मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

ब्लॉगिंग को किसी न तो किसी आचार संहिता की जरूरत है न ही किसी दंड संहिता की ......अभी हिंदी ब्लॉगिंग को जरा जवां तो होने दीजीए हुजूर .....तब तक लडकपन चलने दीजीए न ....



मुझे ब्लॉगरों का एक साथ बैठना ...चाहे फ़िर आप कोई मीट का नाम दे या साग भात का ..चाहे बैठकी हो ..या मिलन ..मगर जब आभासी दुनिया के लोग आपस में एक दूसरे के आमने सामने बैठ कर रूबरू होते हैं ...तो हरेक के न सिर्फ़ मन में बल्कि ....आत्मा के भीतर एक अनोखी ही चमक देखने को मिलती है ..मुझे यकीन है कि ..ऐसी हर उस ब्लॉगर ने महसूस किया होगा ..जो कभी न कभी इनका हिस्सा बना है ..। और वही क्यों ..जब उन बैठकों की रिपोर्टें ..उनकी तस्वीरें ..पोस्ट के माध्यम से अंतर्जाल पर आती हैं ..तो चाहे कोई लाख इस बात को झुठलाए ..और लाख तर्क कुतर्कों से इसकी मीनमेख निकाले ..मगर लोकप्रियता ही बता देती है कि ..ये खूब पसंद की जाती हैं । हाल ही में वर्धा में एक वृहत सम्मेलन का आयोजन किया था ..जहां तक मुझे याद है कि ..ये ऐसा दूसरा सम्मेलन था जिसमें ..आयोजन कर्ता की भूमिका में सरकार भी कहीं न कहीं जुडी थी .....जाहिर है कि इसकी रूपरेखा तैयार करने वाले और संचालन करने वाले मित्र तो इसके लिए बधाई के पात्र हैं ही ..क्योंकि यदि सरकारी राशि का कुछ प्रतिशत यदि ब्लॉगर हित में लगवाया जा सका है तो ये कोई कम बडी उपलब्धि नहीं कही जा सकती .....हां इसका प्रभाव और परिणाम कितना सकारात्मक निकला या निकलेगा ..अभी इस पर कुछ भी कहना तो जल्दबजी ही होगी....ऐसा ही एक सम्मेलन पिछले वर्ष ...इलाहाबाद में भी हुआ था । इस बार इसका विषय रखा गया था " ब्लॉगिंग में आचार संहिता की आवशयकता " ।

हालांकि इसमें बहुत बडी संख्या में कई वरिष्ठ साथी ब्लॉगर शरीक हुए थे , मगर अभी तक आई रिपोर्टों में विस्तार से जानने को नहीं मिल पाया है कि , सम्मेलन में इस विषय पर क्या क्या बहस हुई और किसने क्या क्या विचार व्यक्त किए ....और यदि कोई निष्कर्ष निकला तो वो क्या रहा । मगर इन सबके बीच ही ..अंतर्जाल पर लिख पढ रहे अन्य हिंदी ब्लॉगर साथी ऊपर लिखित विषय को बहस का आधार बना कर अपने विचार रखने लगे थे और शायद अभी तो आगे भी बहुत कुछ पढने लिखने को मिलेगा । वैसे ये विषय ऐसा है कि जिस पर मेरे विचार से हरेक ब्लॉगर को खुल कर राय जरूर व्यक्त करना चाहिए । आखिर यही छोटे छोटे प्रयास कल के लिए ब्लॉगिंग की दिशा तय करने वाले कदम साबित होंगे ।

