रविवार, 28 फ़रवरी 2010
भांग, मालपुआ, और होलियाते हम .....अमा कभी तो बुरा मानो
जब से इस बेकार से शहर में आकर बस जाने टाईप की मजबूरी हो गई तभी से सारे त्यौहारों के मायने ही बदल गए हैं ,न मुई ये होली रंगीन लगती है न ही दिवाली की चमक बरकरार है । कहने को तो सब कुछ हो ही रहा होगा मगर हम का करें कि ई ससुर दिल जो बिहारी रह गया है । ऊपर से तो दिल्ली का जितना टीमटाम है ऊ सब फ़ौलो किए ..आउर तो आउर ..जौन कसर उसर रह गया था ...ऊ सब पूरा हो गया जब ससुराल जलंधर हो गया । लो न अब बिहारी पंजाबी कंबीनेशन का डेडली कौंबो पैक .......सब त्यौहार एकदम से डबलिया गया जैसे हमको श्रीमती जी भी डबल मिली थी अपना से । खैर ई फ़ेस्टिव पुराण तो बाद में डिस्कस करेंगे कभी आज तो होलियास्टक टाईप का कुछ लिखने का मूड है ।
ओह का बखत ता यार ! ऊ टाईम जिसको सब कुछ नोस्टेलियाना कहते हैं...कभी कभी तो करता है कि बस बहुत हुआ ....भगवान को भी कहते हैं कि बस जी ..अब हमको तो यहीं पर पौज करके ..बैकवर्ड मोड में लगा दिया जाए ...हमारा मन अब फ़ौरवर्ड जाने को नहीं मानता है । पता नहीं कि इस बीमारी को कहते का हैं ..मगर लक्षण कुछ इस तरह के हैं कि हमेशा मन के कोने से एक ही आवाज़ आती है ...कि ओईसे तो आल इस वैल ...लेकिन जो टाईम बीत गया ..वो इज नौट ओनली वैल बल्कि बहुते माने में वाज भेरी भेरी .बेटर " और चाहे आज डिश टीवी फ़िश टीवी से एक हजार एक चैनल का मज़ा अनुपम हो ..मगर उस समय के .......... रुकावट के लिए खेद का क्रेज को टक्कर थोडी दे सकता है । ओह .........ई बिहारी सब एतना सेंटी काहे रह्ता है पता नहीं ...छोडिए ।
तो हम बता रहे थे कि दिल्ली में जब हम लोग बैचलर थे ...ओह ...मैं जानता हूं कि सभी कईयों ने दिल पर हाथ रख लिया होगा ...कि हाय हम भी कभी बैचलर थे ....और अभी के सभी बैचलर सोच रहे होंगे ..कि अबे तो क्या कुछ सालों बाद ..सभी यही कहते हैं....तो जब हम कुंवारे थे जो कसम से होली दिवाली के मजे तो तभी ले लिए थे ...यार यही तो एक वो टाईम होता है जब आपको गुलाल की लाली और फ़ुलझडियों की चमक ठीक ठीक दिखाई देती है । ओह फ़िर उन दिनों ..छोडिये ...तो बस इस बार सोचा कि यार बहुत हो गया कम से कम फ़्लैशबैक में जा न सके तो क्या हुआ ..उन दिनों को एक बार रिमिक्स करके देखा तो जा ही सकता है । बस फ़िर क्या थी हमने फ़ौरन से पेशतर . मित्र लपटन जी को पेजर पर संदेश छोड दिया ..फ़ौरन पहुंचिए ...अबकि जोश जरा ज्यादा है ,. फ़िर से होलियाने का ईरादा है । उन्होंने भी जब से सुना है कि अब अदालत भी उन बातों के तैयार है ..कभी किसी दोस्त को किसी भी बात के लिए मना नहीं करते ..क्या पता उनकी तरह किसी और दोस्त को भी अदालत का फ़ैसला सुहाया हो :)
