


कोई करोडों बकाए का नोटिस थमा रहा है तो कोई तीस दिन के सरकार से पांच दस साल का रिपोर्ट कार्ड दिखा कर उसे मुर्गा बनाने पर उद्धत है । महामहिम का दफ़्तर चंद फ़ाइलें निपटान में इतनी देर किए रहा कि उसका फ़ायदा सीधे सीधे फ़ांसी पाए दुर्दांत अपराधियों को हुआ मगर महामहिम ने "अराजकता की चपत" आम आदमी के गाल पे जड दी ,वो भी मुस्कुराते हुए :) :) और इस रस्साकशी के बीच अच्छी बात ये है कि लोग अब अपने राजनीतिक विकल्प के प्रति ज्यादा संज़ीदा दिखाई दे रहे हैं । भारतीय राजनीति करवट ले रही है उम्मीद की जानी चाहिए कि उस करवट हसीन सपने सिर्फ़ पैदा नहीं होंगे वे , बढेंगे और बनेंगे भी ..................

सोमवार, 27 जनवरी 2014

आखिरी पोलिटिकल पोस्ट ..............


http://www.ispreview.co.uk/wp-content/gallery/article-illustrations/dynamic/computer_security_uk-nggid03451-ngg0dyn-275x300-00f0w010c010r110f110r010t010.jpg


मुझे लगता है कि फ़िलहाल जो और जैसा राजनीतिक माहौल बना है और दिल्ली जैसे शहर में रहने के बावजूद भी किसी तरह की राजनीतिक प्रतिक्रिया ज़ाहिर करने से पहले मन कुनैना सा होता हो तो फ़िर उससे बेहतर है कि सामाजिक मुद्दों पर ही फ़िलहाल ध्यान केंद्रित किया जाए क्योंकि , सरकार चाहे भारतीय जनता पार्टी की बने या किसी और की , आखिर मुद्दे तो उनके सामने भी हू बहू वही खडे हैं , सालों से मुंह बाए हुए , सो अब तय करता हूं कि फ़िलहाल इस राज़नीति जायके को मुंह में ही घुलने दिया जाए , क्यूं खामख्वा इतने शब्दों को अभी की राज़नीति के लिए ज़ाया किया जाए जो सिर्फ़ चंद महीनों बाद ही आउट डेटेड हो जाएंगी , बहुत कुछ घट बढ रहा है , बदल , उथल पुथल रहा है , क्यों नहीं उन्हें बनाया जाए अभी लेखनी का विषय , लेकिन चलते चलते चंद शब्द अपने हर खेमे के दोस्तों को कहना चाहूंगा ............


राजनीति , सियासत वालों के लिए बेशक प्रयोग का विषय रही है मगर आम लोगों के लिए ये एक विचारधारा को मानने सराहने जैसी रही है और  लोकतंत्र की सबसे बडी खूबियों में से एक होती है वैचारिक भिन्नता के बीच सामंजस्य । यूं तो एक दूसरे का परस्पर सम्मान करने की परिपाटी  अब एक भूली बिसरी परंपरा बन चुकी है आज की राजनीति पे बिल्कुल भी फ़िट नहीं बैठती और बैठे भी क्यूं , जब हम समाज में एक दूसरे के प्रति इतने असहिष्णु हो चुके हैं कि एक दूसरे की विचारधाराओं तक का सम्मान सिर्फ़ तभी तक करने लगे हैं जब तक उसमें असहमति का कोई वायरस न हो .............और क्या सचमुच ही हमें इस कदर आक्रामक हो जाने का हक सिर्फ़ इसलिए मिल जाना चाहिए कि फ़लां अपने जैसा नहीं सोच रहा या लिख रहा ।


जितनी भी मेरी राजनीति समझ है उसके हिसाब से अब आगे के लिए मुझे कुछ बातें बिल्कुल साफ़ साफ़ दिखाई दे रही है , आप की दिल्ली सरकार बहुत जल्द लुढकने वाली है , बस टोटल मिला के  प्रोग्राम ये बनाया जा रहा है कि लगे कि पोलिटिकल सुसाईड हाकिम लोगों ने खुद किया है , दूसरी बात कांग्रेस अब उस शरशैय्या पर पडी है कि उनके लिए पानी का इंतज़ाम भी उनके मुंह के करीब टोटी लगा कर ही करना बांकी है रह गया है , बची भारतीय जनता पार्टी , तो इस बात कि इस बार पूरे देश में ...नरेंद्र मोदी को जिस तरह राष्ट्र नायक के रूप में न सिर्फ़ देश बल्कि अब तो विश्व भी देख रहा है .....उसके बाद किसी शक शुबहे , चुनौती को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए मिशन 2014 की ओर अपना पूरा फ़ोकस रखना चाहिए । आजकल जितनी ज्यादा उर्ज़ा दिल्ली की राजनीति पार्टी जो सिर्फ़ तीस दिनों में , भारतीय राजनैतिक इतिहास की सबसे ज्यादा खटकने वाली पार्टी बन गई है , उसका पोस्टमार्टम करने में खर्च की जा रही है उसका ज्यादा अच्छा सदुपयोग , खुद को सबसे बेहतर विकल्प साबित करने और करके दिखाने के लिए किया जाना चाहिए ।


आपको देश चलाने के लिए जनता में एक गजब की कमिटमेंट दिख रही है , और कमाल की बात ये है कि अब ये खुलकर दिख रही है तो फ़िर ऐसे में लोग आपको सुनना चाहते हैं , बोलते कहते हुए देखना चाहते हैं , आपकी योजनाओं , आपका दृष्टिकोण , आपकी प्रक्रियाओं , आपके हुनर , आपकी जांबाजी की कायल होना चाहती है तो यकीनन ही आपको अपनी सारी उर्ज़ा सिर्फ़ और सिर्फ़ सकारात्मक बहसों/तथ्यों/कार्यों/विमर्शों/योजनाओं .....में ही व्यय करना चाहिए । चेहरा कोई भी हो , क्रांति का नायक कोई भी कहलाए , यकीन मानिए देश को उस पर फ़ख्र और सिर्फ़ फ़ख्र ही होगा ,लेकिन आप अपनी उन दूरगामी नीतियों को साझा तो करिए , ये देश की जनता है पिछले पैंसठ सालों में और कुछ समझी हो न हो कमबख्त इकोनोमिक्स और पॉलिटिक्स खूब अच्छे से समझती है ...........