इस मुद्दे पर सोचने बैठा तो सबसे पहले जो बात मेरे जेहन में आई ..वो ये कि आखिर ..आज ऐसी आवश्यकता ही क्यों पडी कि सिर्फ़ पांच सालों की यात्रा के बाद ही ब्लॉगिंग को , वो भी सिर्फ़ हिंदी ब्लॉगिंग को , क्योंकि मुझे ये ज्ञात नहीं है कि अन्य भाषाओं में किसी आचार संहिता की कोई जरूरत पडी है , या कोई है भी , जबकि संख्या में वे इतने आगे हैं कि अभी तुलना करना ही बेमानी होगा ..हां तर्क देने वाले ये तर्क जरूर देंगे कि ...हिंदी ब्लॉगिंग का भी निरंतर विस्तार हो रहा है और कल को ये संख्या निश्चित रूप से बहुत बडी संख्या होगी ..मगर क्या तब तक अन्य भाषी ब्लॉग्स रुके रहेंगे वे भी तो निरंतर बढ रहे हैं न । यहां एक कौतुहल मन में जाग उठा है कि ....तो फ़िर यदि उन्हें इन विषयों पर बात करने की जरूरत नहीं महसूस नहीं होती तो आखिर वे कौन सी बात करते हैं अपने ब्लॉगर बैठकों में ..ये तो वही बता सकते हैं जो कभी इनमें शामिल हुए हों । तो प्रश्न ये कि , आखिर इतनी जल्दी हिंदी ब्लॉगिंग को आचार संहिता की जरूरत क्यों महसूस होने लगी ...जवाब सीधे सीधे आए तो आएगा ..कोई जरूरत नहीं है..। मगर ठहरिए ..मामला उतना भी आसान नहीं है जितना दिखता है । मुझे स्मरण है कि जब २००७ में मैंने ब्लॉगजगत में पदार्पण किया था ..तो कम से चार या पांच एग्रीगेटर्स अपनी सेवाएं दे रहे थे ..। और बाद में ये जान पाया कि , उन सबके बंद होने के पीछे ..कहीं न कहीं , या कहूं कि लगभग पूरा का पूरा हाथ....जी हां आप ठीक समझे ..खुद हिंदी ब्लॉगर्स का ही था ।हाल ही में बंद हुई ब्लॉगवाणी के बंद होने से पहले की स्थितियों से कौन वाकिफ़ नहीं है ?? हालांकि इसका एक और कारण शायद ये भी रहा कि इन सभी संकलकों से जुडे लोग या तो खुद भी ब्लॉगर थे या फ़िर उनसे जुडे हुए अवश्य थे ...दूसरी और अहम बात ये कि ..मुफ़्त ही सेवाएं दे रहे थे ...। इसका परिणाम ये हुआ कि ..अपनी आदत के मुताबिक ..हिंदी ब्लॉगर ने इन संकलकों को भी ..देश की सडक समझ कर ....सुलभ शौचालय की भुगतान कर ..विसर्जन करने वाली सेवा करने से ..आसान पाया और खूब किया भी ..पसंद नापसंद ...हॉट ..आदि जैसे सेवाओं के उपयोग और दुरूपयोग से ..और ये नहीं कह रहा कि ..मैं भी और आप भी ..यानि हम सब ही इसमें परोक्ष प्रत्यक्ष रूप से शामिल थे ।

मगर इन सबके बावजूद ..ब्लॉगिंग में किसी तरह की कोई आचार संहिता का बनना ....और उससे भी बढकर पालन किया जाना ..फ़िलहाल तो बचकाना सा ही लगता है । इसके बहुत से वाजिब तर्क दिए जा सकते हैं ।उदाहरण के लिए , अभी हुए वर्धा सम्मेलन को ही लें .....सबसे पहले तो यही प्रश्न सामने आएगा कि ...क्या आज मौजूद हिंदी के हर चिट्ठाकार ने ऐसी कोई सहमति दी है ......कि इस सम्मेलन में उपस्थित विद्वान साथियों द्वारा जिस भी आचार संहिता का निर्माण किया जाएगा उसका वे भी पालन करेंगे ...हर चिट्ठाकार न सही ..एक बहुत बडी संख्या ही सही .....अरे सबको छोडिए ..चिट्ठाजगत में अधिकृत पंद्रह बीस हज़ार में से नियमित लिखने पढने वाले पांच सौ या एक हज़ार चिट्ठाकारों ने भी ....और दूसरी बात ये कि ....यदि वहां ऐसी किसी आचार संहिता का निर्माण हो भी जाता ..या कि ऐसे किसी सम्मेलन में कर भी दिया जाए ..तो उस सम्मेलन में ..उपस्थित हर ब्लॉगर क्या उस आचार संहिता को माने जाने का शपथ पत्र दाखिल कर लेगा अपने आप से .....नहीं कदापि नहीं ..मेरा अनुभव तो इस मामले में कुछ अलग ही रहा है ...मैंने तो साथी मित्रों को ..बिना किसी मुद्दे मकसद और एजेंडे के बुलाया था ....और कुछ दोस्तों को उसमें से भी कोई बू दिखाई दे गई .....खैर । हां यदि ऐसी कोई आचार संहिता .....भारतीय सरकार बनाती है ..कल को गूगल या वर्डप्रैस बनाते हैं ..तो उसे मानना हर ब्लॉगर की मजबूरी होगी और तभी इसका अनुपालन हो सकेगा ।


