रविवार, 24 जुलाई 2011

हिंदी ब्लॉगिंग की इज्जत करिए , क्योंकि आप हिंदी के ब्लॉगर हैं










जाने क्यों थोडे थोडे समय बाद इस तरह की बातें , देखने सुनने और पढने को मिल जाती हैं , जिसमें कोई हिंदी ब्लॉगर हिंदी ब्लॉगिंग का माखौल उडाता , या फ़िर उसका अपमान सा करता दिखता है । किसी को गुटबाजी दिखाई देती है तो किसी को लेखन में कचरा ही दिखाई देता है , किसी को यहां सिर्फ़ टिप्पणी का लेन देन दिखाई देता है तो किसी को एग्रीगेटर का ही सारा दोष दिखाई देता है , यानि कुल मिला कर लब्बो लुआब ये कि ये दिखाने बताने और जताने की कोशिश की जाती है कि हिंदी ब्लॉगिंग , स्तरहीन , दिशाहीन और बिल्कुल ही बेकार है । ये बहुत गौर करने लायक बात है कि ऐसे लोगो ने हिंदी ब्लॉगिंग को गरियाने के मौका और समय बिल्कुल उपयुक्त चुना है । दो सबसे लोकप्रिय एग्रीगेटर , अचानक ही वाद , बेविवाद बंद हो गए । हालांकि उस कमी को पूरा करने के लिए बहुत सारे नायाब प्रयासों को जैसे पर लग गए और कई खूबसूरत संकलक , इंडली , हमारीवाणी , ब्लॉगगर्व , ब्लॉगमंडली , ब्लॉगप्रहरी , हिंदीब्लॉगजगत , ब्लॉगसंसार , और तमाम बहुत सारे संकलक हिंदी ब्लॉगर्स का साथ निभाने को मैदान में उतर आए । आज सभी ने हिंदी ब्लॉगरों के मन में एक विशिष्ट स्थान बना लिया है । इसके अलावा , दैनिक जागरण और नवभारत टाईम्स ने अपने मंच को आम पाठकों की ब्लॉग भागीदारी हेतु भी आमंत्रित किया । किंतु इसके बावजूद भी कुछ स्थितियां तो प्रतिकूल ही रही हैं । ब्लॉगरों का सबसे लोकप्रिय प्लेटफ़ार्म ब्लॉगर समय असमय झटके देता रहता है हिंदी ब्लॉगरों को । लेकिन इन तमाम तरह की मुश्किलों के बावजूद आज हिंदी  ब्लॉगरों की चमक और धमक बढती ही जा रही है । और आगे भी ये एक बहुत बडा और प्रभावी समूह बनके उभरेगा इस संभावना से सब भलीभांति परिचित हैं ।


हिंदी ब्लॉगिंग से न जुडे हुए और लेखन पठन से जुडे हुए लोग यदि कभी हिंदी ब्लॉगिंग की चर्चा या विश्लेषण करते हैं तो अक्सर आक्रामक हो उठते हैं उसकी सिर्फ़ एक ही वजह है ब्लॉगिंग का बिल्कुल कच्चा और तीखा स्वरूप और बिना किसी के वर्चस्व के बढता एक संसार । जब कोई बहुत दूर से हिंदी ब्लॉगिंग को बिना जाने बूझे उसकी आलोचना करता है तो इसलिए उस पर कोई प्रतिक्रिया देना उचित नहीं लगता क्योंकि फ़िर तो अंदाज़े से इससे बेहतर विश्लेषण की अपेक्षा करना ही व्यर्थ हैं । किंतु पिछले कुछ दिनों में ये प्रवृत्ति थोडे से चलन में है कि , किसी न किसी बहाने से हिंदी ब्लॉगिंग और हिंदी ब्लॉगर को निशाने पर रखा जाए करने वाले भी खुद हिंदी ब्लॉगर्स ही हैं । आलोचना अच्छी बात है और यदि आलोचना सुधार की भावना से की जाए तो फ़िर तो बहुत ही अनिवार्य भी । किंतु सिर्फ़ आलोचना करने के उद्देश्य से की जा रही आलोचना , या फ़िर आलोचना की सीमा को लांघ कर अपमान के स्तर तक जाकर , बिल्कुल कोसने के अंदाज़ में पूरे हिंदी ब्लॉगजगत को कटघरे में रखने वाले ब्लॉगर्स को ये नहीं भूलना चाहिए कि वे स्व्यं उसी हिंदी ब्लॉगिंग का हिस्सा हैं जिसे अपमानित करने का प्रयास वे करते हैं । उनकी पहचान हिंदीं ब्लॉगर के रूप में ही जानी जाएगी , चाहे धारे जी हों या पधारे जी ।


