शनिवार, 15 मार्च 2008

बाघ कम, कुत्ते jyaadaa (व्यंग्य)

कल अचानक मित्र चिंतामणि फ़िर एक बात पर चिंता करने लगे। उनका कहना है की जैसे ही उन्हें अपने पिताजी द्वारा रखे गए अपने नाम का मतलब पता चला बस उसी दिन से उन्होंने चिंता करने को ही अपना कर्म और धर्म मान लिया। टू अब पड़ोस वाली भाभी के खिड़की बन रहे टू चिंता, वामपंथी भड़क कर रूठ गए टू चिंता, दीपिका पदुकोन ने माही के बदले युवराज को चुना तो चिंता और अब बाघों की संख्या कम होने की ख़बर पर भी घोर चिंता। मैंने तो कई बार समझाया की चिंतामणि इतनी चिंता न किया करो की मरने के बाद lakdee की जरूरत न पड़े और चिंता के ढेर से तुम्हारी चिता सज जाए।

"यार बाघों की संख्या बहुत कम हो गए है बड़ी चिंता की बात है,"

" अमा , क्या चिता यार, तुमने कौन सा बाघों को पका कर खाना है की चिंता में दुबले हुए जा रहे हो , या की उसे घर में जंजीर से बाँध कर पालना है, बाघों का तो पता नहीं मगर इतना जरूर है की कुत्तों की संख्या में इन दिनों काफी इजाफा हुआ , जहाँ देखो , जहाँ सुनो कुत्ते ही कुत्ते हैं, घरों में । गलियों में, बसों में, दफ्तरों में भी।"

" हैं , क्या कह रहे हो, अबे बसों में, दफ्तरों में , मैंने तो नहीं देखे "

" तुम क्या देखोगे , तुम तो यार फोकट की चिंता में लगे रहते हो । जब भी बस में ज्यादा भीड़ होती है तो तुमने देखा होगा की अक्सर कोई कमसिन कन्या ,अचानक भड़क कर बोलती है , कुत्ता कहीं का , ठीक से खडा नहीं रह सकता, । ऐसे ही दफ्तरों में बॉस की झाड़ सुनने के बाद या फ़िर उसे किसी नयी सेक्रेटरी से बतियाते देख कर नस्ल पहचानते हुए उसके मातहत कहता हुए मिलेंगे , कुता कहीं का जहाँ देखो मुंह मारने लगता है। अमां संसद हो सड़क, सरकार हो या घरबार , दूकान हो या मकान सब jआगाह अलग अलग नस्ल और रंग रूप के कुत्ते मिल जायेंगे, समझे इसलिए बाघों की चिंता छोडो और इन कुत्तों पर कुछ शोध करो "

चिंतामणि जाते जाते बोला " यार tऊ भी न एकदम कुत्ती चीज़ है कहाँ की बात कहाँ ले गया''

3 टिप्‍पणियां:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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