अब बची बात ये कि यदि आचार संहिता न बन पाती है , नहीं लागू हो पाती है तो फ़िर क्या आज की जो स्थिति है वो कल को और भी बदतर नहीं होगी न ..तो होने दीजीए न ....। मैं पहले से ही कहता रहा हूं कि ,ब्लॉगिंग का एक ही चरित्र है ..वो है उसका निरंकुश चरित्र .....बेबाक , बेखौफ़ ,...बेरोकटोक के ...और खालिस बिंदास ....। एक व्यक्ति अपने ब्लॉग पर रोज एक खूबसूरत चित्र लगाता है प्रकृति का ..उसे क्या लेना देना आपकी हमारी इस आचार संहिता से ...एक ब्लॉगर ....रोज अपनी डायरी का एक पन्ना चिपका देता है ब्लॉग पोस्ट बना कर .....तो उसकी निजि डायरी में आपकी आचार संहिता को वो क्यों घुसेड दे ....। इसको भी जाने दीजीए ..वो जो सिर्फ़ पाठक हैं....जो सिर्फ़ पठन रस लेने के ही ब्लॉग दर ब्लॉग घूमते हैं ..उनपर आप कौन सी आचार संहिता लागू करेंगे ?? और सबसे अहम बात कि ..आखिर वे हैं कौन ..जो ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं ..क्या कभी स्कॉटलैंड के किसी ब्लॉगर ने की ऐसी कोई टिप्पणी जिससे विवाद उठा ...तो ऑस्ट्रेलिया वाले किसी ब्लॉगर ने अपने चिट्ठे को चर्चा में जगह न मिल पाने की शिकायत की हो ...नहीं न ...और तो और ये बात भी सब भलीभांति जानते हैं कि ....अनाम , बेनाम , गुमनाम और नकली प्रोफ़ाईल धारी ब्लॉगर्स भी हमारे आपके बीच से ही है .....तो आप उन दिखने लिखने वाले ब्लॉगर्स पर तो आचार संहिता लागू कर सकते हैं ....मगर उनके भीतर बैठे ....उन अनाम सुनाम ब्लॉगर पर नहीं । फ़िर एक सबसे जरूरी बात ,,,,,आखिर कुछ सोच कर ही मोडरेशन वाला विकल्प , सार्वजनिक और निजि का विकल्प , अनाम को बाधित किए जाने का विकल्प ही सही मायने में ..आचार संहिता की नौबत तक न पहुंचने देने के हथियार तो हैं ही न ???

