रविवार, 15 मार्च 2020

उदयपुर ,माउंट आबू वाया रोड -आखिरी भाग








इस पूरी यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए आप  प्रथम ,द्वितीय ,तृतीय और चतुर्थ भाग को भी पढ़ देख सकते हैं | 

तो जैसा कि पिछली पोस्ट में मैं आपको बता चुका का था कि उदयपुर में बरसों से रह रहे अपने बहन और बहनोई के बताए अनुसार ही माउंट आबू के अगले दोनों दिनों का कार्यक्रम हमने तय किया था और जिसके अनुसार पहले दिन करीब बारह बजे घूमने का शुरू हुआ हमारा दिन सिर्फ नक्की झील ,हनीमून प्वाइंट और सनसेट प्वाइंट देख कर ख़त्म हुआ था और अब अगले दिन सुबह माउंट आबू के आखरी और सबसे ऊँचे छोर ,गुरु शिखर से शुरू करते हुए हमें वापसी में सारे दर्शनीय स्थल देखते हुए वापसी करनी थी | 

होटल बंजारा ,काफी पुराना बना हुआ एक औसत दर्ज़े का होटल था ,अच्छी बात सिर्फ इतनी थी कि ,होटल का खाना अच्छा था और पास के नक्की झील के बिलकुल करीब था | दिन भर की थकान के बावजूद और दिल्ली से माउंट आबू पहुँचने के बावजूद भी नराधम टेलीविजन ने वहाँ भी घुसपैठ मचा रखी थी और परिवार में टीवी के प्रति बिल्कुल परहेज़ रखने वाले मुझ एक अकेले प्राणी के लिए वहाँ ऐसे समय का प्रिय काम होता है दिन में खींची तस्वीरों को कई बार देखना। ....




सुबह आठ बजे तक हम सब नहा धो कर नाश्ते के उपरान्त सीधे गुरु शिखर के लिए निकल पड़े | मुख्य आबू कस्बे से पूर्व की ओर लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गुरु शिखर | गुरु शिखर ,अरावली पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊँची चोटी है और माता अनुसूया एवं ऋषि अत्रि के पुत्र मुनि दत्तात्रेय के तपोस्थल के रूप में विख्यात है | माता अनुसूया की कथा अपने आप में जितनी रोचक है उससे ज़रा सी भी कम रोमांचक नहीं है ये गुरु शिखर | कहते हैं कि चाहे पूरे राजस्थान में लू चल रही हो मगर गुरु शिखर पर शीतल हवा चलती है जो हमें खुद भी महसूस हुआ | 







दूर चोटियों पर दिखता गुरु शिखर 


शिखर के शीर्ष पर स्थित विशाल घंटी 

गुरु शिखर से आसपास का विहंगम दृश्य 



ऊपर से नीचे तक का दृश्य 




वहीं बिकती स्थानीय मूल कंद की दूकान 


मुनि दत्तात्रेय की पवित्र गुफा 




गुरु शिखर के शीर्ष पर 
वहां से नीचे उतरते हुए सीढ़ियों पर स्थित विविध सामग्रियों , सुन्दर पेंटिंग्स ,मेहंदी ,चूड़ी ,रेशमी परिधान ,की ढेर सारी दुकानों में खरीददारी करते हुए हम वापसी के लिए निकल पड़े | नीचे आते हुए सबसे पहले सामने मिला प्रजापति ब्रह्माकुमारी का अंतर्राष्ट्रीय शान्ति केंद्र व ठीक उसके सामने ही स्थित और क़यामत जैसा खूबसूरत शांति उपवन |


भवन के अंदर स्थित राधा कृष्ण की सुन्दर मूर्ति 





अंतर्राष्ट्रीय शान्ति भवन का मुख्यद्वार

मुझे दर्शन कोई सा भी हो अक्सर प्रभावित तो करता ही है और मैं भी उसे समझने का भरसक प्रयास करता हूँ | ॐ शांति के रूप में पुष्पित इस संस्थान के कार्य ,उद्देश्य ,और व्यवहार में मुझे इनके नाम के अनुरूप ही शांति की अनुभूति हुई फिर मेरे प्रिय भगवान शंकर के आराध्य सत्य सनातन शाश्वत शिव के ओज की बात हो रही थी | मुझे बहुत ही शान्ति की अनुभूति हुई | शान्ति उपवन बहुत ही श्रम से सजाया संवारा हुआ और बहुत विस्तार से बना हुआ खूबसूरत स्थल है |



अर्बुदा माँ का मंदिर 




माँ अर्बुदा 



भीतर की मूर्ति 






अष्टधातु के नंदी

समय तेज़ी से बीत रहा था ,और बहनोई जी के निर्देश के अनुरूप हमें शाम होने से पहले ही वापसी करनी थी | हमारा आखरी पड़ाव था दिलवाड़ा जैन मंदिर जो जैन सम्प्रदाय का विश्व में सबसे बड़ा पूजनीय स्थल है | जैन मंदिरों में प्रवेश आराधना और व्यवहार के अपने  होते हैं जिनमे से एक था फोटोग्राफी पर प्रतिबन्ध | बेहद खूबसूरत नक्काशीदार मंदिर और प्रांगण |

दोपहर के लगभग 4 बजे हम आबू पर्वत के घुमावदार रास्ते से निकल कर उसी खूबसूरत हाइवे पर थे | 









रास्ते में पड़ने वाला खूबसूरत टनल 






बहन के घर के आसपास की गली

हालांकि ये उयदयपुर का पहला सफर रहा कर इसके बाद के सारे सफर इससे कहीं अधिक यादगार और रोचक रहे और बहुत सारे नए जगहों को देखने के बायस भी | उदयपुर ने मन को मोहपाश में बाँध लिया था जैसे 

1 टिप्पणी:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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