बुधवार, 10 मार्च 2010

तो फ़िर हो जाने दो ब्लोग्गिंग को उन्मुक्त और निरंकुश ...




पिछ्ले कुछ दिनों बहुत से मुद्दों और तथाकथित विमर्शों पर जिस तरह की खींचतान , परोक्ष प्रत्यक्ष आरोप प्रत्यारोप , आक्रोश, खिन्नता , और भी जितने विशेषण होते होंगे सभी एक साथ देखने पढने को मिले । और जैसा कि अपेक्षित ही था कि एक बार फ़िर से धुरियां बनी या शायद टूटीं भी , सब कुछ देख और पढ रहा था ऐसे ही जैसे कि मेरे अन्य साथी बंधु भी पढ रहे हैं । मुझे नहीं पता कि तटस्थ रहने वालों का अपराध कहां लिखा जाता है ..लिखा जाता भी है या नहीं , और आखिर लिखता कौन है । फ़िर सबसे बडा प्रश्न ये था कि रास्ते में चलते हुए यदि किसी जगह पर आकर दो रास्ते मिलते हैं और कहीं न कहीं मन इस बात की गवाही दे कि किंचित ही दोनों रास्ते ऐसे हैं जिनपर चल कर ..या कि उन पर आगे चलने वालों के पीछे चलकर भी कुछ हासिल होने वाला तो कतई नहीं है ..तो ऐसे में एक मुसाफ़िर क्या करे ...क्या फ़िर भी चलना जरूरी है , क्या फ़िर भी उन्हीं दोनों रास्तों पर चलना जरूरी है ...या रुक जाना ठीक होगा ....या वापस लौट जाया जाए । दोनों ही रास्तों का तर्क है कि ....दोनों ही रास्ते जरूरी हैं और बिल्कुल सही भी । मगर मुसाफ़िर यदि दोनों ही रास्ते पर न जाना चाहे तो ........? कमोबेश मुझे अपनी स्थिति कुछ कुछ उसी मुसाफ़िर जैसी ही लगी ....एक बार को मन किया कि दोनों ही रास्तों पर चल कर देखा जाए ..दोनों को कहा जाए कि चलो चलते हैं उसी मोड पर जहां से ये रास्ते अलग होने शुरू हुए ...फ़िर लगा कि क्यों भाई किसके लिए ...और किन्हें कहा जाए ।

बहुत पहले से ये बात समझता आ रहा था कि जिस तरह का माहौल बनता जा रहा है ...ये नहीं कहूंगा कि बनाया जा रहा है क्योंकि जो भी बन या बनाया जा रहा है वो सिर्फ़ ब्लोग्गर्स की भागीदारी या शायद उदासीनता के कारण ही है ..उसमें अब बहुत जरूरी हो गया है कि ब्लोग्गिंग को उन्मुक्त किया जाए ...सारे रिश्ते नाते ..जो जाने बने कि नहीं बने ...उन्हें ब्लोग्गर डाट काम से बाहर छोड कर ..और्कुट या फ़ेसबुक पर ही निपटाया जाए ......अब थोडा अजनबी बना जाए ..थोडा निर्दयी हुआ जाए ...थोडा निरंकुश हुआ जाए । इसे कोई भडास निकलना माने तो मानता रहे ...कोई दिमाग का सटकना माने तो मानता रहे ...और कोई अब कुछ भी मानता रहे ....। अब तो ब्लोग्गिंग को ब्लोग्गिंग ही मानने समझने और ब्लोग्गिंग ही करने का समय आ गया है ....जिन्हें लगता है कि भाई भतीजावाद चल रहा है ..शायद मुंह देख बडाई ...और थोबडा देख तुडाई चल रही है ...उनके लिए यही उपयुक्त समय है ...तो मित्रों शुरू हो जाओ ..खुले सांड की तरह .विचरो इस आभासी जगत में ....इतने तो अजनबी बन ही जाओ कि कल को अफ़सोस न रहे कि कभी किसी से कोई रिश्ता बनाया था ..किसी को शाबासी दी थी ...या इतने कि किसी को खूब जी भर के कोसा था गालियां दी थीं ....और ऐसे में इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है कि खुल्लम खुल्ला कोई भी किसी पर भर भर के गालियां निकाल सकता है ...प्यार, स्नेह, आशीष , शाबासी नहीं ...सुना है कि इससे रिश्ते कायम हो जाया करते हैं जो आगे जाकर ब्लोग्गिंग में बहुत बाधा पहुंचाते हैं ।