मुझे इस बात से कोई परहेज़ नहीं है कि इस मुद्दे को उठाया गया है ,लेकिन मेरी समझ से इससे बेहतर भी हैं कई उपाय जो किए जाएं तो ज्यादा सार्थक हो सकते हैं । चाहे एक मिनट के लिए आचार संहिता न भी बना पाएं , न लागू कर पाएं , मगर उन पर विचार तो किया ही जा सकता है , क्योंकि कल को जब ..मीडिया के दबाव में ( मुझे अब ये पूरी उम्मीद है कि यदि कल को हिंदी ब्लॉगर्स के प्रति भारत सरकार का नज़रिया और नीति , जो कि अभी है ही नहीं , बदलती है तो वो हिंदी मीडिया की पहल पर ही होगा । आज हिंदी ब्लॉगिंग उनके लिए ही सबसे बडी चुनौती के रूप में निकली है , तो उस समय सरकार के सामने उस संहिता के उपबंधों को रखा जाए । एक काम और हो सकता है , जिसके लिए किसी आचार संहिता दंड संहिता की जरूरत नहीं है । उन बातों को जो कि सकारात्मक हैं ..जो कि सही हैं ...उन्हें पर्याप्त समर्थन दिया जाए ..कम से कम उतना तो जरूर ही कि ..उसे किसी कदम पर लडखडाहट न ..और ऐसा ही तब हो जब कुछ गलत हो रहा हो ...मगर यहां कुछ लोगों को ये शिकायत रहती है कि..जब मेरे साथ फ़लाना हुआ तब तो कोई नहीं बोला ..जब ऐसा हुआ तब तो नहीं कहा किसी ने कुछ ..तो उन मित्रों से कहना चाहूंगा कि ऐसी स्थिति में ..सिर्फ़ दो बातें हो सकती हैं ...पहली ये कि या तो उनको सही पाकर लोग खुद बखुद उनके साथ जुडते चले जाएं ..या नहीं तो वे खुद ये प्रयास करें कि उनकी लडाई को उनके नज़रिए को ...उनके साथी ब्लॉगर्स भी उसी नज़रिए से देखें जिससे वे देख रहे हैं । अब यहां कुछ सवाल ऐसे उठ सकते हैं कि फ़िर तो इसके लिए आपका एक ग्रुप होना चाहिए ..या गुट बनाना चाहिए ....तो इसमें अस्वाभाविक कौन सी बात है ?? चलिए एक उदाहरण लेते हैं ..आज जितने भी पंजीकृत ब्लॉगर्स हैं ......उनमें से जो नियमित हैं सिर्फ़ वही एक दूसरे की पोस्ट को पढ लिख रहे हैं ..ये पांच सौ हों य छ: सौ ..तो बांकी बचे हुए हजारों अनियमित ब्लॉगर्स के लिए ..तो ये पांच छ: सौ वाला नियमित समूह ...एक ग्रुप ही बन गया न । और ये नहीं भूलना चाहिए कि परिवार में रहने वाले भाईयों में भी उन्हीं में पटती है जो एक जैसी विचारधारा वाले हों ...,,,,,और विपरीत विचारधारा वालों के सामने रहती पाई जाती है । नहीं नहीं होगा क्या ..क्या होगा आखिर ?? क्या ब्लॉग पर होने वाली बहस का परिणाम ...गुजरात के गोधरा से , १९८४ के सिक्ख दंगों से , जम्मू में रोज मारे जा रहे लोगों से अधिक भयंकर होगा ....नहीं न । तो फ़िर चलने दीजीए इसे निर्बाध और अनवरत ।

जनाब तभी तो कहता हूं कि ब्लॉग जगत को पहले ठीक से जवां तो होने दीजीए ..अभी तो इतना लडकपन है कि .

.किसी ब्लॉगर के साथ हुई दुरघटना को भी लोग सहनुभूति से नहीं शक की नज़र से देखते हैं ...क्यों है न ..पता नहीं कितना और क्या क्या लिख गया .....मगर माफ़ करिएगा हुजूर ...मैंने पहले ही कह रखा है ..कुछ भी कभी भी कहूंगा ,,,,सो कह दिया ...

36 टिप्‍पणियां:

  1. meree raay men hamen gulam rahane kadam-kadam par kanoonon kee lash dhonevale aur sakaree rashee kee bheekh par palane kee aadat chhodkar sachche loktantrr hone ka saboot dete hue aatmanushasit hona chahie.

    jo bhee sangthan banega usmen vidroh hoga...jo niyam banenge ve tootenge... jo rashi milegee uske kharch men aniyamitata aur bhrashtachar hoga..

    chitthkaree kee bhasha kya ho?, kathya kya ho? kab... kisse... kya kaha ya n kaha jaye ? yah batane ka itana shuk kyon?... ham swayattshasee kyon naheen ho sakte?

    mathadheesh privratti ke chand dhansoo chitthakaron kee leaderee kee khwahish pooree karne ka zariya kyon bane ham?

