जैसा कि अपेक्षित ही था कि कसाब के मुकदमें में जो फ़ैसला आना था वही आया यानि फ़ांसी । सच कहा जाए तो ये सबको पता ही था कि कसाब को सिर्फ़ फ़ांसी ही दी जा सकती है जितना संगीन उसका अपराध है , और कानूनन भी उसके लिए यही सजा (यानि देशद्रोह और देश पर आक्रमण जैसे अपराध के लिए भारतीय कानून में मृत्युदंड की सजा का ही प्रावधान है )। इस सजा पर अब देश में कोई प्रतिक्रिया आएगी या ऐसी अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए । इससे पहले मिली फ़ांसी की सजाओं और उनके क्रियान्वयन में हो रहे लचरपन को देखते हुए अब किसी अपराधी को फ़ांसी की सजा मिलना किसी के लिए उद्वेलित करने वाली बात नहीं रह गई है । हालात तो ऐसे हैं कि पाकिस्तान भी अब अफ़जल गुरू और सभी अपराधियों के प्रति भारतीय सरकार और कानून वयवस्था की हालत देख कर बिल्कुल निश्चिंत हो चुका है इसलिए बिल्कुल चिंतामुक्त होकर बैठा हुआ है ।
अभी तो हो सकता है कि मानवाधिकार के कुछ हिमायती शायद ये दलील देनें भी आएं कि मृत्युदंड की सजा प्रकृति के नियम के खिलाफ़ है और किसी को किसी का जीवन छीनने का अधिकार नहीं है । बेशक वे ये बात कहते हुए बेशर्मी से इस बात को भूल जाएंगे कि जिन मासूम निर्दोषों को इन हैवान बन चुके इंसानों बेवजह ही गोलियों से भून डाला , जीने का अधिकार तो उनका भी था । अब सिर्फ़ फ़ांसी की सजा देने की खानापूर्ति करना ( धनंजय चटर्जी की फ़ांसी के बाद से फ़ांसी की सजा पाए अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए सरकार जिस तरह का ढुलमुल रवैया अख्तियार किए हुए बैठी है ,उससे तो ये सिर्फ़ एक खानापूर्ति ही बन कर रह गया है ) ,किसी भी तरह से जब आम जन को ही संतुष्ट नहीं कर पाता तो क्या ये उन सैकडों परिवारों जिन्होंने इनके कारण अपनों का साथ खो दिया ,उनके दिल को कैसे चैन मिलेगा । खासकर जबकि वे जानते हैं कि अभी तो दो साल और करोडों रुपए सिर्फ़ इस बात के लिए खर्च किए गए हैं कि सब ये न कहें कि भारत ने कसाब जैसे आतंकवादी के साथ भी कितना नाइंसाफ़ी नहीं होने दी क्योंकि उसने ये अपराध किया है ये साबित करने की तो जरूरत थी ही नहीं । और इसी बात के लिए अभी तक (याद रहे कि अभी तो ये अदालत का सबसे निचला पायदान है )करोडों खर्च किए जा चुके हैं और जितने खर्च हुए हैं उससे ज्यादा अभी खर्च होने बाकी हैं ।
सरकार बता सकती है कि ये जो पैसे कसाब के साथ कोई नाइंसाफ़ी नहीं हुई है सिर्फ़ ये दिखाने के लिए खर्च किए हैं सरकार ने और आगे भी जरूर करेगी , वो क्या कसाब के बाप ने भारत सरकार के पास रखवाए थे, या पाकिस्तान ने नकली नोटों ( पाकिस्तान भारत के नकली नोटों को बनाने में सबसे माहिर है ) की तगडी खेप भारत भेजी थी । यदि ये आम जनता की गाढी कमाई में से टैक्स रूपी हफ़्ता वसूली का ही हिस्सा था तो फ़िर तो यकीनन ये उनकी कमाई में से भी गया होगा जिनके अपनों को इस कसाब कसाई के लोगों ने मारा । तो ऐसी कमाल की न्याय व्यवस्था तो आपको भारत में ही मिलेगी । एक कमाल की बात और भी है कि आज जिस अमेरिका के समकक्ष बनने और उसके जैसे एक महाशक्ति बनने का सपना देखा दिखाया जा रहा है जनता को , उसे ये बात कैसे समझाई जा सकती है कि एक अमेरिका अपने ऊपर हमले के बदले में उस पूरे देश की बखिया उधेड कर रख देता है , एक भारत है सालों से देश के गुनाहगारों का कुछ बिगाड ही नहीं पाता ।
आज यदि ये कर के दिखाया जाता कि , कुछ इस तरह का फ़ैसला दिया जाता कि , कसाब , अफ़जल और इन जैसे तमाम हैवानों को खुलेआम , बीच चौराहे पर वो लोग , जिनके लोगों को इन्होंने मार डाला ,पत्थर मार मार के ,कुचल दें तो शायद जरूर ही ऐसी किसी सज़ा का कोई मायने होता । अभी तो सबके लिए ये सिर्फ़ और सिर्फ़ एक रूटीन फ़ैसला है , वो भी ऐसा जिसका अमल जाने कब तक हो पाएगा और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि तब तक कोई और नया कसाब, अजमल, अफ़जल फ़िर से ऐसा ही कुछ नहीं करेगा ???????