यहां ये स्पष्ट कर दूं कि किसी विशेष से मेरी कोई अदावत नहीं है न ही अब तक किसी से ऐसी गलबहियाई हुई है कि आंखे मूंद कर नाचता फ़िरूं उसके सुर ताल पर । ये भी है कि ब्लोग्गिंग का मैं अकेला ही कोई चौकीदार भी नहीं हूं कि जब मन आए जो आए कहता फ़िरूं ....मगर अब तो सचमुच ही लगता है कि कुछ बंदिशों को कुछ लिहाजों को और कुछ बने नहीं बने रिश्तों की परिधि से बाहर आ जाया जाए और मुंह को भाड की तरक खुला रखा जाए ...जहां जो मन किया बक दिए ....आखिर ब्लोग्गिंग है जी ..। और आने वाले समय में शायद हरेक ब्लोग्गर यही कुछ करने वाला है ...हो भी क्यों न ....यहां सब ब्लोग्गिंग ही तो करने आए हैं ...मन क्षुब्ध है इसलिए आज मैं भी जाने क्या क्या बक गया हूं .....॥

29 टिप्‍पणियां:

  1. ajay
    aap agar akrosh mae sach likh saktey haen to akrosh mae hi rahaa karey . yuva peedhi kaa aakrosh bahut badlaav laa saktaa jo net working sae sambhav nahin haen

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  2. अरे भाई मस्त मौला बनिए बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेही
    ये सब तो आपकी एकाग्रता भंग करने के प्रयोजन है कहे की चिंता ....

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  3. रचना जी ,
    सच को लिखने कहने के लिए सिर्फ़ आक्रोश की जरूरत नहीं होती ...हां मगर अक्सर गुस्से में लोग सच बोलते कहते पाए जाते हैं ...युवा पीढी का आक्रोश...उनकी सोच..उनका प्रयास सच में ही बदलाव ला सकता है ...और रही नेटवर्किंग की बात ..तो मेरे ख्याल से तो सभी ब्लोग्स का ब्लोगवाणी चिट्ठाजगत पर एक साथ दिखना भी नेटवर्किंग है ...फ़ौलोवर्स भी नेटवर्किंग का हिस्सा हैं ...हां यदि सिर्फ़ पोस्ट पढने और टीपने के लिए नेटवर्किंग करने की तरफ़ ईशारा है आपका तो वो निश्चित ही ठीक नहीं है ....

    अजय कुमार झा

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  4. एक उपदेश तो मिल गया -अब मुझे भी भाड़ खोलना है क्या ?

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  5. मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया..
    हर ग़म को धुएं में उडाता चला गया...

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  6. इतने तो अजनबी बन ही जाओ कि कल को अफ़सोस न रहे कि कभी किसी से कोई रिश्ता बनाया था ..किसी को शाबासी दी थी ...या इतने कि किसी को खूब जी भर के कोसा था गालियां दी थीं ....

    bahut accha likha hai aapne..
    dhanyawaad..

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  7. मस्त मोला तो हम शुरु से ही बने है, लेकिन कुछ खास नाम है जिन्हे मस्त मोला भी नही भुल सकता, इस लिये हम उधर जाते ही नही, आप ने बहुत सुंदर लिखा, ओर सही

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  8. अजय जी,
    वैसे गुस्से मे लोग प्रलाप करते भी पाए जाते हैं ;) लेकिन आपके गुस्से मेकुछ अच्छा ही निकला है !! यह सच है कि हिन्दी ब्लॉगिंग में मेरी-तेरी चौपाल वाला भाव अधिक हो गया है और अक्सर लिखनेका मन होता है कि ...चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ ......!