लपटन जी सुनिए समय कम है और अबके फ़िर से पुराने दिनों की याद में जाने का फ़ैसला ले ही लिया है ...यदि फ़ैसले के अनुसार उसे पूरा न भी कर पाए तो कौन से मीडिया रिपोर्ट कर देगी कि जनता भी अपने सरकार की तरह हो गई है । आज तो हो ही जाए पक्का टाईप का कुछ फ़ाईनल सा । सुनिए पहले हम लोग होलिका दहन से शुरूआत करते हैं । लपटन जी अब तक आधे जोश में आ ही चुके थे इस बात को सुन के तो फ़ौरन से भी बडी सी फ़ुर्ती से खडे होकर बोले , बहुत बढिया झाजी ..आज तो मन खुश हो गया ..आप हमेशा अईसन अईसन आईडिया लाते हैं बस हमारा भी मन आग लगाने का हो जाता है , मन करता है कि बस अब .......फ़ूंक ही डालोगे क्या ......। आयं ..यहां भी हमने सोचा यार सब जगह ये तो ब्लोग्गिंग में भी ...राम राम राम ...हमने माथा झटका और होली पर कंस्ट्रेट करने लगे । सुनिए लपटन बाबू सबसे पहले तो सबकी /..लक्कड, खिडकी दरवाज़े , खटिया वैगेरह ..मांग ली आओ फ़टाफ़ट से ..हम तब तक अपने बज के बोर्ड सूचना टांगते हैं ।
लपटन जी से तो जईसी उम्मीद थी ओईसने रिपोर्ट ले कर आए और कहे कि ..झा जी ई दियासलाई हमको दीजीए और ई लक्कड वाला काम तो आपे करिए .....तब तक हमें बज पर वकील साहब श्री दिनेश राय द्विवेदी जी ने बता दिया था कि ..ई सब तो मांगे से नहीं मिलेगा ऊ तो आपको चोरी ही करना पडेगा जब तक चोरी का पूरा ब्लूप्रिंट तैयार होता ..तब तक लपटन जी दूसरी मनहूस खबर भी दे चुके थे ..झाजी अब सब जगह पर एलुमुनियम का खिडकी दरवाजा है ..लक्कड कहीं नहीं है ..। हम लोग अगला सलाह ओकील साहब का ही पर अमल करने का सोचने लगे कि कुर्सी दराज ,मेज सब उठा लिया जाए ।मगर जल्दी ही पता चला कि ..इससे अच्छा तो एलुमुनियम के खिडकी दरवाजा पर होलिका को जला दिया जाए । आखिर एतना पोल्युशन में होलिका एतना रेसिस्टेबल हो ही गई होगी कि अब एलुमिनियम पर बैठ के जल जाएंगी ।
खैर ..मगर जब इतने समय बाद फ़्लैशबैक को रीमिक्स कर रहे हैं ऊ भी एकदम से सुलो मोशन में तो ई सब कामर्शियल ब्रेक तो आना ही था , लपटन जी ने अगली खबर सुनाई ....झाजी तैयारी से क्या होगा ...मुईं होलिका तो निकल भागी है ...जाते जाते बोल गई कि कह देना झाजी से .....ई हर साल ..तुम लोग हमें और रावण जी को फ़ूंक देते हो ...जबकि असली लोग बच जाते हैं पूरे साल की होली दिवाली खराब करने के लिए । लो ये अब एक और मुसीबत ..पता लगाया तो पता चला कि ..होलिका को किसी बढिया सी निर्मात्री ने अपने धारावाहिक ने औफ़र दी है कि बढिया सा रोल देगी । वहां पहुंचे तो होलिका फ़ौरन मान गई ...कारण पता लगा कि ..यहां तो सारे रोल ही होलिका , और शूर्पनखा के रोल जैसे थे । सो कहने लगी चलो ....वैसे भी दियासलाई लेकर घूमने वाले लोग ..बिना आग लगाए कब मानते हैं ।
अब अगली व्यवस्था भांग और मालपुए की करनी थी ।ओह वही नोस्टेलियाना हमारा ...गांव होता तो ...एक तरफ़ रंग की बाल्टी ...और दूसरी तरफ़ ठंडाई की बाल्टी ....जिसमें से चाहो और जहां से चाहो भर लो .....और जिस पर चाहे उडेल दो । सुबह सुबह से ही पहले बडकन लोग , और बिना किसी महिला सशक्तिकरण के आंदोलन के सभी भौजाई , दादी , माता सबको ओही ठंडाई में से बराबर का हक मिलता था , और सबसे अंत में हम बचवा लोग भी ...बस उसके बाद तो ...धूम मचे धूम ....भोर दुपहरिया , दुपहरिया सांझ हो । लपटन जी भी अपना आईडिया दे बैठे ..बोले यार सोशल संदेश दिया जाए क्या ....सूखी होली हो जाए । हम भडक गए ..चुप रहिए लपटन जी एकदम चुप ....ई पानी बचाओ ,,वाला सोशल ,मैसेज जो आप ई मोटर गाडी वाला सब को देंगे न तो ठीक रहेगा ..जो अपने नहाने से लेकर कार की गंदगी तक को साफ़ करने के लिए जाने कितना पानी खराब करते हैं । ई सूखी होली का होती है लपटन जी , ई तो तय ही समझिए , अब बस भांग और मालपुआ पर सारा ध्यान दिया जाए ।