तो अब मिला करूंगा आपसे , इसी जगह कुछ बेहद अहम सामाजिक मुद्दों के ऊपर अपनी नज़र डालते हुए

देश में बढते यौन अपराध : एक विश्लेषण ................जल्दी ही पढवाता हूं आपको

शनिवार, 25 जनवरी 2014

समर्थन या घमरथन


http://economictimes.indiatimes.com/thumb/msid-29301195,width-310,resizemode-4/eye-on-2014-elections-how-stock-market-views-congress-bjp-and-aap.jpg


आजकल शाम को टीवी पर आने वाली बहसों में सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति दिल्ली कांग्रेस की दिखती है जो चीख चित्कार मचा सिर्फ़ तीस चालीस दिन की बालिग सरकार को भ्रष्टाचारी साबित करने का प्रमाण दे रहे होते हैं और ये पूछने पर कि फ़िर समर्थन काहे टिकाए हुए हैं पलट काहे नहीं देते गोरमिंट को , कि बस चिचियाहट रिरियाहट में बदलने लगती है ............

वैसे समर्थन से याद आया कि केंद्र सरकार ने इसे और जोरदार समर्थन भाव से उस व्यक्ति का तबादला कर दिया जिसे मुख्यमंत्री जी ने उस जांच की कमान देने के लिए उपयुक्त समझा जिसके पहले ही निशाने पर राष्ट्रमंडल खेल घोटाला केस होता ...उसका तबादला कर दिया गया ............सुना है कि पांडिचेरी अब इत्ती दूर से जित्ती जांच करनी हो कर डालें .....और शाम को ही फ़िर बडी बहस में घेर लिया जाएगा टोपी वालों को कि काम नहीं करते हो जबकि काम तो काम तो काम साला "जुकाम" तक की रिपोर्टिंग का आम चल रहा है ..............

समर्थन की बात पर ये भी याद आया कि जिस तरह से सरकार की मैय्यत निकालने के लिए दोनों बड्डे अपने अपने दांव चल रहे हैं एक बांस काट रहा है तो दूसरी डोरी तैयार करने को तत्पर है ,हर कोई मटका उलटा करके फ़ोडने को उद्धत मगर ये आदमी मुआं इत्ता खपा मरा लुटा हुआ है कि उअके जी को कोई रोग लगता दिख नहीं रहा है । लोगबाग भीतर ही भीतर ये सोच कर हैरान हो रहे हैं कि हर बार विलेन की तरह पेश एक खिदमत दिल्ली पुलिस अचानक ही इतनी चहेती बन गई कि मानो बताया जताया जा रहा हो कि हमारे पीठ पर अक्सर पडती आपकी लाठियां हमें तहे दिल से स्वीकार हैं दारोगा जी .................

मुझे लगता है पिछले कुछ वर्षों में नशे के कारोबार को पूरी योजना के साथ स्थापित किया गया है कि अवाम जितना अधिक होश खोकर जिएगी उतना ही अधिक जोश सरकार के अफ़सरी तेवरों में आएगा । तेवर बहुत बडी जिम्मेदार कडी है इस व्यवस्था के दोहरेपन की । सरकार अपने मुलाज़िमों के साथ काम करती हुई खुद भी मुलाज़िम की तरह पेश आनी चाहिए और बपौती तो कतई नहीं बननी चाहिए ......................फ़िलहाल तो सबको इस समर्थननुमा घमरथन में ने उलझा सा रखा है .......................

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

जनतंत्र की नई परिपाटी







"आम आदमी सोया हुआ शेर है , उंगली मत करना , जाग गया तो चीर फ़ाड देगा "
आजकल यह फ़िल्मी डायलॉग अक्सर टीवी पर देखने सुनने को मिल रहा है ।इसी के साथ
मुझे बरसों पुराना कहा गया एक ऐसा ही फ़िल्मी संवाद और याद रहा है कि "शरीफ़ आदमी
यदि अपनी पर आ जाए तो उससे बडा बदमाश कोई दूसरा नहीं हो सकता । "पिछले कुछ वर्षों में देश के राजनीतिक हालातों की जमीन कुछ ऐसा बन गई कि उसके फ़लक पे अचानक ऐसा ही एक आम आदमी उग आया , जिद्दी , खुद को नुकसान ,प्रताडित करके ,भूखे प्यासे रहकर जूझने लडने टाईप का आम आदमी , बेचारा आदमी .......

इन दिनों राज़धानी दिल्ली के राजनीतिक हालात कुछ ऐसे ही हैं । आज़ादी से पहले अनशन,
आंदोलन , धरना , प्रदर्शन की लडाई लड कर ब्रिटिस शासन को देश से बेदखल करने के
बाद सामाजिक संघर्ष के इस स्वरूप को भूली अवाम को अचानक ही पिछले कुछ सालों में साठ
सालों से अधिक तक बदलाव और परिवर्तित हो जाने आस के लगातार टूटते जने की उकताहट ने
दोबारा याद दिला दिया । इस बार गांव गया तो देखा कि समाचार पत्र धरनों और अनशनों की खबर से भरे पडे थे , देश को धरना देना ,प्रदर्शन करना , आमरण अनशन करना उन लोगों के सिखाया है जिनके दम पर आज इंडिया का ये डांडिया खेला जा रहा है , क्यों लोग बार बार यूं खुद को भूखा रख कर , सर्दियों में फ़ुटपाथ पे सोकर , पुलिस की लाठियां खाकर ,सरकार की नींद हराम कर दे रही है जनता ............

