शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

ये उन दिनों की बात थी







#येउनदिनोंकीबातथी 

जैसा की मैं पहले भी बहुत बार कह चुका हूँ कि  हम और हमारी उम्र के तमाम लोग कई मायने में बहुत ही अलहदा रहे हैं ।  ये वो दौर था शायद 83 -84 का साल था , टीवी फ्रिज के बाद प्रेशर कुकर लोगों के घर में पहुँचने लगा था।  पिताजी की पोस्टिंग उन दिनों पूना के cardiac theoretic center में थी। और हम सब वहीँ थोड़ी दूर स्थित फ़ौजी क्वार्टस में रहा करते थे। तो प्रेशर कुकर के आने से पहले ही किचन में उसका इंतज़ार किसी नई बहू के आने की तरह किया जा रहा था।  फ़ौजी कैंटीन में जिस दिन कुकर उपलब्ध हुआ उसी दिन एक साथ हमारी उस फ़ौजी कॉलोनी में बीस बाईस प्रेशर कुकर बहूरानी पधारी थीं।  

हॉकिन्स का वो प्रेशर कुकर उन दिनों हर किचन का शो स्टॉपर हुआ करता था। लेकिन पहले दिन और सबसे पहली बार उसका उपयोग करने के ऐसे ऐसे किस्से अगले कई दिनों तक मम्मियों आंटियो की शाम की गेट सभा [जिसमे सभी अपने अपने गेट पर खड़े होकर दुनिया भर की सारी बातें कर लिया करती थीं ] में सुने सुनाए गए जिन्होंने इतिहास रच दिया।  

मुझे याद है कि उन दिनों केरोसिन स्टोव का प्रयोग होता था जो बर्तन की पेंदी को काला कर दिया जाता था जो बाद में बर्तन साफ करने के दौरान खासी मुसीबत पैदा करता था और जिससे बचने के लिए पेंदी में मिट्टी का लेप लगा दिया जाता था तो हमारी माँ ने उस कुकर बहुरानी को नीचे से मिटटी का बॉटम पैक लगा कर पहली बार उसमें खीर बनाने की कोशिश की जो सीटी लग कर बाइज्जत फट फटा गया फिर बिना ढक्कन लगाए ही खीर बना कर बहुरानी की बोहनी की गयी।  

अब पड़ोस की सुनिए , एक आँटी रात के लगभग आठ बजे कूकर लिए हुए घर पहुंची और बताया की बहू का ढक्कन ही बहार आने को तैयार नहीं है [कुक्कर  का ढक्कन एक विशेष स्थान पर ही पहुँच कर खुल पाता है ] सो उन्हें वहीँ क्रैश कोर्स करवाया गया।  मेरी दीदी जिन्होंने हॉन्किंस का वो निर्देश और उसमें दी गयी रेसिपी वाली पुस्तिका को पूरा पढ़ डाला था सो उन्हें पता चल गया था कि इसे संचालित कैसे करना है।  

अगले दिन कोई बिना रबर चढ़ाए खाना बनाने की असफल कोशिश तो कोई अचानक से तेज़ सीटी की आवाज़ से चीत्कार मार उठने के किस्से सुनाने आता जाता रहा।  बहुत समय बाद अनुज भी अपने साथियों के साथ ऐसे ही ढक्कन निकालने की अथक कोशिश करने के बाद पड़ोस से कसी को बुला कर लाया और उन्होंने उसे दिखा कर समझाया की कैसे खोला जाता है कुकर का ढक्कन।  



इसके कुछ बरसों बाद गैस चूल्हे का भी अपना स्वैग आया और ये वो समय था जब चेतक स्कूटर और गैस कनेक्शन के लिए सालों पहले नंबर लगाया जाता था और जब वो डिलीवर होता था तो आसपास से अलग विशेष स्टेटस वाली फील अपने आप आ जाती थी।  हम गैस का उपयोग करते आ रहे थे , लेकिन हमारे यहां पड़ोस में रह रहे एक अंकल जी के यहॉं गैस चूल्हा पहली बार आया।  मैं तब मैट्रिक में था ,उन्होंने मुझे   उसे संस्थापित करने में मदद करने के लिए बुलाया जो मैंने बड़ी आसानी से कर लिया।  

बस फिर क्या था ,मुझे याद है की उसके बाद उन अंकल की मित्र मंडली में आए कम से कम दर्जन भर से अधिक गैस चूल्हों को एसेम्बल करने के लिए वे मुझे अपने स्कूटर पर पीछे बिठा कर ले जाते और उधर बर्नर नीला होता और इधर घरवाले हमें रसगुल्ले की मिठास से गीला कर रहे होते।  शुरू शुरू में मुझे थोड़ी शर्म और झिझक भी होती थी मगर चूल्हे जलने के बाद पूरे घर के लोगों के चहरे पर आई वो ख़ुशी की चमक धीरे धीरे मेरी सारी झिझक ख़त्म करती चली गयी।  