गुरुवार, 6 मई 2010
कसाब का फ़ैसला .....फ़ांसी की सजा .....इसमें नया क्या था ??
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sundar aalekh bhai ki qalam se fir ekbaar.. lekin naya ye laga ki abhi tak koi plane hijack nahin hua use chhudane ko.. :)
जवाब देंहटाएंअजय भाई, बीच चौराहे पर तो नहीं पर हाँ कुछ क़ानूनी प्रावधान कर के कसाब को फ़ांसी जल्दी ही हो जानी चाहिए यह मेरा भी मानना है |
जवाब देंहटाएंफ़ांसी तो इस दरिंदे के लिये बहुत कम है, जिन लोगो के परिवार के लोग मरे है, इसे उन के हवाले कर दो... जो इसे इस तरह मारे की शेतान भी दस बार सोचे निहथो को मारने से पहले
जवाब देंहटाएंकैसी व्यवस्था है कि फांसी की सजा होती है मगर फांसी देने वाला कोई नहीं, हद है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आलेख.
aap ki baat bilkul sahi hai.
जवाब देंहटाएंकैसी व्यवस्था है कि फांसी की सजा होती है मगर फांसी देने वाला कोई नहीं, हद है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आलेख.
एकदम सही लिखा अपने. ऐसे लोगों के लिए रहम की कोई ज़रूरत नहीं
जवाब देंहटाएंIndira Gandhi ke hatyaron ko Ram Jethmalaniki kripase faansi chadhane me 10 saal lag gaye..chashmdeed gawahon ke baawjood..to maujooda nyawyawasthame kuchhbhi ho sakta hai!
जवाब देंहटाएंजी हाँ ...इस रूटीन फैसले पर इतना उत्साह मुझे भी समझ नहीं आ रहा ...जैसे कोई अनहोनी हो गयी हो ...!!
जवाब देंहटाएंअभी तो फैसला ही आया है....आगे होता क्या है..देखने वाली बात तो ये है
जवाब देंहटाएंराष्ट्रपति के पास भी समय सीमा होनी चाहिए जिसके भीतर राष्ट्रपति को फांसी की सजा प्राप्त अपराधियों की दरख्वास्त पर हां या ना की मोहर लगानी जरूरी हो।
जवाब देंहटाएंऔर ऐसे अपराधों के लिये तो कम से कम कानून में अलग से प्रावधान हों जिसमें तुरन्त सजा दी जा सके।
अभी तो हाईकोर्ट, सुप्रिमकोर्ट में जायेगा।
मुझे तो लगता है ये भी अपनी मौत यानि बूढा होकर ही मरेगा।
तबतक जाने कितनी कमाई खा जायेगा ये गरीब जनता की
प्रणाम
अरे फैसला होने से क्या होता है अमल मैं आये तब न ...अभी कोई और देश होता तो कब का गोली से भून दिया गया होता कसाब ...पर हम तो उदारवादी हैं न ..अपराध कितना भी संगीन क्यों न हो ...हमारे कानून की इंसानियत उन्हीं के लिए जगती है बस.
जवाब देंहटाएंप्रजातांत्रिक देश में इस तरह की गड़बड़िया भी हैं। जिसके बारे में सबको पता है, कोर्ट को उसे भी सजा दिलाने में इतना समय लगता है।
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पड़ोसी की गई क्या?
गूगल आपका एकाउंट डिसेबल कर दे तो आप क्या करोगे?
फंसी की सजा मिली छै बार
जवाब देंहटाएंफंसी हुई नहीं एक बार
अब इंतजार करो छै साल
ये तो कमाल है कमाल ।