व्यवस्था के लगातार बढते निकम्मेपन और राजनीतिक भ्रष्टाचार ने लोगों के क्रोध और झल्लाहट
को इस कदर बढा दिया कि लोगों ने अपना प्रतिरोध/अपनी शिकायत के लिए सीधे सडकों का रुख
कर लिया । व्यवस्था और राजनीति इन साठ वर्षों में जितनी भी बदली कमबख्त बेडा गर्क करने को ही बदली। हम बदलते रहे , आप बदलते रहे ,समाज बदलता रहा मगर व्यवस्था और राजनीति
को हमने यूं किनारे किए रखा कि देखिए न बदबो मारने तक की स्थिति में पहुंच गया और हम
कभी आंखों पर पट्टी बांध कर न्याय पाते रहे तो कभी सडांध मारती राजनीति के नाम पर ही नाक भौं सिकोडते रहे ।

और अंत में जिसने हिम्मत भी दिखाई , बिना किसी राजनीतिक माई बाप,
बिना किसी ब्रांड और बिना किसी बैनर के ताल ठोंक दी वो भी मांद में घुस घुस के और रही सही कसर सडक पर बैठ कर मुख्यमंत्री दफ़्तर चला दिया , अब इस तरह की परिपाटियां तो जनतंत्रका मतलब ही बदल कर रख देंगीं , तो बदलने दीजीए न , साठ साल की व्यवस्था को अब रिटायर हो ही जाना चाहिए .......


इस देश में प्रशासन की नींव ब्रिटिश सरकार ने रखी थी जो स्वाभाविक रूप से सामंतवादी और
अफ़सरशाही के शासन की तरह था , आज़ाद देश ने भी इसे ज्यों का त्यों अपनाते हुए अपनों
के बीच से ही जाकर बेगानों की तरह व्यवहार करने की प्रवृत्ति अपना ली । अब जबकि ,इन
तमाम अफ़सरशाहियों को सीधे सीधे लोगों द्वारा चुनौती दी जा रही है , ललकारा जा रहा है ,
आईना दिखाया जा रहा है तो फ़िर प्रजातंत्र की इन नई परिपाटियों को यदि किसी बगावत,
अराजकतावाद की तरह परोसा और दिखाया जा रहा है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए । लेकिन इतना तो अब स्पष्ट रूप से तय हो गया है कि आने वाले समय में देश को अभी बहुत से अरविंद केजरीवालोंपागल करार देने के लिए तैयार हो जाना चाहिए , सुना है अशोक खेमका को भी बहुत जल्दी हीभ्रष्टाचार के आरोप में नौकरी से बाहर किया जा सकता है ...........क्या कहा रे ,एसडीएम
ने शशि थरूर को दी क्लीन चिट ....अबे इतना फ़ास्ट रिज़ल्ट एंड डिसीज़न ...

बुधवार, 22 जनवरी 2014

आदमी खाने अघाने को तैयार ही नहीं है ;) ;) ;) ;)






एक महीने की निरी लुटी , पिटी , बिचारी सी आम आदमियों वाली सरकार ने गजब की हुरहुरी मचा दी है ,

गरियाए गए और लठियाए भी गए ,

कुल दर्जन भर मुकदमा ठोंक दिहिस है भाई लोग ऊ भी एकदम्मे कानूनी , बोलिए तो लीगली लीगली जी ,

बनने से पहले से बनने से बाद तक , खुद अपने ही निकल निकल के छील रहे हैं ,

पावर देखिए , दरोगा जी को सस्पेंड कराने के लिए , अरे सस्पेंड छोडिए तबादला कराने के लिए फ़ुटपाथ पर लोटना पडा ,जबकि इत्ता तो हमारे जमाने में चौधरी जी फ़ोन पर ही करा लिया करते थे और कोई  भी रे टे कर जा रहा है तो कोई सम्मन भेज के तलब कर रहा है ,
अगलों की दिक्कत ये है कि भाई लोगों ने बदलाव की बात को दिल से लगा लिया है ये सोच कर कुछ तो कर लो कि कल को बच्चे कहें कि सिर्फ़ लोकतंत्र का ट्वेंटी ट्वेंटी ही खेलते रहे या अपनी तरफ़ से भी कोई कोशिश की ....सो ठुकाई तो बनती है , पुलिस ने पूरा हाथ साफ़ किया ..हमारी पुलिस , सदैव हमारे पास , डंडा लिए ;) ;) ;) ;)

हालत देखिए :- येडा मिनिस्टर के नाम से चुना गए हैं कहीं तो ,शिंदे चचा जैसे कर्मठ गृह मंत्री तक उन्हें पागल मुख्यमंत्री कह रहे हैं , खोंख खोंख के दम फ़ूल जाता है मुदा आदमी खाने अघाने को तैयार ही नहीं है ;) ;) ;) ;)

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

मनाइए छब्बीस जनवरी और करिए जलसा परेड .........






