बुधवार, 12 मार्च 2008

हर आदमी कतार में है.

भीड़ से भरी ये दुनिया,
फ़िर भी है जल्दी में दुनिया,
बेचैनी सी छाई ,
संसार में है,
मैं क्यों रहूँ,
परेशान,
की जानता हूँ,
आज हर आदमी,
कतार में है॥

कोई खुशी -गम के,
कोई सुख-दुःख,
कोई लड़ रहा है,
जिंदगी से,
कोई मौत के,
इंतज़ार में है॥

कोई धारा के बीच,
कोई तूफानों में,
किसी को मिला,
मांझी का साथ,
किसी के सिर्फ़,
पतवार है हाथ,
सच है तो इतना,
हर कोई मंझधार में है॥

सबकी सीरत एक सी,
और सूरत पे,
अलग-अलग,
चढा हुआ नकाब है,
किसी एक की बात,
क्यों करें, जब,
पूरी कौम ही ख़राब है।
फर्क है तो ,
सिर्फ़ इतना कि,
कोई विपक्ष में है बैठा,
कोई सरकार में है॥

हर कोई आज किसी न किसी कतार में है , क्यों है न ?

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