बुधवार, 5 नवंबर 2008

गंगा का राष्ट्रीयकरण कोई हल नहीं.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने पता नहीं किन कारणों से गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया है। इसके साथ ही गंगा के पुनरुद्धार के लिए बहुत सी योजनायें और ढेर सारी राशि भी आवंटित की गयी है। गंगा के उद्धार और सफाई के लिए पहले से किए जा रहे सारे कार्यों , प्रयासों तथा इस फैसले से सिर्फ़ एक बड़ा अन्तर ये पडेगा की गंगा की सारी जिम्मेदारी अब केन्द्र सरकार उठाएगी। लेकिन सवाल ये है की इससे क्या और कितना फर्क पडेगा, क्योंकि अलग अलग ही सही अब तक करोड़ों, जी हाँ लाखों नहीं करोड़ों रुपये, दर्ज़नों योजनायें, और न जाने कितने संकल्प लिए गए । अन्तिम सत्य यही है की गंगा आज भी प्रदूषित है और दुःख की बात ये है की ये क्रम न सिर्फ़ जारी है बल्कि ज्यादा तेज है। और सबसे बड़ी विडंबना तो यही है , की सरकार और प्रशाशन की जिम्मेदारी, उनकी संवेदना की तो जाने दें, एक आम भारतीय को भी आज किसी गंगा , जमुना, कृष्ण, गोदावरी, या मिटटी , पेड़, हवा के प्रदूषण के प्रति जरा सी भी चिंता नहीं है। इसके बारे में सोचना या कुछ करना तो दूर उसे आज ये एहसास तक नहीं है की धीरे धीरे वो जो जहर वातावरण में घोल रहा है वो ख़ुद उसकी आनी वाली नस्लों को ही लील जायेगा। सबसे जरूरी है लोगों की मानसिकता में बदलाव लाना। इसके साथ ही जो भी इसे नुक्साब पहुंचाने में लगे हैं उनके साथ किसी अपराधी की तरह व्यवहार किया जाना चाहिए। ऐसा हो पायेगा लगता नहीं है।
सिर्फ़ राश्त्रियाकर्ण करने से एडी समस्या का हल हो जाते तो बात ही क्या थी। चाहे राष्ट्र भाषा हिन्दी की बात करें, या राष्ट्रीय खेल हॉकी की, राष्ट्रीय कह भर देने से या घोषणा कर देने से क्या बदल जाता है, ये बात किसी से छुपी नहीं है। और तो आए दिन हमारे राष्ट्रीय झंडे, राष्ट्रीय चिन्ह, राष्ट्रीय गान तक का अपमान होता रहता है, कभी हम ख़ुद करते हैं कभी दूसरे कर देते हैं। इस राष्ट्रीय कारन वाली बात से कहीं फ़िर ऐसा न हो की गंगा नहीं यमुना को, या गोदावरी को क्यों नहीं राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया, वैसे लगता तो नहीं है की ऐसा होना चाहिए , मगर आज कल कुछ भी हो सकता है। यदि इस घोषणा के बाद सरकार सचमुच गंभीर होकर गंगा के उद्धार के लिए प्रयास करे और लोगों को इसके प्रति संवेदनशील किया जाए तो शायद एक दिन हम भी टेम्स, और सीन, या नील नदी की तरह गंगा को अपने पुराने और शुध्ध रूप में पा सकें। गंगा सचमुच ही मैली हो गयी है हमारे पाप धोते धोते .

3 टिप्‍पणियां:

  1. कितने भी नियम क़ानून बने,योजनायें बने या अरबों खरबों रुपये बहाए जायें,जब तक नदी,भाषा और पर्यावरण को नष्ट करने वाले अरबों हाथ नही रुकेंगे,कुछ भी नही सम्हाला जा सकता.
    प्रकृति को प्रदूषित करने वाले असंख्य हाथों के आगे सरकार या संस्था के कुछ हाथ क्या कर लेंगे.

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  2. गंगा के नाम पर पहले वोट बटोरे थे राजीव गाँधी ने, अब उनकी पत्नी के लिए वोट बटोरने की कोशिश मनमोहन सिंह द्वारा की जायेगी.

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  3. aap dono kaa bahut bahut dhanyavaad, padhne aur saraahne ke liye, suresh bhai aapne bilkul anubhav kee baat kahee hai, dhanyavaad.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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