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  9. तटस्थ रहने वालों का अपराध कहां लिखा जाता है ..लिखा जाता भी है या नहीं


    -इस तरह का अपराध बोध पालना भी अपराध ही है.

    बेहतरीन विचारणीय तथ्य!

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  10. "हमे तो फोटो पसन्द आया".

    वाकी जब तक युवा हो गुस्सा कर लो. फिर तुम भी युवा आक्रोश को स्वर देने के बदले हवा देने लगोगे.

    वैसे हमे व्यापक अर्थो मे नेटवर्किन्ग अच्छी ही लगती है और निर्गुट भी कालान्तर मे एक गुट बन जाता है. सच कहना आग से खेलना है और ध्यान रहे जिसे तुम सच कह रहे हो वो सिर्फ़ और तुम्हारा अपना सच है उसे सार्वभौम सच बनाने के लिये कोई आसान रास्ता नही होता.

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  11. क्या हो गया, क्यों इतना छुब्ध हैं। अच्छा लिखिये अच्छा पढ़िये। कोई क्या करता है उसे छोड़िये।

    यह जरूरी नहीं कि सब आपके नझ़रिये से सहमत हों। इसे भी स्वीकर करिये।

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  12. भैया जी जो जैसे है बस चलाने दीजिए...कुछ बातें नज़रअंदाज भी की जाती है..ऐसी बातों को जाने दीजिए ..

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  13. बधाई हो अजय भाई, दिल्ली में बोधिवृक्ष कहाँ है मुझे भी बताईयेगा, मैं भी उसके नीचे बैठकर (अपने) ज्ञानचक्षु खोलने की कोशिश करूंगा… :) रही भाड़ की बात, तो वह तो मेरी पहले से खुली हुई है, और अब तक दो-चार लोगों को उसके चटके-फ़टके लग चुके हैं… :) :)
    बढ़िया लिखा है आपने… ये वाले तेवर अच्छे लगते हैं अपन को… :)

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  14. आपने चाहे जिस मूड मे लिखा हो पर काफ़ी मननशील पोस्ट है.

    रामराम.

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  15. अजय भाई,
    आप अब खुली नज़र से नहीं बस अब बंद आंख करके देखिए तमाशा ब्लॉगिंग का...पहले मुझे भी कुंठा होती थी ये सब देखकर, लेकिन अब नहीं होती...जैसा है, वैसा है के साथ ही जीना सीखना होगा...दरअसल, ब्लॉगिंग की सारी समस्या मैं से शुरू होती है और मैं पर ही खत्म हो जाती है...हम ब्लॉग बनाते हैं, अपने मानसिक सुख के लिए...और हर पोस्ट भी ऐसी लिखते हैं जिसमें मैं ही केंद्रित हो जाता है...और इस मैं के आगे हमें और किसी का तर्क कहीं स्टैंड होता ही नज़र नहीं आता...खाता न बही, जो मैं कहूं, वही सही...एक बात और हम सब को एक ही चाबुक से हांकना शुरू कर देते हैं...नारी पर लिखेंगे तो सभी नारियां एक ही प्लेटफॉर्म पर...अरे भई अपवाद हर जगह होते हैं, पुरुषों में भी होते हैं...फिर मान लीजिए एक नारी दंभी है तो सारी नारियों को ही वैसा क्यों मान लिया जाए...ब्लॉगवुड में मातृशक्ति का एक भी उदाहरण मुझे ऐसा दे दीजिए जो कपड़ों के खुलेपन की वकालत करती हो...हां दिमाग के खुलेपन की कोई बात करता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए...अब देश की आधी आबादी का बहुत बहुत कम उंगलियों पर गिनाया जाने वाला हिस्सा शरीर को ढकने वाली कम और खुला रखने वाली ड्रैस पहनती हैं तो उन्हें आगे कर पूरी मातृशक्ति का अपमान किया जाए, तालिबानी फरमान दिए जाएं, कम से कम मैं तो कभी जीते-जी इस सोच की हिमायत नहीं करूंगा...और आप भी...

