मंगलवार, 25 मई 2010

दिल्ली ब्लोग्गर्स बैठक : संगठन और गुटबंदी का फ़र्क समझिए जनाब !


जैसा कि कल की पोस्ट में बता चुका हूं कि बहुत से साथी ब्लोग्गर्स ने ब्लोग्गर्स के किसी भी संगठन को लेकर उपस्थित बहुत से साथी ब्लोग्गर्स ने अपनी बातों को बेबाकी से रखा और ये बात सामने आई कि बिना उद्देश्य के किसी भी संघ का गठन दिशाहीन हो सकता है । ऐसे किसी भी संगठन के संभावित उद्देश्यों को सिलसिलेवार रूप से सामने रखा । उन्होंने एक अघोषित सा एजेंडा भी सभी ब्लोग्गर साथियों के समक्ष रखा । जितना मुझे याद रहा वो सब आपके सामने रख रहा हूं ।

मयंक सक्सेना जी ने बताया कि आज ब्लोग्गर्स के संगठन की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि ब्लोग्गिंग की बढती हुई ताकत और प्रभाव को बहुत जल्द ही देश , समाज, सरकार और मीडिया समझने वाली है , ब्लोग्गिंग चरित्र में निरंकुश और निर्भीक है । इसलिए स्वाभाविक रूप से इसके तेवर और धार बहुत ही तीव्र रहती है जो इन उपरोक्त संस्थाओं को देर सवेर नागवार गुजरने ही वाली है । जिस तरह से वैश्विक अंतर्जाल समूह में देखने सुनने पढने को मिल रहा है ये भी तय है कि प्रतिबंध और सेंसरशिप की गाज़ हिंदी ब्लोग्गिंग पर भी पडने वाली ही है एक दिन । उस दिन यदि उस ब्लोग्गर ने अपने आपको अलग थलग पाया तो उस दिन किसी ऐसे संगठन का न होना अधिक नुकसानदायक होगा ।

आज यदि पत्रकारिता से जुडे कुछ लोग ब्लोग्गिंग को लेकर किसी भी तरह की घटिया टीका टिप्पणी करके निकल जाते हैं तो वो सिर्फ़ इसलिए क्योंकि ब्लोग्गिंग के सकारात्मक पक्ष को जानबूझ कर नजरअंदाज़ किया जाता है । संगठन की जरूरत इसलिए है क्योंकि जब ब्लोग लेखन पर साहित्यिक गुटबंदी , धर्म अतिरेकता , और इस तरह के तत्व हावी होने लगें तो एक समूह ऐसा भी होना चाहिए जो इन सबके खिलाफ़ उठ खडा हो । कम से कम इतना तो जरूर ही कि ये मंशा जता सके कि पूरे ब्लोगजगत की राय ये नहीं है , या यही है ।


हिंदी ब्लोग्गिंग में भाषा , वर्तनी , अनुवाद आदि के क्षेत्रों में जो काम वो रहा है वो हाशिए पर चला जा रहा है । या उतना प्रखर नहीं है , या ये कहें कि उतना प्रखर होता दिख नहीं रहा है जितना अपेक्षित है । इसके लिए भी प्रतिबद्धता के साथ एक संगठन की जरूरत है जो इन बातों पर गंभीरतापूर्वक काम कर सके । जरूरी नहीं है कि हर ब्लोग्गर जो इससे जुडा हो वो यही काम करे , मगर इतना तो हो ही सकता है कि अपने अपने स्तर पर अपनी अपनी शैली में इसमें सहयोग कर सके ।


आज ब्लोग्गिंग में नियमित अनियमित ब्लोग्गर्स बैठक और कार्यशालाओं का जिस प्रकार से आकर्षण बढा है उसने ये जता दिया है कि भविष्य में ऐसे आयोजन और भी अधिक हों तो परिणाम सकारात्कम ही आएंगे । योजना कुछ इस तरह भी बनाई जा सकती है कि ब्लोग्गर संगठन के सदस्य अपने अपने क्षेत्रों में , स्कूल , कालेज और अन्य शिक्षण संस्थानों में ब्लोग्गिंग को विस्तार देने के लिए प्रयोगशालाएं आयोजित करें । भले ही आज इस तरह की योजनाएं बहुत ही प्रायोगिक न लगें मगर यकीनन एक दिन इनका मह्त्व जरूर ही समझा जाएगा ।