आज सुबह सुबह जब फ़ेसबुक पर मैंने अपने राजनीतिक विचार और खासकर अपने मंतव्य को स्पष्ट किया तो शाम तक उस पर मित्रों की सूची में से ही कुछ मित्रों ने अपनी भडास निकालने के साथ साथ , जयचंद , राष्ट्रद्रोही के तमगों से नवाज़ने के बाद , और उखड कर हमें लात मार कर अपनी फ़्रैंड लिस्ट से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया । अब हमें धेले भर का बुरा नहीं लगता , ज्यादा से ज्यादा और क्या , इससे पहले तो एक भाई साहब ने सिर्फ़ नमो नमो ही लिखने के लिए मुझे नरेंद्र मोदी से पेमेंट पाने वाला कहते हुए दिल्ली में उनके अनुसार सबसे अच्छा विकल्प आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन नहीं देने के लिए खूब गरियाया था , उसी दिन गरिया के निकल गए आज होते तो हरिया गए होते । खैर , उस पोस्ट की प्रतिक्रिया स्वरूप इतना सारा लिख गया कि सोचा इसे भी ब्लॉग पर सहेज़ता चलूं , आगे जब बच्चे पढेंगे तो वे खुद अच्छा बुरा तय करेंगे , हमारे बारे में , इस समय के बारे में ............यही लिखा था



अब जरा खरी खरी
मुद्दा - पहले पुलिस कर्मियों का सस्पेंशन और बाद में तबादला । ओह इतनी बडी मांग । ऐसा तो आज तक इतिहास में कभी नहीं हुआ , सबने सुना ही पहली बार है कि कोई मुख्यमंत्री इस मांग के लिए पहले गृहमंत्री से मिले और फ़िर धरने पर बैठ जाए । उस पुलिस का तबादला जिसे विश्व की भ्रष्टतम पुलिस व्यवस्था में से एक के लिए गिना जाता है ।और किसके कहने पर , कांग्रेस का एक निगम पार्षद भी होता अजी वो छोडिए नेताओं के चमचों बेलचों तक के फ़ोन भर से क्या क्या होता है , हमें पता है और खूब पता है ।

कारण - पुलिस के अनुसार मंत्री ने बदतमीज़ी की और मंतरी के अनुसार पुलिस ने अपना काम नहीं किया । विदेशी महिला नागरिकों के साथ गलत व्यवहार हुआ अब तो मेडिकल रिपोर्ट भी यही कहती है और इस देश में ऐसी मेडिकल रिपोर्टों में आजतक कभी हेरफ़ेर नहीं हुई । फ़िर विदेशी महिलाओं के साथ हुए व्यवहार की जहां तक बात है तो आजतक कभी दिल्ली में खुलेआम "बिहारी" कह कर अपमानित करने वाला समाज , मुंबई में भैया कहकर पीट पीट कर भगाने वाला समाज आज इतना चिंतित , वाह समाज तो सचमुच बदल रहा है। और हां जिन्हें मादक पदार्थों की तस्करी और तस्करों का रिकार्ड देखना हो दिल्ली पुलिस से आरटीआई लगा कर जानने की कोशिश तो करें कि पिछले पांच वर्षों में दिल्ली में दर्ज़ इन अपराधों के आरोपियों में किन किन लोगों का नाम मिलता है ।

सही गलत - सडक पर नहीं बैठना चाहिए , दफ़्तर में बैठ कर सारी शासन व्यवस्था को संभालना बदलना चाहिए । बिल्कुल यही होना चाहिए क्योंकि साठ सालों से यही तो होता आया है और देखिए न शासन व्यवस्था कितनी चुस्त दुरूस्त है आखिर कोई मंत्री । सारा झमेला ही कमरों के बाहर निकल कर सडकों पर नीतियों और नियमों का बनना , उन्हें परखना और लागू करवाने के तरीके का है । संसद में बन रहे कानून , और वातानुकूलित कक्षों में बैठे इन्हें बनाने वाले कितने लोगों को खुद आज वे कानून याद हैं और उनमें से कितने ऐसे बचे हैं जो इन कानूनों के साथ खेले और उन्हें तोडा नहीं , वो खुद सोचिए समझिए ।

मीडिया - मीडिया हा हा हा हा , अभी एक समाचार चैनल दिखा रहा है कि एक थाली में बैठे चार लोग खिचडी खा रहे हैं और कुछ लोग चाय पी रहे हैं और इस कारण ये धरने पर बैठे मुख्यमंत्री का बहुत बडा झूठ अरे अपराध करार दिया जाना चाहिए । मीडिया जिसे शहादत और अय्याशी की खबर में फ़र्क करने की समझ नहीं बची है , जिसे मातम और जलसे को उसी सनसनी के साथ परोसने का शऊर है फ़िर उसकी खबरों पर बिलबिलाना ही क्यूं फ़िर मीडिया भी कहां स्थाई विरोध या पक्ष में खडा रहता है , कभी रहा ही नहीं

और चलते चलते ये भी .......बात सिर्फ़ इतनी सी है कि अदने पदने लोगों ने सनक कर चुनाव लड लिया , कुछ अपने जैसे सताए , दबाए , लोगों को सच बताने समझाने के लिए युवाओं की एक जमात को उतार दिया , मामला ऐसा पलटा दिया सबने मिलकर कि मरगिल्ली समझ कर खिल्ली उडाती पार्टी , ठीक बराबर में आकर खडी हो गई । उफ़्फ़ इतनी हिमाकत .........कुछ भी करना मंगता था "जयकांत शिकरों" का ईगो हर्ट नहीं करना मंगता था .........लेकिन क्या करें वो तो  हर्ट हो चुकी थी । तो क्या हुआ , बैठने दो पदों में नीचे अभी इतने सालों की सैटिंग आखिर कब काम आएगी , लपेट देंगे कहीं न कहीं और ऐसा करके छोड देंगे कि फ़िर ये तो क्या दूसरे भी बगावत , सगावत वाले सुर न पकडें । मैच सिर्फ़ दो टीमों में ही देखना चाहते हैं लोग , हमेशा से देखते रहे हैं , तीसरे की औकात ही क्या ??? बात सिर्फ़ औकात दिखाने की है , देखो दिखा रहे हैं न , बैठो धरने पे , मर जाओ लाठी खाखा के , अब तो पब्लिक भी तुम्हारे खिलाफ़ है और साथी भी , हमें तो ऐसा मौका चाहिए ही था ........................लेकिन , लेकिन , लेकिन , उफ़्फ़ उन लोगों का क्या करें जिन्होंने दिल्ली के इतने जगहों पर अपनी बागडोर इन झाडुओं के हवाले कर दी ...सब के सब पागल हैं , निरे बेवकूफ़ , भावुक कहीं के , नायक फ़िल्म की  ऑडिएंस .........और इन सबके अलावा जो भी लोग देश में बचे हैं सिर्फ़ वे , और सिर्फ़ वे ही देश को चलाने लायक हैं , वे ही सक्षम हैं , वे ही ठीक हैं ..जो भी हैं बस वे ही हैं ।