फ़िर हम और लपटन जी अपने खास सूत्र सब भिडा के किसी तरह बाबू मोशाय को मनाए कि देखिए बाबू मोशाय आप ई बार पान बीडी सिगरेट का दाम बढाए ..हमको कौनो टेंशन नहीं है ..हो भी कईसे हमको कौन सा उडनतशतरी जी की तरह विल्स कार्ड लिखना आता है फ़गुआ नजदीक है तो आप भांग का रेट पर कोई ध्यान मत दीजीएगा । देखिए इस खबर को हालांकि किसी ने भी कवर नहीं किया मगर सच यही है कि हमारे जैसे एक ब्लोग्गर और उनके मित्र के खास सिफ़ारिश के कारण ही भांग इस बार के बजट में भी सस्ता ही रहा ।हमने सोच कि जब दादा ,मान गए तो लगे हाथ मालपुए के लिए चीनी की बात भी करते ही चलें । दादा बोले भागो ...अबे हम सारे फ़ायदे क्या हम दादा और ,.,ममता दीदी से ही लोगे । चलो निकलो यहां से ....हैप्पी होली ।
हम और लपटन जी घर पहुंच चुके हैं और खूब होलिया भी रहे हैं । बाबूजी के लिए हमने वो सब करने की सोच रखी थी जो मां उनके लिए करती थी और कोशिश भी करते हैं .....सब तैयार हुआ ..और बाबूजी खा भी रहे हैं , हमें पता है कि अभी मां को ऊपर गए ज्यादा वक्त नहीं हुआ है तो जरूर बाबूजी को बेटे के हाथ का मालपुआ खाते देख ..संतोष हो रहा होगा .....बाबूजी से पूछा तो कहते हैं ..बढिया बनल अईछ बऊआ ( बढिया बना हैं बेटे ) ....मगर मैंने जब खाया तो बस यही लगा ....मां तेरे हाथ का स्वाद कहां से लाऊं ?????देखिए भांग खा के अब इससे ज्यादा लिखेंगे तो आप कहेंगे कि आप सेंटी के बाद अब मेंटल हो रहे हैं । जाईये प्यार बांटिए .....जितना बांटिएगा न ......घूमघामकर दुगुने चौगुने ,नौगुने ,,,,जाने कैगुने होकर आपके पास वापस आते रहेंगे ...और आप उन्हें बांटते रहना ।
गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
गुटबाजी, संगठन , घेटो ... सही समय पर एक गलत पोस्ट !
ओह कहते हैं न कि कुछ भी सोचा हुआ नहीं होता है तब तो बिल्कुल भी नहीं जब आप चाहें कि वैसा ही हो , अब देखिए न सोचा था फ़गुनाहट में कुछ ऐसी धूम मचाएंगे कि ब्लोगजगत में इंद्रधनुषी छटा बिखर जाएगी , जिनको वो भी न नज़र आई उन्हें भांग का लोटा गटका देंगे ..बांकी सब आपे आप हो जाएगा ...। मगर क्या खाक हो जाएगा .....अजी हमें शांति रास आए तब न ...हमें तो मुद्दे चाहिएं....मुद्दे भी ऐसे जिन्हें घसीट के हम पोस्टिया सकें , गरिया सकें , जुतिया सकें । बेशक लहज़ा और शैली कोई भी हो ...इस पर जोर कैसा और जोर हो भी क्यों आखिर ब्लोग्गिंग है ही इस चिडिया का नाम .....अभी पिछली पोस्ट में ही तो पूछा था कि ...भाई लोगों ...ये जो हम कर रहे हैं यदि ये ब्लोग्गिंग नहीं है तो फ़िर यार ब्लोग्गिंग है क्या ....अब नया ही एंगल पता चल रहा है । हर बात में कोई उलटा एंगल देखो ...बात बेबात आपत्ति दर्ज़ करो ...कभी विरोध में तो कभी समर्थन में पोस्ट लिखो ...क्या चकाचक ब्लोग्गिंग होती है ...होती क्या ...हो ही रही है । पिछले दिनों से कुछ शानदार शब्द और जुमले ..ब्लोग्गिंग में अपनी टीआरपी न सिर्फ़ बनाए हुए हैं बल्कि बराबर बढाए जा रहे हैं । अब अपने अजित वडनेरकर भाई तो जब लिखेंगे तब लिखेंगे इन शब्दों पर शोध करके ...हमने सोचा कि शोध करके न सही ....क्रोध करके तो इन पर लिख ही सकते हैं । और फ़िर कल से जम के फ़गुनियाएंगे ....।