आज ब्लोग्गिंग में समाज के हर वर्ग के लोग जुडे हुए हैं । सभी के आसपास कुछ प्रिय अप्रिय , सुखद दुखद घट रहा है । यदि सुदूर प्रदेश में बैठा कोई ब्लोग्गर साथी चाहता है कि उसके आसपास किसी दुखद घटना के भुक्तभोगी को , किसी पीडित को , किसी स्वयंसेवी संस्था को सभी ब्लोग्गर्स की तवज्जो मिले , उनका साथ मिले , उनकी सहायता मिले तो क्या अच्छा हो यदि ऐसे कार्यों में कोई संगठन इस काम को अपने जिम्मे ले ।

इन्हीं बातों को साहित्य शिल्पी के संचालक श्री राजीव रंजन जी ने अपने ओजपूर्ण शैली में सबके सामने रखा । उन्होंने बताया कि आज ब्लोग्गिंग अधिक प्रभावी होती दिख रही है , वो इसलिए कि यही एक ऐसा माध्यम है जिसमें लेखक और पाठक के बीच सीधा संवाद स्थापित होता है । किसी भी लेख को पढ कर उसका पाठक बेहिचक ये कह और लिख सकता है कि लेख बकवास है । अन्य किसी भी माध्यम में ऐसा संभव नहीं है । उनका मानना था कि जब तक हिंदी ब्लोग्गिंग में आलोचना को स्वस्थ अंदाज़ में नहीं लिया जाएगा तब तक हिंदी ब्लोग्गिंग परिपक्व नहीं हो सकेगी ।


अब कुछ अपनी बातें । मैं पहले तो उनसे ये बातें स्पष्ट कर दूं कि आखिर ब्लोग्गर्स के किसी भी संगठन को लेकर इतनी दुविधा की बातें क्यों उठ रही हैं । पहली बात तो ये कि इस संगठन के प्रयास को किसी भी तरह की गुटबंदी समझने की जो भूल कर रहे हैं , वे या तो खुद को भ्रम में रखने की कोशिश कर रहे हैं या फ़िर भुलावे में हैं । यदि इसी ब्लोग्गर्स बैठक का उदाहरण दूं तो इस बैठक में ऐसे बहुत से नए साथी थे जो सिर्फ़ ब्लोग बैठक में भाग लेने पहुंचे थे ,बिना किसी नाम की परवाह किए । और सभी के लिए बहुत से चेहरे और मित्र नए थे । तो क्या ये माना जाए कि वो फ़लाना गुट के हो गए । और रही बात किसी गुटबंदी की आशंका की तो हर नियमित (अब तो अनियमित भी ) थोडे दिन की ब्लोग्गिंग में ही जान जाता है कि यदि कोई गुट है तो वो क्या है कैसा है ।

चलिए कुछ तल्ख उदाहरण लेते हैं । मैंने पिछले दिनों भाई अविनाश वाचस्पति जी की पोस्ट पर बीना शर्मा जी द्वारा चलाई जा रही संस्था प्रयास के बारे में पढा था । मुझे भीतर से लगा कि उस संस्था के लिए कुछ न कुछ किया जाना चाहिए । मैं अविनाश भाई को अपनी तरफ़ से ढाई हजार का चेक थमा आया कि वे उसे यथोचित स्थान तक पहुंचा दें । इसी तरह भाई राजीव तनेजा जी ने साथी ब्लोग्गर के लिए एक हजार रुपए की राशि भी भाई अविनाश वाचस्पति जी को दे दी । तो यदि इस तरह के एकल प्रयासों को संगठित किया जाए और उन्हें मूर्त रूप दिया जाए । तो ये हर हाल में यहां ब्लोगजगत में चल रहे चिरकुटिया कुत्ता घसीटी के खेल से बेहतर ही होगा । यदि इसके लिए मुझ पर ये आरोप लगता है कि मैं फ़लाने ढिमकाने का गुट का हूं तो लगता रहे । सिर्फ़ कागजी महाभारत लडने से बेहतर है कि वास्तविक मुठभेड हो । इसी बात को आगे बढाते हुए कुछ और बातें जेहन में आ रही हैं । मान लीजीए कि कल को भाई अजित वडनेरकर जी "शब्दों का सफ़र" को या श्री दिनेश राय द्विवेदी जी के "तीसरा खंबा" पर लिखे जा रहे विधि के इतिहास को हम सभी ब्लोग्गर्स के प्रयास से एक ग्रंथ का रूप दिया जा सके तो कल्पना करिए कि क्या अद्भुत नजारा होगा । एक ग्रंथ जिसके लेखक खुद ब्लोग्गर , जिसके प्रकाशक भी ब्लोग्गर , जाने कितने ब्लोग्गर समीक्षा लिखते और जाने कितने हजार ब्लोगर उसका लोकार्पण में पहुंचते हुए । ये सब सिर्फ़ योजनाएं हैं ।

