#येउनदिनोंकीबातथी
जैसा की मैं पहले भी बहुत बार कह चुका हूँ कि हम और हमारी उम्र के तमाम लोग कई मायने में बहुत ही अलहदा रहे हैं । ये वो दौर था शायद 83 -84 का साल था , टीवी फ्रिज के बाद प्रेशर कुकर लोगों के घर में पहुँचने लगा था। पिताजी की पोस्टिंग उन दिनों पूना के cardiac theoretic center में थी। और हम सब वहीँ थोड़ी दूर स्थित फ़ौजी क्वार्टस में रहा करते थे। तो प्रेशर कुकर के आने से पहले ही किचन में उसका इंतज़ार किसी नई बहू के आने की तरह किया जा रहा था। फ़ौजी कैंटीन में जिस दिन कुकर उपलब्ध हुआ उसी दिन एक साथ हमारी उस फ़ौजी कॉलोनी में बीस बाईस प्रेशर कुकर बहूरानी पधारी थीं।
हॉकिन्स का वो प्रेशर कुकर उन दिनों हर किचन का शो स्टॉपर हुआ करता था। लेकिन पहले दिन और सबसे पहली बार उसका उपयोग करने के ऐसे ऐसे किस्से अगले कई दिनों तक मम्मियों आंटियो की शाम की गेट सभा [जिसमे सभी अपने अपने गेट पर खड़े होकर दुनिया भर की सारी बातें कर लिया करती थीं ] में सुने सुनाए गए जिन्होंने इतिहास रच दिया।
मुझे याद है कि उन दिनों केरोसिन स्टोव का प्रयोग होता था जो बर्तन की पेंदी को काला कर दिया जाता था जो बाद में बर्तन साफ करने के दौरान खासी मुसीबत पैदा करता था और जिससे बचने के लिए पेंदी में मिट्टी का लेप लगा दिया जाता था तो हमारी माँ ने उस कुकर बहुरानी को नीचे से मिटटी का बॉटम पैक लगा कर पहली बार उसमें खीर बनाने की कोशिश की जो सीटी लग कर बाइज्जत फट फटा गया फिर बिना ढक्कन लगाए ही खीर बना कर बहुरानी की बोहनी की गयी।
अब पड़ोस की सुनिए , एक आँटी रात के लगभग आठ बजे कूकर लिए हुए घर पहुंची और बताया की बहू का ढक्कन ही बहार आने को तैयार नहीं है [कुक्कर का ढक्कन एक विशेष स्थान पर ही पहुँच कर खुल पाता है ] सो उन्हें वहीँ क्रैश कोर्स करवाया गया। मेरी दीदी जिन्होंने हॉन्किंस का वो निर्देश और उसमें दी गयी रेसिपी वाली पुस्तिका को पूरा पढ़ डाला था सो उन्हें पता चल गया था कि इसे संचालित कैसे करना है।
अगले दिन कोई बिना रबर चढ़ाए खाना बनाने की असफल कोशिश तो कोई अचानक से तेज़ सीटी की आवाज़ से चीत्कार मार उठने के किस्से सुनाने आता जाता रहा। बहुत समय बाद अनुज भी अपने साथियों के साथ ऐसे ही ढक्कन निकालने की अथक कोशिश करने के बाद पड़ोस से कसी को बुला कर लाया और उन्होंने उसे दिखा कर समझाया की कैसे खोला जाता है कुकर का ढक्कन।
इसके कुछ बरसों बाद गैस चूल्हे का भी अपना स्वैग आया और ये वो समय था जब चेतक स्कूटर और गैस कनेक्शन के लिए सालों पहले नंबर लगाया जाता था और जब वो डिलीवर होता था तो आसपास से अलग विशेष स्टेटस वाली फील अपने आप आ जाती थी। हम गैस का उपयोग करते आ रहे थे , लेकिन हमारे यहां पड़ोस में रह रहे एक अंकल जी के यहॉं गैस चूल्हा पहली बार आया। मैं तब मैट्रिक में था ,उन्होंने मुझे उसे संस्थापित करने में मदद करने के लिए बुलाया जो मैंने बड़ी आसानी से कर लिया।
बस फिर क्या था ,मुझे याद है की उसके बाद उन अंकल की मित्र मंडली में आए कम से कम दर्जन भर से अधिक गैस चूल्हों को एसेम्बल करने के लिए वे मुझे अपने स्कूटर पर पीछे बिठा कर ले जाते और उधर बर्नर नीला होता और इधर घरवाले हमें रसगुल्ले की मिठास से गीला कर रहे होते। शुरू शुरू में मुझे थोड़ी शर्म और झिझक भी होती थी मगर चूल्हे जलने के बाद पूरे घर के लोगों के चहरे पर आई वो ख़ुशी की चमक धीरे धीरे मेरी सारी झिझक ख़त्म करती चली गयी।
हाय रे , वो दिन और उन दिनों की बात , तो जैसा कि मैं कहता हूँ #येउनदिनोंकीबातथी