सोमवार, 10 नवंबर 2008

सड़कें हमें खा गयी या हम सड़कों को ? (परिवहन दिवस पर विशेष )

आज परिवहन दिवस है, ऐसा मैंने पढ़ा है , मुझे नहीं पता की इससे किसकी सेहत पर क्या फर्क पड़ा, ये भी नहीं की आज किसी को बस में दिक्कत हुई या नहीं, या कि, कोई ट्रैफिक जाम तो नहीं लगा, मगर चूँकि पढा था तो लग रहा था कि जरूर होगा। वैसे भी सिर्फ़ प्रेम दिवस (वैलेंताईं डे ) को छोड़ कर बांकी सभी दिवस तो महज खानापूर्ती ही बन कर रह गए हैं सो ज्यादा सोचा विचारा नहीं और लगे रहे। घर पहुंचे तो अजीब माजरा देखा।

एक पक्की काली, मोटी, मजबूत , सड़क मेरे आँगन में आकर खादी थी, पहले तो मैं समझा कि शायद पत्नी ख़ुद ये उनकी कोई मित्रानी होंगी, मगर पास पहुंचा तो देखा कि सड़क थी। मैंने सोचा शायद परिवहन दिवस मानाने के लिए इस बार कोई नया आयोजन किया जा रहा है, सो औपचारिकता वश मैंने पहले यही कहना ठीक समझा ,' मुबारक हो जी, परिवहन दिवस की बहुत बहुत बधाई।"

" चुप रहो, जले पर नमक मत छिड़को, कहे की मुबारकबाद, तुम लोगों ने हमारा जीना हराम कर दिया है। एक बात बताओ ये सड़कें तुमने क्यों बनाई हैं, विकास के लिए न, परिवहन के लिए न, तो ये कौन सा नया धंधा सीख लिए है, जब भी कोई बात होती है, या नहीं भी होती है, बीवी मारे, बिजली नहीं आ रही, पानी नहीं आ रहा, तुम्हारा नेता नहीं आ रहा, पिक्चर पसंद नहीं, आरक्षण चाहिए, अमा सब के विरोद के लिए तुम लोग सारे इक्केट्ठे होकर हम सड़कों की छाती पर ही मूंग डालने आ जाते हो , तुम्हें और कोई जगह नहीं मिलती।

मैंने देखा ये क्या , आज परिवहन दिवस है तो क्या , और मेहमान है तो क्या, या तो कतई नहीं हो सकता कि कोई घर घुस कर मेरी बेईज्जत्ति ख़राब करे ,बहार से और बात है, मैं भी भड़क गया।, " रहने दो, रहने दो, तुम्हे पता है तुमाहरी वजह से हमारी जिंदगी कितनी कम हो गयी है, लो सुनो , आंकडों के मुताबिक सिर्फ़ इसी शहर में हर महीने करीब ४२ करोड़ घंटे ट्रैफिक जाम में फंस कर लोग अपना समय बरबाद कर देते हैं। सोचो कि कितनो का तो जीवन ही बचारा तुम्हारे साथ मुंह काला करते बीत जाता है।

सड़क फ़िर भड़क गयी, इसके लिए भी तो तुम ही जिम्मेदार हो, मैं तो कहती हूँ कि हम तुम्हें नहीं बल्कि तुम हमें खा रहे हो। अब मेरे आंकडे सुनो, तुम्हारे इसी शहर में रोजाना १००० -१५०० नए वाहन मेरी छाती पर उतर रहे हैं, सड़कों की कुल लम्बाई में से ७५ प्रतिशत से भी ज्यादा पर हमेशा कोई न कोई वाहन रेंग ही रहा होता है .इतने पर भी तुम मर्दूदों को चैन नहीं , अपने छोटे बच्चों को और कई बार तो ख़ुद भी, कभी पीकर, तो कभी छुट्टे सांड बन कर एक दूसरे को टक्करें मार मार कर मेरे शरीर पर अपना गंदा खून बिखेरते हो। जो ये नहीं कर पाते, तो मुंह में न जाने कौन कौन सा जहर कचरा (पान - गुटखा )खा खा कर पूरे रास्ते पिच -पिच करते रहते हो।

अब बताओ काहे का परिवहन दिवस भाई, सोचो यदि रास्तों ने बगवात कर दी तो तुम मनुष्यों को मंजिल कहाँ मिलेगी, इसलिए अब भी समय है, हमारी क़द्र करना सीखो.

3 टिप्‍पणियां:

  1. सङक संग आत्मीयता,भारत का है भाव.
    जङ-चेतन में एक सा,रहता अपना चाव.
    रहता अपना चाव ,दर्द में सम्वेदित हम.
    भाषा गढ कर कर देते निवेदित भी हम.
    यह उत्तर है भौतिकता का, साधक कहता.
    भारत का है भाव,सभी संग आत्मीयता.

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  2. बेचारी सड़क के साथ पूरी सहानुभूति है ।
    घुघूती बासूती

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  3. saadhak jee, aapkee sundar abhivayktiyon se yukt tippnni ke liye dhanyavaad. ghughuti jee aapkaa aana , mere blog par , kisi aashirwaad se kam nahin hota mere liye, dhanyavaad.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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