आशंका जाहिर की गई कि इस तरह तो एक संगठन के विरोध में भी कोई संगठन उठ खडा होगा तो । अरे वाह फ़िर तो क्या बात है , होना ही चाहिए । एक से भले दो , दो से भले चार । फ़िर तो ऐसे पावन उद्देश्यों के साथ एक न एक दिन वे सभी संगठन आपस में जुड ही जाएंगे । मगर शायद ईशारा संगठन नहीं गुटबंदी और गिरोहबंदी की तरफ़ था । इसमें कसूर भी नहीं है शायद । आखिर पिछले कुछ वर्षों में यही सब तो देखा सुना जा रहा है हिंदी ब्लोग्गिंग में ।

तो उन सबके लिए हमारा यही संदेश है कि , अब समय आ गया है कि जो सोचा जा रहा है वो तो होगा ही । जिनकी इच्छा हो , वे खुशी से साथ आएं और सहयोग दें । जो न आना चाहें उनसे भी हमें कोई शिकायत नहीं रहेगी । और जो इन प्रयासों पर उंगली उठाना चाहते हैं , उन्हें भी पूरा हक है ये करने का सो वे भी करते रहें बदस्तूर । मगर सिर्फ़ शब्दों की लडाई लडने से ही कलेजा चौडा नहीं हुआ करता , उसके लिए लोहे का जिगर रखना होता है ।


शेष कल की आखिरी पोस्ट में ...........संगीता जी और ललित जी की बातें , दिल्ली ब्लोग्गर्स बैठक के लिए नियमित स्थान का चयन .............आदि .....।

23 टिप्‍पणियां:

  1. आज ब्लोग्गिंग में नियमित अनियमित ब्लोग्गर्स बैठक और कार्यशालाओं का जिस प्रकार से आकर्षण बढा है उसने ये जता दिया है कि भविष्य में ऐसे आयोजन और भी अधिक हों तो परिणाम सकारात्कम ही आएंगे ।

    बिलकुल सही कहा आपने....

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  2. इंशा अल्लाह आप सबकी कोशिश रंग लाएं। यही दुआ है।

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  3. हम सब को इस संगठन की ताकत का तब पता चलेगा जब हमे इस की जरुरत पडेगी, क्योकि कई बार हम लेख ओर टिपण्णियां बहुत धार दार दे देते है जो शायद इन नेताओ, अफ़सरो, ओर जमा खोरो को अच्छी ना लगे, तो उस समय अकेला क्या करेगा, बस संगठन ही उस समय साथ देगा.
    आप की बात से सहमत हुं.
    धन्यवाद

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  4. आप की बात से सहमत हुं|
    धन्यवाद|

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  5. ठीक ही तो कह रहे हैं झा साहब

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  6. हमें खुद...अपने पर यकीन होना चाहिए कि हम जो कर रहे हैं या करने जा रहे हैं ...वो नेक-नीयत है...सही है ...गलत नहीं है ...
    बस...उसके बाद फिर किसी की क्या परवाह करनी?...

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  7. अच्छी और सच्ची बातें पढ़ कर लगता है मुझे भी कि संगठन जरूरी है..

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  8. पूर्ण विवेक से उद्देश्यों और कार्यशैली पर विमर्श होना चाहिये ताकि एक सुदृण योजना बनाई जा सके.

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  9. गुटबन्दी और संगठन में फर्क तो है ज़नाब
    गुटबन्दी बिखराव की प्रारम्भिक अवस्था है तो संगठन का गठन ताकत और एकता की नींव है.
    विमर्श की आवश्यकता है और होनी चाहिये. शंकाये जन्म ले रही हैं तो समाधान होना चाहिये (पर मुझे शंकायें कम नज़र आ रही हैं)
    सार्थक प्रयास है निरर्थक तर्कों को तो आना ही है.

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  10. विचारणीय व सार्थक बहस को प्रेरित करती प्रस्तुती /शानदार ,जानदार /

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  11. बहुत अच्छी बात लिखी गई है आपके द्वारा। सन्गठन का सबसे पहले एजेन्डा या कहें बाइ लाज तैयार करने होंगे जिसमे सन्गठन का उद्देश्य स्पष्ट रूप से उल्लेखित रहेगा। और केवल स्वान्तह सुखाय की अवधारणा नही रहेगी। ज्यादा कुछ लिखना बेमानी होगी क्योंकि झा जी स्वयम एक अधिवक्ता हैं और सक्रिय हैं। प्रतिक्षा मे………।

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  12. हमारे विचार से तो संगठन और गुटबाजी में यही अन्तर होता है कि संगठन का उद्देश्य "सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय" होता है और गुटबाजी का उद्देश्य होता है निजी स्वार्थसिद्धि।

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  13. हाथ से हाथ मिले और ताकत बढ़ जायेगी
    बुराइयों से लड़ने की हिम्मत बढ़ जायेगी

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  14. आपने बिलकुल सही कहा झा जी. अगर किसी संगठन के बनने में केवल बुराइयाँ ही होती तो अब तक मीडिया के अन्य माध्यमो के संगठन बंद हो गए होते. लेकिन अगर ध्यान से देखा जाए, तो ऐसे संगठनो ने उन माध्यमो को ताकत देकर और भी ज़िम्मेदारी के साथ दुनिया के सामने पेश किया है.