    जय हिंद...

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  16. रजय जी अब थूकिये गुस्सा और खुशदीप की बात पर गौर करें। मस्त रहें-- सब की सुनें और अपनी कहें । कहानी खत्म ।बहुत बहुत शुभकामनायें

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  17. एक सामयिक, मननयोग्य लेख

    मुंह देख बडाई ...और थोबडा देख तुडाई
    तो हो ही रही है

    फिर भी लगता है
    निर्दयी और निरंकुश
    नहीं हुआ जाएगा

    आगे तो वक्त ही बताएगा

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  18. सुनिए सब की और करिये आपने मन की,क्यों की जब अच्छी सोच है तो अच्छा ही करेंगे

    विकास पाण्डेय
    www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

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  19. vaise badi azeeb bat hai ke khullam gali dene valo ko aap bhai bandhu bana kar rakhte hai .jo log aurto ko gali dete hai ,khule aam unka apman karte hai aap vahan jakar tali bajate hai .
    mai aapki pichli poste dekh rahi thi kam se kam bees pachhis bar aapne bloging me galat chal rahe ka rona roya hai par ek bhi bar un logo ke khilaf kuch nahi bola hai jo galat kar rahe hai .
    mai ek baat kahti hun aap ko kyu pareshani hoti hai bloging me chal rahi gandgi se.
    dekhte hai aage aap kitna sath dete hai sahi aor galat ka?

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  20. 'असहमत हूँ' यह कहने लायक स्थिति तो होनी ही चाहिए। यदि जो ठीक न लगे उस लेखन के लिए भी ऐसा न कह सकें तो ऐसी मित्रता का क्या लाभ?
    'सहमत हूँ' यह कहने लायक स्थिति भी रहनी चाहिए। ऐसी भी क्या शत्रुता कि सही को सही न कह सकें?
    घुघूती बासूती

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  21. मैंनें कभी लिखा था कि अभिव्यक्ति के इस माध्यम को ऑर्कुटीय सँदर्भों से उबरना होगा ...

    कोई भी यहाँ रिश्ते बनाने का मोह पाले हुये है, तो वह ग़फ़लत में है । रिश्तों की पहचान ज़नाज़े के जुलूस में हुआ करती है, न कि टिप्पणी बक्सों की वाह वाहियों में..

    यहाँ तक मैं अजय से सहमत होते हुये खुशदीप का भी समर्थन कर सकता हूँ ।

    पर.. तटस्थ बने रहना एक नैतिक अपराध से अधिक कुछ और नहीं है । इसे कौन लिखता है...
    यदि आप इस तटस्थता को परख पाने योग्य सँवेदी हैं, तो..
    इसकी इबारत एकाँत क्षणों के मन के कचोट में दफ़न होगी, एक बार उधेड़ कर तो देखिये !

    इस बिन्दु पर मेरा समीर लाल से असहमत होना दर्ज़ किया जाये ।

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  22. ब्‍लागिंग का नशा सर चढ़कर बोल रहा था, इस कारण अपनी अधूरी पुस्‍तक पूरी नहीं हो पा रही थी। कल प्रकाशक का फोन आया लगा कि समय पर फोन आया है। कल से ही मन कुंद है, सभी ने अपने विचार लिखे लेकिन पता नहीं क्‍यों लोगों ने व्‍यक्तिगत ले लिए। हम अपना पक्ष मनवाने के लिए क्‍यों अड़ जाते हैं। इस दुनिया की जनसंख्‍या 6 अरब है तो हमारी विचार भी भिन्‍न ही होंगे ना? क्‍या हम चूजे हैं जो एक से हों। आपसी क्‍लेश मुझे समझ नहीं आ रहा। लेकिन उसका यह फायदा हुआ कि मैं आज से ही अपनी अधूरी पुस्‍तक को पूरा करने में लग गयी हूँ। आपने विचारवान पोस्‍ट दी है, सभी यदि विचार करेंगे तो गुस्‍सा थूक देंगे। अभी होली गयी है और हम लड़ने लगे। शायद आपकी पोस्‍ट कुछ काम कर जाए, इसी विश्‍वास के साथ लिख रही हूँ। मुझे दुख इस बात का भी है कि मैंने बहुत ही अच्‍छी पोस्‍ट लिखी थी लेकिन आपसी गुस्‍से के कारण लोग उस पोस्‍ट पर आए ही नहीं बस आपस में झगड़ा ही करते रहे।