हाय रे , वो दिन और उन दिनों की बात , तो जैसा कि मैं कहता हूँ #येउनदिनोंकीबातथी 


मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

ये उन दिनों की बात थी





#येउनदिनोंकीबातथी 

​वो वर्ष शायद 96 -97 के आसपास का रहा होगा।  मुझे ये तो याद नहीं कि अपनी किस प्रतियोगी परीक्षा को देने के दौरान मैं कोलकाता अपने चचेरे भैया चुन्नू भईया के यहां पर ठहरा हुआ था।  उन दिनों जैसा कि अक्सर सफर में ​आते जाते रुकते चलते हो जाया करता था हम टूथ ब्रश ,शेविंग किट आदि भूल जाया करते थे और फिर हर नई जगह पर पहुँच कर उन्हें खरीद कर फिर वहीं भूल कर आगे निकल जाते थे।  

अब तो लगातार सफर करने के अनुभव ने जाने क्या क्या सिखा समझा दिया तो सफर के सामना में टॉर्च ,रस्सी ,दवाई के साथ साथ सब कुछ वाईन्ड अप करने के बाद सामानों को क्रॉस चैक करने की आदत बाय डिफ़ॉल्ट सी हो गयी है। 

तो उन दिनों कोलकता में परीक्षा देने के बाद कोलकाता से मेरी वापसी हो गयी। थोड़े दिनों बाद भाभी का फोन आया तो उन्होंने इस बीच वहां घटा बड़ा ही मजेदार वाकया सुनाया। हुआ ये की चुन्नू भईया के बड़े साले साहब किशुन जी भी उन्हीं दिनों किसी काम से कोलकाता गए हुए थे। उन्होंने एक दिन अचानक जल्दबाजी में या बिना देखे हुए भूलवश जब ब्रश करके बाहर निकले तो हमारे भाभी यानी अपनी बहन श्री से कहा ये भोला अपना जो टूथपेस्ट भूल गया था उसमे झाग तो बहुत बढ़िया आता है मगर स्वाद एकदम बकवास है इसका। भाभी ने जोरदार ठहाका लगा कर उन्हें कहा कि अपने ध्यान से नहीं देखा वो शेविंग पेस्ट था टूथ पेस्ट नहीं।  जब वो ये बात मुझे फोन पर बता रहीं थीं तो मैं ये दृश्य कल्पना करके ही पेट पकड़ कर हँसते हँसते लोट पोट हो गया था। 

ऐसे ही एक बार ,नौकरी लगने के कुछ दिनों बाद मेरा गाँव जाना हुआ ,वो शायद काली पूजा का समय था और गाँव में बहुत सारे मेहमान रिश्तेदार आदि भी हमेशा की तरह आए हुए थे।  मैं स्नान के लिए लिरिल साबुन का प्रयोग किया करता था जिसकी नीम्बू युक्त मादक गंध बहुत समय तक न सिर्फ देह को बल्कि चापाकल के आसपास के स्थान को भी गमकाए रखती थी।  मेरे एक काकाजी अक्सर नहाने के बाद पूछते थे भोला ये तेरा साबुन बहुत खुशबू मारता है। मैं मुस्कुरा कर रह जाता था। 


  एक दिन मेरे स्नान करने के तुरंत बाद वे स्नान करने उसी चापाकल पर आए।  थोड़ी देर बाद स्नान करके मुझे साबुन दानी पकड़ाते हुए कहा कि भोला आज तेरे साबुन से मैं भी नया लिया। खुशबू  तो अलग थी मगर झाग से पूरा बदन भर गया। स्नान का तो आनंद आ गया। 

अब हैरान होने की बारी मेरी थी क्यूंकि मुझे याद था कि स्नान वाला साबुन तो मैं अपने तौलिये और लोटे के साथ ही उठा लाया था अपने कमरे में। मैंने साबुन दानी खोल कर देखी। उसमें उन दिनों नया नया चला वो खुशबू और झाग से कपड़ों को भर देने वाला एरियल या रिन जैसा कोई नीला साबुन था।  अब मैं समझ गया था कि उसमें से झाग और खुशबू इतनी भरपूर क्यों आई।  मगर मैंने काका जी की चेहरे की ख़ुशी और मासूमियत के कारण बिना उन्हें कुछ कहे बस मुस्कुरा कर रह गया।  

आह वो दिन ,और उन दिनों के वो मासूम किस्से 

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

थोड़ा और जीना है ,मुझे





मैंने अपने निजी जीवन में इतने उतार चढ़ाव देखे हैं जो विरले लोगों की किस्मत में ही होते हैं , बेहद ख़राब से खराब समय और बहुत ही शानदार से भी कहीं अधिक शानदार दिन।  इसलिए मैं दोस्तों से बात करते समय अक्सर एक बात कहता हूँ की मेरी उम्र यदि 47 वर्ष की है तो मेरा अनुभव 94 वर्षों का है।  