    मेरे विचार से सभी हिंदी ब्लॉग लेखकों का एक ही संगठन होना चाहिए, उसकी शाखाएं अलग-अलग हो सकती हैं. साथ ही अधिकारियों का चयन भी पूरी तरह लोकतान्त्रिक तरीके से होना चाहिए, ताकि किसी को भी कोई शिकायत ना रहे. हालाँकि "शिकायत ना हो" ऐसा होना असंभव है, फिर भी कोशिश तो की ही जा सकती है.

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  15. "संगठन" वाले विचार से पूर्णतः सहमत हूं… होना ही चाहिये

    :) क्योंकि शायद सबसे पहले मुझे ही उसकी जरुरत पड़े… :)

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  16. संगठन की बात से ख़फा एक उत्तरप्रदेश स्थित एक मशहूर ब्लॉगर-स्तंभलेखक से फोन पर मेरी गर्मागर्म बहस हुई थी। 10 मिनट के भीतर ही वे मेरी बातों से संतुष्ट होकर संगठन बनाने के समर्थक हो गए।

    अपनी बात यदि प्रभावी ढ़ग से रखी जाए तो निश्चित तौर पर सहमत हुआ जा सकता है
    किन्तु यह भी याद रखना चाहिए कि भैंस और बीन की कहावत, हिन्दुस्तान में बहुत मशहूर है :-)

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  17. मेरे विचार से यदि प्रत्येक हिन्दी ब्लागर को एक समूह से जोडकर संगठन खडा करना ही उदेश्य है तो फिर ऎसे किसी संगठन का कोई औचित्य सिद्ध नहीं होता...हाँ यदि समर्पित व्यक्तियों को लेकर किसी संगठन का निर्माण किया जाए...सदस्यता के लिए कुछ मापदंड निश्चित किए जाएं, ब्लागर की पृ्ष्ठ्भूमी को ध्यान में रखते हुए उसे सदस्यता दी जाए....एवं जिसके उदेश्य साफ एवं स्पष्ठ हो तो ही ऎसा कोई भी प्रयास सार्थक कहा जा सकता है...

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  18. @ पंडित डी के वत्स जी आपका सुझाव व विचार सर्वोत्तम है और हमलोग इसी दिशा में सोच रहें हैं / आप अपने सुझाव जो आप चाहते हैं और जो होना जरूरी है ,हमें कृपा कर इ.मेल करने का कष्ट करें साथ ही अपना फोन नंबर भी हमें दे जिससे जरूरत पड़ने पर आपसे हम सम्पर्क कर सकें / सच्ची भावना और अच्छी सोच से विचार व्यक्त करने के लिए धन्यवाद ,आप जैसों का सहयोग जरूरी है किसी नेक उद्देश्य के लिए /

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  19. कहीं कोई शंका नहीं है ही नहीं...

    असल में मीटिंग में शामिल का होने पहला उद्देश्य यही था की संगठन की जरुरत क्यों,,,, ये तो अब सबको समझ आ ही गयी होगी की क्यों जरुरी है.

    दूसरी बात, मैंने मीटिंग में भी कहा था, जब आज विमर्श शुरू हुआ है तो निश्चित ही कुछ अच्छे परिणाम आयेंगे... अभी इतनी बातचीत हो रही है इसका मतलब यही है की संगठन का समग्र उद्देश्य सतह पर आ जाये...
    संगठन तो जरुरी है.

    रही बात, संगठन न चाहने वाले, तो भी ठीक है. बाकी जो गंभीरता से चाहते है वे इस पर कार्य भी कर रहे हैं. धीरे धीरे इसकी उपयोगिता सिद्ध हो जाएगी. फिर तो सबका स्वागत करना ही है. चूँकि मामला जनहित से जुड़ा है न की पार्टी से.

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  20. बहुत से प्वाईंट जो बैठक में अधूरे रह गये थे या मैं समझ नहीं पाया था, अब आपको पढकर समझ रहा हूं।
    आपका बहुत-बहुत आभार

    प्रणाम स्वीकार करें

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  21. बहुत अच्छी बातों पर विचार किया जा रहा है । इसे सब मिलकर जारी रखेंगे ।

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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