पिछले दिनों लगातार पोस्टें आईं , जिनमें ब्लॉगिंग से जुडी प्रतियोगिताओं , पहेलियों वाली पोस्टों और ब्लॉगों का माखौल उडाया गया , यहां तक कि उन्हें सम्मानित करने के प्रयासों को भी येन केन प्रकारेण विवादग्रस्त बनाने की खूब कोशिशें की गईं । छोटे बडे संकलकों के साथ उनसे जुडी टीम को भी उन्हीं संकलकों के साथ न सिर्फ़ निशाने पर रखा गया बल्कि कई बार निजि तक हुआ गया ,और ये सब कुछ खुद उन्हीं संकलकों की छाती पर बैठ कर किया गया । आपसी खुन्नस के हालात कुछ ऐसे बन गए थे कि नकली प्रोफ़ाइलधारी असली ब्लॉगरों ने कुछ चुनिंदा पोस्टों पर ऐसे अहम सुरीले वाक्यों और शब्दों का प्रयोग किया खुद गूगल को भी ये तय करने में परेशानी आ रही होगी कि उनकी किस पोस्ट को सर्च इंजन में सबसे पहले दिखाए । इन बुरे दौरों से गुजरने के अलावा साथ साथ ब्लॉगर बाबा  भी अपनी सारी कारस्तानी इन्हीं दिनों के लिए बचाए हुए बैठे थे जैसे । कभी परिकल्पना महोत्सव गायब तो कभी ज़ाकिर भाई का ब्लॉग ,पाबला जी जैसे कंप्यूटिक्स लड भिड के निकालने में लगे रहे इन दिनों , लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग को बढना था सो बढ रही है और मजे में बढ रही है , अब तो और तेज़ बढने वाली है । लेकिन दिक्कत वहां लगती है जब सिर्फ़ कुछ खास लोग जाने किसी खास मकसद यी किसी भी मकसद के बिना भी कभी हिंदी के बहाने , कभी ब्लॉगिंग के बहाने , कभी हिंदी ब्लॉगिंग के बहाने ,यहां या तो सबको कोसने का काम करते रहे या फ़िर उन्हें किसी न किसी बहाने अपमानित करने का । यहां सिर्फ़ दो बातें बिल्कुल स्पष्ट कह देना ठीक होगा । बहुत बार बहुत घटिया , बेहूदा और अपमानजनक प्रयासों के बाद भी , हिंदी ब्लॉगिंग में अभी इतने लोग अपना सकारात्मक योगदान दे रहे हैं कि उनकी कोशिश बेकार ही जाएगी , दूसरी ये कि उन्हें ये भी याद रखना चाहिए कि यदि लोग उपेक्षा कर रहे हैं तो सिर्फ़ इसलिए वे आगे की ओर अग्रसर रहना चाहते हैं , लेकिन सिर्फ़ कुछ ने ही खूंटा गाड लेने का मन बना लिया तो फ़िर .....।