विकल्प - दिल्ली सरकार को फ़ौरन बर्खास्त करके छब्बीस जनवरी के भव्य जश्न की तैयारी शुरू की जाए , अब तो दिल्ली पुलिस की न बन पाने वाली कमिश्नर मैम ने भी हरी झंडी दे दी है।

छब्बीस जनवरी को दिल्ली पुलिस की एक विशेष शौर्य झांकी निकाली जाए और इन तमाम पुलिस वालों को मंत्रियों को सबक सिखा देने जैसे कारनामें के लिए वीरता पदक से सम्मानित किया जाए ।

दिल्ली सरकार के सभी मंत्रियों और विधायकों पर मुकदमा ठोंक के उन्हें अंदर कर दिया जाए , देश की व्यवस्था को बदलने का सपना दिखाने और फ़िर उसे पूरा करने के लिए खुद कूद पडने के लिए , मुख्यमंत्री को जनवरी की ठंडी कडकडाती रात में फ़ुटपाथ पर सोकर  ये तथाकथित "अराजकता" फ़ैलाने के लिए ।देश मज़े में है , और मज़े में ही रहेगा , उसे आने वाले महीनों में लोकतंत्र का "ट्वेंटी-ट्वेंटी" खेलना है वो भी सिर्फ़ दो टीमों में बंटकर , ठीक है न ।

पोस्ट लिखते लिखते तक समाचार चैनल बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री धरना समाप्त कर सकते हैं क्योंकि दो आरोपी पुलिस अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा जा रहा है , लो चित्त पट्ट सब बराबर :) अब मनाइए छब्बीस जनवरी , करिए जलसा परेड , देखिए आम आदमी को गरियाने का अगला मौका आपको कब मिलने वाला है ............

रविवार, 19 जनवरी 2014

रिपोर्ट चंपू जी वाया मफ़लर ट्रैंड एंड चादर .....

नेट से मिले चंपू जी की लेटेस्ट पोज़ वाली फ़ोटो





अरे हां बहुत दिन हुए चंपू उर्फ़ हमारे तेज़म तेज़ पत्रकार बोले तो रपोटर रपट पेश नहीं किए , लीजीए उनका ताज़ा ताज़ा अपडेट , पिछले एक आध दिन का है

चंपू जी खडे हैं अक्षरधाम पुलवा के पास ( अब इनका कपार खराब है तो किया क्या जाए हमेशा शहादत वाली जगह पे नियुक्त किए जाते हैं , वर्ना मिस बिजली को देखिए , सलमान को कवर करती हैं हमेशा ) , तो चंपू जी बताएंगे दिल्ली में पडी सर्दी और कोहरे की मार

आजकल तो मौसम खबर में गाना भी चलता है , सो चलने के साथ ही चंपू जी प्रकट

" जैसा कि आप देख रहे हैं कि दिल्ली में ठंड और कोहरे की चादर फ़ैल गई ,( और मुझे छोड कर सब साले चादर पे फ़ैले होंगे ) और इस चादर ने पूरी दिल्ली को लपेट लिया है ,
इस कोहरे और ठंड के कारण लोगों को बहुत परेशानी हो रही , खासकर उन लोगों को जो सडकों पे चलते हैं .............."

स्टूडियो से दीमक चौपटिया पूछते हैं , तो क्या फ़ुटपाथ वाले मज़े में हैं यां वे टोपी पे टार्च बांध के लेग ड्राइव कर रहे हैं ....

" फ़ुटपाथ पर अगला बाइट में कवर करिएगा , अभी आगे सुनिए ...
तो जैसा कि आप देख रहे हैं कि कोहरे की ये चादर और मंतरी जी का  मफ़लर , दोनों ही हिट चल रहे हैं आजकल , समझिए कि ट्रेंड हो गए हैं आज के , हां ट्रेंड से दर्शकों को बताते चलें कि बेडा गर्क हो इस ट्रेंड का सुना कल किसी की जिंदगी ही इस ट्रेंड ने सस्पेंड कर डाली जी "

चौपटिया जी : "अरे वो छोडिए , और चादर पर लौट(लोट) जाइए .........