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  2. कुछ गलत कहा होता आपने तो हम भी बहुत कुछ कह गए होते ....आजकल हम बदतमीज़ हो गए है ! पर क्या करें बर्दाश्त करने की भी एक हद होती है !
    आपने आज की पोस्ट पर जो विचार रखें है .... मैं उनसे सहमत हूँ ! पर शायद लोगो को पहले खुद के लिए एक आचार संहिता बनानी चाहिए फिर ब्लॉगिंग का नंबर आता है !

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  3. बात आचार संहिता की कम चौधराहट की ज्यादा है। इसलिए इस चौधराहट से बच जाएं वही ठीक है।

    आपसे सहमत हूँ।
    आभार

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  4. यह भी बड़ी बात है कि संगोष्ठी ने इतना उद्वेलन पैदा किया!

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  5. बिल्कुल सहमत हैं आपकी एक एक बातों से.

    एक जगह मैने इस बाबत टिप्पणी भी की:

    ब्लॉगिंग की आचार संहिता: मैदान पर पुल तानने जैसा ही तो है. बेवजह पुल तान दिया. जिसे पुल पर से जाना है, वो पुल पर से जाये वरना मैदान से तो जा ही रहे थे. हाँ, दृष्य जरुर पुल की ऊँचाई से मनोरम दिख सकता है.


    सब स्व विवेक की बातें हैं.

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  6. हम तो सबसे भेंट करने गये थे, आचारित भी हो गये।

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  7. सहमत..
    एक अचार संहिता हर व्यक्ति को खुद के लिए भी बनानी चाहिए .

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  8. यूँ ही लिखते रहें...आपसे सहमति तो जतानी ही पड़ेगी, इतनी सही बात जो कही है आपने,,,,,
    उम्दा विचार हैं....
    मेरे ब्लॉग में इस बार..

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  9. मनुष्य के हर काम नैतिक संचेतना से जुड़े होते हैं /होने चाहिए और यही कारण है कि मनुष्य ऐसे विषय चुनता रहता है ...

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  10. आपके उठाये गए मुद्दे महत्वपूर्ण हैं ....और कुछ से पूरी सहमति भी !

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  11. आचार संहिता तो देश और समाज में भी बनी हुई है , कितना पालन हो रहा है ..
    यह हर व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है ...!

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  12. कल पढते पढते अचानक नेट गायब हो गयी .. बहुत अच्‍छा लिखा आपने .. वाणी गीत जी से सहमत हूं .. आचार संहिता तो देश और समाज में भी बनी हुई है , कितना पालन हो रहा है ..
    यह हर व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है ...!

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  13. कोई भी "डंडा छाप आचार संहिता" ब्लॉगिंग में कभी सफ़ल नहीं होगी, इस बात पर सम्मेलन में आम सहमति थी… और यही सच है…

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  14. बढ़िया लेख और सही स्थिति बयां कि है आपने ! महफूज़ के लिए हार्दिक शुभकामनायें ...

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  15. आचार संहिता ब्लोगरों के द्वारा स्वयं के नियंत्रण तथा ब्लोगिंग को सामाजिक सरोकार,परोपकार तथा जनकल्याण से मजबूती से जोड़ने से ही आ सकती है ना की किसी कानून,संविधान या आचार संहिता की किताब लिखकर ....वर्धा ब्लोगर संगोष्ठी से ऐसी संभावनाएं प्रबल हुयी है बस इसे अंजाम तक पहुँचाने का प्रयास हमसब को करना चाहिए ....