आप हिंदी में ब्लॉगिंग करते हैं तो ये जरूर ध्यान रखिए कि इसके साथ सिर्फ़ आपकी ब्लॉगिंग नहीं जुडी है बल्कि हिंदी का नाम जुडा हुआ और उस हिंदी से ही आप जुडे हुए हैं । शुक्र है कि हिंदी ब्लॉगिंग के बारे में बेशक खबरें चाहे जैसी भी और जहां भी आ रही हों , आज देश के हर समाचार पत्र में हिंदी ब्लॉग पोस्टों के अंश का स्तर बहुत ही उत्कृष्ट ही होता है । ये कहना थोडा इसलिए आवश्यक लगा क्योंकि ये हिंदी ब्लॉगिंग के काफ़िले के निर्माण का समय है , अन्य तकनीकी झंझावातों के साथ साथ यदि हिंदी के ब्लॉगर भी उस काफ़िले में हमले करेंगे तो वो आत्मघाती ही साबित होगा ....और हमेशा होता रहेगा ।

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

अब या तो निपटाइए , या निपट ही जाइए ..झा जी कहिन






कल के मुंबई बम धमाकों के बाद सिर्फ़ दो बातें दिमाग में घूम रही हैं , पहली ये कि , तो क्या अब दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में रहने वाले हमारे जैसों को ऐसे ही किसी आतंकी हमले में मरने या किसी अपने के मर जाने की खबर सुनने की आदत डाल लेनी चाहिए ..और दूसरा ये कि ....सरकार की सारी बकवास , आतंकवादी घटनाओं से परे जाकर बस इतना कहने का मन है ...या तो निपटाइए ....या अब खुद ही निपट जाइए ..बस अब बहुत हुआ।


मैंने अभी अपनी इस पोस्ट में ये संभावना जताई थी कि अभी जिस तरह के हालात हैं और आसपास यानि पाकिस्तान , बांग्लादेश , और चीन जैसे देशों की जो मंशा भारत के प्रति है उसमें ये बहुत कुछ अपेक्षित सा ही था कि देर सवेर भारत को ये दंश झेलना ही था , बल्कि कहा जाए कि ये तो एक शुरूआत भर है तो शायद ये गलत नहीं होगा । ये भी अब देश के महानगरों की एक नियति सी बनती जा रही है कि उन्हें , देश के सबसे विकसित शहरों में रहने का खामियाजा ऐसे भुगतने के लिए अभिशप्त होना पड रहा है । इन बम धमाकों से पहले और इसके बाद कुछ भी ऐसा अलग या अनोखा नहीं होगा जो कि अब तक न हुआ हो । सरकार द्वारा इसकी भर्तस्ना , अपने तमाम आका टाईप के दोस्त देशों के आगे जा जाकर बताना कि , देखो हमें तो फ़िर मारा । कुछ अलग करना हो तो सामने ही अमेरिका का उदाहरण है , जिसने बिना किसी कानून , बिना किसी सीमा की परवाह करते हुए आतंकी ओसामा बिन लादेन को उसीके बिल में जा कर मारा । न सिर्फ़ उसे मारा बल्कि अब ऐसे समाचार आ रहे हैं कि पाकिस्तान की आर्थिक सहायता में भी भारी कटौती की गई है ।


पडोसी देश पाकिस्तान , आज विश्व में आतंकियों , स्मगलरों , अंतरराष्ट्रीय अपराधों का गढ माना जाता है । और बार बार इसके पुख्ता प्रमाण मिलते रहने के कारण इसमें कोई संदेह भी नहीं है । तो ऐसे में जब भारत एक ऐसे देश का पडोसी है , न सिर्फ़ पडोसी बल्कि उसका दुश्मन नंबर एक है ( लाख क्रिकेट की कूटनीति हो या संगीत, सिनेमा के जुडे हुए तार , और चाहे भारत माने न माने लेकिन ये हकीकत है कि आज भी पाकिस्तान भारत को इसी रूप में देखता है) ,तो क्या ये स्वाभाविक नहीं है कि आने वाले समय में इन आतंकी घटनाओं के और भी बढने के आसार हैं । देश की तमाम सुरक्षा संस्थाएं , एजेसियां और पुलिस को अब अगले बहुत समय तक अपने उच्चतम सुरक्षा मोड में रहना चाहिए , लेकिन अफ़सोस कि आज देश के राजनीतिज्ञों को घपलों घोटालों में पैसा बटोरने से ही फ़ुर्सत नहीं है । जिस तरह से कसाब , अफ़ज़ल जैसे आतंकियों को पाल पोस कर न्याय दिलवाने के नाम पर रखा जा रहा है और पिछले तमाम आतंकी घटनाओं में एक भी नेता और और उनके नाते रिश्तेदारों के बाल भी बांका नहीं होने के कारण मन में संदेह होता है कि कहीं ये आपसी सांठगांठ तो नहीं कि , तुम हमें बचा के रखो, हम तुम्हें बचाए रखेंगे ।