चंपू जी आखिर में आखिर में आस्तीन चढाते हुए , देखिए इत्ता मत लोटने को कहिए हमें , अभी के अभी यहीं रिजाइन मार देंगे और , मफ़लर बांध के मोर्चा संभाल लेंगे फ़िर लेते फ़िरिएगा हमसे बाइट , इंटरव्यू देंगे उनको जो हर हफ़्ते अदालत बिठाते हैं , इत्ती सरकार भी नहीं बिठाती जित्ते उन्होंने बिठा लिए अब तक "

भाड में गया चादर , और भाड में गई सडक , मैं तो खैर खडा ही भाड में हूं , रिपोट को यहीं लपेट रहा हूं , चाय बनवा के रखिएगा वर्ना कैमरा पर्सन भलुआ कह रहा है , खैंची वीडियो को खराब करना उसके बाएं हाथ का खेल है ..खतम किए रिपोर्ट ..रे काट रे भलुआ

:) :) :) :) :) :)

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

दिख तो रहा है , मगर दिखाई नहीं देता




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राजधानी दिल्ली में सिर्फ़ एक साल पुरानी राजनीतिक पार्टी “आम आदमी पार्टी” यानि “आप” की सरकार बने महज़ एक माह ही हुआ है और देश भर के राजनीतिक हलकों से लेकर समाज , मीडिया और लगभग पूरे देश में रोज़ाना चाहे सवाल उठा कर , चाहे आलोचना करके या फ़िर किसी और बहाने से निशाने पर लेकर किंतु निरंतर ही “आप” चर्चा में बनी हुई है । इस पार्टी के गठन की पृष्ठभूमि , इसका अंदाज़ , इसकी शैली के कारण इसके संगठन का तानाबाना बुनने वाले सभी छोटे बडे भी न सिर्फ़ सबकी नज़रों में हैं बल्कि आवश्यक अनावश्यक रूप से अपने उद्देश्यों और संकल्पों को पूरा करने का बोझ भी ढो रहे हैं ।
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हालांकि वो नियम कि जिसे जितना दबाओ वो उतना ही ऊपर उठ जाता है , इस नई नवेली पार्टी पर भी लागू हो रहा है । इस पोस्ट के लिखे जाने तक नई बनी सरकार ने लगभग एक माह का काम काज तो देख ही लिया है और साथ ही अपने पूर्व के साथियों सहित वर्तमान के बहुत से सहयोगियों के बदलते हुए रंग और तेवर भी । इस पार्टी का भविष्य , इस सरकार का भविष्य क्या और कैसा होगा ये तो अभी देखना बांकी है किंतु जिस तेज़ी से दिल्ली के बाद पूरे देश भर में इससे जुडने वाले लोगों की संख्या बढी है , इसके बारे में लोगों के बीच कौतूहल और बहस बढी है उसने सत्तासीन केंद्रीय पार्टी समेत इस बार सत्ता में आने की प्रबल दावेदार बनकर उभरी भारतीय जनता पार्टी को भी कहीं कहीं चिंतित तो कर ही दिया है ।
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कहते हैं न कि अंधों के देश में यदि कोई आंख वाला पहुंच जाए तो उसे वहां बीमार करार दे दिया जाता है । ऐसा ही कुछ परिदृश्य वर्तमान की दिल्ली सरकार के साथ हो रहा है । जिस प्रदेश में पिछले पंद्रह वर्षों से लगातार कांग्रेस की सरकार चली आ रही थी और उसके हिस्से में बिजली पानी की महंगाई , बेतहाशा भ्रष्टाचार के साथ साथ राष्ट्रमंडल खेल घोटाला जैसे जाने कितने ही कारनामे आए , जिस प्रदेश में निगम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी प्रबल जीत के साथ काबिज होने के बावजूद भी इन मुद्दों के खिलाफ़ खडा होना तो दूर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार अनियमितता और तमाम गडबडियों की तरफ़ रत्ती भर भी ध्यान न दे सकी और कमाल की बात ये कि चुनाव के बाद जब अप्रत्याशित रूप से एक नई पार्टी जिसके प्रत्याशियों और समर्थकों तक को हिकारत की नज़र से देखा जाता था , खिल्ली उडाई जाती थी वो उस संख्या तक पहुंच गई कि सांप छछूंदर वाली स्थिति हो गई तो एक नई रस्सा कशी का खेल शुरू हो गया , पहले मैं , पहले मैं की स्थिति बदल कर पहले “आप” पहले “आप” पर आकर टिक गई । सीधे सीधे इस नई पार्टी को ही घेरा गया कि अब चुनाव लडा है तो सरकार बनाओ और चला कर दिखाओ । तिस पर तुर्रा ये कि जो काम साठ सालों से बिगडा हुआ था , उलझा हुआ था उसका हल ढूंढने और तलाशने के लिए सबने डेडलाइन भी तय करनी शुरू कर दी ।
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रोज़ाना वादों को पूरा और झट से पूरा कर देने का दबाव और अगले ही पल उसे पूरा न करने का आरोप जडने का एक अंतहीन सिलसिला ही शुरू हो गया । आम जनता जो बरसों से त्रस्त और पस्त थी उसने तो खैर जिस तरह का व्यवहार किया वो समझ में आता है और उसकी एक बानगी इस इश्तेहारनुमा खबर से भी समझी जा सकती है , जिसमें एक सज्जन से सीधे सीधे ही सरकार से कहा है कि वो उनकी मांग मान ले अन्यथा आंदोलन के लिए तैयार रहे
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अब कुछ मुख्य बातें जो दिख तो रही हैं मगर दिखाई नहीं दे रही हैं
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१. दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री को दिल्ली के एक थाने के प्रभारी को निलंबित करने के लिए आग्रह करना पड रहा है , जबकि पडोसी राज्य के मुख्यमंत्री महज़ चंद मिनटों में एक प्रशासनिक अधिकारी को रातों रात निलंबित करने में भी नहीं हिचकते हैं
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२.दिल्ली सरकार के वर्तमान मंत्रियों की सरलता और साधारण व्यक्तिव के कारण न सिर्फ़ अदने से पुलिस अधिकारी , कर्मचारी तक उन्हें आंखे दिखा रहे हैं जबकि इससे पहले के तमाम सरकारों के निगम पार्षद और उनके चमचे तक आला अधिकारियों को हडकाते नहीं डरते थे ।
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३. इस नई पार्टी पर कांग्रेस की बी टीम होने जैसा आरोप लगाया जाता है और जब दल के मुखिया ये बयान देते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मैदान में है ही नहीं तो इस पार्टी की तथाकथित ए टीम यानि कांग्रेस के नेतागण कहते हैं कि आम आदमी पार्टी में बदबूदार और घटिया लोग भरे पडे हैं ।
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४.इस पार्टी के मुखिया , अगुआ से लेकर तमाम नेताओं के लिए मीडिया से लेकर समकक्ष और विपक्ष के तमाम नेता , क्या करेगा , जूते खाएगा , झूठ बोल रहा है , यानि तू तडाक की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं जो ये बता समझा रहा है कि बेशक आम आदमी सत्ता पर बैठ गया हो मगर सियासती लोगों की नज़र में उसकी औकात अभी वही है ।
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अब कुछ वो बातों जिनसे फ़िलहाल इस नई पार्टी को परहेज़ ही करना चाहिए था :-
फ़िलहाल दिल्ली में पैठ बना कर सत्ता में आकर लोगों का बहुत सारा अधूरा काम करने को प्राथमिकता देनी चाहिए थी बनिस्पत इसके कि तुरंत फ़ुरत में आगामी लोकसभा चुनावों के लिए अपनी दावेदारी ठोंकने की जल्दबाज़ी । इस नई पार्टी के पास  करने के लिए काम और कार्यक्षेत्र पहले ही इतना ज्यादा है कि अनावश्यक रूप से फ़ैलाव करने की जगह केंद्रित होकर मुद्दों पर अपनी सारी उर्ज़ा और श्रम लगाना चाहिए था ।
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ये जरूरी नहीं कि पल पल , मिनट दर मिनट , किया अनकिया , कहा अनकहा , सब कुछ का मीडियाकरण होता रहे । आप काम करते जाइए , चुपचाप करते जाइए , ढिंढोरा पीटने की कोई जरूरत नहीं है । काम का परिणाम सारी कहानी और फ़साना लोगों के सामने अपने आप रख देंगे ।
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आप सामाजिक सेवा के उद्देश्य से राजनीति में आए हैं , व्यवहार , तेवर , शैली , भाषा नम्र और उदार रखें एक सेवक और समाज के सेवक की तरह , बेशक रखें इसमें किसी को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए , होगी भी नहीं किंतु ये इतना भी नम्र और सरल साधारण न हो कि नीचे बैठा मातहत भी आपको अपना सेवक ही समझे । ये भारत है मेरी जान , यहां डंडे का काम डंडे के बल पर ही हो सकता है , कम से कम डंडे को उतना ऊंचा तो रखना ही होगा कि उसका डर और खौफ़ बना रहे ।
अब एक आखिरी बात , लोगों ने आपको आपकी नीयत देख कर एक विकल्प के रूप में चुना है तो सबसे पहला और आखिरी प्रयास यही और सिर्फ़ यही होना चाहिए कि अपनी नीयत स्पष्ट और साफ़ रखिएगा । आप करते जाइए , आप बढते जाइए ….