ब्लोग्गिंग में यूं तो कहने को ढाई साल से जुते पडे हैं ...मगर कमबख्त ये गुटबाजी का इक्वेशन आज तक पल्ले नहीं पडा । वैसे भी इन इक्वेशन्स के मामले में हम बचपन से ही बहुत हुसियार रहे हैं ....जानते हैं कि कुछ पल्ले नहीं पडने वाला सो कोशिशियाते ही नहीं है ..काहे लें ऐसी टेंशन ?????जिसका ससुर कौनो आऊटपुट और इनपुट ही न हो । अब सुनते हैं कि कमाल की गुटबाजी है इस ब्लोग्गिंग में ....गजब के गुट हैं ...इतनी गुटगुट्टमगुट्ट तो ..गुटनिरपेक्ष देशों में भी नहीं देखी जाती । फ़िर शोध करके देखा .....नहीं नहीं क्रोध करके देखा तो कमाल के गुट मिले ....अरे हां मिल गए जी बिल्कुल ...क्या आपको विश्वास नहीं होता ।
आईये मैं दिखाता हूं ...
पहला गुट ..ऐसे कबूतरों का है जो बस प्रेम की भाषा जानते हैं , सबको गले लगाने को , सबको प्रोत्साहन देने को तैयार रहता है , मुएं नए ब्लोग्गर हों , पुराने ब्लोग्गर हों , कविता लिखने वाले हों , गीत लिखने वाले हों , गंभीर लिखने वाले हों , ये सभी की पोस्ट पढेंगे और टीपेंगे भी ....गजब का कमाल गुट है ये ...और इस गुट में जाने कौन कौन है शामिल । हम खुद भी ........
अब एक और गुट है , किसी का भी नाम ले के पोस्ट लिख मारी , किसी की पोस्ट का लिंक उठाया और दे दनादन निकाल ली भडास , धडाधड ...इस गुट को कोई मतलब नहीं है कि ब्लोग्गिंग कहां जा रही है ,,, क्यों जा रही है , इस गुट के लोग हमेशा ही हर पोस्ट को , और तो और उसमें आई टिप्पणियों को , ब्लोगगर्स आपस में भिडते हैं तो भी इन्हें दुर्भावना नज़र आती है ..ब्लोग्गर्स मिलते हैं आपसे में तब तो कयामत हो आती है देखिए न ..आप खुद ही ये कमाल के भाव निकल कर आए हैं ,ऐसे उदगार व्यक्त करने वाले भी हैं यहां , अभी अभी मिली सूचना के अनुसार बिना लाग लपेट जो कहा जाए वही सच हैंनामक सुंदर ब्लोग (http://mypoeticresponse.blogspot.com) में ये कहा गया है कि
,,
"" क्या किसी के घर मे कोई काम नहीं हैं की हर दो दिन तीन दिन बाद एक मीट की खबर आ रही हैं दिल्ली से । इस महगाई के ज़माने मे घर खर्च कैसे चलता हैं या सब के पास सरकारी नौकरी हैं । भगवान जाने इतनी सोशल नेटवर्किंग से क्या मिल जाने वाला हैं ??? ""
तो अब इन्हें कैसे समझाएं कि चाहे जमाना महंगाई का हो या सस्ताई का घर में यदि प्यार हो तो चल ही जाता है .....मगर घर होना चाहिए ..जिस घर समझा जाए ...खैर उनसे भी कोई गिला नहीं है ...सुना है कि शिशुपाल के सौ गुनाह तक कृष्ण रुके थे ...???
गुट तो और भी हैं कई , सिर्फ़ अपनी पोस्ट कर लिख कर निकल जाने वाले, पढ के चुपचाप निकल जाने वाले ,दूसरों को तो जम कर कोसने वाले मगर खुद पर पडने पर बिलबिलाने वाले , दूसरों की मौज लेने वाले मगर जब दूसरे लें तो जूता उठा कर तैयार रहने वाले ....