इन घटनाओं पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कई लोगों ने कहा कि , बहुत बडी गलती हुई थी उस दिन संसद पर हमले को नाकाम करने में हमारे सैनिकों ने अपनी जान देकर इन राजनीतिज्ञों को बचाया जो ऐसे आतंकी हमलों पर ओछे बयान की राजनीति करते हैं । काश कि उस दिन एक आध भी निपट लिया होता तो जरूर ये नौबत शायद उतनी जल्दी जल्दी नहीं आती जितनी कि आ रही है । आने वाला समय इस लिहाज़ से बहुत ही ज्यादा संवेदनशील और नाज़ुक होगा , क्योंकि राजनीतिक अस्थिरता जहां बढने के आसार हैं वहीं आने वाले कुछ महीने भारत में त्यौहारों और पर्व का मौसम होता है , ज़ाहिर है कि आतंकियों के लिए ये एक और मौका होगा । सबसे बडा सवाल ये है कि आखिर कब तक ? 

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

जनांदोलन और आम आदमी....झा जी कहिन



ये आम आदमी की तस्वीर है , बस जरा पास पास खडा है एक दूसरे से



देश अभी सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनशीलता के दौर से गुजर रहा है  । ऐसा नहीं है कि कहीं को अस्थिरता या असंतोष प्रकटत: दिखाई नहीं दे रहा है बल्कि अब जिस तरह से चौबीस घंटों में हुई बहुत सी घटनाओं , दुर्घटनाओं , अदालती कार्यवाहियों , समाचार संकलनों और तो और राजनीतिक बयानों तक पर आम आदमी अपनी प्रतिक्रिया दे रहा है वो बहुत कुछ प्रमाणित करने के लिए काफ़ी है । पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार और उसमें सरकार की दुखद भागीदारी ने महंगाई का एक ऐसा आसमान खडा कर दिया है कि जिसमें से थोडे थोडे अंतराल पर आम आदमी पर बिजली टूट टूट के गिरती रहती है । अब तो वो जमाना आ गया है कि लोगों को खाना पीना पहनना और रहना जैसी बुनियादी आवश्यकताएं भी भारी पडने लगी हैं ।

आज सरकार , पुलिस , प्रशासन , अधिकारी , कर्मचारी , मीडिया , अदालत और तमाम छोटे बडे कारक अपने अपने हिस्से के काम बखूबी कर रहे हैं । बखूबी कहने का तात्पर्य ये नहीं कि दुरूस्त कर रहे हैं , बस ये है कि जैसा वे कर सकते हैं , और जैसी करने की उनकी मानसिकता और नियति है वे कर रहे हैं । हालात पिछले कुछ समय से लगातार बिगडते चले जा रहे हैं और बात अब उस स्तर तक पहुंच गई है जहां पर कई विद्वान लोग भ्रष्टाचार , घूसखोरी के वैधानिकीकरण यानि उसे बिल्कुल कानूनी और ज़ायस बनाने की बातें तक करने लगे हैं । एक बहुत बडी जमात उन लोगों की भी है , जिन्हें न तो सरकार की अकर्मठता , उसके धूर्त चरित्र और उसके द्वारा की जा रही बेइमानी से कोई सरोकार न है न ही इसके खिलाफ़ या फ़िर सरकार के ही समर्थन या विरोध में खडे लोगों में कोई दिलचस्पी । वे मस्त हैं ये मान कर कि अब कुछ नहीं हो सकता और इस देश को और इन हालातों को कोई भी कभी भी नहीं बदल सकता । मेरा मानना ये है कि आम आदमी जब अपनी सोच और अपने नज़रिए से सरकार और सत्ता को अपना गुस्सा दिखाने लगता है तो सरकारें भी भीतर से कांप रही होती हैं ,तो इसलिए बेशक जो खुल कर इस लडाई में आगे नहीं आ सकते , वे चुप ही रहें इससे बेहतर कि वे रूदालियों की तरह यही कहते फ़िरें कि ऐसा अब नहीं हो सकता वैसा अब संभव नहीं है । और सरकार को भी भलीभांति ये समझना चाहिए कि आज ये सवाल नहीं है कि मुद्दों को उठाने वाले कौन हैं , असली बात ये है कि जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं , उनके बारे में सरकार का क्या सोचना है । आज अगर आम लोग अलग अलग रूप और जनसंगठनों के सहारे सरकार के सामने सीना तान के खडे हो गए हैं और सिर्फ़ चंद सवालों के जवाब , लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए कुछ अधिकार और जनांदोलनों का रास्ता अख्तियार करके उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए दृढबद्ध हो गए हैं तो इसमें अनैतिक , गैरकानूनी और असंवैधानिक क्या है , ये सरकार को जरूर बताना चाहिए ।