इन सबने मुझे एक बात सिखा दी कि ,नकारात्मकता और निराशा से कहीं अच्छा है कि सकारात्मक रहने की भरसक कोशिश की जाए। आखिर हूँ तो इंसान ही और बहुत बार अपने इस प्रयास में थोड़ा सा असफल भी रहता हूँ मगर फिर अगले ही क्षण मेरी ज़िद मेरा जुनून दुबारा मुझे उसी तेवर ,उसी रफ़्तार में लाकर रख देती है और मेरा सफर निर्बाध निरन्तर चल पड़ता है।  यूँ भी ज़िंदगी में मुझे सफर से ज्यादा कुछ भी और पसंद नहीं शायद इसलिए भी उस वक्त मैं हर समय धरती ,ज़मीन ,पेड़ रास्तों के करीब होता हूँ। 

इस देशबन्दी के बहुत से अप्रत्यक्ष प्रभावों में से एक प्रभाव मुझ पर ये पड़ा की दशकों से संवाद और संपर्क से छूटे छोड़े गए मित्रों ,बंधू बांधवों को तलाश तलाश कर उनके संपर्क सूत्र निकाल कर वीडिओ कॉल और फोन वल्ल के माध्यम से उनसे बात की अपना समाचार दिया उनका हाल जाना।  दीदियाँ ,मासियां ,सहेलियाँ भी , मामा ,चाचा ,दोस्त , क्लास मेट ,बैच मेट ,बहुत पुराने साथी ब्लॉगर सबसे रोज़ाना बात करते करते ही घंटो कैसे बीत रहे हैं इसका मुझे अंदाज़ा ही नहीं होता।

बेहद भावुक इंसान हूँ सो आवाज़ में थरथराहट और आँखों से आँसू कब बेसाख्ता निकल जाते हैं मुझे पता ही नहीं चलता और मैं भी उन्हें नहीं रोकता बरसों के बाँध टूट रहे हैं तो उन्हें टूटने देता हूँ।  साथ ही सबसे वादा भी करता जा रहा हूँ कि इन सबसे उबरने के बाद यदि जीवन रहा तो निश्चित रूप से सबसे ,हाँ सभी से मुलाकात करूंगा।  किसी के गले लगना है ,किसी के गोद में सर रख कर खूब रोना है ,किसी के पाँव पर माथा रख कर सुकून महसूस करना है।  मेरे भीतर मौजूद हर रोम छिद्र में से जो स्नेह ,जो मुहब्बत जाने कबसे बँधी हुई है वो सब लुटा देनी है और खुद भी लुट जाना है।  आसपास में रह रहे और बहुत दूर दूर रह रहे सबसे एक बार हुलस कर ,उन्हें भींच कर सराबोर हो जाना है।  उदयपुर ,भिलाई ,पटना ,मधुबनी ,दरभंगा कोलकाता ,जोधपुर ,जयपुर , फरीदाबाद, जनकपुर  ,नोएडा सब जगह उड़ उड़ कर जाना है।  थोड़ा और जीना है  ..........


गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

उदयपुर : हिन्दुस्तान का सबसे खूबसूरत शहर




उदयपुर राजस्थान के पश्चिमी छोर पर और गुजरात से बिलकुल सटा हुए न सिर्फ देश का सबसे खूबसूरत बल्कि विश्व का तीसरा सबसे स्वच्छ शहर है।  मेरी बहन का निवास स्थान होने के कारण मुझे न सिर्फ उस शहर को एक पर्यटक बल्कि एक नागरिक के रूप में भी समझने का अवसर मिला।  एक ही वर्ष में कार ,रेल ,बस द्वारा मैंने सपरिवार अनेक यात्राएं की और हर बार नए अनुभव नए स्थान जान देख कर चित्त प्रसन्न हो जाता है।  इस शहर की सामाजिक और भौगोलिक खूबसूरती के अतिरिक्त यहां के पावन धार्मिक स्थलों का अनुपम अद्वितीय सौंदर्य किसी को भी मोहित कर सकता है और मुझ जैसी प्रकृति प्रेमी को तो ये इतना भा गया है कि मैंने निश्चय किया है कि सेवा अवकाश के पश्चात इसी शहर को अपना स्थाई निवास स्थान बनाऊंगा। अब से लेकर आगे कई पोस्टों तक मैं आपको वो दिखाऊंगा और समझाऊंगा जो मैंने इस शहर के बारे में अनुभव किया।  इसकी शुरुआत इन खूबसूरत तस्वीरों से करते हैं। 
















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