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

मकर संक्रांति वाया लाय चुडलाय एंड खिचडी

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सभी मित्रों को मकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं








Photo: आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !


 मकर संक्रांति के दिन से जुडी बचपन की जो बहुत सारी यादें हैं उनमें से सबसे पहली है जनवरी की सर्द कोहरे भी सुबह में ठंडे ठंडे पानी से नहाना । और नहाना इसलिए भी कंपल्सरी था या कहें कि बिना किसी दबाव के इस कंपल्सरी रूल को मान लिया जाता था क्योंकि नहाने के तुरंत बाद ही तो लाय चुडलाय तिलबा ( मुढही , चिवडे और तिल को भून कर गुड की चाशनी में लपेट कर बनाए गए छोटे बडे लड्डू ) मिलना होता था ।


इस सुबह का इंतज़ार असल में तो साल के शुरू से ही रहता था लेकिन जब एक दिन पहले मां को चूडा , मुढही तिल गुड आदि सामग्री लाते और फ़िर उन्हें भूनते देखते थे और उसकी महक रसोई से निकल कर घर के सारे कमरों में चली जाती थी तो होमवर्क करते करते भी मन और जीभ दोनों ही रोमांचित हो जाती थी । ठंडे पानी से नहाने में कोई खास उर्ज़ नहीं होता था क्योंकि वैसे भी उन दिनों कौन सा गीज़र हीटर का जमाना था मगर हम थे तो आखिर बच्चे ही ।

मुझे याद है कि नहाने के बाद सबसे पहला काम होता था मां द्वारा एक रस्म का निभाया जाना जिसे हमारे मिथिला समाज में आज भी बदस्तूर निभाया जाता है । मां एक कटोरे में भीगे और फ़ूले हुए चावल , सफ़ेद तिल और गुड को मिला कर तैयार की हुई सामग्री हम सब बच्चों को बारी बारी से अपने हाथों से मुंह में खिलाते हुए पूछती थीं " तिल चाउड बहबैं " हम कहते थे "हं" । पूछने पर मां बताती थी कि मैंने ये खिलाते हुए पूछा है कि इसका मतलब वृद्धावस्था में तुम सब संतान हमारा बोझ वहन करोगे न , और हम कहा करते थे हां । जाने वो हम कितना कर पाए या नहीं , और सच कहूं तो मेरे मां बाबूजी ने तो हमें मौका ही नहीं दिया ।

इसके बाद बारी आती थी दिन के खाने की । पूरे बिहार में इस दिवस को खिचडी दिवस के रूप में भी मनाया जाता है , कारण यही कि उस दिन लगभग हर घर में दिन का खाना यही होता था , खिचडी और उसके चार दोस्त , अरे नहीं समझे , मां के शब्दों में