बेशक कुछ व्यक्तियों ने कुछ बहुत से वाजिब सवालों को उठाकर और बनने वाले कुछ प्रस्तावित कानूनों में कुछ बुनियादी बदलाव की मांग करके न सिर्फ़ सरकार के थिंक टैंक की चूलें हिला दीं बल्कि आम आदमी के विचारों को , उसके गुस्से को , उसकी लाचारी को एक हवा सी दे दी है । आज जो इस स्थिति से जरा भी रूबरू है वो जानता है कि आने वाले समय में उसे दो में से एक रास्ता ही चुनना होगा । या तो आप बदलाव के साथ हैं या बदलाव के साथ नहीं है । और समाजशास्त्री ये बात बखूबी समझते हैं कि जब समाज में फ़ासला इतना बडा हो कि नब्बे प्रतिशत की किस्मत दस प्रतिशत की मुट्ठी में जबरन कैद हो तो फ़िर संभावना इसी बात की ज्यादा रहती है कि नब्बे प्रतिशत उस दस प्रतिशत को उखाड फ़ेंकने की योजना में ही शामिल होता है । और ऐसा भी नहीं है कि आज आम आदमी तटस्थ है , चुपचाप सब होता ,देख रहा है । नहीं कतई नहीं है , बल्कि असल में तो आज हर दफ़्तर , हर महकमें , हर संस्थान में उन मुट्ठीभर ईमानदार लोगों के चेहरे की चमक और आत्मविश्वास दोगुना सा दिख रहा है । लोग अब आरटीआई और कंज्यूमर कोर्ट की भभकी से बडे बडों की हवा टाईट करने में लगे हैं । सीएम पीएम भी अदालतों के चक्कर यूं काटते दिख रहे हैं मानो चोर गिरहकट और जेबकतरे हों ,लेकिन  इसके बावजूद सिर्फ़ दो बातों की अकड , पहली ये कि जनता के चुने हुए नुमाइंदे हैं , वो भी उस अंदाज़ में कि अब तो आ गए चुन कर , अब पांच सालों तक कुछ भी न बिगाड सकोगे किसी भी सूरत में , दूसरी ये कि आज भी भारतीय जनता ने लोकतंत्र पर विश्वास करना नहीं छोडा है और वो अब भी आमतौर पर उतनी हिंसक नहीं होती जितने कि आज विश्व के अन्य देशों की आम जनता हो जाया करती है , नहीं तो किसी की भी समझ में ये बात आ सकती है कि कसाब जैसे मुलजिम भारत जैसे देशों में ही इतने दिनों तक जीवित रह सकते हैं ।



