
जैसा कि कल की पोस्ट में बता चुका हूं कि बहुत से साथी ब्लोग्गर्स ने ब्लोग्गर्स के किसी भी संगठन को लेकर उपस्थित बहुत से साथी ब्लोग्गर्स ने अपनी बातों को बेबाकी से रखा और ये बात सामने आई कि बिना उद्देश्य के किसी भी संघ का गठन दिशाहीन हो सकता है । ऐसे किसी भी संगठन के संभावित उद्देश्यों को सिलसिलेवार रूप से सामने रखा । उन्होंने एक अघोषित सा एजेंडा भी सभी ब्लोग्गर साथियों के समक्ष रखा । जितना मुझे याद रहा वो सब आपके सामने रख रहा हूं ।
मयंक सक्सेना जी ने बताया कि आज ब्लोग्गर्स के संगठन की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि ब्लोग्गिंग की बढती हुई ताकत और प्रभाव को बहुत जल्द ही देश , समाज, सरकार और मीडिया समझने वाली है , ब्लोग्गिंग चरित्र में निरंकुश और निर्भीक है । इसलिए स्वाभाविक रूप से इसके तेवर और धार बहुत ही तीव्र रहती है जो इन उपरोक्त संस्थाओं को देर सवेर नागवार गुजरने ही वाली है । जिस तरह से वैश्विक अंतर्जाल समूह में देखने सुनने पढने को मिल रहा है ये भी तय है कि प्रतिबंध और सेंसरशिप की गाज़ हिंदी ब्लोग्गिंग पर भी पडने वाली ही है एक दिन । उस दिन यदि उस ब्लोग्गर ने अपने आपको अलग थलग पाया तो उस दिन किसी ऐसे संगठन का न होना अधिक नुकसानदायक होगा ।
आज यदि पत्रकारिता से जुडे कुछ लोग ब्लोग्गिंग को लेकर किसी भी तरह की घटिया टीका टिप्पणी करके निकल जाते हैं तो वो सिर्फ़ इसलिए क्योंकि ब्लोग्गिंग के सकारात्मक पक्ष को जानबूझ कर नजरअंदाज़ किया जाता है । संगठन की जरूरत इसलिए है क्योंकि जब ब्लोग लेखन पर साहित्यिक गुटबंदी , धर्म अतिरेकता , और इस तरह के तत्व हावी होने लगें तो एक समूह ऐसा भी होना चाहिए जो इन सबके खिलाफ़ उठ खडा हो । कम से कम इतना तो जरूर ही कि ये मंशा जता सके कि पूरे ब्लोगजगत की राय ये नहीं है , या यही है ।
हिंदी ब्लोग्गिंग में भाषा , वर्तनी , अनुवाद आदि के क्षेत्रों में जो काम वो रहा है वो हाशिए पर चला जा रहा है । या उतना प्रखर नहीं है , या ये कहें कि उतना प्रखर होता दिख नहीं रहा है जितना अपेक्षित है । इसके लिए भी प्रतिबद्धता के साथ एक संगठन की जरूरत है जो इन बातों पर गंभीरतापूर्वक काम कर सके । जरूरी नहीं है कि हर ब्लोग्गर जो इससे जुडा हो वो यही काम करे , मगर इतना तो हो ही सकता है कि अपने अपने स्तर पर अपनी अपनी शैली में इसमें सहयोग कर सके ।
आज ब्लोग्गिंग में नियमित अनियमित ब्लोग्गर्स बैठक और कार्यशालाओं का जिस प्रकार से आकर्षण बढा है उसने ये जता दिया है कि भविष्य में ऐसे आयोजन और भी अधिक हों तो परिणाम सकारात्कम ही आएंगे । योजना कुछ इस तरह भी बनाई जा सकती है कि ब्लोग्गर संगठन के सदस्य अपने अपने क्षेत्रों में , स्कूल , कालेज और अन्य शिक्षण संस्थानों में ब्लोग्गिंग को विस्तार देने के लिए प्रयोगशालाएं आयोजित करें । भले ही आज इस तरह की योजनाएं बहुत ही प्रायोगिक न लगें मगर यकीनन एक दिन इनका मह्त्व जरूर ही समझा जाएगा ।
आज ब्लोग्गिंग में समाज के हर वर्ग के लोग जुडे हुए हैं । सभी के आसपास कुछ प्रिय अप्रिय , सुखद दुखद घट रहा है । यदि सुदूर प्रदेश में बैठा कोई ब्लोग्गर साथी चाहता है कि उसके आसपास किसी दुखद घटना के भुक्तभोगी को , किसी पीडित को , किसी स्वयंसेवी संस्था को सभी ब्लोग्गर्स की तवज्जो मिले , उनका साथ मिले , उनकी सहायता मिले तो क्या अच्छा हो यदि ऐसे कार्यों में कोई संगठन इस काम को अपने जिम्मे ले ।
इन्हीं बातों को साहित्य शिल्पी के संचालक श्री राजीव रंजन जी ने अपने ओजपूर्ण शैली में सबके सामने रखा । उन्होंने बताया कि आज ब्लोग्गिंग अधिक प्रभावी होती दिख रही है , वो इसलिए कि यही एक ऐसा माध्यम है जिसमें लेखक और पाठक के बीच सीधा संवाद स्थापित होता है । किसी भी लेख को पढ कर उसका पाठक बेहिचक ये कह और लिख सकता है कि लेख बकवास है । अन्य किसी भी माध्यम में ऐसा संभव नहीं है । उनका मानना था कि जब तक हिंदी ब्लोग्गिंग में आलोचना को स्वस्थ अंदाज़ में नहीं लिया जाएगा तब तक हिंदी ब्लोग्गिंग परिपक्व नहीं हो सकेगी ।