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  16. संहिता के होने या न होने का संबंध सीधे वर्चुअल स्पेस पर लिखनेवाले लोगों से है। ये कोई एक राज्यकीय स्पेस नहीं है कि कोई खाप पंचायती करने बैठ जाए। ये खुली दुनिया है। ये अलग बात है कि हम तीस-चालीस ब्लॉगरों को शक्ल,नाम और पता ठिकाने को जान लेते हैं तो बस इसे ही दुनिया मान लेते हैं। अगर कन्सेप्चुअली वर्चुअल स्पेस को समझने की कोशिश करें तो आचार संहिता पूरी तरह वर्चुअल स्पेस की अवधारणा के खिलाफ बात करनेवाला मुद्दा है।

    व्यावहारिक तौर पर देखें तो आपको कुछ ब्लॉगरों को नाम-पता सब ठीक-ठीक मालूम है तो आप लाद दें उन पर आचार संहिता और बाकियों के साथ आप क्या करेंगे? या फिर देर रात उस लेखक की नीयत बिगड़ जाए और बेनामी होकर कुछ लिख जाए तो आप क्या कर लेंगे? आप तकनीकी रुप से उसे आइडेंटिफाय भी कर लें तो फिर उससे ये कहां साबित हो सकेगा कि उसने ऐसा किस मनःस्थिति में रहकर किया? आप किसी की मनोदशा,उसकी चलन पर आचार संहिता लागू नहीं कर सकते। ये जब नागरिक संहिता के तहत जीनेवाले इंसान के बीच संभव नहीं हो पाता है तो आप मन की बारीकियों पर कैसे लागू कर सकेंगे?

    ये एक ग्लोबल माध्यम हैं,जिसमें आए दिन रगड़े होंगे और ये रगड़े जरुरी नहीं कि बलिया, बक्सर, बनारस, दिल्ली का ही लेखक करे और जिसका निपटारा वर्धा,इलाहाबाद में किया जाए? ये अमेरिका की समस्या पर मुनिरका( दिल्ली में एक स्टूडेंट प्रो इलाका)में बैठकर ताल ठोंकने का काम होगा। इसलिए मेरी अपनी समझ है कि ये मुद्दा वर्चुअल स्पेस की पूरी अवधारणा को बहुत ही सीमित और फ्रैक्चरड तरीके से देखने की कोशिश करता है। मुझे तो यहा तक लगता है कि जो कोई भी बेबाक तरीके से ब्लॉगिंग करता आया है,उसके दिमाग में इस मुद्दे का आना ही उसके लिखने पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है।..

    मेरी बात पढ़कर आप कहेंगे कि मैं तब लिखने के नाम पर फुलटाइम,फुलटू,फुलस्पीड में आवारगी की डिमांड कर रहा हूं। नहीं,ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। कोई भी लेखक जब इस स्पेस पर लिखता है तो लिखने के साथ उसकी किसी न किसी रुप में प्रतिबद्धता होती है। बल्कि लिखना अपने आप में एक प्रतिबद्धता का काम है,खास तरीके की कमिटमेंट है। ये संहिता से कहीं आगे और बड़ी चीज है। संभव है कि ये प्रतिबद्धता हर किसी के लिखने में अलग-अलग तरीके और साइज के हो। कोई लिखकर किसी एक या दो शख्स की कनपटी गरम करना चाह रहा हो तो कोई अपने लेखन से पूरी सिस्टम को हिलाकर रख देने की मंशा रखता हो। ऐसे में मुझे लगता है कि हमें उसकी उस प्रतिबद्धता को लेकर बात करनी चाहिए,संहिता की नहीं।

    संहिता वाली बात संभव है जिस किसी के दिमाग में उपजी है,संभव है कि वो कुछ अश्लील और गालियों के इस्तेमाल किए जानेवाले शब्द को लेकर भी पनपी हो। लेकिन आप इन गालियों को प्रोत्साहित न करते हुए भी इसके समाजशास्त्र और लिखनेवाले के एग्रेशन लेबल तक ले जाकर सोचेंगे तो पूरे विमर्श का आधार ही बदल जाएगा। संहिता की बात करना दरअसल ब्लॉगिंग के भीतर की बनती संभावित कॉम्प्लीकेटेड बहस को सतही तौर पर जेनरलाइज और सतही कर देना होगा।