ऐसे में भी अगर आम लोग अभी ये तय कर लें कि उन्हें आज नहीं , बल्कि अपना कल कैसा चाहिए तो ये माना जा सकता है कि , आने वाले कुछ दिनों में उबलता हुआ जनस्मूह कोई बहुत कारगर उपाय न भी तलाश पाए तो ऐसा एक माहौल जरूर बना दे लगे कि हां वाकई सब कुछ बदलने के दौर में है । तय तो खुद लोगों को करना है , समाज को करना है क्योंकि कोई भी पेशा हो या कोई भी पद हो , आता और बनता तो हमारे बीच से ही है न आखिर । लेकिन उस बदलाव की शुरूआत के लिए यही उपयुक्त समय है और यही उपयुक्त माहौल भी । सबसे जरूरी बात तो ये कि सबको अपनी अपनी स्थिति जरूर मजबूत रखनी चाहिए , यानि कि आप जहां है , वहां से खुद की बेहतरी के लिए सोचते रहें , जरूर सोचें , क्योंकि आप बढेंगे तो देश बढेगा , लेकिन हां रास्ते वही चुनिए , जिस पर आप चाहते हैं कि आपकी अगली पीढी को किसी इससे भी बदतर स्थिति से गुजरना न पडे । इसलिए ये बहुत जरूरी है कि आज एक कदम तो जरूर ही उठाया जाए । इसलिए आज के युवाओं को अपनी ताकत का अपनी धमक का और अपनी सोच ,जिम्मेदारी के एहसास को भलीभांति इस सरकार को सुनाना चाहिए । आसपास के हर दफ़्तर , हर संस्था में गलत बातों का विरोध , खुदबखुद कतारबद्ध होकर काम करने करवाने की प्रवृत्ति , ट्रैफ़िक  और नागरिक नियमों का सम्मान और उनका पालन , आसपास के समाज के साथ पारस्परिक सहभागिता निभाते हुए एक दूसरे की सहायता की भावना का विकास , लालच और विकास की अंधी दौड में भागते रहने से बेहतर है कि बेहतर इंसान बनने के मायने सीखें और सिखाएं जाएं , लेकिन इसके लिए एक बेहतर राजनीतिक नेतृत्व और जनसंगठन की जरूरत होगी । पिछले दिनों से तयशुदा मानकों को तोडना होगा और जंग फ़ंफ़ूद लगे अनुच्छेदों को कांट छांट के इस समय के अनुकूल करना होगा ।



इसलिए आज देश के न सिर्फ़ युवाओं , बल्कि महिलाओं , मजदूरों , छात्रों , खिलाडियों , सबको देश के लिए , लोकतंत्र के लिए , और नागरिकों की मानसिक शारीरिक आजादी की रक्षा के लिए अपने अपने हिस्से की लडाई लडनी ही होगी । हो सकता है कि कहीं कहीं पर अगुआ और लडाई का तरीका थोडा बहुत अलग हो लेकिन उद्देश्य वही होना चाहिए । छोटे छोटे जनसंगठनों का निर्माण , आम लोगों में सभी नागरिक अधिकारों के प्रति सजगता और गरीब वंचित तबके के लिए यथा संभव सहायता के बहुत सारे छोटे छोटे ऐसे काम हैं जिनके लिए किसी तहरीर चौक और किसी आंदोलन की जद में आए इसे किया जा सकता है । लेकिन हां इसके साथ ही ये बहुत जरूरी हो जाता है कि ऐसा हर वर्ग , हर तबका , हर समूह , हर संगठन , हर जनतांत्रिक मुहिम में अपनी सक्रियता का परिचय जरूर कराए , पक्ष या विपक्ष में ये दीगर बात है । धार्मिक विद्वेष , सामाजिक कुरीतियों और पश्चिमी विकृतियों से निपटने के लिए और उनमें बदलाव लाने के लिए किसी कानून से ज्यादा मानसिकता बदलने की जरूरत है और ये मुहिम अभी से शुरू कर दी जाए तो बेहतर होगा और शायद एक दिन जाकर वो स्थिति भी आए जब आज के ये दिन और स्थिति एक दु: स्वप्न की तरह याद किया जाए ।

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