हमारे जैसे चिट्ठाचर्चा करने वाले फ़ालतू के गुटबाज लोग , और उन्हें समय समय पर ये बताने वाले गुटबाज कि आप चर्चाकार तो बस अपने गुट की ही चर्चा करते हो...
देखिए जी सूची बहुत लंबी है और विषय अभी दो बचे हैं , और सबसे बडी बात है कि इसके बाद इस विषय पर कुछ लिखने का मन नहीं है ..कम से कम होली तक तो नहीं ही ...सो आगे चलते हैं
अब बात करते हैं संगठन की .....तो बिल्कुल ठीक कहा है सबने ...अजी हम कोई गधे थोडी हैं जो समूह बनाने या संगठन बनाने की जरूरत है ...कहते हैं न कि शेर अकेला ही चलता है ...और इसमें क्या शक है कि ब्लोगजगत में हम सब शेर हैं ...जो सवाशेर बनने के लिए ही मरे मारे जा रहे हैं ...और ज़ाहिर है कि जब हम मिज़ाज़ से ही शेर हैं तो उसके लिए तो हमें ब्लोगजगत को भी जंगल बनाना ही पडेगा न । और फ़िर उस जंगल में ..अपनी अपनी मांद में बैठ के हम सब गुर्राएंगे ...लो कल्लो बात ..तो मांद से बाहर कैसे ....आखिर सभी शेर हैं न ...मिलते ही गधे न बन जाएंगे । चलिए अब इस बात को जरा दूसरे तेवर में कहूं । पिछली दोनों बार जब जब ब्लोग बैठक की बात हुई तो दोनों ही बार मैं तय कर चुका था कि जो करना है मुझ अकेले ने ही करना है , जो भी करूंगा जैसे करूंगा वो मैं खुद करूंगा । कारण बहुत से थे इसके ...और जाहिर है कि आप सब जानते हैं कि वो कौन से अपेक्षित कारण होंगे । पहले भी कह चुका हूं कि ये सिर्फ़ और मेरे मन की बात थी और जैसा मैंने चाहा वो किया , और जानते हैं कि ऐसा क्यों किया क्योंकि मैं किसी भी शर्त पर किसी को भी ये कहने का मौका नहीं देना चाहता था कि फ़लाना ने ऐसा या वैसा किस अधिकार से और क्यों किया ? किस मकसद से किया ?? क्यों भाई क्यों ...मैं अपना फ़ोन नं किसी की टिप्पणी में छोडता हूं इसलिए कि शायद यहां पोस्ट लिखने और टीपने की तथाकथित आभासी दुनिया से इतर उसके लिए वास्तव में कोई मदद कर सकूं ..तो उस फ़ोन नं का उपयोग कोई मुझे बरगलाने में तो कोई धमकाने में उपयोग करता है तो मैं उससे अपने तरीके निपटने में सक्षम हूं । मुझे इस बात के लिए किसी को सफ़ाई देने की कोई जरूरत नहीं है कि मेरा घरखर्च कैसे चलता है और उन पैसों को मैं आखिर किस कारण से मीट में लगा देता हूं ...क्यों जी आप कोई ठेकेदार हैं क्या मेरे घर परिवार के ...मेरी मर्ज़ी है मैं अपने घर पर रोज़ एक ब्लोग्गर मीट रख दूं ...?????और मैंने कब कहा कि मेरे द्वारा बुलाए गए किसी बैठक का कोई एजेंडा था ...जरूरी तो नहीं कि हर बार कोई न कोई एजेंडा झंडा हो ही । क्या यही बडी बात नहीं कि दोनों ही बार सबने आपस में मिल कर एक दूसरे से प्यार बांटा । आज जो लोग इन संगठनों के बनने पर प्रश्नचिन्ह खडा कर रहे हैं ..वे पहले इस ब्लोगजगत के लिए दिया गया अपना समय , अपना योगदान , का आकलन करें फ़िर किसी की नीयत पर उंगली उठाएं ।