    हां इस पूरी बहस में एक चीज का जरुर पक्षधर हूं और वो भी किसी नियम के तहत नहीं,एक अपील भर कि लिखने के साथ-साथ अगर अकांउटबिलिटी आ जाए तो कुछ स्थिति और बेहतर हो सकती है। क्योंकि अनामी होकर हर कोई बहुत गहरी और व्यापक सरोकार की बात करेगा,जरुरी नहीं। अगर न भी अकांउटेबल होते हैं तो फिर बहुत दिक्कत नहीं है। हां बस अगर वो बम धमाके की तरह आतंकवादी संगठन जैसे जिम्मेदारी अपने-आप ले लेते हैं तो इससे व्यक्तिगत स्तर पर ब्लॉगरों की ताकत में जरुर इजाफा होगा और टेलीविजन के अतिरिक्त "वर्चुअल स्पेस पर स्टिंग ऑपरेशन" होते रहने का भय बना रहेगा।.

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  17. मेरे हिसाब से ब्लॉग्गिंग में किसी भी प्रकार की आचारसंहिता का निर्माण हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खुला उलंघन है...इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं कहा जा सकता...क्योंकि जो किसी के लिए सही है तो वही दूसरे के लिए गलत भी हो सकता है...इसलिए इस बात में अंतर करना बहुत ही कठिन है कि क्या सही है और क्या गलत? अच्छे-बुरे को हमारे अपने...खुद के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए...

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  18. आपकी बात से पूर्णत: सहमत ...

    हर नीयम का तोड़ पहले बन जाता है ..

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  19. `वो जो सिर्फ़ पाठक हैं....जो सिर्फ़ पठन रस लेने के ही ब्लॉग दर ब्लॉग घूमते हैं ..उनपर आप कौन सी आचार संहिता लागू करेंगे ?? '

    सही है जी, टिप्पणीकारों पर कोई अचार या चटनी नहीं चलेगी :) नहीं चलेगी, नहीं चलेगी :)

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  20. कौन लागू करवाएगा और मानेगा और पालन करेगा कौन ? ... इस विशाल ब्लॉग में जगत में ये सिर्फ एक महज कपोल कल्पना है जी...

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  21. कौन लागू करवाएगा और मानेगा और पालन करेगा कौन ? ... इस विशाल ब्लॉग जगत में ये सिर्फ एक महज कपोल कल्पना है जी...

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  22. राजीव तनेजा जी की बात से सहमत हु क्या गलत है क्या सही इसका निर्णय कौन लेगा सबका अपना नजरिया है सबको अपने विवेक पर छोड़ देना चाहिए और आप भी सही कह रहे है की आप के साथ कुछ गलत हो रहा है तो विरोध कीजिये लोग खुद ब खुद आप से जुड़ कर उसका विरोध करेंगे यही काफी है और कई जगह असर भी दिखा रहा है | फिर एक और संविधान की जरुरत ही क्या है |

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  23. आचारसंहिता का निर्माण करना ही हे तो सब से पहले सडक पर चलने के लिये बनाये, ओर बहुत से काम हे जिन मे इस की सख्त जरुरत हे, ब्लांगिग मे इस की अभी तो कॊई जरुरत नही, हां स्टेज या मंच पर इन भारी भारी शव्दो को बोलने मै मजा खूब आता हे ओर सामने बाले पर भी कुछ असर जरुर छॊडता होगा, वेसे हम मस्त मलंग हे जी, इस लिये इन से दुरी ही भली, बाकी आप की बातो से सहमत हे, धन्यवाद

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  24. जो किशोरावस्‍था में संयमित नहीं हुआ, आगे तो दिग्‍भ्रमित ही होगा। जवानी दीवानी होती है और अभी से दीवानापन। अभी तो शैशवास्‍था है, संयम जरूरी है। संयम करो, यम से बचो। कल सबकी बारी है।

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  25. बिल्कुल सही लिखा है आपने! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ!

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  26. ये हुयी न सच्ची ब्लोगिंग और वसुधैव कुटुंबकम वाली बात, बहुत सुन्दर ....

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  27. इसका मतलब यह भी तो हुआ कि ब्लॉगिंग को अब जवां माना जाने लगा है ?

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  28. क्या बिना आचार पापड के रोटी सिर्फ़ सब्जी से नही खाई जा सकती?:)\

    रामराम.

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  29. दुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामरा्म.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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