"खिचडी के चार यार
घी, पापड , दही अचार "



उस दिन के खिचडी का स्वाद ही अनोखा जान पडता था । मुझे तो याद है कि न सिर्फ़ अपने घर के खाने में बल्कि यदि कहीं न्यौता दावत भी खाने जाते थे तो भी खाने में यही खिचडी और उसके चार यार ही होते थे । गांव बदल गए , समाज बदल गया और बहुत कुछ हम भी बदल गए नहीं बदला तो ये मकर संक्रांति और नहीं बदला तो खिचडी खाने का रिवाज़ । कहते हैं कि इस पर्व के बाद शीत ऋतु का प्रकोप कम होना शुरू हो जाता है । अब बदलते पर्यावरण के प्रभाव में ये अब कितना सच झूठ हो पाता है ये तो ईश्वर ही जाने मगर मगर संक्रांति का पर्व अब भी बहुत ही उल्लास और हर्ष के साथ पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है । चलते चलते आप सबको पुन: बधाई और शुभकामनाएं ।


रविवार, 12 जनवरी 2014

ब्लॉगिंग के सातवें साल में ....




वर्ष 2007 के आखिरी महीनों में जब लिखतन से अचानक इस खिटपिट की ओर मुडे थे तब कंप्यूटर से भी इतना ही परिचय था कि दफ़्तर में काम करते हुए , टाईपराईटर पर टाइपिंग सीखने के बाद अब हम कंप्यूटर के सोफ़्ट कीबोर्ड पर भी कुलांचे तो भरने ही लगे थे अलबत्ता तब ये बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि बहुत जल्दी ही हिंदी अंतर्जाल के एक ऐसे सदस्य बन जाएंगे कि भागीदारी हिस्सेदारी सी महसूस होने लगेगी ।

ब्लॉगिंग की शुरूआत भी बहुत ही मज़ेदार ढंग से शुरू हुई थी । कादम्बिनी का वो अंक , जिसमें तफ़सील से पढकर हमने ब्लॉगिंग की दुनिया में कदम रखा । और उस समय हिंदी ब्लॉग्स और ब्लॉगर्स की संख्या भी लगभग एक हज़ार के भीतर ही थी । वो दौर भी कमाल का था और वो ही क्यों उसके बाद से लेकर अब तक का सफ़र और हिंदी ब्लॉगिंग में होते परिवर्तन , बढते दायरे और प्रभाव का अफ़साना भी कम दिलचस्प नहीं रहा । जिंदगी में आते उतार चढावों की तरह ही ब्लॉगिंग भी निरंतर चढती उतराती रही । एक समय ये भी आया कि हमने अपने सारे ब्लॉग्स पर लिखना स्थगित करके सीधे साइट की ओर रुख किया | मगर ब्लॉग्स बहुत ज्यादा दिनों तक सूने आंगन की तरह नहीं देख पाए ।


किंतु अब जब देखता हूं तो पाता हूं कि , पिछले कुछ वर्षों का आर्काइव , उनसे पिछले के कुछ वर्षों के मुकाबले पासंग भी नहीं है । ऐसा शायद बहुत सारी अन्य वज़हों के अलावा , शायद फ़ेसबुक और ट्विट्टर जैसी साइटों पर अधिक समय देना भी नि:संदेह रहा । इस बीच ब्लॉगिंग में जिन दो चीज़ों की कमी और खली , नए और तेज़ एग्रीगेटरों की कमी और पाठकों की टिप्पणी करने को लेकर निष्क्रियता ।हालांकि नए ब्लॉगरों के आगमन और पोस्ट लिखने की उनकी रफ़्तार ने ब्लॉगिंग के धार में कमी नहीं आने दी । इस बीच बडे स्तर पर भी ब्लॉग संगोष्ठी / सम्मेलनों की धमक और चमक ने भी खबरों में स्थान बनाए रखा । चाहे वो नेपाल की राजधानी काठमांडू हो या गांधी का क्षेत्र वर्धा ।

बदलते हुए परिवेश में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का महत्व और प्रभाव जितनी तेज़ी से बढता जा रहा है उतनी ही ज्यादा बडी जिम्मेदारी इन पर उपस्थिति दर्ज़ कराने वाले लोगों के कंधों पर भी आ रही है । अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए दंगों में इन साइटों के दुरूपयोग का नमूना भी देखने को मिला था , किंतु अच्छी बात ये है कि ब्लॉगिंग फ़ेसबुक और ट्विट्टर के उत्तेजनामयी तीव्र व्यवहार से कहीं अलग ठहरा हुआ और ठोस सा दीख पडता है । 

ब्लॉगिंग का ये सफ़र अब चलते चलते मुझे सातवें वर्ष में लेकर आ गया है । आने वाले समय में लेखन पठन और टिप्पणियों को लेकर भी ज्यादा संज़ीदा और गंभीर हो सकूं यही कोशिश रहेगी । एक बात और ब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों में हमने ब्लॉग बैठकियों का एक गजब का दौर भी देखा था । मुझे पूरी उम्मीद है कि बहुत जल्दी ही दिल्ली में हम फ़िर से बहुत सारे ब्लॉगर मित्र बैठ कर कुछ औपचारिक अनौपचारिक सी बातें करने वाले हैं । ब्लॉगिंग का ये सफ़र बदस्तूर चलता रहे ,और बहुत सारे वे साथी जो अलग अलग कारणों से थोडी बहुत दूरी बनाए हुए हैं वे भी यदा कदा ही सही उपस्थिति दर्ज़ कराते रहें तो और भी अच्छा लगेगा ।
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