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  23. क्या कहा आपने अजय भईया , एक दम सही , पूर्णतया सहमत हूँ आपसे ।

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  24. तरन्नुम जी ,
    वैसे तो मुझे आप जैसे बेनामी प्रोफ़ाईल धारियों की किसी भी बात का जवाब देना सिर्फ़ अपना समय नष्ट करना ही लगता है , और इसका एक बहुत सुंदर उपाय भी है मेरे पास पर चूंकि आपने कोई अभद्र बात नहीं कही है और हो सकता है कि आप अपने नज़रिये से ठीक भी हों ..मगर यदि ऐसा ही है तो फ़िर तो मैंने क्या कहां लिखा किसका कब विरोध समर्थन किया इसके लिए तो आपको सिर्फ़ पिछली पच्चीस पोस्ट नहीं ढाई साल में लिखी लगभग हजार पोस्ट को पहले देखना होगा ,.,,,और उनसे भी ज्यादा टिप्पणियों को भी ...मगर काबिले गौर तो ये है कि ये जो जगह जगह महज़ चंद पंक्तियों की भाषणनुमा टिप्पणी कर जाती हैं और अपने ब्लोग पर मात्र आज तक की एक पोस्ट टांग कर आंखें मूंदे बैठी हैं ..उसका क्या ...मुझे कोई हक नहीं कि आपसे पूंछू ..भई आखिर ब्लोग्गिंग है ...और यही तो कह रहा हूं कि ..निरंकुश और उन्मुक्त भी ...हां कौन माई का लाल खुल्लम खुल्ला गाली दे रहा है और कहां दे रहा बताने की कृपा करें ...मगर खुल्लम खुल्ला देने वाला भी खुल्लम खुल्ला ही हो नकली प्रोफ़ाईल धारी नहीं ...यकीन मानिए ...सायबर कानून इतना भी अंजाना नहीं है अब ...परिणाम दुनिया देख सकती है ...बताईये तो सही ...और हां रही बात कि मुझे क्या परेशानी होती है हिंदी ब्लोग्गिंग में फ़ैल रही , (गंदगी ) ..गंदगी तो नहीं कहूंगा ..क्योंकि गंदगी भी फ़ैली हुई है नेट पर ..कहने बताने की जरूरत नहीं है शायद ....लेकिन ब्लोग्गर होने के नाते यदि इस से जुड कर गर्व अनुभव करने का हक है मुझे तो फ़िर चिंता करने का अधिकार भी है ...एक आपकी तरह एक लाईन की पोस्ट टांग कर ..सिर्फ़ टीपने वाली ब्लोग्गिंग तो नहीं कर पाया न आज तक ...कर पाता तो ..तो बात ही क्या थी ...

    अजय कुमार झा

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  25. अजी उन्मुक्त हो कर लिखीये. मान लिजीये हम आपको नहीं जानते. खरी खरी न लिख सके तो ब्लॉगिंग क्या?

    मुक्त मन से लिखी पोस्ट ही पढ़ने में आनन्द आता है.

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  26. मस्त रहिये व्यस्त रहिये, लेकिन अस्त-व्यस्त मत रहिये...

    लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से..
    http://laddoospeaks.blogspot.com

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  27. इस चित्र के बाद भी कुछ कहने की ज़रूरत थी ?

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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