मैं यहां पहले कुछ बातें बता दूं ..कि ब्लोग्गर्स को एकजुट करने के लिए ये कोई ऐसा प्रयास नहीं था जो कि पहली बार करने की कोशिश की गई थी । अभी भी ब्लोगजगत में लखनऊ ब्लोग्गर्स एसोसिएशन, साईंस ब्लोग्गर्स एसोसिएशन ..और जाने ऐसे ही कितने साझा मंच बने हुए हैं । हां अब आप सोच रहे हैं न ..तो फ़िर ये अभी से कैसे और क्यों मान लिया गया कि उस संगठन की बात शुरू करने वालों की मंशा किसी तरह की मठाधीशी करना था ...या फ़िर शायद किसी को ये डर लग गया था कि इस संगठन से रातोंरात करोडों रुपए इकट्ठा हो जाएंगे जिनका दुरूपयोग शायद ऐसी ही गुटबाज़ी वाली ब्लोग्गर्स मीट के लिए किया जा सकता है । हां भाई ...आखिर ब्लोग्गर्स बेवकूफ़ हैं न जो कि एक कहेगा कि पैसे दो सभी आंख मूंद कर दे देंगे । इसलिए बिल्कुल ठीक शंका जताई गई । ..अच्छा ये नहीं सोचा गया था तो फ़िर ये संगठन आखिर ऐसा क्या कर लेता जी जो आज के लगभग पच्चीस हज़ार हिंदी ब्लोग्गर्स प्रभावित हो जाते ????कैसी आशंका और किस पर ????? और किन्होंने की ...कितने ब्लोग पढते हैं आप ...कितने पर टिप्पणियां करते हैं जी ....कितने ब्लोग्गर्स के सुख दुख में शामिल होते हैं ...ओह माफ़ी माफ़ी ...भई ये तो आभासी दुनिया है न ..यहां पर तो सिर्फ़ लिख कर ..जी हां लिख कर ..और बस लिख कर इतिश्री करके ही अपनी चिंता , अपना क्रोध , अपनी समस्या, सब कुछ को रखना चाहिए ।
अब चलते चलते कुछ बात करते हैं घेटो की, मैं इत्ता बडा विद्वान तो कभी नहीं रहा सो जब समझाया गया और जैसा समझाया गया ..तब जाकर अपनी अल्पबुद्धि में ये बात आई कि घेटो का मतलब ..जी हां मतलब नहीं ....ये समझा कि ...ये अलग थलग होने की प्रक्रिया जैसा कुछ है । आयं ये तो यार बिल्कुल ही बात पल्ले नहीं पडी ....जिस शख्स की तरफ़ ईशारा किया जा रहा था अलग बस्ती ..बसाने का ..शायद कोई डोमेन शोमेन लेने के लिए जिम्मेदार ठहरा कर ...वो अलग बस्ती बसा रहा है अलगाव लाने का प्रयास हो रहा है । कमाल है एक ब्लोग्गर जो सभी की जन्मदिन , वैवाहिक वर्षगांठ , और ऐसे ही अवसरों को न सिर्फ़ सहेज़ता है बल्कि उन्हें बधाई देने का मौका देता और दिलवाता है , वही ब्लोग्गर किसी भी पहचान बिना पहचान वाले ब्लोग्गर को न सिर्फ़ ये बताता है कि उसकी फ़लानी पोस्ट में ये तकनीकी समस्या आ रही है ..बल्कि रात दिन की परवाह किए बगैर उसे दुरूस्त करता है , एक ब्लोग्गर जो सभी ब्लोग्गर्स की देश भर के समाचार पत्रों में छपी हुई पोस्टों को सजा कर सहेजता और प्रस्तुत करता है ...वो ......क्या कह रह थे ....आप घेटो ....कर रहा है ......अजी मेरी मानिए इसे घेटो नहीं ......इसे तो फ़ेंटो कहते हैं । अरे बचा है ब्लोग्गिंग का कोई रंग जिसे ये ब्लोग्गर न फ़ेंट रहा हो हिंदी ब्लोगजगत में ....। ओह शायद इसके लिए जरूर उन्हें भारत सरकार पैसे दे रही होगी न ....या शायद किसी ब्लोग्गर संगठन ने तगडी पेंशन तय कर रखी होगी ।
देखिए जी अब होली का समय नज़दीक है ..मैं नहीं चाहता कि इस पोस्ट का रंग ही इतना पक्का चढ जाए कि आगे के फ़गुनिया रंग फ़ीके लगें आपको ..तो यकीनन आप समझेंगे बात को । और हां संगठन, और गुट तो बिना कहे सुने भी बने हुए हैं जी .......बस तय तो आपको करना है कि आपको पसंद क्या है ,.,,,,हम तो ऐसे कबूतर हैं जो हर गुट में गुटरगूं ....कर जाते हैं ....। प्रेम की भाषा से ...समझिए न उसको ..चाहे गपशप करें ...कुछ भी कभी भी कहें ...........
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