अब कुछ अपनी बातें । मैं पहले तो उनसे ये बातें स्पष्ट कर दूं कि आखिर ब्लोग्गर्स के किसी भी संगठन को लेकर इतनी दुविधा की बातें क्यों उठ रही हैं । पहली बात तो ये कि इस संगठन के प्रयास को किसी भी तरह की गुटबंदी समझने की जो भूल कर रहे हैं , वे या तो खुद को भ्रम में रखने की कोशिश कर रहे हैं या फ़िर भुलावे में हैं । यदि इसी ब्लोग्गर्स बैठक का उदाहरण दूं तो इस बैठक में ऐसे बहुत से नए साथी थे जो सिर्फ़ ब्लोग बैठक में भाग लेने पहुंचे थे ,बिना किसी नाम की परवाह किए । और सभी के लिए बहुत से चेहरे और मित्र नए थे । तो क्या ये माना जाए कि वो फ़लाना गुट के हो गए । और रही बात किसी गुटबंदी की आशंका की तो हर नियमित (अब तो अनियमित भी ) थोडे दिन की ब्लोग्गिंग में ही जान जाता है कि यदि कोई गुट है तो वो क्या है कैसा है ।
चलिए कुछ तल्ख उदाहरण लेते हैं । मैंने पिछले दिनों भाई अविनाश वाचस्पति जी की पोस्ट पर बीना शर्मा जी द्वारा चलाई जा रही संस्था प्रयास के बारे में पढा था । मुझे भीतर से लगा कि उस संस्था के लिए कुछ न कुछ किया जाना चाहिए । मैं अविनाश भाई को अपनी तरफ़ से ढाई हजार का चेक थमा आया कि वे उसे यथोचित स्थान तक पहुंचा दें । इसी तरह भाई राजीव तनेजा जी ने साथी ब्लोग्गर के लिए एक हजार रुपए की राशि भी भाई अविनाश वाचस्पति जी को दे दी । तो यदि इस तरह के एकल प्रयासों को संगठित किया जाए और उन्हें मूर्त रूप दिया जाए । तो ये हर हाल में यहां ब्लोगजगत में चल रहे चिरकुटिया कुत्ता घसीटी के खेल से बेहतर ही होगा । यदि इसके लिए मुझ पर ये आरोप लगता है कि मैं फ़लाने ढिमकाने का गुट का हूं तो लगता रहे । सिर्फ़ कागजी महाभारत लडने से बेहतर है कि वास्तविक मुठभेड हो । इसी बात को आगे बढाते हुए कुछ और बातें जेहन में आ रही हैं । मान लीजीए कि कल को भाई अजित वडनेरकर जी "शब्दों का सफ़र" को या श्री दिनेश राय द्विवेदी जी के "तीसरा खंबा" पर लिखे जा रहे विधि के इतिहास को हम सभी ब्लोग्गर्स के प्रयास से एक ग्रंथ का रूप दिया जा सके तो कल्पना करिए कि क्या अद्भुत नजारा होगा । एक ग्रंथ जिसके लेखक खुद ब्लोग्गर , जिसके प्रकाशक भी ब्लोग्गर , जाने कितने ब्लोग्गर समीक्षा लिखते और जाने कितने हजार ब्लोगर उसका लोकार्पण में पहुंचते हुए । ये सब सिर्फ़ योजनाएं हैं ।
आशंका जाहिर की गई कि इस तरह तो एक संगठन के विरोध में भी कोई संगठन उठ खडा होगा तो । अरे वाह फ़िर तो क्या बात है , होना ही चाहिए । एक से भले दो , दो से भले चार । फ़िर तो ऐसे पावन उद्देश्यों के साथ एक न एक दिन वे सभी संगठन आपस में जुड ही जाएंगे । मगर शायद ईशारा संगठन नहीं गुटबंदी और गिरोहबंदी की तरफ़ था । इसमें कसूर भी नहीं है शायद । आखिर पिछले कुछ वर्षों में यही सब तो देखा सुना जा रहा है हिंदी ब्लोग्गिंग में ।
तो उन सबके लिए हमारा यही संदेश है कि , अब समय आ गया है कि जो सोचा जा रहा है वो तो होगा ही । जिनकी इच्छा हो , वे खुशी से साथ आएं और सहयोग दें । जो न आना चाहें उनसे भी हमें कोई शिकायत नहीं रहेगी । और जो इन प्रयासों पर उंगली उठाना चाहते हैं , उन्हें भी पूरा हक है ये करने का सो वे भी करते रहें बदस्तूर । मगर सिर्फ़ शब्दों की लडाई लडने से ही कलेजा चौडा नहीं हुआ करता , उसके लिए लोहे का जिगर रखना होता है ।
शेष कल की आखिरी पोस्ट में ...........संगीता जी और ललित जी की बातें , दिल्ली ब्लोग्गर्स बैठक के लिए नियमित स्थान का चयन .............आदि .....।